Tuesday 31 July 2018

इतने लफ्ज़ो की मालिक हो कर कितने दिलो पे राज़ करती हो....कभी आंसू ,कभी आहे..फिर कभी

मुहब्बत का जाल बुनती हो....बेवजह दिलो को धड़का कर,क्यों नींद उन की उड़ाया करती हो...खींच

कर झटके से,ना जाने कितनो को रोने पे भी मज़बूर करती हो...बेसाख्ता हंसी के खास लम्हे दे कर

बहुतो को जश्ने-मुहब्बत बांटा करती हो...तुम कलम हो मेरी या कोई जादू की छड़ी,लफ्ज़ो को सीने

मे अंदर तक उतार जाती हो.... 
फिर से क्यों अजनबी हो गए,बहुत पास आते आते....दिलो के फैसले क्यों बढ़ गए,नज़दीकियों के

चलते चलते....सकून इन्ही दिलो का चुरा लिया करती है,बुझती ख़ामोशीया...हम चुप रहे वोह भी

चुप रहे,फासले अपनी जगह बनाते गए....इमारते टूटती रही,मलबे के ढेर मे नायाब रिश्ते दफ़न

होते चले गए...गुजारिश ना वो कर सके और हम यक़ीनन अपने कामो मे उलझे तो फिर उलझते

चले गए...

Monday 30 July 2018

धीमे धीमे पास आ कर मेरे कानो मे,कुछ उस ने कहा...फिर हवाओ की,फिजाओ की,बहारों की चंचल

शोख अदा से ऐसा खास पैगाम दिया...छन छन पायल के शोर को कहा सुन पाए,कगना जो बजे उस

की खनक भी कहा सुन पाए...धड़कने बताती रही रफ़्तार सीने के बदलते पैमाने का...पर कहा समझ 

आया शोर पायल का और खनक कंगना की...गूंजते रहे बस लफ्ज़ वही जो कानो मे मेरे उस ने कहा...
यह राते क्यों दस्तक देती है आज भी तेरी उन नरम गुफ्तगू की आगाज़ का...क्या सुन लिया मैंने

जो नज़ारा बन गया किसी शाही आफताब के रुख्सार का....दर्द की चादर मे अक्सर इक हंसी होती

है तेरे रूहानी लिबास की ....कहते है चाँद से तेरे चेहरे को याद कर आज भी नज़र हटती नहीं उस

सुर्ख जोड़े के मखमली अंदाज़ से...बिखर कर टूट कर,समा जाऊ तुझ मे,किसी शबनबी ओस की

पहली मुबारक सुबह की रौनकी अंदाज़ सी ....

बदलते बदलते इतना बदल गए कि खुद की ज़िंदगी मे खुद की पहचान ही भूल गए...जरा सी ठेस पे

दिल को दुखा लिया,छोटी छोटी बातो पे खुद को रुला लिया...आँखों की नींद उड़ने पे,खुद को दोष दे

दिया...ज़माना इलज़ाम देता रहा,कभी बेवफा तो कभी खुदगर्ज़ कहता रहा...सब सुना और पलकों को

जार जार बहा दिया...भीगे नैना तो इतने भीगे कि सारा समंदर ही सूख गया...खुद को फिर जो ऐसा

बदला कि खुद की पहचान ही भूल गए...

Tuesday 24 July 2018

ना छेड़ तार मेरे दिल के कि मेरा रब बसता है यहाँ....बार बार तागीद ना कर कि उस रब के सिवा कोई

और जचता ही नहीं यहाँ...नरम दिल से की तेरी गुजारिश को ना मान पाए गे कि इसी दिल की धड़कन

मे रब मेरा धड़कता है...दुनिया की चालबाज़ियों को ना झेल पाए कभी,इसीलिए रब को माना सब कुछ 

और लहू की हर बूंद मे अपने ही रब को बहने दिया हम ने....अब तू तार छेड़े या साथ देने का वादा भी

कर ले,मगर अब तो कोने कोने मे ,मेरा रब बसता है यहाँ.....
वक़्त के धागो मे बहुत बार मोम की तरह पिघलते  रहे....कभी जल गया सीना तो कभी रास्तें भी

पिछड़ गए...उसी तपती लो मे कुछ बह गया तो कभी कुछ रह गया...फिर मिला धागा ऐसा जो जलने

से इंकार कर गया...अब जली मोम की खूबसूरत रौशनी...जिस को देखा जब भी,रौशन सवेरा हो गया 

अब ना तो खौफ जलने का है ना रास्तो की बदहाली का...जीते जीते जी उठे,किया सलाम इस कदर

ज़िंदगी को,कि धागा तो धागा अब तो मोम भी सरे आम रौशनी देने पे आमादा हो गया....

