Tuesday 28 July 2020

गुफ्तगू ऐसी ही बेफिक्र सी....चल आ उड़ चले इस आसमाँ मे इन परिंदो की तरह...दुनियाँ से दूर इक

नई सोच के तहत,प्यार के आँचल की तरह...ना दर्द हो कोई,ना तकलीफ़ों का झमेला...दौलत और झूठे

आडम्बर से परे हो एक हमारी नन्ही सी साफ़ दुनियाँ...साफ़ हो दामन इन पावन हवाओं की तरह...जिस

डाल पे बैठे,बन जाए बसेरा हमारा वहाँ...खूबसूरती वादियों की दिलों को छू जाए...बरसे जो बरखा तो

तेरे दामन से लिपट जाए...गुफ्तगू ऐसी ही बस बेफिक्र सी.......

Sunday 26 July 2020

हम ने पलकों को बिछाया समंदर के किनारे-किनारे...मगर यह क्या, समंदर खुद ही चल पास हमारे

आया...उठा भी ना पाए इन पलकों को,और यह बेहिसाब हम को भिगोने खुद पास आया...क्यों बंद

नैनों की भाषा इस को समझ आती है...इस के खारेपन की महक तो हमे दूर से आ जाती है...कशिश

हमारे बंद नैनों की इस को यह याद दिलाने आई है...तू गहरा बहुत है लेकिन,तुझे अपने को सवांरने

के लिए मीठा होने की बहुत जरुरत है...

Wednesday 22 July 2020

इस दुनियाँ का कौन जाने,कल क्या होना है....
किस को रहना है ज़िंदा,तो कौन इन साँसों को अलविदा कह जाए गा..
दुनियाँ ख़तम होने की कगार पे है,यह इंसा समझ के भी समझ ना पाए गा...
आज जिस से बात की,कल वो होगा सही,कौन जान पाए गा...
उम्मीद के धागे सिर्फ इस उम्मीद से बांधते आए है...
उस की मरज़ी से खड़ी है जब यह सारी दुनियाँ...
तो खत्म करने मे वो देर भला क्यों लगाए गा..
करिश्मा कलयुग का तो देखिए जरा,इंसा आज भी अपनी..
हरकतों से बाज़ ना आया है...
किसी को नीचे दिखा रहा है अभी तो खुद को ऊँचा बताने से बाज़ ना आया है...
यह दौलत,यह शोहरत रहनी है यही,दो वक़्त की रोटी के लिए,कौन कितना मोहताज़ हो जाए गा..
दुनियाँ पल पल डूब जाने की कगार पे है,पर यह इंसान कब समझ पाए गा......

Saturday 18 July 2020

वो छोटा सा घर,जिस की दीवारें सच्ची थी..
वो नन्हा सा घर,जहां खुशियां बसती थी..
वो खुशियां,जिन की कीमत बेहिसाब थी....
कीमत उस घर की थोड़ी सी थी,मगर....
उस की कीमत चुकाने की किसी की हस्ती ना थी...
वो मिटटी का चूल्हा,माँ जिस पे पसीने से तरबतर...
सुगांधित खाना बनाती थी...
वो दाल-रोटी,जो आज भी मुझ से बन नहीं पाती...
हज़ारो साधन है मगर,वो पेट आज भी भर नहीं पाती...
साल गुजर गए,पर वो सब याद आज अभी भी है...
जो सुख-ख़ुशी उस माटी मे थी,आज पक्के मकान मे कहां है...
सब बिखर गया,पर माटी की वो सौंधी खुशबू आज भी इस देह मे बसती है.........



Friday 17 July 2020

इन दुआओं की पहुंच बहुत दूर तक है,यकीन अपनी इन दुआओं पे है...रास्ते बेशक कंकड़-पत्थर

देते रहे,मगर खुद की तकदीर पे भरोसा आज भी है...एक खामोश दुआ,कभी बेजुबान नहीं होती...

