Saturday 29 February 2020

हज़ारो बातें दिल मे छुपाना और गज़ब यह कि खुद के लबों को मुस्कुराने की इज़ाज़त भी ना देना...

तौबा तौबा..इतना ज़ालिम खुद के लिए होना और हम पे भी कहर ढाना..कौन सी किताब पढ़ते हो

ऐसी,जनाब जरा हम को भी बताना..हम  तो है इतने नादान,बिन बात मुस्कुरा देते है..बेवजह हंस भी

देते है..और ज़माने की नज़रो मे घिर जाते है..अब बता भी दीजिए ना,हम से छुप कर कौन सी  दुनियां

मे जीते है मेरे मेहरबां....
सफर जब अनंत-काल का है तो नाराज़गी को छोड़ देना है...कदर करनी है इतनी जितना पावन यह

संबंधो का रुख सुहाना है..हर सांस के साथ तुझी को याद करना..पलकों को जितनी बार झपकना,

उतनी बार तेरा नाम लेना..क्या राधा ऐसी थी..उस की गाथा पढ़ कर वैसे ही प्रेम की मूरत बनना..इक

मुस्कान अधरों पे और हज़ारो दुआए तेरे नाम लिख देना..तेरी सलामती के लिए,वो सब करना..मगर

तुझे पता भी ना चलने देना...प्रेम का रुख इबादत की तरफ मोड़ देना और तुझे जी भर के याद करना..
रहे कही भी मगर तेरी रूह से जुदा नहीं होते..रहते है सदा तेरे दिल की धड़कन मे,कही और नहीं जा

सकते..दिल जो जुड़े है इक दूजे से..धड़कनें जो सुने तो यह यकीं ही नहीं कर पाते,यह आवाज़ धड़कने

की तेरे दिल की है या मेरे की..जमीर कहता है,दिल तो सदियों से एक है..बस टुकड़े है आधे-आधे..तभी

तो दिल की धड़कनें बजती है आगे-पीछे..आधे-आधे दिल तो रोज़ जुड़ते है,होना ना कभी उदास कि दिल

आधे-आधे है मगर रूहे तो अपनी अनंत-काल से एक ही लय मे चलती है...

Friday 28 February 2020

हर सूरत मे गर अक्स तेरा दिखता तो मुहब्बत तुझ से ना कर पाते..तू सिर्फ तू है,यह राज़ फिर तुझे कैसे

बताते..ऐसी गहरी आंखे,भला किसी की हो सकती है..जो कभी ना मुस्कुराए,ऐसे लब भला किसी के हो

सकते है...यह श्याम वर्ण जो मुझे सिर्फ तेरे कृष्णा होने का एहसास दिलाता है..तेरे गुस्से पे लिख दे पूरी

गाथा,कोई और ऐसा भला कहां हो सकता है..अपनी चुप्पी से जो मुझे परेशां कर दे,ऐसा दिलदार पूरी

कायनात मे भी नहीं हो सकता है..सही तो कहते है,तू सिर्फ तू है..यह राज़ तो सिर्फ मेरा-तेरा ही हो सकता है...
हसरतों की कहानी,दिल की जुबानी..दिल ना भी कहे तो भी शर्म घुल जाए हवा मे बन के रूमानी..

कुछ लफ्ज़ कहे, कुछ अनकहे रह गए..कुछ सुने तो कुछ सुन के रूह मे उतर गए..बेबाकी लफ्ज़ो

की समझ तब आई जब रास्तो पे अपने-अपने चल दिए..मुस्कुराए लब,हंस दी आंखे..शराब सा नशा

घुल गया फिज़ाओ मे जैसे..एहसास समेटे दिलो मे,इक दूजे के हो गए..उस की ख़ुशी जीवन मेरा,और

यह सिलसिले जवां हो गए..

Thursday 27 February 2020

 बिना देखे तुम को देख लेना.. तेरी ख़ामोशी से भी तुझे सुन लेना..तेरे दिल की धड़कनों की तेज़ी और नमी

को महसूस करते रहना...तेरे हर दर्द को तेरी आवाज़ की उदासी से जान लेना..तेरी खनकती हुई हंसी

से अपने प्यार की ताज़ा महक महसूस कर लेना..तेरे कहे बिना तुझी मे समा जाना,समर्पण का गुलाबी

एहसास तुझे एहसास कराना..रिश्ते से परे किसी पाक रिश्ते को जन्म देना...भूल ना भी हो तो तुम से

माफ़ी मांग लेना..कभी नाराज़ ना होने का पक्का वादा कर लेना...कुछ कहना तो कभी चुप रहना..
दो दिल धड़कन एक..दो जोड़ी आंखे निगाह एक..दो जिस्म जान एक..एहसास बराबर खवाब एक....दर्द

की छाँव मे,याद तुझे करते रहे..तेरे ना हुए तो क्या हुआ,मेरी इबादत मे तो तुम रहे..जिस्म से ना सही पर

रूह से तो जुड़े रहे..तेरे सुखो की बेला मे हम बेहद खुश हुए..दुःख की जरा सी आंच जो आई,हम ने

