Sunday 27 December 2020

 काजल ना भरो आँखों मे इतना,रात जल्दी गहरा जाए गी...ना भिगो गेसुओं को इतना,बरखा बिन मौसम 


ही बरस जाए गी...सोच जरा उन का जो शाम को रात समझ ले गे,तेरे सदके...और भीगे गे बिन मौसम 


बारिश मे,तेरे सदके....हुस्न कातिल है तेरा तो यू खुद पे ना इतरा...मखमली दुपट्टे से ढाप ले यह सुंदर 


चेहरा,चाँद खुद को समझ इस धरा पे उतर आए गा...हुस्न खिलखिला कर हंस दिया और यह इश्क,जो 


इसी हुस्न के सदके, उसी की गोद मे फ़ना हो गया....

 दूर ना जा मुझ से..यह बोल कर हम ने हवा को अपने दुपट्टे से बांध लिया...रहना सदियों साथ मेरे,मेरी 


हर सांस को तेरी बहुत जरुरत है..जान है मेरी जब तक,तेरा साथ बहुत जरुरी है...घुल रही है तू मेरी 


साँसों मे ऐसे,जैसे इंदरधनुष से सीधा मिल के आ रही हो वैसे...सतरंगी है तू,शोख भी है तू...जो एक मोड़ 


पे ना ठहरे,ऐसा अजूबा है तू..देर बाद हवा ने कहा मुझ से ''हवा हू,हर जगह चलती हू मगर तेरी बात है 


कुछ अलग...खुशबू की सौगात लिए हर पल बस तुझी से लिपटी रहती हू''....

Friday 25 December 2020

 देर रात तक ना जाग,कुछ अपनी अल्हड़ उम्र का  ख्याल कर..जवानी के साल बस बचे है कुछ थोड़े,


उस पे यू जुल्म बार बार ना कर...दिन के उजाले ज़िंदगिया बदल दिया करते है...रातो के अँधेरे बस 


बर्बाद ही किया करते है..ग़ज़ल की इक खूबसूरत शाम हो,जो सिर्फ तेरे और मेरे नाम हो...नगमे कुछ 


तुम सुनाना मुझे और हम गीतों की लय पे मदहोश हो जाए गे..ऊपरवाला सिर्फ सच्चाई देखता है...वो 


गलत मे ना मेरा है और ना ही तेरा है....

 मैं शाख शाख मैं ही पात पात...तू देखे जिधर,मेरा अस्तित्व है तेरे ही पास पास...छू ले कितनी बेखबर 


हवाओं को,वो साथ तेरे ना दूर तक चल पाए गी...अंधेरो मे जला दिए कितने,रौशन तेरे मन का आंगन 


मैं ही कर पाऊ गी...नफ़रत मुझ से करने के लिए,कलेजा अपना जरा मजबूत कर लेना...आरती मेरी 


उतारने के लिए,अपनी नज़र साफ़ पावन फिर से कर लेना...गन्दी हवाओं का साया मुझे मंजूर नहीं..


तेरे ऊपर कोई मैल जमे,वो सहना मेरी फितरत ही नहीं..क्यों कि मैं ही शाख शाख मैं ही पात पात...

 ऐसा तो नहीं कि पहली बार ओस की चादर मे बैठ कर रोए है...पर हां,आज पहली बार अपने आँसुओ 


की बहती चादर पे सोए है...करवट भी लेते है तो सैलाब फिर से दस्तक दे जाता है...हैरान है तो परेशान 


भी कि इन आँसुओ की तह कितनी दबी थी अंतर मे...मुस्कराहट दे कर कितनो को,खुद ख़ामोशी से 


जीते आए है..खबर किस को कि कितनी दूर अब निकल आए है...रात है कि खत्म होने को तैयार ही 


नहीं...शायद इस बांध के रुकने की इंतज़ार मे,सुबह भी अब तक नहीं आई है...





 जिस्म को जब जब ढाला रूह की आवाज़ मे..वो बहती नदिया की तरह शुद्ध और पावन हो गया....


रूह की आवाज़ इतनी बुलंद थी कि जिस्म खाक होने से पहले अलौकिक हो गया...कंचन काया का 


स्वरूप निखरा ऐसे कि पूजा अर्चना के लिए बेहद शुद्ध हो गया...अब ना तो इस का कोई मोल है ना 


कोई तोल है...यह तो अब अनमोल हो गया...दुनियाँ के लिए बेशक यह इक जिस्म होगा पर जो ढल 


गया रूह की आवाज़ मे,वो अब कोई जिस्म नहीं,यह तो मंत्रो की माला मे कब से विलीन हो गया...

Thursday 24 December 2020

 सर से आँचल का ढलकना और हवा का तेज़ होना..चलते चलते पाँव मे काँटा चुभना और आंख से आंसू 


निकल आना...काजल का इन आँखों से बिखर जाना और तेरी याद का सैलाब उमड़ जाना...इस पाँव 


का काँटा कैसे निकले,तुझे फिर से याद कर जाऱ जाऱ रोना...सहारा तेरा कब माँगा था,इक प्यार भरा 


साथ ही तो चाहा था...तेरी वो बोलती आंखे,तेरी वो शरारती बाते...तुझे कान्हा भी कह दे तो जायज़ होगा...


इस पत्थर-दिल दुनियाँ मे तेरा यू मोम हो जाना..और अचानक पाँव का यह दर्द ख़तम हो जाना...

 यह कौन सा अंदाज़ है जनाबे-आली आप का ...जी तो है मुस्कुराने का,पर लबों को बेदर्दी सी लिया..


वजह ना भी मिले हंसने की पर हम फिर भी खुल के हंस दिया करते है...दीवाना पागल यह दुनियाँ 


बेशक कहती रहे मगर पागलपन का यह अंदाज़ हमारा बहुत पुराना है...राह चलते किसी को देख 


मुस्कुरा भर दिए,उस को देख हँसता हम फिर अपनी राह निकल गए..पीछे मुड़ कर जो देखा तो वो 


अब तक ख़ुशी के माहौल मे था..जनाबे-आली,मुस्कुराने की कोई कीमत नहीं होती..जैसे यह ज़िंदगी 


कब ख़फ़ा हो जाए,इस की भी कोई गारंटी नहीं होती...

 बहुत गहन ख़ामोशी हो तो भी लफ्ज़ सुन ही जाते है...हज़ारो आवाज़े चीखती रहे मगर ख़ामोशी की वो 


आवाज़ जिस को सुननी है.उसे सुन ही जाती है..मौन भी तो इक सुखद भाषा है,बेशक हो उस मे गिले 


कितने..शिकवा तो यह ख़ामोशी भी कर देती है,बात सिर्फ ख़ामोशी की भाषा समझने की है...मौन हो 


या ख़ामोशी..फर्क सिर्फ इतना होता है..मौन को सुनने के लिए दिल प्यार से भरा होता है..ख़ामोशी की 


बात इतनी सी है,गिला हो या शिकवा कैसा भी...वो दर्द की राह आँखों से बह जाता है...

Tuesday 22 December 2020

 बहुत दूर से चल कर आना और उस पे तेरा मुझे गज़ब कहना...वल्लाह,गज़ब से भी गज़ब.. तेरा खुल के 


मुस्कुरा देना...यह बंद होंठ कभी कभी ही तो मुस्कुराते है..वरना हंसना तो दूर यह तो हर वक़्त शिकन 


माथे पे लिए,खुद मे खामोश रहते है...कभी देखिए ना जरा इन फूलों को,जो खुले आसमां के तले भी 


खिलते है..ओस की बून्द पड़े तो भी हंस देते है..सीखिए तो इन से यह भी,दो दिन की ज़िंदगानी है इन 


की मगर जब तक धरा पे ना गिरे,यह खिले रहते है...

 हर सांस के साथ पिरोते रहे,इस ज़िंदगी की माला...कभी रही फूल सी हल्की यह साँसे तो कभी दर्द के 


भार से भरी रही यह साँसे...खड़ी थी सामने यह ज़िंदगी.अरमानों की गठरी लिए...चाह कर भी इन साँसों 


का यह चलता काफिला रोक ही नहीं पाए...ऐ कुदरत,दे कोई इशारा अपना...भर दे या तो यह गठरी 


अरमानों की या इस गठरी को अंधेरो मे ग़ुम कर दे...करिश्मे तो तेरे कितने होते है...कभी दिखते है 


खुली आँखों से तो कभी पहाड़ो को चीर समंदर तक को भिगो देते है...

Sunday 20 December 2020

 ''राधा के अलौकिक प्रेम का अनंत सफर...सतयुग से कलयुग का''

राधा..तुम कौन हो ? समर्पिता,गर्विता या प्रेम के गहरे रंग मे सजी..कल्पना या यथार्थ की धरती पे मुस्कुराती कृष्ण की प्रेमिका...जन्म ले कर कृष्ण से पहले ,आंखे खोली उस को देख कर..बन गई तभी से उस की प्रेमिका...खिलखिलाती मुस्कुराती,कृष्ण-प्रेम मे पगी उसी को समर्पित इक प्रेमिका...जहाँ से बेखबर सिर्फ अपने कृष्ण को मिलने की आस मे दौड़ती वो अनोखी प्रेमिका..ना देह का कोई रिश्ता,ना ब्याह का कोई सिलसिला..फिर भी युगो युगो से राधा रही अपने कृष्ण की समर्पिता...वो उस का कृष्ण रहा जो उस के अलौकिक प्रेम मे खो गया..रिश्ता तो कोई भी ना था पर राधा को अपने अलौकिक प्रेम मे कृष्ण भी उस को नहला गया...कृष्ण से राधा ने चाहा तो कुछ नहीं बस उस की ख़ुशी के लिए,जीवन का हर तार-संसार उसी को समर्पित कर दिया..वो पाक रिश्ता ना जाने कैसा रहा कि कृष्ण से पहले राधा का नाम,समस्त संसार कि जुबान पर आ गया...कलयुग मे कहाँ है ऐसे पाक रिश्तो का जहाँ..यहाँ राधा का मोल सिर्फ दैहिक स्तर तक सीमित उसी कृष्ण ने कर दिया...वो समर्पित हो गई कृष्ण को रूह की आवाज़ पर,देह का मोल उस के लिए कृष्ण की ख़ुशी हो गया..पर कलयुग की राधा उस कृष्ण की राधा हुई,जहाँ कृष्ण ने उस का मोल सिर्फ आम औरत कर दिया..यह सूरज चाँद,यह धरती आसमान सदियों तक इस के गवाह होंगे...सवाल है कि अब इस कलयुग मे क्या राधा-कृष्ण जैसा अलौकिक प्यार कही होगा ? हां,होगा..कही तो होगा..शायद विरले ही होंगे..जो देह से परे इस अलौकिक प्रेम मे जीते होंगे...शायद तभी यह धरती आज भी आबाद है..क्यों कि अलौकिक प्रेम का कही ना कही तो वास है..फिर सादिया बीते गी...फिर राधा जन्म ले गी,फिर से उस की आंखे कृष्ण के अलौकिक प्रेम से खुलना चाहे गी..जहाँ तब बहुत ही खूबसूरत होगा जब सतयुग की महिमा फिर से लहराए गी...यह सफर राधा के अलौकिक प्रेम का कभी खतम ना हो पाए गा...जब तक वो सतयुग का वही कृष्ण अपनी राधा को देह से परे अपने अलौकिक प्रेम से नहलाये गा...जय श्री राधेकृष्ण..

Friday 18 December 2020

 इतनी सारी ओस की बूंदे और इन का हमारे गेसुओं पे ठहर जाना...नंगे पाँव घास पे चलना और इन को 


दुलार देना...ओस की इन बूंदो से हम ने कहा..ठहरी रहो इन गेसुओं पे,ताकि ज़माना जान ना पाए कि 


यह आंखे भरी है आंसुओ से इतना...अपनी मुस्कान से इस ज़माने को जीना जब सिखाया है तो क्यों इन 


को आंसुओ का प्याला छलकता देखने दे...सुन बात मेरी बूंदे ओस संग हमारे ठहर गई,यह कौन सा 


पाक रिश्ता यह मेरे संग निभा गई...

 हटा पहरा सूरज का तो हवा कहर ढा गई...किसी ने पूछा हम से,यह हवा आप को क्या बता गई..ओह,


यह हवा हम को क्या बताए गी..यह हम को क्या सिखाए गी..जो खुद चलती है हमारे ही इशारों पे,वो 


हम को क्या सन्देश दे जाए गी..हम ने घूँघट मे अपना चेहरा छिपाया तो सूरज को छुपना पड़ा...हवा को 


अपने दुपट्टे से लहराया तो यह जग को महका महका गई...अब जनाब,जयदा ना पूछिए...जो हम खुल 


के मुस्कुरा दिए तो क़हर छा जाए गा..बरसे गा बादल खुल के और यह जहाँ सर्द हवाओं से कांप कांप 


जाए गा...

Monday 7 December 2020

 हवा को गुमान है कि वो कभी भी कही उड़ सकती है...बदरा भरा है अपने नीर के गरूर मे..और यह 


आसमाँ जो कही भी अपनी मर्ज़ी से धूप छाँव कर देता है..सूरज को छुपा अपने आँचल मे जहाँ को 


हैरान कर देता है...सितारों का टिमटिमाना और चाँद का छुप जाना..बादलों को क्या समझाता है...क्यों 


गुमा है इन सब को कि शरारत का दावा क्या यही कर सकते है...उस की मर्ज़ी जिस दिन शरारत पे 


उतर आई तो इन सब की शामत कभी भी आ सकती है....

 दुनियाँ का यह कारवाँ गुजरा बहुत ही करीब से मेरे...हर बार वही सवाल पूछा मुझ से..''जीवन और 


ज़िंदगी मे फर्क है कैसा''...हर बार क्यों खामोश रहे है हम..मुस्कुराना अब हमारा था लाज़मी..जीवन 


दिया तो उस ने मगर हम ने खुद ही इस को ज़िंदगी मे तब्दील कर दिया..इतनी ख्वाइशें जोड़ ली साथ 


इस जीवन के कि उलझा कर नाम इस का ज़िंदगी कर दिया...फूल भरे बहुत कम और कांटो से इस का 


दामन तरबतर कर दिया..जनाबेआली..जवाब पूरा दे गे तो क्या यह दुनियाँ लौट आए गी फिर उस सुंदर 


जीवन की परिभाषा पे...तभी तो रहते रहे खामोश कि यह दुनियाँ जीवन को कब साथ अपने बांध 


पाए गी...

Sunday 25 October 2020

 क्यों आज फिर से पलकों के किनारे मतवाले हो गए..इन आँखों के प्याले क्यों आज मदहोशी से भर गए...


बहुत भीगी-भीगी सी सौंधी सी खुशबू लिए,हवा आज क्यों खुशगवार है...इस सूरज की तपिश आज क्यों 


मद्धम-मद्धम सी है...यह फूल हर मोड़ पे आज बेहद सलीके से क्यों खिले है...कुदरत के इस जादू पे 


हम बेहद फ़िदा है..खुद को ही समझ रहे थे इक जादूगर..पर वो तो कुदरत है,जिस के जादू से हर तरफ 


बहार का मौसम छाया है..खुशनसीब है हम जो कुदरत के इतने करीब आने का मौका हम को मिल पाया 


है...

Sunday 18 October 2020

 बहारों की,खुशियों की उम्र बहुत लम्बी नहीं होती...बस यह मान कर हम ने, हर पल बहार का अपने 


आंचल से बाँध लिया...अब यह ख़ुशी का बंधा आंचल साथ-साथ हमारे चलता है...नूर देख हमारे इस 


चेहरे का ज़माना अक्सर पूछ लेता है,कौन सा खज़ाना पाया है आप की किस्मत ने जो नूर पे नूर आप 


पे छाया है...सिर्फ हम ने इतना कहाँ...मालिक जिस हाल मे रखता है,हम उसी मे ख़ुशी ढूंढ लेते है...


कल शायद फिर यह ज़िंदगी रहे या ना ही रहे,इसलिए रोज़ आप से मिल लेते है....

 साज़ भी है,आवाज़ भी है..महफ़िल मे आज भी किसी को तेरे आने की इंतज़ार भी है...जश्न की रात है..


हर कोई थिरकते क़दमों के साथ है..उम्मीदें सभी की रौशन है...ज़िंदगी को जीने के लिए,हर सांस 


अपने किसी खवाब के साथ है...नाउम्मीदी का दामन आज किसी के आस-पास भी ना है..कभी कभी 


सजती है ऐसी महफिलें,जहाँ जिंदादिलों की बारात होती है...हम ने इशारे से सभी को समझाया..''यह 


ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है..मुर्दादिल भी कभी इस ज़िंदगी को जिया करते है''.....

 सिंगार सोलह ही क्यों..सिंगार अनमोल ही हो..जो भाये तेरे मन को वैसे ही बन जाए गे हम..झूमर बिना 


भी हम क्या लगते है...करधनी ना भी बांधे तो भी तेरे ही तो लगते है...आँखों मे कजरा ना लगाए गे तो 


क्या तेरे ना कहलाए गे...गेसू खुले या बांध ले इस गज़रे से तो क्या साजन के ना हो पाए गे...छम-छम 


करती पैजनियां ना बजे तेरे द्वारे तो क्या तेरी दुल्हन ना बन पाए गे...तुझे याद सिर्फ इतना दिला दे,वो 


रूप जो देखा था मेरा सादगी भरा तूने और तभी से मान लिया अपना मुझे तूने..तो आज किसलिए यह 


सिंगार करे...

