Tuesday 31 March 2020

आज से हम भी इस ज़िंदगी से दग़ा करने वाले है..इस को हराने के लिए इसी पे भारी पड़ने वाले है..हर

लम्हा रहे गे खुश,बेशक यह हम को हर लम्हा दर्द देती जाए..बेवकूफ बनाती आई है यह हम को बरसों

से..दे के ख़ुशी ढेर सारी हम को हंसाती है इतना कि आँखों से ख़ुशी तक टपका देती है..मर्ज़ी हो इस की

तो झट से बेइंतिहा रुला देती है..इतना दर्द देती है कि याद माँ की आ जाती है..तू भी याद रखना ऐ ज़िंदगी

आज से,कोई तुझ पे भी भारी पड़ सकता है..तू दे ख़ुशी या दे गम बहुत..हम मुस्कुराते जाए गे..तब तक

जब तक तेरे खुद के आंसू ना निकल जाए गे..

माहौल है हर और मौत का..पर हम इस को जश्न का दौर मान रहे है...यह कौन सा  खौफ है,जिस से सब

भाग रहे है...मौत तो सकून दिया करती है..यह तो ज़िंदगी का काम है जो खुशियाँ थोड़ी सी मगर गम

हज़ारों दिया करती है..जब जब देती है ख़ुशी,लोगो को जलन होती है..दर्द मे डूबते हो तो लोगो को सवाल

करने का मौका देती है...जीने लगो बिंदास तो आवारा कह देती है..सजने-संवरने लगो तो आशिक-मिज़ाज़

कह देती है..अब तू ही बता ऐ ज़िंदगी,तू कहाँ से अच्छी है..मौत की खूबसूरती तो देख,यह जब भी किसी

पे आती है तो दुनियाँ को कुछ भी ना कहने का मौका तक नहीं देती है..आदाब देते है मौत तुझे..
यह वक़्त कह रहा है मुझ से संभल जा आगे मौत का खौफ है..हम खिलखिला कर जोरों से हंस दिए..

मौत से अब खौफ कैसा..यह इतनी बुरी नहीं होगी जितने इस संसार के लोग है..जो दिखते है खूबसूरत

मगर दिल के बहुत बदसूरत है..बातें करते है इतनी प्यारी,कोई भी इस ज़िंदगी से प्यार कर बैठे..मौत आ

जा तुझे प्यार करने लगे है हद से जयदा..मगर जब तक तू नहीं आती,हम दिलेरी से बिंदास जिए गे..सांसो

को बेहद तहजीब से जिए गे,सब के लिए वैसे ही जिए गे जैसे जीते आए है..तू जब भी आए गी,तुझे हँसते

हुए ही मिल के गले लगाए गे ....
पत्थर सिर्फ पत्थर नहीं होते..उन को पूजा जाए शिद्दत से,उन को सराहा जाए सच्ची भावना से..तो उस मे

भी भगवान् मिल जाते है..हम ने पढ़ा था क़िताबों मे.. हम ने सुना था बाबा की आवाज़ों मे..ठीक वैसा हम

ने भी किया...एक मामूली पत्थर को हम ने मंदिर मे रखा..शिद्दत से उस को पूजा..नेक भावना अर्पित कर

दी हम ने..कोई कसर ना छोड़ी हम ने..भूल गए यह घोर कलयुग है..पत्थर कैसे कंचन हो सकता है..कुछ

वक़्त गुजरने के बाद,दरारें दिखने लगी पत्थर मे..टूटा दिल टूटी आशा..पत्थर तो पत्थर रहा..आज मंदिर

मे उसी भगवान् को रखा है,जो सदा आराध्य रहे हमारे..सदियों से जो सांचे-पावन है..
पत्थर सिर्फ पत्थर नहीं होते..उन को पूजा जाए शिद्दत से,उन को सराहा जाए सच्ची भावना से..तो उस मे

भी भगवान् मिल जाते है..हम ने पढ़ा था क़िताबों मे.. हम ने सुना था बाबा की आवाज़ों मे..ठीक वैसा हम

ने भी किया...एक मामूली पत्थर को हम ने मंदिर मे रखा..शिद्दत से उस को पूजा..नेक भावना अर्पित कर

दी हम ने..कोई कसर ना छोड़ी हम ने..भूल गए यह घोर कलयुग है..पत्थर कैसे कंचन हो सकता है..कुछ

वक़्त गुजरने के बाद,दरारें दिखने लगी पत्थर मे..टूटा दिल टूटी आशा..पत्थर तो पत्थर रहा..आज मंदिर

मे उसी भगवान् को रखा है,जो सदा आराध्य रहे हमारे..सदियों से जो सांचे-पावन है..
एक सांस आती है तो दूजी के लिए क्यों फ़रियाद की जाती है..क्यों कंपकंपा रहा मौत का खौफ..हम

कहते है,ले लो हमारी बची साँसे..जीना नहीं अब हम को और...हम ने कुदरत को शीश नवाया,बाबा से

किया हर वादा निभाया..माँ के दिए हर संस्कार को हर रिश्ते भर-भर निभाया..आंसू है बस इसी बात के

हम को ज़माना कभी समझ ना पाया..जन्म नहीं लेना दुबारा,यह दुनियाँ बहुत ही मैली है..इंसा सच्चे नहीं

है मन के,कालिख भरी है दिल मे सारी..देना दाता जीवन तभी दुबारा,जब सतयुग इस जग मे आये गा..

पापी खत्म होंगे जब सारे,तब हम जीने आए गे..अपने मन की बात तभी दाता,तुम को बताए गे...
भूख प्यास का क्रंदन..
गरीबी के दुःख का क्रंदन..
बीमारी के डर का क्रंदन..
औलाद के खोने का क्रंदन...
घर ऊजड़ जाने का क्रंदन..
रूह को रुला देने का क्रंदन..
धोखा देने का क्रंदन..
जान खोने के डर का क्रंदन..
जो पाया उस के खोने का क्रंदन..
क्यों अब याद आ रहा दुःख दे के खुद सुख ना पाने का क्रंदन..
जो बोया है सो काटे गा,फिर क्यों अब इतना क्रंदन...
गुनाह किया फिर अब कैसा क्रंदन..
प्रभु अपनी शरण मे ले लो,अब ऐसा क्यों क्रंदन...
उस की माया वो ही जाने,कर ले अब कितना भी क्रंदन..
जान बचे गी अब तेरी बन्दे,जब माने गा अपनी गलती और खुल के करे गा मन का क्रंदन...

यह धरा यह आसमां..नहीं रही इंसानो के रहने की जगह,कुदरत ने ऐसा इशारा कर दिया..जो इंसा ना

समझ सके धरा को रहने की जगह,ना ठीक से आसमां को छूना आया किसी नेक इंसा की तरह..खुद

को भगवान् समझने की भूल बार-बार करता रहा..पर भगवान् फिर भी मौके हज़ार देता रहा...दौलत के

लिए सब को पीछे छोड़ा,संस्कारो को कूड़े के डिब्बे मे डाला..बस विनाश तो आना था..भगवान् ने दिया

यह खुला साफ़ आसमां परिंदो के लिए..थोड़ा सा वक़्त इन इंसानो को दे दिया धरा पे साँसे लेने के लिए..

देखे अब कितना इस बात को इंसान समझता है..कितनो को अभी भी दुःख और देता है..
वादों का क्या है यह तो अक्सर ही टूट जाया करते है..वैसे ही जैसे जिस्म से रूह निकल जाया करती है..

साँसों को रुकने के लिए कहे कैसे...यह सूनी-सूनी है बिन दिल के जैसे...आंखे पथरा जाए गी किसी दिन

किसी पत्थर के बुत के जैसे..यह बेजान जिस्म ना करे गा कोई शिकायत,रूह भी इस को छोड़ जाए गी

बिलकुल वैसे...जैसे समंदर अपने दिल से निकाल फैकता है वो मोती,जो उस के काम के नहीं होते...

बस वही रहते है समंदर की तह मे,जो कठोर और नकली होते है पत्थर जैसे...नरम मासूम दिल अक्सर

टूट के भटका करते है और कभी-कभी किसी के पैरो तले कुचल भी जाया करते है..
यह कलम आज रुकने को तैयार नहीं..कहती है,लिख लिख और लिखती जा..रुला दे सारे जहान को..

सिसकियों मे डुबो दे हर इंसान को..तड़प दे ऐसी कि मौत का खौफ ना याद आए..याद आए तो सिर्फ

दिल दिमाग से जुड़े लम्हे ही याद आए..कौन आया है इस संसार मे सदा रहने के लिए..कौन है जो हर

तरह से खुश है इस ज़िंदगी के साथ के लिए...बस याद रख उन बीते खुशनुमा लम्हो को,मौत के आने से

पहले खुल के जी उन बीते लम्हो को..यही तो हकीकत है,जो रूह के साथ जानी है..कोई नहीं यहाँ अपना,

तो कौन बेगाना है..अश्क आँखों मे भर और फिर मुस्कुरा..दिन जितने मिले,हम फिर कहे गे,जी ले जरा..

