Thursday 9 September 2021

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने 


से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चुराए क्यों भला इस ज़माने से..डर के भी क्यों 


जिए इन के तानों से...बेफिक्र है पर तन्हा तो नहीं...ज़िद पे है मगर अल्हड़ तो नहीं...तू लौट के तो आ 


अपनी दुनियां से,पास मेरे....देखना तब ज़माने की रंजिशे कम हो जाए गी..यह सिले लब फिर से 


गुनगुनाएं गे और सजना मेरे,बहारों के मौसम फिर से इंदरधनुष बनाए गे .....

ना पूछिए हम से कि हमारी रज़ा क्या है.....

 ना पूछिए हम से कि हमारी रज़ा क्या है...आप की इबादत करते है बस यही हमारी ज़िंदगी का नायाब 


फलसफ़ा है...कुछ देर रुकिए तो ज़रा और देखिए कि इबादत हमारी क्या रंग लाती है...सदियों की यह 


कोशिश है जो अब कही जा कर इबादत के पायदान पे आई है...जरुरी तो नहीं कि इबादत मे हम आप 


को ही मांगे...यह वो पायदान है मुहब्बत का जहां रिश्ते मांगे नहीं जाते...वो जब भी क़बूल करे गा हमारी 


नायाब इबादत को तो यक़ीनन झोली भी आप के प्यार से भर दे गा.....

Sunday 6 June 2021

 फिर से आवाज़ दे रही है ज़िंदगी..लौट आई हू मैं फिर से ,खुशियों के रंग साथ लिए..रौनकें उन्ही पलों 


की फिर से लाई हू..खुलने लगे है रास्ते और हवाओं का रुख खूबसूरत होगा...पर तू है जीव ऐसा,अपनी 


सीमाएं फिर से लाँघ जाए गा..मेरी कीमत अब तक तो तूने जान ली होगी...साँसे कितनी भारी पड़ी,इस 


का अंदाज़ा भी हो चुका होगा...संभल संभल चलना..जानता है ना,मेरी कीमत...साँसे बिखरती देखी,साथ 


कितने अपनों का छूटा...बस अब चलना बहुत ही संभल के...ज़िंदगी हू कोई खेल नहीं,मौत के आगे मेरा 


भी बस नहीं.....

Friday 4 June 2021

 वो पिंजरा तो ना था...अहसासों का अम्बार था..पिंजरे के हर किनारे पे मुहब्बत का नायाब दौर था...सजा 


दिया उस के हर कोने को,वो किसी ताजमहल से कम ना था...छोटा सा था मगर मीठे लफ्ज़ो का भंडार 


था...कुछ अनकही कुछ अनसुनी गहरी बातो का माहौल था..हंसी भी गूंजती थी तो कभी शरारतों का 


खुशनुमा दौर भी था...प्रेम का रंग इतना गहरा कि मिसाल देने के लिए,कही कोई और ना था...टप-टप 


बरसात मे कौन कितना भीगा,वो तो बस बेमिसाल था..पिंजरा खुला तो क्यों खुला,अहसासों का दौर जैसे 


उड़ ही गया...प्रेम तो प्रेम होता है,पिंजरे मे है या पिंजरे से बाहर...मर के भी जो ना टूटे,हां...यह प्रेम है..

 ना कोई रंजिशे है ना कोई शिकायतें है...रख रहे है जहां जहां भी कदम,तेरे ही नाम की इमारतें है..क्यों 


वीरान है यह सड़कें...क्यों सन्नाटा पसर आया है...देख के चाँद को आसमां मे,क्यों इन आँखों का कोर 


नम हो आया है..बेसाख़्ता दिल ने आवाज़ दी,यह तो आसमां का शहजादा है...कोर भीगे और जय्दा,यह 


 रास्ता अब धुंधला नज़र आया...इक्का-दुक्का इंसान दिखे जिन की चाल मे तेज़ी का असर नज़र आया...


हम क्यों चल रहे है तन्हा-तन्हा,शायद आँखों का नीर कुछ जयदा ही इन आँखों मे आज भर आया...

Saturday 29 May 2021

 कुछ कही तो कुछ अनकही बातें...

कुछ मीठी तो कुछ खट्टी बातें...

पलकों का झुक जाना तो कभी पलटवार कर देना...

मुस्कुरा देना तो कभी मुस्कान दबा लेना....

कभी अल्हड़पन तो कभी यू ही बड़प्पन दिखा देना...

कभी रौशनी बन जाना तो कभी अंधेरो मे ग़ुम हो जाना....

कभी इक पहेली तो कभी खुली किताब हो जाना...

तौबा तौबा,इतना इतराना तो कभी हुस्न को भुला देना...

दुनिया दे तवज्जो तो भी बेपरवाह हो जाना...

खिलखिला के जो हंस दे तो नूर चाँद तक का खाक हो जाना...

फरिश्ता भी नहीं,ज़न्नत की हूर भी तो नहीं...

 बहती है कभी नदिया की धारा की तरह,कभी हो जाए शांत समंदर के रुके नीर के जैसे...

खुशबू के ढेरे साथ लिए,हर किसी को जीवन का अहसास दिए....

एक पहेली भी है तो कभी एक सहेली भी है......

 कोई दिन ऐसा ना रहा जब इबादत या सज़दे के लिए,यह सर नहीं झुका...यह बात और है,कभी इन 


आँखों से सैलाब बहा तो कभी चुपके से अपने खुदा को,अपनी रूह का दर्द बयां कर दिया...यह नहीं 


कि उस ने हम को हमेशा दर्द ही दिया...कभी कुछ दी ख़ुशी पर आँचल के भरने से पहले ही उस ख़ुशी 


को हमी से जुदा कर दिया...सवाल उठाया बेहद अदब से और भरी आँखों से, तो उस ने हम से इतना 


कहा..'' वक़्त के हाथ मे सब की तक़दीर है..कभी दर्द है तो कभी ख़ुशी का मेला भी है..सब्र रख और 


कर इंतज़ार वक़्त का...तक़दीर का खेल कर्मो की रेखा का संगी-साथी है''...

Wednesday 19 May 2021

 राज़ है गहरा इन आँखों मे..

ना बताए गे..

लबों पे हंसी है इतनी गहरी..

यह ना बताए गे..

जीते है बिंदास बिन वजह..

कुछ ना बताए गे..

मुश्किलें बहुत है,दुःख भी...

मुस्कुराए तब भी...

दुनियाँ को सिखा रहे है जीना...

अँधेरा होगा खत्म...

कमजोरों को दे रहे है हंसी...

यही तो ज़िंदगी का नाम है...

रोटी मिल रही है आधी,कोई बात नहीं...

कल पकवान भी तो खाए गे...

जंग हौसले से लड़..

ज़िद के आगे अँधेरा भी टूट जाए गा...

रोनी सूरत ना बना..

जीवन व्यर्थ हो जाए गा...

अपनी हंसी का राज़ क्यों बताए गे...

बस अपनी हंसी से,जीवन दूसरों को दे रहे है...

आज इतना ही बताए गे....



 हर रोज़ इक नया सवाल पूछ रही है यह ज़िंदगी...जिस सवाल का जवाब दे चुके है,उसी से जुड़े और भी 


कितने सवाल पूछ रही है यह ज़िंदगी...क्यों हमारा मनोबल गिराने पे तुली है तू अरे ज़िंदगी...ईश्वर ने भरा 


 है ऐसी ताकत से कि उस के आगे तू कोई और सवाल दोहरा ना सके गी ऐ ज़िंदगी...इंसान कमजोर तो 


तभी होता है जब वो खुद को हराने की हार स्वीकार कर बैठे...मुस्कुरा ज़िंदगी संग हमारे कि ज़िद तो 


हमारी भी है कि आखिरी सांस तक जीते गे...आ ना,दोस्ती का रिश्ता रख हम से...फिर ना कहना,सवाल 


क्या पूछे तुझ से...मुस्कुरा संग संग हमारे.............

 हर रोज़ कुछ ना कुछ सिखा रही है यह ज़िंदगी...पर मुझे जीना,हर हाल मे बिंदास..अनोखा पाठ पढ़ा रही 


है यह ज़िंदगी...कुछ,कुछ भी नहीं सीख रहे तो कुछ इस को खुदा की मर्ज़ी मान ख़ुशी और संतोष से जी 


रहे...कहर से सब ने कुछ ना कुछ तो सीखा होगा,मगर जो हमेशा से रोते आए है..खुद की तक़दीर को 


कोसते आए है,उन को कुछ भी समझाना है बहुत मुश्किल...धूप-छाँव है यह ज़िंदगी..सुख के पल देती 


है थोड़े से पर तकलीफ़ की घड़ियां बहुत लम्बी होती है...क्या हुआ जो लम्बी है,यह दिन कभी तो उजाले 


मे बदले गे...हर दिन इक आस है और हर रात गुजरते तूफान की रात है....

Sunday 16 May 2021

 सोचिए तो जरा..क्या कल का सवेरा आज जैसा ही होगा ? यह दर्द,यह अपनों से बिछड़ने का गम...क्या 


दिल मे सदा होगा ? क्या रोजी-रोटी कमाने के लिए,कितने दिन और भटकना होगा ? साँसे कभी रूकती 


है तो कभी चलती है,कब इस दर्द से निजात पाए गे ? सब्र रख अरे इंसान,कुछ दिन कम मे जीना होगा तो 


क्या प्रलय आ जाए गी ? कुछ दिन तंगी संग भी जी लो गे तो क्या दुनियाँ ख़ाक तो ना हो जाए गी ? उसी 


को गुजारिश कर,वो हर सच्ची प्रार्थना जो दिल से निकले,सुनता है..यह दावा मेरा नहीं,जो भी खुद को 


समर्पित कर दे गा उस को तन-मन से..वो कल का खूबसूरत नज़ारा यक़ीनन देख पाए गा....बैर-द्वेष 


छोड़ दे अब तो,हाथ सच्चाई से जोड़ दे..........अब तो....

 दर्द और तकलीफ़ के आंसू खुद मे लिए,क्यों आज हर इंसान है...कभी थी ना ख़ुशी,इस एहसास से क्यों 


अनजान है..कुदरत के न्याय को समझने के लिए,तेरे पास बुद्धि भी कहां है..इतने कष्ट मे है फिर भी खुद 


को ताकतवर समझ रहा है..रोज़ एक ही सवाल दोहराते है उस मालिक से..'' यह इंसान गर सच मे इतना 


शक्तिशाली है तो हवा मे उड़ते कण को,रोक क्यों नहीं पाया..अपनी दौलत की ताकत से इस को भगा 


क्यों नहीं पाया ''...ईश्वर,तेरी माया अपरम्पार...जिस पल तेरी महिमा जगत कल्याण के लिए हो जाए गी,


उसी पल यह दुनियां रोग-मुक्त हो जाए गी...दया करो,दया-निधान...

Sunday 9 May 2021

 यह कमाल तो तेरी परवरिश का है माँ,जो ज़िंदगी की हर जंग को बेखौफ लड़ते आए है...कितनी गाज 


गिरती रही खुद के दिल के आशियाने पे,पर मज़ाल है जो कभी थक जाए...''साथ की उम्मीद मत रखना 


लाडो कि कदम तेरे कमजोर पड़ जाए गे..चोट लगे तो खुद ही संभल जाना,तरस लेना तेरे खून मे नहीं 


डाला मैंने''...माँ के शब्द और पिता की मजबूती ने किसी भी हालात मे डरने नहीं दिया...जो डर गया 


वो जंग ज़िंदगी की कब जीत पाता है...हर दिन तो तेरा ही है माँ..बस पन्नों पे लिख कर तेरा नाम,इस 


जहाँ को माँ के संस्कारो को समझाया है...मजबूत मुझे इतना कर दिया कि अब किसी भी अँधेरे से 


डर लगता नहीं...माँ तेरी परवरिश का क़र्ज़ इस रूह से उतरता ही नहीं....

 रास्ते बहुत कठिन है और अँधेरा भी है गहरा...पर  अटूट विश्वास के आगे,उजाला कब रुक पाए गा...


किसी ताकत ने आज तक रोका क्या,सूरज का उगना...किस ने रोका,चाँद को ढलने से रुकना...रोनी 


सूरत क्यों बनाई है...क्या तुझे कुदरत की महिमा अभी तक समझ ना आई है...इन साँसों का चलना,इन 


कदमों का अभी भी ना रुकना...क्या यह तेरी कोशिश है ? शुक्राना कर उस मालिक का...जिस ने दिया 


है तकलीफ को,वो इस से निज़ात देना भी जानता है... करना है तो सिर्फ हिम्मत रख ले...वक़्त का बस 


इतना ही तो तकाज़ा है...


Saturday 8 May 2021

 ''माँ ''.....एक और ''माँ ''....क्या फर्क रहा इन दोनों माओं का,मेरे जीवन मे...एक ने सिखाया मीठी बोली 


का महत्त्व और किसी भी बड़े के आगे खामोश रहने का वो महामंत्र....माँ का कहना,''मैं रहू या ना रहू,


मेरे नाम को दाग़ मत लगाना...ख़ामोशी का लबादा ओढ़े सब की सुन लेना...एक दिन सब तुझे मान 


सम्मान से लाद दे गे ''...वो मेरी दूजी माँ,गहरी डांट से डांट देती कि ख़ामोशी तो तोड़...पर माँ को दिया 


वो वादा कैसे तोड़ देती...सब सीखा,जो दूजी माँ ने सिखाया...आँखों का पानी खुद अपनी आँखों से भी 


छिपाया...पायल की छन छन से और सेवा के धागो से माँ का दिल मेरे लिए,हज़ारो दुआओ से भर 


आया...आज खुद भी माँ हू मगर संस्कारो के मोल,ज़मीर के साथ साथ चल रहे है....दोस्तों,माँ सिर्फ माँ 


होती है..वो कभी बुरी नहीं होती...नाराज़ हो तो भी औलाद के लिए दुआ मांगती है..खुश हो तो भी 


दुआ का सैलाब बहाती है...भगवान् से पल पल औलाद की सलामती मांगती है...माँ दुनियाँ से जा कर 


भी कही नहीं जाती...उस के दिए संस्कारो को ज़िंदा रखिए..वो हमेशा हमारे साथ रहे गी.....


Friday 7 May 2021

 साँसों को रखना है गर ज़िंदा तो खुद के हौसले को ज़िंदा रख...किसी ने दुनियाँ को छोड़ा तो तू क्यों डर 


गया...यह कुदरत है दोस्तों,वो कोई भेदभाव किसी मे नहीं करती...जिस की बारी जब आई है,वो उस 


को बिना किसी पक्षपात के ले जाए गी...वो तेरा अपना था,पर अब वो एक सपना भर है...अकेले आए थे,


अकेले ही जाना है...फिर अकेले जीना क्यों ना सीख ले...जो जब तक साथ है,उन को दुआ के सैलाब मे 


नहला दे...जिस को जानता ही नहीं,दुआ का सैलाब उस के लिए भी बहा दे...यही तो तेरी परीक्षा है,जिस 


को आज के माहौल मे निभा देने का जज्बा बना ले...

 साथ हमेशा रहने के लिए,कौन इस दुनियाँ मे अब तक आया है...दूर तक साथ देने का वादा कर के भी,


कौन हमेशा साथ चल पाया है...अकेले चलने का हौसला बना कर चल...सब को दुआ का तोहफा जितना 


दे सकता है,देता चल...फिर देख,हर तकलीफ,हर परेशानी कैसे धुआँ बन उड़ जाए गी...हिम्मत टूटी तो 


सब साथ होंगे तो भी यह ज़िंदगी किसी काम की ना रह जाये गी....मुस्कुराए गे तकलीफ मे तो हज़ारो 


साथ खुद ही चल कर आ जाये गे...रोनी सूरत देख हमेशा,सब साथ छोड़ जाये गे...यही दस्तूर कुदरत का 


भी है..जो डर गया,हार गया वो कुदरत की नियामतों से भी हार गया...

 देह तो यह माटी की है पर रफ़्तार तो साँसों की इस मे बसती है...दिल जो धड़क रहा है अभी तक,धक् 


 धक् धड़कनों की इन मे कायम है...चल रहे है रोज़ इस ज़िंदगानी की डगर पे,उस ने क़दमों को ताकत 


की दुआ अभी बख़्शी है...हाथ तो रोज़ उठते है सब के लिए दुआ देने के लिए ,परवरदिगार का यह नियम 


सभी के लिए ही बराबर है...इस हाथ दे और उस हाथ ले,दुआ की रफ़्तार बस इतना ही कहती है..साँसे 


सभी की सलामत रहे..तुम दुआ करो हमारे लिए और हम दुआ करे सब के लिए...

Thursday 6 May 2021

 किस ने कहा कि गाड़ियां सिर्फ ज़मी पे चलती है...जीवन भी तो गाड़ी है ऐसी,कौन कब किस वक़्त इस 


गाड़ी से उतर जाए गा...आज जिस से बात की,वो कल अपने स्टेशन पे मिले गा या नहीं मिले गा...वो 


कब किस से सीट खाली करवा दे,उस का हुक्म हर पल सर-आँखों पे है...मेरे दाता,तेरी रज़ा जिस मे है 


मेरी भी उसी मे है...पर जब तक आखिरी सांस पे रहू,अपने असूलों पे ही जिऊ...आत्म-सम्मान और पिता 


के संस्कारो को दूर दूर तक बाँट जाऊ...कल जब सांस निकले तो कोई भी मलाल ना हो..माँ-बाबा से 


फक्र से सर उठा कर ही मिलु...किसी का बुरा सोचा नहीं तो मौत के डर से भी क्यों डरु....