 यह नज़रें झुका कर,हर पल उस को सज़दा करना...हमारी इबादत का रुतबा ही था...वो बीच राह मिले 


हम से और मुस्कराहट को हमारी मुहब्बत समझ बैठे...शोखी उन की नज़रो मे थी...हम से मिलने की 


हसरत भी उन्ही की थी...हम जो खामोश रहे तो उन को लगा हम उन की मुहब्बत के कायल हो गए...


इस से पहले वो बात आगे ले जाते,हम ने उन की आशिकी का जवाब दिया...यह नज़रे तो हर पल उस 


के सज़दे मे झुकती रहती है..और जहा तक हम जानते है,आप अभी तक सिर्फ इंसा है...खुदा तो नहीं...

 हर तरफ है सुगंधित ख़ुश्बू..हर तरफ दिख रहे है खुशियों के मेले...तूने भी देखे या दुःखो के सागर मे गोते 


अभी भी लगाए वैसे..पेट भर खाया,जी भर सोया...क्या इस के बाद, किसी गरीब का दिल तो तूने नहीं 


दुखाया ना...मशक्कत कर ले कितनी भी,गर किसी बेकसूर का दिल रुला दिया तो सब पा कर भी,सब 


कुछ गवा दिया...पानी है अपनी खुशियाँ तो किसी की राहों मे कांटा ना बन..अपने ही कांटे चुन ले,और 


ख़ुशी-ख़ुशी इस जीवन को जी ले...

Saturday 17 October 2020

 यह रात है या फिर चांदनी की बहार है...गुमशुदा है हम और अपनी ही तलाश मे खुद ही,इस चांदनी 


रात मे बाहर निकले है...अपने ही वज़ूद को तलाशते किसी अनजान मंज़र तक पहुंचे है...गुनगुना रहा 


है यहाँ कोई,क्या कोई हमारी तरह ही गुमशुदा बेक़रार है...कांधे पे किसी का साया महसूस पाया...यह 


कैसा मज़ाक है..मेरा ही वज़ूद मुझ से मिलने मेरे ही साथ आया..ओह चांदनी,तेरा शुक्रिया..तेरी इसी 


बहार से, मेरा अपना वज़ूद मुझ से मुखतिब इसी जगह पाया...

 रात को आना ही था..यह सोच कर आशियाना अपना,दीयो की कतार से सजा दिया...चिराग रौशन रहे 


ना रहे रात सारी...हम ने तो इंसानो पे भी भरोसा करना छोड़ दिया....दिए की फितरत तो देखिए ,बिन 


बाती वो जलता नहीं..दोनों का मेल कभी रुके नहीं,तेल का यह साथ उन से छूटता भी नहीं...इंसानो की 


फ़ितरत का कोई जवाब ही नहीं..ख़ामोशी पे बोलते है और पूछे कोई बात तो खामोश हो जाते है...पत्थर 


के बुत बने है तब तक,जब तल्क़ काम अपना कोई नज़र ना आता है...पत्थर भी पिघल जाया करते है,पर 


यह इंसान मतलब के सिवा बात भी ना करते है...

 ''यह जीवन-रेखा है बहुत छोटी..उम्र के ना जाने किस मोड़ पर यह छूट जाए गी''..तन्हा हो जाए गे आप 


बिन हमारे कि हम लौट के कब आए गे....इस से पहले वो इस बात पे कुछ कह पाते..हम जीवन की इस 


रेखा के लिए बेतहाशा हँसे..अब बारी थी उन के बयाने-उल्फत की...''आप की जीवन-रेखा आप के ही 


जैसी है..बेखौफ मुहब्बत से भरी लम्बी चलने वाली है..जोड़ दीजिए इस रेखा को हमारी जीवन-रेखा से..


मिल के चलने का वादा जब साथ किया है तो जीवन- रेखा को भी साथ हमारा देना होगा ना''...आप के 


इस मान से हम तो घायल हो गए..अब जीवन -रेखा को भूल जाइए,बस हमारा साथ निभाने चले आइए....

 ली जो अंगड़ाई तो सुबह खिल के चारो और गुल खिला गई...आईने ने देखा मुझे तो कुदरत की बात 


उसे समझ आ गई..सूरज की लालिमा क्यों नरम पड़ गई...यह नाज़ुक जिस्म सूरज के ताप से मुरझा 


ना जाए,यह सोच कर सूरज बादलो की ओट मे छुप सा गया...हम बिंदास है,मरज़ी के मालिक है..यह 


जान कर यह मौसम भी अपनी दीवानगी पे आ गया..बाहर बिखरे है हज़ारो फूल..लगता है हम को देख 


इन को भी हम पे प्यार आ गया..

 किसी वादे का मोहताज़ नहीं होता यह प्यार..किसी खास नज़र का तलबगार भी नहीं होता यह प्यार..


प्यार को सिर्फ जिस्म मे जिस ने भी ढाला,वहाँ कभी देर तक रुकता नहीं यह प्यार...झूठे वादे,झूठी सी 


कसमे और झूठ के धरातल पे खड़ा प्यार,प्यार नहीं सिर्फ दाग़ होता है...रूह को छूने के लिए प्यार को 


साँच की आंच मे तपना होता है...विरले है जो इस ताप मे तपना जानते है..वरना आज तू है तो कल कोई 


और होगा..और गज़ब उस पे यह कहना कि वो प्यार ही होगा...

 उड़ रहे है हवाओं मे,बिन पंख के...बहक रहे है कदम बिन शराब के..यह गेसू खुले भी नहीं पर महक 


गए,यह कौन सा कमाल है..आंखे अधखुली सी है,शायद यह कुदरत का ही कोई सवाल है..दिल कह 


रहा है,ना पूछ कोई सवाल कोई जवाब अपने आप से...खुली राहों पे निकल जा,खुले आसमान के तले..


कौन क्या कहता है,यह भी ना सुन..कोई पीछे से भले आवाज़ भी दे,वो भी ना सुन...जीने के तो सिर्फ 


चार दिन ही है...दो खुद मे जी,दो उस की रहमतों मे गुजार दे...

 हल्का सा यह सर्द गुनगुना मौसम..वल्लाह,क्या बात है..कुछ भी कहा नहीं मैंने और तुझे क्यों सुन गया..


माशा अल्लाह,यह तो बहुत बड़ी बात है...हम तो समझे तू पागल भी है और हां,दीवाना भी..पर कुदरत 


का कोई बेनाम अजूबा भी है..तौबा तौबा...तू तो दुनियाँ का आठवां नमूना भी है..मेरे कदमो से कदम 


मिला कर चल,यह तेरे बस की बात कहाँ...बिंदास जिए हमारी तरह,यह तेरे नसीब मे भी कहाँ...हम तो 


रोज़ गिनते है नियामते अपनी और तुम मिली हुई नियामतों पे भी शक करते हो...वाह अल्लाह मेरे,माटी 


कौन सी थी ऐसी पास तेरे जो अजूबा ऐसा तूने बना दिया मालिक मेरे...

 जो लिखे तेरी-मेरी कहानी..वो है''सरगोशियां मेरी''

जो लिख दे बेबाक किसी भी मुद्दे पे..वो है''सरगोशियां मेरी''

जो बयां कर दे दर्दे-दिल नादान प्रेमिका का..वो है''सरगोशियां मेरी''

जो प्रेमी के ज़ज्बात पिघला दे,शब्दों से अपने..वो है'सरगोशियां मेरी''

जो पिया का संदेसा सजनी तक पंहुचा दे.चंद लम्हो मे..वो है'सरगोशियां मेरी''

रूठे पिया को मना ले लरज़ते महकते शब्दों से..वो है''सरगोशियां मेरी''

बरसती रात को सुहाग की सेज़ बना दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

दूर तल्क़..सदियों तल्क़ साथ देने का जो वादा कर ले..वो है''सरगोशियां मेरी''

रूह को रूह की ताकत से मिला दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

सादगी का लबादा ओढ़े मगर पिया की रूह को भी पिघला दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

कभी इस समाज के बेरंग रूप को भी बेनकाब कर दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

हैवानों को भी प्यार से नसीहत देती..वो है''सरगोशियां मेरी''

तवायफ को भी अपना साथी मानने पे जो मजबूर कर दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

दौलत की चमक से परे अपना परिशुद्ध प्रेम दर्शाती..वो है''सरगोशियां मेरी''

खामोश रहती है कभी-कभी,पर अपनी चुप्पी से भी,जो आप सब को लुभा ले..वो है''सरगोशियां मेरी''

किसी को यह शब्द अपने जीवन के ही लगे..बस यही जादू जो जगा दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

यह कलम मेरी,यह स्याही भी मेरी..पर लफ्ज़ो को पन्नो पे लुटाती..वो है''सरगोशियां मेरी''

कल यह ''शायरा''रहे या ना रहे,पन्नो के यह शब्द यू ही हवा मे उड़ते रहे..वो है''सरगोशियां मेरी''

Friday 16 October 2020

 मन का सकून क्या रंग लाया..हमारी आँखों ने कजरा फिर से आँखों मे लगाया...गहरी मुस्कराहट फिर 


आई इन लबों पे और यह दिल खुल के फिर से मुस्कुराया...कोई खास ख़ुशी नहीं मिली मगर,जो भी 


मिला उस के लिए इन हाथों ने सर संग झुका कर,उस को शुक्राना लफ्ज़ निभाया...चेहरे पे नूर बहुत ही 


खिल के आया,यक़ीनन उस ने हम पर कुछ तो नियामत का परदा गिराया...नन्हीं-नन्हीं बातों से यह दिल 


खिल-खिल कर उसी के दरबार चला आया...कोई करे ना करे उस को सज़दा,हम ने तो ख़ुशी से उस के 


दर को इबादत के गहरे रंग से रंग डाला...

 ढाई अक्षर प्रेम के,सदियों से सिखा रहे थे उसे..परिशुद्ध प्रेम की महिमा तक समझा रहे थे उसे..देह का 


मेला इस परिशुद्ध प्रेम मे कहाँ आता है..देह घुल जाए जब इस मट्टी मे तभी तो प्रेम मुकाम तक आता है..


रूह जब भी रूह को पुकारे गी,बस वो तुझी को ही पुकारे गी...पर अब लगता है वो अभी भी माटी का 


इक ऐसा बुत है,जो प्रेम के ढाई अक्षर का सिर्फ एक अक्षर ही पढ़ पाया...हम ने ढाई अक्षर सिद्ध किए 


और बारीकी से इस के शब्द लिखे...आज हम है परिशुद्ध प्रेम की सब से ऊँची पायदान पे और वो अभी 


सीख रहा है बचे डेढ़ अक्षर प्रेम के...

Thursday 15 October 2020

 चाँद मे दाग़ देखा..सूरज मे ताप देखा..धरती को हमेशा गुनाहों के पाप से भरा देखा..खुद को जो देखा तो 



ख़ताओं के भार से दबा देखा..फिर क्यों उम्मीद रखी,सब का दामन गुनाहों के दर्द से बरी होता...इंसा


होना बुरा नहीं होता पर सब को उन्ही के रूप मे क़बूल करना ही इंसानियत का नाम होता.. कोई रोया 


तो हम क्यों हंस दिए..कोई तड़पा तो हम क्यों मुस्कुरा दिए..कुछ नहीं कर सके तो खामोश ही रहिए पर 


किसी के भी ज़ख्म पे नमक का थाल ना पलटिए....


 कितनी चमक है इस आसमां मे आज...यह सूरज प्यार की लो से दमका है आज..कुछ बहुत खास 


फैसला होने वाला है आज...सुन रे सजना मेरे..उदासी का लबादा उतार दे ना आज..खुशियां बस 


दस्तक देने को है..निराशा के घोर बादल बस जाने को है...रौनक हमारे चेहरे पे बहुत ही खास है आज..


तू सुने ना सुने,पर वो तो सुन रहा है सब कुछ आज...उस की और मेरी बातें तुझ को कभी समझ ना आए 


गी...धीमे से कह दिया उस के कानों मे, फरियाद का अपना वही अंदाज़...शाम ढले और चाँद हमारे 


अंगना ना उतरे,ऐसा तो नहीं होगा आज... 

 फिर से सज़े गी पायल..फिर बालों मे गज़रा महके गा..फिर से चंचल होंगे नैना,फिर तेरी शोख नज़र 


का पहरा हम पर होगा...मुलाकात की वो पहली बेला फिर से लौट के आए गी...साँसे बहुत है पास तेरे..


साँसे बहुत है पास मेरे...जीवन मधुर फिर से बन जाए गा..झरनों का पानी कब रुकता है.गर रुकता है 


तो फिर से चलता भी है...आशा का भरा-पूरा दीपक अंगना आज जलाया है..तेरी उम्मीद पे खरे उतरे..


यह वचन शिद्दत से आज निभाया है...

Wednesday 14 October 2020

 बुरा वक़्त-अच्छा वक़्त..सब निकल जाता है..जो तुझे तेरी खामियां बता दे,ऐसा मसीहा विरला ही मिलता है..


जो दिल पे लगी चोट पे मरहम लगा दे सच्ची,ऐसा दोस्त कहां मिलता है...खुद ही खुद को संभालना होता 


है..दुनियां तमाशबीनों की है..खुद ही गिरना है तो खुद ही उठ जाना है...सिर्फ उठना ही नहीं,ज़िंदगी की 


जंग भी अकेले ही लड़ना है..जीत हासिल कर और फिर सब के साथ मुस्कुरा..यही वादा खुद से निभाना 


है..हिम्मत टूटी तो सब टूटा...दिखा दे इस दुनियां को,अकेले जंग लड़ना हम को भी आता है...

 रात गहरी सी और सितारे भरे हुए आसमां मे बहुत सारे...फिर भी उस ने खुद का आंगन सिर्फ दिए से 


रौशन क्यों किया...हर सितारा उसी का अपना था,फिर किस लिए सहारा उस ने दिए का लिया...क्या 


कुछ गिला उस को किसी सितारे से था या यह सिर्फ उस की खुद्दारी का कोई पैमाना था...कुछ बताना 


उस की फितरत ही ना थी...मन की गांठे मन मे रखना उस की खास आदत जो थी...दिए जल उठे उस 


के आंगन मे,यह रौशन सा फ़साना उस के दिल के अंदर ही तो था...

 राख़ का वो कौन सा ढेर था जिस मे बिखरे ज़ज्बात अभी भी सुलग रहे थे...हाथ ना लगा इस राख़ को 


ना जाने कौन सा ज़ज्बात बिखर जाए गा..सुना है कोई मासूम इस मुहब्बत मे क़ुरबान हो गया..मासूम 


था इसलिए शायद राख़ मे तब्दील हो गया...मुहब्बत मे उस की पुकार कोई सुन नहीं पाया होगा...एक 


मशाल हाथ मे लिए वो अपनी मुहब्बत के पास,यक़ीनन आया भी होगा...बेवफा रही  होगी मुहब्बत उस  


की,तभी तो वो मासूम मशाल सहित राख़ का ढेर बन गया होगा..ना राख़ होगी ठंडी कि जज्बातों का 


महल अभी भी राख़ मे दबा होगा...

 खेल-खिलौने और संगी-साथी छूट गए बाबुल के द्वारे...अट्हास करते वो बिंदास ठहाके छूट गए बाबुल 


की दहलीज़ के वारे..सहज-सरल मन चल पड़ा किसी अनजान रिश्ते के द्वारे...कौन है यहाँ अपना तो 


कौन पराया...मन क्या जाने इन रिश्तो के ताने-बाने...घूँघट की आड़ मे जिस को देखा वो रूप बहुत ही 


अनजाने थे...पर अब यह सब मेरे अपने थे..यही कहा था मुझ से माँ ने...बहुत कुछ छोड़ा तो यह सब 


पाया,जीवन-धारा कितनी बदली...मन ने फिर अपने मन को ढाढ़स बंधवाया..आँखों का अश्क एक ही 


निकला जो बाबा के पास पहुंचाया...

 पहाड़ों के पास पास से गुजरती वो अल्हड़ गौरी शयामा थी..अपने ही शिव की तलाश मे वो रात-रात भर 


कंटीली राहो से गुजरी थी..कभी रही भूख से बेहाल तो कभी उस को मिलने को तरसी थी...क्या वो उस 


को पहचानती थी..क्या वो उस को जानती थी..आँखों से नहीं वो तो उस की रूह की खुशबू से पहचानती 


थी...यह कौन सी राहें है जो खत्म नहीं होती...यह कैसे फासले है जो तय नहीं होते..शिव को पाने के लिए 


 कंटीली राहों पे आज भी चल रही है वो..रूह से रूह का मिलना इतना आसां भी नहीं,यह बखूबी 


जानती समझती है वो...

