गुफ्तगू ऐसी ही बेफिक्र सी....चल आ उड़ चले इस आसमाँ मे इन परिंदो की तरह...दुनियाँ से दूर इक
नई सोच के तहत,प्यार के आँचल की तरह...ना दर्द हो कोई,ना तकलीफ़ों का झमेला...दौलत और झूठे
आडम्बर से परे हो एक हमारी नन्ही सी साफ़ दुनियाँ...साफ़ हो दामन इन पावन हवाओं की तरह...जिस
डाल पे बैठे,बन जाए बसेरा हमारा वहाँ...खूबसूरती वादियों की दिलों को छू जाए...बरसे जो बरखा तो
तेरे दामन से लिपट जाए...गुफ्तगू ऐसी ही बस बेफिक्र सी.......
नई सोच के तहत,प्यार के आँचल की तरह...ना दर्द हो कोई,ना तकलीफ़ों का झमेला...दौलत और झूठे
आडम्बर से परे हो एक हमारी नन्ही सी साफ़ दुनियाँ...साफ़ हो दामन इन पावन हवाओं की तरह...जिस
डाल पे बैठे,बन जाए बसेरा हमारा वहाँ...खूबसूरती वादियों की दिलों को छू जाए...बरसे जो बरखा तो
तेरे दामन से लिपट जाए...गुफ्तगू ऐसी ही बस बेफिक्र सी.......