Thursday 30 January 2020

 कभी यू ही गुनगुना देना और बचपन की मस्ती मे खो जाना..कभी एक अल्हड़ बाला की तरह आईने

के आगे खुद को निहारते रहना..अपने रूप को देख खुद ही खुद मे खो जाना..बेवजह मुस्कुरा देना...

कभी प्रेयसी बन मेहबूब को समर्पित हो जाना..कभी दिनों तक नाराज़ भी हो जाना..आईना जो देखे

तो सूरत उन्ही की नज़र आना..क्या कहे हम कैसे है..अब जो है जैसे है,बस खुद मे ही दीवाने मस्ताने

है..
 बुझ रहे है चिराग मगर हम को तो रात भर जागना है..इंतज़ार करते करते भोर तक जागना है..इन

आँखों को रात होने की खबर ना होने पाए,चिरागो को ना बुझने का हुक्म सुनाना है..पलकें बेशक

भारी होती रहे,इन को भी रात भर जागने का सन्देश देना है..दिल जो इंतज़ार मे गिने गा खुद की ही

धड़कनें,पिया के लिए इस को भी तो कुछ करना है...अश्कों को ना बहने की हिदायत है,यह हुक्म

उसी ने सुनाया है..अब क्या करे,इस रात को दिन जो बनाना है...  

Wednesday 29 January 2020

किस धर्म के है,मालूम नहीं...किस जात के है,मालूम नहीं..उम्र के किस दौर मे है,यह भी तो मालूम

नहीं..रूह के अपनी पास है..छल की बाज़ियो से बेहद दूर है..तुझे चाहा है,अनंत काल का साथ है..

मन मे कुछ छुपाना भी है,सब तुझे बताना है..खामोश रहना है तो रहना है..गुस्से की सीमा मे रहना है

तो बस रहना है..कांच की तरह टूट भी जाना है..रोना है तो सैलाब को भी मात दे जाना है..राधा बन के

जीना है..मरने पे आए तो तेरे लिए ख़त्म भी हो जाना है..साँसों को खुद ही तोड़ देना है..
देखा आज इक ऐसा चेहरा,खूबसूरती का उस पे ना था कोई पहरा..मिले ऐसी शख़्सिहत से आज,जिस

पे तहजीब और संस्कारो ने बना दिया देव स्वरुप के जैसा...कितने खूबसूरत चेहरे देखे,मगर जो बात

इस चेहरे मे देखी..तो फ़िदा हो गए..कोई रूप-रंग नहीं..पर वो सलीका,वो अदब से बात करना..गरूर

तो जैसे छुआ भी नहीं..कायल हो गए उस की बातो के,कायल हो गए उस की शराफत के...नज़रो का

इतना साफ़ होना,हम को बहती नदिया की याद दिला गया..
पूछा हम से किसी ने..इबादत के मायने क्या है आप के लिए...''इबादत,जो झलक रही है हमारी आँखों

से किसी के लिए..इबादत,जो मांग रही है ख़ुशी अपने प्यार के लिए..इबादत,जिस ने खुशिया मांगी

सभी के लिए..जहां दर्द मिले,उन के भी लिए..मायने तो इबादत के मालूम नहीं..बस किसी को यू ही

हंसा दिया तो कभी किसी पत्थर इंसान को भी जीना सिखा दिया..इक दीपक जलाया मंदिर मे और

भगवान् के आगे अपना सर झुका दिया''.....
वो दिन वो लम्हा,प्रेम की पहली पहली भाषा...देख के जिस को दिल मे कौंधी बिजली और धक् धक्

से यह दिल बेताब हो आया..प्यार से किस ने किस को पुकारा..जन्म जन्म की प्यासी रूहे,मिलने लगी

इस बार फिर दुबारा..वो थी उस की वही पुरानी राधा,पर वो अभी कृष्ण पूरा नहीं बन पाया..पगी प्रेम

मे राधा,विरह की आग मे जले गी फिर दुबारा..मिलन अधूरा,साथ अधूरा..मगर प्रेम राधा का है पूरा..

जब तक तुम ना चाहो गे मुझ को मन और रूह से,तब तक इंतज़ार करे गी तेरी यह पगली राधा...
ना तो खवाब देखे ऐसे, ना ही सपने बुने ऐसे..जो पूरे हो ही ना सके..बस देखा हाथ की लकीरो को,और

खामोश रह गए..जिस ख़ुशी को देखा तो बहुत करीब से,महसूस किया रूह की धार से..नसीब के इस

खेल को हम ने समझौता समझ,दिल से कबूल कर लिया..समझौते तो करते ही आए है,फिर इस बार

इतना दर्द क्यों महसूस हुआ..शायद हवा की यह महक बहुत खूबसूरत है,जो हमारी रूह के भी बहुत

करीब है...पर खवाब तो खवाब है,जो सिर्फ देखा जाता है..आंख खुलते ही टूट भी जाता है..

Tuesday 28 January 2020

मुहब्बत नाम सिर्फ पिया की बाहो मे झूल जाना,यही तक नहीं..दौलत और जवानी के रहने तक ही,

मुहब्बत का नाम देना,यह भी मुहब्बत नहीं..ग़लत-सही राहो पे प्यार से थाम लेना,ना माने तो झगड़

लेना..कभी माँ की तरह डांट देना और फिर कभी इक अल्हड़ किशोरी की तरह खुद को पिया के

हवाले कर देना..कभी इक मेहबूबा की तरह इकरार कर के खुद को मेहबूब को समर्पित कर देना..

दौलत ही सब कुछ नहीं,इज़्ज़त हासिल करना है बहुत कुछ,यह समझा कर फिर पिया का हाथ थाम

लेना..शुद्ध मुहब्बत मे कही कोई सौदा नहीं होता,जो है निःस्वार्थ नाता..वही तो मुहब्बत है..
खूबसूरती पे हमारे कसीदे ना पढ़..यह तो उस खुदा की नियामत है..पढ़ना है तो हमारे लफ्ज़ो को समझ,

जिस के लिए यह दुनियां आज भी पागल है..हर डगर हम ने चुनी खुद के भरोसे पर..रात रात भर जागे

डगर को खूबसूरत बनाने के लिए..कितनो ने कहा आगे बहुत अँधेरे है..जिसे खुद पे हो भरोसा वो कब

बुरे हालातो से डरते है..चलना है तो साथ मेरे चल,मगर किसी मज़बूरी के तहत नहीं..हम तो आज़ाद

परिंदे है,आखिरी सांस भी इसी डगर को समर्पित कर जाए गे...
वो रस्सी थी मजबूत बहुत,और हर मोड़ पे उस के सख्त गांठे थी...खोलने लगे गांठे,क्यों कि रस्सी

की हम को जरुरत थी..मोड़ भी थे इतने भारी कि खोले तो कैसे खोले...हाथ पल भर मे छिल गए 

हमारे..आए जब अपनी आन-बान और शान पे,परवाह हाथो के छिलने की नहीं की हम ने ..हार जाए,

यह हमारी किताब मे लिखा ही नहीं..ज़िंदगी ने ढाढ़स बंधाया और हम ने धीरे धीरे तमाम गांठो को

सुलझा दिया..रस्सी मजबूत रहे,यह वादा हमारा खुद से था..क्या कहे खुद से कि एक जंग हम ने और

जीत ली..