Monday 30 March 2020

हम सोचते रहे कि वक़्त हमारा है..जो मिला वो सब हमारा है..सजा ली इक नन्ही सी दुनियाँ दिल के एक

कोने मे..रोज़ संवारते रहे कभी प्यार और कभी आंसू की धारा से..रोज़ ही यू लगता,सूंदर कितना मेरा यह

जहान है..दिल को टटोला तो पता चला,यहाँ फ़रिश्ते का कोई स्थान है..पूजा की थाली मे पहला फूल उस

के नाम किया..आया तूफ़ान और दर्द का सैलाब,वो फरिश्ता नहीं वो कागज़ का टुकड़ा था..तभी तो इस

आंधी मे खो गया..हम तब समझे कि वक़्त कितना बेरहम होता है..वो जब चाहे,किसी से कुछ भी छीन

लेता है..अश्क गिरे और यह वक़्त,रेत की तरह हाथ से दूर कही बहुत ही दूर फिसल गया..
सोच रहे है,जब तक है ज़िंदा..क्यों ना खूबसूरती पे ही कुछ लिख दे..कितनो को समझा जाए,खूबसूरती

होती है कैसी..खूबसूरती का है बड़ा पुराना गहरा रिश्ता मन की सुंदरता के साथ..मन होता है जब बेहद

साफ़ और सूंदर,खूबसूरती को कोई नहीं लगाता दाग..बन जाती है इबादत के जैसी,जब कुदरत दे अपना

हाथ..नकली रंगो का कोई नहीं होता इस खूबसूरती मे कोई काम..नकली सूरत,नकली चेहरे और दुनियाँ

समझी उस को खूबसूरती का नया मुखौटा,नई पहचान..काश..लोगो की सोच भी खूबसूरत होती,ना आते

मन मे कुलषित विचार..असली सूरत को नहीं जरुरत,किसी की तारीफ,वो खुद मे है अप्सरा और

मेहबूब की इबादत का नाम....
आसमाँ उजला उजला है...धूप भी निखरी निखरी है..सोच रहे है ,इंसा ऐसे उजले निखरे क्यों नहीं आए...

काश..दुनियाँ खूबसूरत होती..काश..यहाँ सारे मन के सूंदर निखरे होते..तब दर्द ना होता कोई...होता भी

तो सहने की हिम्मत भी होती...जो वक़्त आया है ऐसा,इस कहर से तो शायद बहुत कम होता..पुकार रहे

है मालिक तुझ को..नीर भरे है इतने आज..इतना सा तुम से एक सवाल....तुम ने बनाई जब यह दुनियाँ

क्यों डाल दिए इंसा इतने मैले..तेरी यह दुनियाँ हम को ना भाई..इक दूजे के खून के प्यासे,क्यों बनाई

दुनियाँ तुम ने ऐसी...
हम ना रहे तो हम को याद जरूर करना...कभी-कभी इन पन्नो पे हम से मिलने जरूर आना..कौन

कहता है मौत के साए हवाओं मे फैले है..कौन है जो कहता है कि मौत को हम रोक पाए गे..पास ना

आना दूर बहुत दूर ही रहना..क्या मौत से तब भी बच पाओ गे...बंद दरवाजों मे भी कोई होगा ऐसा भी

जो पल-पल मौत को देख रहा होगा..कुछ अरमान रहे होंगे उस के भी..खवाबों के साथ कुछ जयदा सांसो

की उम्मीदे भी करी होगी..पर यह मौत अंदर क्या बाहर क्या...आए गी तो बस आई गी..इसीलिए तो अब

कहते है,हम ना रहे तो याद हम को जरूर करना............................................
आज चारों तरफ आग ही आग है..पर धुआँ जहरीला है..बरसो पहले यही आग थी,मगर धुआँ पाक-साफ़

से जयदा था..आज तबाही देखे गे हम,इस जहरीली आग की...शायद सब भूल चुके है,साफ़ ज़मीर के

उजले मायने...मायनो का मतलब तू ना जाने वो भी ना जाने..आँखों का यह बहता नीर कहे,काश....ऐसा

ना होता..मगर आग तो फैल चुकी,शायद भस्म हम भी हो जाये गे..भस्म होने से अब क्या डरना..डर के

जीना भी है कोई जीना..दांव पे लगी यह ज़िंदगी कहती,कुछ सपने मेरे भी थे..चिता बन ना जाए यह सपने

हम ने आग को तेज़ी दे दी...
शुद्ध प्रेम की परिभाषा बार-बार लिखते रहे..परिशुद्ध प्रेम के मायने भी जग को समझाते रहे...कौन इस

को समझा तो कौन इसी प्रेम की आड़ मे किसी को दग़ा देता रहा..कही कोई इसी जग मे इस परिशुद्ध

प्रेम की मिसाल बन गया...तू ही तू..बस तू ही तू..मन मे तू,रूह मे भी तू..अनंत-काल का वादा कर के

सब को जैसे भूल गया..कोई प्रेम को खेल समझ,ना जाने कितनो को दग़ा देता रहा..सूरत को कोई मोल

नहीं होता शुद्ध प्रेम की लीला मे..मगर सूरत को रख सामने,नकली प्रेम को ढोंग रचाया करते है..तभी तो

आज इस युग मे प्रेम का वयापार ना जाने कितने लोग किया करते है..मगर परिशुद्ध प्रेम मे जीने वाले,

दग़ा की बाज़ी सह नहीं पाते...जीते जी मर जाया करते है...

Sunday 29 March 2020

महक रहे है किस बात पे..खुश है बहुत किस बात पे..बंद है अपने ही आशियाने मे,लगता है जैसे फ़िदा

है अपने ही आंगन मे लगे कुछ फूलों और पत्तो के खिल जाने पे...यह भी तो गज़ब है,इन को खिलते

देखना...गज़ब तो यह भी है,गलत इंसानो की गलत फितरत से दूर बच कर अपने ही घर मे रहना..

मज़े से अपनी पसंदीदा गीतों को सुनना..सकारात्मक सोच से जीना है,जब तक जीना है..वो ज़िंदगी भी

कोई ज़िंदगी होगी,जब रो कर हर पल जीना है..जो मिला है,जितना मिला है..उसी मे ख़ुशी-ख़ुशी रह लेना

है..
क्या पता जीने के दिन कितने बचे है...क्या पता साँसों के बंधन कितने बचे है...क्या पता इस खूबसूरत

दुनियां मे रहने के लम्हे कितने बचे है...अब कितने बचे है या कितने रह गए है..इस बात से बेखबर

खुल के जीना है..जिस ने दुःख दिया,किस ने दर्द दिया..कौन रहा था जो परेशानी की वजह बना..याद

कुछ करना नहीं..इन दिनों मे वो सब कर लेना है,जिस के लिए सोचते रहे..पन्नों पे लिख कर सब के लिए

कुछ छोड़ जाना है..ज़िंदा रह गए तो इस कहानी को बार-बार पढ़े गे..चले गए तो दुनियां को याद आते

रहे गे...

ईश्वर के बनाए नियमों पे जो चला जाता..माँ-बाबा के संस्कारो को साथ रखा होता..कभी किसी बेबस

का दिल ना दुखाया होता..बेज़ुबानों को अपना भोजन ना बनाया होता..तो आज संसार का यह हाल ना

होता..कहने को तो कोई भी कह दे,हम कसूरवार नहीं.. एक नन्ही सी कुदरत की आफत ने,जब घरो

मे बांध दिया..सोचिए जरा,वो और क्या कर सकती है..जीना है जितने पल,बेखौफ जी ले..जाने कब किस

की दुआ साँसे देने के काम आ जाए...पर जी इस शर्त के साथ,जीवन जो मिला दुबारा तो किसी का दिल

ना दुखाना है..ईश्वर का उपकार भूल ना जाना है..