 वो दोनों सखियां थी..जान से भी अज़ीज़ इक दूजे की अंखिया थी...एक थी रूप की मलिका तो दूजी 


समझ से परिपूर्ण थी...फिर भी इस धरती पे वो सहेली की मिसाल बनी थी..वक़्त का पहिया ऐसा चला 


कि वो दूर हो गई..किस्मत का लेखा तो देखिए..रूपवती पिया के दिल के करीब ना थी और समझ से 


भरी वो पिया के दिल का हीरा थी..पिया को लुभाना कोई आसान नहीं होता..रूप से कही जय्दा समझ 


का दरिया उस का भी बड़ा होता..पिया के तन-मन और रूह को जो छू ले वो गर्विता ही पिया का असली 


गहना होगी...

 तक़दीर से ज़्यदा और वक़्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता..भगवान् के फैसले हमेशा सही समय पे ही होते है..धैर्य के साथ उस समय की प्रतीक्षा करे...जीवन अनमोल है इस को खूबसूरती से जिए..खुद को भगवान् मानने की गल्ती ना करे..

Tuesday 13 October 2020

 यही स्वर्ग है तो यही नरक भी है..सोच कर हम ने इस ज़िंदगी के हर रंग को,प्यार से गले लगा लिया...


ना सोचा कभी किसी का बुरा बस खुद के सुख-दुःख को अपने गले खुद ही लगा लिया..किस के पास 


क्यों है हम से जयदा,किसी के पास क्यों है गिले-शिकवे जयदा...बेमानी है यह सारी बाते,कुछ कमियां 


तो हम मे भी है..यह मान कर सब कुछ उस ऊपर वाले पे छोड़ दिया...ना तुम हो भगवान् ना कोई और 


खुदा तो तुम ने हम ने..कैसे खुद को ही सही साबित खुद ही कर लिया..ना उलझ स्वर्ग-नरक के चक्कर 


मे,कौन है जो दूध का धुला पाक-साफ़ है इस दुनिया मे...

 यह पांव थिरके बिन पायल के..यह हाथ उठे दुआ मे,बिन वजह के...मुस्कान होठों पे खिल उठी,किसी 


अपने को याद कर के..मीठी यादे याद आज आ गई,बिन वजह के..बहुत खुश है आज,वो भी बिना किसी 


खास वजह के...उस मालिक का इक इशारा हम को इतना समझ आया कि भूल गए अपने हर गम को..


लोग समझे दीवाना-मस्ताना हम को,हम को तो इस ज़िंदगी को खुल के जीने का सबब ग़ुरबत मे ही 


समझ आया...अब यह दिल ख़ुशी मे कोई गीत गुनगुनाए,वो भी बिन किसी वजह के...हां,यारा..यही  


तो ज़िंदगी है..तू भी गुनगुना संग मेरे कि ज़िंदगी तो सिर्फ चार दिन की है....

 यह भी क्या बात है...ढूंढ़ने चले खुशियां जयदा पर चैन मन का गवा दिया..जो है आज अपना,उस को तक 


भुला दिया..ना ढूंढ ख़ुशी कल के लिए..जो मिला है उतने मे जी सब की ख़ुशी के लिए..मांगने से यह ख़ुशी 


कब  मिलती  है..जब वो चाहे तभी मिलती है..खुद को गिरा दिया तो क्या किया,सकूँ ही तो गवा दिया ..


उस की मरज़ी से एक पत्ता भी ना हिलता है और तूने दुनियां को अपनी ही मुट्ठी मे कैद करने का सपना 


खुद ही देख लिया..यह भी कोई बात है...

Saturday 10 October 2020

 खुश रखना खुद को..यह भी एक कला है..सिक्को से जयदा खुद को बेइंतिहा प्यार करना,यारा..यही 


तो अद्भूत प्यार है..गज़ब पे गज़ब तो देखिए ना..खुद से प्यार करो तो धोखा नहीं मिलता ना...किसी और 


को खुश रखो तो वो तुनक-मिज़ाज़ी अपनी बार-बार दिखाता है..अपने आप को कितना भी प्यार करो,वो 


प्यार भी कमाल होता है..खुद को संवार लो,खुद को आईने मे हज़ारो बार भी निहार लो..यह प्यार वैसे 


ही कायम रहता है..ना करो मिन्नतें,ना उठाओ नखरे..खुद से खुद का प्यार क्या किसी नियामत से कम है...

 किसी ने कहा बुरा तुझ को और तू बिफ़र गया...अपना आपा खोया और उसी को उसी की भाषा मे 


जवाब दिया...इंसाफ कभी इंसान नहीं किया करते...तेरे लिए जो भी होगा उस को कोई कब रोक पाए 


गा...मशाल जब खुद के हाथ मे हो तो कौन तेरी रौशनी चुरा सकता है...दुनियाँ हर रोज़ हम को गिराने 


की कोशिश मे लगी रहती है...तेरी तक़दीर तुझी से कौन छीन सकता है...वक़्त से पहले और इसी 


तक़दीर से जयदा तुझे कभी ना मिल पाए गा..फिर चाहे वार पे वार भी कर ले,आपा भी खो ले...कुछ 


भी ना हो पाए गा...

 सर उठा के जीना कि यह किस्मत बहुत इम्तिहान लेती है...मिला देती है कभी कभी,इतने खुदगर्ज़ 


इंसानो से और कसौटी हमारे ईमान की परखी जाती है...मुट्ठी की लक़ीरों की कदर करना..यही तो 


है जो तुझे तुझ से परिचित करवाती है..बाकी तो यह दुनियां तमाशबीनों की जयदा है..तेरे दिल के घाव 


जरा से भी दिख जाए,झट नमक उठा लाती है...ऊपर से प्यार जताती है पर अंदर से तुझे दुखी देख खूब 


ज़शन अपने घर मनाती है..खुद पे रख के चल अपना ही विश्वास,किस्मत कब किस की बदल जाए..यह 


तो किस्मत ही बताती रहती है...

 यह कैसा कमाल है..भीगी है दोनों आंखे..एक है ख़ुशी का आंसू तो दूजा गम के अहसास से है भीगा..


किसी को ख़ुशी दे कर एक आंख ने ख़ुशी का अश्क जताया है..पर दूजी आंख का नीर इस बात से टूटा 


है..वो किसी को आज दे कर ख़ुशी खुद मे अकेले रोया है..बरबस दोनों आंखे ख़ुशी के सितारों से चमक 


उठी..कोई भी तो दूर नहीं,यह तो दिल के पागलपन का, कश्मकश का अजीब मेला है...मोती दोनों ही 


संभाल लिए कि ख़ुशी-दूरी जीवन का अनमोल तोहफा है...

Thursday 8 October 2020

 भरी महफ़िल मे वो जोर से चीखा..''तवायफ नहीं है यह,हमारी बेगम है''....सन्नाटा छा गया महफ़िल मे..


घुंगरू चुप हो गए एकबारगी से...रिश्ते का यह कौन सा खेल रहा..तवायफ़ को बेगम क्यों कहा...मंज़र 


यह कौन सी मुहब्बत का था...घुंगरू और ढोलक की थाप पे यह बारातियों का कैसा हज़ूम था...क्यों कर 


माना उस ने एक तवायफ़ को बेगम अपनी...इस दलदल से वो उस को ले जाने आया था...निकाह के 


पाक बंधन का वो पुजारी था...सब के सामने तवायफ़ शब्द की धज्जियां उड़ा दी उस ने...किस ने कहा 


फरिश्ते धरती पे होते नहीं...बादशाह-बेगम के रूप मे वो इसी धरती के मेहरबां बने...

 वो कहते है हम से.''.तुम ने हमारे दिल के हज़ारो टुकड़े कर दिए...कदर नहीं की हमारे प्यार की और 


बेरुखी दिखा अपनी राह चल दिए''...दलील नहीं दे गे हम..सफाई भी भला क्यों दे गे हम..हम से मिलने 


से बहुत पहले,आप के दिल के हज़ारो टुकड़े तो वैसे ही बिखरे थे..हम तो अपने प्यार के सच्चे रंग से,उस 


दिल को जोड़ कर एकसार करने की पुरजोर कोशिश मे थे...पर आप तो दग़ाबाज़ी की कला मे इतने 


माहिर रहे कि जिस दिल को हम एकसार कर रहे थे..आप उसी दिल से निकाल कर कुछ टुकड़े गैरों 


मे बाँट रहे थे...बेवफा है आप पहले से,जानते थे हम...मगर जिस को आदत हो दिल को हर मोड़ पे 


देने की,उस की इबादत भी कब तल्क़ करते रहते बार-बार हम...

 जिस शहर मे हम आए है,लोग उस को तेरा शहर कहते है...कैसा है यह शहर तेरा,जहां इंसा नहीं 


पत्थर के बुत रहते है...बेरुखी से भरे..चिंता से मरे..उम्मीद की लो से कोसों परे...बहता संगीत इन मे 


नज़र नहीं आता...मीठे झरने की तरह मीठा बोलना तक नहीं आता...संगीन जुर्म किया हो जैसे,चेहरे 


खौफनाक है बिलकुल वैसे...लगता है कुछ अरसे हम को यहाँ रुकना होगा...जनून इन के पागल दिमाग 


का सही करना होगा..फ़रिश्ते तो यह कभी ना बन पाए गे...मालिक के बन्दे ही कहलाए,इतना नेक काम 


तो तेरे शहर के लोगों के लिए कर ही जाए गे...

 इक ठंडी हवा का झौंका आया और जलते दियों को हिला गया...मौसम हसीं हुआ और दिलों मे फूलों 


का खिलना शुरू हुआ...मुरझा गए वो फूल जो बहुत ही नाज़ुक थे...मगर खिले वो फूल जो ज़िंदगी से 


भरपूर थे...बेतरबी से बिखरे थे शाख-पत्ते..पेड़ों पे मौजूद थे सलीके से सज़े खूबसूरत पत्ते...मुसाफिर 


आते गए और पेड़ों की घनी छाँव मे रुकते-ठिठकते रहे...तब समझ आया इस बात का उस को..घनी 


छाँव और खिलते फूल-पत्ते मुसाफिरों का मन मोह लेते है..रोनी सूरत लिए मरे चेहरे किस को सकून 


देते है... 


 उस की हंसी बहुत सुंदर थी.....

उस का दिल उस से भी सुंदर था...

वो इस दुनियां से परे दूजे लोक की थी..

किसी ने पूछा उस से,कैसी हो...

वो बोली,कुदरत के रंग-रूप जैसी हू...

पूछा,कुदरत को कैसे जानती हो...

फिर वो हंसी..कुदरत तो मेरा साथी है...

बेगाना नहीं,मेरे बालपन से जयदा सदियों का साथी है...

पूछा फिर उस ने,कुदरत से कोई शिकायत तुम को है...

वो फिर से हंसी..शिकायत का मौका तो उस ने दिया नहीं...

खिलखिलाती बोली वो इस बार...

तुम इंसा बहुत दगाबाज़ हो..

लालच के भार से भरे हो....

ईर्ष्या जलन मे सब से आगे हो...

दौलत की खातिर बिक जाते हो...

दौलत के लिए जान भी दे देते हो...

शिकायत मुझे कुदरत से नहीं...

तुम सब इंसानो से है....

प्यार के आगे नहीं बिकते हो...

प्यार का मोल भी नहीं समझते हो...

तुम से अच्छे जीव-जंतु है..

जो प्यार समझते है...

दया की भाषा समझते है....

पूछा उस ने डरते डरते,तुम को इस दुनियां से क्या लेना है....

दो बून्द बहे अब उस के नैनो से,कहा.....

यह दुनियां मुझे क्या दे सकती है..

जिस के पास ईमान नहीं,ईश्वर का धयान नहीं..

खुदा की इबादत के लिए वक़्त नहीं...

ऐसी दुनियां मुझ को क्यों दे सकती है....

वो फिर चली गई,आसमां के सार मे विलीन हो गई...

मैं इंतज़ार उस का रोज़ करता हू.....पर वो रोज़ अब आता क्यों नहीं..............



 खुली आँखों से जो देख रही थी सपने वो,बंद आँखों मे सब कैद कैसे होते...सपने तो बस सपने ही होते 


है..यह मान लेती वो कैसे...कुछ तो करना होगा,शिखर तक जाना है तो खुद को ही अपना गुरु कहना 


होगा...खुद पे विश्वास और खुद ही खुद का सहारा बनना...यह सीख जो सीखी तो पूरा भी तो उसी को 


है करना...कदम जो चल पड़े आगे वो पलट कर बंद द्वार ना जाए गे..कोई साथ है,शायद नहीं...मुस्कुरा 


कर अपनी राह पे चल के, मंज़िल अपनी तो खोज पाए गे...वो नज़ारा होगा कैसा..यह तो लोग ही बताए 


गे ......

 इतने दर्द के पीछे,इस ज़िंदगी मे खूबसूरती है कितनी...समझ पाए गा..या अपने ही झमेलों मे मर-खप 


जाये गा..चेहरा ही है रोनी सूरत तो कर भी क्या पाए गा..मालिक ने जितना भी दिया है उसी को प्रसाद 


मान उस का,फिर देख क्या कमाल होता है...बरकत फैले गी चारो तरफ..ज़िंदगी तेरी फिर उसी की 


इबादत मे गुजर जाए गी...देख के अपने से ऊपर को,जलन और दुःख से किसी दिन मर जाए गा...चार 


लोग आए गे और तुझे शमशान तक छोड़ आए गे..उस वक़्त भी कोई तेरे लिए ना रोए गा..जब जीते जी 


तू खुद ही रोया तोअब कौन तेरे लिए कौन वक़्त अपना बर्बाद करे गा..

 कितना और रोना है..सारी उम्र क्या आंसू ही बहाना है...यह तो कुदरत का नियम है..कभी सुख है तो 


कभी दुःख ने देर तक रह लेना है...क्यों रो दिया कि सिक्के कम है..क्यों रोया कि अपने कम है..फिर 


रोया कि प्यार भी कम है...कोई मुझे समझता नहीं,इस बात का भी गम है...ओह..यह दुनियां का रेला 


है साथिया..कोई कब अपना है..यहाँ खुद ही खुद का होना होता है...जो नहीं हुआ अपना तो उस के लिए 


क्यों दुखी होना है..तक़दीर की लकीरों से कौन बच पाया है..जो है अभी आज वही तो बस अपना है...


चल उठ आंसू पोंछ अपने...खुद को देख आईने मे,दिल के अंदर हज़ारो रंग है जो सिर्फ तेरे अपने है..

Wednesday 7 October 2020

 सूरज का इक छोटा सा टुकड़ा,चल रहा है संग मेरे...आने वाली है ढेरों खुशियां,आंगन मे मेरे...पलकों 


के शामियाने खिल उठे...दिल मे गीत उम्मीदों के मुस्कुरा उठे...सर से पांव तक जैसे महक महक गए..


दस्तक दी है इस सूरज ने तो यक़ीनन कुछ तो खास होगा...नहीं तो यह आज ही क्यों साथ मेरे आता...


दिन की शुरुआत ऐसी है तो माशा अल्लाह,पूरा दिन आगे क्या होगा...संग मेरे तू भी मुस्कुरा कि यह 


उजाला सूरज का फिर कब कहां होगा...

 वो कैसी जोड़ी थी...बालपन से संग खेले,संग बड़े हुए..खेल-खिलौने दोनों के इक जैसे थे...इक रोता 


तो दूजा भी बिलख उठता..यह कौन सा नन्हा नाता था..दिनों का फेर ले आया उस अल्हड़ मोड़ पर..


इक दूजे से दूर हुए,कुछ बनने कुछ पाने को...ख्वाइशें बहुत नहीं है मेरी,फिर भी कुछ अच्छा ही बन 


कर आना..मैं इंतज़ार करू गी तेरा...वक़्त तो पंख लगा कर दौड़ा..उस का मेहबूब उस का साजन 


अपनी सजनी के पास ही लौटा..प्यार-इकरार के धागे इतने गहरे..बन गई जोड़ी,हो गए पूरे...दुआ से 


भरा दोनों का आंचल..प्रेम के पग थे इतने प्यारे,थे दो जिस्म पर रूह से एक हुए वो न्यारे ...

 खूबसूरत नहीं हू मैं..यह मान कर उस ने आईने के सौ टुकड़े कर दिए...हर टुकड़े मे अपना ही अक्स 


फिर नज़र आया...झर-झर निकले अश्क और ज़िंदगी बोझ लगने लगी...उस ने शिकायत की उस 


मालिक से,क्यों किया तुम ने ऐसा...नज़र आने लगी हर और निराशा...''एक दरवाज़ा बंद होता है तो 


कितने और दरवाज़े खुलते है''...कोई चाहता है उस को चुपके से,इस से बेखबर थी वो...निराशा के 


गहरे बादलों मे वही था जो पास उस के आया..''खूबसरत दिल की मालकिन हो,तुम्ही मे मुझे सारे 


जहां का प्यार नज़र आया..खूबसूरत चेहरे बहुत होंगे,मगर तुम सा खूबसूरत दिल कही ना होगा''..


फिर छलके उस के नैना,पर इस बार खूबसूरत थे..दोनों के पागल नैना...

