शिकस्त दे रहे है हर रोज़ इन गमो को धीरे धीरे--लोग कहते है हमारी मुस्कराहट और गहरी हो रही
है धीरे धीरे--चेहरे का नूर रोज़ बढ़ रहा है धीरे धीरे--कुछ सुना तो कुछ अनसुना कर दिया--ज़मीर
अपने की सुनी और दिल को प्यार से समझा दिया--यह बात और है कि रोज़ मुलाकात करते है इन
गमो से,आईना गवाह है कि संभलते भी है तो धीरे धीरे---शिकस्त दे कर पूरी तरह,चमके गे सूरज
की तरह--------मगर धीरे धीरे--
है धीरे धीरे--चेहरे का नूर रोज़ बढ़ रहा है धीरे धीरे--कुछ सुना तो कुछ अनसुना कर दिया--ज़मीर
अपने की सुनी और दिल को प्यार से समझा दिया--यह बात और है कि रोज़ मुलाकात करते है इन
गमो से,आईना गवाह है कि संभलते भी है तो धीरे धीरे---शिकस्त दे कर पूरी तरह,चमके गे सूरज
की तरह--------मगर धीरे धीरे--