Monday 27 January 2020

कभी नन्हे नन्हे पगो को चलाते रहे..कभी उम्र की नाज़ुक दहलीज़ पे रहे,किशोरों को नेक सलाह देते

रहे..तो कभी जीवन की अलबेली बेला मे,नेक इंसान बनने का पाठ पढ़ाते रहे..किसी की ढलती उम्र

को इक नया आयाम देते रहे..खुशियाँ सब को मिलती रहे,इस के लिए अपने खुदा से हिम्मत बराबर

मांगते रहे..दुनियाँ ने पूछा,कैसे कर लेते है यह सब,उम्र क्या होगी आप की..हम ने हंस के कहा,सूरज

तो चमक रहा है सदियों से..सूरज के तेज़ और नूर की कोई उम्र नहीं होती...

Sunday 26 January 2020

पन्नो पे लिख रहे है कब से,याद भी नहीं..जुड़ा रिश्ता इन से और हम दुनियां से अलूफ हो गए...कि कोई

रिश्ता इन से जयदा वफादार मिला ही नहीं..हम रोए तो यह साथ रो दिए हमारे..हम जो खुश हुए तो यह

और करीब हो गए हमारे..इन को ना मतलब रहा हमारे रुतबे से,दौलत से..ना खूबसूरती से..यह तो सच्चा

साथी बन कर हम को सच्चा प्यार देते रहे..शोहरत मिली तो भी यह सहज रहे,आसमां को छूने लगे तो भी

दुलार उतना ही देते रहे..इन के कायल हुए इतना कि सज़दे मे दो अश्क इन को समर्पित कर दिए...
गुजरता रहा कारवां और हम देखते रहे..मगर साथ चले नहीं किसी के,अपनी खुद्दारी के साथ वही रहे..

तमाशा और नज़ारा ही कुछ ऐसा था कि मुस्कुराने पे हम मजबूर हो गए..भागमभागी देखी चंद सिक्कों

के लिए,कुछ भागे हसरतों को पूरा करने के लिए...सकून के नाम पे था कुछ भी नहीं..सिक्के भी कभी

सकून देते है..सिक्कें जब तल्क़ इकट्ठे हुए,सकून और हसरते मर ही गई..मुस्कुराए फिर से हम,सकून

की थाली पास हमारे थी..सिक्कें इकट्ठे ना हुए तो क्या हुआ,खुदा की बरकत पास तब भी थी,आज भी है..

Saturday 25 January 2020

हवाओं के रुख हज़ारो देखे..सब मे नमी के रंग के सिवा कुछ ना देखा..हज़ारो चेहरे देखे,आँखों मे

किसी के कोई सच्चे भाव ना देखे..कही प्रेम नहीं,कही वफ़ा भी नहीं..तू है साथ तो कितनी और साथ

है,फिर भी सभी से प्यार के इज़हार है..कमाल है,यह भी कोई प्यार है..प्यार कोई खेल नहीं,जो सभी

से खेल लिया जाए...प्यार वो जो रूह को छू जाए,किसी और के ख्याल भी दिल मे ना आए..कहां है

यह प्यार,कहां है सिर्फ एक के साथ,कहां है सच्ची वफ़ा..''सरगोशियां''तू बता ना इन सब को,प्रेम की

शुद्धता होती है कैसी,झरने के बहते नीर जैसी..
''सरगोशियां इक प्रेम ग्रन्थ''  जिस का हर शब्द,यह शायरा जब जब लिखती है..शब्दों मे डूब कर ही लिखती है..शायद मेरी कलम से लिखे लफ्ज़ो ने,कभी आप को रुलाया होगा,कभी दर्द भी दिया होगा तो कभी प्रेम के अहसास को महसूस करने पर मजबूर भी किया होगा..एक कलाकार,एक लेखक जब भी पन्नो पे उतरता है,लोगो के मन मे उन की रूह को छूने की कोशिश करता है..लफ्ज़,शब्द..जिस के लिए आप रोज़ इंतज़ार करे,उन की गहराई को महसूस करे...कभी यह शब्द खुद से जुड़े लगे..तभी इस शायरा को लगे गा कि उस की लेखनी सम्पूर्ण है...अपने उन सभी दोस्तों का तहे-दिल से शुक्रिया करती हू,जो रोज़ाना मेरे लफ्ज़ो को पढ़ते है..अपनी प्रतिक्रिया भी लिखते है..जो सिर्फ पढ़ते है,कुछ लिखते नहीं..उन का भी शुक्रिया..पढ़ते तो है..एक लेखक यही आ कर भाग्यवान हो जाता है,जब उस की लेखनी को सम्मान मिलता है...दोस्तों,मेरे लेखन मे कोई कमी नज़र आये तो भी बताना मत भूलिए गा...आभार...   आप की अपनी शायरा 
कलम को रोक सकते हो मेरी तो रोक कर देख लो..स्याही इतनी गहरी है कि मिटा ना पाओ गे..

गुनहगार नहीं किसी के..पन्नो को यह दिल की स्याही रौशन करती जाए गी..मासूमियत से जीतते

आए है कितने ही दिलो को,पर अपना सम्मान भूल नहीं पाए है..दुनियां को सिखाने आए है शुद्ध प्रेम

की परिभाषा..शायद किसी को तो कुछ सिखा जाए गे..प्रेम जो राधा ने किया,प्रेम जो मीरा ने किया..

जो पी गई विष का प्याला,ऐसा प्रेम इस कलयुग मे नस्लों को सिखा जाए गे..

Friday 24 January 2020

कुछ पूछे तो चुप है आप..किसी सवाल का जवाब क्यों नहीं आप के पास..सवाल के जवाब मे खुद इक

सवाल बन जाना,यह कौन सी अदा है जनाब..कभी कुछ पूछने पे हंस कर बात टाल देना या फिर खास

अदा से हमारी तारीफ कर के,हम को बातो मे उलझा देना..मगर भूले से भी हमारी पूछी किसी बात का

कोई सीधा जवाब कभी न देना..कब तक..हां हां..कब तक ऐसे साथ हमारे चल पाए गे..वक़्त तो ऐसा

भी बहुत जल्द आए गा,पूछते रहे गे आप बहुत कुछ मगर हम खामोश हद से जयदा हो जाए गे ..
कठोर खदान का कठोर है पत्थर..तराश तराश कर हीरा बनाने की कोशिश मे जारी है..मेहनत करनी

है बहुत जय्दा कि पत्थर कठोर बहुत ही जयदा है..कहां से तराशे,किस तरह तराशे..उलझन तो बहुत

जयदा है..कहते है ना,कोशिश शिद्दत से गर की जाए तो यक़ीनन रंग लाती है..फिर हम हार मान जाए,

जिस ने कोशिश करने की ठान बैठी है..पत्थर से कम तो हम भी नहीं,चोट तो हमारी भी बहुत गहरी है..

जीत तो हमारी होगी कि ज़िंदगी मे हार कभी नहीं मानी है..

Thursday 23 January 2020

बादलों ने क्या धमाल मचाया है..यह सारा आसमां इस की धुंध से घिर आया है..मजबूरियां है इतनी कि

चाँद है आज बादलों के इस पार और चांदनी  है बादलों के उस पार..खामोश रहना है दोनों को,बादलों

को अब कैसे मनाना है..कितने दिन बादलों को ऐसे रहना है,सोच चांदनी उदास है..कश्मकश मे है

चाँद भी,जानता है कि बादल चार दिन मे छट जाए गे..पास फिर होगी उस की चांदनी और अपना समां

मुबारक फिर बनाए गे...

Wednesday 22 January 2020

सजाया खुद का आंगन खुद की रौशनी से..और बिंदास जीते रहे..मतलबपरस्त है यह दुनियां,जान के

भी ख़ुशी ख़ुशी अपनी राह पे चलते रहे..चलना शुरू किया था अकेले,कब काफिला साथ हो लिया..