उस के दरबार मे वो ना सुने,ऐसा कभी हुआ ही नहीं...हर छोटी बात के लिए,सुनवाई तेरे ही दरबार

मे करते आए है..अब दरवाजे फिर भी ना खुले,उम्मीद के झरोखे हमेशा खुले रखते आए है...सिर्फ

खुद के लिए ही नहीं,खुद से जुड़े सब के लिए...दुआएं मांगते आए है...
यही कही है वज़ूद मेरा,मुझी से मुझ मे लिपटा हुआ...ढलके अश्क़ तो भी कहा जुदा हुआ मुझ से...लब

मुस्कुराए तो और करीब आ गया मेरे...तकलीफ-दर्दो मे दूर ना हुआ मेरा वज़ूद मुझ से...ठोकर खाई

हज़ारो बार इस ज़माने से,सख्ती से सिमट गया मुझी मे वज़ूद यह मेरा...सर उठा कर चलते रहे तेरे ही

साथ वज़ूद मेरे....तेरे रूप के हर रूप मे,हम ज़िंदा रहे..क्यों कि तू मेरा अपना प्यारा सा दिलकश वज़ूद

जो है...
शाम घिरने को है,आ अब घर लौट चले....वो घर वो आशियाना,जो सिर्फ तेरा और मेरा है...वो दीवारें

जो हमारे प्यार की दस्तक हर पल देती है...झरोखों से झांकती वो उजली धूप,जब जब तेरे चेहरे पे

पड़ती है..हम क्यों जैसे तुझी मे गुमशुदा हो जाते है...तेरी यह गहरी काली आंखे,मुझे क्यों तेरे कृष्णा

होने का एहसास हर पल दिलाती है...सजती है जब जब मंदिर मे पूजा की थाली,मुझे तुझ मे आराध्य

का हर रूप बस दिखता है..तुम ही कृष्णा,तुम ही शिव मेरे और तुम्ही मे राम का चेहरा बसता है...तू

रूप धरे जितने,उतने ही प्यार के रंगो से मैं सज़ा दू तेरी-मेरी पूरी दुनियां....
जान फूक दी अपने शब्दों से,इन बेजान परिंदो मे..फूल खिला दिए अपने इन हाथों के स्पर्श से..मौत से

झूझते हुए हज़ारो इंसानो को अपने शब्दों से,जीवन दिया जब हम ने...पन्नो पे लिखे यह शब्द जब जुबां

बना दिए हम ने स्याही से अपनी...कितनी उदासियाँ खिल गई पढ़ के इन महकते शब्दों से...कुछ गुमा

नहीं अपनी कारीगिरी पे,मगर उम्मीद के दीये हज़ारो जला दिए रोज़ यू ही हम ने...लौट के आना फिर से

ज़िंदगी की पनाहों मे,इतनी ताकत तो रही है इन खूबसूरत शब्दों मे हमारे...

Thursday 16 July 2020

आ तुझे तेरे ही जैसे इक समंदर से मिलवा दे...इसलिए इस समंदर के नज़दीक तुझे आज ले आए है...

देख,है ना गहरा तेरी तरह..अपने अंदर छुपाए बैठा है हज़ारों राज़,तेरी ही तरह..खारा भी वैसा ही है,

जैसे तेरा वज़ूद है खारा इस के पानी की तरह...कभी आए गा यह मिलने हमी से,तूफ़ान की तरह...

भिगो जाए गा पूरी तरह तेरी मीठी बातो की तरह...कभी खुद मे ग़ुम हो जाए गा तेरे बदले हुए चेहरे

की तरह...इंतज़ार करे बेशक चारो पहर,मगर यह ना होगा टस से मस,तेरी बेरुखी की तरह...यह

समंदर है जानम,बिगड़ैल बिलकुल तेरी ही तरह....

Wednesday 15 July 2020

इन्ही खूबसूरत और नाज़ुक फूलों की तरह,हम रहे गे साथ तेरे आसमां के उस छोर की तरह...जिस का

सिरा तू कभी ना ढूंढ पाए गा...मुझे तलाश करने की खातिर तू पूरा आसमां पार कर जाए गा...ऐसी ऐसी

आंखमिचोली संग तेरे खेले गे...तू ना कहे जब तल्क़ मुँह से अपने,लौट आ ना अब नज़दीक मेरे अब बहुत

हुआ..हम यह आंखमिचोली तब तल्क़ खेले गे...ज़िद्दी तुम हो तो हम भी तुझी से सब सीखे है..नाज़ुक है

इन्ही फूलों की तरह,मगर आसमां के छोर से आज भी बंधे है...
ना जाने कितनी ही सदियों से,ना जाने कितने ही काल से....हम-तुम बैठे है इन जन्म-मरण की खूबसूरत

