Saturday 17 April 2021

 बाहर भी खड़ी मौत है और बंद कमरों मे  भी उसी का खौफ है..प्यार तो ज़िंदगी से है पर मौत तू भी 


मुझे प्यारी कही से कम नहीं..ज़िंदगी से पूरी तरह मिल कर,फिर  आना तो हमेशा के लिए तेरे ही पास 


है...पर ज़िद है एक हमारी भी,जब तक अपने जीने का मकसद पूरा ना कर ले..तेरी गोद मे सोने नहीं 


आए गे..अपने दम पे दुनियाँ को सिखा रहे है,इस ज़िंदगी को जीना..और तू बीच मे आ कर खलल ना 


डाल..करते है तुझे ज़मीर से सलाम..और यह वादा भी..रोटी मिले एक या फिर आधी,साथ तो इसी 


ज़िंदगी के जाए गे...हां,सुन जरा धयान से मौत मेरी,मकसद पूरा होते ही तुझे खुद ही बुलाए गे..मेरी 


बात मान और अभी लौट जा इस संसार के हर जीव के जीवन से..कुछ पुण्य किये हो मैंने तो बात मेरी 


मद्देनज़र जरूर रखना...

 पूछ रहे है इस ज़माने से..कभी उस भगवान् से कोई खौफ इतना ना आया तुझे तो फिर आज नन्हे से 


इस कण से क्यों खौफ मे है..इतना डरा हुआ हुआ अपनी ज़िंदगी से क्यों है..जब चल रहा था गलत तो 


भी खौफ उस का समझा होता तो आज वो यू सब को बर्बाद ना करता...कभी देखा नहीं उस भगवान् को 


तो आज उस के इस कहर को भी कहां देख पा रहा है..सिर्फ महसूस कर के ही डरता जा रहा है..आज 


भी कौन कहां सुधर रहा है...ज़िंदा जीवो को खाया..किसी गरीब पे कितना तरस खाया ? अब हिसाब तो 


सभी को देना होगा..जो सच है वो तो सब जानता है..फिर खौफ मे यू रहने से क्या होगा...

 बह रहे है सदियों से नदिया की धारा की तरह..रुके नहीं कभी बेशक टकराते रहे तूफानों से..टूटना कभी 


सीखा ही नहीं,रुकना भी सीखा नहीं...राह मे आती रही हज़ारो मुश्किलें,धीरज से पार कर के मुस्कुराना 


और खुदी पे नाज़ करना...यह सब भी तो सीखा इन्हीं तमाम मुसीबतों से..डर के जीना,खौफ मे रहना..


यह कौन से शब्द है...खड़ी होगी बेशक मौत सामने तो भी डर कर सांस ना छोड़े गे..गर डरना होता तो 


ज़िंदा रहना कभी मकसद नहीं होता..जाए गे माँ-बाबा के पास मगर फक्र से सर उठा कर..उन के नाम 


को,उन के संस्कारो को संसार मे ज़िंदा छोड़ कर ही उन से नज़रे मिला पाए गे..

Friday 16 April 2021

 इत्मीनान नहीं,चैन नहीं...खुली हवा मे अब सांस लेना भी आसान नहीं...दूर बहुत दूर इंसान से इंसान हो 


रहा..हर जगह त्राहि-त्राहि और कल क्या होगा,यह सोच काँप रही हर ज़िंदगी...कभी अपनों की चिंता तो 


कभी परवरिश का भय...अंदर ही अंदर टूट रहा हर कोई...कोई आवाज़ अंदर से इस दिल-रूह से आई...


'' जैसा बोया वैसा ही तो काटे गा..किसी का दिल चीरा तो वो  तेरे दिए दर्द से बिलबिला गया तो तुझ को 


तो वो नज़र ना आया..फिर आज अपने दर्द से क्यों रोया..अब कुदरत कर रही इंसाफ तो तुझ को उस को 


दिए दर्द का कुछ तो याद आया''...इस हाथ दे उस हाथ ले,कुदरत तो यही हिसाब करती है..झांक खुद 


मे और अब भी संभल जा...कुदरत अपने कहर से कब बाज़ आती है...

Sunday 11 April 2021

 सज़े क्या तेरे लिए दुल्हन के लिबास मे या पूरी तरह गुलाब की पंखुड़ियों मे घुल-मिल जाए...कह दे जो 


अब तक है दिल मे मेरे या तुझ से लिपट कर जी भर के रो दे...कितनी ही बातें है इस दिल के आंगन मे,


तुझ से मिल कर कही रोते-रोते तेरे संग ही फ़ना ना हो जाए...तेरे मुँह से सुनने के लिए बेक़रार है तेरी 


यह दुल्हन..फिर से कह दे ना ''तेरे जैसी दुल्हन सिर्फ सदियों मे ही पैदा होती है ''...अब इंतज़ार है तेरा,


सज़े तेरे लिए खूबसूरत लिबास मे या तेरी बाहों मे फिर से फ़ना हो जाए...