हज़ारो रो दिए हमारे आगे यह सोच कर,कि कुदरत ने हम को हर तरह से नवाज़ा है..दर्द तो हमारा

खुद का है,फिर किसी और को क्या कहते...बाँट दी कितनो को ख़ुशी और खुद तन्हा हो कर भी खुल

के हँसते रहे..आज भी खुद से बेहद प्यार करते है कि इस दुनियां मे किसी पे भी आंख बंद कर के

 भरोसा नहीं करते है..
तेरी गहरी ख़ामोशी दिल मे नश्तर चुभो जाती है..बहुत लम्बी ख़ामोशी दर्द भी गहरा दे जाती है..उम्मीदों

का मेरा जहां बहुत छोटा सा है..बेशक इस दिल मे तेरा बसेरा मुद्दत से है..शिकायत करने से डरते है..

यह बात नहीं कि तुम से डरते है..अदब से रहना है रुतबा हमारा..दिल मे कुछ भी ना रखना वज़ूद है

हमारा..इसलिए कभी इतना खामोश ना रहना कि दिल दर्द से भर जाता है..
भीग रहे है नैना तुझे याद करते करते..ना मिलते तुम तो हम यही समझ लेते,जितना मिला उसी मे

जी लेते..आईना हर बार आगाह मुझे करता रहा,तू बनी है किसी फरिश्ते के लिए...नैना जो कभी

खुले तो कभी बंद हुए,मगर तेरा चेहरा खुद मे बसाते रहे..वो चेहरा जो सदियों से हमारा है,वो नाम

जो जन्मो से हमारा है..किस्मत का यह खेल कभी समझ ही ना पाए..जिस के बिना जी नहीं पाते,वो

साथ क्यों नहीं मेरे..क्यों नहीं मेरे..
अनंत काल से जो बने थे इक दूजे के वास्ते..क्यों तक़दीर जुदा करती रही,दोनों को तड़पने के वास्ते..

ना साँसे वो पूरी ले सकी,उस के बगैर..ना वो रम पाया अपनी दुनियां मे उस के बगैर..भूले-बिसरे कभी

कभार तक़दीर मेहरबां होती रही..दो बोल बोले प्यार के और फिर जुदाई आ गई..वो समझाती रही,ना

हार हिम्मत कि अभी कितने जन्म आने बाकी है..इस जन्म तेरी सूरत भी ना देखी तो क्या हुआ..रूह तो

तेरे साथ है मेरी..कह तो दिया उसे मगर, रात भर उस के लिए फूट फूट कर रोती रही..

Tuesday 21 January 2020

उठना है गर ऊपर तो संभल कर चलना होगा..गर्दिश मे है आज सितारे तो भी,संभल कर रहना होगा..

सब कुछ गर मिल जाता आसानी से तो मेहनत भला कौन करता..खुद्दारी का पाठ बहुतों को सिखाया,

धरा पे जीना है,यह भी बताया..असूल कितने निभाए किस ने,संस्कारो पे कौन चल पाया..मंज़िल बहुतों

ने हासिल तो की..आसमां पे उड़े इतना कि धरा पे पैर थे कभी..यह भूल गए कितना..
हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती...हर खुशबू गुलाब की तो नहीं होती..हर घरोंदे को कैसे अशियाना

कह दे..दर्द जो उठता है बार बार इस सीने मे,इस दर्द को मुहब्बत का दर्द कैसे कह दे..रात तो रोज़

आती है,कभी लाती है बरसात तो कभी घोर अँधेरा भी तो ले आती है..हज़ारो रंग भरे है इस दुनिया मे,

रंग कौन सा पाक-साफ़ है..इबादत मे जब हाथ उठते है,बस इक वो ही समां होता है ऐसा, जब अपने

हर सवाल का जवाब उस खुदा से हम पा लेते है...
वो हल्की सी खनक मेरी बातो की..वो महकती खुशबू तेरी बातो की..कुछ तुम ने कहा,कुछ हम ने कहा..

वक़्त धीमे से दरमियां हमारे निकल गया..जाते जाते हज़ारो दिए मुहब्बत के जला कर,करीब हमें और

कर गया..सरूर है कितना इस प्यार मे,सर्द मौसम ने भी खुद हाथ बढ़ाया और गुफ्तगू के लिए रास्ता

खोल दिया..मुस्कुरा दिए वक़्त और मौसम की मेहरबानी पे,की बिन मांगे तूने हमारी झोली मे हमारा

फूल डाल दिया..

Monday 20 January 2020

जहां भी हो, हम तेरे साथ है इक साया बन कर..सूरज निकलना भूल सकता है..चाँद फिर भी रात भर

सो सकता है..यह हवाएं चलना भूल सकती है..यह फिजाएं महकना छोड़ सकती है..तुम गलत चलो तो

हम खफा तुम से हो सकते है..पर साथ रहे साए की तरह,यह कैसे भूल सकते है..अब तो पराया ना

समझ कि टूट जाते है..तेरी सलामती के लिए,खुदा से बस दुआए करते रहते है..
लाखों चेहरे देखे हम ने,किसी मे भी तेरा अक्स ना ढूंढ पाए हम..तू एक अकेला करोड़ो मे,कुदरत का

एक नायाब तोहफा..जिस को यह कुदरत बनाती नहीं बारम्बार..हम ने तुझ को कब देखा,रूह से सीधा

तेरी रूह मे पहुंचे..जहा बसे थे तुम और हम,अनंत काल की यात्रा कर के..बने कभी इक दूजे के साथी,

तो कभी बने रूहों के साथी..चेहरे बेशक फर्क फर्क रहे,मगर रूह तो हमेशा रही पुरानी..तभी बार बार

हर जन्म शुरू और खतम हुई,इक दूजे पर यह प्रेम कहानी..

Sunday 19 January 2020

वो अपनी सूरत पे हद से जय्दा गुमान करते रहे..और हम हर बार दिल उन का रखने के लिए,हां मे

हां मिलाते रहे..सूरत का क्या है,इस को जयदा दिन कहां रहना है..आखिर वक़्त के साथ इक दिन ढल

जाना है..आज बेशक कितनी और सूरतों को अपनी सूरत से लुभा ले..रातो को कितनो से गुफ्तगू भी

कर ले..तेरी सूरत मे ऐसा कुछ भी नहीं जो मुझ को मोहित कर ले..तुझ को ख़ुशी देने के लिए बेशक

तेरी सूरत की तारीफ भी कर दे..सच तो यही है,जो साथ दे अंत तक..साथी असली वही होता है..सूरत

को नहीं बस सीरत संभाल अपनी..
दुआ कबूल हुई हमारी और हम ख़ुशी से चहक चहक गए...बाबा का कहा सच हुआ,हम दूजो के

लिए फिर कुर्बान हो गए..यह कैसी दुआ दी हम ने,कि साँसे किसी की लौट आई..यू लगा जैसे किसी

की नज़रो मे हम एक फरिश्ता हो गए..धरा पे पांव रखना,बेशक ख़ज़ाने मिल जाए..बाबा की यह

नसीहत सर आँखों पे रखते आये है..गरूर क्यों करे कि उन्ही का सम्मान रखते आए है..बुरे बोल

कहने से बचते है,गर यह कही कबूल हो गए तो खुद को माफ़ कभी ना कर पाए गे..