Tuesday 6 October 2020

 आ चल बादलों के उस पार चले...कोई ना देखे हमे,इतनी दूर निकल जाए...तेरी बाहों मे सिमटे एक बार 


उस ज़न्नत को देख आए...जहां प्यार मौत के बाद भी बसता है...जहां साँसों की रुखसती के बाद भी,यह 


दिल बेधड़क धड़का करता है...भीड़ नहीं होगी वहां,प्यार को पूरी तरह निभा देने का हौसला सब मे कहां 


होता है...उस ज़न्नत की नन्ही से दुनियां के बादशाह से मिल लेते है..अपने प्यार को इक दूजे से बांध के 


सदियों कैसे रखना है..आ उन्हीं से मिल कर सीख लेते है...आ सजना मेरे,बादलों के उस पार चले....

 उस के प्यार मे वो इक ग़ज़ल बन गई...प्यार का कमाल रहा इतना कि बिन ब्याहे उस की दुल्हन बन 


गई...हसरतें थी असीमित उस की.तो वो उसी के लिए बिस्तर पे, उसी की तवायफ बन गई...क्या था 


सही और क्या था गल्त,जाने बिना उस के जीवन की रौशनी बन गई...वो बिगड़ैल था..घमंड मे चूर-चूर 


था...बनू गी उसी की हमसफ़र,यह इरादा उस का बहुत मजबूत था...सुधारना उस को,उस का धर्म बन 


गया...बिना किसी वादे उस को सिर्फ अपना बना लेना,उस को कितनी जगह अपना इम्तिहान भी देना 


पड़ा...कोशिशें कामयाब थी..वो बिगड़ैल अब उसी का सुधरा प्यार है...कौन कहता है,प्यार मे ताकत 


नहीं होती..गर नहीं होती तो वो आज सिर्फ और सिर्फ उसी का ना होता...

Monday 5 October 2020

 वो शाम यक़ीनन बेहद सुंदर थी..कुछ हसीन सपनो को संग लिए उन दोनों की अमानत थी..अनछुए 


जज़्बात अरमान की शक्ल मे ज़िंदा थे...वक़्त की धारा मे वो दोनों मुसाफिर थे...वो इबादत के रंग मे 


ढली कोई प्रेम की मूरत थी...खड़ी थी प्रेम के ऊँचे से भी ऊँचे मुकाम पर,जहां उस की रूह पाक शुद्ध 


साफ़ थी...वो उस की रूह तक पहुंच जाए गा,इस यकीन के साथ वो साथ उस के ज़िंदा थी... अफ़सोस 


वो जिस्म और दिल के दरवाजे से आगे बढ़ नहीं पाया..उस के बाद कोई भी उस की रूह तक 


पहुंच ही नहीं पाया...

 देह की माटी को जब देह से जुदा किया तो ख्वाइशें लुप्त हो गई...रूह को समेटा जो आकाश मे तो 


रूह तो जैसे मुस्कुरा उठी...बंधन जब सब छूटे तो अहसास हवा हो गए...तब ना यह दुनियां दिखी और 


ना ही खुदगर्ज़ लोग नज़र आए...कितनी आज़ादी है माटी से परे रूह की ज़न्नत मे...कोई गिला करता 


नहीं,कोई शिकवा होता नहीं...ना दौलत का शोर है,ना प्रेम का कोई मोड़ है...रूह हुई निश्छल निश्छल 


यही तो इस रूह का बेशकीमती अंदाज़ है...

 अरसे बाद मिली वो मुझ से...पहले की तरह आंख उस की फिर नम थी...आदतन हम ने कहा,''क्या रोना 


अब भी है तुम्हारी ज़िंदगी..कभी तो मुस्कुराया करो..कभी तो खुद से प्यार किया करो''...बीच मे रोका 


और टोका उस ने...''आज यह आंसू गम के नहीं,ख़ुशी की बेला के है..जिस को कभी खोया था वो है  


आज पास मेरे है..फूल खिले है मेरे गुलशन मे..तू है जान मेरी,यह आंसू बरस गए ख़ुशी से मेरे कि तू 


खास सहेली जो है मेरी''....अब एक आंसू हमारा भी निकला,जो हम दोनों की ख़ुशी का इक सच है...

Sunday 4 October 2020

 सुबह की यह लालिमा और यह नैना अब नई उम्मीद से भरे हुए...

सपनो को पूरा करने की ख्वाईश से गहरा संकल्प लिए हुए...

मेहनत को साथ लिए,खुद अपना रास्ता बनाते हुए...

बिना डर,बिना सहारे..अकेले अपनी डगर पे निकल पड़े..

कोई साथ है या नहीं,जाने बिना मंज़िल को पाने निकल पड़े...

हिम्मत को साथ लिया और ईश्वर का नाम संग जोड़ लिया...

मुश्किलें तब आसां होती है,जब हौंसले बुलंद होते है...

डर के जीना भी कोई जीना है..सर उठा के जी...

यही तो तेरे इम्तिहान का सब्र और परिणाम होना है....

 यह नैना नींद से भरे हुए..

यह नैना सपनों से भी भरे हुए...

यह नैना आंसू की धारा से भरे हुए..

यही नैना सैलाब की परतो से ढके हुए...

नैना जो देख कर भी सब,अनदेखा कर गए..

यह नैना जो कभी मचल मचल गए...

नैनो की परिभाषा बहुत लम्बी है..

पर अभी यह नैना बहुत ही थके हुए...

नैना जो बस बंद होने को है..

नैना जो बस नींद की आगोश मे जाने को है....

 टूटे तार जब दिल के तो उस ने आशियाना ख़ामोशी का बना लिया...एक तरफ बैठा था बादशाह तो 


दूजी तरफ उस की रानी को बिठा दिया...ना तो वो बादशाह था असली, ना रानी का कोई वज़ूद था...


बस इक खवाब जो देखा था कभी उस ने,उस को यू ही अपने घर के आंगन मे सजा दिया...वो सोचती 


रही,वो अपने बादशाह की बेगम है और बादशाह उस को झूठी आशा देता रहा..करता रहा ना जाने 


कितने झूठे वादे उस से और उस का भोला सा मन उस को अपना खुदा मानता रहा...

 मुहब्बतें-इश्क मुश्किल ही रूहे-इबादत तक पहुँचता है..विरले ही इस मुहब्बत की डगर पे कामयाब 


 होते है..कितने है जो पाकीज़गी से मुहब्बत को निभा देते है..बहुतो की मुहब्बत सिर्फ जिस्म तक ही  


सीमित होती है..कुछ सुंदर दिल की छाया मे कुछ वक़्त रुकते है..दिल भर गया तो किसी और दिल 


की तलाश मे इक नया जिस्म ढूंढ़ते है..रूहे-इबादत मे जिस्म कहां दिखते है..यह जिस्म तो फ़ना हो जाया 


 करते है...जो निभा दे पाकीजगी से इस मुहब्बत को,वही रूहे-मुहब्बत का दावेदार कहलाता है...

 मौसम ने ली हल्की सी करवट तो प्यार का मौसम परवान चढ़ गया...अपूर्व सुंदरी ने सोचा कि यह 


मौसम उस के रूप के साथ और खिल गया...महक गया जिस्म उस का और सपनो का मेला दिल के 


आर-पार हो गया..चाहने वाले बहुत है उस के,यह जान कर उस का गुमान दुगना हो गया..अहंकार जो 


भरा इतना तो चाहने वालो का सरूर और बढ़ गया..नादान थी बहुत वो..किसी का चाह लेना कुछ मायने 


नहीं रखता...हज़ारो चाहने वाले हो साथ मगर कोई दूर तक साथ देने वाला कोई नहीं होता...मगरूर तो 


वो आज भी है शायद कल का अंजाम उस के दिमाग मे अभी तक नहीं आया...

 इन खूबसूरत वादियों मे भी ऐसे दिल मिलते है..हम इन्ही को निहारने यहाँ चले आए...कुछ अधूरे से 


ख़्वाब इन के भी है,यह देख अचरज मे पड़ गए..इंसानो की बस्ती से दूर,यह वादियाँ बहुत सुंदर है..


साँसों को खुल के जीने के लिए इन के करीब आ गए...खुशबू के ढेरे है या कुदरत के कमाल..देख इन 


की सुंदरता हम खामोश रह गए...स्पर्श करे गे तो यक़ीनन यह मुरझा जाए गे,बस यह सोच इन को 


बहुत दूर से निहारते ही रहे...


 यह पल यह लम्हा..जाने वाला है..यह सोच कर उस ने उस लम्हे को दिल-रूह की दीवारों मे कैद कर 


लिया...अब ज़माना बेशक चाहे इस पल को छीनना,उस ने तो इस पल पे कब्ज़ा कर लिया...टूटती आशा 


और बिखरे सपने,इन का अब वज़ूद कैसा...जो पल रूह मे समा गया उस के बाद अब दुःख और कैसा...


खूबसूरत है अब सारा आसमां और अब क्या चाहिए...सर से पांव तक बेशक़ीमती हो गए..शिकायत के 


मायने कही खो गए...


Friday 2 October 2020

 कोई बाज़ार नहीं,कोई व्यापार नहीं...किसी और की ज़िंदगी से कोई सरोकार भी नहीं..फिर भी दरिंदो 


ने उस की असमत को लूट लिया...जिस ने ज़िंदगी को अभी जाना भी ना था,उस को इसी ज़िंदगी से 


बेगाना कर दिया...बेटी होना गुनाह है क्या...चंचल हिरणी की तरह कुलांचे भरना मना है क्या...सपनों 


को खिलने से पहले रौंद दिया...हर घर की बेटी उदास है आज...जन्मदाता है सोच मे आज...जो जननी 


है,इसी पुरुष को संसार मे लाती है...फिर इसी पुरुष द्वारा उस की असमत क्यों लूटी जाती है...

 बंज़र धरती को हँसता-खिलखिलाता बगीचा बनाए गे..यह इरादा कर हम ने उस बंज़र धरा को चुन 


लिया..फूल तो इसी पे खिलाए गे,यह सोच कर हम ने धरा को अपना बना लिया...बहुत सख्त बहुत 


पत्थर मिली यह धरा...जहां भी जितनी कोशिश करते,हाथ छिल जाते वहां..फिर बाबा अपने की बात 


याद आई वहां...हार कर जीना है या जीत के सर उठा लेना है...बाबा की बात का मान रखना भी तो 


मकसद है मेरा..यह सोच कर इस बंज़र धरा को उस के खूबसूरत अंजाम देने का ठान लिया हम ने..

Thursday 1 October 2020

 वही आसमां..वही सूरज..वही सुबह की लाली...वही पक्षियों का चहकना..मोगरे के फूलों का वैसे ही 


खिलना...पर क्यों लग रहा है,यह सब बहुत खूबसूरत है..शायद यह दिल खुश है बहुत आज,बेवजह ही...


तभी तो यह सुबह सब से अलग और सब से जुदा है...मालिक मेरे,तू जो भी दे...दिल की इस ख़ुशी और 


सकून से जयदा और क्या होगा...फिर भी तुझे शुक्रिया ना कहे तो यह तो तेरा अपमान होगा...शुक्रिया..

 यह नींद भी क्या गज़ब सा हिसाब है...सारे गम भुला देती है यह..सारे दर्द से निजात देती है यह..सीधा 


सपनों की नगरी मे पंहुचा देती है यह...खवाब कभी बेहद खूबसूरत होते है..खवाब जो कभी-कभी डरा 


भी देते है..नींद जो अपनी आगोश मे ना ले तो सब कुछ खुली आँखों से दिखा देती है यह...यह गहरी 


नींद का ही कमाल है जो हंसती-मुस्कुराती सबह से मिलाने की कला जानती  है..दुआ देते है सभी को,


गहरी नींद का सकून सभी को मिले..और कल की सुबह सभी को खुशहाल मिले...

 आ अब घर लौट चले...

उम्मीदों के द्वार फिर खोल चले..

साँझ होने हो है,दिन जाने को है..

मंज़िले अपनी खुद ही तय कर ले..

कोई अपना नहीं इस जहान मे..

फिर किस से साथ की उम्मीद करे...

जितना दिया उस मालिक ने,उसी मे क्यों ना खुश रहे..

संघर्ष ही तो जीवन है,इस बात को मान चले..

पाँव मे छाले पड़े तो गम ना कर...

रास्ते बस आसां होने को है..

कोई शिकायत मुझे तुझ से नहीं..

तेरे साथ आरज़ू जीने निकल पड़े...

धीमे धीमे चल,हम साथ है तेरे...

इक बात तो सुन ले चलते चलते...

ज़िंदगी जो भी दे,पर यह बहुत खूबसूरत तो है...


 झूठ एक होता तो सह लेते..कुछ और जयदा होते तो भी सर आँखों पे ले लेते...पर तेरे झूठ पे  फिर से 


विश्वास करे..तौबा तौबा...हम तो सोचते रहे कि तुम सिर्फ दीवाने हो..हमारे ही नहीं कितनो के दीवाने 


हो..किसी को मुहब्बत कह दिया तो किसी को प्यार का नगमा सुना दिया...और हम से मिले तो हमारे 


ही होने का दावा कर दिया...ना तुझ को चलाया अपनी राहो पे,ना तुझ को चलाया बंदिशों के तले...सोचा 


ईमान होगा तो खुद ही हमारी राहो पे लौट आओ गे..और वो दिन कभी तो आए गा,जब ज़मीर तेरा मेरी 


राहो का मोहताज़ हो जाये गा ....

 चल मेरे साथ कि यह ज़िंदगी बहुत खूबसूरत है..आ मेरे साथ,तुझ को दिखाए  कि दुनियां कितने दर्द से 


भी भरी है..सिर्फ अपना ही ना सोच,और भी बहुत है गमों से भरे..हां,यह भी सच है,और भी है बहुत जो 


बिन बात खुश है बहुत..जो मिला उसी मे जी लिए,जो ना मिला उस के लिए शिकायत से नहीं भरे..यारा,


दुखी होने से क्या दुःख दूर हो जाते है...बहुत दूर तक जहां यह नज़र जाती है..यह आसमां के परिंदे जिन 


के पास कल के लिए कुछ भी तो नहीं...फिर भी देख,चहक रहे है जैसे ख़ुशी बनी हो सिर्फ इन्ही के लिए..

 पा कर इतना सुदर्शन रूप वो गर्विता हो गई... देख अपना अलौकिक रूप आईने मे वो अभिमान से 


भर उठी...चाहने वाले उस को है बेशुमार,बस यह सोच कर उस की मुस्कान और गहरी हो गई..रूप 


की मलिक्का हू,कितनो से ऊपर हू..यह गर्व उस को सीधा जमीं पे गिरा गया..रूप का जाल कब तक 


चलता है..देह की खूबसूरती का कमाल भी कब तक रहता है..''मन की खूबसूरती जो जयदा होती तो 


हज़ारो नहीं करोड़ो उस की इबादत करते..जो उस के रूप के दीवाने होंगे वो खुद भी गर्त मे गिरे 


इंसान होंगे''...सुदर्शन रूप हो या गुलाबी रूप हो,चंद दिनों का मेहमान है...सीरत ही तो रूप की 


असली पहचान है...

Wednesday 30 September 2020

 भोले भाले वो नैना..उस के दिल के आर-पार हो गए..वो भोले थे इसलिए ही तो उस की खास पसंद बन 


गए..जब वो झुकते तो दिल उस का चीर जाते..जो उठते तो उसी पे ही क़यामत ढा जाते...एक दिन पूछा 


उस ने भोले नैनो वाली से,कौन दे देस से आई हो जो इतनी भोली सूरत और भोले नैना संग लाई हो..इक 


जवाब उस का काफी था...यह उस देस की माटी से पाए है,जहां धर्म बिकता नहीं..दिल मे बैर पलता नहीं..


अब समझने की बारी उस की थी..शीश झुका अब उस के देस के आगे,जहां से यह अपने दो भोले नैनो 


को लाई थी...

 वो बहुत छोटी सी थी...हां..कद-काठी मे..गुणवान थी उच्च-कोटि मे..प्यारी सी मुस्कराहट और प्यारा सा 


दिल...बहुत कुछ था उस मे,जो सीखा जा सकता था..पर यह दुनियां उस को कितने अजीब नामो से 


पुकारा करती थी...तुम कुछ नहीं कर पाओ गी जीवन मे,तानों से सज़ा देती थी..वो माँ की गोद मे छुप 


के बहुत ही रोया करती थी..माँ की सीख,''जिस दिन तू आसमां का छोर छू ले गी,यह पगले सारे चुप 


हो जाए गे''..अब वो ताने अनसुने कर देती थी...वक़्त की छाया गुजरी..अब वो ऊँची गद्दी पे बैठी है..


वही लोग जो उस को ताने देते थे,आज उसी के कदमो मे सर झुकाया करते है...

Tuesday 29 September 2020

 सोने सा उज्जवल मन  मिला और चांदी सी शुद्ध देह मिली...दिल को सकून की इक धड़कन मिली..


भोर की पहली किरण जब मुस्कुराते हुए हम-तुम से मिली..क्या खूब यह ज़िंदगी मिली...कोई शिकवा 


किसी से भी नहीं..खुद मे मस्त यह ज़िंदगी उस की दया से खिलखिलाती रही..कभी तो उस पे यकीन 


कर..कभी तो अपनी मेहनत को जनून का हिसाब दे..किसी और के हिस्से का क्या करना...जो होगा 


खुद का वो खुद ही चल कर आ जाता है..यू बात-बात पे रोता है तो जो मिला है वो भी चला जाता है...