Friday 20 July 2018

कदम से कदम चलने की बात करे तो यह कदम अक्सर खो जाया करते है...कभी कभी बहकावे मे

आ कर साथ छोड़ जाया करते है...तीतर-बीतर हो जाती है दुनिया जब  कदम रेत मे धस जाया करते

है...सवालो के घेरे मे खामोशिया भी खामोश हो जाया करती है...गरजते बरसते बादलो मे तेज़ आहट

से कभी कभी डर से कदम मिल भी जाया करते है....

Sunday 15 July 2018

क्या लिखू तुझ पे,कि शब्द कम पड़ जाते है....कितना याद करू तुझ को कि यादो का सागर कहा

कम होता है....घर के हर कोने मे तेरा साया आज भी है....उन्ही सीढ़ियों पे तेरे नन्हे पैरो की छाप

आज तक भी है...भूला कहा जाए गा मुझ से,कि हर लम्हा तेरा ख्याल आज भी है...तूने जो जोड़

रखा था पूरे घर को एक धागे से,तुझे देखे बिना चैन कहा किस को था...नम आँखों से याद क्यों

करू तुझ को कि तू तो सदियों तलक मेरे दिल मे ज़िंदा है....
जो मिल गया वो नसीब था...जो ना मिला वो हसरतो का कोई दौर था ...मिलने पे ख़ुशी वाज़िब थी

हसरते पूरी ना होने का गम क्यों रहा...वक़्त तो देता ही रहा गवाही,पर समझ से परे ज़िंदगी मे तब

कुछ भी ना था...कुछ छोड़ दिया तो कुछ छूट गया...कुछ संभल गया तो कही सब बिखर गया....रेले

खुशियों के गर नहीं मिलते तो दर्द का मौसम भी जय्दा नहीं चलता...नसीब तो नसीब है,कभी चमक

गया तो कभी रात के अंधेरे के तले बिखर सा गया ...

Saturday 14 July 2018

आप को सिर्फ सोचा,और हमे इस ज़िंदगी से प्यार हो गया...दिल की धड़कनो की आवाज़ सुनी और

यह दिल ना जाने कब आप के करीब हो गया...पलकों के शामियाने मे कब कैसे आप को बसा लिया..

रातो पे आप का कब और क्यों पहरा हो गया...खुद को आईने मे निहारा,खुद ही को खुद ने पहचानने

से इंकार कर दिया....सोचा सिर्फ आप को,और अपनी ज़िंदगी से बरबस प्यार हो गया...

Thursday 12 July 2018

वो हमारे कदमो मे फूल बिछाते रहे...हमारी पसंद नापसंद की बेइंतिहा फ़िक्र करते रहे...हमारी ख़ुशी

का हिसाब पाने के लिए दौलत के लिए मेहनतकश होते रहे...आंसू एक भी छलका,तो वो बस घबरा

गए... खुशियाँ गर मोहताज़ पैसो से होती,तो प्यार का मोल भला कहा होता...खुशियाँ गर सोने के

सिक्को से मिली होती तो हर अमीर ख़ुशनसीब ही होता...तेरी बाहों के घेरे मे,तुझे खुद के हाथो से

ख़िलाने मे..जो प्यार का दरिया मैंने पाया,वो कहा मिल पाए गा इन फूलो और दौलत के ख़ज़ानों मे ..

Wednesday 11 July 2018

प्यार मे डूबने के लिए यह जन्म ही काफी है...हसरते सारी पूरी कर ले कि उम्र का दौर पता नहीं

कितना बाकी है...कहते है सात जन्मो का साथ लिखा बाकी है...किस ने देखे वो सात जन्म,किस ने

देखे रिश्तो के वो भरम....जो आज है वो कल भी होगा,जिस बात का वादा किया क्या वो भी पूरा होगा

छोड़ दे अब इन बेहिसाब की बातो को...मुहब्बत को फ़ना होने दे इस जन्म के बंधन मे..तभी तो कहते

है,प्यार मे डूब जाने के लिए यह जन्म ही काफी है...
दरख़्त की छाँव मे बैठे कि हवा का इक झोका करीब से मेरे निकल गया...क्या कह गया,क्या बता

गया...इसी उलझन मे जो उलझे  तो दुबारा इक इशारा फिर से दे गया....इस बार का यह झोका दिल

के तारो को क्यों झकझोड़ गया....किस्मत की लकीरो मे जो उस ने लिखा,मै और तुम क्या बदले गे..