वादियों मे...कौन कहता है हम तुम जुदा हो गए..सूरतें ही तो बदली है,रूह दोनों की एक सी है..जीवन

है साँसे भी है,मेरे हाथ की लक़ीरों मे तेरे ही नाम की आज भी एक लकीर है...इन आँखों मे आज भी तेरी

आँखों की इक पहचान भी है...फिर कैसे कह दू कि तू हर जन्म मेरा नहीं...नाम लिखा कर आए है अपनी

इन साँसों पे तेरा..ताना-बाना साँसों का है तेरा और मेरा...
हज़ारो कष्ट पा कर भी,तुझे फिर सलाम कर रहे ऐ ज़िंदगी...तू फिर भी बेहद खूबसूरत है,इसलिए बार

बार तुझी से प्यार कर रहे मेरी प्यारी सी ऐ ज़िंदगी...कभी कुछ खो दिया तो कभी कुछ पा लिया..कभी

तूने बेहद से बेहद रुला दिया..फिर भी ज़िंदगी,तुम्ही ने जीने का एक मकसद भी दे दिया...मुस्कुरा कर

फिर लौट के आए है,तेरे ही पास मेरी ज़िंदगी...सच है,तू बहुत ही खूबसूरत और मायावी है..तभी तो तेरी

ही गोद मे सकून पाने आ जाते है,ऐ ज़िंदगी....
ख़ामोशियों मे भी आप के है..सन्नाटा घिरता है घिरता रहे,अपने असूल नहीं छोड़ पाए गे...जिस्म है तो

भी प्यार है,जिस्म नहीं तो भी आस है..मुहब्बत का दायरा कल भी खास था..मुहब्बत का आशियाना आज

भी बहुत खास है...निग़ाहें तुझे ढूंढ़ती है हर तरफ,आंख भरती रहती है रात भर...कभी रोया यह आसमां

संग मेरे..कभी यह धरती काँप उठी सिसकियों से मेरी...साथ-संग आप के है,फिर साँसों का इन धड़कनों

का सुनाई देना जरुरी तो नहीं...जिस्म है तो भी साथ है,जिस्म नहीं तो भी पास पास है...
बावरा मन अब किसी की सुनता ही नहीं...तुझे सोचे बिना अब कुछ करता  ही नहीं..दीवाने है,बस यह

बरसों से सुनते आए है..परदे के पीछे रह कर तालिया नहीं बजाई कभी ..बिंदास थे तब भी,आज भी

भी बिंदास रहते आए है...जो किया बस कर दिया,जो नहीं किया उस के बाद सोचा कुछ भी नहीं...

प्यार-प्रेम का दिखावा क्यों करते,प्रेम को जब लहू के साथ जी लिया हर पल..इल्ज़ाम पे इल्ज़ाम,यह

दुनियां की रीत है..यह रीत समझ जब आई,तब साँसों ने गिनती अपनी और बढ़ाई....

Tuesday 14 July 2020

आज से ''सरगोशियां'' लिखने चली है,प्रेम का वो रूप पावन...जो लिख के भी कभी लिखा गया नहीं..

लिख दिए शब्द हज़ारो मगर रूह मे है और भी हज़ारो भरे...लौट रहे है आज से सतयुग की और,जहां

हम ढूंढे गे प्रेम को ले कर मशाल इक मसीहा की तरह...वो मसीहा जो प्रेम मे खो गया इक भटके हुए

राही की तरह..वो मसीहा जो प्रेम का गहरा सागर पार कर गया किसी कुशल नाविक की तरह...यह

ग्रन्थ  ''प्रेम ग्रन्थ'' से बने गा,क़ुरबानी का वो प्रेम ग्रन्थ..जहां झूठे प्रेम को सिरे से नकारना लाज़मी होगा...
साथ जब चुन लिया अनंत-काल तक का..तो प्यार के दौर मे मोड़ बहुत से आए गे..आए गी कभी ख़ुशी

तो कभी गम ज़ी भर-भर रुलाए गे...कभी आए गी ग़ुरबत तो कभी और परेशानियां कहर बन जाए गी..