 महकती चहकती इस सुबह ने बताया...बहुत कुछ खो कर जो पाया वही तो अपना है...कितना कुछ 


गवा दिया फिर कुछ हासिल किया..यक़ीनन वो सब ही तो अब अपना है...रंजिशे छोड़ी तो अपनापन 


पाया,सच कहे तो वो अब सच मे अपना कहलाया...हाथ कंगन को आरसी क्या...जो बोया वही काटा..


फिर किस बात पे रोया...मेहनत से,सेवा से जो मिल पाया..हां आज वो ही सब अपना है...सेवा मे गर 


अपना स्वार्थ दिखाया तो याद रख..कुछ भी ना पाया...

 साजन बोले..यह इंद्रधनुष बहुत मनमोहक है..सात रंगो का मेल और अनोखी छाया से भरा है..छटा है 


निराली,ऐसा लगता है प्रेम के हज़ारो रंगो से भरा-पूरा है...देखे तो बस देखते ही रहे..मगर यह तो जाने 


वाला है..बरखा के जाते ही यह ग़ुम हो जाए गा...हम बोले...इस को जाना तो है पर यह हम को क्या 


सिखा के जाने वाला है...सोचिए जरा..गर ऐसे ही रंग सुहाने हम दूजो के जीवन मे भरे तो हम इंद्रधनुष 


को कहां जाने दे गे..जैसे यह हम को जीवन सिखा गया..वैसे ही हम दूजो को जीवन सिखा ग़ुम हो जाए गे 

Monday 28 September 2020

 दूर बहुत दूर तक फैली है दुआओं की खूबसूरत नगरी..किस को चुने और किस को संभाले..किस को 


लगाए गले तो किस दुआ को रूह से जोड़े...आदतन अपनी....मुस्कुरा दिए इतनी दुआओं के सुन्दर  


मेले मे...क्या यह सब हमारी है...क्या यह हमारी ज़िंदगी की धरोहर है...किसी ने अंदर से आवाज़ दी,


हां यह सब तेरी ही तो है..मगर तब तक जब तक,तेरे दिल का आईना साफ़ है..जिस दिन गरूर की 


छवि इन पे छा जाए गी..जिस दिन सिक्को की चमक तुझ पे हावी हो जाए गी..यह लुप्त हो जाए गी..

 यही कही हू आस-पास तेरे फिर जीवन तेरा सूना क्यों है..खिलखिलाती हंसी है मेरी चारों तरफ तो तेरे 


मन मे क्यों अँधेरा है...दर्द-दुखों का भंडार तो मेरे पास भी है फिर भी जीना हंस के है..यही तो तुझ को 


भी सिखाना है...ज़िंदगी तो हर रोज़ इक नया गम सामने रख देती है..उस से निकलना है कैसे,यही 


खूबसूरत अंदाज़ ही तो तुझे सिखाना है...मर मर के जीना भी कोई जीना है..कफ़न सर पे बांध कि 


मौत का आ जाना एक इत्तेफाक इक मौसम का खेला है..जब तक है यह साँसे,खुल के जी..ना इस के 


लिए ना उस के लिए..जी सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए...सब कर भी भी सब ने शिकायतों का थैला ही 


पकड़ा देना है..बस उतना कर जितना तेरे लिए मुनासिब है..मुस्कुरा दे अरे पगले,क्या पता यह सांस 


आखिरी और अंतिम बेला है...

 क्या आज फिर कोई ख़ता हो गई जो फिर से रोया है...क्या आज तूने फिर से किसी का दिल दुख दिया 


जो मालिक के आगे फूट-फूट सिसका है...फिर कर दी शिकायत इस ज़िंदगी से कि तूने उस को जयदा 


और मुझ को कम से क्यों नवाज़ा है...अरे पगले,जो तेरे पास है,वो औरों के पास कहां है..देख आईने मे 


खुद को सर से पांव तक..इसी कुदरत ने तुझ को हज़ारो नियामतों से बखूबी संवारा है..अब तुझी को ही 


समझ ना आए..अब तुझी को ही कुछ दिखाई ना दे तो कुदरत कहां से गलत-धारा है..जितना है उसी के 


लिए मुस्कुरा ना..यह जीवन भी तो बहती धारा है...

 कौन कहता है दौलत ही इज़्ज़त का पैमाना है..और जो कहता है वो शायद अपने ज़मीर से अनजाना 


है...किस के पास है खज़ाना दौलत का कितना..किस के पास है हीरे-जेवरात का पैमाना कितना...


किस ने किस के खाते को खंगाला..मोल तो मीठे शब्दों का है..मोल तो तहजीब की किताब का है...


वो अमीर है तो आप को क्या लेना है...अपनी चादर है जितनी,उसी मे तो रहना है..जब अपने आप मे 


मन रमने लगे,जब किसी को देख यह दिल ना जलने लगे...सोच लीजे,इम्तिहान ज़िंदगी का पास कर 


ही लिया तुम ने..अब मुस्कुरा दे यारा,जीवन है दो दिन का मेला...

 दौलत से बिकना होता तो ना जाने कितनी बार बिक चुके होते...ईमान को छोड़ दिया होता तो आज इसी 


दौलत के राजसिहांसन पर बैठे होते...ज़िंदगी और हालात मौका देते रहे बार बार,दौलत और ताकत की 


राहो पे बुलाने के लिए...ज़मीर अपने की आवाज़ थी इतनी तेज़ कि उस तेज़ के आगे कभी दौलत को 


चुन ही नहीं पाए...वो तेज़ चेहरे पे ले आए,इसी कोशिश मे दौलत की बेकार बेनाम राहो से नाता तोड़ 


लिया हम ने..बिंदास जीते है कि सकून की मंहगी दौलत है आज पास...पुकारते है उस को,वो संवार  


देता है हमारे सारे बिगड़े काम..

Sunday 27 September 2020

 छलकती आंखे और छलकते जाम...जी नहीं,यह वो नशा नहीं जो बदनाम है...यह नशा है वो,जिस के 


लिए मुहब्बत हर तरह कुरबान है...खुद मे खोए हुए,खुद मे सिमटे हुए...उन बदनाम गलियों से दूर 


अपनी मुहब्बत को इबादत मे ढाले हुए..इस मुहब्बत का नशा ताउम्र कायम रहे..चेहरे की लकीरों से 


बालों की चांदी तक यू ही बरसता रहे..देखने वाले सज़दा करे पाकीजगी इस की देख कर..इस नशे 


की बात क्या..इस का सरूर चढ़ता भी है तो हर तरफ इस का नूर ही नूर है... 

 नशे मे चूर है ना जाने कितनी ही ज़िंदगियां आज...दौलत मिली,शोहरत मिली  मगर यही दौलत सर पे 


 नशा बन चढ़ गई आज...क्या यह नशा बहुत जरुरी है...क्या यह नशा ज़िंदगी की कीमत से भी जयदा 


 अनमोल है..यही दौलत किसी जरूरतमंद को दी जाती तो कितना नाम अच्छों मे आता...नशे की भीड़ 


मे खोए तो नाम बदनामी के अन्धकार मे जाता...यह दौलत भी कमाल है,कही कोई इस के बिना भूखा 


है तो कही कोई इस के साथ नशे की गोद मे है...

 ''जी चाहता है आज,आप पे कोई नज़्म लिखे..साँसे ज़िंदगी की सकून से भर दी,इस के लिए कुछ खास 


अल्फ़ाज़ लिखे'' हम ने गहरी मुस्कान से उन को कहा..''साँसे तो खुदा ही दिया करता है..और सकून के 


लिए कर्म अपनों पे जिया जाता है..मेरे लिए इतना ही आप से सुनना काफी है..''तेरे जैसी दुल्हन सिर्फ 


सदियों मे ही पैदा होती है''...इस लफ्ज़ के बहुत मायने है मेरे जीवन मे..इस एक लफ्ज़ को हम ने अपने 


सीने से सजाया है...कुछ भी ना लिखे..कुछ भी ना कहे..हम सदियों से आप के साथ है,बस यह साथ 


सदियों तक ही रहने दे...

 बेहद साधारण सा रूप-रंग लिए,वो दोनों इस दुनिया से अनजान थे...कुछ सिक्के पास थे मगर हौंसले 


उन दोनों के ही बुलंद थे...जीना है साथ तो कम मे भी जीना होगा..दुनियां के तानो को भी सुनना होगा...


लोग क्यों कहते है,ग़ुरबत का प्यार सच्चा पाक नहीं होता...साथी जब इक दूजे के साथ है तो मुश्किल 


तो कुछ भी नहीं होता..दुनियां का काम तो अंगुली उठाना ही है..प्यार मे जब दोनों हर बात से राज़ी तो 


इस दुनियां का क्या करना है...प्यार का एक रूप...ऐसा भी..

Saturday 26 September 2020

 वो बेहद खूबसूरत थी..

वो  अपने मन की मालिक थी..

वो सब की दुलारी भी थी...

बहुत अमीर भी थी...

वो बेहद बदसूरत था...

रंग बेहद काला भी था...

बहुत ही गरूर वाला था...

गुस्सा नाक पे ही रखा था...

अमीर शायद उस से भी जयदा था...

बोलने का कोई शऊर ना था...

पर यह कैसा गज़ब था...

प्रेम का नशा दोनों पे हावी था...

एक पूरब तो दूजा पश्चिम था...

बेमेल जोड़ी का यह कौन सा करिश्मा था...

फिर भी संग साथ जीने का वादा था..

जन्मो प्रेम का गहरा वादा था...

यक़ीनन..प्रेम हो सच्चा तो रूप-रंग कहां देखा जाता है..

प्रेम ढला रिश्ते मे,यह कैसा संजोग था..

यह प्रेम था...जो आसमान से भी ऊपर पाकीजगी पे सजा था...


 यह राहें बहुत खूबसूरत है...जहां भी देखे बहारे ही बहारे है..माटी को छुए तो सोना दिखती है..खुद को 


निहारे तो हवा मे खुशबू मिलती है...जी चाहता है इन्ही हवाओ की खुशबू संग कही उड़ जाए..ना लौटे 


कभी इस ज़मीन पर बस इन खूबसूरत बहारों के ही हो जाए...गेसुओं को खुला छोड़ दिया...पायल को 


भी बजने से रोक दिया..चाहते है बहुत ख़ामोशी हो और हम ज़िंदगी की हर ख़ुशी को हासिल कर ले...


सुनसान वादियों मे खुद को ही पुकारे और वो गूंजती अपनी आवाज़ खुद ही सुन ले...

 इस ज़माने मे राजा हरीश चंद्र कौन होता है...झूठ पे खिलते है मुहब्बत के महल और प्यार इसी पे ही 


आंका जाता है...झूठ जब तक सीमा मे चले,अच्छे के लिए ही चले तो वो झूठ सच से जयदा बेहतर होता 


है..पर हर नन्ही नन्ही बात पे झूठ का सहारा लेना..इंसान को दूजे की नज़रो मे गिरा जाता है..वो बेशक 


खुद को बहुत शातिर समझे पर दूजा सब समझ कर भी,उस से कुछ ना कहता है..बहुत कुछ है गर 


छुपाने को तो बहुत कुछ भी होता है बताने को...प्रेम को रंग सच्चाई के रंग मे,यह प्रेम बहुत खुद्दार हुआ 


करता है...

 यह शब्द क्या कहना..एक चला तो साथ और भी चल दिए...जुड़े इक दूजे से और कहानी अपनी बयां 


कर गए...किसी को यह पसंद आए इतना कि दिल के कोने मे बंद कर लिए..किसी ने सजाया इन को 


अपने आशियाने मे और  नाम बरकत दे दिया..फिर दिखे यह शब्द साजन की आँखों मे और सवालों 


का जवाब वही रुक गया...नटखट हो जाते है यह शब्द साजन की बाहों मे..खामोश होते है तब,जब 


इबादत मे खुदा से बात करते है...

Friday 25 September 2020

  ख़ुशी मिले या ना मिले,हम तो बिन बात हंस दिए...दुखों के रेले पीछे-पीछे चले,हम उन्ही को साथ लिए 


अपनी डगर पे चल दिए...दुनियां बोली हम दीवाने है...हम तो तब भी मुस्कुरा दिए...खुश रहने की वजह 


कुछ भी नहीं मिली,पर खुश रहना सोचा और फिर हर पल अपने लिए जीने लगे...रोने से किस्मत के द्वार 


कभी खुलते है..आसमां से चाँद-सितारे कभी जमीं पे आते है...सुन यारा...ज़िंदगी का तो काम दर्द पे दर्द 


देना है...इस दर्द से कुछ पल सकून के चुरा ले तो इस का भी क्या जाता है...

 यह कौन सा आसमान है जो बेहद खामोश है...यह कौन सी धरती है जो चाह कर भी कुछ कहती नहीं...


सितारे कितने है आसमान के आंचल मे..हम से किसी ने कहा,टूटे सितारे से कुछ मांगो तो मिल जाता 


है...इंकार मे सर हिलाया हम ने..टूटा सितारा कुछ दे पाता तो हम उस से दिन अपने पुराने मांग लेते...


वो बचपन मांग लेते...माँ की गोद मे उतर जाते..बाबा की ऊँगली पकड़ पूरा बाजार घूम आते...जब 


यह आसमान खामोश है,यह धरती खामोश है...तो हम क्या बोले..हम भी उतने ही खामोश है...

Thursday 24 September 2020

 ''सरगोशियां'' प्रेम के रस मे डूबी तो प्रेम को शुद्ध से भी परिशुद्ध कर दिया...प्रेम का हर रूप लिखा और 


प्रेम को अमर कर दिया...वो प्रेम जो पवित्र रहा,राधा के मन जैसा...प्रेम जो बहता रहा गंगा के पावन 


जल जैसा...मिठास प्रेम की कितनो ने पढ़ी,पर फिर भी जीवन की डगर किस ने सीखी...''सरगोशियां'' 


की कलम फिर तल्ख़ी से भरी और स्याही सबक देने वाली भरी...समाज को उस का आईना दिखाया 


औरत के दर्द पे खुल के चली...पुरुष-स्त्री के संबंधों पे डट के खड़ी...''सरगोशियां'' है मजबूत बड़ी...


हज़ारो ने इस के शब्दों को पढ़ा..जिन के दिल है मानवता से भरे वो ''सरगोशियां'' के शब्दों पे दिल 


हार गए..जो अंदर से कायर रहे वो इन शब्दों को सच अपना मानने लगे..यारों..''सरगोशियां'' है ही 


ऐसी,साफ़ सरल चपल और सभी से जुड़ती हुई....इंसानो की बस्ती मे कुछ शैतान भी है भरे...मेरी 


''सरगोशियां'' उन के लिए भी खड़ी है हाथ जोड़े...नेक बने सभ्य बने..ज़िंदगी देखिए ना कितनी ही 


खूबसूरत है.........


 उस के लिए दौलत की चमक ही सब कुछ थी...जीवन मे हर ऐशो-आराम हासिल करना उस की 


पहली ख्वाईश थी..बहुत चाहा वो जीवन की हकीकत समझे...हम को कुछ नहीं चाहिए,यह तो समझे..

 

पर फितूर था दौलत को गलत तरीके से हासिल करना...हम उस के साथ होते हुए भी उस से बेहद दूर 


हो गए..वो उलझा रहा ईंट-पत्थर के मकान के लिए और हम उस के लिए दुआ करते रहे..विवेक ने उस 


का साथ भी छोड़ दिया और वो लालच का लबादा ओढे मौत को प्यारा हो गया...देह टूटी बंधन सब छूटे 


ईंट-पत्थर का मकान धरा का धरा रह गया...कुदरत ने हिसाब पूरा का पूरा इस तरह कर दिया...

 यह इंसान भी ना..कभी कहर-आपदा से डर गया..कभी मौत को देख डर गया...कभी अपने हाथ से 


दौलत-जमीन जायदाद को निकलते देख,घबरा गया...इंसान की फितरत से जरा हट कर सोच,जो 


दौलत-जमीन जायदाद तेरी है ही नहीं..उस के लिए क्यों वक़्त अपना बर्बाद कर रहा...अपनी देह को 


सम्भाल जो तेरी अपनी है..जिस की कीमत इस दौलत जमीन जायदाद से बहुत ही जयदा है..भागना है 


तो इस देह की देखभाल के पीछे भाग...यह नायाब रहे गी तो खुद ही हज़ारो कमा ले गा..खुद पे जो 


विश्वास रखे गा तो सब कुछ खुद ही हासिल कर ले गा... ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक होता जाये गा...

 इस दुनियाँ मे कौन पूरा है...कोई दौलत की तलाश मे अधूरा है...कोई शराब की तलब के लिए अधूरा है..