Saturday 18 January 2020

काया पलट रहे है तेरी..फितरत बदल रहे है तेरी..वफ़ा की राह पे सिखा रहे है तुझ को चलना..अपने

ही रंग मे रंगते जा रहे है इतना,भूले से भी याद ना रहे तुझे कुछ अपना..अब यह मत कहना,जादूगर

हो या मेरे दिल का आईना..पूछिए गा तभी इतना जब दिल आप का खुद के पास हो इतना...चारो

खाने चित हो चुके है आप..कि काया क्या माया क्या,हर तरह से हमारे हो चुके है आप..
काफिर अदा बहकी नज़र..कदम जो चल रहे है अनजान देश की तरफ..देश जो कभी देखा नहीं,

सपनो का हिसाब कभी करते भी नहीं..महके बदन सिर्फ तेरे ख्याल भर से..नज़र झुक जाए तुझे

याद कर के...इबादत तेरी करे तो भी खुदा मान के तुझे..जिस को कभी देखा नहीं,उस की तस्वीर

बनाए कैसे..आड़ी-तिरछी लकीरे खींचते है,तस्वीर और सूरत का सिर्फ अंदाज़ा भर कर लेते है..
शहजादी नहीं है किसी भी देश के,फ़क़ीर भी नहीं किसी ख्याल से..मेहबूब है किसी के वज़ूद के..

किसी के दिल के बादशाह है,किसी के खयालो पे राज़ करते है..धड़कनों को तेज़ कर दे मेहबूब की,

नींद उड़ा दे उस की रातों की.. बुला ले उसे अपने ख्वाबो मे,कभी चले जाए मेहबूब की यादो मे..है

कमाल हम, बेमिसाल हम..तभी तो अपने मेहबूब के लायक है हम...

Friday 17 January 2020

रोज़ दर रोज़ प्यार को पिरो रहे है खूबसूरत रंगो मे..और इन रंगो को बिखेर रहे है दुनियां के हर कोने

मे...प्यार इस शब्द से अनजान है जो यह संसार..कभी मंहगे तोहफों से तौला जाता है यह प्यार..कभी

अच्छी सूरत के मोल-भाव से चलता है यह प्यार..मीठी-मीठी बातो के आगाज़ से होता है प्यार..किस ने

वयाख्या जानी इस खूबसूरत प्यार की..प्यार,जो रूह के अंदर बसे,प्यार,जो किसी खवाइश का मोहताज़

नहीं..जो साथी की ख़ुशी चाहे,जो प्यार मे मिटना जाने..बस वही प्यार है..
सज़दा करे गे ताउम्र तेरा खुदा मान कर..मगर गलत बात पे झुक जाए,ऐसा नहीं करे गे..कि खुदा कभी

दर्द देता नहीं अपने बन्दों को..हम बेवफा हो जाए,ऐसा होगा नहीं..तू बेवफा हो जाए,दूर हमेशा के लिए

हो जाए गे तभी..ताल-मेल है महीन धागो का,जो धागा बाँधा उस के दरबार मे,वो कितना पाक है..बस

ख्याल रखना इसी धागे का..उसी खुदा के है सब से पहले..सज़दा तेरा करना भी उसी से सीखा है..वफ़ा

है तो प्यार है वरना प्यार सड़क पे पड़ा इक किरदार है..
बात सवांरने की चली तो याद आया..सवारना अभी बहुत कुछ बाकी है..गुजरे जो तेरी गलियो से,तो

देखा तुझे ..तेरे वज़ूद को सवारना कितना जरुरी है...बिखरे और जगह जगह से टूटे इक पत्थर इंसान

को देखा..जज्बातों का कही नामो-निशा ही नहीं..है गर जज्बात तो उन को बयां करने का सलीका

 ही नहीं..किसी को आसमां पे बिठा देना और अचानक धरती पे पटक देना..चोट कितनी लगी,इस से

बेखबर चैन की नींद सोना..सँवारे गे तुझे इतना,जैसे हीरे को तराशा जाता है बस उतना..
कितने उठाए तेरे नखरे कि अब तो शाम जाने को है..क्या कहे तुझ को कि तेरी हर अदा अब भाने

को है..दिल जो अब बस मे ही नहीं ...दिमाग कुछ सोचने की हालत मे नहीं..नखरे अब जयदा तेरे

उठाए गे भी नहीं..मसरूफ हो जाए गे अपनी दुनियां मे,लाख पुकारो गे आए गे भी नहीं..नखरे तो

हमारे भी है..अदाओ की कारीगरी पास हमारे भी है...रूप का जादू हमारा कही भी चल सकता है..

तेरे नखरे अब तो तौबा तौबा....
गहरा श्याम वर्ण लिए तुम तो कान्हा हो..गहरी गहरी कारी अँखियाँ,अरे तुम तो बिलकुल कान्हा हो..

वही चपलता वैसे ही नटखट,दिल को लुभाने वाले मेरे प्यारे कान्हा हो..बात बात पे मुझ को सताना,

रोज़ रोज़ मुझ को रुला देना,यक़ीनन तुम्ही कान्हा हो..कितनी सखियां है आगे-पीछे तेरे,डालती रहती

कान्हा पे डोरे..जब जब कान्हा उलझने लगता उन मे,राधा आती पीछे पीछे..शुद्ध प्रेम की डोर से खिंच

कर आ जाता कान्हा राधा के पीछे..प्राण बसे है कान्हा मे मेरे,राधा की महिमा कान्हा क्या जाने...

Thursday 16 January 2020

क्यों ना घायल कर दे तुम्हे आज,इन कजरारी आँखों के तीर से..पिघला दे तुम्हे गेसुओं को खोल के..

यह कांच की छनकती चूड़ियाँ,आज टूटने को है तैयार..पायल की यह छन छन तेरी आवाज़ सुनने को

है बेक़रार..तेरी इन गहरी आँखों को ढाप दे अपनी नरम हथेलियों से...तुझे तेरे ही नाम से पुकारे तेरे

ही कान मे..अब यह ना कहना,फुर्सते-काम से बाहर आऊ कैसे..ज़िंदगी बेहाल है तुम को बताऊ कैसे..

मौसम सर्द बहुत है लेकिन,हम जहां बसते है वहां की वादियों मे बरसते है गहरी धूप के गहरे उजाले..
दौलत के ढेर पे ना बिठाइए हमे कि ग़ुरबत को बहुत करीब से देखते आए है..क्यों सजाना चाहते है

मंहगी पोशाकों से कि सादगी  की पोशाक से खुद को बरसो से सजाते आए है..यह आभूषण,इन का

क्या करे गे हम,खुद को आईने मे सदा से यू ही देखते आए है हम..दौलत के ढेर से फिसल कर गिर

जाए गे हम कि दौलत को कोई मायने नहीं दे सके है हम..बस ईमानदारी से भर दीजिए दामन हमारा

कि यह साथ अनंत काल के लिए सोच कर आए है हम...
आसमां जो बरसा है आज ज़ी भर के,साथ उस के हम भी बरस लिए ज़ी भर के..सिसकियां जितनी

भरी हम ने,उतने ही ओले जमीं पे बरसा दिए उस ने..खबर आसमां को शायद भोर से थी हमारी

उदासी की..दिन जैसे चढ़ा जितना हम रोए,यह आसमां साथ हमारे जोर से रो दिया..शांत है अब

हमारी तरह यह आसमां हमारा भी..साफ़ आसमां मे चाँद अब हम को नज़र आया है,देख उसे हम

मुस्कुरा दिए..तुझे देखे गे तभी सो पाए गे,गर आसमां फिर बरसा,हम तो बेमौत ही मर जाए गे..
स्वाभिमान जो आज इस मोड़ पे लाया है..आत्म-सम्मान जो डर को तोड़ता आया है..हां,कभी रो दिए

तो कभी किसी बात पे मुस्कुरा दिए..भावनाओं का खेल है,इंसानी रूप है..ज़ज्बातो के चलते कभी यू

ही इस ज़िंदगी के साथ चल दिए...कभी इस के लिए तो कभी उस की ख़ुशी के लिए,मरते मरते ही रहे..

