परिभाषा प्यार की कितनी तुम समझे...कुर्बान होना है कितना,क्या पता कितना समझे...कदम
कदम पे साथ चलना या कदमो को पीछे लौटा लेना...ग़ुरबत की कहानी मे शान से जीना...चमक
चेहरे की कभी ना फीकी होने देना..ऐशो-आराम नहीं मगर ऐश से जी लेना..दिल उदास है मगर
हंसी लबो की कभी कम ना करना...परिभाषा प्यार की यही है..फ़ना होना और बस फ़ना होना..
कदम पे साथ चलना या कदमो को पीछे लौटा लेना...ग़ुरबत की कहानी मे शान से जीना...चमक
चेहरे की कभी ना फीकी होने देना..ऐशो-आराम नहीं मगर ऐश से जी लेना..दिल उदास है मगर
हंसी लबो की कभी कम ना करना...परिभाषा प्यार की यही है..फ़ना होना और बस फ़ना होना..