फिर से आवाज़ दे रही है ज़िंदगी..लौट आई हू मैं फिर से ,खुशियों के रंग साथ लिए..रौनकें उन्ही पलों
की फिर से लाई हू..खुलने लगे है रास्ते और हवाओं का रुख खूबसूरत होगा...पर तू है जीव ऐसा,अपनी
सीमाएं फिर से लाँघ जाए गा..मेरी कीमत अब तक तो तूने जान ली होगी...साँसे कितनी भारी पड़ी,इस
का अंदाज़ा भी हो चुका होगा...संभल संभल चलना..जानता है ना,मेरी कीमत...साँसे बिखरती देखी,साथ
कितने अपनों का छूटा...बस अब चलना बहुत ही संभल के...ज़िंदगी हू कोई खेल नहीं,मौत के आगे मेरा
भी बस नहीं.....