कोई मनपसंद साथी ना मिला,यह सोच कर खुद मे बहुत अधूरा है...कोई अपनी हकूमत ना चलने से 


परेशान सा अधूरा है...किसी को यह लगता है वो खूबसूरत नहीं,रोते रोते रात मे रोज़ सोता है...कोई 


पैसो की कमी से बेहाल अजीब सा जमूरा है...भगवान् ने गर कही कोई कमी ना दी होती,तो यह इंसान 


खुद को भगवान् ही मान लेता..अरे रो मत पगले,दो दिन है यह ज़िंदगानी...खुद हंस ले और किसी और 


को भी हंसा दे...यहाँ कौन अधूरा तो कौन है पूरा..छोड़ सब और मस्ती मे जीवन जी ले...

 किसी को मौत देख वो परेशान हो गया...ज़िंदगी कैसी सी है यह सोच कर हैरान परेशान हो गया...


कोई यू ही क्यों चला जाता है,यह बोल कर वो ग़मगीन हो गया...''मौत तो जीवन का शाश्वत सत्य है...


जो आया है उस को तो किसी दिन जाना होगा''...लोग जीते जी इस देह को प्यार नहीं करते...पैसा और


पत्थर को पाने के लिए ज़िंदगी सारी यू ही गुजार दिया करते है..लड़ते है इक दूजे से और अपनी जान 


खतरे मे डाल लिया करते है..वक़्त से पहले और तक़दीर से जयदा किसी को कुछ नहीं मिलता...फिर 


भी ताउम्र इस को पाने के लिए बेक़रार रहा करते है...सकून से जीना है तो जो है जितना है उसी मे 


जी ले...इस शरीर की कीमत को समझ,बाकी के लिए उस ईश्वर पे छोड़ दे...

 आंख का यह आंसू...क्या क्या बयां कर देता है...मिलती है ख़ुशी तो यह आंख छलक जाती है...कोई 


दिल को दुख दे तो यह आंख जल्दी से भर जाती है...कही दूर पिया का सन्देश ना मिल पाए तो खुद 


मे अकेले ही बरस पड़ती है..बात  माँ की ममता की करे तो याद कर अपनी औलाद को सीने मे कसक 


लिए बह जाती है...यह आंख का करिश्मा भी क्या क्या खेल दिखाता है..वो आंसू जो ना रुकता है और 


ना किसी से गिला करता है...खुद को अश्क नाम दे हज़ारो वजहों से बह जाया करता है...

 अमीरी-गरीबी को चुनौती देता उन दोनों का प्यार था...ऊँची जात-नीची जात,इस बात का उन दोनों को 


ही कोई मलाल ना था... समाज के ठेकदारों को यह सब नामंजूर था...समाज तो दूर खुद उन के 


जन्मदाताओं को इस प्यार से परहेज़ था..वो थे इस से दूर अपनी दुनियां मे ग़ुम...हंसना मुस्कुराना...


बार बार बात एक ही बोलना,साथ जिए तो साथ ही मर जाए गे...पर रो कर नहीं,हँसते हँसते दम एक 


साथ तोड़ जाए गे...दुनियां की यह कैसी रीत है...नहीं जान पाती प्यार ज़िंदगी की उम्मीद है...मरने पे 


उन को मजबूर कर दिया..प्यार की जीत तो देखिए...दोनों ने वादे मुताबिक हँसते हँसते दम तोड़ दिया..

 अभिमान किस बात का करे,ऐसा कौन सा मुकाम हासिल कर लिया हम ने...गरूर किस के लिए करे..


क्या हम ने खुदा का दर्ज़ा पा लिया..शब्दों को तोड़ा-मोड़ा और कुछ लोगों के लिए बस ख़ास हो गए..


अभिमान और गरूर को जो खुद पे हावी कर ले गे,उसी दिन माँ-बाबा की दुआओं से दूर हो जाए गे..


कुछ बन भी गए तो क्या हुआ...कितने और भी है जो आसमां के चमकते सितारे है...कभी कुछ पाया 


तो कभी कुछ खोया,ज़िंदगी इसी का तो नाम है...अभिमान कैसे होगा,जब देह के दाम भी मिटटी के 


भाव हो जाते है...

 वादियों मे घुला रंग प्यार का तो यह वादियां भी महक उठी..हम ने जैसे किए सोलह सिंगार,हर दुल्हन 


हमें देख शर्मा गई...नूर देख हमारे चेहरे का वो बोले..किस बगिया का फूल हो जो इतनी मासूम हो...


''इस नूर की रौशन बिजली तुझी पे गिरने वाली है..जिस बगिया से आए है उस बगिया की शान ही 


निराली है...संभाल जरा दिल अपना,यह रौशन-बिजलियां रोज़ रौशन नहीं होती...जिस बगिया के हम 


फूल है वहां उदासियाँ क़बूल ही नहीं होती..संग मेरे खिलखिला,इस नूर को कर सज़दा और सर झुका''..

 खुद ही मे बेशक,इक किताब है हम..पन्ने जितने है इस मे,उस से भी जयदा मशहूर है हम..किताब के 


आखिरी पन्ने तक कोई पहुंच ही ना पाए गा..जब तल्क़ देखो गे पहला पन्ना,पन्नो का हिसाब और बढ़ जाए 


गा...कही हम खड़े है किसी पेड़ की छांव मे तो कभी झुलस रहे है तपती गर्मी की उदास शाम मे...ना 


बचा तपती झुलसती आपदाओं से हमें...शायद किताब मे वो निखार आ ही ना पाए गा..कौन पढ़ता है 


किताबें ऐसी,जो सबक खास ना देती हो...ना उम्मीद कर आखिरी पन्ने तक जाने की,यह किताब पढ़ते 


पढ़ते तेरी ज़िंदगी तुझे तेरी अपनी ज़िंदगी की शाम तक ले आए गी...

 यह क्या हुआ..यह क्या किया..कभी हंसा दिया,कभी रुला दिया..कभी जी हुआ तो साथ छोड़ दिया तो 


कभी अपनी ख़ुशी हुई तो अपना लिया...कभी इतना मन दुखा दिया और कभी ऐसा भी हुआ कि बादशाह 


बेगम के रुतवे से सज़दा तक कर दिया...क्या यह प्यार है..क्या यह मुहब्बत का व्यापार है...कुछ गिला 


कर बेशक हज़ार बार शिकवा भी कर..मगर प्यार के मायने तो समझ...प्यार दिल का तार है..प्यार रूह 


का अंदाज़ है...प्यार पे जितना लिखे,बार बार लिखे..यह प्यार खासे-अंदाज़ है...

Wednesday 23 September 2020

 सिर्फ अपना स्वार्थ ना सोच,प्रेम स्वार्थ से परे इक खूबसूरत बंधन है...नाम इस बंधन को मिले ना मिले,


पर फिर भी यह प्रेम ही रहता है...किसी को टूट के चाहना और बदले मे कुछ भी ना चाहना..प्रेम नाम 


इसी का है..प्रेम तो खुद ही चल कर आता है..मन होगा जब पवित्र धारा जैसा,निर्मल होगा गंगा के जैसा..


यह खुद ही खुद से परिशुद्ध हो जाए गा..मांगने से प्रेम कहां मिलता है..दर्द किसी और को दे कर प्रेम 


वहां कब रुकता है..ढाई अक्षर कितने सरल है,निभा कर ही जाना जाए गा..स्वार्थ आ गया जब बीच मे 


तो यह प्रेम बहुत दूर हो जाए गा...

 चूल्हे की आंच पे महकता वो नूर सा चेहरा...पिया ने देखा तो सब भूल गले लगा लिया गहरा..यह कौन 


सी रोटी थी जो भरी थी प्रेम की आंच मे..यह कौन सा प्रेम था जो दिख गया चूल्हे की सच्ची आंच मे...दो 


दिल मिले और प्रेम खिल गया...समर्पण का रंग और गहरा हुआ और सजना उसी का हो कर रह गया...


बोल प्रेम के मीठे-मीठे रूह तक उतर गए...यू लगा जैसे भगवान् खुद जमीं पे उतर गए...सदियों तल्क़ 


के लिए दोनों ने इक दूजे का संग मांग लिया..ऐसा ही परिशुद्ध प्रेम बना रहे,उस भगवान् को सर 


झुका कर यह वरदान मांग लिया...


 जब तक था आशियाना छोटा सा,तब प्यार बहुत जयदा था...वक़्त था इक दूजे के लिए और जीवन इक 


खूबसूरत बहती धारा था...कामयाबी  मिली शोहरत मिली और धीरे-धीरे दौलत और महल के अम्बार हो 


गए..खुले हाथों से सब लुटाया और उन को लगा सुख़ पूरी तरह उन के द्वारे आया...रास्ते अब इतने अलग 


थे,वो दौलत के ढेर से खेलती थी और उस का साथी भी दौलत के खेल मे मदहोश था...हज़ारो सुखों के 


बीच वो ढाई अक्षर प्रेम का कहां था..वक़्त गुजरा,चेहरे पे लकीरे पड़ी,बालो मे चांदी सजी...देह थक गई..


दौलत भी थी बहुत सारी मगर देह की हालत बहुत बुरी थी...दोनों ने देखा इक दूजे को,मगर वो प्रेम 


की कड़ी अब उतनी मजबूत ना रही थी...

 आँखों मे प्रेम का सैलाब लिए वो उस के प्रेम मे डूबी थी...हर सांस उस पे वारी-वारी करती वो उस की 


जीवन-संगनी थी..कितने खवाब चुन लिए एक साथ जीने के लिए..''.वो तो सिर्फ अब मेरी है'' यह विचार 


कर उस ने उस की बेकदरी कर डाली थी...एक वक़्त ऐसा भी था जब वो उस के बहते एक अश्क पर,


खुद भी रो देता था...आज है यह आलम कि वो खुद किसी और नशे मे डूबा है..तकरार हुई सौ बार हुई,


और आज वो उस की दुनिया का  बेनाम सा हिस्सा है...प्रेम खो गया,वादे खो गए पर वो अभी भी खुद के 


लिए ज़िंदा है..हंसती है मुस्कुराती भी है..पर उस दगाबाज़ से कुछ भी ना कहती है...

 कभी पूरी तरह जिसे कोई पढ़ ना सके,बस वैसी ही इक किताब है हम...एक पन्ना ही जब समझ ना आए 


तो अगला पन्ना क्यों खोले गे आप...कठिन नहीं बहुत ज़्यदा सरल है हम..किताबों की भीड़ मे सब से जुदा 


इक ख़ास किताब है हम...दुनियां सरल समझ हम को नकारती  रही पर जब हमारी फितरत समझ आई 


तो पीछे भागने लगी...हम तो आज भी खड़े अपने सरल मोड़ पर,अब यह दुनियां तेज़ रफ़्तार से भागे तो 


खता हमारी तो नहीं...किताबें कभी बोला नहीं करती..वो रहती है सदा एक जैसी..पढ़ने वालो के विचार 


ही बदल जाते है...

 कलम ने पूछा स्याही से..क्या तू रात भर रोई है..शायद इसीलिए यह बरसात अचानक से आज फिर 


लौट आई है...तू है सहेली जिगरी मेरी,मत छुपा दास्तां अपनी...तुझ संग बंधे है तार मेरे..अलग तुझ से 


हो जाऊ गी कैसे...आ गले लग जा मेरे,शब्दों की बयानगी से अपनी जोड़ी को सज़दा कर ले...शब्दों को 


बहा देते है आज इतना,जब तल्क़ यह बरसात बरसे तब तल्क़ उतना... 

Tuesday 22 September 2020

 कभी ज़िंदगी जीत गई तो कभी अरमान हार गए...कभी हंसी ग़ुम हो गई तो कभी आंसू इसी ग़म पे 


फ़िदा हो गए...कभी कभी चोरी से वो हम से ख़्वाबों मे मिले और जो बात दिन के उजाले मे ना कही, 


वो बात ख़्वाबों मे बता गए...ख़्वाब तो ख़्वाब ही होते है,उजाला होते ही टूट जाते है...मिलो हम से इस 


ज़िंदगी की हकीकत मे..चार कदम हम चले और चार कदम तुम भी चलो...कुछ तुम अपनी कहो तो 


कुछ हमारी भी सुनो...हम तो बहती नदिया की धारा है,हम से जरा संभल के बात करो..

 कूड़े के ढेर से खाने को कुछ ढूढ़ती वो किसी की नन्ही सी आबरू थी... आज क्यों कचरे के ढेर से वो 


कुछ खाने को मजबूर थी...बला का नूर था उस के मासूम चेहरे पे...अमीरी की चमक से वो भरपूर थी..


अपनों की तलाश मे अब वो थक कर बेहद चूर थी..उस को शायद अभी तक यह मालूम ना था कि वो 


अब अनाथ थी..पर कुदरत के आने वाले फैसले से भी वो अनजान थी..फिर दो हाथ ऐसे मिले कि वो 


उन की धरोधर  हो गई..बेशक अमीरी ना थी पास उन के पर उन की ममता के आंचल तले वो बहुत 


सुरक्षित और खुशहाल थी...

 सब अपना मिटा कर वो ज़िंदा क्यों थी...वो खड़ी थी जिस्म के बाज़ार मे,इक बिकी हुई किसी की 


जरुरत थी...किसी ने उस को नाम दिया बाज़ारू तो किसी के लिए वो जवानी का कोई कीमती फूल 


थी...जिस ने भी रौंदा जिस्म उस का,साथ मे उस की आत्मा को भी रौंदा था...सब गवां कर भी वो 


हिम्मत का जामा पहने थी...इक रोज़ संग अपने, अपने जैसो को ले वो भाग निकली थी..पिंजरे से वो 


अब आज़ाद थी पर अपने साथ कितनो की जान मसरूफ कर आई थी...नारी का रूप ऐसा देख यह 


ज़माना क्यों हैरान है..अरे तुम जैसो ने ही बिठाया था उस को बाजार मे तो अब क्यों हैरान हो...झुका 


लो सर अपना शर्म से कि यह नारी अब अबला नहीं..अपनी हिफाज़त के लिए वो झाँसी की रानी भी है 

 वो पाषाण था..पत्थर था..शायद भगवान् ने बनाया ही उस को पत्थर-कंकर का था...बुद्धि थी मगर कुछ 


समझ ना थी..बात गर कुछ समझ आती थी तो दिमाग मे ना जाती थी..होंठ थे सिले हुए,उतने ही खुले 


जितना ग़लत कहने के लिए ही थे बने...जज़्बात के मायने भी उतने ही थे जितने खुद को सकून देते 


थे..हंसना कभी सीखा नहीं,शायद पत्थर पाषाण कभी हँसते ही ना थे...पूछा उस मालिक से, कौन सी 


माटी थी ऐसी जो तेरे काम की ना थी..बना दिया,कोई बात नहीं...पर मालिक इस को इस धरा पे क्यों 


भेजा..गर भेजा तो जज़्बात का टोकरा साथ क्यों ना भेजा...


Monday 21 September 2020

 मुहब्बत मे कोई फ़ना हो गया तो कोई मुहब्बत को मज़ाक बना धोखा ही दे गया..किसी को अपनी 


मुहब्बत मे सिर्फ कमियां दिखी तो कोई उस को तमाम कमियों के बावजूद साथ आखिरी पल तक 


निभा गया...किसी ने सिर्फ जिस्म को चाहा और कुछ वक़्त बाद साथ उसी का छोड़ कही और चला 


गया..जिस ने पूजा मुहब्बत को खुदा समझ कर वो साथी की बेरुखी देख इस दुनियाँ से विदा  ही हो 


गया..साँसों का मोल तो तभी तक होता है जब तक मुहब्बत का नाम मुहब्बत के साथ होता है...

 यह शब्द भी भरे है कितनी जान से ..छिपी है इन्हीं मे दुआ तो इन्हीं मे छुपा फरमान होता है..यही करते 


है शिकायत तो यह बद्दुआ भी दे डालते है...शब्दों ने कभी रुला दिया तो कभी खूबसूरत रंगो से सजा 


दिया...हज़ूरे-आला मौत को गले लगाने से पहले,यही तो है जो लिख जाते है अपनी कहानी,फ़साना 


अपना...किसी ने बोले मीठे बोल तो दिल लुभा लिया तो किसी ने दिखाई बेरुखी तो दूर रिश्ते को कर 


दिया...यक़ीनन,कितनी ही जान भरी है इन शब्दों मे...

 पुकार रहे है तुझे हर गली हर शहर मे...कहां हो तुम जरा उस शहर उस गली का पता तो दो तुम...


फिर कोई दस्तक आसमां से आई है...धरा भी कुछ भारी सी हो आई है...बरखा भी बस अब रोने को 


है...शाम भी शाम से पहले ढलने को है...इंतज़ार कहता है,कही दूर दूर तक तेरे कदमों की कोई आहट 


ही नहीं...इंशाअल्लाह,तेरी सलामती की भी कोई खबर नहीं..कहां हो तुम कि शमा भी रौशन होने को 


है...ढूंढ रहे है तुझे हर गली,हर मोहल्ले मे..शायद वो गली इस मोहल्ले मे कही है ही नहीं...