कदम अपने खुद के कदमो से मिलाए और रानी झाँसी बन गए..ताउम्र रहे गे यू ही रानी खुद की बन के

कि रास्ते तो अब मुकम्मल हो गए...
साज़ जो बजता रहा बिन सुर और ताल के..जब जब बज़ा,अपनी ही पहचान के साथ मे..गर्दिशो के

ज़माने थे,मगर यह तब भी रहा अपनी शान मे...देने साथ अपना ,आए कई सुर-ताल भी..मुस्कुरा कर

किया उन को अलविदा..साज़ की पहचान तो खुद से है..साज़ है तभी तो आवाज़ है..चलना अकेले ही

है साज़ को,कौन सा सुर और कौन सी ताल..साथ आखिर तक कोई दे गा नहीं..दो दिन का साथ और

फिर जुदाई लम्बी..इतना सहना साज़ की फितरत ही नहीं..

Wednesday 15 January 2020

यह सुबह बहुत निराली हो गई..मीठे मीठे अल्फाज़ो से दिल के रास्ते भिगो गई..पूजा की थाली मे रखा

फूल,खुद ही अपनी मर्ज़ी से हमे अपनी महक से अंदर तक महका गया..शुक्राना करने के लिए जोड़े

हाथ तो फिर इक क़तरा आंसू का,आँखों से आ गया..ख़ुशी जो झलकी तो गालो को इन्ही बूंदो से भिगो

गई...कुदरत तुझे अब क्या कहे..तेरी मर्ज़ी हुई तो हम को कभी गम से रुला दिया..और कभी ख़ुशी

से हमारी आँखों को बेहद भिगो दिया...
क्यों होती जा रही है एक ही खता हम से यू हर बार..शायद बिखरे थे कितने अरसे से,खौफ मे जी

रहे थे..डर मौत से कभी लगा ही नहीं..बस ज़िंदगी को जीने से डरते रहे..दायरा जानते है अपना,

मंज़िल पाने की कोई ख्वाईश ही नहीं..जानते है तक़दीर ने मिलने की लकीर बनाई ही नहीं..तक़दीर

से तो शिकायत वो करते है,जो कमजोर होते है..हम तो तक़दीर को शुक्राना ही देते आए है,जो जितना

मिला हम को,वो कितनो को मिल पाता है..इंसान है कही ना कही खता हो ही जाती है..

Tuesday 14 January 2020

जज्बातो की रौ हम को कहां जीने देती है...पल पल रुलाती है ,तब जा कर कही इक छोटी सी ख़ुशी

झोली मे डालती है..जाने-अनजाने यह नन्ही सी ख़ुशी भी,हाथो से हमारे फिसल जाती है..खाली दामन

फिर लिए,इंतज़ार उसी नन्ही सी ख़ुशी का करते है..नन्ही है तो क्या हुआ,साँसों की डोर बंधी तो इसी से

है..बरसे भी तो कितना बरसे,आँखों के कोर थक भी तो जाते है..मगर उस नन्ही सी ख़ुशी के लिए,एक

बार फिर जीने लगते है..
हवा की डोर से रिश्ता बांधा हम ने..शाख के फूल को वफ़ा नाम दे दिया..जो फूल गिरते रहे इन शाखाओ

से,उन को भर अपने दामन मे दुलार नाम दे दिया...अब तो यह हवा खुद हम को मुहब्बत के नाम से

बुलाती है..देख आंसू मेरी आँखों मे,वो डर से काँप जाती है..डर से कितने बार हम खुद काँप जाते है,

तुझे कही खो ना दे,इस ख्याल से तुझे ख्याल मे ही सीने से लगा लेते है..मुहब्बत पुकारा है मुझे तो तुझे

प्यार से इतना इतना नहलाते जाए गे कि डोर कभी आप तोड़ ही ना पाए गे..
इन शब्दों की पाकीजगी कभी अपनी रूह की आवाज़ से रची..तो कभी आप की आत्मा को हाज़िर-नाज़िर

कर के रची..जब भी रची कोई रचना,प्रेम की शुद्धता को मद्देनज़र रख के ही लिखी..नाराज़ रहे कभी इस

दुनियां के दस्तूरों से या उदास हुए किसी की बेरुखी से कभी..तब भी बाते तेरी रूह से ही करते रहे..जो

हर लम्हा मेरे पास मेरे साथ ही थी..यह शब्द यू ही पाक-साफ़ रहे,चलना है इन्हे बहुत सदियों तल्क़...
दोस्तों..मुझे बार बार क्यों यह लिखने की जरुरत होती है कि ''सरगोशियां.प्रेम ग्रन्थ'' एक शायरा ,एक लेखिका के शब्दों की शान-अभिमान है..इस का मेरी या किसी भी अन्य की ज़िंदगी से कोई सरोबार नहीं है..अपने कुछ दोस्तों से गुजारिश है कि कोई भी निजी कमेंट ना लिखे जिस से इस शायरा की आत्मा उस की कलम को ठेस पहुंचे..प्रेम एक बहुत शुद्ध शब्द है,बहुत ही पवित्र..इस को गलत रूप से किसी की भी ज़िंदगी से ना जोड़े..मेरा उद्देश्य प्रेम की परिभाषा को गहराई तक लिखना है..ना मेरा उदेशय किसी के लिए लिखना है,न किसी के सम्मान को ठेस पहुंचना है..प्रेम,प्यार,मुहब्बत ...इस पे अगर कोई स्त्री लिखती है,तो गलत क्या है ? इस सरगोशियां को आगे ले जाना है मुझे,आने वाली नस्लों तक पहुँचाना है..सो,मुझे बार बार यह सब लिखने पे मजबूर ना करे..वैसे याद रखे,कि नारी-शक्ति कमजोर नहीं होती..उस की शक्ति बने,सहारा नहीं...शायरा 

Monday 13 January 2020

मेरे लिखे हर लफ्ज़ को पढने के लिए...शुक्रिया..''सरगोशियां.इक प्रेम ग्रन्थ''जहा लिखा हर लफ्ज़,हर किसी को अपनी ज़िंदगी से जुड़ा लगे..लफ्ज़ जो दिलो को अंदर तक छू जाए..लफ्ज़ जो अपने ही लगे..लफ्ज़ जो खुद का प्यार लगे...दोस्तों, मेरी शायरी के साथ जुड़ने के लिए तहे-दिल से शुक्रिया..आप की अपनी शायरा,लेखिका...
हज़ारो खामियों से भरे है,हज़ारो दर्द खुद मे समेटे है..कोई वज़ूद नहीं मेरा,किसी सीमा में ही नहीं है..

जो है जैसे है..ऐसे ही है..जो बुरा लगा कह दिया,जब खुश हुए तो हंस भी दिए..बस ज़मीर के सच्चे है..

इसलिए बार बार धोखे खा जाते है..अनपढ़ नहीं मगर चोटी के विद्वान भी नहीं है..सब समझते है पर

चालाकियों से कोसों दूर है..दुनियां के हेरा-फ़ेरियो को कभी कभी समझ नहीं पाते है..तुझ मे खोजा इक

सच्चा इंसान,अब कही यह हमारी कोई भूल तो नहीं...
झरने की तरह ही तो बहते आए है..अब तो यह भी याद नहीं,कब से बहते आए है..शायद अनंत काल

से...ना जाने कितने ही कंकर-पत्थरों से टकरा कर,उन को  उन की राहें दिखाते आए है..बहना ही जीवन

है,इस अर्थ को साकार करते भी आए है..फिर क्यों,क्यों...इक पत्थर के ऊपर से जो गुजरे,चोट खा गए..