Saturday 28 March 2020

ना जाने कितने लिपे-पुते चेहरे इन दिनों बेरंग हो जाए गे..नकली खूबसूरती पे नज़्म लिखने वाले कितने

मज़नू बेवकूफ बन जाए गे..वो मज़नू जो देखते रहे उस चेहरे को,जो सज़ा था रंगो की चादर मे..और

मजनूं लिख रहा था,खूबसूरती की परिभाषा इस तस्वीर मे देखो..रूहानी खूबसूरती के मायने तो अब

सामने आए गे..जो दीवार साफ़-पावन है,उस को नकली रंगो की जरुरत ही क्या..जिसे सजाया है खुद

कुदरत ने अपनी माया से,उस को किसी भी मजनूं की तारीफ की जरुरत क्या..रूहे-तस्वीर जितनी पाक

होगी,उतनी ही वो दुनियां मे इज़्ज़त की मूरत होगी.. 
वक़्त तो अब आया है सब के कर्मो के हिसाब का...कुदरत खुद आई है सब का साफ़-साफ़ इंसाफ करने

का..डरने की जरूरत किस को है,किस को नहीं..यह तो सब का अंतर्मन ही जान रहा होगा..दौलत को

इकठ्ठा कर के क्या हासिल होने वाला है..जब साँसे ही कुदरत ना दे गी तो यह दौलत क्या साथ ले जाए

गा..कहते आए है ना जाने कब से,धरा ही है रहने के लिए..आसमां को छू ले मगर फिर धरा को चूम ले..

किसी का दिल दुःखा कर कोई आज तक सकूँ से जी पाया है..बात मुहब्बत की करे तो अब भी वक़्त

दे रही कुदरत,इस को भी शुद्धता से निभा दे..बेवफाई कर के कुदरत की सज़ा पाने को हर पल

तैयार रह..क्यों कि उस कि लाठी मे कभी आवाज़ नहीं होती..
कुदरत बिखेर रही है रास्ते-रास्ते अपने होने के निशाँ...बहुत बारीकी से समझा रही है गरूर से परे होने

और खुद को सुधारने के कायदो के निशाँ...इंसा सही बनने के निशाँ..सही राह को चुनने के कितने ही

रास्ते और कितने जहां...अब भी इंसा ना माने तो कुदरत को दोष कहा देना..जरुरत है सभी को खुद मे

झाँकने की,मत रुला किसी को अब खून के आंसू..कुदरत फिर ना दे गी हम सब को सुधरने का मौका..

यह जो हवा का झोका है वो परिंदो को दे रहा है जान तो तेरी-मेरी बिसात क्या है..अपनी हर गलती से

अब तो सबक ले ले..कल क्या पता ना मैं रहू इस दुनियां मे और ना तेरा कोई वज़ूद रहे..
ना सता किसी का अंतर्मन इतना..ना टुकड़े हज़ार कर दिल के इतने..वफ़ा के नाम पे किसी को धोखा

देना..हर किसी के पास रूह की ताकत नहीं होती..हर किसी की जुबान पे सरस्वती भी बैठी नहीं होती..

तेरे-मेरे हर कर्म का हिसाब उस के पास लिखा जाता है..हर झूठ का लेखा-झोखा उस की किताब मे

दर्ज़ होता है..खुद को इतना मासूम ना साबित कर दुनियाँ की नज़रो मे..ना जाने कब किसी बेकसूर की

आह तुझे लग जाए..ना तू जी सके गा कभी,ना ही मर पाए गा..बस जो गुनाह तूने किया,कर रहा है..उस

के लिए मैं तो क्या वो भगवान् भी तुझे माफ़ नहीं कर पाए गा..दुआ है तो बद्दुआ की ताकत भी उतनी है..
बुजदिल रह ज़माने तो रह..मगर दिल का तो साफ़ रह..औरत पे गलत नज़र डाल के खुद को मर्द
होने का फिर दावा ना कर..जिस की कोख से पैदा हुआ,जिस के हाथो मे पला..जिस ने खुद को भुला
कर तुझ को एहसास तक ना होने दिया...फिर भी तूने उस को उस का स्थान ना दिया..ढूंढी सिर्फ उस
मे सिर्फ खामियां और उस को आगे जाने से रोकता रहा..बगावत ना करे औरत तो फिर क्या करे,मक़ाम
अपना बनाने के लिए,खुद के हुनर को आगे लेन के लिए,खुद ना मरे तो क्या करे..वो खूबसूरत है तो भी
परेशानी,वो बदसूरत है तो भी बेहद परेशानी ..जिस को शिदत से चाहे,वो कुछ वक़्त बाद उस की बेकद्री करे..उस के इलावा किसी और की खूबसूरती पे भी मरे..उस से भी वादा,उस से भी वादा..ईमानदारी से कोसो दूर रहे..औरत की पाकीजगी को जो ना समझा,वो उस के वज़ूद को क्या माने गा..आज आक्रोश है मेरे लफ्ज़ो मे..खुद को इतना ऊँचा ना समझ कि औरत को खो के रो भी ना सके..''सरगोशियां'' सिर्फ प्रेम,प्यार,मुहब्बत के साथ औरत की गरिमा को भी समझाती है..प्यार कोई खेल नहीं,यह दुनिया को भी समझाती है..''सरगोशियां.इक प्रेम ग्रन्थ'' 
मेरे लिखने पे पाबन्दियाँ ना लगा ऐ ज़माने कि मुझे आकाश मे उड़ना है..लफ्ज़ बहुत है पास मेरे,इन

सब को तमाम दुनियाँ मे बिखेर के ही मरना है..श्रेष्ठ अति श्रेष्ट शायरा जो बनना है..तुझे कुछ समझ ना

आए तो मुझे क्या करना है...मन के मैल को साफ़ करे गा तभी तो साफ़ मन से मुझे मेरे लफ्ज़ो को जान

पाए गा..दिल दिमाग को मेरी ज़िंदगी मे उलझाए गा तो ''सरगोशियां'' का वज़ूद कभी ना समझ पाए गा..

एक मामूली सी हस्ती हू,जिस का मकसद पूरा करने मे मेरी मदद कर..क्या औरत हू,इसलिए प्यार पे

लिखना मना है मुझ को..सुन पिछड़े ज़माने,औरत को ना रोक आगे जाने से..पाक साफ़ रख खुद को

तभी तो औरत को उस के हुनर को समझ पाए गा..वरना मेरी ज़िंदगी के ताने-बानो की खबर लेता रह

जाये गा..

Friday 27 March 2020

वो लफ्ज़ ही क्या ..हम लिखे और यह ज़माना हमीं की दास्ताँ मान ले...हम तो वो जादूगर है,जो दिलों से दिल निकाल लेते है..यह लफ्ज़ गर सब पे भारी पड़े तो यह शायरा भी क्या करे..कलम जब भी ले हाथ मे तो कुछ सोचती नहीं यह कलम...पाताल की गहराइयों से तो कभी धरती की तह से नीचे..यह शायरा जब भी लफ्ज़ उठाती है तो तहलका मच जाता है..यह दुनियाँ कभी रो देती है तो कभी रूमानी हो जाती है..जब लफ्ज़ो का भार बढ़ जाये तो शायरा की ज़िंदगी को इन शब्दों से जोड़ लेती है. मेरी ज़िंदगी को मेरी ज़िंदगी ही रहने दो,यह गुजारिश सभी से यह शायरा करती है....''सरगोशियां'' का जादू सब के सर चढ़ कर बोले,यही तो यह शायरा चाहती है...''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ''   
 आ रहा है याद मुझे वो वक़्त,जब तूने मुझे सम्मोहित किया था..वो कौन सी रौशनी थी,जिस ने मुझे

चौंधिया दिया था...कब और कैसे ,तूने मेरी सुध-बुध ग़ुम की..कैसे तेरी बातों ने रचा कौन सा खेल..

बार-बार पलट कर मुझी को देखना..बातें मेरी तस्वीरों से करना..हज़ारो बार मेरी रूह को पुकारना..

मुझी से मुझ को मांग लेना..रातों के सन्नाटे मे मुझे पढ़ना..रातों की मद्धम लो मे मुझ पे बेहिसाब

लिखना..आकाश की बुलंदियों से मुझे पुकारना..हम है धरा के,यह कतई ना मानना..सब आज बहुत

बहुत याद आ रहा है..वक़्त वो मुझे सम्मोहित करने का...
बहता रहा जीवन नदिया की धारा की तरह और हम वैसे ही चलते रहे...कहा किनारे-किनारे बसो,हम

वैसे ही बसते रहे..फिर हुआ कुछ ऐसा,हम बगावत पे उतर आए...तोड़ दिए बंधन सारे,अपनी मर्ज़ी के

मालिक हो गए...ज़मीर ने जो कहा,उसी को मानने लगे..कुछ गिला ना अब खुद से है,ना दुनियां वालो

से है..एक कदम जब चलते है तो दूजा भी साथ उठाते है..तक़दीर से अब कोई शिकायत नहीं,खुद से

प्यार है इसलिए खुद की ही सुनते है..
जितनी ख़ामोशी बाहर है..उस से जयदा कहीं अंदर है..बोल जो बोलते है तो वो दीवारों से टकरा कर

वापिस हमीं तक क्यों लौट आते है..यह दीवारें यह झरोखे,यह परदों से झांकती हल्की हल्की सी

रौशनी...कुछ तो ऐसा है जो दिमाग मे मचा रहा है खलबली...अब याद आ रहा है,ठीक कहा था तुम

ने..मुझे मुझ से जयदा यह दीवारें,यह झरोखे,यह परदे..मुझे पूरी तरह जानते है..फूलों पे ठहरी ओस

की बूंदे क्यों हम को देख,दोस्ती का हाथ बड़ा देती है..तभी यह ख़ामोशी आज बाहर से जयदा कहीं

अंदर है...