Saturday 17 April 2021

 बाहर भी खड़ी मौत है और बंद कमरों मे  भी उसी का खौफ है..प्यार तो ज़िंदगी से है पर मौत तू भी 


मुझे प्यारी कही से कम नहीं..ज़िंदगी से पूरी तरह मिल कर,फिर  आना तो हमेशा के लिए तेरे ही पास 


है...पर ज़िद है एक हमारी भी,जब तक अपने जीने का मकसद पूरा ना कर ले..तेरी गोद मे सोने नहीं 


आए गे..अपने दम पे दुनियाँ को सिखा रहे है,इस ज़िंदगी को जीना..और तू बीच मे आ कर खलल ना 


डाल..करते है तुझे ज़मीर से सलाम..और यह वादा भी..रोटी मिले एक या फिर आधी,साथ तो इसी 


ज़िंदगी के जाए गे...हां,सुन जरा धयान से मौत मेरी,मकसद पूरा होते ही तुझे खुद ही बुलाए गे..मेरी 


बात मान और अभी लौट जा इस संसार के हर जीव के जीवन से..कुछ पुण्य किये हो मैंने तो बात मेरी 


मद्देनज़र जरूर रखना...

 पूछ रहे है इस ज़माने से..कभी उस भगवान् से कोई खौफ इतना ना आया तुझे तो फिर आज नन्हे से 


इस कण से क्यों खौफ मे है..इतना डरा हुआ हुआ अपनी ज़िंदगी से क्यों है..जब चल रहा था गलत तो 


भी खौफ उस का समझा होता तो आज वो यू सब को बर्बाद ना करता...कभी देखा नहीं उस भगवान् को 


तो आज उस के इस कहर को भी कहां देख पा रहा है..सिर्फ महसूस कर के ही डरता जा रहा है..आज 


भी कौन कहां सुधर रहा है...ज़िंदा जीवो को खाया..किसी गरीब पे कितना तरस खाया ? अब हिसाब तो 


सभी को देना होगा..जो सच है वो तो सब जानता है..फिर खौफ मे यू रहने से क्या होगा...

 बह रहे है सदियों से नदिया की धारा की तरह..रुके नहीं कभी बेशक टकराते रहे तूफानों से..टूटना कभी 


सीखा ही नहीं,रुकना भी सीखा नहीं...राह मे आती रही हज़ारो मुश्किलें,धीरज से पार कर के मुस्कुराना 


और खुदी पे नाज़ करना...यह सब भी तो सीखा इन्हीं तमाम मुसीबतों से..डर के जीना,खौफ मे रहना..


यह कौन से शब्द है...खड़ी होगी बेशक मौत सामने तो भी डर कर सांस ना छोड़े गे..गर डरना होता तो 


ज़िंदा रहना कभी मकसद नहीं होता..जाए गे माँ-बाबा के पास मगर फक्र से सर उठा कर..उन के नाम 


को,उन के संस्कारो को संसार मे ज़िंदा छोड़ कर ही उन से नज़रे मिला पाए गे..

Friday 16 April 2021

 इत्मीनान नहीं,चैन नहीं...खुली हवा मे अब सांस लेना भी आसान नहीं...दूर बहुत दूर इंसान से इंसान हो 


रहा..हर जगह त्राहि-त्राहि और कल क्या होगा,यह सोच काँप रही हर ज़िंदगी...कभी अपनों की चिंता तो 


कभी परवरिश का भय...अंदर ही अंदर टूट रहा हर कोई...कोई आवाज़ अंदर से इस दिल-रूह से आई...


'' जैसा बोया वैसा ही तो काटे गा..किसी का दिल चीरा तो वो  तेरे दिए दर्द से बिलबिला गया तो तुझ को 


तो वो नज़र ना आया..फिर आज अपने दर्द से क्यों रोया..अब कुदरत कर रही इंसाफ तो तुझ को उस को 


दिए दर्द का कुछ तो याद आया''...इस हाथ दे उस हाथ ले,कुदरत तो यही हिसाब करती है..झांक खुद 


मे और अब भी संभल जा...कुदरत अपने कहर से कब बाज़ आती है...

Sunday 11 April 2021

 सज़े क्या तेरे लिए दुल्हन के लिबास मे या पूरी तरह गुलाब की पंखुड़ियों मे घुल-मिल जाए...कह दे जो 


अब तक है दिल मे मेरे या तुझ से लिपट कर जी भर के रो दे...कितनी ही बातें है इस दिल के आंगन मे,


तुझ से मिल कर कही रोते-रोते तेरे संग ही फ़ना ना हो जाए...तेरे मुँह से सुनने के लिए बेक़रार है तेरी 


यह दुल्हन..फिर से कह दे ना ''तेरे जैसी दुल्हन सिर्फ सदियों मे ही पैदा होती है ''...अब इंतज़ार है तेरा,


सज़े तेरे लिए खूबसूरत लिबास मे या तेरी बाहों मे फिर से फ़ना हो जाए...

 इस से पहले तेरे आने की कोई आहट हो,हम ने दिल-रूह के तमाम दरवाजे तेरे लिए खोल दिए...सिर्फ 


तेरी इक झलक पाने के लिए हम ने, अपनी आँखों को रात भर जागने के आदेश भी दे दिए..तेरी वही 


इक ख़्वाइश कि हम सम्पूर्ण सादगी मे रचे-बसे,तेरे और सिर्फ तेरे लिए..यह फुरसत के पल तेरे लिए हम 


ने फुरसत से रख दिए...चाँद को हम ने ना आने की तागीद फिर से कर दी..कोई ख़लल ना डाले बीच 


हमारे,सारे जहां को यह बात तक बता दी..बस दिन तो वो आने को ही है,दिल-रूह की आवाज़ बस तुझ 


तक पहुंच जाने को ही है...

Friday 9 April 2021

 बहुत नज़ाकत से वो बोले..  ''आप की खूबसूरती पे पढ़े गे कसीदे रात भर ''...क्या बात है,हंस दिए यह 


सोच कर..क्या कोई पत्थर का बुत भी,खूबसूरती पे हमारी कसीदे पढ़ सकता है...क्या कोई  बंद लबों को 


हमारे लिए खोल सकता है...नाउम्मीद नहीं हुए हम..सुहानी रात मे वो जिस लय मे गुनगुनाने लगे..हम 


को वो किसी फ़रिश्ते से कही कम ना लगे...इस को तक़दीर का करिश्मा कहे या उन की लय की मीठी 


खुशबू,उन के कसीदे सुनते-सुनते हम गहरी नींद की आगोश मे खो से गए...

 अचानक से यह बदरा घिर आए है ,शायद हम को यह बताने के लिए...जी ले अपनी ज़िंदगी को खुल के,


क्या पता फिर यह साँसे रहे ना रहे..नैनों से कर गुजारिश,खुद को अश्कों से ना भरे..खुशियां चल कर 


खुद आने को निकली है तेरे द्वारे,मन मयूर को खुल के मुस्कुराने दे..हज़ारों फूल खिलने को है तेरी राहों 


मे,गम का दरिया बस खत्म होने को है...अब साँसे कितनी है तेरी तक़दीर मे,इस का हिसाब तो उसी के 


खाते मे है..बस जी ले जी भर के,मन मयूर को खुल के मुस्कुराने दे...

Thursday 1 April 2021

 पायल तो फिर बजे गी उसी खास सी खनक को लिए...यह गजरा फिर से महके गा उसी पुरानी सी 


खुशबू को साथ लिए...तू फिर से मुस्कुराए गा उसी चिपरिचित हंसी के साथ,सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए...


गुस्से को छोड़ कर फिर से मान कहना मेरा,जिए गा ज़िंदगी को अपनों के लिए...और मैं बहुत दूर खड़ी 


देखूँ गी तुझे ज़िंदगी को फिर से जीते हुए..मुहब्बत की जीत तो होगी ही,क्यों कि तेरी दुल्हन आज भी 


रुकी है मुहब्बत के सब से ऊँचे पायदान पे तेरे-मेरे मिलन के लिए..अगले कितने जन्मो के लिए..बस 


यही तो प्रेम का वो रंग है जिस मे यह राधा इंतज़ार तेरा करे गी तमाम जन्मो के लिए.........

 यह कौन सी अग्नि-परीक्षा है,जिस मे तेरे दर्द से कही जयदा,इस दर्द से हम घायल है..क्या करे तेरे लिए,


यह सोच सोच कर इस दिल से जैसे खून के आंसू क़तरा-क़तरा गिरते है..खाने का कौर उठाते है जैसे,


यू लगता है कोई कही दूर दर्द मे लिपटा है जैसे...उस दर्द की छाया बेशक ना दिखे मगर रूह का यह 


आंचल उस दर्द के एहसास भर से बेहद भीगा-भीगा है...आज दुआ का हर शब्द,एक एक कर के उस 


की आराधना मे उतरा है..तेरे दर्द से तुझे बहुत जल्द निज़ाद मिले,मुहब्बत की पाकीज़गी की आज फिर 


एक बार घोर परीक्षा है...


Wednesday 31 March 2021

 कहाँ कहाँ ना ढूंढा आप को..गहरी मशक्कत के बाद आप के शहर का नाम ढूंढ लिया हम ने..अब 


सवाल तो यह था कि कैसे मिले आप से और कैसे इबादत का खज़ाना लुटा दे आप पे..इक शहर आप 


का और इक हम अकेले शहर मे आप के..किस किस का घर ढूंढ़ते आप तक पहुंचने के लिए..पर हम 


तो हम ही है ना..आप तक पहुंचना जब लगा मुनासिब नहीं है तो इक ख्याल मन मे आया..दे आए पूरे ही 


शहर को दुआ का सारा खज़ाना अपना,इस उम्मीद मे कि यह दुआ खुद-ब-खुद आप तक पहुंच ही जाए 


गी...

 तक़दीर सुनाती रही अपने फ़ैसले और हम उस के फैसलों से हर बार रज़ामंद ना हो सके...तेरे दिए हर 


दर्द को,हर तकलीफ को.. क्यों सर झुका कर सज़दा कर दे जब कि उस के लिए हम कसूरवार तक 


नहीं..साँसे छीन लेने का हुक्म सुना देती तो हम हंस कर सांस तुझे समर्पित कर देते...थोड़े कम मे जीने 


को कहती तो भी कहना तेरा मान जाते...पर तेरे ग़ल्त फ़ैसले पे जंग मेरी भी जारी है...वो तो सब कुछ 


जानता है तो तुझे अब मुझ से क्या कहना है... मेरी हिम्मत को दाद दे,ऐ तक़दीर मेरी...जो तूने लकीरो मे 


लिखा तक नहीं वो भी तो मैंने उस खुदा से मांग कर पाया है..अब हारना तुझे है मुझ से क्यों कि जीतने  


का हौसला तेरे हर फ़ैसले पे भारी है...

 आ ना,फिर से लौट चले उसी सुहानी शाम मे...कुछ वादे थे तेरे और कुछ वादे थे मेरे.. तेरे-मेरे बीच मे 


अब किसी दीवार को कोई जगह ना दे..परेशानियां कितनी भी सर पे चढ़े,बस करीब रुकने की वो खास 


नियामत ख़तम ना होने दे..बहुत नसीब से ऐसे रिश्ते जुड़ा करते है..कभी राधा हू मैं तो तू कृष्ण बन संग 


है मेरे..कभी शिव की महिमा को दोहराते हुए,गौरी बन तेरे ही साथ हू मैं..सीता का रूप धर किसी रोज़ 


इसी धरा मे समा जाऊ गी मै,तेरे लिए खुद की अग्नि-परीक्षा तक दे जाऊ गी मै..तेरे लिए जन्मे तो तेरे ही 


लिए ख़तम हो जाये गे...कभी तो यकीन पे यकीन कर..एक अश्क गिरा आंख से और तेरी याद मे हम  


खो से गए..ज़िंदगानी का भरोसा क्या करना,बस लौट के अब तो आ जा..

 हसरतों को दाग दिया तो दर्द पूरे जिस्म मे उतर गया..बेहाल हो गए उस दर्द से मगर उस पे गज़ब यह,


कि हमी से गुफ्तगू करना छोड़ दिया...कैसे समझाए कि तेरे हर दर्द की मरहम तो हमारे पास है..तू खुद 


को रंग ले  बेशक हज़ारो रंगो से मगर जो रंग तुझ पे पक्का चढ़े वो खास रंग तो सिर्फ हमारे ही पास है..


वो रंग जो सदियों से तुझे मुझे रंगता आया है..हम तो भीग चुके है सिर्फ और सिर्फ तेरे रंग मे..पर शायद 


तू ही भूल चूका है उस प्रेम-रंग को जो सदिया दोहराती आई है हर जन्म,हर सांस मे..किस्मत की लकीरों 


पे क्यों हम यकीन करे,हम ने तो तुझे किस्मत की लकीरों से  ही छीना और पाया है...

Sunday 21 March 2021

 वो तूफ़ान से जयदा कही गहरा सैलाब था,बेइंतिहा जख्मों से भरा...इक जख़्म को मरहम लगाते तो दूजा 


साथ-साथ ही चला आता..उस पे सितम यह कि आंख अश्क से जरा ना भरे..और कदम रुकने की जुर्रत 


तक ना करे..पर सब करने के बावजूद तूफ़ान को आना था बहुत तेज़ी से,सो आ ही गया..गहरा तूफान 


और हिचकोलें खाते सपने हमारे...बहुत हिम्मत से उन सब सपनो को जमीं मे दफ़न कर ही दिया...अब 


तूफान के जाने के बाद की वो शांति,अक्सर हम को नींद से उठा देती है..यू लगता है जैसे आज भी वो 


तूफान हमारे जेहन मे है और हम मरहम को साथ लिए उस तूफान को,उस के जख्मों को सहला रहे  


हो..जैसे इस उम्मीद मे कि तूफान थम ही जाये गा...

 मेरी रूह को सिर्फ छू भर ही सको,इतनी भी क़ाबिलियत कहाँ होगी तुम मे..मेरे साथ-साथ इक कदम 


भी चल लो,इतनी हिम्मत भी कहाँ होगी तुम मे..इस ज़िंदगानी को यू ही हंस-बोल कर नहीं जिया हम 


 ने..हकीकत के हर पन्ने को बहुत करीब से पढ़ा है हम ने..कितने दर्द कितनी तकलीफ़े छुपी रही दिल 


 के अंदर,महसूस तो तब कर पाते जो यह दर्द-तकलीफ समझने का अहसास तक भी होता तुम मे..


तुम ने सिर्फ इक औरत ढूंढी हम मे..पर भूल गए इस देह से कही ऊपर हम अपनी रूह के मालिक 


है...जहाँ सौदा क़बूल नहीं होता,यह तुम को समझ आता कैसे..खड़े है और रुके है सदियों से प्रेम के 


उच्तम पायदान पे..ना जाने कितने जन्म तुम्हे लेने होंगे इस रूह को सिर्फ छूने भर के लिए..

Wednesday 17 March 2021

 कितने रूप है इस धरा पे औरत के..हर रूप का अपना ही मायना है..वो भी इक औरत थी,बेशक वो 


तवायफ थी..सुर-ताल पे नाचते जब भी पाँव मुजरे के लिए,उस को अपना मासूम बचपन याद आ जाता..


एक शराबी पिता और फिर ना जाने कौन सा दरिंदा उस को इस माहौल मे छोड़ गया..देह बेशक उस 


की मैली इन दरिंदो ने की,पर रूह का आँचल तो बिलकुल कोरा-पाक था.. शराब मे बहकते किसी के 


कदम उस के पास रोज़ आने लगे,वो अभी भी इक अच्छी औरत थी..मशक्कत बहुत की उस ने बहकते 


कदमो को सही राह पे लाने की..पिता की दशा याद कर के उस ने इस दरिंदे को इस नशे से मुक्त 


किया..कौन कहता है,तवायफ अच्छी नहीं होती..एक साफ़ दिल उस मे भी होता है..देह मैली करने 


वालो,जरा सोचो...रूह का आँचल तो इस सब से बहुत ऊपर साफ़-पाक होता है...

Sunday 14 March 2021

 दुनियाँ से अलग,बहुत अलग होना ही...पहचान है हमारी...उस ने क्या किया,उस ने क्यों किया..बेवजह 


वक़्त ख़राब करना,यह फ़ितरत नहीं हमारी...जो किया बस,कर दिया..ढ़िढोरा पीटना आदत भी नहीं...


खुद को वक़्त दे कर खुद को बनाया,बस इतनी पहचान होती रहे गी हमारी...उतरना है ज़िंदगी की इस 


कसौटी पे खरा तो खुद को तराशना है बेहद जरुरी...लोगो को अपने कदमों मे झुकाना,नहीं मकसद 


हमारा.. पर खुद भी बेवजह झुकना,लिखा नहीं लकीरों मे हमारी...खुद्दार होना खुदा से मिली नियामत 


है हमारी...जो मिला प्यार से,उस को रास्ता ज़िंदगी का बता दिया..जो रहा अकड़ के,उस से रास्ता ही 


अपना बदल लिया...