दर्द से चीखे और बेहाल हो गए..होश तो तब आया,जब खुद पत्थर ने एहसास दिलाया,झरने हो..हक़ ही

नहीं तुम को रोने का..वो दिन सो वो दिन..हम ने नीर भी अपना,अपने ही नीर मे बहा दिया..
एक लेखक या लेखिका,जब जब इन पन्नो पे कलम ले कर उतरते है..वो सारे संसार से बेखबर हो जाते है...बस दिखते है तो बस लफ्ज़,दिमाग मे चलते है सिर्फ और सिर्फ लफ्ज़..और विषय हो जब प्रेम का ,तो यह कलम कही भी रुकना नहीं चाहती...कही भी नहीं..जब तक वो प्रेम की गहराई को छू नहीं लेती,तब तल्क़ वो इन पन्नो की ही रहती है..दोस्तों,मुझे ख़ुशी है कि आप सभी को मेरी कलम कि कदर है..बहुत सम्मान दिया है आप ने..गुजारिश करती हू,मेरी ''सरगोशियां'' के सात चले,साथ रहे..आप सब का साथ इस शायरा इस लेखिका को,मुकाम तक ले जा सकता है..शुक्रिया...आभार..आप की अपनी शायरा,लेखिका..
तू मेरे सिवा किसी और को चाहे,वो भी मुझ से जयदा..क़यामत आ जाए गी...मेरा प्यार किसी और पे

लुटा दे,यह तो मेरी बर्दाशत से बाहर होगा..एक एक लम्हा जोड़ कर हम ने,यह नन्हा सा जहां बसाया है..

हर तिनका चुन चुन के संभाला है..तेरी तीर सी चुभती बातो ने मुझे मेरे दिल को,कितनी रातो तड़पाया

है..कोई जवाब है तेरे पास मेरी तमाम गिलो का..पर मेरे पास हिसाब है तेरे हर कसूर का...

Sunday 12 January 2020

गहरी धुंध के बीच चमकती सूरज की किरणे..यू लगा जैसे सितारों की टिम टिम मे एक उजाला बिखरा

है ज़िंदगी मे हमारी..कहने को तो यह कुदरत का इक करिश्मा है,मगर खुद को इस मे डुबो कर देखा

 यह तो हमारे लिए इक नया सवेरा है..कदमो की चाप छोड़ आए है हर मोड़ पे,इस दुआ के साथ..जो

भी बाद हमारे आए इस राह पे,हमारी दुआ के घेरे मे आ जाए..बाबा कहते थे,मैं खुद इक करिश्मा हू

कुदरत का ऐसा ,जिस के लिए जो दुआ करे गे,वो पूरी होगी..इसलिए सिर्फ दुआए ही बांटते  आए है...
लुभा ना अपनी शक्लो-सूरत की गुस्ताखियों से मुझे..ना जाने कितने ही चेहरे रोज़ गुजरते है मेरी नज़रो

के तले..बात है बहुत छोटी सी मगर काम आए गी तेरे...संवारना है तो संवार जमीर को अपने,शायद

साफ़ जमीर देख हम रहने आ जाए  वहां कुछ अर्से के लिए..सूरत का मोल हमारे लिए कुछ भी तो नहीं..

अदाएं इन की कही से भाती भी नहीं..मोल तो हमारे लिए इंसानी जज्बे का है..मोल हमारे लिए दिल की

सच्चाई का है..अब यह तुझ पे है,शक्ल या जमीर..किस को संवारना है तुझे अब मेरे लिए...

Saturday 11 January 2020

क्या लिखे कि सौंदर्य...तुम कौन और कैसे हो..दुनियाँ के हर कोने मे हो,मगर कहां सम्पूर्ण हो..चेहरे

मोहरे को पोत दिया रंगो से,सजा लिया खूब सारे आभूषणों से..तो सौंदर्य इक पहचान बन गया..कभी

निहायत सूंदर पोशाकों से खुद को बना लिया खास और और सौंदर्य खिल गया कितने रंगो मे..सौंदर्य,

को हम ने परिभाषित किया चंद लफ्ज़ो मे..साधारण सा रंग-रूप,मगर बोलने के सलीके से भरा हुआ..

अदब की भाषा से महका हुआ,सिर्फ इक नज़र से जो दिल चुरा ले लाखो का,मासूम सी मुस्कान से

दर्द हर ले सभी का,हंसी खिलखिलाती जैसे झरना हो किसी पहाड़ का...
''प्रेम ही तो है जाने दीजिए ना'' यह अल्फ़ाज़ है या प्रेम का तिरस्कार है...प्रेम कोई सामान नहीं,जो हर

मोड़ पर बिकता हो..प्रेम किसी का गुलाम भी नहीं..प्रेम है इतना मंहगा,हीरे-जेवरात और करोड़ो की

कीमत भी खरीद नहीं सकती इस प्रेम को..जो बिक गया प्रेम मे,वो प्रेम भला कहां होगा..प्रेम नाम है

खुद्दारी का,स्वाभिमान का...प्रेम हासिल करना कोई खेल नहीं..जो झुक गया अदब से,जीता वही प्रेम

मे..ज़िद गरूर से कोसो दूर है प्रेम,पर जिस ने प्रेम की महिमा को जाना रूह से,बस वही करीब है इस

प्रेम के..रंग रूप उम्र रुतबा,किसी से कोई वास्ता नहीं इस मासूम से प्रेम को...
या तो झूठ बोलना छोड़ दे या तो फिर संग हमारे चल ले..तेरे झूठ की इंतिहा से अब बहुत थक गए है..

झूठ की कोई जगह नहीं होती इस प्यार मे,कितना और समझाए तुझे...पल पल जीना है या पल पल

खुद से खुद मे मरना है,ऐसी ज़िंदगी का फिर क्या करना है...सकून से जीने के लिए,इक सच बोलना

ही काफी है...झूठ के बोझ तले यह मुहब्बत कब तल्क़ साँसे ले पाए गी....तेरे लिए हर उस सच को

झेल जाए गे और हमारी मुहब्बत को कामयाब भी बना पाए गे...गुजारिश है,फिर ना कहना हम ने

पहले कुछ माँगा क्यों नहीं...

दर्द के समंदर से निकले बाहर फिजाओ मे...आज हवाओं मे कितनी खुशबू के रेले है..फूल ही फूल

कितने ही फूल..जो बिछे है हमारी राहो मे,हर कदम पे जैसे सज़दा हमीं का करते हुए..यू लगा एक

फरिश्ता है हम और फूलों की बारिश महका रही है हमे..यह खूबसूरत मंजर तो कभी सोचा ना था..

यह धमाके है खुशियों के या हम उड़ रहे है आसमान मे..धरा पे रहना मकसद है हमारा,मगर इन

फूलों को सिरे से नकारना बहुत मुश्किल है हमारे लिए..
सबक हज़ारो सिखाये तक़दीर ने मुझ को...कभी डुबोया दर्द के सैलाब मे तो कभी आसमां की बुलंदियों

तक पंहुचा दिया..थक चुके थे तक़दीर के इस खेल से,इसलिए ना कभी हंस सके ना खुल के रो सके...

शायद वजह रही यह भी कि हम इसी तक़दीर के लिए बहुत सरल बहुत सहज हो गए...इस के हर

फैसले को क़बूल करना जैसे इक खेल हो गया हमारे लिए..पर अब..बस ऐ तक़दीर...सुन जरा..एक

बात हमारी भी....जिंदगी और मौत मे फासला है सिर्फ इक सांस का..जो अब दिया दर्द ऐसा जो जमीर

के आर-पार होगा तो तेरी कसम ऐ तक़दीर,वो दिन हमारी ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा..
नख से शिख तक सज़े श्रृंगार की सीमा से परे..क्या क्या ना किया पिया को लुभाने के लिए...नाज़नीन

हो या ज़न्नत का कोई अफसाना,या फिर उतरी हो अभी अभी आसमां की ऊचाइयों से...खवाबों मे

खोए इतना कि सांझ घिर आई..यह सांझ क्या लाई है साथ अपने...सोच कर ही लजा गए...''श्रृंगार की

जरुरत तुम को क्या होगी,तेरे मन की सुंदरता ही मुझे क़बूल होगी...सादगी का तेरा रूप,मन का वो

उजला रूप..इस के आगे इस श्रृंगार के क्या मायने है'' सुना तो सुनते ही रहे,लाज को छोड़ पिया के

संग हो लिए..