दर्द तेरे सारे पी लिए..ना मिसाल है प्यार की,ना मिसाल है किसी खवाब की..बस जो तुझे सकून से भर

दे,कुदरत की भेजी वो मशाल है,हम तेरे लिए..
दिल ही नहीं सीने मे फिर यह आवाज़ कैसी..ज़िंदा तो है मगर तेरे बिना यह ज़िंदगी कैसी..एहसास तो

है पर गुफ्तगू का सिलसिला नहीं तो कीमत एहसास की कैसी होगी...मुहब्बत बिखरी है चारों और,पर

मेरा दामन है खाली तो मुहब्बत की बंदगी कैसी...हुस्न भरपूर है खुद मे,पास जब इश्क नहीं तो हुस्न की

यह क़यामत कैसी..अब तो बरस जा बादल बन के कि धरती बंज़र है और खाली खाली...
कितना कितना याद करे...कुछ पल या कुछ दिन..सवाल तो यादो का है,जो जीने नहीं देती..यह नैना

बेशक कजरारे सही,यह पलकें घनेरी सही..तुझे देखे बिना इन की कीमत कुछ भी तो नहीं..लफ्ज़ कितने

बोले मगर जब तल्क़ तुझ से ना कुछ बोले,लफ्ज़ सभी अधूरे है मेरे..संवरने का मौसम कब होता है,तू

साथ हो तभी होता है..वरना सादगी मे भी ज़माना हम को चाँद का टुकड़ा ही कहता है..

Wednesday 26 February 2020

कितने चेहरे गुजरते रहे राहो से हमारी..एक चेहरा जो बरसो से था हमारा..आज भी हमारा है और जब

तक बसा है संसार,वो चेहरा सिर्फ और सिर्फ हमारा है..जिस से हम अक्सर अपनी तमाम बातें किया

करते है..वो चेहरा जिस के आगे जब दिल भरे तो रो भी देते है..कुछ ख़ुशी हासिल हो तब भी उसी का

दामन भरा करते है..बाकी चेहरे बेशक गुजरते रहे निग़ाहों के सामने से,हम कहां उन को देखा करते है..
सिर्फ दो लफ्ज़ प्यार के गज़ब ढा गए..बिना बोले बहुत कुछ बता गए..कभी बेहद खामोश रह कर तो

कभी हल्का सा एहसास जता कर..कभी चुपके से एक रेखा खींच दी तो कभी होठों पे आती मुस्कान ही

रोक ली..बिखरे गेसुओं को उड़ने दिया कभी तो कभी इन केशों मे उलझ गए..कभी जी ने कहा तो

खूबसूरती पे हज़ारो क़सीदे पढ़ दिए,कभी सज़ के सामने आए तो देखने से भी कतरा गए..सुन जरा यारा,

तेरे दो लफ्ज़ हम को समझ आ गए..तेरे अल्हड़पन के बेबाक इरादे समझ तो हम को आ गए..
शायद कुछ कहा आप ने,मेरे दिल ने बस सुन लिया..रास्ता आप का बेखुदी मे गुजर गया,यह हम को

हवाओं ने बता दिया...यह फ़िज़ाए क्यों गुनगुना रही थी,दिल ने फिर दिल से कुछ कहा और बहारे खिल

गई...खुद से बैगाने आप है,हम तो नशे मे चूर है..अंगड़ाई लेते है तो यह जिस्म क्यों बहकने लगता है..

खुद को आईने मे देखे तो क्यों आप की सूरत का अक्स हम पे झलकता है..आप आप कहां रहे,हम तो

कभी हमारे थे ही नहीं..यह आज निगाहों ने मुस्कुरा के ऐलान कर दिया...

Monday 24 February 2020

समर्पण जब जब भी ढला इबादत के पन्नो पे,इबादत के रंग और भी गहरे हो गए...मुहब्बत का यह दरिया

कैसा था,जिस मे दूरियां सारी फ़ना हो गई..ना मिले कभी,ना छुआ कभी..पर मुहब्बत का नाम फिर भी

हज़ारो रंगो से भर गया..यह समर्पण तो रूहों का था,फिर आँसू आँखों से क्यों निकल पड़े..शायद कुछ

चाहतें ऐसी रह गई जिस को निभाना इस जन्म रह गया..आंख तो फिर दर्द मे भी मुस्कुरा दी,कितने

जन्म और बाकी है मेरे पास,तेरी इबादत करने के लिए..तेरे है तो बस तेरे है,समर्पण तो इक बहाना है..

Sunday 23 February 2020

हसरतों का क्या है,ख्वाहिशों का क्या है..रोके गे नहीं तो खुद को मजबूत कैसे बना पाए गे..एक लहर

आती है तो एक लहर जाती है..दौलत-शोहरत का भी क्या भरोसा,यह भी बिन बुलाए आती-जाती है...