 माता-पिता के शब्दों का अर्थ अब सही से समझ आया..'' दुनियाँ मे जीना है सर उठा कर तो असूल जो 


मैंने सिखाए है,पल्लू से हमेशा बाँध कर रखना..जब यह दुनियाँ तुझे तेरे अस्तित्व से पहचाने,तेरे सरल


सहज होने से ही तुझे पूरी तरह जाने..जब वो लोग भी तेरे पास लौट आए जो तेरी किसी भी बात से जाने 


अनजाने दूर हो जाए..जब यह दुनियाँ तुझे सिर्फ खोने भर के डर से ही काँप जाए..बेशुमार दुलार-प्यार 


हर जगह से तेरी झोली मे आने लगे..और हां,जितना भी मिले..उस से अभिमानी मत होना..सरलता का 


रूप बन दुनियाँ को हमेशा अपने प्यार से अपना बना लेना..वो दिन जब भी आए गा,तेरे माँ-बाबा का 


सर फक्र से ऊँचा हो जाए गा''..हां माँ-बाबा दुनियाँ दे रही है प्यार हमें,हमारी सरलता के लिए..एक 


अस्तित्व बनाया है आप की बेटी ने,आप के दिए संस्कारो के तले...आप के मान की लाज यह बेटी 


निभाए गी...दुश्मनों को भी अपने अस्तित्व से यक़ीनन जीत पाए गी...''आप की गुड्डी''...

  क्यों आईने ने आज चुपके से कहा..महकना ही तो जीवन है..फिर सिंगार का मायना कहाँ रहा..लबों 


पे मुस्कराहट जब है इतनी गहरी तो इन पे लालिमा का रंग जरुरी ही कहाँ..आंखे जब खुद ही ख़ुशी से 


चमक रही है इतना तो भला काजल का यहाँ काम कहाँ...दिल यू ही जब बिन बात बहक रहा है तो फिर 


किसी साथी की जरुरत ही कहाँ...जब कदम खुद ही खुद के साथ मिला लिए तो ज़माने की अब परवाह 


किस को कहाँ..हां आईने,तूने सच ही कहाँ..''महकना ही तो जीवन है ''..अब ताउम्र तेरे सिवा किसी और 


की भला सुने गे कहाँ...


 इतना खो गए इन वादियों की खूबसूरती मे कि जहाँ के दर्द भूल गए...खुद पे ही इतना हँसे कि लोगों 


का ख़्याल तक भूल गए..यह दरख़्त भी साथ हमारे,हमारी हँसी पे जैसे खिल और गए...धूप के गहरे 


साए से डरना भी भूल गए...विदा लेने लगे जब इन से तो अपनी घनी छाँव मे रहने की ज़िद करने लगे...


क्या कमाल है,इंसा और इन के प्यार मे..दो पल के लिए इन के साथ रहे तो यह संग हमारे मुस्कुरा दिए 


और  हमें रोकने की ज़िद करने लगे..इंसानो को बहुत हंसाया मगर उन की काली नज़र से हम जैसे 


मर से गए..

 यह कौन से कदम थे जो भूले से मुहब्बत की और मुड़ गए...ना थी इस मे कोई मंज़िल ना रास्ते मजबूत 


थे...बस मुहब्बत को आना था सो दबे पाँव दस्तक दे ज़िंदगी मे आ गई...ना कोई ख़ुशी मिली ना उम्मीद 


का कोई दामन था सामने, मगर मुहब्बत तो बस ज़िद पे ही अड़ी थी..कहर तो तब गिरा जब मुहब्बत का 


दरवाजा भरभरा के गिरा..इस मुहब्बत की मिसाल देने आए तो लफ्ज़ यह लिखे..''बेमिसाल सज़ा है बस 


किसी बेकसूर के लिए..जो करता रहा इबादत पाक दिल से मगर सामने वाले ने दरवाज़े अपने बंद कर 


लिए''.... 

Saturday 13 March 2021

 किस ने बिछाए है इतने फ़ूल हमारी राहों मे...कौन है जो देख रहा है रोज़ हम को,छुप-छुप के दूर 


नज़ारो से..कौन है जो हमारे लिए इतना पशेमान और परेशान है..दिखता क्यों नहीं,बोलता क्यों नहीं..


ना बिखेर इतने फ़ूल हमारी राहों मे..ना लिख ''तुम परी हो ''..इन बेजुबान फूलों पे प्यार से..गज़ब दीवाने,


यह फ़ूल है,तुम पे ये ही फ़िदा हो जाए गे...तब ढूंढो गे हम को कैसे,जब यह फ़ूल ही उड़ के तेरी राहों 


मे बिछ जाए गे...ना कर पीछा हमारा,हम इन राहों पे अब कभी लौट के ना आए गे...

 मेरे प्यारे दोस्तों..एक लेखक,एक शायर के लिए..यह बहुत फक्र और गर्व की बात होती है कि वो जो भी लिखता / लिखती है,वो तमाम शब्द सीधे पढ़ने वालो के दिलो को छू जाते है...बहुत बार तो वो शब्द दिल के अंदर रूह को रुला देते है या रूह की गहराइयों तक मे उतर जाते है...हां दोस्तों..आप सभी ने मेरे लेखन को,मेरे तमाम शब्दों / लफ्ज़ो को बेहद मान-सम्मान दिया है..जिस के लिए कुछ भी कहू,कम ही होगा..दोस्तों,बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का..''सरगोशियां'' इक प्रेम ग्रन्थ...जो प्रेम-प्यार,मुहब्बत,इबादत,दुःख-सुख,दर्द-तन्हाई,मिलन-जुदाई,शिकायत का सिलसिला देते लफ्ज़..और भी बहुत कुछ...मेरे दोस्तों,मैं जो भी लिखती हू,वो शायर/लेखक की कल्पना और सदियों से प्रेम की भाषा को दोहराते मधुर/पावन शब्द ही होते है...निवेदन करती हू उन सब से जो इन शब्दों को कभी अपनी ज़िंदगी से तो कभी मेरा ही दुःख-दर्द मान बैठते है...दोस्तों,शायरी को सिर्फ शायरी सोच कर पढ़े..हो सकता है,कभी कोई लफ्ज़/शब्द किसी किसी को अपनी ज़िंदगी से बंधा/जुड़ा लगे..मैं उन सब से माफ़ी चाहती हू कि मैं यानि आप की यह शायरा,किसी के लिए नहीं लिखती..ना अपनी ज़िंदगी का कोई पहलू...प्रेम-प्यार तो सभी के जीवन का एक अटूट बंधन है..बस,मेरे माता-पिता का साया/आशीष कभी-कभी इन शब्दों मे खुद ही घुल जाता है...उन के दिए संस्कार कभी-कभी उभर कर शब्दों मे झलक ही जाते है...इस के इलावा इन शब्दों का किसी भी इंसान से कोई सम्बन्ध नहीं...ना किसी के जज्बातो को ''सरगोशियां'' आहत करती है..जाने-अनजाने किसी को दुःख पंहुचा हो तो सर झुका कर,हाथ जोड़ कर माफ़ी चाहती हू...आप की अपनी शायरा ही  तो हू...आप सब के प्यार-दुलार ने ही इस शायरा को इतने ऊँचे मुकाम पे पहुंचाया है...बहुत बहुत धन्यवाद,शुक्रिया...आदाब..नमस्ते...सत श्री अकाल जी....

 इस पत्थर दिल दुनियाँ मे..तेरे दिल को हम ने सच्चा समझा..सब से अलग और जुदा सा देखा...वक़्त 


की धार दिखाई तूने ऐसी कि तू भी और तेरा दिल भी दुनियाँ जैसा पत्थर ही निकला...नैना बार-बार 


भर आते है..पलकों के किनारे अक्सर गीले हो जाते है...सर्वस्व वार दिया तुझ पे मैंने अपना..तेरे कदमों 


को ज़न्नत अपना माना...याद नहीं कि हम गलत कहाँ थे..याद है इतना कि तेरी रूह के संग जुड़े थे...


फिर तेरे दिल का यू पत्थर होना...मेरे होते तुझ पे, इस गन्दी दुनियाँ का रंग चढ़ गया कैसे..सवाल बहुत 

 

है मेरे पास..पर तू कुछ तो बोले..................

 शाम फिर से घिर आई है..फिर होगा धुंदलका और रात ख़ामोशी का लबादा ओढ़े,चाँद की आस मे 


अकेले वीरान हो जाए गी...हम साथ होंगे उस के,उस के वीरानेपन मे..और अपने चाँद को देखने के 


के लिए तेरे संग-संग जागे गे..अश्क बेशक गिरे गा आंख के इस कोर से..मगर तुझे तेरे दर्द मे रोने ना 


दे गे...शाम को शाम रंगीन ही कहे गे और रात को रात का वो नूर कहे गे,जो उदास तो होती है मगर 


अपने दर्द के साथ  गुजरने के बाद भी  दुनियाँ को नए उजाले से भर जाती है..

 ख़ुशी अंगना उतरी कि बेटा हुआ है..हवा महक उठी कि बेटी लक्ष्मी बन घर अंगना उतरी है..पर यह 


क्या ??जो बेटा नहीं और बेटी भी नहीं..उस के आने से क्यों सब के चेहरे पे परेशानी छाई है..आखिर 


वो भी तो इस दुनियाँ मे मालिक की मरज़ी से ही तो आई है..फिर क्यों नहीं बजे ढोल-नगाड़े..क्यों सब 


के चेहरे ख़ुशी से नहीं चमके..कभी सोचा..सच्ची दुआ लेनी हो तो अपने घर इन को बुलाते है..इन के 


आशीष से हम बेहद खुश हो जाते है..जिन को घर के लोग और माता-पिता तक शर्म के मारे छोड़ देते 


है..भूल रहे है आप सब,बदनसीब वो नहीं,आप सभी है..जरुरत से ज्यादा प्यार-दुलार इन को दीजिए..


इन के लाड़ और नखरे वैसे ही उठाइए,जैसे बेटा-बेटी के उठाते है...इन की आंख से गिरा एक आंसू 


भी,आप को तबाह तक कर सकता है..सोचिये जरा,जिन की दुआ इतनी पाक मानते है आप..उन की 


आह कितनी दूर तक जा सकती है.....याद रहे,कुदरत की लाठी मे कभी आवाज़ तक नहीं होती...

 बहुत दूर तक चलने का वादा किया था तुम से..पर बीच राह साथ तुम्ही ने छोड़ दिया...हर बात पे हर 


बार यही कहना तेरा ''दूर कभी जाना ना मुझ से''...तुझे देने के लिए हर ख़ुशी,हम ने दुनियाँ से नाता सा 


तोड़ लिया...तेरी ही बाहों मे दम निकले,यह ख़्वाब खुद से ही देख लिया..पर देखो ना,आज तुम साथ 


छोड़ चुके हो मेरा और हम को इल्ज़ाम के घेरे मे तुम्ही ने डाल दिया...आंख बरस जाती है यू ही अक्सर 


कि तेरे ही कहे लफ्ज़ो से तू ही मुकर गया...

Thursday 11 March 2021

 यू तो रोज़ ही ज़िंदगी के रंगो से रूबरू होते रहते है...आज सोचा,ज़माने को भी याद दिला दे कि ज़िंदगी 


का रूप असल क्या है...नरम नरम पत्ते,जो भरे है मासूमियत से..उन को एक दिन ऐसे ही ज़िंदगी को 


छोड़ देना है...यू ही किसी रोज़ ज़िंदगी को छोड़ देना है..तो क्यों करे इस से शिकवा,क्यों कहे तूने कुछ 


नहीं दिया..अरे पगले,कितना कुछ तो दिया है..अब तेरी ही समझ ना आए तो यह ज़िंदगी क्या करे..रोनी 


सूरत लिए मरा-मरा जीता है..ईंट-पत्थर-दौलत को पाने के लिए खुद को बर्बाद कर लेता है..बिन नसीब 


कब किसी को कुछ मिलता है..मेरे बाबा-माँ सच ही कहते थे '' जितना है अभी पास तेरे,उस मे जीना 


सीख..बस अपने असूल मरने से इक मिनट पहले भी ना छोड़..हिम्मत को साथ रख के चलना नहीं 


तो यह ज़माना तुझे नोच के खा जाए गा..सर उठा के जी...दौलत-पत्थर का लालच कभी ना कर ''...

Wednesday 10 March 2021

 लिख रहे लफ्ज़ तो पन्ने क्यों तेरे आने की आहट से,बस मे हमारे नहीं  है आज...हर लफ्ज़ पे जैसे तेरा 


नाम पुकार रहे हो..तेरी हर शरारत,तेरी हर अदा चुपके से इन पन्नों पे कैद कर रहे है आज...सुभान 


अल्लाह,यह भी तेरे ही हो गए है आज...अब बता तेरी शिकायत कहा लिखें,यह तो तेरे ही रंग मे रंग 


गए है आज...हम जानते है कि इतने सरल भी नहीं है आप..पर हमारे ही पन्नों पे राज़ करने की कोशिश 


इस तरह करे गे आप..जनाब,किसी ग़लतफ़हमी मे ना रहे,इन पन्नों को कस के थामा है हम ने,तुझ से 


मिलने के बाद...

 वो बोले तो कुछ नहीं,हमेशा की तरह...मगर उन की ख़ामोशी की जुबां हम समझ गए,हमेशा की तरह..


यू ही चुप रहना..लबों की मुस्कराहट को हमेशा लबों मे कैद रखना...''दिल की गिरह कभी तो संग 


हमारे खोलिए..खोले गे नहीं तो दर्द से  यू ही बेहाल रहे गे,हमेशा के लिए ''...फैसला छोड़ दिया अब 


मरज़ी पे तेरी..तुझे दर्द से रिहा होना है या दर्द के साए मे खो जाना है...हसरतें भी कभी कभी बोल जाती 


है..एक तू ही पागल है जो लबों को सी कर रखता है..हमेशा की तरह...

 नींद के गहरे खुमार मे ही थे कि इक छोटा सा टुकड़ा धूप का,खिड़की के रास्ते हमारे चेहरे पे चमक 


आया..नींद की खुमारी  मे,कब सूरज निकल आया हमारे रुखसार से मिलने..उस नन्हे से टुकड़े को 


हम ने पकड़ना चाहा,पर वो शरारत से हमारे हाथ ना आया...इतनी आंख-मिचौली और हमारे ही साथ..


कुदरत तेरे इस रंग पे हम को बेइंतिहा प्यार आया..देख के इस टुकड़े को सोचते रहे बहुत देर..कितना 


बहादुर है बेशक नन्हा सा है...फिर हम क्यों इस दुनियाँ की चालाकियों के हाथ आ जाए..कुछ तो और 


सिखा गया यह छोटा सा टुकड़ा धूप का और बहादुर अपने से जयदा हम को और बना गया...

Monday 8 March 2021

  बदल रहा है मौसम तो क्या गम है..कम से कम इस के बदलने का कोई वक़्त तो है...इंसानो से इस 


को मिलाए कैसे,यह इंसानो की तरह दोहरे चेहरे का तो नहीं है...यह इंसान वक़्त-बेवक़्त यू ही बदल 


जाया करते है..कुछ थोड़ा सा भी बुरा लग जाए,मौसम से भी जयदा पलट जाया करते है...मन-मुताबिक 


इन के चलते रहो,इन की हर अच्छी-बुरी बात मानते रहो तो यह साथ चलने का वादा भी कर लेते है...


बेशक वो वादा, वादा रहे ना रहे..यह बेमौसम बरस भी जाया करते है..कभी बिठा देते है सर पे तो कभी 


यू ही राह बीच पटक भी दिया करते है...

 दिल से इक आह ...............निकली और विलीन आसमाँ मे हो गई...जाते-जाते आँखों के ढेरों आंसू 


भी साथ ले गई...वो आह से कही जयदा प्रेम की तपस्या थी..सदियों से अपनी रूह से उस की रूह को 


खोजती बेनाम सी कोई ज़िंदगी थी...दबे पाँव सी सारी दुनियाँ मे घूमती,वो तो कोई दिव्य आत्मा थी...फिर 


किसी ने दिया हाथ अपने साथ का..झूम के अपने ही दायरे मे बेहद ही खुश थी...कितने ही सपने देख 


लिए,एक ही रात मे...सपने पूरे होने की इंतज़ार मे,वो साथ तो हाथ छुड़ा कर ही चला गया...सपने रंगीन 


दिखा कर,अपनी नगरी लौट गया...सैलाब बहा तो खूब ही बहा ....फिर निकली दिल से गहरी 


आह .............और आसमाँ मे विलीन हो गई.....

Sunday 7 March 2021

 हां..मैं औरत हूँ..अपनी कोख से दुनियाँ मे लाने वाली,उस ईश्वर की भेजी दूत हूँ...दुनियाँ के थपेड़ों से 


बचाने वाली इक ज़न्नत हूँ...ईश्वर कब रोज़-रोज़ इस धरा पे आया करते है..भेज औरत को इस धरा पे 


बार-बार वो अपनी याद दिलाया करते है...ना जाने कितने सितारे इस धरती पे उतार दिए मैंने...शेर 


हज़ारो इस धरा पे बिखरा दिए मैंने...मेमना बोल कर दुनियाँ ने बहुत अपमान किया औरत का...जिन 


को शेर बनाया उन्हों ने ही गर्त मे धकेल दिया...अंदर भबका लावा,तब सब को होश आया...भूल गए 


रगो मे मेरी कुदरत का नूर बहता है...जो आ जाऊ अति पे,विनाश होना निश्चित है....

 औरत...कौन है ? उस के जन्म पे कहते है लोग,ओह्ह..बेटी हुई है..कोई बात नहीं..

पूछे कोई उन से,क्या बेटा पैसों की पोटली ले कर जन्म लेता है...

और जो ना है बेटा है और ना बेटी ही..वो भी इस ज़माना मे नाम रौशन करता है..

माता-पिता के घर बड़ी होते-होते,यही याद दिलाया जाता है..तुझे अपने घर जाना है..