Friday 10 January 2020

आप  ने सिखा दिया  इस दुनियाँ मे रहने का सलीका...नहीं तो शायद हम यूं ही बेरहमी के दरवाजे  पे

कलम से दस्तक देते ही रहते और कोई सुनवाई भी ना होती..दर्द की आहट तो कोई कोई ही सुन पाता

है..कलम की लिखावट भी कोई कोई पढ़ पाता है और पढ़ कर समझ पाता है...दिल की शाही कलम

से लिखा था मैंने और उस ने बिना पढ़े ही लफ्ज़ मेरे मिटा दिए...

Wednesday 8 January 2020

तरस से नहीं जो पाया स्वाभिमान से पाया..अभिमान नहीं स्वाभिमान,फर्क बहुत है इन दो शब्दों मे..

तरस ले कर जीना तो बेजुबानों और बेसहारों को भी नहीं सिखाया हम ने..तहजीब और असूलों की

राह सब को बताई,चलना है किसे यह मर्ज़ी उन की ..गुरु बन कर साथ नहीं चले किसी के..आज़ाद

परिंदो की तरह उड़ा दिया सब को,कोई कीमत अपने प्यार की किसी से नहीं मांगी हम ने..दुनियां

की रीत बेशक भूल जाना है,उम्मीद तो किसी से भी नहीं लगाई हम ने...
चल ही तो रहे थे अकेले अपनी राह पर..बेखौफ अंधेरो मे...लाखों थे आस-पास मगर हम,हम देख

रहे थे उन लाखों को..हर नज़र को परखना,हर नज़र पे नज़र रखना...ख़ामोशी से चलना मगर इक

मुस्कान अधरों पे रखना..किसी को दर्द हो,वजह से हमारी..यह सोच कर हम सहारो से बचते रहे..

खुद्दार है बहुत,इसलिए आत्म-सम्मान पे ही टिके रहे..बहुत कम हम को समझ पाए,जो समझे वो

दूर हम से हो ही नहीं पाए..तक़दीर का लिखा हम मिटाते कैसे कि बेखौफ अँधेरे ही हमे रास आए...
आज शब्द कहते है कुछ और कलम कहती है कुछ..दिल भी कह रहा है कुछ,दिमाग की सोच बोलती

है कुछ..लिखने के लिए अब क्या है,शब्दों ने फ़रमाया..कलम,हार जिस ने ना मानी कभी..सहारा तेरा ना

हुआ तो क्या ? कलम लिखना छोड़ दे गी..जमीं-आसमां कायम है जब तल्क़,यह सिर्फ लिखे गी और

लिखती जाए गी..हज़ारो मुद्दे है लिखने के लिए,मगर कलम प्रेम पे भी लिखे गी..संसार जो भूल चुका

है प्रेम के बलिदान को,प्रेम के अवतार को..प्रेम जो सब कुछ भूल कर भी,प्रेम मे लीन है..प्रेम ही जीवन

है,प्रेम ही तो पहचान है...

Tuesday 7 January 2020

साँझ पूछ रही है आने वाली रात से,कितना सकून देने वाली है तू, आज रात अपने सोने वालो को..

रात हंस दी साँझ पे ..क्या तुम ने पूछा बीते सवेरे से,क्या दिया उस ने ,जागे रहे जो उस के लिए...

पूछती हू तुम से भी साँझ रे,संवारा कितनो को आज अपने रूप से..कुछ भी पूछने से पहले बात

अपनी और सवेरे की कर..मैं तो रात हू,बेशक रंग से गहरी हू...मगर सुन साँझ और सवेरे,सब

थके-हारो को अपनी आगोश मे जब  जब भी लेती हू..भूलते है सब दर्द अपना,इंतजार ही इंतजार

होता है मेरा..सकून से सुलाती हू मैं,जो भी आ जाए मेरी आगोश मे...

Monday 6 January 2020

बहुत दूर यानी उतनी दूर,जहा आसमां ख़त्म होता हो..सितारों से परे जहा इक नया जहां शुरू होता हो..

तू कौन है और मैं कौन हू,इस का फैसला करने का वक़्त..ना तेरे पास हो ना ही मेरे पास हो..बेशक ना

मिले सदियों तल्क़,गुफ्तगू भी ना हो सदियों तल्क़...इक तार इक साज़,जो बिन बजे भी साज़ हो..प्यार

की ऐसी इंतिहा,जिस की खबर ना तुम को हो ना मुझ को हो..बेवफा तू ना हो कभी मुझ से,मैं वफ़ा की

मूरत रहू..बस इतना हमारे बीच हो,फिर चाहे तू कही हो मैं कही भी रहू..प्यार परवान चढ़ता रहे..

Sunday 5 January 2020

वादा तो खुद से और खुदा से भी रहा कि खुशियाँ इस जहान मे देते जाए गे..खुद को भूल कर हर उस

इंसान को हंसाए गे जो ज़िंदगी के गमो को सीने से इस कदर लगाए है कि रोनी सूरत हर वक़्त बनाए

है...अपनी कामयाबी का मंज़र कुछ ऐसा देखा कि मुर्दा-दिलो को भी ज़िंदगी के मायने समझाए है..

कुदरत सब को सब कुछ तो नहीं देती,इस ख्याल से उन सब को खुद की पहचान कराते आए है..

यह बात और है,कभी कभी किसी की बेबसी से खुद भी परेशां होते आए है..हमारा काम है जीवन

देना,फिर चंद लम्हो बाद हम फिर किसी मासूम की ज़िंदगी सवारने नई राह पे निकल आए है..
सब कुछ किया पर अपने लिए कुछ भी ना किया..खुद्दारी का साथ लिए किसी से कुछ मांगने का सोचा

तक भी नहीं...बहुत कुछ ऐसा हुआ,हम जिए दूजों के लिए..ले लिए दर्द उन के और दर्द अपने छिपा

लिए..किस्मत की लकीरों से परे,थोड़ी सी ख़ुशी पाई हम ने..और परिशुद्ध प्रेम की परिभाषा मे जान

डाल दी हम ने..रहने इस जग मे हमेशा नहीं आये है,आने वाली नस्लें समझे शुद्ध प्रेम की भाषा को..

यह सिखा कर हम प्रेम को,प्यार को,मुहब्बत को इक अलौकिक मुकाम दे जाए गे..
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है..तू पास नहीं मेरे,तू साथ भी नहीं मेरे..मगर सदियों से साथ

है मेरे..तू कितना है अपना,रूह के नज़दीक है कितना..खुद मे ग़ुम हो कर भी,तुझी मे ग़ुम है ..रुहे

तो हमेशा आज़ाद हुआ करती है..तुझे मिलने के लिए किसी रोज़ तेरे दर पे यह रूह आए गी..एहसास

तुझे तेरी गलती का बता कर,फिर लौट जाए गी..कोई शर्त नहीं होती प्यार मे,मगर आत्म-सम्मान की

बहुत जरुरत होती है प्यार मे..
दो जोड़ी नन्ही मासूम सी आँखों ने सवाल किया हम से..इतने बड़े जहान मे मेरा अपना घर कहाँ है..