प्यार की दुनियाँ गर बस जाए सकूँ से तो इस से जयदा तक़दीर सुहानी क्या होगी..तेरी आगोश मे साँसे

लू,इस से जयदा खुशनसीबी कहाँ होगी..तेरा दर्पण बन कर जिऊ,तू कहे तो तेरी तक़दीर बनू...कुछ ना

सही मगर तेरे लिए तेरा मजबूत साथ तो बनू...
रुक जाइए कि आप थकान से चूर है...हम अभी भी साथ है आप के कि रास्ते तो अब भी साथ-साथ है..

किस ने देखा थकने का यह सफर..किस ने महसूस किया दर्द की इंतिहा का सफर..जो आप की रूह

मे समाया है,कदर आप की वही कर पाए गा..बाकी तो सिर्फ आप को दौलत के मुकाम तक ही देख

पाए गे..फिर कहते है,रुक जाइए कि आप थकान से चूर चूर है..हम तो हर वक़्त आप के ही साथ है..
यह चंचल चपल नैना कुछ कहते है तुम से..नहीं जानते अब कि क्या कहना चाहते है तुम से..इन की

भाषा शायद तुम समझ पाओ,यह मेरी कम तुम्हारी जयदा सुनते है..धड़कने दिल की बेहिसाब है,कैसे

गिने कि यह तो बेलगाम है. सुनना  जरा शायद यह तुम से कुछ कहना चाहती है..मेरी पायल की रुनझुन

कुछ कहती ही नहीं,खामोश है छन छन भी करती नहीं..लगता है,सारे सवालों के जवाब यह तुम्ही को

देने वाले है..आखिर यह मेहमान जो तुम्हारे है...
दस्तक तेरे दरवाजे पे कभी नहीं दे गे..जो दरवाजा हमारा है ही नहीं,उस पे भला गौर क्यों करे गे...शाही

ख़ज़ाने सब को मिला नहीं करते,चंद सिक्के भी गुजारे के लिए काफी है..तेरी मुस्कराहट ही हम को

हम से मिला देती है..तेरे कदमों की चाप मुझे नींद से जगा देती है..तेरे गुस्से ने मुझे कुछ सबक सिखाए

है..तेरी गहरी चुप्पी से हम अक्सर घबराए है..यह सांस कभी अचानक टूट ना जाए,इस डर से खुद को

तेरे और करीब ले आते है..तू जो कहे रात है,हम मान जाते है..तू जो दिन को भी रात कहे तो भी हम 

 तेरी इसी बात का मान रख लेते है...
प्रेम को हम ने बहाया नदिया की तरह..बिन जाने बिन सोचे,कि तेरी रूह के तले पहुंचे गा भी या नहीं..

समंदर से भी गहरा है प्रेम मेरा,यह तुम को बताया भी तो नहीं..बताते तो तब,जब  तुम को हासिल करना

होता..नदिया तो नदिया है,काम है सरलता से बहना..लोग कहते रहे बेशक हम को चाँद का टुकड़ा,हम

ने खुद को तेरे लिए ही समझा..अनंत-काल कितना होता है,यह तो मालूम नहीं..पर तुझे स्वीकार किया

अपना सब कुछ,इस से जयदा कुछ चाहा भी तो नहीं..
दोस्तों...मेरी पूरी कोशिश और प्रयास जारी है कि ''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' को एक पुस्तक/किताब के रूप मे प्रकाशित करू ...हो सकता है कि अगले साल तक मैं इस विषय पे सफल हो जाऊ..तब सरगोशियां,आप के अपने घर-घर मे होगी...दुआ कीजिए,ऐसा जल्द से जल्द हो...आप की अपनी सी शायरा ...
''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' की शायरा और आप सब की दोस्त,आप सब से रूबरू है..दोस्तों,हमारे समाज मे प्रेम,प्यार,मुहब्बत जैसे शब्दों को छुपा कर देखा और पढ़ा जाता है..क्यों,किसलिए ?? वजह है सोच की समझ की सही परख ना होना..प्रेम,प्यार और मुहब्बत पे जब एक स्त्री लखती है तो लोगो को पहले पहले अजीब लगता है..उन की सोच एक लम्बे अरसे तक इस को हज़म नहीं कर पाती..इस समाज मे औरत जब सभी कार्य-क्षेत्र मे काम कर सकती है तो वो प्रेम पे क्यों नहीं लिख सकती..मुझे बहुत ख़ुशी है कि मेरी इस ''सरगोशियां''को अब सभी दोस्त बहुत बहुत सम्मान दे रहे है..एक लेखिका,एक शायरा के रूप मे मुझे स्वीकार कर रहे है..जब यह समाज साथ देता है तो औरत के लिए अपना जनून,अपना लक्ष्य पूरा करना बहुत आसान हो जाता है..सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ...शुद्ध प्रेम की रचनाओं को बहुत प्रेम से पेश करने की पूरी कोशिश करती है..जो हमारे समाज से लुप्त हो रहा है..दोस्तों,मेरे लेखन मे कोई कमी रह जाए तो बताना मत भूलिए..बस एक आग्रह,कि अपनी भाषा,अपने शब्दों को सम्मानित ढंग से लिखे..मेरे बहुत दोस्त सवाल करते है कि ऐसा लगता है कि आप ने हमारे जीवन के प्रेम पे आज लिखा..जी नहीं,मैं किसी खास व्यक्ति विशेष के लिए नहीं लिखती..हां,पर यह प्रेम हर भाव,हर संवाद मे किसी ना किसी के जीवन से जुड़ा ही होता है..यह सरगोशियां..आप की है,तभी तो आप को लगता है,कि आप के लिए ही लिखा गया है..यही पे आ कर एक लेखक धन्य हो जाता है कि उस के शब्द लोगो को अपने लिए ही लग रहे है..जब  एक लेखक हर किसी के जीवन से जुड़ता है,उस के शब्द लोगो के दिल रूह को अंदर तक छू लेते है तो लेखक/शायर खुशनसीब होता है..मेरे साथ बने रहने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया..आभार...आप की अपनी सी शायरा...