Thursday 26 March 2020

मेरे दोस्तों...आज हम हमारा देश संकट के उस दौर से गुजर रहा है,जहाँ हर कोई सेहत और ज़िंदगी की सलामती के लिए फिक्रमंद है..बार-बार यही कहा जा रहा है कि घर मे रहे..हाथ धोते रहे..मेरे दोस्तों..सब अपना अपना खूब ख्याल रखे..ईश्वर हम को स्वस्थ रखे..मेरे दोस्तों...कभी बहुत बहुत धयान से सोचिए गा कि हमारी सुरक्षा के लिए,हम को सारी जानकारियाँ देने के लिए...हमारी सेवा करने के लिए..कितने ऐसे फरिश्ते है जो घर से बाहर जाते है..इन मे डॉक्टर्स,नर्स,सफाई कर्मचारी,सुरक्षा कर्मी,मीडिया से जुड़े हज़ारो फरिश्ते,राशन-पानी देने वाले हमारे भाई,दूध और अन्य सामान की डिलीवरी देते यह डिलीवरी फरिश्ते...और भी ना जाने कितने....सच तो यही है कि यह सब इस संकट मे किसी फरिश्ते से कम नहीं...दोस्तों...हम तो घर मे है..आप सभी से हाथ जोड़ कर प्रार्थना कि इस गहन संकट की घडी मे हम सब इन तमाम फ़रिश्तो के किये सच्ची दुआ करे..वो स्वस्थ रहे,सुरक्षित रहे..यह भी किसी के बेटे/बेटियाँ,पति/पत्नी,माता-पिता है..जितनी हो सके इन सभी के लिए दुआ कीजिए...दोस्तों...दवा से कही जयदा दुआ काम आती है...यह संकट का समय शांति से गुजर जाए और सब स्वस्थ हो कर अपने अपने घर लौटे..ढेर सारी दुआए इन सभी फ़रिश्तो के लिए........दोस्तों..इस को सिर्फ पोस्ट ना समझे..बेशक कमेंट करे या ना करे..पर जितनी बार पढ़े,उन सभी फ़रिश्तो के लिए दुआ करे...प्लीज...
छन छन छन..चूड़ियों की यह आवाज़ आप को सोने ना दे गी...गुस्ताखी ना कीजिए हमारी शान मे,यह

कातिल नज़र आप को जीने ना दे गी..कुछ तो बोलिए हम से,ख़ामोशी इतनी जान हमारी ले कर ही 

छोड़े गी..माना की चाँद का बसेरा आसमां की पनाहो मे है..मगर सूरज का शबाब उस के बसेरे से

कम तो नहीं..लम्हो की रवानगी चलती जाए गी और यह गहन ख़ामोशी हम को अंदर तक तोड़ जाए गी..
बेहद महीन धागों की बनी चुनरी हमारी..सूरज की रौशनी से निकलती वो किरणे,चेहरे हमारे का

दीदार करने लगी..हवा के धीमे धीमे स्वर,यू लगा कोई तो है जो चुनरी हमारी सर से हटाने को है...

सिमटने लगे है खुद ही मे..कदम उठने को तैयार नहीं..कोई तो संभाले हमें,खुद पे अब खुद का बस

ही नहीं..होश खोने लगे है..यह कौन सा रास्ता है जिस पे चलने लगे है..अंगड़ाई भी लेते है तो जिस्म

बेहाल हो जाता है..इन सब का जवाब पूछे किस से कि हर तरफ पहरा किसी अनजान फ़रिश्ते का है..

Wednesday 25 March 2020

कहीं दर्द उठा तो कहीं तन्हाई ..किसी ने याद किया हम को ख़्वाबों मे तो यह ज़िंदगी बेवजह मुस्कुरा

दी..तीर नैनो के चलाए भी नहीं और दिल के हज़ार टुकड़े क्यों हो गए..दूर से सिर्फ इशारा भर किया

और वो घायल क्यों हो गए..मुहब्बत का मतलब समझने चले थे हम से,और सिर्फ हमारे ही हो कर रह

गए..पाबंदियों का सिलसिला बेशक चले,चलता रहे..धागे मुहब्बत के कब टूटते है..पूछ दिल से अपने

भी,दिन-रात हम तुझे कितने याद आते है...
कोई गीत,कोई ग़ज़ल लिख ना मेरे लिए..इक अधूरी दास्ताँ हो जाए पूरी,इस जन्म के लिए..कौन जाने

गीत का कोई शब्द असर इतना कर जाए,फिर लिखे हम भी कोई ग़ज़ल और तू दीवाना हो जाए..सो

ना पाए तू  बहुत रातें और हम सकूँ से सो जाए..करवटें बदलते गुजरे तेरी रात और हम जी भर के

मुस्कुराए..अब यह मरजी तेरी है..लिखो गे हम पे कोई गीत या ग़ज़ल..या फिर तोड़ के दिल हमारा

जागो गे सारी रात भर..
टुकर-टुकर ना देख मुझे,इतनी गहरी नज़र से डर लगता है..मेरी साँसों की रफ़्तार ना सुन,कसम से मर

जाए गे भय लगता है..मेरी उलझी जुल्फों को अपने हाथों से जो संवार दिया..कड़के गी बिजली और

बादल बरस जाए गे...कमर की इस करधनी को ना अलग कर मुझ से,जिस्म का यह तूफ़ान बहक जाए

गा...पास आने की कोशिश भी ना कर,दूर मुझ से कभी ना फिर जा पाए गा...इरादे नेक रख अपने,सौदा

प्यार मे कब होता है..यह मेरा हो कर ही जान पाए गा...
कभी कभी ऐसा भी होता है,खामोशियाँ बात करती है..आती है सदा कही दूर से,बहुत दूर से..और

सुनाई सिर्फ मुझी को क्यों देती है...छनकती नहीं पायल मेरी,पर आवाज़ की झंकार बहुत दूर तक

जाती है..यह कौन सी मुहब्बत है जो आसमाँ से भी बहुत दूर,बहुत दूर..मेरे पास चली आती है..बिन

छुए मुझ को सुखद सा एहसास दिला जाती है..माथे पे वो हल्का सा स्पर्श महसूस करा जाती है..सो

जाओ,रात आई है तुम्हे सुलाने के लिए..यह अनसुने  बोल नींद के आँचल मे बांध के मुझ को फिर से

कही खो जाया करते है...
अपने घरोंदे मे रहना है,बस इतना ही तो करना है..इक दूजे से सिर्फ कुछ वक़्त दूर ही तो रहना है..

मना तो नहीं गुफ्तगू करना..मना नहीं ईश्वर की अराधना करना..मना नहीं किताबों से जुड़े रहना..

दर्द की चादर से बाहर निकल,दुनियां घर के भीतर भी तो सुंदर है..काम खुद से करना,इस मे बुरा

क्या है..अपने लिए अपनी ज़िंदगी को संभाले रखना..प्यार खुद से करने के बराबर ही तो है..कुछ ना

करो ''सरगोशियां'' को पढ़ो..पढ़ते ही रहो.. ''शायरा'' का लिखा हर लफ्ज़ समझने की कोशिश तो करो...
नज़र मेरी आप पे ऐतबार नहीं करती...ग़ुम हो जाते है आप बार-बार,यह नज़र ढूंढ़ती है हर तरफ,क्यों

आप की रहनुमाई कही मिलती नहीं ...हाज़िरजवाबी आप की.. ''यह नज़र मेरी, तेरी तरह बेपरवाह

नहीं.आप के दीदार के लिए भटकती है दर-ब-दर,मगर आप ही की रिहाइश हम को कही मिलती नहीं..