 इस से पहले तेरे आने की कोई आहट हो,हम ने दिल-रूह के तमाम दरवाजे तेरे लिए खोल दिए...सिर्फ 


तेरी इक झलक पाने के लिए हम ने, अपनी आँखों को रात भर जागने के आदेश भी दे दिए..तेरी वही 


इक ख़्वाइश कि हम सम्पूर्ण सादगी मे रचे-बसे,तेरे और सिर्फ तेरे लिए..यह फुरसत के पल तेरे लिए हम 


ने फुरसत से रख दिए...चाँद को हम ने ना आने की तागीद फिर से कर दी..कोई ख़लल ना डाले बीच 


हमारे,सारे जहां को यह बात तक बता दी..बस दिन तो वो आने को ही है,दिल-रूह की आवाज़ बस तुझ 


तक पहुंच जाने को ही है...

Friday 9 April 2021

 बहुत नज़ाकत से वो बोले..  ''आप की खूबसूरती पे पढ़े गे कसीदे रात भर ''...क्या बात है,हंस दिए यह 


सोच कर..क्या कोई पत्थर का बुत भी,खूबसूरती पे हमारी कसीदे पढ़ सकता है...क्या कोई  बंद लबों को 


हमारे लिए खोल सकता है...नाउम्मीद नहीं हुए हम..सुहानी रात मे वो जिस लय मे गुनगुनाने लगे..हम 


को वो किसी फ़रिश्ते से कही कम ना लगे...इस को तक़दीर का करिश्मा कहे या उन की लय की मीठी 


खुशबू,उन के कसीदे सुनते-सुनते हम गहरी नींद की आगोश मे खो से गए...

 अचानक से यह बदरा घिर आए है ,शायद हम को यह बताने के लिए...जी ले अपनी ज़िंदगी को खुल के,


क्या पता फिर यह साँसे रहे ना रहे..नैनों से कर गुजारिश,खुद को अश्कों से ना भरे..खुशियां चल कर 


खुद आने को निकली है तेरे द्वारे,मन मयूर को खुल के मुस्कुराने दे..हज़ारों फूल खिलने को है तेरी राहों 


मे,गम का दरिया बस खत्म होने को है...अब साँसे कितनी है तेरी तक़दीर मे,इस का हिसाब तो उसी के 


खाते मे है..बस जी ले जी भर के,मन मयूर को खुल के मुस्कुराने दे...

Thursday 1 April 2021

 पायल तो फिर बजे गी उसी खास सी खनक को लिए...यह गजरा फिर से महके गा उसी पुरानी सी 


खुशबू को साथ लिए...तू फिर से मुस्कुराए गा उसी चिपरिचित हंसी के साथ,सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए...


गुस्से को छोड़ कर फिर से मान कहना मेरा,जिए गा ज़िंदगी को अपनों के लिए...और मैं बहुत दूर खड़ी 


देखूँ गी तुझे ज़िंदगी को फिर से जीते हुए..मुहब्बत की जीत तो होगी ही,क्यों कि तेरी दुल्हन आज भी 


रुकी है मुहब्बत के सब से ऊँचे पायदान पे तेरे-मेरे मिलन के लिए..अगले कितने जन्मो के लिए..बस 


यही तो प्रेम का वो रंग है जिस मे यह राधा इंतज़ार तेरा करे गी तमाम जन्मो के लिए.........

 यह कौन सी अग्नि-परीक्षा है,जिस मे तेरे दर्द से कही जयदा,इस दर्द से हम घायल है..क्या करे तेरे लिए,


यह सोच सोच कर इस दिल से जैसे खून के आंसू क़तरा-क़तरा गिरते है..खाने का कौर उठाते है जैसे,


यू लगता है कोई कही दूर दर्द मे लिपटा है जैसे...उस दर्द की छाया बेशक ना दिखे मगर रूह का यह 


आंचल उस दर्द के एहसास भर से बेहद भीगा-भीगा है...आज दुआ का हर शब्द,एक एक कर के उस 


की आराधना मे उतरा है..तेरे दर्द से तुझे बहुत जल्द निज़ाद मिले,मुहब्बत की पाकीज़गी की आज फिर 


एक बार घोर परीक्षा है...


दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...