यह फैसले कुदरत के है जो आज़मायश पे आज़मायश लेती है...दर्द के दौर मे भी कौन कितना है वफ़ा

से भरा,यह पहचान लेती है...साँसे तब भी नाम तेरे थी,आज भी है..तो क्यों मान ले प्यार अंदर से मर गया..

ज़िस्मों को मरना है एक दिन,फिर प्यार पे इक किताब क्यों ना लिख दे आज के दिन...
लिखने लगते है अब प्यार को इन पन्नो पे तो आँखों के सामने वो दो पाक-रूहे आ जाती है..भूल ही गए

कि हम इस कलयुग मे रहते है...भूल ही गए कि हम कुछ लिखते भी है..अब तो यू लगता है,हम सिर्फ

स्याही ही बिखेर रहे थे इन पन्नो पे..असल प्रेम को देखा तो आंखे बार-बार भरती है..अब इस कलयुग मे

जीने का डर सताता नहीं..गूढ़ प्रेम को और गहरा और गहरा लिखे,इस ख्याल से यह कलम अब उठाते

है...अब इन पन्नो को सज़ाए गे एक बार फिर,प्यार की उस लो से जो इन आँखों मे बस सी गई है...
सुबह सुबह ना रही..शाम शाम ना रही..मगर यह ज़िंदगी फिर भी चलती ही रही..बदले गे यह ज़िंदगी

फिर जल्द ही,यह सोच यह साँसे सांस लेती ही रही..आगे का मंज़र क्या होगा,कैसे कह दे..अपने ही

हाथ की लक़ीरों को जब जान ना पाए तो आगे का माहोल कैसा होगा कैसे जाने गे...परवरदिगार का

हर फैसला जब उस की मरज़ी से होता आया है तो कैसे उस की कोई बात ठुकरा दे...जो जैसा है वो

भी उस की रज़ा तो अपनी कौन सी रज़ा अब उस से मनवा ले....
खूबसूरती तो उस सवाल मे थी जो पूछा ही ना गया...और जो सवाल दिल मे था वो जुबां पे आ के रुक

सा गया..वो मुहब्बत का कौन सा मोड़ रहा जो गुजरा तो मगर गुजर ना सका...थम गई धरती और यह

आसमां जैसे बेहद खामोश सा हो गया...फिर अँधेरे को चीरती इक गज़ब की लो झिलमिलाई और वक़्त

को कुछ और आगे ले गई..सन्नाटा जो पसरा था दूर तक वो अचानक रौशनी दे गया...अब खूबसूरती

सवाल मे भी थी और जवाब दिल की किताब मे था...
इस धरा पे उतरे क्या और भी ऐसे कृष्णा-राधा..ढूंढ ही ले गे फिर दुबारा ऐसे रिश्ते,जीने-मरने का एक

 साथ चलने का वादा...विरले होंगे मगर होंगे ऐसे सच्चे प्रेम को जीने वाले...सार्थक करे गे तमाम उन

शब्दों को,जो प्यार-प्रेम पे लिखे है इन पन्नो पे हम ने...प्रेम की कहां कोई भाषा होती है...जिस ने समझ

लिया वही यह भाषा होती है...इस मे डूबने से जो डर गया वो सच्चा साहिल कहां होगा...जो आखिरी सांस

तक जिस का था उसी का रह गया..वो प्रेम का,मुहब्बत का आखिरी पायदान होगा...
अनगिनत शब्द  प्यार के उतारे इन्ही पन्नो पे...हर पन्ना था जैसे प्यार के अथाह सागर मे डूबा हुआ..

कभी प्यार उतारा दर्द और विरह के शब्दों मे...कभी मिलन और समर्पण को पूजा के धागों मे पिरोया

इतना...वो समर्पण जो पूजा की थाली की कसम का गवाह था...बहुत लिखा,फिर भी लगा बहुत कम

ही लिखा...शायद इन दोनों रूहों ने सारे लिखे शब्दों को,प्यार को किसी सीमा मे बांधने से इंकार कर

दिया...यक़ीनन,पाक-मुहब्बत की कोई सीमा नहीं होती..लगता है,आज अभी से प्यार को और भी

जयदा लिखने की जरुरत होगी...