Saturday 22 February 2020

ऐसा क्या कहा..ऐसा क्या सुना,कि खुद से वादा कर लिया..हर पल मुस्कुराए गे..खुशियों को सिरे से

यह मन का दरवाज़ा खोल दे गे..भूल जाये गे,कल क्या हुआ था..ज़िंदगी और मौत कभी भी दस्तक दे

जाया करती है..आज चुपके से उसी ज़िंदगी को अपनी ज़िंदगी मे खास जगह दी और किसी खुशबू से

महक महक गए..पल चाहे जीने के दो मिले या हज़ार..वादा तो वादा है..आ ना ज़िंदगी,तुझे फिर से प्यार

कर ले..कौन जाने फिर यह लम्हे मिले ना मिले..
मेरे वज़ूद की आंच से तुझे गर ख़ुशी मिले तो मेरा जन्म सफल हो जाए..तेरे दर्द की गहरी धारा,मेरी

 चाहत से गर तेरी हंसी मे बदल जाए तो मुझे सकून मिल जाए..काम के बोझ से तेरा जिस्म गर थक गए,

 मेरी याद भर से तू फिर से खिल जाए तो यक़ीनन मेरी मुहब्बत को करार आ जाए..रो दे कभी जो मुझे 

 याद कर के,मेरी खिलखिलाती आवाज़ के जादू से तू मदहोश हो जाए तो मेरी रूह को आराम मिल

जाए..मुहब्बत तो वही जो तुझ को हज़ारो गमों से आज़ाद कर दे..तेरी हर तकलीफ मैं खुद मे जज़्ब कर

लू ..ऐसा गर हो जाए तो मुझे सकून की नींद मिल जाए....



Friday 21 February 2020

इतनी गहरी काली वो खूबसूरत सी आंखे..हम पलक झपकना भूल गए..आंसू निकले जब खुद की आँखों

से तो कद्रदान उन्ही आँखों के फिर से हो गए..समंदर को देखा था कभी,पर वो भी इतना गहरा ना था..

खो बैठे है सुध-बुध अपनी,बेगाने अब खुद से है..खुद ही कान्हा खुद ही कृष्णा,खुद ही राधा खुद ही मीरा..

आँखों ने उत्पात मचाया,चैन खोया तो दिल भी साथ मे खोया..देह- मोल के अब क्या मायने,इन्ही आँखों 

से जुड़े है सदियों से भी पहले...
 आंख से दो बूंद अश्क गिरे और फूल मे ग़ुम हो गए..किस को खबर कहाँ इक दूजे मे ग़ुम हो गए..

फूल जो सुना रहा था अपने दिल की दास्तां और एक परी जो हर लफ्ज़ को,समेट रही थी अपने दिल

की धड़कन मे..हर लफ्ज़ जैसे रुला रहा था ख़ुशी के आंसू..किस्मत को सराहे या परवरदिगार कितना

शुक्रिया अदा करे....कुदरत अपने फैसले कभी-कभी इस तरह से ज़ाहिर किया करती है,साँसे कोई और

लेता है मगर उन को जिया कोई और करता है...
शिव-पार्वती जैसा नाता क्या इस दुनियाँ मे होगा..अपने देव के लिए जो सम्पूर्णतया समर्पित हो कर भी,

उन की ख़ुशी को पहले रखती आई..खुद मे गुणवान हो कर भी शिव की हर आज्ञा को निभाती आई..

शिव की नाराज़गी-गुस्सा जान कर,अनंत-काल  तक मुस्कुरा कर कदम मिला कर चलती आई..ना कोई

शिकायत,फिर भी उन की गंगा तले बहती आई..ऐसा नाता कहाँ होगा..गर होगा तो बहुत नसीब वालो

का ही होगा..
सोंधी सोंधी माटी की खुशबू कैसी होती है..इस एहसास के लिए बरसो तरस गए..ऐसा नहीं कि बरखा

बरसी नहीं..रुख ही ऐसा रहा कि माटी भीगी ही नहीं..कुछ जलजले कुछ बिखरे टुकड़े,कही चट्टान सी

मजबूती..नमी आने के लिए बरखा को सिर्फ उसी चट्टान पे बरसना था..और इतना इतना बरसाना था कि

वो उस को माटी बना पाती..मेहनत और शिद्दत दोनों जो मिले,साफ़ तेज़ बौछारों ने चट्टान को बनाया

माटी ,और बरखा वो तो अब रुकने को राज़ी ही नहीं..