झरनों सी आप की हंसी,जिस पे दिल हार बैठे कब से..यह भी याद नहीं नहीं..''    बेसाख्ता मुँह से

 निकला हमारे,हाल तो हमारा भी कुछ ऐसा ही है..आप ढूंढ़ते है हमें और हम आप को..मगर इक दूजे

के दिल मे किसी ने किसी को ढूंढा अब तक क्यों नहीं ??
मिले तुम से कभी नदिया की धारा पे..मिले तुम से कभी झरनों के द्वारे पे..कभी मिले तुम से फूलों के

बागबानों मे..मिले तो तुम से एक बार ख़यालो के उजालों मे..मिलते रहे जितनी दफा,आँखों मे तुम्हे

भरते रहे..यह बात और है,तुम आँखों से सीधे रूह की गली उतरते रहे .तुम मेरे रोम रोम मे बसे,ईश्वर

का इक रूप लिए..तुम आज हर कण मे हो,मगर उन कणो से दूर,बहुत दूर आज तुम महफूज़ मेरी

पूजा की थाली मे हो...पूजा की थाली मे हो...........

Tuesday 24 March 2020

तुझे कान्हा माना तभी इन बातो का अर्थ जाना...प्रेम नाम नहीं पा लेने का..प्रेम तो नाम है प्रेम मे डूब

जाने का..पा लेना ही प्रेम होता तो इतना प्रेम इतना शुद्ध कभी ना होता..तेरी आंख से कोई आंसू ना

निकले,तेरे दिल मे दर्द की कोई परछाई भी ना उभरे...तू जहां-जहां रखे कदम वहां कोई कंकर भी

ना निकले..क्या कहे तुझ से कान्हा,तेरे बिना मेरा कोई वज़ूद नहीं..तू है तो मैं हू,तू नहीं तो मैं भी नहीं..

इस बात से कभी अनजान ना रहना..मेरे शुद्ध प्रेम की हमेशा कदर करना...
हम बिंदास मुस्कुराए तो यह कहना था उन का...यह शरारत भरी मुस्कान आग लगा जाए गी..हम तो

है नन्ही सी जान,आग लगाने की जुर्रत कैसे कर पाए गे..वो बोले,हम कुछ समझ नहीं पाए है...तुम हो

एक पहेली ऐसी,जिसे आज तक ना सुलझा पाए है..रख दिया घास और आग को एक साथ हम ने..और

इक बिंदास मुस्कान फिर लबों पे हमारी थी..आतिश दीजिए इस घास को,खुद ही समझ जाए गे..फिर

भी ना समझ पाए तो अनपढ़,आवारा और बुद्धू ही कहलाए गे..
 ''जान भी बेशक हमारी ले लीजिए ''मासूम अदा से कहे तेरे यह मासूम लफ्ज़,दिल हमारा हमीं से चुरा

कर कब ले गए..पता नहीं चला..वो तेरी गहरी काली आंखे,जो मुझे तेरे वज़ूद की गहराई का एहसास

दिला जाती है...आवाज़ मे जैसे शहनाई की झंकार मुझे सुनाई देती है...तेरी ही परछाई बन तेरे साथ

रहू..तेरे हर दर्द को पी कर तुझे दुनियां की हर ख़ुशी दे दू..जान कैसे तेरी ले पाए गे,जब कि तेरी जान

से ही मेरी जान चलती है..तेरी सलामती के लिए दुआ करते-करते,कब खुद को भूल गए..पता नहीं चला..
यह ''सरगोशियां'' है...लफ्ज़ दर लफ्ज़ मुहब्बत के हसीं रंगो से भरी...कुछ दर्द विरह के डाल दिए इस

मे..कभी पन्नो को संवार दिया प्यार के रंगो से हम ने..जी किया तो बिलख बिलख कर आंसुओ की धारा

बिछा दी इन पर..कभी मुस्कुरा के दिल हज़ारो चुरा लिए हम ने..धीमी सी हंसी तो कभी खिलखिलाती

झरनों सी हंसी..कितनों को जीवन जीना सिखा दिया फिर से...अब यह ना कहे कि ''सरगोशियां '' मेरी

उलाहने क्यों देती नहीं..जी जनाब,यह सलाम सभी को करती है मगर इस हिदायत के तहत....पढ़ कर

देखिए मुझे,बहुत मशक्कत से लफ्ज़ लिखते है..दिल मे सीधे ना उतर जाए तो कह दीजिए कि

''सरगोशियां'' कौन सी बला का नाम है...
आवाज़ दे मुझ को किस ने रोका है..बिंदास जी किस ने टोका है...खुल के मुस्कुरा,परवरदिगार ने खुद

हम को ढूंढा है...हज़ारो तूफ़ान आते है तो आने दे ना..बिजलियां कड़कती है तो कड़कने दे ना ...अपने

ही आशियाने मे है..कुदरत की पनाहों मे है..रह रह के डरना क्यों..साँसे अभी है तो इन के ख़तम होने से

पहले रोना क्यों...खिलखिला जोर से,यह समां मस्ती का है...बुजदिल नहीं जो मौत से डर जाए गे,मौत को

जब आना है तो आ ही जाए गी..बस अभी तो तू मुझे आवाज़ दे,जी बिंदास किस ने टोका है...

Monday 23 March 2020

ना छेड़ तार मेरे दिल के कि मुहब्बत पे अभी पहरा है...रह खामोश अभी कि लबों को दूरी की अभी

बहुत जरुरत है...दूरियाँ रख ले अभी कि इन दूरियों से यह मुहब्बत बहुत दूर जाने को है...कदम से

कदम मिला कर चल साथ मेरे,दुनियाँ को कुछ अच्छा समझाने की बेहद जरुरत है...इम्तिहान तेरे-मेरे

प्यार का बहुत जरुरी है...हम परखे इक दूजे को..इस से पहले कुदरत खुद हम को,हमारे प्यार को परख

रही है ऐसे...क्या यह सिर्फ जिस्मानी है या क्या रूहों ने अभी इक दूजे को जाना है ?
बात इश्क-हुस्न के अफ़साने की होती तो वक़्त यह क़हर का होता..बात गर जज्बातों के पिघलने की

होती तो शायद समां यह रुला देता..बात जब दौलत और तोहफों की और चलती तो शायद यह प्यार

गुनाह हो जाता..जिक्र जो जिस्मों की अहमियतों का होता तो मुहब्बत सिर्फ बर्बादी की वजह कहलाती..

प्यार के यह कण जब भी इबादत की और ढलते है तो प्यार सिर्फ  सिर्फ पूजा की हकीकत होता है..

प्यार ऐसा जब तल्क़ इस धरती पे कायम है,यह दुनियाँ प्यार की जीती-जागती अमानत है...

हज़ारो अँधिया आती रही..कभी किसी का कुछ छीना,कभी किसी को बेगाना सा कर दिया..बिखरे ना

जाने पत्ते कितने,टूट के रह गए हज़ारो अफ़साने..कोई दिया पल भर मे बुझ गया तो कोई दिया बिन

बाती बरसो जलता रहा..प्यार के प्रेमी जो सांस ना लेते थे बिन इक दूजे के..कभी ना मिल पाए इस आंधी

के चलते..करिश्मा कही ऐसा भी रहा,जिन के मिलने की कोई आस ना थी..वो बंध गए प्रेम के अटूट

बंधन मे..कुदरत तेरे रंग निराले,किसी को बांधा तो किसी को तोडा...
यह सांसे गर मेरी उखड़ जाए कभी, तो गम ना करना..दर्द-तकलीफ से गर मैं जुदा हो जाऊ तुझ से,तो

आंख नम मत करना..इस जहाँ से गर चली जाऊ तो भी सिसकिया मत भरना...इतने बड़े जहाँ मे इंसा

कितने आते है और चले भी जाते है..यह जिस्म तो अक्सर फ़ना ही हो जाया करते है..हम तकदीर के

आगे कभी-कभी बेबस भी तो हो जाया करते है..मेहरबानियाँ ऊपर वाले की सब पे रहे,दुआ करते है..

पर हर पल के लिए खुद को तैयार रखना,यह प्यार मे हम सब को समझाया करते है..
क्या हुआ जो यह जहाँ खुद मे ग़ुम हो गया...क्या हुआ जो साँसों को पल-पल का हिसाब देना पड़ गया..

क्या हुआ जो मौत का खौफ गहरा गया..प्यार का मोल इन सब से परे बहुत जुदा होता है..पाकीजगी की

दहलीज़ पे खड़ा अपने प्यार के लिए दुआ ही दुआ करता है...प्यार मे जिस्मों का मोल कब होता है..प्यार

मे जुदाई का एहसास भी कहाँ होता है..जो रूह को रूह के मायने समझा दे,ऐसा प्यार नसीब वालों को

ही मिला करता है...

Saturday 21 March 2020

कभी अंधेरो मे रहे तो कभी उजालो मे जिए...मगर फिर भी सभी के दुलारे रहे..शिकायत किसी से ना

रही,बस खुद की दुनियाँ मे ढलते ही रहे...माँ कहती थी कि ''मेरे शब्दों मे बहुत नूर,बहुत ताकत है''..

