Saturday 6 April 2019

झर झर बहते पानी की तरह,ज़िंदगी अपनी को बहाते ही रहे...रुकने का कही नाम ना था,हवाओ की

तरह उड़ते ही रहे...कब भीगे यह नैना,कब हंसे किसी रैना मे यह नैना...मुस्कराहट रही इतनी गहरी

कि खुद के गमो को कभी जान कर भी ना जाना...उदासी मे भी खिलखिला कर इतना हंसे,ज़माना

रश्क करता रहा और हम ज़िंदगी अपनी को हवाओ की तरह उड़ाते ही रहे..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...