ब्याह के बाद पति भी हज़ारो बार एहसास दिला देता है कि यह घर भी उस का नहीं...

औरत हज़ारो काम कर के और पूर्ण-समर्पित हो,अपने पति-ससुराल के लोगो की दिल से सेवा करती है...

अपने बच्चो को किसी भी कमी का एहसास ना दिला,उन को अपने दुलार से सींचती है..

हर किसी की बीमारी-दुःख मे साथ खड़ी रहती है..

कितने दुखो-तकलीफो से जब औलाद को बड़ा करती है तो यही औलाद कहती है,तूने हमारे लिए किया ही क्या है..आंख का पानी पी कर वो फिर भी फ़र्ज़ निभा देती है...पर दिल का एक कोना तोड़ देती है..

ब्याह के बाद बेटा-बहू कहते है,यह घर तो हमारा है..

जिस को औरत अपने खून-पसीने से बनाती है..सेवा का मोल किस ने जाना...

अब उस का घर कौन सा है,यह सवाल वो खुद से बार-बार पूछ लेती है...

पति का घर है..बेटा का भी घर है..और उस का अपना घर ??

फिर भी चुप रहती है और फिर से दिल का एक कोना और तोड़ देती है...

औरत एक प्रेयसी-प्रेमिका भी तो है...पर मर्द के लिए वो सिर्फ एक जिस्म ही होती है...

मर्द अपने घर की औरत को छुपा के रखते है,पर बाहर दूसरी औरत मे सिर्फ जिस्म और उस की खूबसूरती ही ढूंढ़ते है...

औरत के पूर्ण समर्पण को प्रेमी कब समझ पाते है...वो तो उस के लिए जिस्म-हवस से जयदा कुछ भी तो नहीं...

 कहते है आज,औरत के लिए दरवाज़े बहुत खुले है...

पर सच मे आज भी एक नन्हा सा झरोखा ही उस के नसीब मे है...

वो भी उस को उसी की ताकत और संघर्ष से मिला है...

हां,यह सच है..औरत जब तक कमजोर है..लोग उस का जीना दुशवार कर देते है...

उस को दबाने की कोशिश मे,उस को पागल तक करार कर देते है...

पर औरत उस ईश्वर की बनाई वो नायाब कृति है..जो बहती रहती है पाक झरने के तरह..

किस ने पूरी तरह समझा उस को...किस ने भरपूर प्यार दिया उस को...

कुछ अपवाद को छोड़ कर....औरत एक खूबसूरत कहानी है..

जान लेती है जब सब का कुलषित मन तो सब भूल कर अपने असूलों पे आ जाती है..

हर रिश्ते को ताक पे रख कर वो चंडी-रूप ले लेती है...

कमजोर नहीं वो तो आज भी झाँसी की रानी है..

औरत,जिस ने दिए ज़माने को राजा-महाराजा..भगत सिंह से पुत्र दिए..

और अहिल्या सी बुलंद नारी भी...

वो औरत जननी है..ईश्वर की इक मरज़ी है...

ना बोले तो भी तूफान उठा सकती है...बस इतना कहू....

एक अकेली औरत हज़ारो मर्दो पे भारी है......शुभ महिला दिवस.........शुभकामनाएं........



 मुहब्बत के जिस दर्द से बेहाल है आप...वो दर्द भी हम से पाया है आप ने..कितनी ही रातें गुजारी हम ने 


बदल-बदल के करवटें,यह आप का दिल कब जान पाया...बदहवासी के चलते,किस वक़्त हम ने खुदा 


से तेरे लिए ऐसा दर्द मांग लिया..जिस दर्द से हम गुजर रहे है,बस उस से जयदा दर्द हम ने खुदा से तेरे 


लिए भी मांग लिया..सोच जरा,हमारी यह मुहब्बत रूह के दरीचों से इतनी जुड़ गई कि खुदा ने तुझे दे 


कर दर्द,हमारी इल्तिज़ा मंजूर कर ली..संभल जा अब तो जरा..खुदा ने जब इतनी हमारी सुनी,तो कुछ 


इल्तिज़ा तू भी उस से कर...मुहब्बत को दे नया रास्ता और मेरे संग-संग चल..

 किसी भी खूबसूरत चेहरे की तारीफ कर देना,शौक था उस का..किसी को अपनी मेहबूबा यू ही कह 


देना,जनून था उस का..फ़िदा है आप पे,ऐसे ही  कितने गज़ब लफ्ज़, कितनों को बोल कर उन्हें रिझा 


देना..बस यही कातिलाना अंदाज़ था उस का..किसी का दिल कितना टूटा होगा,उस से जिस्मानी प्यार 


कर के..यह कब कहाँ सोचा था उस ने..फिर दिन एक ऐसा भी आया..दिल्लगी कितनों से करने वाला 


अब खुद किसी पे सच मे दिल हार बैठा..बेपनाह मुहब्बत हो गई इस बार उस को किसी ऐसे से,जो उस 


से उस का ही दिल चुरा पाया...कुदरत,तेरे रंग हज़ार...दिल्लगी करते-करते अब जा कर उसे,मुहब्बत 


का मायना समझ आया..

Saturday 6 March 2021

 बेहद ही प्यार से वो लिख रहे थे,हमारी खूबसूरती पे इक खूबसूरत सी उन की पहली नज़्म..पढ़ कर 


आंख हमारी नम हो गई..गला रूँघ गया यह सोच कर कि कोई हम को भी इतना प्यार कर सकता है..


लग गए सीने से उन के और मुश्किल से इतना बोले,''नज़्म बेशक कभी ना लिखना हम पे..मगर हमारे 


सिवा किसी और से कभी ना प्यार करना..मेरे और सिर्फ मेरे ही बन कर रहना..दिल मे मेरे मेरी ही 


धड़कन बन कर सदा रहना..वफ़ा की जोत मेरे संग-संग तुम भी जलाए रखना..ज़िंदगी खत्म भी हो 


जाए तो रूह के साथ बंधे रहना''...






Wednesday 3 March 2021

 कजरारे नैना बिन काजल ही वार कर गए...पलकों के तीखे किनारे उन के दिल को चीर-चीर गए...कहा 


तो कुछ भी नहीं इन लबों ने मगर बिन कहे वो सब समझ गए..हम ने लहराई चुनरी हवा मे और वो हंस 


के हमारे सदके खुद ही पास हमारे चले आए...अचानक से बादल आए और बरसा कर बौछारें हम दोनों 


को प्यार के सैलाब मे भिगो-भिगो गए...क्या कहिए गा ऐसे प्रेम को..जो बिन जुबान दिए प्रेम को साबित 


कर गया..तभी तो कहते है ''प्रेम की कोई भाषा होती कहां है..जो ख़ामोशी को भी सुन ले,यह इबादत की 


वो चरम सीमा होती है''.....

 अपने दिल पे लगा के ताला और चाबी दे कर हमें वो बोले...आज के बाद तुम्हारे सिवा इस दिल मे कोई 


और ना आ पाए गा..रहे गे तुम्हारे सदा,किसी और के कभी ना अब हो पाए गे...सातवें आसमां पे जैसे 


हम पहुंच गए..प्यार मे बस उन्ही के जैसे ग़ुम ही हो गए...अरसा कुछ ही बीता तो एहसास हुआ,कितना 


बदल गए है वो...जो हर पल मे कभी साथ हमारे थे वो महीनों कही खो गए थे अब..वक़्त की कमी का 


एहसास दिला दूरी बना ली हम से और काम का रोना रो कर महीनों गायब से हो गए..अब समझे हम 


कि चाबियां तो इक ताले की और भी बन जाती है..नीयत गर साफ़ ना हो तो दूरियाँ और बड़ जाती है..

 सोलह सिंगार करते-करते मिलन की बेला तो निकल गई...रूप की झंकार जब तक महकी,भोर अपना 


आंचल लिए आंगन मे पसर गई...आईना देखा,सूरत तो संवर गई...किस काम के रहे यह सोलह सिंगार,


जब साजन उस से गुफ्तगू किए बिना नींद मे खो गए..भोर के आंचल मे जब वो मिले हम से...यू एहसास 


हुआ कि हम तो उन के लिए कुछ भी नहीं...'' सोलह सिंगार की क्या जरुरत है,जब हम ने आप को 


सादगी मे चाहा है...मिटे थे सिर्फ तुम्हारे भोलेपन पे,यह सिंगार तो हमारी दुश्मन है''....आंख भर आई 


सुन पिया की बात..अब सादगी और भोलापन ही समर्पण की बेला है....

Tuesday 2 March 2021

 देती रह कितनी ही उथल-पुथल ऐ ज़िंदगी..तुझ से हार जाए,यह कब सीखा है हम ने...कोशिश भी ना 


करना,हम को अपने क़दमों मे झुकाने की..क्यों कि हम ने तो तुझे हर पल अपने सर-आँखों पे ही 


बिठाया है...तूने बेइंतिहा दर्द-तकलीफ़े दे कर भी हम को देख लिया ना...शिकन भी तू देख ना पाई 


हमारे रुखसार पे..आगाह तुझे ही कर रहे है,संभल जा ऐ ज़िंदगी..क्यों कि साथ हमारे हर पल उस 


मालिक का साया साथ रहता है..तू देती है दर्द तो वो साथ-साथ हम को ढेरों नियामतें देता रहता है..


अब देखना तो यह है कि जीते गा हमारा विश्वास उस मालिक के लिए या तेरा झूठा गरूर  जीते गा..

Monday 1 March 2021

 बहुत सज़-धज़ के वो निकलने लगे, घर से किसी नए साथी की तलाश मे...खुद को देखते रहे आईने मे  


थोड़ी थोड़ी देर मे...अंदर तक जानते है उन को..शरारती मुस्कान बिखरी हमारे रुखसार पे,जो बोल 


उठी...सिर्फ दो पल का साथ पाने के लिए,क्यों मशक्क्त इतनी..मौसम के वो फूल दूर तक आप का 


साथ नहीं निभा पाए गे...तो क्यों इतने सज़े-धज़े उन पे निसार होने चले...हर किसी को बाबू,जानू और 


हीरो कह कर बुलाए गे तो इश्क के बाज़ार मे आप के भाव कौड़ियों के  हो जाए गे..









 '' दिल अपना लुटा दिया आप की मुस्कराहट पे हम ने ''...सुन के यह, हमारी मुस्कुराहट और भी गहरी 


हो गई..जनाब,मुस्कराहट पे फ़िदा है,जरा हमारी ज़िंदगी मे,हमारे साथ मुश्किल रास्तों पे भी फ़िदा हो 


कर चलिए ना..जान जाए गे कि यह खूबसूरत सी मुस्कराहट हम ने हज़ारो कष्ट सह कर पाई है...वो 


तमाम दर्द जो झेले हम ने,वो बेनूर रातें जो रो कर काटी हम ने..उन का इतिहास नहीं सुने गे,इतने ही  


फ़िदा हो कर...यह मुस्कराहट तब भी थी और आज भी कायम है..फर्क सिर्फ इतना सा है..तब आंसुओ 


के घेरे मे  रहते मुस्कुराते थे और आज दिल के खुश होने से मुस्कुराते है...

 देख परेशानी मे हम को वो प्यार से बोले..''मैं हू ना साथ तेरे''...सुन के यह लफ्ज़,हम परेशानी भूल गए 


अपनी...यह बावरा मन हमारा साथ क्या दे पाए गा...जिस को ज़िंदगी के हर मोड़ पे हम ही सँभालते 


आए है,वो....? मुस्कुराए और बोले उन से,''तुम जैसों को कब से सँभालते आए है..तेरे दर्द को समझ 


तेरे अश्क तक पोंछते आए है..सुन के हमारी परेशानी,तुम तो अंदर से हिल जाओ गे..बस खुश हुए यह 


सुन के कि इतनी ही लफ्ज़ बोलने की ताकत जुटा ली तुम ने..हां,जाना..अब हम खुद ही संभल जाए गे''..

 कैसे कह दे कि यह हवाएं सिर्फ गेसुओं को ही उलझा देती है...इन की ताकत तो है इतनी कि यह अपने 


तेज़ बहाव से यादें तक उड़ा देती है...संभाल कर रख लेती है सिर्फ मीठी यादें और ताकत से अपनी, दिल 


को और मजबूत बना देती है...खुश रहने की,खुश होने की कोई वजह ना भी हो तो वजह भी हज़ारो बना 


देती है...अब क्यों ना चले संग-संग इन के..यह तो हम को हमी से मिलवाती रहती है...गज़ब पे गज़ब तो 


यह भी कि छुप के रो भी दे तो आंसू भी सुखा देती है...

 कितनी ही रंगबिरंगी तेरी यादें ज़ेहन मे है मेरे....अक्सर गुदगुदा जाती है मुझे...यूं ही कभी तेरी किसी 


बात पे हंस दिए..यूं ही कभी-कभी तेरी किसी गुस्ताखी पे ही मुस्कुरा दिए..चलते-चलते कदम ठिठक 


जाते है,यूं लगता है आज भी तू मेरे पीछे-पीछे है...तेरा इंतज़ार करते रहते है,दीवाने बादल की तरह..


तू मिले तो जम के बरस जाए तेरे ही रुखसार पे सावन की तरह...हम सा कोई ना मिले गा तुझे..जो 


अजीब सी कशिश हम मे है,वो तुझ जैसे पागल को मिले गी भी नहीं..जानती हू,तेरी तलाश किसी और 


के लिए आज भी ज़ारी है..ढूंढ -ढूंढ के जब थक जाए तो लौट आना पास मेरे....

  कुछ भी तो नहीं है हम तेरे,पर बहुत कुछ भी है...धुंध की चादर मे लिपटी इक ओस ही तो है...तेज़ धूप 


की लो से जो गायब हो जाए,ऐसे ही पर्दानशीं ही तो है...कभी है बरसता सावन तो कभी बादलों की ओट 


मे छुपा चाँद भी है..जिसे ढूंढे तेरी नज़र..दिखे मगर नज़र तुझे फिर भी ना आए,वही पारदर्शी रूप ही तो  


है ...अब यह ना कह कि कोई जादूगर है हम..दोष तो तेरी ही नज़र मे है,वरना हम तो सदा ही तेरे दिल 


के आईने मे है..अब तेरा आईना ही साफ़-पाक नहीं तो यह दोष भी तेरा ही तो है..

Sunday 28 February 2021

 '' सरगोशियां.इक प्रेम ग्रन्थ ''...ज़ाहिर सी बात है कि यह ग्रन्थ प्रेम की तमाम भावनाओं से भरपूर ही होगा...प्रेम....एक ऐसा शब्द...प्रेम एक ऐसी भावना...जो सिर्फ इंसानो मे ही नहीं,सारे जीवों मे देखने को मिलती है...दोस्तों,बहुत बार यह ''सरगोशियां'' समाज के कितने ही अच्छे-बुरे रूप को भी उजागर करती है..जिस की जानकारी सभी को है...मेरी गुजारिश है अपने उन सब दोस्तों,शुभचिन्तकों से..जो मेरी ''सरगोशियां'' पढ़ते है...वो समाज की इन कुरीतियों से इतने प्रभावित और सवेंदनशील हो जाते है कि कुछ भी समीक्षा दे डालते है...दोस्तों,मैं एक लेखिका हू,जो हर पहलू को उजागर करती है,अपनी लेखनी मे...बहुत बार लिख चुकी हू कि इन तमाम शब्दों का ना तो किसी खास इंसान से वास्ता है और ना इस समाज मे निजी तौर पे किसी ऐसी शख्सियत को जानती हू... जानती हू,लेखक / शायर की कलम मे इतनी ताकत जरूर होनी चाहिए कि लोग उन शब्दों मे अंदर तक खो जाए..पर किसी के भी निजी जीवन से ना जोड़े...अच्छा तो लगता है जब मेरे लिखे शब्दों की गहराई आप सभी के दिलो को छू जाती है..आप सब ''सरगोशियां '' को प्यार करते है तो मेरा सर श्रद्धा से झुक जाता है,आप सभी के प्यार-सम्मान के आगे...हां,अपने माता-पिता के लिए कभी-कभी जरूर लिखती हू,जो सच मे मेरे ही जीवन से जुड़ा है..उन के सिद्धांत,उन के संस्कार ही है जो आज मुझे लेखनी की ताकत देते है..लेकिन,''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' मेरे जीवन का वो सपना,वो जनून है..जो मुझे रोज़ ही हज़ारो शब्द लिखने के लिए प्रेरित करता है...मेरे इस लेखन-जनून के साथ जुड़ने के लिए,आप सभी का बेहद बेहद शुक्रिया......आप की अपनी सी  ''शायरा ''.......

 नसीहतें देने वाले हर मोड़ पे मिलते रहें...साथ हमारे चलना किसी को ना आया...हम ने ज़िंदगी को अपने 


माँ-बाबा के संस्कारों के सहारे जिया और लोग मक्खन-बाज़ी से बाज़ ना आए..सरल सहज होना कोई भी 


कठिन ना था,हमारे लिए..ना कोई तकलीफ का सौदा था यह हमारे लिए...उन तमाम वचनों के साथ रहना 


कोई मुश्किल ना था..पर दुनियां वालों की यह मक्खन-बाज़ी हम को रास ना आई..मतलब के यह सब 


रिश्ते कभी हम को रास नहीं आए..दौलत-ऐशो-आराम को बार-बार ठुकराते आए..बाबा मेरे सच ही तो 


कहते रहें,'' तेरे नसीब को तुझ को मिल ही जाए गा,दिल को हमेशा साफ़ रखना,यही साफ़-पन तुझे 


इज़्ज़त दिलाए गा''...हां,बाबा तुम सही हो..बहुत सुखी और सकून से जीते है..बस तुम्हारी याद जब भी 


आती है बहुत तो गरीबों के दुखों से मिल आते है..