जानती हू माँ झूठ नहीं कहती थी..आज इस जहाँ को दुआओं की बहुत जरुरत है..चाहते है,माँ का दिया

वो वरदान सच हो जाए...मांग रहे है,सभी के लिए ज़िंदगी का वरदान...माँ...तुम जहा भी हो,आज मेरे

शब्दों की लाज रख लेना..सब को ज़िंदगी की साँसों का वरदान दे देना....
सरसराहट और बेचैनी क्यों है हर तरफ हवाओं मे....कुछ चुभन कभी कांटे तो कभी डर को जन्म देती

यह हवाएं...ना डर इन की बेचैनी और चुभन से..हिम्मत ना होगी तुझ मे तो यह तुझी पे हावी हो जाए गी..

हौसला अपना बुलंद रख,यह किसी का कुछ ना बिगाड़ पाए गी...जब भी डर लगे,मालिक का हाथ थाम

लेना..कर्म अपने साफ़ रखना,दिल किसी का मत दुखाना..फिर क्या मज़ाल यह क्यों यहाँ रुक पाए गी...

Friday 20 March 2020

वो भी इक शाम थी,यह भी इक शाम है...और इन सब के दरमियाँ वो कौन सा मुकाम है..इंतज़ार कल

भी था,इंतज़ार आज भी है...मिलन की घड़ियां ना आए गी कभी,यह सोच दिल परेशां भी है..क्या कभी

ऐसा होगा कि मेरी यह आंखे बंद होने लगे और तू मुझे मेरे नाम से आवाज़ दे..महक जाए फिर यह हवा.

खिल जाए दुबारा से यह फ़िज़ा..क्यों है उम्मीद तुम बस आवाज़ देने को हो..यह मेरा भरम है या तुम बस

आने को हो...

Thursday 19 March 2020

मन यह बावरा सा,क्यों कुछ समझता नहीं..हसरतों का रास्ता किस और है,यह जानता ही नहीं..क्यों

चाँद आधा-अधूरा है उस के बिना..इस बात का अर्थ समझता भी नहीं..मगर यही चाँद जब-जब ओझल

हुआ नज़रो से,यह मन बावरा दर्द से बेहाल हो गया  क्यों...चुनरी उड़ी आसमां के उस छोर तक जहां 

उस की रूह मिलने चली,चुनरी के दावेदार को..पिघला यह मन फिर बावरा,चाँद के दीदार मे..कौन

सा बंधन था यह,जो घुल गया सिर्फ इक सांस मे...
बिन पिए क्यों मदहोश है आप..बिन बुलाए क्यों आते है आप...रखते है कदम कही मगर पड़ते है कही..

ऐसा कौन सा इरादा है जो खुद को भी नहीं बता पा रहे है आप...दिन को कहते है रात और रात की

कोई कहानी समझ नहीं पाते है आप..माशा अल्लाह यह दीवानगी है या किसी के गहरे प्यार का असर..

जो खुद के हो कर भी खुद के पास नहीं है आप...

Wednesday 18 March 2020

ना कजरे की धार न आँखों मे कोई शृंगार..लब सिले हुए है,करने के लिए कुछ दुआ और कुछ संस्कार..

ना हाथो मे कंगन ना गले मे मोतियों का हार..फिर भी हम दुनिया मे,कितनो के लिए बन गए खुदा तो

किसी के लिए  हो गए भगवान्...माँ-बाबा की दुआ मे पले इक बच्चे रहे खास...जो कह गए वो आज भी

करने से नहीं है इंकार..सादगी मन मे लिए,इस दुनिया का प्यार पा लिया..ना हम खुदा है ना ही कोई

भगवान्..बस आप जैसे ही इक इंसान है,संस्कारो की धरोहर साथ लिए मामूली से इंसान...

Tuesday 17 March 2020

प्यार इतना भी ना कर मुझ से कि हम इस दुनियां को अलविदा कह ना सके...इतनी हसरतें भी ना रख

कि हम तुझ से जुदा रह ना सके..पल पल हर पल तुझी को याद करना..यह कौन सी इबादत है जिस का

कोई वक़्त ही तय नहीं किया हम ने...आंखे खुली हो तब भी तू,आंखे झपके तो भी तू..आँखों के दरवाजे

बंद करे तब भी सिर्फ तू और तू ही तू...अब तो तुझी को मांग लिया मालिक से,अनंत-काल के लिए..

सोच ले अनंत-काल तक तुझे प्यार करे गे,तेरे हो कर तेरे हर गम को तब भी खुद मे समा ले गे..
''बरसो बाद पैदा होती है तेरे जैसी दुल्हन'' तेरी इस बात को हमेशा ज़ेहन मे रखते है..इसलिए तो आज

भी तेरे लिए,बिन श्रृंगार तेरी ही दुल्हन बने फिरते है..मेरी सादगी पे तूने ना जाने कितनी नज़म लिखी..

उन की हर लय पे हम बेवजह थिरकते है आज भी..तूने कहा हम आज भी इक ग़ज़ल है,हम ने माना

और सदियों के लिए तेरी ग़ज़ल बन के,तेरी दुल्हन बन के इसी जहां मे आए है,आते ही रहे गे...

नींद की कोई मरज़ी नहीं आज आने की..आँखों को कोई जरुरत ही नहीं आज इन पलकों के घने

शामियाने की..यह हवा भी दे चुकी सन्देश कि आज थम जाना है मुझे...वादियों मे दूर तल्क खामोश

सा अन्धकार छाया है..फिर भी यह आंखे सोने से इंकार करती है..जागना है सारी रात,इस बात का

इकरार करती है...अब जंग तो नींद और आँखों मे है..फैसला इस हवा और वादियों का है...

Monday 16 March 2020

बार-बार दर्द ना दे यह जीवन,हम ने सकून को धीमे से चुरा लिया..आँखों के यह कटोरे भरे ना अब आंसू

से,हम ने ख़ुशी को चुपके से इन्हीं आँखों मे बसा लिया..याद तेरी बहुत और बार बार ना आए,तेरी तस्वीर

को दिल-रूह की हर दीवार मे छुपा लिया...हम खुद के है या तेरे है,सवाल उठाया जब खुद से हम ने..

याद आया तुम-मै अलग कहां,जिस्म बेशक दो रहे मगर रूहे तो हमेशा से एक है..बसे रहो सदियों तल्क़

मुझ मे और मैं तुम मे....अनंत-काल के लिए हम ने तुम को तुम से चुरा लिया...
चाह लेना,टूट के चाहना..प्रेम की धारा मे बेपरवाह बहते रहना..दे के ख़ुशी,दर्द सारे उस के खुद मे

समेट लेना..कोई गिला कोई शिकायत भी ना करना...कौन अमीर कौन गरीब,प्रेम का इस से क्या लेना

क्या देना..हाथों की लकीरों से परे,रूह की अपनी दुनियां बसा लेना...अपने इर्द-गिर्द महसूस करना..

जुबां कुछ ना कहे मगर फिर भी समझ सब जाना..यह सिर्फ प्रेम की दुनियां है जिस का नकली दुनियां

से कुछ नहीं लेना-देना...
खुशबू से भरा यह कैसा हवा का झौंका था..जो आया भी और महका कर हम को चला भी गया..खशबू

से भरे खुद को आईने मे निहारते ही रहे..नूर देख अपने चेहरे का उसी हवा के झौंके का फिर इंतजार

करने लगे..वादियों मे कभी कभी ऐसी महकती हवा नसीब वालो का दामन महकाया करती है..रात के

ढलने से पहले बहुत कुछ समझा जाया करती है..समेटे बैठे है खुद मे इस रंगीन हवा के झौंके को,क्या

पता कुदरत फिर कब नवाजे गी हमें इस खुशबू भरे हवा के झौंके से...
जज्बातों को तोड़ देना और फिर खुद ही खफा हो जाना...प्यार के नाम पर प्यार की धज़्ज़िया ही उड़ा

देना...फिर जब याद आए तो मासूमियत से पास मेरे लौट आना..तुम्ही मेरे सब कुछ हो,आशिक अंदाज

मे फिर प्यार की दुहाई देना...सपनों की मायानगरी से हो या बेवफाई की खास मिसाल हो..कुछ हम ने

सोच कर रखा है..तेरे बिना जीने की आदत डाल ले गे हम..फिर देख तेरे करीब भी ना आए गे हम...

अपनी शोखी और लापरवाही से तू खुद ही तन्हा हो जाए गा..और हम तुझे देख तड़पता सकूँ से जी

पाए गे .......

