भारी सी पोटली आंसुओ की फ़ेंक दी कचरे के डिब्बे मे..कोई काम नहीं तेरा अब मेरे पास,जा दुनियां के
किसी और वीरान कोने मे...हां,जाते-जाते इतना तो सुनती जा..तेरे दिए दर्द-दुखों से अब मेरा ना कोई
वास्ता...बहुत समझाया तुझे कि मेरा रास्ता तुझ से आगे और तुझ से परे है बहुत जुदा...पर मेरी किस्मत
पे तूने जाल बिछाया ऐसा और मैंने हर बार तरस खा कर तुझ को फिर से अपनाया...हंसी के लम्हे बेशक
थोड़े होंगे पर तेरी तरह रोनी सूरत वाले तो नहीं होंगे...बहुत सोच कर पोटली समेत तुझे तेरे दर तक छोड़
दिया..गुजारिश इतनी,दफ़न यही हो जाना..फिर किसी के दिल को इतना न रुलाना...