Saturday 27 February 2021

 परछाई तेरी बन के रहू..तेरी हमसफ़र बेशक रहू या न रहू..साँसों का मोल तो सिर्फ इतना है,जिऊ तो 


तेरी सलामती के लिए ही जिऊ...बेशक बहुत क़द्र ना कर मेरे मासूम जज्बातों की...बस मेरा कहना 


सिर्फ इतना ही मान,मेरे सिखाए नक़्शे-कदम पे चल...तेरी बेहतरी मुझ से जयदा और कौन जाने-समझे 


गा...तुझे दर्द कही पे हो उस से पहले दर्द मेरी रूह पे होता है...कोई एहसान नहीं किया मैंने,तेरी ही 


सलामती चाह कर...जो तेरा है वो ही तो मेरा है..और मेरा हर पल तेरे लिए हाज़िर है...

Friday 26 February 2021

 क्या कमी थी उस के प्यार मे,जो उसी के प्यार ने उस को तवायफ़ बना दिया...बेहद प्यार से जिस को 


अपनाया, उसी ने उस के प्यार का मज़ाक बना दिया...छोड़ी सारी दुनियां जिस के लिए,उसी के बेहद 


अपने ने उस को बाज़ार मे बिठा दिया..किस पे यक़ीन करती,यक़ीन वाले ने ही उस की अस्मत को दांव 


पे लगा दिया..आंखे झर-झर बहते बहते सूख गई..''हां..मैं इक तवायफ़ हूँ..खुद को कचरे का सामान 


मान,वो इन घटिया मर्दो को खुद को परोसती रही ''...यह सफ़ेदपोश अंदर से कितने काले है..वो सब 


जान गई..अब किस का करे इंतेज़ार,जब उसी के अपने प्यार ने उस को कौड़ी के दाम बेच दिया...

 ना मिला प्यार ना सम्मान का इक क़तरा मिला...ज़ज़्बातो के सैलाब मे हम पूरी तरह उन के हो गए...


''हम उन के काबिल ही नहीं ''..यह जान कर जो गाज़ हम पे गिरी...बयान किस से करते...इक बार तो 


सोचा कि पूछे उन से,जब बिठाया था अपनी पलकों पे हम को तो वो कमियां नहीं देखी तुम ने...कभी 


हम को फरिश्ता कहने वाले,आज देख के हम को नज़र अपनी फेर लेते है...आईना तो आज भी हम 


से कोई शिकायत नहीं करता..जो सच दिखता है हम मे,बस वही सच दिखाता है हम को..तुम भी तो 


हमारा आईना ही तो थे,फिर कमियों का बसेरा हम मे कब से देखा तुम ने...

 सवाल तो दिल मे रौशनी होने से था मगर उन्हों ने दिल मे चिराग ही जला लिए...हम ने तो सोचा था कि 


वो बहुत समझदार है मगर उन्हों ने दिलों के मायने ही बदल दिए...क्या समझाए आप को कि दिल 


मुहब्बत मे जला नहीं करते...दिल के रौशन-दान मे दिए हमेशा इबादत के जलते है...चिराग ना जलाइए 


यह मुहब्बत को तबाह करने की निशानी है..दिया रौशन कीजिए और मुहब्बत को कामयाब कर दीजिए..


मिसाल मुहब्बत की ऐसे नहीं बना करती...जहां एक दिल दूजे के दिल से ही रौशन हो जाए,बस यह 


मुहब्बत क़ुरबान की सीढ़ी वही पे चढ़ती है...

 अभी तो सिर्फ बादलों मे बिजली चमकी है और आप डर भी गए...अभी तो सिर्फ घनघोर हुआ है आसमां 


 और आप अभी से सहम गए...जानते है यह बिजली को अभी जोरों से दहाड़ देना बाकी है और आसमां 


इस का जम के बरसना भी निश्चित है...बस,इसी तरह से यह ज़िंदगी भी तो है..जाना,सुन जरा..यह बेहद 


तकलीफ़े देती है..कभी कभी तो रुख अपना अजीब मोड़ पे आ कर रोक देती है..अब बादल खुल के 


बरसे या बिजली कड़क के गिर भी जाए..आंख का आंसू तेरा,कभी गिरने ना पाए..जब साथ है तेरे तो 


गम कैसा...हज़ारो अँधिया भी आए तो अब डर कैसा....

Tuesday 23 February 2021

 इंदरधनुष कितनी बार खिला और उतनी ही बार तेरा-मेरा प्यार खिला...कभी वो शाम बहुत खूबसूरत 


रही तो कभी वो शाम समर्पण की बेला मे ढली...मगर कोई शाम कभी ऐसी ना रही जो उलाहनों से 


भरी रही...चाँद-सितारे गवाह रहे इस शाम के और कभी हम ढले तेरे रंग मे तो कभी तुम ढले हमारे 


प्यार के  खूबसूरत मुकाम मे...मुकम्मल तुम भी हुए,मुकम्मल हम भी हुए..मगर जुदा होते वक़्त कभी 


तुम उदास हुए तो कभी हम आंसुओ से नम हुए...काश..इंदरधनुष हर पल बना रहे और तेरी-मेरी 


मुहब्बत का मिसाल बना रहे... 

 ईमानदारी और वफ़ा के सबूत  हम को दीजिए और फिर से हमारे करीब आ जाइए...मसले सारे हल हो 


जाए गे...टुकड़ों मे मत बटिये,सिर्फ हमारे और हमारे हो जाइए..मसले हल हो जाए गे...दिल और रूह 


के अपने दरवाजे मे ठीक से झांकिए,फालतू सूरतें कचरे मे फेंक दीजिए..सब मसले ही हल हो जाए गे...


सर से पांव तक सिर्फ और सिर्फ,हमारे हो जाइए...मसले सारे हल हो जाए गे...नहीं तो दूरियां बने गी 


ज़िल्लते और हम तुम हमेशा के लिए जुदा हो जाए गे...

 क्या जीना इसी का नाम है ? कुछ हुआ तो रो दिए.कुछ ना मिला तो घबरा गए..चुनौतियां देख सामने इस 


ज़िंदगी की,हौसले ही पस्त हो गए...कभी डर गए किसी के विचारों से तो गुस्से से कांप-कांप गए...कभी 


यू ही इस ज़िंदगी से बेज़ार हो गए,यह सोच कर कि कितनी लम्बी है अभी और यह ज़िंदगी...अरे पगले,


यू उदास पस्त और गुस्से से जिए गा तो यक़ीनन इस ज़िंदगी के दुखों से कभी मुक्त ना हो पाए गा..देख 


और सोच,कोई तो होगा जो तेरे लिए फिक्रमंद होगा..कोई तो होगा जो तेरे लिए कही दुआ मांग रहा 


होगा..तुझे तो शायद खबर भी न होगी,कोई दूर तुझे तेरे दुखों से निकल जाने की सच्ची इबादत मे 


लीन भी होगा...

Monday 22 February 2021

 कौन है जो छुप-छुप के रात के गहरे पहर मे हम को,हमारे पन्नों को पढ़ता है...कौन है जो रात के अंतिम 


पहर,हमारे लफ्ज़ो को चुपके से चुरा लेता है...कौन है जो देर रात,जब हमारी आंख खुले..तो कलम-स्याही 


पास रख जाता है...कौन है जो कहता है,जनून को जनून बनाए रखना..कौन है जो बार-बार याद दिलाता 


है कि आंख मूंदने से पहले,नाम अपना इतिहास बना जाना...कौन है जो प्यार से सर पे हाथ रख के कहता 


है,साथ हू ना तेरे...जानते है हम यह कौन है..मेरे बाबा के सिवा कोई और हो नहीं सकता...जिस एहसास 


दुलार के बीज बोए आप ने,वो अधूरे कैसे छोड़े गे..

 भोर की पहली किरण जो पड़ी उन के चेहरे पे..हम ने उस पहली किरण को चूम लिया..हमारा हक़ इन 


पे आप से पहले है,यह बोल कर हम ने किरण को, कल की भोर पे आने को मना किया...कैसे कहे कि 


आप तो आप है..और आप के सिवा कौन और हमारे है...तेरे कदमों की चाप सुन लेते है बहुत दूर से..


तेरी साँसों की महक पूरे दिन बांध के रखते है अपने जिस्म से...चाँद तक को हक़ नहीं देते तुझे निहार 


लेने का..तेरी ही आगोश मे सिमटे,किसी और के ख्याल को आने तक की इज़ाज़त नहीं देते इस दिल मे..

 बेहद नज़ाकत से वो बोले हम से..''ना बांध के रखिए अपने पल्लू से हम को..किसी काम के ना रह पाए 


है..दुनियाँ पुकारती है हम को आप के दीवाने के नाम से,कुछ तो रहम कर दीजिए हम पे''...दबाया पल्लू 


हम ने होठों मे अपने और मुस्कुरा दिए अदा पे इन की..वल्लाह क्या बात है,क्या हम देख रहे है उसी 


शख़्स को जो हम को देख कर मुस्कुराता तक नहीं..दिल मे छिपाए इस एहसास को,बोले उन से..''जनाब 


हम ने आप को पल्लू से नहीं अपनी रूह के तारों से बाँधा है..कह दीजिए दुनियाँ वालों से,हमारी रूह के 


दीवाने है आप..जो नशा सदियों तक ना उतरे,उस से भी जयदा नशीले है हमारे एहसास''....

 डूब कर तेरे ही प्रेम के आंगन मे..बेनाम सा रिश्ता अपने आँचल से बांध लिया...राहें तो बंद है हर और 


से मगर इन दिलों की राहें तो हर तरफ ही खुली है...दर्द देती है जब भी तन्हाई तो कोई मधुर धुन दूर 


से सुनाई देती है..खामोशियाँ बोल उठती है और उसी ख़ामोशी मे आवाज़ तेरी ही सुनाई देती है...प्रेम-राग 


ही सुन,दुनियाँ की कोई बात ना सुन..ढाप ले अपना चेहरा अपनी हथेलियों से और मुझे धीमे से सुन..गीत 


वही सुनाई दे गा तुझे जो तूने हमेशा मेरे ही साथ दोहराया है..बस,प्रेम का रंग उन्हीं सुरों मे ढला मेरा-तेरा 


अंश है...

 तूने ठीक से सुना नहीं शायद..हम ने कब से रोना-धोना छोड़ दिया...इन आँखों ने साथ दिया हमारा और 


इरादा हमारा सफल हुआ...वादा किया था तुझ से हम ने,रंग तेरे मे रंग जाए गे..पर तूने रंग मे वफ़ा ना 


घोली और हम बेवफ़ा हो ना सके...डगर एक थी,बंधन भी एक था..पर तू वादे से परे हटा...सहना इतना 


आसान ना था,आसमान भी फट सा गया...चाँद-सितारे भी रोए साथ हमारे..बादल भी गरज़ के काँप गया..


आवाज़ आई रूह से ऐसी कि आँखों का पानी ही सूख गया..चाँद-सितारे..बादल-बिजली पुराने साथी है 


मेरे...सदियों का साथ है इन का और मेरा..बदल जाना इन का काम नहीं..

  पायल अपने घुंगरू छनकाती मस्त-मस्त थी मेरे दिल की तरह...हम ने पूछा,यह तो बता..हम को ले 


कर चली कहाँ..मस्त अंदाज़ मे वो फिर छनकी..बस तू चल मेरे साथ...समंदर किनारे-किनारे अपना 


आँचल भिगो दे पूरी शिद्दत के साथ...लहरें साथ चले गी तेरे, रूप देखे गे तेरा यहाँ रुके दीवाने खास...


बात ना करना किसी से कोई,यह सब है पागल बदमाश...हँसे जब हम जोरों से,देने लगी पायल हिदायत  


बारम्बार..रोक हंसी ऐ पगली,चल रहा यहाँ मौसम बहुत ही खास...

 मिज़ाज़ मौसम का आज बहुत गर्म सा है..रेगिस्तान की रेत की तरह उड़ता-उड़ता सा है..यह क्या,देख 


हमें रेत का ग़ुबार हमी और चला आया...गुस्सा हम को भी आया...समझ गए,तेरे गर्म मिज़ाज़ का असर 


यहाँ तक भी आया..सूरज की ताप को इक हल्का सा इशारा हम ने ऐसा दिया..रेत की धूल का रुख तेरे 


ही शहर मोड़ दिया...अब बारी तेरे सुलगने और जलने की है..समझ जरा,यह मौसम और सूरज का ताप 


कभी-कभी तेरी सुन लेता है..वरना यह तो हमेशा हमारे इशारो पे ही चला करता है...

 सितारों से भरी चुनरी ओढ़े भरी रात मे जो हम निकले..चाँद के दीदार के लिए बहुत तड़पे...ज़ालिम इक 


तो यह बादलों का शोर और ऊपर से गरजती बिजली,तौबा..मेरे भगवान्...अरसे बाद निकले थे आज इस 


रात की तन्हाई मे,चाँद को उलझाए गे अपनी शरारती बातों मे..जी भर के सताए गे अपने दीदार के लिए..


कमबख़्त,यह सितारें किस काम के है..हज़ारों की तादाद मे है मगर चाँद को इन बादलों से ना निकाल 


पाए है..उतार दी हम ने चुनरी सितारों वाली..पर यह क्या,चाँद निकल आया बादलों को चीर के...मिलने 


हम से...

Sunday 21 February 2021

 दुनियाँ पूछ रही है हम से हमारी ही पहचान...रहते है लफ़्ज़ों की नगरी मे और लिखते रहते है प्यार के 


नायाब एहसास...वो एहसास जो हम को विरासत मे अपने बाबा से मिले..वो एहसास जो माँ ने अपनी 


दुआओं मे हम को भर-भर के दिए...रूहानी-एहसास की कहानियाँ माँ-बाबा की सिखाई गई बातों से 


निकल कर ही आती है..कितना सिखा पाए गे दुनियाँ को वफ़ा-प्यार के असली मायने..इस छोर से उस 


छोर तक,यहाँ सलामत रहती है मुहब्बत वफ़ा के सब से ऊँचे से भी ऊँचे पायदान पर...निखरे है और 


सँवरे है तो बस लफ़्ज़ों की इसी कारागिरी से...पहचान तो सिर्फ हमारी इतनी भर है कि '' सरगोशियां'' 


नाम से हम जाने जाते है...कोई और नाम नहीं हमारा कि ''शायरा'' को ले जाए उस की मंज़िल तक ,


ताकि माँ-बाबा को अदब से जा कर मिलने का साहस जुटा पाए...

 दुपट्टा सरका जो सर से,क्यों सूरज डूबने पे मजबूर हुआ..आसमां को निहारा जो शाम ढले तो चाँद 


हमारी मरज़ी के मुताबिक क्यों निकलने पे मजबूर हुआ...शोख-शबनमी सी यह आंखे हमारी,झुके 


गी जब भी तो रात को गहराना ही होगा...खोल दे गे गेसू तो तुझे भी इसी रात के सदके,मिलने हमे 


आना ही होगा...ना कैसे कर पाओ गे,इस झांझर की उसी अंदाज़ी आवाज़ को रूह मे फिर से भिगोना 


होगा...तेरी रूह के खालीपन को कौन भर पाए गा..मेरी ही रूह के सदके तू सकून पाने,मेरी ही रूह 


से मिलने आए गा...

 जनून..जनून..जनून...यह जनून ही तो है जो हम को रातों को नींद से उठा देता है...कलम को हाथ मे 


दे कर,हमी से शब्द लिखवाता है..थकने की नौबत ना आ पाए,स्याही-दवात साथ मे रख देता है..पन्ने 


भी हमारे इस जनून को बहुत अच्छे से जानते-समझते है..बरकत की सौगात लिए संग-संग हमारे चलते 


है..सफर के इस दौर मे,साथी-दोस्त इतने जुड़े..हम दिल से उन के धन्यवादी हुए..वादा सभी से किया..


मंज़िल को हासिल कर के ही दम ले गे..बीच राह अपनी ताकत को ना छोड़े गे..''सरगोशियां''आप सभी 


की है,इतना अभिमान आप सभी को दे कर हम मंज़िल तक यक़ीनन  पहुंचे गे..

 तन्हाई से डर कैसा..अंधेरो से खौफ कैसा..उम्र गुजर रही है हर लम्हा-लम्हा,तक़दीर की लकीरों को साथ 


लिए...सब कुछ कैसे मिल सकता है और सुब कुछ छिन भी कैसे सकता है...हम ने ओस की बून्द को 


रखा हथेली पे अपनी,वो फिसल गई अपनी मरज़ी से घास के आंचल मे..तक़दीर की खुशियां भी कुछ 


ऐसी ही होती है..उम्र होती है थोड़ी सी मगर यादों को महका जाती है..गम ना कर,यह सब के साथ ही 


होता है..थोड़े गम और थोड़ी सी ख़ुशी..आ यारा,इन सब से चुरा ले बहुत सारी ख़ुशी...