Sunday 15 March 2020

ना हो कायल हमारे खूबसूरत लफ्ज़ो पे..यह तो दिल-रूह के दरवाजे से तुझे तेरे लिए दस्तक दिया

करते है..क्या और कितना सोच के बोले कि सोच के दरीचों से परे हम तुझी को बेपनाह याद किया

करते है...यह कदम उठे तो दुनियां नाज़ हमारे उठाती है..ना कुछ बोले तो चुप्पी पे हमारी सवाल उठा

देती है..अब तू ही ना पूछे कि हम चुप क्यों है तो दुनियां से क्या लेना-देना है..कुछ तो बोलिए ना कि यह

ज़माना हमारी उदासी से परेशां परेशां हो जाया करता है...
हम हज़ारो लाखो मे एक अकेले है..यह बोल कर उस ने हमें लाज से भिगो दिया..कभी तो खुद के

सरूर पे गरूर कीजिए,यह लफ्ज़ कह कर हम को सातवें आसमां पे बिठा दिया..दुनियां घूम आए

है,लाखो चेहरों से मुलाकात कर पाए है..मगर जो बात तुझ मे है,वो कही ना ढूंढ पाए है..लाज-शर्म से

इतना ही बोल पाए है..आप की इबादत करते है हम..गरूर किस बात का करे कि गरूर की दुनियां से

दूर आ चुके है हम..चुना आप ने हमे लाखो मे,शुक्रिया के सिवा और क्या कहे गे हम...
पत्थरों के शहर है,पत्थरों के दिल है यहाँ..किस को कहे अपना कि हर कोई बेगाना है यहाँ..कही किसी

ने दी चोट तो कही कोई दर्द दे गया..शब्दों को लिखा सीधे-सीधे तो उन को उल्टा पढ़ा गया...गहराई

से बयां किया तो समझ से बाहर हो गया..प्रेम का अर्थ समझाया तो प्रेम होता है क्या ? यह बोल कर

पन्नो से नाम अपना हटा दिया..यहाँ बिकते है लोग दौलत के तराज़ू मे तो प्रेम का मोल कहाँ पता होगा..

तभी तो कहते है,पत्थर लोग-पत्थर दिल..यहाँ हर कोई बेगाना सा है..
पायल का यह शोर उधम मचा रहा है क्यों..करधनी कह रही है,जाने दो मुझे दूर..यह कंगना अब मेरे

पास नहीं रहते..कानों की यह बालियां मान रही है हार...दिल की धड़कनो ने कहा,मुझे तो किसी पे

नहीं रहा ऐतबार...जब साथ मेरे मेरी धड़कने ही नहीं तो कैसे कहू,किस किस के जाने से हू परेशान..

यह सब किस काम के है,जब यह सब मेरे नहीं है..बता ना यारा,जब यह बंदगी तेरी करते है तो मेरे

नाम के क्यों कहलाते है..
क्यों धीमे-धीमे चल रहा है यह वक़्त आज...क्यों सुबह का यह सूरज ढलने के लिए वक़्त ले रहा है आज...

क्यों नूर की चादर अभी से छाने लगी है आज ..क्यों परिंदो ने घर वापसी का रास्ता जल्द चुन लिया है

आज...महक रहा है अपना ही जिस्म बिना फूलों के आज...यह आंखे देख रही है कोई अनजाना सा

सपना आज...मगर फिर भी यह सूरज,यह वक़्त चल रहा है धीमे-धीमे...अपनी हद से अलग-अलग...

Saturday 14 March 2020

यह रात गुजरे गी कैसी कि आसमां आज खाली-खाली है..ना चाँद है ना सितारे है और चांदनी भी गम

मे डूबी-डूबी है..आंखे ना चाहते हुए भी बरस रही है आज..तेरी याद बहुत आ रही है आज..देख हमारी

हालत यह बरसात भी बरस रही है आज...रुकने को तैयार नहीं कि हमारा साथ देने को है बेक़रार..

सीने का दर्द उठा इतना गहरा कि ओले भी बरसे हमारे दर्द के साथ..दुनियां कहां समझे गी कि यह

बादलो की गड़गड़ाहट रोई है या हमारे दिल की आवाज़...
तेरी किस याद के साथ चले...यादों का भंडार पास हमारे है...वो तेरा बेवजह मुझ से उलझना,नन्ही-नन्ही

बातो पे दिनों तक नाराज़ रहना...दो पल की दूरी भी ना सहना..मगर खुद दिनों तक मेरी नज़रो से ओझल

रहना..और वो तेरी मासूम अदा..सब पता होना मगर अनजान रहना..बस प्यार करते है तुझे,यह बोल कर

मुझे हर बार खामोश कर देना...और आज हम खामोश है,और तेरे बोलने की इंतज़ार मे है...

Friday 13 March 2020

मंज़िल वही रास्ता भी वही,मगर पाँव उठते क्यों नहीं...सोचते है बहुत बार,कही कोई कमी हमीं मे तो

नहीं...हज़ारो फूल बिख़र रहे है आज हमारी राहो मे,मगर देखना तक जरुरी समझा ही नहीं..यह कौन

सी दस्तक है जिस को सुनना आदत मे कही शामिल ही नहीं..बस तू साथ था,साथ है सदियों से...इस से

जयदा और कुछ माँगा भी नहीं...बेतरबी से बिखरे गेसू बस तू ही सँवारे,मेरी मुहब्बत के लिए बस इतना

करे..यह मेरी तक़दीर की रोशनाई ही सही...
बात बात पे ना उलझे गे तुझ से,यह वादा हमारा खुद से है...नाराज़ क्यों होना है कि मुहब्बत मे यह

वादा भी हमारा है..कौन सी ज़न्नत की ख़ुशी तुम से,हम ने मांगी है..दौलत-तोहफे दिला दो हमें,यह

कब तुम से चाहा है..सकून से जीने के लिए,तेरे मीठे दो बोल ही हमारे लिए काफी है..उलझना भी

नहीं,नाराज़गी को पास आने देना भी नहीं..मगर सोच लेना,बिन बात जो सताया मुझे तो तेरी खैर नहीं..

Thursday 12 March 2020

बरखा गई,मौसम सर्द भी गया...यह भीगा भीगा मौसम क्यों शोख़िया कर रहा...रात की आहट पाते ही

सूरज क्यों छुप जाता है..नज़र ना लगे ज़माने को,जाते जाते गहरा काला टीका लगा जाता है..तब यह

चाँद शरमा कर जग को उजाला देता है..इतने उजाले मे क्यों हम को अपना चाँद नज़र नहीं आता है..

अब ढूंढे उजाला कौन सा ऐसा जो चाँद हमारा आ जाए..भर दे झोली जो प्यार से और सवेरा लहराए..
हम बहुत तन्हा है,यह बोल कर उस ने हम को उदास कर दिया...यह ज़िंदगी क्यों कर तुम्हे तन्हा करे,

हम ज़िंदगी से ख़फ़ा हो गए..ज़िंदगी से प्यार करते है बहुत तो इस से खफा होने का हक भी पूरा रखते

है..क्यों डरे इस से कि हम इस की ताकत पे जिया करते है..मत हो तन्हा और उदास कि साथ तेरे पल

पल है..हम तो अक्सर ज़िंदगी को अपनी अंगुलियों पे नचा देते है..बेपरवाह इस से कि यह हमे दुःख

और भी दे सकती है..मुस्कुरा दे यही तो ज़िंदगी है,किसी को आना है तो किसी को जाना है..
आँखों ने किया दूर खुद से काजल की धार को कि इन आँखों मे तो साजन बसते है..लब क्यों सज़े किसी

भी रंगत से कि इन लबों को लफ्ज़ दुआ के कहने है..हाथों मे चूड़ियाँ बजे तो क्यों बजे कि यह खलल

कभी भी डाल देती है...गालों को किसी रंग से क्यों रँगे  कि यह तो सनम को याद करते ही सुर्ख हो जाते

है..यह नादाँ दिल धड़कने की भाषा क्या जाने कि इस की वापसी पास हमारे अब नामुमकिन है..सब को

कुछ करने की जरूरत ही नहीं कि सादगी हमारे लिए हमारी पूंजी है...