Tuesday 18 February 2020

बेपनाह प्यार से जो भरे तो रास्ते क्यों खूबसूरत हो गए...हर कदम जो चले,तेरे प्यार से क्यों घायल हो

गए..यह नैना मेरे क्यों लगा,आज जयदा कजरारे हो गए..बात-बात पे बिन वजह मुस्कुरा दे,ऐसे दिल के

इशारे भला क्यों हो गए..इस क्यों का जवाब कहाँ ढूंढे,हम तो आज खुद से ही बेगाने जो हो गए..सूरज

की लो है भी तो इतनी गहरी,अपनी क्यों का जवाब पूछे भी तो कैसे,जल के मर जाए गे उस की ताप से

फिर से दुबारा...
हम ने सोचा भी ना था और फ़िजा रंगीन हो गई..बरखा के पानी की तरह संगदिल हो गई..नकारते

कैसे कि यह तो दिल के बहुत करीब हो गई..दिल जो धड़का तो यह तो मुझ मे समा गई..वक़्त तो जैसे

थम सा गया..ख़ामोशी ने जैसे बसेरा ही कर लिया,मगर ख़ामोशी चुप रह कर भी बहुत कुछ बोल गई..

अनकहे लफ्ज़ बिखरे तो बिखरते चले गए..हवा थम गई पर दिल  तो मिल  ही गए..
किनारे-किनारे चल रहे थे बहुत संभल-संभल कर..कोई आ रहा है पीछे भी हमारे,इस से बेखबर अपना

रास्ता बना रहे थे खुद के इशारे पर..कही थी बालू बहुत गीली तो कही थी रेत बहुत पशेमान..गिरने की

कोई मंशा ना थी,पर हौसला छोड़ दे..यह इरादा तो बिलकुल भी ना था..हंस रहे थी खुद की बनाई दुनियाँ

पे,जहाँ सपने भी थे खुद की अपनी मर्जी के...पलट के जो देखा,वो तो खुद का साया था..उस के सिवा अब

कौन हमारा था...

Monday 17 February 2020

राह के कांटे जितने भी हम को चुभे,हज़ारो बार चुभे...दर्द की आहट से हज़ारो बार हिले..इंसा थे

फरिश्ता तो नहीं थे..मगर इरादों के बहुत पक्के थे..मंज़िल की कोई कही खबर ना थी,मगर मिलती

हुई दुआए कुछ कम ना थी..हम ने हर बार,बार-बार इन दुआओ से अपना आँचल खूब भरा..यक़ीनन,

इन के ही साथ चले और रास्ते बना लिए..मंज़िल को तो आना था,दुआ का खज़ाना जो साथ था मेरे..
जमीं पे जो बिखरा था किसी रद्दी के कागज़ की तरह..ना रूप था ना रंग था,किसी फूल की तरह..सादिया 

बीत चली थी मगर वो कागज़ ज़मी पे  पड़ा था किसी कचरे की तरह..ना आस थी ना विश्वास था,किसी

 किताब के पन्नो का..खुद ही मुड़ा,खुद ही उड़ा..ख़बर किसी को कानों-कान ना हुई..फिर चली हवा

कुछ ऐसी कि ले गई उड़ा रद्दी के कागज़ को..आज वो कागज़ रद्दी नहीं,इक किताब का हिस्सा है..

निखरा भी है तो जवाब उस का किसी के आगे कुछ भी ना है..

Sunday 16 February 2020

रूहे बोला करती है,समझ आता है...रूहे ज़िंदगी मे कभी कभी दस्तक भी दिया करती है...सादगी का

जामा पहने जब पुकारे उन को,तो यह अक्सर मिलने आ भी जाया करती है...पूछे जो कभी एक सवाल

जवाब सच ही बताया करती है..ज़िंदा इंसान अक्सर हमारी कसौटी पे खरे नहीं उतरते...कभी उलझा कर

बातो मे तो कभी फॅसा कर मीठी बातो मे..सुख-चैन लूट लिया करते है..यकीं करना बेकार है,यह रूहों

की तरह पाक साफ़ नहीं हुआ करते है...
कभी ज़िंदगानी ने हंसा दिया तो कभी दर्द से बेहाल कर दिया..फिर भी बात-बात पे उलझते रहे जो इस

जिंदगानी से,तो इस ने दर्द और दे दिया..कितना करती आगाह,कितने इशारे देती..हम ही ना समझे तो

बेचारी यह भी क्या करती..बेपरवाह खुद से रहना..इंसा है इसलिए खुद पे गरूर करना..मोहलत देने की

भी इक सीमा है,इंसा ना समझे तो अब क्यों दुखी होना है..समझ जा अब तो कुदरत के इशारे को,गले

लगा शिद्दत से फिर इसी ज़िंदगानी को..जो ख़ुशी देती है तुझे,इक बार उसी को खुश करता जा..
प्रेम की शुद्धता को परिभाषित करते जा रहे थे..प्रेम के मायने दुनियां को शिद्दत से समझा भी रहे थे..