जहाँ रह सकू मैं सकून से,ऐसा मेरा घर कहाँ है..सवाल उस जैसी बहुत सी आँखों का है..कितना गहरा

सवाल है..जवाब की आस मे वो मासूम आंखे देख रही थी हमारी तरफ..और हम जो सोच रहे थे,कि

अपने कष्ट का धयान रहा हमें..और वो जो घर और दो रोटी के हिसाब और कष्ट मे कितना मजबूर है..

फैसला दिल ने ऐसा किया,उस की रोटी और घर का वादा हम ने अपने भरपूर प्यार से कर दिया..

Saturday 4 January 2020

''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' को इतना प्यार-दुलार देने के लिए आप सभी का शुक्रिया..
आप की अपनी शायरा 
बाबा ने दुनियाँ मे जीने का इक नायाब पाठ पढ़ाया था...'' सूरत से जो चाहे गा तुम को,वो तुम को प्यार

सच्चा नहीं करे गा..जो समझे गा तेरे मन और रूह की कीमत,वो ही तुझे फरिश्ता समझ पाए गा..जो

भागे गा तेरी दौलत और रुतबे के पीछे,वो तुझ को कभी समझ भी ना पाए गा..बात बात मे,हर बार जो

तुम को नीचा दिखाए गा तो भला इंसान अच्छा कहा होगा..जो सच को छुपा जाये गा और तुझ को झूठ

से बहलाए गा,वो तेरी रूह का ही मज़ाक उड़ाए गा..'' बाबा ने दी इतनी आशीष कि आज भी उन की

याद भर से,हम हर तकलीफ से निकल जाते है..
माँ हमेशा कहा करती थी..''लीप-पोत कर तो दीवारें भी सुंदर हो जाया करती है..बेशक वो मौन होती

है..सौंदर्य तो वो होता है..जो धुला हो सिर्फ निर्मल जल से,सजा हो सिर्फ आँखों मे काजल की एक रेखा

से..पवित्र मन को साथ लिए,दूजों के लिए सच्चा भाव लिए..और साथ मे माँ का प्यार लिए,नूर उस

सौंदर्य पे जो आता है,वो हज़ारो सिंगार कर के भी कहा आता है'' माँ की बात सही है..आज जितने भी

चेहरे देखे है,वो सिर्फ और सिर्फ लिपे-पुते होते है..कोई नूर नहीं कुदरती उस मे,लोग फिर भी उसे

सौंदर्य समझ तारीफ किया करते है..

Friday 3 January 2020

जहा जहा रख रहे है कदम,निशाँ छोड़ते जा रहे है हर राह पर...रेत की चादर बिछी है जहा,रास्ते तो

बना दिए हम ने भी वहां..कदमो के थकने की परवाह अब किस को है,कदम तो अब पीछे मुड़ने से रहे..

लहू रिसे या घाव नासूर बन जाए,रुकने से अब नहीं रुके गए यह कदम..उजाला बिखेरना है उस छोर

तक जहा रौशनी भी कह दे,अब मेरे बस मे और कुछ भी नहीं..बस तभी होगा हमारा वो अगला कदम,

जहा उजाला कहे गा,तेरे सिवा मेरा कोई नहीं...कोई भी नहीं..
तेज़ हवाओं का सरूर है या बेबाकी इस मौसम की..हम ज़िंदगी तेरे और करीब और करीब हो गए..

जब तल्क़ है इन सांसो की रौशनी,तुझे बिंदास जी कर ही दिखाए गे..यह बात और है कि सांसे अभी

मोहलत और कितनी दे गी..अब दिन मिले चार या बरस मिले पांच,जीना है जिस उड़ान से,यह बात तो

ज़िंदगी तुझे भी समझ नहीं आए गी...कुछ तो ऐसा कर जाए गे,जाने के बाद दुनिया को तभी समझ आए

गे..अब यह ना पूछिए,कि क्या कर के जाए गे...
रात जो सरकने पे आई तो घूँघट क्यों सरक गया..बहुत गहरी ख़ामोशी मे,कोई चुपके से कुछ बोल

गया..लाज से शर्म हुए गाल तो मौसम क्यों बदल गया..पायल धीमे से खनकी और राज़ क्यों चूड़ियों

ने खोल दिया..पलकें जो उठ ही नहीं पाई,आँखों ने शरारत से अपनी सब देख लिया..यह सुर्ख फूल

मेरी बिंदिया की तरह,मचलने लगे अपने अरमानो के तले...रुक जा रात ठहर जा रे चाँद,भोर से पहले

क़यामत को आने तो दे..

Thursday 2 January 2020

प्यार की पराकाष्ठा को ना समझ पाए,तो क्या समझे..समर्पण को देह का मोल ही माना,तो देह का मोल

भी कहा समझे..मेरे मन की थाह ना समझे तो मुझे कहा समझ पाए..यह साँसे जो हर लम्हा जीती रही

सिर्फ तेरे लिए,उन का महकना तक ना समझ पाए..हम समझे तुम सब से जुदा हो..बिलकुल मेरे कान्हा

जैसे है,बस वैसे हो..पर तुम इंसानो की फितरत जैसे हो..राधा का रूप-रंग खुद मे समाया,पर इस राधा

को तुम ने फिर भी ना जाना..

Wednesday 1 January 2020

खुद का दर्द और खुद को भुला कर,जग को मुस्कुराना सिखाना है..यह मकसद लिए जहां मे इंसानो

से मिलने चले आए..कोई था बेरुखी से भरा तो कोई था अपने ही गरूर से भरा..किसी को ज़िंदगी से

मोह ना था..कोई कोई तो हमारी बात सुनने को ही तैयार ना था..सरल मन की सरल मुस्कान से उन

सभी को जीना भी सिखाया और हंसना भी सिखाया..कामयाब तो तब हुए जब एक पत्थर को आज

मुस्कुराते देखा..बहुत शिद्दत से बहुत मेहनत से,हम उस को सिखा रहे थे ज़िंदगी के मायने..आज जब

देखा उस को मुस्कुराते हुए,तो लगा सही मायनो मे हम कामयाब हुए..हमारा मकसद पूरा हुआ,अब

बेशक उस की नज़रे बदले या हमी को भूल जाये...
आईना क्यों गवाही दे रहा है ,कि हमारे हुस्न के चर्चे आज भी जहां पे भारी है...नज़रो का तीखापन और

आँखों के किनारे कजरारे..कहते तो कुछ भी नहीं,मगर इक मुस्कान ही हमारी काफी है..ना इस दुनियां

से है कोई मतलब,ना इंतज़ार किसी का बाकी है..जिस ने बनाया हमे,उसी का शुक्र करना ही काफी है..

बाबा की दुआ है या माँ  साथ है आज भी मेरे,नूर इस चेहरे पे जो कायम है,सिर्फ और सिर्फ है उन के तले 
आज तो तेरा ही दिन है,क्यों ना इस को तेरे ही नाम से रंग दे..दुनियाँ से क्या लेना-देना है,क्यों ना इस

दुनियाँ को ही कुछ हुक्म सुना दे..सजना भी नहीं,सवरना भी तो नहीं,दुल्हन तो तेरी है जिसे मेरा सजना

पसंद ही नहीं..आँखों मे काजल की इक रेखा और लबो पे मुस्कान,यही शृंगार किया है मैंने तेरे ही नाम..

तुम हो मेरी ऐसी दुल्हन जो ''पैदा होती है सदियों बाद '' यह बात जेहन मे हर पल रहती है..तुझे जब भी

मिलना है,बिलकुल वैसे ही मिलना है.. जैसे एक नई नवेली दुल्हन तूने मुझ को हरदम माना है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...