 किस बात से वो रोई थी...किस का सज़दा कर के वो सोई थी...प्यार की चोट इतनी गहरी चुभी कि वो 


हज़ारो कदम पीछे लौट आई थी...नाता-रिश्ता अब ना होगा,खुदा अपने से वादा कर वो तड़प के चीखी 


थी...उस की शिद्दत वो ना समझ पाया था...कैसे बताती उसे कि उस की बेरुखी ने उस को मार डाला


था...हमेशा कहती रही,ना बना मुझे महारानी कभी ना समझ नौकरानी कभी...जितना भी दे,हद मे दे... 


क्यों किया,किसलिए किया...इस बात से वो ज़ार-ज़ार फिर से रोई थी...

 देह के व्यापार मे,उस भरे बाज़ार मे...जिस्मों को रौंदा जाता है तो इन जिस्मों को बेचा भी जाता है..नन्ही 


मासूम बाला जो फंसी थी धोखे से इस जाल मे..बेबस और लाचार थी इस घिनौने माहौल मे...बेबसी का 


एक वो दिन,जब इक उम्रदराज़ इंसान ले गया खरीद कर उसे..बिलखती रोती चल पड़ी,अपनी 


बदकिस्मती को ऐसे देख के...कठपुतली थी वो उस के हाथ और अपने नसीब की..एक दिन उसी इंसान 


ने मांग सजा दी उस की अपने नाम से..कुदरत के इस फैसले को मान अपना नसीब, उस को साथी 


अपना बना लिया..नारी का एक रूप यह भी है..उम्र के फासले को उस ने आड़े आने ना दिया..प्रेम 


की गंगा बहाई ऐसी कि वो उम्रदराज़ भी उस के शुद्ध प्रेम का कायल हो गया..

 दोस्तों...''सरगोशियां''  आप के लिए लिखती है...समाज के लिए भी लिखती है..माता-पिता के प्रेम को भी महत्त्व देती है...कोशिश रहती है कि प्रेम के हर पहलू को शब्दों मे ढाल दू..प्रेम की अतिसीमा..प्रेम की अवहेलना..प्रेम मे दूरी..और भी ना जाने कितने रूप...जो यह कलम खुद भी लिखने से पहले नहीं जान पाती..बस उस ईश्वर का हाथ सर पे होता है और कलम लिखती चली जाती है...दोस्तों...हर लेखक अपने लेखन मे तभी खरा उतरता है जब  उस की रचना को पढ़ने वाले उस की सही-गलत समीक्षा करते है... हमेशा की तरह यह शायरा भी आप सभी से अनुरोध करती है..जहां पर कुछ भी कमी लगे मुझे बताए..यह ''सरगोशियां,प्रेम ग्रन्थ'' उस मुकाम तक तभी जा सकता है जब आप सब दोस्त साथ दे गे...मन करे तभी मेरे लेखन को सम्मान दे..यह शब्दों का ही जादू है जो बहुतो को सरगोशियां पढ़ने पे मजबूर करता है....यह इस शायरा की मेहनत और अपने उन तमाम दोस्तों के प्यार/सम्मान का ही नतीजा है कि ''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' बहुत दूर तक का सफर तय कर चुकी है..अभी और भी बहुत बाकी है....शुक्रिया दोस्तों....''आप की अपनी सी शायरा''....

 संग खेले संग बड़े हुए..कौन कब किस के प्रेम मे इक दूजे का मीत बना..वो थी उस की जीवन-रेखा..


उस को लगती थी अपनी भाग्य-विधाता..वो उम्र मे उस से जयदा थी..पर वो फिर भी उस का खवाब 


ही थी..ज़िद थी उस संग जीने-मरने की..वो समझाती पर वो उस को अपनी राधा कह बुलाता..यक़ीनन 


वो कृष्ण था उस का..झूम उठा उन का संसार..खिले आंगन मे फूल इक बार..उम्र का दौर आया जब 


राधा के बालो मे चांदी आई और चेहरे पे कुछ लकीरें भी आई..प्रेम का यह कौन सा रूप आया जब उस 


का अपना कृष्णा उस से दूर हो चला..क्या प्रेम महज़ इक देह का सौदा था..क्या देह-रूप ही सब कुछ 


था..वो टूटी तो इतना टूटी..फिर उभर नहीं पाई..पंचतत्व मे लीन हो गई और तब कृष्णा को बुद्धि आई..


प्रेम तो यह कही से ना था..क्या कृष्णा को सदा ऐसा ही रहना था...आज है वो राधा का दोषी,पर 


अब है सब सूना सूना और ज़िंदगी कृष्णा की हो गई खाली खाली...

 कहां हो तुम अब लौट आओ..ज़िंदगी तुम बिन गुजरती नहीं,पास मेरे आ जाओ...तेरा वो चेहरा रोज़ 


दस्तक देता है मेरे दिल के आईने मे...यह परिंदे भी तेरा पैगाम रोज़ देते है मुझे...मुहब्बत आज भी 


अधूरी है तेरे बिना...ज़न्नत का रास्ता भी रुक गया है तेरे बिन...मेरी पायल अब मुस्कुराती नहीं..नैनों 


का यह कजरा बहकता नहीं तेरे बिन...खिलखिला के हंसू तो आ कर अपनी बाहों मे थाम ले मुझ को...


सजने संवरने हो गए है शुरू तुम भी चलना शुरू कर हमारी-तुम्हारी मंज़िल की तरफ...

Sunday 20 September 2020

 वो मिली उस को मंदिर की सीढ़ियों पे..इक भिखारी के वेश मे...कौन है वो,यह जाने बगैर उस ने दिया 


उस को खाना इंसानियत के तौर पर..सुन उस की सम्भ्य भाषा वो चौक गया..सुन उस की दास्तां वो 


तो हिल गया...उस का साथी जो कभी उस के प्रेम मे पागल था,आज बीमार जान यहाँ मरने के लिए 


उसे छोड़ गया..एक वो इंसान था और एक यह भी इंसान है..ज़माने की परवाह किए बगैर वो संग उस 


को अपने ले आया...इंसानियत का रिश्ता कब पाक पवित्र बंधन मे बदला,यह सिर्फ ईश्वर ही जान पाया..


आज वो है उस की राजकुमारी और वो मंदिर की सीढ़ियों पे मिला उस का अपना राजकुमार है...

 मुद्दत बाद वो मिला मुझ को ज़िंदगी के उस मोड़ पे,जब हम भी अपने गमों की ख़ान मे मशगूल थे..


मुझे देख वो बोला,बहुत खुश दिखते हो..लगता है किस्मत तुम पे बहुत मेहरबान है...''हां दोस्त,सच मे 


किस्मत बहुत मेहरबान है मुझ पर''..काश,किस्मत मुझ पे भी मेहरबान होती यू ही,कह कर वो बेतहाशा 


रो दिया..उस की कहानी सुनी तो लगा वो ज़िंदगी से इसलिए हार बैठा है कि वो अब गरीब हो चुका 


है और सब ने उस से किनारा कर लिया है..पर हम बेतहाशा हंसे,सुन कौन अमीर होता है..कोई गरीब 


है दौलत से तो कोई सिर्फ दौलत के साथ भी गरीब होता है..छोड़ दे इन झमेलों को,यहाँ कौन किसी 


का अपना होता है...दास्तां जब हम ने अपनी उस को सुनाई तो वो बोला..''मेरा दोस्त दुनियाँ का सब 


से खूबसूरत अल्फ़ाज़ है''...




 दिल जो धड़का हमारा तो आसमां मे इक सितारा और चमक गया...हम हुए खुश कि किसी और की 


ज़िंदगी को नया रास्ता मिल गया...क्या यह धड़कनें इतनी बेशकीमती होती है..किसी के जीवन मे 


उजाला भर दे,ऐसे भी क्या धड़का करती है...हां,होती है.होती है..पाकीजगी से धड़के तो सिंहासन 


तो उस भगवान् का भी हिला देती है..हम भी तो उसी के आदेश से चलते है...हज़ारो जीवन मे गर 


सितारें भर दे तो खुद पे भी कभी कभी कुर्बान हो जाया करते है...

 कौन सी सुबह रही ऐसी,जिस की कोई शाम ना थी..और कौन सी शाम थी ऐसी,जो रात मे ना ढली..


रात के अँधेरे से घबराया,सोच यह काली रात कब दिन के उजाले मे ना बदली...सोच सोच का ही तो 


फर्क है...हर सुबह उठ नए इरादों से और शाम ढलने तक उस को पूरा करने का वादा खुद से कर..


फिर देख रात ना लगे गी काली और जी तेरा ना घबराए गा...यारा,यह ज़िंदगी है...जीने का जज्बा खास 


होना चाहिए...मुर्दा दिल कब इस ज़िंदगी का लुत्फ़ उठा पाते है..बस रोते रहते है और इक दिन रोते 


रोते ही मर जाया करते है....

 आ फिर से एक बार इस बरसात को और भिगो दे...यह अपने आखिरी दौर पे है,आ जरा इस को प्यार 


से गले लगा ले...विदाई दे ऐसी इस को कि यह हम को कभी भुला ना पाए...अगले बरस जब आए तो 


हम को हमारी यादों के साथ कुछ नया तोहफा दे जाए..चंद बूंदे इस की और आंचल तेरा मेरा...यह 


कभी चुप रह कर बरसती है तो कभी चीखती है ऐसे जैसे यह किसी बेइंतिहा दर्द से गुजर रही हो वैसे..


आ मिल के साथ इस का दर्द मिटा दे,शायद अगले बरस तक यह दुनिया का दर्द मिटा दे...

 फकीरी तू भी कमाल हो गई..हम को अपने साथ से बादशाह बना गई...हिम्मतों का दौर ऐसा दिया कि 


हम को रज़िया सुल्तान बना गई...दिया ऐसा ऐसा कुछ जो अमीरी भी हम को ना दे पाती..हम को धरा 


पे पांव ज़माना पक्के से सिखा दिया...तू खुदा है मेरी..ईमान है मेरी..तेरे साथ ने मुझे उस की इबादत मे 


सज़दा करना सिखा दिया...चुपके से कहे तेरे कान मे,तूने अपने वज़ूद से हम को चेहरे पहचानना सिखा 


दिया...धोखों से हुए वाकिफ और तकदीर से लड़ना तक सिखा दिया...

 आप से प्यार है इतना कि इक दिन आप के शहर आए गे और आप के प्यार मे अपने नेत्र-दान कर के 


खुद को साबित कर जाए गे...चुपके से देखे गे आप को,फूलों संग हँसते हुए...नज़र भर देखे गे आप को,


पौधों को पानी की ओस देते हुए...हम ने सादगी से समझाया उन को...प्यार स्वार्थ से बहुत परे होता है..


यह आप हमारे प्यार के लिए नहीं,अपने स्वार्थ को पूरा करने को करे गे..हम तो खड़े है प्यार के सब से 


ऊँचे से ऊँचे पायदान पे,जहां इस की कोई जरुरत नहीं...बस ईमानदारी से प्यार संग हमारे निभा 


दीजिए और अपने नेत्र-दान को किसी जरूरतमंद को दान दे दीजिए... 

 वो कौन थी ? अंदर से मर चुकी थी वो,फिर किस के लिए ज़िंदा थी वो ...किस के अधूरे खवाब को पूरा 


करने के लिए वचनबद्ध थी वो...तिनकों को समेटा तो हवा तेज़ हो गई...वज़ूद अपना संभाला तो क्यों  


ज़माने को नामंजूर हो गई वो ...तूफ़ान आते रहे बहुत गरज़ गरज़ के साथ..बचने के लिए आत्मविश्वास का 


इक नूर हो गई वो...कौन कहता है,टूट गई थी वो....जहां खड़ी थी जमीन बहुत मजबूत थी वो..जानते है 


कौन थी वो ? किसी शहशांह की मुमताज़ थी वो...मुमताज़ थी इसीलिए तो खास थी वो...

 जब भी आए अपने आप पे.. कभी मचा दी तबाही तो कभी रास्ते बदल दिए...ज़माना ढूंढता रहा हम 


को और हम ने गज़ब पे गज़ब कर दिया..किसी ने ढूंढा हम को धरा के कोने मे तो कोई हम को अपने 


दिलो मे ढूंढता रहा...प्यार की बोली बोले,मगर यह क्या..ज़माना हम को दीवाना पागल कहने लगा...


कुछ असूल है अपने भी,ज़माने को भी दिखा दिया...मासूम होना गुनाह तो नहीं..मिठास भर लेना खुद 


मे पाप तो नहीं...पाप-पुण्य के कायदे सिखाने पे जो आए तो गज़ब पे गज़ब हमी ने ढा दिया....

Saturday 19 September 2020

 प्रेम की परिशुद्ध परिभाषा.......

प्रेम इक एहसास है...

प्रेम जीवन का दूजा नाम है..

प्रेम दूजे को सुख देने का संगम धाम है...

प्रेम सकून देने का अमृत वचन खास है...

प्रेम साथी की ख़ुशी का पैगाम है...

प्रेम साथी के लिए कुर्बानी का नाम है...

प्रेम देह का मिलन भर नहीं...

प्रेम दिल का शुद्धिकरण है...

प्रेम अभिमान का नाम नहीं..

प्रेम साथी को मुसीबत मे समझने का नाम है..

प्रेम साथी की मज़बूरी को जान लेने का नाम है...

प्रेम वक़्त बेवक़्त दूर रहने का भी नाम है...

प्रेम नाराज़गी से परे संजीदगी का नाम है...

प्रेम नासमझी से परे समझदारी का विश्राम है...

''सरगोशियां'' इक प्रेम ग्रन्थ...इस प्रेम से बंधा पन्नों का वो नाम है...''शायरा'' रहे या ना रहे इस दुनियां मे,मगर यह प्रेम ग्रन्थ खुद मे सदियों तल्क़ चलने वाला प्रेम का पैगाम और सन्देश है....

 वादियों मे गूंज उठा मीठा सा शोर प्रेम का...वो बोले,यह क्या हुआ...प्रेम का शोर क्यों खिल गया...प्रेम 


तो साधना है,तपस्या है और इबादत का दूजा नाम है...फिर यह शोर कैसा जो मेरे कानों मे गूंज गया...


मेरे सनम,मेरे भोले सनम...प्रेम को तुम ने अभी कहां जाना..प्रेम का स्वरूप तुम ने अभी कहां पहचाना...


यह शोर नहीं,यह दो दिलों की आवाज़ है..जो सुनती है तुम को इक शोर के रूप मे..और मुझे,मंदिर की 


घंटियों की आवाज़ लगती है..प्रेम मे अभी बहुत कच्चे हो..जो शोर मंदिर की शोभा लगे,जो सिर्फ अपने ही 


दिल को एहसास दे..वही तो परिशुद्ध प्रेम है..देह का मिलन सिर्फ इस का अधूरा रूप है...

 मधुर धुन पे बजता हुआ इक गीत है हम....जो कल चमके गा बन के सितारा,ऐसा इक खवाब है हम...


भूल जाए तुझी को,ऐसे गुस्ताख़ नहीं है हम...पर हमेशा तेरे नख़रे उठाए,वो आफ़ताब नहीं है हम...


दूर कहां जाना है,इसी जहां मे ही रहना है..प्रेम इक शुद्ध संगम है,राधा कृष्णा के परिशुद्ध प्रेम से हम 


ने जाना है...सोना नहीं चांदी नहीं,हीरा भी तो नहीं..एक मामूली सा पत्थर है,जिस को तराशना किसी 


और से सीखा नहीं...तराशे गे खुद को अपने आप से,अहसान लेना हमारी फ़ितरत  ही नहीं...

 धरा पे रह कर धरा पे ही रहना..कुछ भी मिल जाए पर पांव इस धरा पे जमाए रखना...हां,बाबा के 


वचन याद रखते है...बुलंदियों की और जा रहे है तो आत्मविश्वास बढ़ाना होगा...तू इस को समझे मेरा 


गरूर तो नज़रिया तुझ को ही अपना बदलना होगा...ऊपर उठे गे हम तो विरले ही हमारी शोहरत हज़म 


कर पाए गे...अगर तू भी उन मे से एक है तो यक़ीनन हम तुझ से दूर हो जाए गे...ग़लत किया नहीं कभी 


तो क्यों बेवजह आसमान मे उड़ते जाए गे..नाम करना है रौशन बाबा का तो हर तकलीफ से गुजर जाए 


गे...

Friday 18 September 2020

 क्या हुआ जो दौलत के ख़ज़ाने ख़त्म हो गए..क्या हुआ जो ऐशो-आराम के साधन ग़ुम हो गए...क्या हुआ 


जो ज़माने ने हम पे दाग़ लगा दिए...क्या हुआ जो सब हमारे खिलाफ़ हो गए...जब ऊपर वाले ने साथ 


दे दिया तो ज़माने की क्या बिसात है...उस ने बेदाग़ साबित कर दिया तो ज़माने से क्या डरना...यह भी 


कोई रोने की बात है...एक दरवाजा बंद होता है तो वो दूजा पहले ही खोल देता है...जी ले जितना जैसा 


मन है तेरा,यह ज़माना तो सीता और राम को भी कहां बेदाग़ रखता है...

 किताबे-इश्क है मेरा..जो किताबो मे ही दफ़न हो जाए गा...होगी किताबे कितनी,यह तो मेरे मरने के 


बाद ही पता चल पाए गा...क्या लिख दिया,क्या बयां कर दिया...यह मेरे रुखसत होते ही जाना जाए गा...