शब्द लिखते जा रहे थे ऐसे-ऐसे कि पत्थर दिल भी प्रेम का अर्थ समझ जाए..कोई दिल ना रहे ऐसा जो

प्रेम को गलत साबित कर जाए..तभी हवा के इक झौंके ने झटका दिया ''अरे,प्रेम ही था जाने दीजिए ना''

हम सकते मे आ गए..सबक ऐसा दिया उस हवा के झोके को,आज प्रेम के गहरे सागर मे डूबा है वो 

और हम खुद की लिखी प्रेम-परिभाषा पे नाज़ करते है..
शाम आज की है बेहद खूबसूरत..हज़ारो फूल महक गए जैसे सिमट गए इस शाम मे आ कर..कुछ खिले

कुछ अनखिले रह गए..एक फूल रहा ख़ास,जिस ने गुलिस्ताँ का रुख ही बदल दिया..वो हज़ारो फूल अब

किस काम के,गुलिस्ताँ मे जो अपनी महक बरक़रार ना रख सके... बेहद प्यार से,विश्वास से जो संवारा

होता तो बेचारा गुलिस्ताँ यू मारा-मारा ना फिरता..खुद को पूरी तरह कुर्बान करना पड़ता है,गुलिस्ताँ को

जब पूरी तरह आबाद करना होता है..

Saturday 15 February 2020

पता नहीं आज बादल घनेरे है या आसमां साफ़ है..जो बिजली कड़की थी आज शाम,उस की दहक

कम है या वैसी ही है..डर डर के जागे गे या सो भी पाए गे..बिजली की गूंज अभी भी कानों को सुन

रही है जैसे...काश...चाँद ही बता पाता कि आसमां कितना साफ़ है अभी या बादल फिर से बरसने

वाले है..उम्मीद करे या नींद को अलविदा कर दे..रात को अब क्या जवाब दे..
क्यों चुभा दिल मे नश्तर बिन बात के..क्यों लगा हम ने बिसरा दिया तुम्हे बिन बात के..क्यों किस बात

पे यह एहसास हुआ कि हमारा प्यार बट गया..क्यों नाराज़गी हद से पार हो गई..रास्ता वही,मंज़िल

वही..कही कुछ कमी हुई ही नहीं..दर्द देख के तेरा हम टूटने लगते है..बह जाते है आंसू और तुझे

बता भी नहीं पाते है...ग़लतफ़हमी की दीवारें हटा दे सारी,छोटी-छोटी खुशियों मे जी ले बारी-बारी..

खता नहीं कोई फिर भी माफीनामा हमारा क़बूल कर..तेरे बिना जिए गे कैसे,नाराज़ ना हो बिन बात के..

Friday 14 February 2020

खूबसूरत चेहरे हर मोड़ पे दिख जाए गे..जिस्म महकते भी बहुत मिल जाए गे..बार-बार ना होना फ़िदा

इन खूबसूरत चेहरो और आग लगाते जिस्मों पे..विरले चेहरे ही मासूम हुआ करते है..विरले जिस्म ही

पाक हुआ करते है..दौलत के लिए ना जाने कितने जिस्म-चेहरे बिक जाया करते है..यहाँ मुहब्बत के

लफ्ज़ विरले ही समझ पाए है..नादानी मे किसी पे यक़ी ना कर लेना..पहले बरसो परखना,फिर दिल को

बताना..रूह की बात कभी ना करना कि रूहे-मुहब्बत के दावेदार बहुत नसीबो से मिला करते है..
दिन तो रोज़ ही प्रेम का होता है..दिन ढले तो फिर सजना के पास होता है..क्या यह जरुरी है कि प्रेम

का दिन खास हो..जो साथी की सलामती मे जिए,उस के दर्द को आंचल मे भर ले..मजबूर मिलने और

गुफ्तगू के लिए बिलकुल ना करे..उस के थके कदमो की आहट को झट से महसूस कर ले..पिया का

प्यार ही जो तोहफा हो उस का..यही कर के जो पिया के दिल-रूह मे बसे,मुहब्बत की जुबां बस इतनी

सी होती है..तभी तो कहते है ''दिन तो रोज़ ही प्रेम का होता है''...
फूल ना जाने आज कितने मिले होंगे..ना जाने कितने वादे भी किए होंगे..हज़ारो श्रृंगार कर के इक दूजे

का दिल जीतने के इरादे से मिले होंगे..दौलत-रुतबे के रुआब से इक दूजे के दिल जीतने की कोशिश

मे रहे होंगे..कौन कितना असली है,कौन कितना नकली है..यह कहां जान पाए होंगे..विरले होंगे,जो दूर

तक इक दूजे के रह पाए गे..कितने होंगे जो ग़ुरबत के साथ,साथी को चुन पाए गे..उस के साथ ताउम्र

जी पाए गे..प्रेम को कितना समझे होंगे तो शुद्ध प्रेम को कहां जान पाए गे..