Monday 9 March 2020

ज़िंदगी की उलझनों से परे,परेशानियों की इंतिहा से जुदा हो के..यू ही कभी चलते-चलते हम से मिलने

आ जाना..ज़िंदगी बेशक मुकम्मल ना सही,पर गम कैसा..यह मुकम्मल कब कहाँ किस की हुआ करती

है..ज़द्दोजहत तो ताउम्र चलती है..कभी रोता है कोई तो कोई कभी बेवजह परेशां हुआ करता है..इस

ज़िंदगी को जीना किसे आया है..कभी गम से परे,उलझनों से परे..इस ज़िंदगी को जी के देख जरा..यह

कभी कभी हम को प्यार से सँवार भी दिया करती है...
वो प्रेम-रास की राधाकृष्ण की होली थी..इतनी शुद्ध जितनी पावन राधा की बोली थी..जो कृष्णा के

मन की बात जान लेती,जो उसी के हर रंग मे रंग जाती..विश्वास था इतना गहरा अपने कान्हा पे,कि

हर पल अपना उसी को अर्पण कर देती..कृष्ण हुए सिर्फ उसी के,यह कहानी प्रेम रास को सिद्ध कर

जाती..आज के युग मे क्या राधा होगी ऐसी,गर होगी तो क्या कृष्णा उतने ही त्यागी होंगे..सवाल तो आज

भी सवाल है..क्या प्यार इस युग का ऐसा ''बेमिसाल'' है ?
मुहब्बत की कहानी कितनी बेजुबानी है..यहाँ कौन किस से पाक-साफ़ मुहब्बत करता है..मुहब्बत

तो तुझ से है मगर अपने साथ कितने औरों को ले कर चलता है..यक़ी इस को भी दिला दिया,यकीं

औरों को भी दिला दिया..और खुद ही खुद की तारीफ मे,अकेले मुस्कुरा दिया..वो क्या जाने,इस बीच

कोई ऐसा भी रहा जो सच्ची मुहब्बत से उस से जुड़ गया..यह रास्ते मुहब्बत के कौन से है,कोई लुट

गया तो कोई किसी के जज्बात लूट कर ले गया...
क्यों कह रही यह सरगोशियां...रंगो को ना मैला करना..रंगो को सिर्फ प्यार मे ही डूबे रहने देना..यह

नीर जो बहुत पावन है,समझो तो इस का रिश्ता प्रेम के साथ बहुत गहरा है..कल-कल करती नदिया

की धारा की तरह,जो बहती भी है तो किसी उन्मुक्त हंसी की तरह..पानी का,इस नीर का कोई रंग नहीं

होता..क्यों कहते है कि प्रेम का भी कोई रंग नहीं होता..रूह अपनी को निभा दे इस नीर मे,रिश्ता तो

खुद ही खुद से पाक हो जाए गा..

Friday 6 March 2020

बहुत ख़ामोशी है फिज़ाओ मे..यह हवाएं भी खामोश है..इंतिहा है ख़ामोशी की...इंतिहा है इतने सन्नाटे

की...एक जर्रा भी सांस ले तो आवाज़ सुनाई देती है..हाथ से सुई भी गिरे तो खनक की आवाज़ आ जाती

है..कोयल की कू कू भी आज खामोश थी..सुबह तो जैसे मुँह पे ताला लगाए बंद थी..यह धूप चुपके से

आई है मगर ख़ामोशी की चादर लिए साथ आई है..तौबा..अब तो यू लगता है कि दम घुट जाए गा..करते

है गुजारिश सब से ,गूंज को हम तक आने दीजिए कि ख़ामोशी इतनी हम को डस जाए गी....
बर्फ की चादर के तले है दबे...और वो सोच रहे है कि हम है गरूर की इंतिहा से भरे..अब इस दुनियाँ

को कैसे समझाए कि इसी धरा पे टिके है हम..पाँव उठाए तो लोग फूल बरसाए,इस मे क्या खता है मेरी..

चुप रहे तो नाज़ उठाए,अब बोलिए कहाँ रह गई मर्ज़ी मेरी..परदों मे छिप जाए तो ढूंढ़ना हम को,हो जाती

है दुनियाँ की ज़िम्मेदारी..करे तो क्या करे..गरूर से नहीं भरे है,बस खुद ही खुद को समझ रहे है..
बारिश की बूंदे टप टप कर,मद्धम स्वर से कुछ कहती रही...हम कुछ समझ पाते,वो आसमां के साथ

मिल कर हम को डराने लगी..तभी बिजली की कड़क से हम घबराए और तुझे याद कर रो पड़े..क्यों

ऐसा होता है,जब जब तू दूर होता है यह मौसम हम को खौफ देने लगता है..कैसे बताए इस को कि तू

तो हरदम मेरे करीब होता है..जरा दूर बैठे ही समझा इन्हे कि तेरा खौफ इन का क्या कर सकता है..

मेरे अश्कों के बहाने की सज़ा तू भी इन को दे सकता है...

Thursday 5 March 2020

चाँद फिर आज घनेरे आसमां मे ग़ुम हो गया...यह कैसा इत्तेफाक था,जब तल्क़ देख पाते वो बादलो मे

खो गया...चाहत के नज़ारे बहुत खूबसूरत लग रहे थे,कि आया तूफान अचानक से और चाँद इक झलक

दिखा फिर ग़ुम हो गया...चांदनी का जोर चलता नहीं,फिर भी वो बेहद खामोश है..बस यह सोच कर

उदास है,यह घनेरे बादल छंटे गे कब..शायद कुछ समय की बात है..दुआओ का सिलसिला रुकता नहीं..

यह चाँद है कि चांदनी की कभी सुनता ही नहीं.. 
देखा आज परिंदो को संग-संग उड़ते हुए...इक दूजे के लिए,बने इक दूजे के लिए..यह सारा आकाश जो

आशियाना है इन का..यह बहती हवा है जो जीवन है इन का..मर्ज़ी हुई तो रुक दिए,जी किया तो संग उड़

लिए...कल की किसी भी खबर से अनजान,मशगूल है गुफ्तगू मे अपनी..ना कोई वादा फिर भी संग-संग

चल रही साँसे इन की..आ चल हम भी उड़ चले इन परिंदो की तरह..इक दूजे के लिए,बने हम भी इक

दूजे के लिए...

Wednesday 4 March 2020

यह बरखा फिर लौट आई है..सपनो को हकीकत मे बदलने के लिए..अपने चेहरे से हटा यह शिकन,

बहार आई है ना लौटने के लिए...यूँ नन्ही नन्ही बातों पे हमीं से खफा होना..मुस्कराहट को रोक लेना

और हमी पे अधिकार जताना..हमारी सफाई सुने बिना,बस खुद ही बोलते जाना..वल्लाह,यह अदा तो

मुझे दीवाना कर छोड़े गी..इस दिल मे कितने तीर दागों गे,कितनी बार इस को घायल करते जाओ गे...

कभी तो इत्मीनान से बात करो,कि यह बरखा फिर लौट आई है..सपनो को हकीकत मे बदलने के लिए..
चुभन तेरे दिल मे हुई ना जाने किस बात की..हम को ले कर हुई इतनी बेकरारी,ना जाने क्यों बिन बात

की...किसी रोज़ बिन बताए जो रुखसत हो गए इस दुनिया से..किसी रोज़ यू ही हवाओं मे ग़ुम हो गए

गर,किसी दिन यू ही दीवानों की तरह तुझे ढूंढते हुए भटक गए गर..आसमां मत उठा लेना और धरा

को दोष ना देना...साँसों को क्या है,इन धड़कनों का भी भरोसा क्या है..भरोसा करना है तो हमारी वफ़ा

पे कर लेना ,ना रख दिल मे चुभन बस हमी को याद कर लेना.... 

Monday 2 March 2020

यह कौन से रंग है जो होली के रंगो मे ढलने वाले है..बहती नदिया की धारा की तरह है,जो हर रंग से

अलग अपनी ही धुन मे बहने वाले है..यह रंग भी कोई रंग है सच्चाई के रंगो से दूर..बहुत दूर कुछ दिनों

मे उड़ जाने वाले है...कुछ उड़े कुछ मिट गए,कुछ पल दो पल का वादा कर के भूल गए..रंग तो सिर्फ

एक है,प्यार का रंग..कान्हा ने रंगा राधा को जिस से..और राधा ने समेटा उसी प्रेम-रंग को अपने आंचल

के तले..हम ने भी चुपके से यह प्रेम-रंग उड़ा दिया सारे संसार मे..प्रेम करने वाले तमाम फ़रिश्तो के लिए ..

Sunday 1 March 2020

कभी लुटा दिया प्यार इतना,हमे खुशियों के उड़नखटोले मे बिठा दिया..कभी बिसरा दिया इतना,आँखों

को सैलाब बहाने पे मजबूर कर दिया...सवाल उठाए भी तो कैसे उठाए,कि जुबाँ तक पे हमारी ताला

लगा दिया..कदम चलने लगे है अब तेरी तरफ..यह ना कहना मेरी इज़ाज़त के बिना कदमो को क्यों

रुखसत किया मेरी तरफ...अब या तो दुआ क़बूल होगी या तेरी कोई सज़ा मेरे दामन मे होगी..फैसला

अपनी खुद की तक़दीर पे छोड़ा है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...