Sunday 6 June 2021

 फिर से आवाज़ दे रही है ज़िंदगी..लौट आई हू मैं फिर से ,खुशियों के रंग साथ लिए..रौनकें उन्ही पलों 


की फिर से लाई हू..खुलने लगे है रास्ते और हवाओं का रुख खूबसूरत होगा...पर तू है जीव ऐसा,अपनी 


सीमाएं फिर से लाँघ जाए गा..मेरी कीमत अब तक तो तूने जान ली होगी...साँसे कितनी भारी पड़ी,इस 


का अंदाज़ा भी हो चुका होगा...संभल संभल चलना..जानता है ना,मेरी कीमत...साँसे बिखरती देखी,साथ 


कितने अपनों का छूटा...बस अब चलना बहुत ही संभल के...ज़िंदगी हू कोई खेल नहीं,मौत के आगे मेरा 


भी बस नहीं.....

Friday 4 June 2021

 वो पिंजरा तो ना था...अहसासों का अम्बार था..पिंजरे के हर किनारे पे मुहब्बत का नायाब दौर था...सजा 


दिया उस के हर कोने को,वो किसी ताजमहल से कम ना था...छोटा सा था मगर मीठे लफ्ज़ो का भंडार 


था...कुछ अनकही कुछ अनसुनी गहरी बातो का माहौल था..हंसी भी गूंजती थी तो कभी शरारतों का 


खुशनुमा दौर भी था...प्रेम का रंग इतना गहरा कि मिसाल देने के लिए,कही कोई और ना था...टप-टप 


बरसात मे कौन कितना भीगा,वो तो बस बेमिसाल था..पिंजरा खुला तो क्यों खुला,अहसासों का दौर जैसे 


उड़ ही गया...प्रेम तो प्रेम होता है,पिंजरे मे है या पिंजरे से बाहर...मर के भी जो ना टूटे,हां...यह प्रेम है..

 ना कोई रंजिशे है ना कोई शिकायतें है...रख रहे है जहां जहां भी कदम,तेरे ही नाम की इमारतें है..क्यों 


वीरान है यह सड़कें...क्यों सन्नाटा पसर आया है...देख के चाँद को आसमां मे,क्यों इन आँखों का कोर 


नम हो आया है..बेसाख़्ता दिल ने आवाज़ दी,यह तो आसमां का शहजादा है...कोर भीगे और जय्दा,यह 


 रास्ता अब धुंधला नज़र आया...इक्का-दुक्का इंसान दिखे जिन की चाल मे तेज़ी का असर नज़र आया...


हम क्यों चल रहे है तन्हा-तन्हा,शायद आँखों का नीर कुछ जयदा ही इन आँखों मे आज भर आया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...