Thursday 13 February 2020

वो कहते है कि हम सदियों पुराने है..फिर कहते है हम सब से अनोखे है..फिर कहते है हम को कुछ

कहना नहीं आता..कभी कहते है फूल हो ऐसा जो बार-बार नहीं खिलता..''हम मुनासिब है या तेरी कोई

पुरानी कहानी..तेरे ही सीने से लिपटी कोई बेल है पुरानी..जो हर जन्म मिले तुझे तेरी ही दास्तां बन के..

जो तेरे साथ ना रहे मगर साथ चलती जाए..पुकारे जो दर्द मे अपने तो खिंच के चली आए..अब खुद ही

इस बात को तय कर ले कि हम तेरे अपने है या कोई पराए'' ....
पायल की झंकार से उठ मत जाना...चूड़ियों की खन खन से बेकाबू मत होना...इन सुर्ख आँखों को

नज़रअंदाज़ कर देना..लब मुस्कुरा कर जो कहे,मत सुनना..कोई हंस के बहकाए तो गुस्सा हो जाना..

फिर कोई मनाए तो हज़ार नखरे कर,ज़िंदगी को गले लगा लेना..कुछ गिला ना करना ना शिकवों मे

तक़दीर का फैसला लेना..अब और कुछ ना पूछ मुझ से,प्रेम को प्रेम की भाषा समझा देना..
उस ने कहा,तुम तुम हो हम हम है..''देखो ना जरा,तुम जहां जहां रखते हो कदम,हम परछाई बन होते है

वहां...तेरी हर धड़कन मे रहते है..आँखों को रखो खुली या बंद करो,हर नज़र मे हम ही तो रहते है..

नींद मे हो या सपनो की दुनियाँ मे,दिखते तो हर सपने मे हमी हमी ..रात भर जागो या किताबों को

पढ़ते रहो...लिखो पन्नो पे कभी,सच बोलो..याद हम ही आते है ना तभी..बेवजह मुस्कुरा देना,आइने

को देखो तो भी सूरत उस मे हमारी ही नज़र आना..अब यह ना कहना कि तुम तुम हो हम हम है''...

Wednesday 12 February 2020

दौलत हीरे-जेवरात से लाद दे मुझे..पर साथ तू मेरे नहीं..इस प्यार को कैसे निभा पाऊ गी..एक बड़ी

हवेली की मालकिन बना दे मुझे,पर तू ही साथ नहीं क्या ख़ुशी से जी पाऊ गी..हर तरफ है ऐशो-आराम

की बारात,पर तू ही मुझ से बहुत दूर है तो क्या सकून से रह पाऊ गी..तेरी रूह की मालकिन रहू..

तुझे हर लम्हा याद करू..तेरे साथ के लिए,साधारण सा जीवन भी मिले तो उस को रूह से कबूल करू..

हर जन्म तेरी ही  राधा बनू,..हर नज़्म तेरे लिए लिखू..इस से जयदा और क्या कहू...

मुहब्बत को बांध के दौलत-तोहफों मे और फिर साथ मे लपेट दिया कुछ दिनों की मोहलत मे..यारा,

क्या यही प्यार है..साथ-साथ जीने मरने की कसमें खाई,इन्ही कुछ दिनों के साथ मे..जाना,बता क्या

यह प्यार है..तोड़ लाउ गा तारे आसमां से,यक़ीनन ऐसा होगा..तेरे लिए जहाँ भी छोड़ दे,कैसे यक़ी

होगा..प्यार की बस इतनी सी है परिभाषा...तेरे दुःख मे साथ हू,तेरी लम्बी उम्र की दुआ मे हू..तुझे

पूजा की थाली का फूल मान,ताउम्र तेरा साथ दू...दुनियां तेरे लिए कुछ भी कहे,परवाह नहीं..जब

तल्क़ तुझे खुद ना जान लू..रूह को रूह से जोड़ दू...बस यही प्यार है..
दर्द के आंसू तेरी आँखों से झरे..हम ने मोती समझ अपने आंचल मे भर लिए..वो आँचल जो सिर्फ और

सिर्फ तेरा है,कहने को बेशक आज भी किसी जख्म से गीला है..जानते हो,उन जख्मों को कभी सूखने

नहीं देते..बंजर रास्तो पे चलने के लिए,यह गीले ज़ख्म आज भी साथ दिया करते है..आँखों से आंसू ना

बहा,तेरे साथ हर कदम पे अपना कदम साथ रखते है..कुर्बान है तेरे हर दर्द पे,कि हम तो आवाज़ की

बहती गंगा से तुझे पहचान लिया करते है...
इक सांस आती है इक सांस जाती है..हर सांस के साथ हर बार तेरी याद क्यों आती है..तेरी यादों को

रोकने के लिए,जो सांस रोके भी तो यह सवाल उठाती है...जिस मकसद के लिए तुम ज़िंदा हो,पूरा

कैसे कर पाओ गे...जन्म लो गे जल्दी तो फिर, अपने कृष्णा को फिर कैसे संग बांध पाओ गे..साथ तो

निभाना है उस डोर तक,जहां संग-संग रुखसत भी इस दुनियां से हो जाना है..अनंत-काल का बंधन

क्या फिर से नहीं निभाना है...................
यह सुबह फिर यह शाम..बहुत ही खूबसूरत रही..वो दो लफ्ज़ मिठास के,मन का आंगन ख़ुशी से

भिगो गए ...कुछ अनकहे लफ्ज़ हवाओ मे जैसे घुल गए..सुना था,बहुत मुश्किल से लबों को हंसी

मिलती है..बहुत देर से जश्ने-पैगाम मिला करते है..देखा तो नहीं उस भगवान् को हम ने,पर उस के

करिश्मे को महसूस किया आज हम ने..यू लगा वो खुद ही आए है आज,मेरे करीब मेरी तक़दीर बन

कर..

