कभी यू ही गुनगुना देना और बचपन की मस्ती मे खो जाना..कभी एक अल्हड़ बाला की तरह आईने
के आगे खुद को निहारते रहना..अपने रूप को देख खुद ही खुद मे खो जाना..बेवजह मुस्कुरा देना...
कभी प्रेयसी बन मेहबूब को समर्पित हो जाना..कभी दिनों तक नाराज़ भी हो जाना..आईना जो देखे
तो सूरत उन्ही की नज़र आना..क्या कहे हम कैसे है..अब जो है जैसे है,बस खुद मे ही दीवाने मस्ताने
है..
के आगे खुद को निहारते रहना..अपने रूप को देख खुद ही खुद मे खो जाना..बेवजह मुस्कुरा देना...
कभी प्रेयसी बन मेहबूब को समर्पित हो जाना..कभी दिनों तक नाराज़ भी हो जाना..आईना जो देखे
तो सूरत उन्ही की नज़र आना..क्या कहे हम कैसे है..अब जो है जैसे है,बस खुद मे ही दीवाने मस्ताने
है..