खुली हवाओ ने जो सन्देश दिया,अब तो हर सांस को बस ख़ुशी ख़ुशी ही जी ले गे ...

Tuesday 10 July 2018

जरूरतों की नगरी .... यह जरुरतो के शहर....कुछ भी नहीं मिला ऐसा जो दे सके सकूने -दिल का

वो महका सा सफर...कही था दौलत का नशा तो कही था जिस्मो की जरूरतों का वो बदला बदला

एक ज़हरीला सा नशा....मासूम हसी की तलाश मे कितनी दूर निकल आए... लोगो की नज़रो मे

ईमान ढूंढ़ने को तरस तरस गए....पूरे जहाँ को देखने की ताकत ही नहीं,डर लगता है कही ज़िंदगी का

और बुरा रूप नज़र ना आ जाए....

Monday 9 July 2018

रास्तो मे धूल जमती रही और हम साफ़ करते रहे....लफ्ज़ो के चलते चलते,ज़िंदगी का रुख बदलते

रहे....इंतज़ार था उस सावन का,जो बरसे इतना कि यह रास्ते फिर से निखर जाए....हाथ जोड़ कर

उस मालिक से दुआ पे दुआ करते रहे...कितने ही सावन आए और चले गए,शायद धूल थी इतनी

गहरी कि सावन भी उन को सवार नहीं पाए...थक कर छोड़ा तमाम रास्तो को और खुली हवा मे सांस

लेने चले आए....

Sunday 8 July 2018

मुहब्बत कितना करते है आप से,जान लुटाते है कितनी आप पे...आप की एक उदासी से परेशाँ हो जाते

है किसी खौफ से...नज़र ना लगे ज़माने की,बार बार नज़र उतारते है किसी अनजानी वजह के धयान

से...मुहब्बत जताने से जय्दा तो नहीं होती...बस परदे मे रहे इस ख्याल से,सज़दा भी करते है आप का

बिना बताए भगवान् से...इस से जय्दा आप को क्या कहे कि कितनी जान लुटाते है हम आप पे...
बारिश की हलकी हलकी बूंदे रेत मे समा जाती है...ना जाने कितनी तपिश है उस रेत मे,जो हज़ारो

बूंदो को खुद मे जज्ब कर जाती है...धूप की किरणों से यह रेत,फिर उजली हो जाती है...लगता है

जैसे वो खुद को खुद मे निखार लाती है...इसी रेत को हाथो मे लिए,खुद की ज़िंदगी पे नज़र करते

है....हज़ारो दुखो को खुद मे जज्ब कर के, हर जगह खुल के हसते है....ज़माना रश्क करता है हमारी

किस्मत पे,और एक हम है कि अकेले मे हर सैलाब इन्ही आँखों से बहा जाते है.....

Monday 2 July 2018

बरसा तो बरसा आज सावन इतना कि दिल का दर्द हवा हो गया...तूफानी बौछारों से किन्ही यादो से

मन गुदगुदा गया...जी चाहा आज भी उतना ही भीग जाए इस मौसम मे,बरसो पहले भीगते थे जैसे

लड़कपन मे...सिर्फ एहसास था छोटी छोटी बातो का,झगड़ा था कागज़ की बनी उस नौका का...लौट

कर वो वक़्त कब आता है,मगर यह सावन हमेशा याद वही सब दिला जाता है....
क्यों नहीं लगा उस को कि किस्मत की लकीरो के आगे सर झुका चुके है हम...कुदरत के फैसलों को

पूरी तरह स्वीकार कर चुके है हम...राह तेरी ना अब देखे गे किसी और के साथ अब बंध चुके है हम...

जिस्मो-जान की कीमत क्या होती है,यह तो पता नहीं...मगर रूह की बात सुने तो यक़ीनन रूह को

तो रूह तेरी के साथ कब से जोड़ चुके है हम...यह जिस्म तो आखिर मिट ही जाया करते है,रूह को

रूह से करीब  करने के लिए अगले जनम की बात सोच चुके है हम....

Sunday 1 July 2018

बहुत प्यारी सी महक है आज इन हवाओ मे...लगता है किसी ने हम को दुआओ मे अपनी आज 

निखारा है....दिल की धडकनो मे कोई जादू सा है,शायद किसी ने रूह से अपनी हम को पुकारा है 

आँखों की पलकों मे कुछ भारीपन सा है..क्या किसी ने अपने सपनो की नगरी मे आने को पुकारा

है....नज़र उठती है तो कभी गिरती है,मुस्कान लबो पे अनायास क्यों रुक जाती है....कुदरत के

इशारे को समझने के लिए,इन हवाओ ने क्यों अपने  को यू महकाया है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...