 कभी जिया है इस ज़िंदगी को आप ने अपने लिए ...कभी जिया है इस ज़िंदगी को दूजों के लिए...वही 


रोज़-रोज़ का रोना,आज यह दुःख है तो कल कोई और रोना...खुद ही हारे है आप बार-बार पर इस 


ज़िंदगी ने अपना बिंदासपन नहीं छोड़ा...कभी इस ज़िंदगी को हमारी नज़र से तो देखिए जरा..दुखों के 


मेले मे भी,छोटी-छोटी खुशियाँ हम ढूंढ लेते है..और आप,सुखों की घड़ियो मे भी,मिले पुराने  दर्द को ही 


याद करते रहते है...जीने का सलीका जो आप सीख जाए गे,उसी दिन से खुद से ही मुहब्बत कर पाए गे..

 यह गुलाबी फूल और बेख्याली मे तुझे यू ही छू लेना...लबों का थरथराना मगर तुझ से कुछ बता ना पाना...


यह फूल, रंग गुलाबी से क्यों चमकीले इतने हो गए...शायद तुझे मेरी बात बिन कहे समझ आ जाए,


इसलिए शोख चमक से यह भी तुझी पे क़ुरबान हो गए...पत्थर है तू,पाषाण है तू...मगर इन फूलों की 


तरह हम तो तेरे प्यार मे नाज़ुक़-नाज़ुक़ से हो गए..चलते है तो यह हमारी राह मे बिछ-बिछ जाते है..


तेरी तरह पत्थर नहीं,यह तो हमारे नाज़ भी उठाते है...

 कितने ही सुनहरे परदों मे छुप जाओ..हमारी नज़रो से कैसे बच पाओ गे..तुम सलामत हो,यह पता है हम 


को...नादानी का मुखौटा कब तक पहन पाओ गे...लगे गा तीर जब तेरे दिल के आर-पार,मेरी यादों का..


तो लाखों परदों से खुद ही बाहर आओ गे...गुस्ताखी माफ़ यारा,खुद के दिल को बीमार होने से,मुझ से 


कैसे छुपा पाओ गे...धक्-धक् चलती यह धड़कनें तेरी,मेरे ही नाम की है...तो मेरा नाम लेना कैसे भूल 


पाओ गे...कोशिश ना करना यारा मेरे..बेमौत ही मारे जाओ गे...

Saturday 20 February 2021

 हम ने दरगाह मे चढ़ाई तेरी मुहब्बत की चादर...इबादत मे खुदा से मांग ली तेरी सलामती की चादर...


तेरे नाम की रूहे-चांदनी साथ लिए फिरते है..वो सज़दा जो हम ने दरगाह मे किया,वो यक़ीनन पाक रहा 


इतना...खुदा ने दो फूल गिराए झोली मे हमारी और हम तो जैसे तेरे नाम के सदके जी भर के जी उठे...


अब और क्या मांगे,तुझे मांग लेने के बाद...पायल की इस झंकार को संभाले या खुदा की इस नियामत 


को संभाले..कोई लफ्ज़ नहीं,इतना शुक्राना करने के बाद..मेरे अल्लाह,सज़दा करते है तुझे बारम्बार...

 दूरियों के फासले तो उन को डसते है जो प्यार मे फरेबी होने का गुनाह करते है...दूरियां है या बेहद 


नज़दीकियां,प्यार तो हर सांस के साथ कायम रहता है...मौसम की क्या बात कहे यह तो मौत के बाद 


भी रूह मे बसता है...मौत कहां इस प्यार के सिलसिले को तोड़ पाती है..जन्म ले के दुबारा फिर उसी 


साथी से उस अधूरेपन को पूरा करने के लिए मिलवा देती है...रात को सितारों के झुरमुट मे तुझ को 


देखा..सूरज की तेज़ रौशनी मे भी अक्स तेरा ही देखा..तू है हर जगह,यह कमाल तो सिर्फ हमीं ने देखा..

 प्रेम की पगडन्डी पे उतरे है पहली दफ़ा...रास्ते इतने इतने कठिन होते है,जाना पहली दफ़ा...तेरी बातों 


मे कभी भरा है इतना नशा तो दूजे ही पल रूखेपन का बेहिसाब खज़ाना है मिला...बिन बताए हम से 


नाराज़ हो जाना और महीनों गायब हो जाना...यह भी जाना पहली दफ़ा...प्रेम के उतार-चढ़ाव क्या ऐसे 


भी होते है..प्रेम के दर्द भी ऐसे होते है,यह तुझी से जाना पहली दफ़ा... तेरी बेवफाई की शिकायत किस 


से करे..तुझे बदनाम करने का कोई इरादा है ही नहीं...यह कसम खाई है तेरे लिए,तेरे साथ ...गज़ब तो 


गज़ब यह भी जाना सब पहली दफ़ा...

 पर्वतों के उस पार तेरे देश मे,हम तो सिर्फ तेरे मेहमान ही रह गए..ना देखा तुझे,ना मिले तुझे और सितम 


उस पे यह रहा कि तुझे छुए बिना ही तेरे अपने हो गए...उन वादियों मे तुम्हे कहां कैसे ढूंढे कि तुम तो 


जैसे कही ग़ुम हो गए..अचानक नज़र पड़ी पीले रंग के ढेरों फूलों पे..तेरे पसंदीदा मनमोहक फूल देख 


हम तो जैसे मचल-मचल गए...एक अहसास हुआ दिल को कि तू आस-पास ही है,यही-कही..कोई दिखा 


दूर से आते हुए नज़रो को झुकाए..हम समझ गए,यह तो मेरे मन के मीत ही चले आए...

Friday 19 February 2021

 दिल जो धड़का तो ऐसा धड़का कि शहनाई की गूंज तक जा पंहुचा...मिलन अधूरा ना रहे..समर्पण 


की बेला मे दिल पूरे जोरों से धड़का...पिया की संगनी,प्रेम की मनमोहिनी..जो अब उस की प्रिया भी 


है और है सहधर्मणी...आँखों के कोर लाज से घिर गए...जब पिया ने छू लिया उसे अपनेपन के भाव से...


प्रेम की उम्र थोड़ी ना हो,यह सोच कर वो संगनी से जयदा उस की प्रेमिका बन गई...शर्म-लाज की परतों 


से दूर,उस ने पिया को रिझाने की ठान ली... समर्पण-प्रेम ऐसा रहा कि वो तो उसी का प्रेमी बन कर रह 


गया...सादिया दोहराए गी तेरी-मेरी यह प्रेम-गाथा कि समर्पण की अब कोई सीमा नहीं.....




 रोए रात भर तुझे याद कर के इतना..फिर आप के शहर मे बारिश का पानी क्यों बरसा इतना...पूछा उन्हों ने 


हम से सिर्फ इतना ''क्या मेरी याद कल बहुत आई थी ''..मुँह से हमारे बेसाख्ता निकला '' आप का दिल 


तो पत्थर से भी पत्थर है,तभी तो यहाँ बारिश नहीं..गहरी तेज़ धूप का मेला है,आप के गुस्से की तरह...


मुस्कुराना तक आप को आता नहीं...जीवन की दौड़ मे चलना तक आता नहीं ''...बोले गहरी सांस ले कर 


वो, ''इतने अनाड़ी है,सर्द दिल है..तभी तो प्यार पाने आप के पास आए है..आप के रो देने से हमारा शहर 


पानी-पानी हो जाता है..गर हंस दे गे तो हम तो सातवें आसमां को ही छू जाए गे '' .....

 बालपन का वो दौर और घंटो खेलना और साथ-साथ महकना...कभी रूठ जाना तेरा और मेरा तुझे मना 


लेना..फिर कभी मेरा नाराज़ हो जाना और तुझे घंटो मुझे मनाने की प्यारी सी वो कोशिश करते रहना..


साँझ की दहलीज़ आते ही सारे गिले-शिकवे दूर हो जाना कि भूख से दोनों का बेहाल होना...काश..वो 


बालपन रुक जाता और झगड़ों का दौर भी साँझ तक ख़तम हो जाता...आज तुझे मनाने की कोशिश मे 


हार जाती हू मैं..खुद भी नाराज़ हू तुझ से,यह तक भूल जाती हू मैं..आ चल फिर से उसी बालपन मे लौट 


चले...जहा तर्क-वितर्क ना थे बस भूख से बेहाल होना ही,फिर साथ-साथ जोड़ देता था...

Thursday 18 February 2021

 देह थी चन्दन सी और मन सोने सा...दौलत पास थी इतनी और दुःखो का कोई मेला भी ना था...दिल 


भी मिले और प्रेम के धागे भी..फिर ऐसा क्या हुआ कि मिलन हो ना सका...रूहों के महीन धागे भी थे 


मजबूत इतने कि जहां भी कुछ कर ना सका...दुल्हन के लिबास मे वो मेरी होगी,यह सोच के वो सांतवे 


आसमां पे था..तक़दीर ने क्या फैसला दिया ऐसा...जीवन के तार टूट गए और दुल्हन के ख़्वाब सारे टूट 


गए...वो सांतवे आसमां से सीधा गिरा धरती पे और प्राण उस के अपनी दुल्हन के साथ निकल गए...

 बदल गई निग़ाहें तेरी मगर हम बदल नहीं पाए...रुक गए उसी मोड़ पर जहां कदम तेरे पहली बात पड़े...


हर रोज़ बहाने से उसी मोड़ पे जाते है,सिर्फ यह देखने भर के लिए..क्या पता तेरे कदम की आहट फिर 


इक बार और पड़े...बेसाख्ता मुँह से निकला,हे अल्लाह...पाक तो थी मुहब्बत मेरी फिर कदम उस के 


क्यों लौट गए...तेरी दरगाह मे सज़दा रूह से किया तो क्या मेरी दुआ मे कही खोट रहा...तू तो मुकम्मल 


है मालिक,मैं ही शायद छोटा सा ज़र्रा रहा..वरना जो कदम खुद चल के आए थे कभी पास मेरे,वो यू 


मुझ से दूर क्यों कर हुए...

Wednesday 17 February 2021

  ''हम से भी बेहतर बहुत होंगे...हम तो भरे है ढेरों कमियों से,हम से काबिल बहुत होंगे ''...बेहद तहजीब 


से यह कह कर उस ने उस का रास्ता छोड़ दिया...रोज़ रोज़ वही बात कहना...दिनों दिन दूर होते जाना...


बेरुखी का लहज़ा समझ आता गया...पर प्यार तो नाम है बलिदान का...तेरी ख़ुशी जिस के साथ भी हो,


हम राज़ी है तेरी ख़ुशी मे..शक्ल-सूरत ने हम को कभी मोहा ही नहीं...रूह की आवाज़ पहचानी थी..और 


यह आवाज़ बार-बार आती नहीं....तुझे मुबारक हो तेरा नया साथी..बेहद तहजीब यह बोल कर,वो उस 


की ज़िंदगी  से बहुत बहुत दूर हो गई...


 यह कागज़ कलम और दवात...किस ने किस को लिखा...कागज़ की अहमियत भी है तो कलम भी किसी 


से कम ना है..दवात की स्याही ना होती तो क्या होता...सब इतरा दिए अपनी अपनी अहमियत पे...दुलारा 


सभी को बेहद प्यार से और पुकारा अपना हमराज़ सभी को...पास बुलाया सब को और पूछा बेहद प्यार 


से '' गर हम कुछ लिखते ही नहीं तो आप सब क्या करते ?''..अहंकार किस बात का है...हम आप से जुड़े 


तो आप सब हम से जुड़े तो '' सरगोशियां'' इक प्रेम ग्रन्थ बन गई..लोगों ने पढ़े लफ्ज़ और प्रेम ग्रन्थ की 


महिमा सभी को अज़ीज़ हो गई...

 नतमस्तक हो जाए गे..तेरे दर की एक और सीढ़ी जो चढ़ी तो कायल तेरे हो जाए गे...बेहिसाब बेपनाह 


बातें करना...रेलगाड़ी की पटरी की तरह दौड़ते रहना...भूल गया,तू एक मुसाफिर है...किसी रोज़ रुकना 


होगा...क़दमों की चाप धीमे रख,वक़्त की चाल देख कर चल...ज़िंदगी का कोई भी पथ आसान नहीं..फिर 


बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ना,ज़िंदगी शायद इस का नाम नहीं...खुद ही इस चाल को धीमा कर ले,खुद 


को मेरे रंग मे रंग ले...हां,इसीलिए तो कहते है,नतमस्तक हो जाए गे...और खुद को मेरे रंग मे रंग ले...

 भारी सी पोटली आंसुओ की फ़ेंक दी कचरे के डिब्बे मे..कोई काम नहीं तेरा अब मेरे पास,जा दुनियां के 


किसी और वीरान कोने मे...हां,जाते-जाते इतना तो सुनती जा..तेरे दिए दर्द-दुखों से अब मेरा ना कोई 


वास्ता...बहुत समझाया तुझे कि मेरा रास्ता तुझ से आगे और तुझ से परे है बहुत जुदा...पर मेरी किस्मत 


पे तूने जाल बिछाया ऐसा और मैंने हर बार तरस खा कर तुझ को फिर से अपनाया...हंसी के लम्हे बेशक 


थोड़े होंगे पर तेरी तरह रोनी सूरत वाले तो नहीं होंगे...बहुत सोच कर पोटली समेत तुझे तेरे दर तक छोड़ 


दिया..गुजारिश इतनी,दफ़न यही हो जाना..फिर किसी के दिल को इतना न रुलाना...

 कोई ख़ुशी दस्तक देने नहीं आई दरवाजे पे मेरे..फिर भी क्यों दिल का आंगन खुशगवार सा है...क्या किसी 


ने बहुत दूर से मेरा नाम ले के मुझ को प्यार से पुकारा है...क्या जाने इस बात को,हम को बस पता इतना 


है कि दिल का यह आंगन ख़ुशी के सागर से तरबतर है..गुनगुना रहे है दिल ही दिल कि दिल का आंगन 


ही तो आज सब कुछ हमारा है...आईना देखा तो चेहरा गुलाल से गुलाब है...आँखों के किनारे कजरारे है..


पलके बेवजह लाज से भारी है...क्या कमाल है यह दिल का आंगन भी..बिन ख़ुशी के इतना खुश है..


ख़ुशी कोई मिली तो क्या होगा....

 सुरमई आँखों मे आज इतना उजाला कैसे...पांव पड़ते नहीं धरा पे तो कदम आगे बढ़ाए कैसे...राज़ छुपा 


है दिल मे गहरा,किस को बताए कैसे...यह ताप सूरज का कह रहा हम से,जा जी ले ज़िंदगी अपनी...यह 


चंदन सी महकती हवा छू के दामन मेरा,कह रही है भूल के सब कुछ...खो जा दुआओ के सागर मे इतना..


फिर कोई नज़र ना लगाए तेरी खुशियों पे,आसमां के परिंदो की तरह खो जा इसी आसमां मे जैसे...इंसानो 


की गन्दी दुनियां से अलग समा जा फ़रिश्तो के संसार मे ऐसे,जैसे जुदा हो के जिस्म से रूह उड़ती है वैसे...

Monday 15 February 2021

 प्यार मे काम क्या रंजिशों का..जो  प्यार दे गया उजाला रूह के दरवाज़े पे,उस मे नफरत का भला 


काम क्या...जैसे सूरज कभी अस्त हो कर भी अस्त नहीं होता..जैसे चाँद दिन की रौशनी के बाद रोज़ 


उदय होता...जैसे आसमां कभी धूमिल नहीं होता..सितारें जो सदियों से यू ही चमकते आए है...फिर प्रेम 


के अनमोल धागें बिखरे गे कैसे...रूह का उजाला इन मे अँधेरा क्यों दे गा..प्यार तो वो अहसास है जो 


जीवन के बाद भी कायम रहता है..जिस्म की माटी बेशक दफ़न हो जाए मगर प्यार यह सदियों तल्क़ यू 


ही चलता जाए...तभी तो कहते है,प्यार मे रंजिशों का क्या काम...

Sunday 14 February 2021

 '' कभी बेबाक हू मैं..कभी बिंदास हू मैं..कभी खुद पे ही हर्षित हू मैं..कभी शब्द मेरे ख़ुशी से खिल उठे..कभी यह शब्द दुःखो के सागर मे डूब गए...कभी-कभी सिंगार से बेहद सज़ गए तो फिर कभी सादगी के रूप पे निखर गए...लिख दी कभी परिभाषा काजल की धार पे तो कभी अश्रु ने बहा दिए काजल के शब्द अपने ही सैलाब से...घुल गई कभी पिया के रंग मे तो कभी उदास हो गई विरह के रंग मे..नख से शिख तक कभी श्रृंगार-विहीन हो गई तो कभी सुहाग के रंगो से सज गई..किसी को कभी जीना सिखा दिया तो कभी कोई इन शब्दों की वफ़ा से ज़ार-ज़ार रो दिया...अलगाव भी है,प्यार भी है..मगर ''सरगोशियां'' तो वफ़ा के सब से ऊँचे पायदान पे है...नज़रे कभी चुराती नहीं..प्यार को डरना सिखाती नहीं...कभी कोठे के दर्द पे लिख देती है तो कभी उस को उसी के संसार से अलग भी कर देती है...तवायफ भी इक औरत है..बलात्कार के दर्द से बेहाल नारी भी,प्यार को पाने की अधिकारी है...समाज को पाक-प्रेम का पथ और पाठ पढ़ाती इक मार्गदर्शिता भी है..मर्द को औरत की इज़्ज़त करने का गहरा सन्देश देती है और औरत को उस का दायरा भी सिखाती है...बहुत बहुत कुछ है प्रेम पे लिखने के लिए''...मेरी ''सरगोशियां'' से जुड़ने के लिए शुक्रिया दोस्तों... आप की अपनी सी शायरा...

