भोर का उजाला अभी फैला भी ना था कि खुदा की सौगात बन घर कोई महकाने आया था...ना कोई
रिश्ता था ना कोई नाता था,पर फिर भी जोड़ने सब को आया था..लफ्ज़ एक ना कहा कभी,माँगा कभी
कुछ भी नहीं..बिन मांगे प्यार दुलार लेता रहा,बदले मे सकूँ दिल का सब को देता रहा..मासूम आँखों ने
सब को लुभाया,जान बन के वो सब के दिल मे...बसा इतना कि राज़ उस के आने का आज तक समझ
किसी के आया ही नहीं...
रिश्ता था ना कोई नाता था,पर फिर भी जोड़ने सब को आया था..लफ्ज़ एक ना कहा कभी,माँगा कभी
कुछ भी नहीं..बिन मांगे प्यार दुलार लेता रहा,बदले मे सकूँ दिल का सब को देता रहा..मासूम आँखों ने
सब को लुभाया,जान बन के वो सब के दिल मे...बसा इतना कि राज़ उस के आने का आज तक समझ
किसी के आया ही नहीं...