इन कागजों पे स्याही किस दर्द की थी..यह स्याही किस ख़ुशी की महफ़िल से थी...यह सब मेरे बाद ही 


पता चल पाए गा...कद्र जिन को आज मेरी नहीं,तबियत मेरी किसी ने पूछी नहीं..इल्म ही नहीं मेरी अपनी 


रज़ा क्या है...उस रज़ा को कफ़न मेरा ढाप ले गा खुद मे ही..जनाज़ा उठे गा जिस दिन मेरा...जिस्म तो 


होगा दफ़न पर रूह का पिंजरा आज़ाद हो जाए गा...

 नैनो की भाषा दोनों नैनो ने समझी..पर फिर भी इक दूजे को देख नहीं पाए...एक रोया तो दूजा भी संग 


उसी के रोया...पर यह क्या,दोनों लिपट कर साथ संग रो नहीं पाए...दर्द भी था एक ही जैसा,तन्हाई के 


भी साथी थे..देखना चाहा इक दूजे को पर पास हो कर भी पास ना थे...दर्द गुजरा जब हद से जयदा तो 


जीने की राह एक ही थी...साथ उठे गे,साथ झुके गे...किस की हिम्मत इतनी जो रोक सके...तब से अब 


तक यह दो नैना,संग हँसते है,संग रोते है..एक शरारत कर बैठे तो दूजा भी उस के रंग मे ढलता है..


सच बोले तो इन की मुहब्बत देख मेरा दिल कुछ कुछ जलता है...

 वो संग संग चल रहे है हमारे,रेल की इन पटरियों की तरह...ना साथ है ना कोई दूरी है,बस मिलना नहीं 


कभी दो अजनबियों की तरह....दुनियां की भीड़ गुजरती रहती है हम दोनों के दरमियां...फिर भी क्यों 


तन्हा है हम दोनों अकेले पंछी की तरह...जोरों से चीख़े सुनाई दे जाती है जैसे बिजलियां कड़क के फिर 


दफ़न हो रही हो यहाँ...फिर छूट जाता है यह साथ...पटरियों पे चलती यह रेल जब पहुँचती है अपने देश 


अपने गांव...

 यह मौसम की कौन सी बेला है...पतझड़ चल रहा है या उदासी की कोई मायूस बेला है...सरसराहट सी 


है पत्तों मे और ख़ुशी दूर कही देख रही तमाशा है...बेवक़्त की बारिश ने कहा धीमे से कानो मे...कुछ भी 


सदा एक सा नहीं रहता है...यह पतझड़ यह उदासी का मौसम भी ढल जाए गा...मगर याद रखना,जो 


मिले गी ख़ुशी की महफ़िल..उस का दौर भी ना बहुत जयदा है..बेवक़्त जैसे मैं आई हू,ख़ुशी-दुखी भी 


ऐसे पंछी है...मुस्कुरा पहले की तरह,यह तो मौसम के बरसो पुराने रेले है...

 आसमां तो सदियों से ऐसा ही है...वो बदला नहीं..कभी कभार घिर आते है बादल या बरखा बरस जाती 


है...यह धरा भी कहां बदलती है..बस कभी धमाकों से हिल जाती है...सूरज भी हमेशा निकलता है...


फर्क सिर्फ इतना है कि तेज़ी मिजाज की कभी नरम है तो कभी बेहद गर्म...चाँद भी सदियों से कायम 


है..कभी वो आधा अधूरा है तो कभी पूरे शबाब पे है..फिर हम कैसे बदल सकते है...फर्क हम मे भी 


इतना ही है,कभी थके है काम के बोझ से तो कभी अपनी परेशानियों से घायल है....

Thursday 17 September 2020

 वो कहती रही और वो सुनता रहा...कभी मुस्कुराया उस की बात पे तो कभी उदास सा हो गया....


बदकिस्मती उस गौरी की थी,जो कहा रूह की ज़ुबान से...शिव समझ कह दिया सब कुछ,दिल 


अपने की ज़ुबान से...बदकिस्मत तो वो भी था,समझ से था कोसो परे...वो बनी थी नन्हे नन्हे से 


फ़रिश्तो के लिए...जन्म हुआ था उस का उन्ही की मदद के लिए...यह हवा का झौंका कुछ देर का 


ही मेहमान था...गौरी को समझ पाना शिव के लिए कभी आसान ना था...कदम उस के आगे बढ़ने 


लाज़मी जो थे...फरिश्ते उस की इंतज़ार मे पल पल बस हर पल जो थे...

 पैजनियां के घुंगरू बजते बजते बिखर गए...जहां भी बिखरे वहां वहां अपनी खास पहचान छोड़ गए...


जिस ने सराहा उन को, उन के लिए वो गीत प्यार का बन गए...जिस ने कीमत ना जानी इन की,उन के 


लिए वो सिर्फ घुंगरू रह गए...यह घुँगरू जब भी इक साथ सजते है पैजनियां मे,इन का वज़ूद महफ़िल 


को सजा देता है..यह बात और है,कोठे पे बजे तो नफरत का नाम हो जाता है...गौरी के पांव मे सज़े तो 


दिल  पिया का लूट जाता है..नृत्य को अर्पण करे तो भेंट बन जाता है....


 दूर बहुत दूर तक,चादर फैली है अरमानों की...आसमां ने बाहें फैला दी धरा की धूप छाँव पे...धरा 


खामोश है उस के इस अनजान अंदाज़ से..ख़ामोशी से देखा आसमां की तरफ और  अपने ही खामोश 


अंदाज़ से पूछ लिया,क्यों आज मेहरबान हो मुझ पर...दोनों ही खामोश थे..शायद ख़ामोशी ही उन दोनों 


की जुबान थी...शायद गुफ्तगू भी यही से इन की पहचान थी...तू है सितारा दूर का और मैं हू कण इस ही 


जमीन का...फिर भी जुड़ गए,आत्मीयता शायद इसी का नाम है...

Tuesday 15 September 2020

 किसी भी दरीचे से गुजरो तो भी शीश अपना नवा देना...यह पहचान तेरे वज़ूद की होगी...राह चलते 


किसी फ़कीर को सहारा देना,यह तेरी परवरिश की पहचान होगी...खुद की जेब भरी हो तो दिख जाए 


कोई जरूरतमंद,रख के थोड़ा सा अपने लिए...बाकी सब उस को दे देना..याद रख,तेरी कमाई मे बहुत 


बरकत होगी...प्यार की चाह रखने चला है खुद के जीवन मे..प्यार को हमेशा सहेजने का हुनर सीख 


लेना...नहीं तो प्यार की बहुत तौहीन होगी...बोल प्रेम के मीठे और पाक-साफ़ बोलना,क्या पता कुदरत 


ने चाहा तो तेरे प्यार की उम्र बहुत लम्बी होगी...

 '' सरगोशियां '' जब भी उड़ती है है कल्पना की उड़ान पे...साथ मे उड़ाती है इस से जुड़े हज़ारो लाखों 


सपनों को हकीकत के आसमान पे....किसी ने इस को पढ़ा तो कद्रदान इस का हो गया...किसी को 


यह भाई इतनी कि वो इस के शब्दों का दीवाना सा हो गया...कोई तो इस के प्रेम रंग से संवर कर 


अपने प्यार को पा गया..कितनों ने '' सरगोशियां '' को शुक्राना दिया की इस ने उन को  को बेहतर इंसान 


 बना दिया...अब कमाल तो देखिए ना इन तमाम शब्दों को..लिखते है इन पन्नों पे और हज़ारो बसा लेते 


है प्यार अपना इन की मौजूदगी मे...

 रेखा भी कैसी सी रेखा है...सीधी साधी समतल समतल...जैसी इक गौरी के दिल के जैसी...दिल जो 


धड़का संग पिया के तो रेखा हो गई ऊपर नीचे,बस बहकी बहकी नदिया के हलचल जैसी...छुआ 


प्यार से जब सजना ने,हाय दईया....यह तो घूम गई इक पहिए जैसी...आंगन खिला तो रेखा खिल गई 


मजबूती से,किसी बावरे मन के जैसी...वक़्त चला आगे तो रेखा बनी किसी अजीब हलचल के जैसी...


जीवन हारा साँसे हारी,रेखा बन गई फिर से सीधी सीधी समतल समतल..फिर ना कभी अब चलने वाली.

 मैं नहीं हू कोई स्वर्ग की अप्सरा..ना किसी के दर्द की कोई अनोखी दास्तां...हाड़-मांस से बनी है यह 


देह मेरी,जिस मे बसा इक वज़ूद मेरा...पलकें झुका कर उस ने अपने प्यार से अपने प्यार का ऐसा 


सीधा सा इज़हार कर दिया...शीशे से भी नाज़ुक़ है यह दिल मेरा...पर साफ़ भी उतना ही है,जितना 


पहाड़ो से झर-झर बहता जल भरा...धारा हू ऐसी प्यार की जो रुके गी ना कभी तेरे लिए...शर्त सिर्फ 


इतनी सी है,किसी और का ना होना कभी मेरे इस प्यार से परे....वो कदर करता था इस कदर उस की,


बोला,तू गर है धारा तो मैं भी तेरे ही संग बह जाऊ गा..किसी और का होना तो क्या,प्यार मे हर जन्म 


तेरे साथ जीने का वरदान भगवान् से मांग जाऊ गा...हम ने दुआ की इस मासूम जोड़े के लिए...


आखिर यह ग्रन्थ प्रेम का है,जहां से कुछ तो सीखा इन दोनों ने अपने लिए...

 तू मेरी जान है..तू ही मेरा जहान है..तेरे बिना मैं कुछ भी तो नहीं,यह मेरा तुझ से सच्चा वादा और यही 


मेरी पहचान है...प्रेम मे,मुहब्बत मे अक्सर यही बोल होते है...मगर यह बोल कितने और कब तल्क 


सच्चे रहते है...कभी दूर हो गए कि जिस्म के मेल रुक गए...कभी दूर हो गए कि दौलत के ख़ज़ाने ही 


ख़तम हो गए...कभी कोई किसी और के प्रेम मे चला गया,जैसे प्रेम ना हुआ कोई तमाशा हो गया...प्रेम 


इन सब से परे बहुत सकून का नाम है...जो प्रेम सकून ही ना दे वो भला प्रेम ही कहाँ है...राधा ना कृष्णा 


संग बस पाई,मगर दोनों के प्रेम की आज यह बेमिसाल पहचान है...नाम है सदा राधा का आगे और 


कृष्णा तो हमेशा उसी के प्रेम के साथ है...

 ''सरगोशियां'' प्रेम पे लिखती है तो हर रूप लिखती है...कभी प्रेम जनून है तो कभी प्रेम इबादत है..प्रेम 


कभी रूठा है तो कभी बगावत का भी नाम है...सिर्फ जिस्म को पाने पे धरा,यह परिशुद्ध प्रेम नहीं है..


जिस्म को हासिल करना,यह परिशुद्ध प्रेम का आधार कदापि नहीं है...जहाँ प्रेम का रिश्ता जिस्म की 


मांग से टूटे वो प्रेम ही गलत है...प्रेम तो सब कुछ मांगता है...पूजा,इबादत,त्याग,तपस्या और इक दूजे 


की इज़्ज़त का मान का..पावन सा झरोखा...समर्पण भी है मगर पाक दामन का साथ लिए..इक परिशुद्ध 


प्रेम ही तो है....

 शून्य मे डूबी वो निस्तेज आंखे,जो कभी भरी थी रसीली ख़ुशी से...वो देह जो होती थी कभी खूबसूरती 


की मिसाल,आज बिस्तर पे थी कितने ही दुःखो से घिरी...अपने पिया की खिदमत मे जो रहती थी हर 


वक़्त खड़ी,आज बेबस और लाचार है अपने ही पैरों की कमजोर कड़ी से बंधी...वो उस का साजन,आज 


भी उस को बेइंतिहा प्यार करता है...वो उस को आज भी अपना रब समझता है...खुद भी है उम्र की उस 


दहलीज़ पे जहां उस को अपने साथी की बहुत जरुरत है...हाल उस का क्या कहे यारों,वो तो उस बेबस 


के लिए आज भी पागल और दीवाना है...वो अपने पिया को पहचानती तक नहीं मगर उस का पिया 


आज भी उस की शून्य आँखों का दीवाना है...परिशुद्ध से भी परिशुद्ध प्रेम की यह मिसाल भी बेमिसाल 


है...

Monday 14 September 2020

 यह बिंदू भी कमाल है...माथे पे लगा तो नाम बिंदिया हो गया...माथे के ऊपर इक कोने मे लगा तो 


नज़र का टीका बन गया...कान के पीछे जो छुपा के सजाया तो माँ के लिए उस का बच्चा,सुरक्षित 


ज़माने से हो गया...पिया ने अकेले मे इस बिंदू को मांग मे भरा तो पिया का नाम साथ जुड़ गया...


यह बिंदू है या जादू की छड़ी....विधाता के मंदिर मे जो इस को लगाया तो पवित्र तन और मन सब  


हो गया...

 ओस की नमी से भरी तेरी गहरी आंखे...एक तरफ है दुनियां सारी और दूजी तरफ तेरी यह काली काली 


मदहोश सी आंखे...देखा कुछ ऐसा बारीकी से कि दुनियां को नज़राना देना भूल गए...अरमानों से भरा 


टोकरा तेरे हवाले कर दिया....अहसासों का महका सा चमन तुझी पे वारी वारी कर दिया....प्रेम की यह 


महिमा तो ऊपर वाला ही जाने..हम ने तो शुद्ध मन से उस की इस रचना को तेरे नाम कर दिया....नमी 


भर के अपनी इन आँखों मे मुझे यू ना देख...रोने का अब मन नहीं,ख़ुशी का यह आंचल भर दे अब,जरा 


मेरे लिए..

Sunday 13 September 2020

 तेरे प्यार तेरी मुहब्बत का इक खूबसूरत सा महल सजा लिया हम ने...तेरे ही साथ जीने का खास जज़्बा 


बना लिया हम ने...मुहब्बत का यह महल जानते हो,किस पे खड़ा है..जानम ,यह तेरी इबादत और मेरी 


इबादत की डोर पे खड़ा है...ख़ुशी के कुछ फूल चुने हम ने और तुझी को नज़र कर दिए...अपने भी ना 


हुए,बस तेरी ही धुन मे तुझी को समर्पित हो गए...कौन है हम,यह भी तो भूल गए...जानम,अब तुम ही 


बता दो हम कौन है तेरे...कितनी सदियों से तेरे हो गए...

 सुन मेरे सजना...नज़दीक जरा आ मेरे,तेरे कानों मे कुछ कहना है....जो भी कहना है,बहुत ही धीमे से 


कहना है...तू है मेरा दीवाना पागल,इस बात को विस्तार से कहना है...मेरी शरारत भरी आँखों पे ना जा..


आ पास मेरे,इन मे तुझी को गहरे तले तक उतार देना है...नशा मेरा कभी कम ना पड़े,तुझे हर पल गहरी 


खुमारी मे रखना है...कभी चंचल हू मैं,कभी नदिया सी धारा हू मैं...तेरे लिए कभी जोगन बनू तो कभी 


राधा तेरी बनू...तू सिर्फ और सिर्फ मेरा अरमान रहे और मैं तेरी आरज़ू का बेइंतिहा खज़ाना रहू...

 तुम को बचपन की उस नोंक-झोख का वादा निभाना होगा...मिट्टी से सने मेरे तेरे पैर,उन को धोने के 


लिए तुम को आज फिर मेरे पास आना होगा...जानती हू,बदल चुका है अब मेरा तेरा जीवन..कुछ दर्द 


है पास मेरे तो कुछ खुशियाँ है तेरे रास्ते...बचपन का वो मासूम सा नाता,कितने छोटे छोटे वादे..और 


मुस्कराहट हद से जयदा..हर छोटी सी बात पे जोर से हंसना और दुनियाँ से बेखबर रहना...कोई क्या 


बोले गा इस से परे अपने मे जीना...आज तुम से मिलने का मन होता है तो दिल बहुत कुछ सोच लेता है..


तेरी दुनियाँ आबाद रहे,तेरा संसार खुशहाल रहे..पर बचपन का वो मासूम नाता हमेशा वैसे ही कायम 


रहे...

 यह नन्हा सा दिल जो बुझने लगा था चुभते खंजर के तले...तूने अहसास दिलाया,मैं हू ना साथ तेरे...


यह दिल का आईना तेरी बातों से फिर निखरा...नख से शिख तक मेरा जिस्म फिर महका...क्यों फिर 


जी हुआ तेरी बाहों मे सिमट-सिमट जाए...तेरे हर लफ्ज़ के कायल हो जाए...हर वो दास्ताँ जो भूल चुके 


वक़्त के इस सागर मे फिर से इस को याद कर ले...जवाबदेही ना तेरी तरफ से हो ना मेरी और से...


कुदरत साथ तेरे भी हो और साथ मेरे भी हो... मेरी नासमझी पे गरूर तुझे आज भी हो...दिल जो है 


इतना छोटा सा,यह तेरी मेरी बातों से कभी खामोश ना हो...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...