 बोलने की क्या जरुरत है..प्रेम सिर्फ ख़ामोशी की बात सुनता है..शब्दों के ज़ाल मे क्या उलझाए तुझे 


कि शब्दों की बात भी तुम कब सुनते हो...शब्द और ख़ामोशी दोनों है प्यार के मखमली डिब्बे मे और 


प्रेम राजसी रंग की सुराही मे  कैद है...जज्बातों की किताब दिल के पन्नों पे लिखते रहते है...स्याही कभी 


कम ना पड़ जाए इसलिए तेरी यादों को साथ-साथ रखते है...यह निगोड़ी पायल बहुत गुस्ताखियाँ करती 


है..यह भी तेरी तरह दीवानी पागल है..मेरी बात यह भी कहा सुनती है..

 श्रृंगार के नाम पे उस के पास सिर्फ सूरत ही उस का गहना  था...दौलत की बात करे तो पास उस के 


 चंद लकीरों का छोटा सा मेला था...वो बोली उस से '' इतने भर से क्या मेरे बन पाओ गे ? बिन शृंगार 


 की मेरी यह सूरत क्या क़बूल कर पाओ गे ? इतनी ग़ुरबत है पास मेरे,क्या रिश्ता यह ताउम्र निभा 


 पाओ गे''? ख़ामोशी छा गई इतनी कि पत्तों की सरसराहट भी सुनाई देने लगी...नम आँखों से वो सब 


समझ गई..उठ के चल दी कि तभी एक आवाज़ सुनाई दी...''क्या साथ मेरे चल पाओ गी ? जीवन बहुत 


कठिन है मेरा,क्या राह के कांटे निकाल पाओ गी''...अब बारी थी आसमां के झुक जाने की और बरखा 


के खुल के बरस जाने की...





 मेला अरमानों का गज़ब ही था..ना थे सजना ना ही सजनी..दिलों की दूरियां बहुत दूर हो कर भी बहुत ही 


पास थी..उस के प्यार की खुशबू उस के पास थी और उस के प्यार से उस का दिल महक रहा था इतना...


लब जैसे ही मुस्कुराए,एक कशिश उभरी और वो धरा के उस पार इस कशिश पे मुस्कुरा दिया...फ़रिश्ते 


देने लगे दुआ जैसे और बेनाम से रिश्ते,रंगो के इंदरधनुष से खिल उठे जैसे..अब प्यार के दिन किस ने 


जाने और माने...एक था दिया तो दूजी बाती पर यह बात किस को समझ आती..

Saturday 13 February 2021

 तेरे साथ गुजारा नहीं मेरा...दौलत की छोटी सी चादर मे जिऊ कैसे संग तेरे...क्या सोचा था और क्या 


मिला..सपनो का घरोंदा मेरा तूने तोड़ा..ऐशो-आराम की ज़िंदगी की तमन्ना मेरी भी तो है...इक बड़ा सा 


घर और शाही ठाठ,यह मेरा सपना तू पूरा भी ना कर पाया..रोज़ की चिक-चिक और ज़िंदगी नरक बन 


गई...बिखरे रिश्ते और इसी दरमियान प्यार तो कही दूर बहुत दूर चला गया...तक़दीर को दोष देना और 


घुट घुट के जीना........'' यह प्यार हो ही नहीं सकता..जहां दौलत-आराम का पहरा हो और प्यार पैसो 


से मिलता हो..यक़ीनन,यह प्यार नहीं है...नहीं है...नहीं है''....

 धड़कनों का सज़दा करना और अपने प्यार के लिए सलामती की दुआ करना...पायल की रुनझुन को 


बेवजह खनकने देना..कभी चूड़ियों को यू ही बज़ा देना...इक मीठी सी याद पिया की और बरबस आँखों 


मे चमक का आ जाना...ख्वाब सारे पूरे हो या ना हो मगर प्यार मे कमी कोई ना आने देना...सादगी को 


सिंगार का ओहदा देना..जेवरात के नाम पे सिर्फ नख से शिख तक,मन मे एक खास उजाला रखना..


दिन हो बुरे या फिर अच्छे,परवाह किए बिना...उम्मीद का दामन संभाले रखना...हां,यही तो प्यार है......

Friday 12 February 2021

 बेहद प्यार से बाहें फैला कर,ज़िंदगी को फिर से खुद मे शामिल कर लिया...कहर ले रहा है विदा,हम 


ने इस कहर को भी धन्यवाद दिया...कुदरत के नज़ारे कितने प्यारे है,ख़ुशी -ख़ुशी इन को फिर से गले 


लगा लिया...कौन जाने ज़िंदगी की मोहलत कब तक हो..हम ने फिर से भरपूर जीने का फैसला कर 


लिया..जीवन की साँसे बहुतों को देते आए है और बदले मे करोड़ो दुआए लेते घर आए है..पांव ज़मी 


पे रखते है कि उस के हर आदेश से ही चलते है..सिर्फ और  सिर्फ दुआ लेना सीखिए..फिर सब कुछ 


उसी पे छोड़ दीजिए..

 ना पूछिए हम से,हम किस मोड़ पे है...ना पूछिए हम से,हम किस राह पे है...क्यों कह रही है यह फ़िज़ाए 


जीने के दिन तो अब आए है..क्यों बुला रही है यह वादियां कि अभी तो ख़ुशी के दिन आए है..यह चुनरी 


है तो मलमल की पर क्यों लगता है,यह महकी है किसी पाक दुआ से..कौन जाने कब कोई हम पर अपनी 


दुआए बिखरा गया..शायद यह माँ ही होगी जिस की दुआ ने हम को खूबसूरत रास्ते पे बहुत सलीके से 


चलाना सिखा दिया..शायद यह मेरे बाबा ही होंगे जिन की अंगुली ने फिर मेरा हाथ चुपके से थाम लिया...

 बार बार यू रोए गे तो जीवन को कैसे जी पाए गे..बस यह सोच कर जज्बातों के समंदर से बाहर निकल 


आए..यह जज़्बात भी क़यामत है..ना तो इंसान को फरिश्ता बना पाते है और ना ज़िंदा ही रहने देते है...


खोखला करते है दिमाग और दिल को राख़ कर देते है..बहुत सोच कर इन को खुद के दिल से जुदा कर 


दिया...अब दिल है हल्का और दिमाग..वो तो माशाअल्लाह मस्ती मे चूर है..लगता है अब तो बैरागी हो 


गए है हम..जीना भी आसान हो गया है इतना..पांव थिरक रहे है खुद की ही धुन पे और आसमां तो जैसे 


सज़दा कर रहा है हम को इतना...

Thursday 11 February 2021

 चारों तरफ यह प्यार का मौसम और झूठे वादों का नया सा वही पुराना मौसम...वल्लाह,कैसी सी बात 


है..फिर कोई सज़ा इस मौसम के लिए,इक नए शिकार की तलाश मे..मौसम यह गर चंद दिनों का है 


तो शिकारी का जाल भी तो चंद महीनों का है..सज़े-संवरे,खुद की असलियत को छुपाए प्यार की दहलीज़ 


पे आए...ना प्यार दिलों मे है और ना रूह-ज़मीर की कहानी किसी के इर्द-गिर्द भी है..रूप भी नकली 


प्यार भी नकली..तोहफों की बाढ़ मे कुछ दिनों के लिए दुनियां बदली...ना कोई यहाँ है किसी पे जान 


लुटाने वाला और ना कोई किसी को प्यार का सही अर्थ बताने वाला...नकली सजावट के यह चेहरे...


प्यार के नाम को बदनाम करते कुछ शिकारी और दोहरे चेहरे .....


Wednesday 10 February 2021

 '' गुजर जाए गे तेरे प्रेम मे किसी भी हद तक,बस तू मेरा हो जाए..तेरा-मेरा जीवन हो दौलत-ऐशो आराम 


की छाया,मौसम प्रेम का ऐसा ही हो''....कितना कच्चा-फीका प्रेम का रिश्ता....सिर्फ पा लेना प्रेम कहां है..


जहां प्रेम मे प्रेम से पहला पैसा आया..जहां प्रेम मे कोई सौदा आया..जहां प्रेम मे सुंदर सूरत का ही पहला 


ख्याल आया...वहां प्रेम कहां से आया...''तेरा-मेरा साथ है दौलत की दीवारों से ऊपर..तू रहे सलामत,इस 


से जयदा और क्या मांगू...इस दुनियाँ से मुझ को क्या लेना-देना...तुझ से है मेरी यह दुनियाँ''...प्रेम की 


पाठशाला का पहला-आखिरी मन्त्र यही है....

 प्रेम...की महिमा को उस ने इस रूप मे लिया..पहले देखी प्रियतम की ख़ुशी,फिर बाद मे जान लुटा दी 


अपनी....कदम से कदम मिलाए उस से और संगनी कहलाई उस की ...कितने दोष से उस के अंदर पर वो 


कभी ना घबराई थी ..गर होगी ताकत प्रेम मे मेरे तो वो सब दोषों-गलतियों से सीख जाए गा..ढाई अक्षर प्रेम  


के बदले ढाई करोड़ जज्बातों को उस ने उस पे वार दिया...जितना वारा,उतनी तपी प्रेम मे उस के...संसार 


सारा त्याग दिया...ना वो थी मीरा,ना राधा थी,ना आसमा से उतरी थी..वो तो बस प्रेम की गहरी मूरत थी..

Tuesday 9 February 2021

 ढाई अक्षर प्रेम के और दुनियाँ रंगो से भर गई..पर यह क्या हुआ..उस के प्रेम के गाज़ गिर गई..जो उस 


का ना हुआ तो और किस का होगा...वो उस को मान सजना,उस को प्रेम-बेला मे समर्पित हो गई...और 


उस ने झूठे वादों से उस को अपना बना लिया..प्यार के अनमोल पिंजरे मे वो ढली, उस के असीम प्रेम 


मे ढली....अफ़सोस..पिंजरा खोला उस ने और प्रेम को उड़ा दिया..यह कह कर ''प्रेम ही तो था ''....क्या 


प्रेम ऐसा भी होता है ???????

 गुलाब का मौसम है या प्रेम का..इन लाल गुलाबों को देख कुछ ख्याल आया..प्रेम...क्या इस का भी 


मौसम होता है..इर्द-गिर्द देखा तो कुछ जोड़े आगोश मे लिपटे नज़र आए..जो पिछले मौसम किसी और 


के साथ किसी और की आगोश मे थे...वादे जो उस से किए थे,आज इस के साथ है..प्रेम..बिकता भी है ?


यह देख हैरान हो गए..ज़िस्मों के सौदे हुए और फिर मौसम के साथ दोनों इक दूजे को भूल भी गए...वो 


उस की जानू..बाबू थी और आज पुरानी जानू बाबू की जगह इक नई जानू बाबू है...वाह..क्या प्रेम है ....

Sunday 7 February 2021

 कुछ सुने गे तो कुछ अनसुना कर जाए गे..प्यार मे अब यह रस्म भी अदा कर जाए गे...बेरुखी की कीमत 


जानते हम भी है,मगर इतने सस्ते हो जाए..प्यार मे ऐसा भाव नहीं खा सकते है हम...बहुत ऊँचा है प्यार  


का हमारा यह पैमाना..तभी तो गज़ब का नूर साथ हमारे चलता है,यह भी  है हमारा दीवाना...गर इतने 


सस्ते प्यार मे हो जाए गे तो इस दुनियाँ को इस प्यार की कीमत कैसे समझाए गे...कीमत तुम इस प्यार 


की क्या जानो..कीमत तुम इबादत की भी कहा जानो..गरूर और बेरुखी को साथ रखो बेशक....अकड़ 


को भी साथ बांध लो अपने... हम तो प्यार को सिर्फ और सिर्फ प्यार ही नाम देते है...

 यह कैसी सी मुहब्बत है...कही घुल रहे है सिर्फ जिस्म तो कही एक रूह से दूजी रूह जुड़ गई...कही 


वादे हुए झूठे तो कही मुहब्बत इसी मुहब्बत की अगली सीढ़ी पे बढ़ गई...कही तोहफे और दौलत से 


मुहब्बत बिक गई तो कही दौलत तोहफों से परे,मुहब्बत इबादत मे ढल गई...किसी ने इसी प्यार के 


मौसम को ही प्यार माना तो कही इक मुहब्बत,पाक पवित्र बंधन की तरह बेहद पाक हो गई...एक 


जगह था जिस्म का झूठा खेल तो दूजी तरफ यह मुहब्बत..पिया मान उस को पूर्ण समर्पित हो गई...


मुहब्बत जिस्मों का मेल नहीं,मुहब्बत दौलत का खेल भी तो नहीं...जो अलौकिक  हो गया इस 


मुहब्बत मे,बस वही मुहब्बत का शहंशाह बन गया...

 सिर्फ आँखों मे काजल की इक रेखा और होठों पे हल्की सी लालिमा लिए,तुम से मिले थे हम..इसी 


सादगी पे फ़िदा हुए थे तुम..बस तभी से तेरी ज़िंदगी मे दाखिल हो गए हम...ना तुम से कुछ माँगा कभी,


ना शिकायतों का झोला तुम को दिया...अपने अस्तित्व तक को भुला दिया और तेरे हर कदम पे हम 


साथ कदम रखते रहे..तुझे प्यार करने की हज़ारो वजह है मगर हम भी तो तेरी ही सादगी पे निहाल हो 


गए...सजती है जब भी थाली इबादत की,आज भी तेरे ही नाम के हम कायल हो गए...

 कायनात का भी तब तक नाम ना था..इस पृथ्वी पे कोई और भी ना था...बस ऊपर वाले ने नाम तेरा,मेरे 


नाम के साथ लिखा पर अफ़सोस,हाथ की लकीरों मे साथ तेरा ना लिखा..हम धरा पे आए सिर्फ तेरे लिए..


तेरी तलाश मे भटकते रहे...सदियों तक भटक-भटक कर दर्द से बेहाल हो गए...ढूंढ़ते कैसे कि तेरे साथ 


तो तेरे अपने हो गए..और हम फिर अकेले ही रह गए..कितनी सादिया और आए गी,कितनी बार जन्म 


ले गे...पूछते है उस कायनात से,क्या बिगाड़ा था मैंने तेरा,जो नाम तो लिखा उस का मेरे नाम के साथ..


पर हाथ की लकीरो को खाली क्यों छोड़ा...

 प्यार और प्रेम को समझना होगा...जिस्म की मांग के साथ .रूह का प्रेम भी तो समझना होगा...यह फूल 


यह तोहफ़े और ढेरों दौलत के साथ,प्यार को प्यार बनाने वालो...दूर तक दुःख-सुख निभाने के सच्चे 


वादे भी तो करने होंगे...ईमानदारी,वफ़ा के असली मतलब भी तो निभाने होंगे...आज तू है तो कल कोई 


और भी होगा..जिस्म का खेल बार-बार सभी के साथ होगा..यह प्यार-प्रेम नहीं हो सकता..''हर हाल मे 


साथ निभाने का वादा हो..ना फूल हो,,ना तोहफ़े हो,,ना दौलत के भरे ख़ज़ाने हो..बस तोहफा हो तो 


 ईमानदारी का..तेरे है सिर्फ तेरे ही है...तेरे सिवा किसी के भी ना है''...फिर तो सब दिन अपने ही है..

 प्यार की वो भाषा कितनी ही खूबसूरत रही होगी...खामोश थी वो और खामोश थे वो...बह रही थी नदी 


की धारा और मुहब्बत वफ़ा के सब से ऊँचे पायदान पे थी...छुआ नहीं था किसी ने इक दूजे को मगर 


वो मुहब्बत बहुत अनमोल थी...ना जाने कब से वो जुड़ी थी रूह से उस की और वो सही मायने मे 


कद्रदान था उस का...ना उस के ख़यालो मे कोई और था, ना उस के ज़ेहन मे किसी और की मूरत थी..


बने थे दोनों इक दूजे के लिए,हालंकि दोनों की कभी मुलाकात तक ना हुई थी...

Thursday 4 February 2021

 कितना गरूर इस चाँद मे देखा...मुझे तो रोज़ चमकना है रात भर,इतना तुनकमिज़ाज देखा...चांदनी 


मेरे बगैर क्या कर पाए गी,इतना विश्वास खुद के गरूर पे देखा...चांदनी तो है बस चांदनी...प्यार से 


बादलों को इस गरूर का बताया..चाँद छुपा दिया बादलों की गहरी चादर मे और चाँद.....कुछ भी ना 


कर पाया...टूटा गरूर और चांदनी का महत्व समझ आया..तेरे बिना मेरा गुजारा नहीं,सीधा सही राह पे 


आया...

 कभी फासला बढ़ा दिया तो कभी फासला ही मिटा दिया...कभी गुस्से की आग मे जल कर,खुद को 


बरबाद कर लिया...यह तो खेल है सब तक़दीरों के..खामखा ना उलझ इन से...सकून और ख़ुशी की 


कीमत क्या है ? सकून और सुख की उम्र भी क्या है ? ज़िंदगी सिर्फ कुछ लम्हे देती है सकून-ख़ुशी 


के,बाकी तो सारे दिन तकलीफ़ों की भेंट चढ़ जाते है...कभी खुद से भी प्यार कर के देख जरा,यह 


ज़िंदगी तेरी हंसी और मुस्कराहट से हार कर...तुझे सकून-ख़ुशी देने पे मजबूर हो जाए गी....सादा सी 


दाल-रोटी भी चेहरे पे गज़ब का नूर लाए गी...

