सवाल तो दिल मे रौशनी होने से था मगर उन्हों ने दिल मे चिराग ही जला लिए...हम ने तो सोचा था कि
वो बहुत समझदार है मगर उन्हों ने दिलों के मायने ही बदल दिए...क्या समझाए आप को कि दिल
मुहब्बत मे जला नहीं करते...दिल के रौशन-दान मे दिए हमेशा इबादत के जलते है...चिराग ना जलाइए
यह मुहब्बत को तबाह करने की निशानी है..दिया रौशन कीजिए और मुहब्बत को कामयाब कर दीजिए..
मिसाल मुहब्बत की ऐसे नहीं बना करती...जहां एक दिल दूजे के दिल से ही रौशन हो जाए,बस यह
मुहब्बत क़ुरबान की सीढ़ी वही पे चढ़ती है...