Monday 13 July 2020

कभी कभी यू लगता था हमे,परिभाषा प्रेम की लिखने मे हम काबिल है...कितनी किताबे पढ़ी,ना जाने

कितनी प्रेम-कहानियों को पढ़ डाला..फिर राधा-कृष्णा की परिशुद्ध-प्रेम लीला के कायल हुए और प्रेम

को कितने ही रंगो मे उतार दिया..उतारते उतारते इन शब्दों को,इन मे इतना डूबे कि भूल गए यह तो

कलयुग है..यहाँ पवित्र-प्रेम कही नहीं होगा..आज जो प्रेम का इतना पवित्र-रूप देखा तो राधा-कृष्णा को

जैसे देख लिया..अश्रु-धारा है जो रूकती नहीं..कलयुग मे देख इस प्रेम को,नतमस्तक होने से रूह तो

जैसे रूकती ही नहीं...

मायने प्यार के ऐसे भी...आज इस के साथ है तो कल कोई और ही होगा..खूबसूरती जिस्म की जिस मे

जयदा दिखी,प्यार की डोर उस से जयदा बढ़ी...किसी की खूबसूरत आँखों मे खो गए तो किसी के लबों

पे कुर्बान हो गए..किसी की पोशाक मे दिखे नंगे जिस्म के कायल हो गए...कोई चेहरा भा गया इतना कि

हज़ारो बार निहारते चले गए..तो कभी दौलत-ऐशो आराम जयदा मिले तो प्यार के दस बीस कदम और

बढ़ गए...ना खोने का गम ना पाने कि ख़ुशी ..जिस से जितना मतलब रहा,उस के उतने ही हो लिए...
प्रेम..प्यार..मुहब्बत..नाम कितने मगर रूप तो एक है..जो प्यार देह से बहुत बहुत ऊपर उठे वो प्यार

किसी देव-स्थल की पूजा के ही लायक है...प्रेम जो मौन रह कर भी बोल उठे वो प्रेम किसी मंदिर की

चौखट पे झुकने जैसा है....मुहब्बत जो दुआ मे बिखर जाए मगर लब तक ना  पहुंच पाए...वो मुहब्बत

शीशे की तरह निखरी है...जज़्बात दो दिलों मे एक से हो..अश्क एक की आंख मे हो तो दूजे की आंख

से निकल बह जाए...यह प्यार का वो मंज़र है,जिसे कृष्णा-राधा ही समझ पाए...
हम लिखते रहे अपनी ''सरगोशियां'' मे,परिशुद्ध प्रेम की बेमिसाल परिभाषा...कभी भरे अश्क तो कभी

प्रेम को नदिया की तरह बहा दिया...कभी इबादत की पाके-इश्क की तो कभी पूजा की थाली मे सज़ा

दिया...कभी बचाया दुनियाँ की नज़रो से तो कभी काला टीका लगा दिया...हम इम्तिहान की घड़ी को

तलाशते रहे और कही दूर किसी पाक-मुहब्बत ने साथ-साथ दम तोड़ दिया...यह कौन सा रिश्ता रहा,

जो मिट कर भी दुनियाँ को पाके-इश्क का मतलब समझा गया....बहुत कुछ सिखा गया...

Sunday 12 July 2020

वो फूलों का महकना और खिल के बहकना...दोनों ही भा गए..हाथ से क्यों छूना इन को कि यह तो

दूर से ही अपनी चमक बरसा गए...ओस की चंद बूंदे इन्हे और खूबसूरत कर गई...निहारना और खूब

निहारना और इन की खुशबू को महसूस करना...कही यह हमारा पागलपन तो नहीं...गज़ब पे गज़ब,

सीख रहे है हम भी इन से महकना और खूब महकना....शायद ज़िंदगी इसी का उजला सा नाम है...
इतने घनेरे बादल और फिर इन्ही मे बिजली का कड़कना...लगता क्यों है बस तूफ़ान आने को है...इक

दीया जला दिया इस तूफ़ानी रात मे इस उम्मीद से,वफ़ा की ताकत से यह बुझे गा कैसे...यकीन है इतना

जितना उस की इबादत पे है उतना..रात भर बरसा बादल मगर यह दीया बुझ नहीं पाया..शायद वफ़ा की

ताक़त होती ही है ऐसी...रुक गया यह तूफान और बिजली की कड़क मगर दीया जल रहा है अभी भी

उतनी शिद्दत से...कौन कहता है वफ़ा मे शफा नहीं होती,होती है मगर वफ़ा सच्ची भी तो हो...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...