Wednesday 3 February 2021

 इस पार या फिर उस पार...कुछ बिखरे तो कुछ टूटे अहसास...फूल ही फूल हो चारों तरफ और कांटा 


एक भी ना हो..यह मुनासिब तो नहीं...संभल संभल के चल कि ज़िंदगी हज़ारो काँटों से घिरी इक फूल 


ही तो है...एक मुस्कराहट पाने के लिए,कितने कांटे चुभते है तभी तो  कही जा कर होठों पे कुछ गुलाब 


खिलते है...मशक्क्त जिस्म की हो या रूह के ताने-बाने की..ख़ुशी तो सही वक़्त पे ही मिलती है...इस पार 


ना रह ना उस पार कि यह ज़िंदगी तो तेरी-मेरी इक कहानी ही तो है...मुस्कुरा इसी पल मे,कल की किस 


ने देखी है...

 पिता के दिए संस्कारो की डोर ऐसी थामी...जो सिखाया जो पढ़ाया,संग बांध के ज़िंदगी की राह को आगे 


बढ़ाया हम ने..चले तो अकेले ही थे पर साथ हज़ारो का काफ़िला पीछे-पीछे आया...मुड़ के अब क्या देखे,


कि दूर तेज़ रौशनी का नूर नज़र जो आया...संस्कारो की जोत कुछ सीखे तो कुछ को कुछ समझ ही ना 


आया..पिता के उसी रास्ते पे कितने जुड़े ऐसे जिन को हम मे अपने ही पिता का अक्स नज़र आया...


दम्भी,अभिमानी,कठोर फंसे अपने ही गरूर मे,शायद संस्कारो का मोल उन को बेकार नज़र आया...


Tuesday 2 February 2021

 खता इतनी भी कर कि तुझे माफ़ भी ना कर सके...ज़िंदगी के जिस कगार पे है वहां से ज़िंदगी दुबारा 


नहीं मिलती...बहुत मन्नतों से ज़िंदगी को समझ पाए है...नाराज़ क्यों करे इस को कि इस के  हर फैसले 


हमारे बड़े काम आए है...यह जब भी थिरकती है,हम भी ख़ुशी से झूम जाते है...यह देती है दर्द तो हम 


भी ग़मगीन हो जाते है...इस के साथ बेहद प्यार से चलते है...खता की सोचते भी नहीं कि इस के बिना 


गुजारा हमारा इक पल भी तो नहीं...तूने शायद इस ज़िंदगी को ठीक से समझा -जाना नहीं..यह बेबाक 


और बिंदास है हमारी तरह जो दिल मे खलिश भी रखती तक नहीं...

 सुबह के प्यारे आँचल से निकल के,यह शुभ दोपहरी आ गई...किस ने कहा कि ज़िंदगी बुझने के कगार 


पे आ गई...सुबह जब सुहावनी मिली तो दोपहर का तेज दिल को ख़ुशी के हिलोरों मे भिगो-भिगो गया...


शाम-संध्या तो यक़ीनन और भी खूबसूरत होगी..जब इबादत के दीए जले गे हर तरफ..चाहे वो मंदिर 


हो या मस्जिद या वाहेगुरु का धाम...दिल का सकून पाना है तो बार-बार दौलत ना गिन...गिनना है तो 


दीए इबादत के गिन..होगा जब दिल रौशन तो ख़ुशी खुद ही तेरा दर ढूंढ ले गी...यकीन बस उसी पे कर..

 ना बांध के  रख मुझ को रूह से अपनी कि मैं इस दुनियाँ मे ज़ी ही ना पाऊ...मुहब्बते-दास्तान का वो 


पहला दिन और तेरी हंसी का आगाज़ हुआ मुझे पहली ही बार...वो होंठ जो कभी मुस्कुराते तक ना थे..


वो अपनी लक्षमण-रेखा को तोड़ गए कैसे...दाद दीजिए हमारी वफाए-मुहब्बत को कि आप को हंसना 


तो क्या,बेखौफ जीना तक सिखा दिया...मुस्कुराते है अकेले मे..वल्लाह...इक मरे हुए इंसान को हम ने 


जीना सिखा दिया..बात-बात पे जो सब से उलझ जाए,उस को तहजीब का पाठ सही से सिखा दिया...

Sunday 31 January 2021

 धरा धरा पे चलते-चलते राधा नाम के बेहद करीब आ गए...पर्वतों के रुख पे चले तो गौरी का नाम 


महसूस कर गए...अग्नि-परीक्षा देने की सोची तो जानकी सीता के आंचल की छाँव मे,सीखने सब कुछ 


चले आए...नाम बेशक सब जुदा-जुदा रहे होंगे,पर प्रेम की तख्ती पे सब पवित्र हो गए...कोई मिट गया 


तो कोई जी गया तो कोई धरा मे ही समा गया...प्यार का रंग-रूप रहा ऐसा,देह नहीं..जीवन भी नहीं..


मगर सदियों तक प्रेम अमर हो गया...

 मुन्तज़र तो नहीं तेरे लिए,मगर तुझ से मुख़ातिब तो है...जिस रास्ते पे तू चले,उस पे रुके तेरे रहनुमा तो 


है...भटक ना जाना फिर कभी ग़ल्त गलियों मे,नज़र तुझी पे रखे तेरे राहे-हमसफ़र तो है...चल रहे है 


तेरे साथ इक दरख़्ते-शाखा की तरह,तुझे तो शायद खबर तक नहीं कि तेरे ही शहर के बहुत जयदा 


नज़दीक आ चुके है हम,किसी महकती सुबह की तरह...परवरदिगार को सब पता है..तभी तो मुंतज़र 


 नहीं अब तेरे लिए...पर मुख़ातिब तो है...रहनुमा भी है....

Saturday 30 January 2021

 क्या हुआ फिर ऐसा आज कि इस ज़िंदगी से फिर खफ़ा हो गया...फिर कोसा इस को और खुद की 


तकलीफ़ों पे फिर ज़ार-ज़ार रो दिया...अरे पगले,यह जीवन तो शुरू ही रोने से हुआ है..इस मे रंग 


ख़ुशी के भरना तो काम तेरा है...यह ज़िंदगी तो बड़ी ज़ालिम है,हर पल ज़ख्म देती है..पगले,लगा इस 


पे हिम्मत की मरहम कि ज़िंदगी खुद ही ख़ुशी देने पे मजबूर हो जाए गी...ना मांगना कुछ ऐसा,जो 


खिलाफ कुदरत के हो..बस मांगना वही जो कुदरत के दरबार मे मंजूरे-लायक हो...

Friday 29 January 2021

 धरा मिली रहने के लिए,क्या कम है..हवा का साथ है,सांसो के लिए..कितनी बड़ी नियामत है...थाली मे 


सब कुछ है खाने को,उसी की महिमा है...झर-झर बहता जल है तो प्यास को क्या कमी है...शरीर मे 


जान है काम करने की,फिर उस ने क्या कमी की है..सोने के लिए साफ़ बिस्तर मिला है तो शांति की भी 


कहां कमी है..अरे इंसान,इस से जयदा तुझे और क्या चाहिए..अब तो हाथ जोड़ कर शुक्रिया कर.....


मानव-जीवन मिला है..जो आसानी से सब को कब मिलता है....

 सरगोशियां...सर को झुका दे शर्म से,ऐसा कोई लफ्ज़ नहीं है यहाँ....

सरगोशियां...किसी का अपमान कर दे,ऐसी कोई मंशा नहीं है यहाँ...

सरगोशियां...नफरत दिलों मे भर दे,ऐसा कोई सन्देश नहीं है यहाँ...

सरगोशियां...तीखे शब्द चुभो दे,ऐसा कुछ नहीं है यहाँ...

सरगोशियां...दिलों को प्रेम-रंग से सज़ा दे,बस पैगाम यही है यहाँ...

सरगोशियां...वफ़ा के उच्चतम पायदान का मेला लगता है यहाँ...

सरगोशियां...सजना को समर्पित हो जाए,बस इतना  ही है अनुदान यहाँ...

सरगोशियां...पिया की याद मे अश्रु-धारा बहा दे,मासूमियत इतनी है यहाँ...

सरगोशियां...भोलेपन की मिसाल क्या है,उस की कहानी लिखती है यहाँ...

सरगोशियां...समंदर को भी खारे से मीठा कर दे,ऐसी नदिया बहती है यहाँ....

सरगोशियां...भीगी बरखा मे संग संग खुद भी रो ले,खुद का दर्द छुपाना होता है यहाँ....

सरगोशियां...फक्र से कहती है आप सभी से,मेरे संग संग चल ना...शब्दों की अनमोल कहानियाँ है यहाँ...


 प्यार का यह कौन सा मुकाम है..जहां उजड़ा है चमन और रोता हुआ आसमान है..हर बसती है वीरान 


और हर कोई टूटा हुआ इंसान है...लगता है,यहाँ प्यार की शहनाई कभी बजी तक नहीं...यहाँ फूलों पे 


निखार तक नहीं...बाग मे किसी प्रेमी-जोड़े के कदमों के चलते निशान भी नहीं...ढूंढ रहे है इसी बसती 


मे किसी प्रेमी-जोड़े को...लेकिन यह शहर मुर्दा-दिलों का मुकाम ही है...यहाँ काम हमारा क्या..अपने 


ज़िंदा-दिल को यहाँ बरबाद क्यों करे...जहां दस्तक खुली साँसों की ही नहीं...

Wednesday 27 January 2021

 देह तो चाँदी सी थी,पर मन तो काला था..फिर क्यों सोचा कि यही तो प्यार का बोलबाला होने वाला था..


प्यार की पहली मंज़िल पे जरा रुक के तो देख,यहाँ सूरत से कही जयदा दिले-नादान का पहरा है..मन 


जितना उज्जवल उतना ही प्रेम गहरा और गहरा...खूबसूरती के कसीदे तो वो पढ़ते है जो सिर्फ देह की 


जरुरत से प्रेम करते है...प्रेम मे जिस को सिर्फ नख-शिख ही दिखाई दे,वो प्रेम को सिर्फ गाली देते है...


प्रेम रूहों का अटूट बंधन है,रूप तो बरसो बाद ढल ही जाते है...देह-प्रेम कोई प्रेम नहीं..जो पूजा के 


मनको मे सिमट जाए,जो रात-दिन उसी की सोच मे खो जाए..प्रेम तो ऐसा ही होता है....

 नफरत..जलन और ईर्ष्या से कोसों दूर है ''सरगोशियां'' मेरी...प्रेम के करोड़ो अरबो रंगो से अभिभूत है 


''सरगोशियां'' मेरी...यह सिर्फ ढाई अक्षर नहीं प्रेम के,यह तो भरे है ढाई करोड़ से भी जयदा जज्बातों 


से भरे..पर नफरत,जलन,ईर्ष्या को आने की इज़ाज़त नहीं देती ''सरगोशियां'' मेरी...प्यार मे इन की जगह 


होती नहीं और गर होती होगी तो प्रेम की तौहीन ही होगी..और ''सरगोशियां '' तौहीन को जगह अपने 


पन्नों मे नहीं देती...तभी तो धरा से जुड़ी है ''सरगोशियां'' मेरी...कितने है दीवाने इस के कि मेरी 


''सरगोशियां'' है ही इतनी प्यारी...

Tuesday 26 January 2021

 आंख से इक मोती निकला..जैसे ओस की बून्द का इक पत्ता गालों पे ढलका...मुस्कुरा दिए कुदरत की 


मेहरबानी पे और हर सांस को उसी की नियामत समझा...खुल के जीने के लिए सिर्फ उसी की मेहर तो 


चाहिए...दुनियां तो आंसू देने मे कसर नहीं छोड़ती...मुस्कुराने की,खुश रहने की कोई खास वजह नहीं 


चाहिए होती...उस का साथ हो तो सकून और ख़ुशी खुद ही मिल जाती है...किसी गरीब को हंसा दिया 


तो दिन का सुंदर आगाज़ हो गया..खिलखिला कर हँसे तो दुनियां को दर्द हो गया...बेपरवाह जी कि उस 


की मेहरबानियों पे दुनियां की कोई नज़र नहीं लगती...

 दिल को हर दर्द और तकलीफ से आज़ाद कर कि जीवन बेहद सुंदर और पावन है...तुझे हज़ारो चाहे 


या करोड़ो,क्या फर्क पड़ता है..बस खुद को बेपनाह प्यार कर और अपनी मस्ती मे जी.. मतलब के बिना 


इस दुनियां मे कोई किसी को प्यार नहीं करता...प्यार तो क्या बात भी नहीं करता...खुद को देह आईने मे,


यही वो शख्स है,जो तुझे बेहिसाब चाहे गा...वो भी बिन मतलब के...खुद को संवार इतना कि मंज़िले खुद 


चल के आए खुद इतना..आँखों का पानी और हिम्मत ना सूखने देना..यही सच्चे साथी है तेरे...इन को प्यार 


हमेशा करना..............


 कच्ची उम्र और अल्हड़पन...हिरणी की तरह भागती-दौड़ती इक बाला...शहर से कोई परदेशी आया...


लुभा लिया अपने प्यार के मोह-पाश मे..एक रही तृष्णा ऐसी,वो हुई संगनी उस की..शहर के लोगो की 


कैसी माया,झूठ-मूठ का साथ था ऐसा...छला उस हिरणी बाला को..मंगलसूत्र का रिश्ता तोड़ा और जबरन 


बंधा घुंगरू का पांव मे जोड़ा...वो बेबस थी,देह का सौदा हर रात ही होता...बरसो बीते,कोई परदेसी फिर 


से आया..रूह पे लगे घाव को सहलाने आया...''देह का कोई मोल कहां..तुम आज भी रूह से पावन हो''


यह भी कैसी लीला है..एक ने उस को देह-बाजार मे बेचा तो दूजे ने उस को रूह का मोल समझाया..


 

 प्रेम का यह बंधन कैसा था..वो जागी रात भर उस के लिए...और सितारों से परे इक शहर मे,वो भी उठा 


था रात भर सिर्फ उसी के लिए...ना कोई रिश्ता था..ना बंधन का कोई नाम था..करोड़ो की दुनियाँ मे 


वो इक अनजान सा नाम था..बस उस को पता था कि यह नाता कुदरत ने सदियों पहले तय कर रखा 


था...इबादत का रंग चढ़ा जो सर उस के वो कुछ अलग ही था...ना कुछ पाने की इच्छा,ना कभी उस से 


मिलने का कोई वादा..पर बेनाम सा यह बंधन था कैसा..ना देखा..ना जाना मगर रूह के तार का अटूट 


नाता-रिश्ता...

 नफरत की दीवार तो तब खड़ी होती,जब मुहब्बत की नींव सिर्फ जिस्म की जरुरत होती...वो शुरुआत 


तो पूजा की थाली से जुड़ी थी...जिस मे हाथ जुड़े थे खुदा के आगे,शुक्राना देने के लिए...वो शुक्राना था 


कैसा,जहां आँखों मे ढेरों आंसू थे...हर आंसू कर रहा था वादा,दूर तक साथ निभाने का...दिल हुआ जा 


रहा था निर्मल और मुहब्बत का पहला कदम अपने सजना को समर्पित था...चेहरे पे नूर था गज़ब का...


जो दे रहा था मात हर उस नियामत को..जो हम को दिया यह तोहफा,मालिक ऐसी किस्मत सब को देना..

 ख़ुशी और सुख की उम्र तो बहुत छोटी होती है..यह मान कर हम ने ग़मों को अपने गले,प्यार से लगा 


लिया...यह ग़म भी माशाअल्लाह कितनी उम्र ले के आते है...कितनी मिन्नतें करते रहो,जल्दी कहां जाते 


है...हां,कभी एक ग़म को तरस आ जाता है तो चला जाता है..पर जाते-जाते कुछ और ग़मों को दामन 


मे इक सौगात बना छोड़ जाता है...वल्लाह वल्लाह..ग़म तू भी लाजवाब है...कम से कम ख़ुशी-सुख की 


तरह जल्दी जाता तो नहीं...उन की फ़रेबी तो नहीं..तुझ से निपटने के लिए बस हिम्मत चाहिए..यही तो 


तेरी ख़ासियत है ग़म मेरे.... 

Monday 25 January 2021

 किसी की मासूमियत देख आंख मेरी भर आई....'' भूख से बेहाल हू ''...यह जान आत्मा मेरी दर्द से रो 


आई...कचरे मे बीनते-ढूंढते अन्न के टुकड़े,उस गरीब को देख ज़मीर की आवाज़ बिलख आई...भूख 


का प्रश्न कितना बेबस और लाचार होता है..इस का उत्तर पूरी तरह कहां पूरा कर पाई...उस का पेट 


भरा तो आंखे उस की गहरी चमक से भर आई..दिया दुलार थोड़ा सा तो अपनेपन की महक उस से 


आई...भूख का यह सिलसिला,अन्न की गर्मी से ढक जाए..काश,कोई गरीब कभी भूखा ना सोने पाए..

 जिस्म की ईमारत पे खड़ा वो प्यार था या सिर्फ छलावा था..सोच कर आंखे भर आई उस की...जिस्म तो 


जिस्म है,रूह की बंदिशों से परे...रूह तो निखरी-निखरी और मासूम है..किसी देवालय की तरह...जिस्म 


तो किसी रोज़ मिट जाए गा,सूखे पत्तो की तरह...रूह मे समेटे इस प्यार को,वो साथ अपने ले जाए गी...


जन्म जितने भी ले गी, इसी मासूम रूह के साथ नए जिस्म को लाए गी...रूहानी-एहसास प्यार का, वो 


फिर से उसी को याद दिलाए गी...जीना तो तेरे ही संग था हर जन्म,यह बात दोहराए गी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...