Tuesday 11 February 2020

बहुत बहुत सोच कर उस बात को दर-किनारे कर दिया..जो खफ़ा होने की वजह बने..ना हसरतों को

उजागर किया ना दर्द तेरी राह तक पहुंचाया..किसी बात का अब रोना कैसा,जब रूहों ने इक-दूजे को

जान लिया..साथ जब अनंत-काल का रहना है..सदियों इक-दूजे के बनना है तो लड़ कर अब क्यों रोना

है..प्रेम की परिभाषा बहुत गहरी है,तुम अभी ना समझ पाओ गे..हम सदियों के बंधन समझ गए,तुम

 इस जन्म के कान्हा तक ना बन सके..
मुहब्बत मे लरजते लफ्ज़ ना हो,ऐसे कैसे हो सकता है..नाराज़गी भरपूर हो तभी यह सब हो सकता है..

दिनों खामोश रहना,मगर दिल से इक इक पल याद करना..सामने आ जाए तो मुँह फेर लेना..गर फिर

दिखाई ना दे तो आँखों मे अश्क भर लेना..जो मनाए पिया,तो खुश होना मगर लफ्ज़ फिर आधे-अधूरे

छोड़ देना..समर्पण की बेला मे सब भूल जाना और रिश्ते को और और गहरा कर देना..

Sunday 9 February 2020

पांव के उस जख्म से ले कर आज दिल के दर्द तक,इश्क को शिद्दत से निभाया हम ने..तुझे हम पे है

कितना यकीन,इस का जवाब खुद अपने आप से खुद ही पूछ लेना..दर्द हज़ारो छुपा लिए,जो थोड़ी सी

ख़ुशी थी पास मेरे उस के लम्हे तुम से बाँट लिए..परिंदो से ले कर इंसानो तक के,कितने किस्से तुम को

सुना दिए..शिकायत अब तुम से क्या करनी,जब ऊपर वाले से ही शिकायत ना कर सके.. कोई शिकायत

तो अब इस ज़िंदगी से भी नहीं..जो जितना हम को मिला उतना भी कितनो को मिल पाता है..

Saturday 8 February 2020

बहता रहा हमेशा से प्यार हमारा शुद्ध नदिया की तरह..आप ही गुम रहे छोटी गलियों मे आवारा बादल

की तरह..कभी ना समझ पाए उस नदिया को,जिस की हर बून्द देती रही राह आप को रहमतों की तरह..

कैसे समझाए आप को,यह गलियां यह रास्ते कभी सकूँ ना दे पाए गे..सिर्फ बहका कर बदनामी ही दे

जाए गे..जो बिछ रहा है आप की राहो मे,फूलो की तरह..कुछ मांग भी नहीं रहा, सिर्फ प्यार की नन्ही

लौ के सिवा..दुनियाँ है पीछे हमारे,पर हम है आप के लिए बहती नदिया के निर्मल जल की तरह..
काम बहुत जयदा है,पर वक़्त की मोहलत कहां अब जयदा है..इतने है काम अधूरे,जिस मे गुजारिश

एक नहीं बस फरमान है हज़ारो..किस को छोड़े,किस को सींचे..करीब है दिल के यह सारे मेहमान..

जो रहे बेजुबान,वो रहे सब से ख़ास..लुटाया दुलार-प्यार का खज़ाना बार-बार और बन गए सब के

हमराज़..

Friday 7 February 2020

अब चाह कर भी रुक ना पाए गे..चलते जाए गे और बस चलते ही जाए गे..इतना खुद को थका दे गे

कि रात को अपनी मौजूदगी का एहसास तक ना दिलाए गे..भोर की पहली किरण को सज़दा कर के,

फिर चलने की बाज़ी खेलते जाए गे..सब कुछ,सब कुछ भूल जाना है..खुद को खुद मे बेइंतिहा डुबो

देना है..नाम है जीवन चलने का,अपने असूलों को साथ बांध कर जीवन-यात्रा को निभा देना है..
कोशिश बहुत करते रहे,सुर-ताल की भाषा समझे...मगर किस्मत ने साथ दिया नहीं..लय अपनी है,यह

सोच अपनी लय के साथ वापिस घर आ गए..वही सुबह है,वही शाम..गीली रेत मे पाँव फिर धसने लगे..

सूरज की तपिश मे जलने को फिर तैयार है..चाँद मिलता नहीं सब को संसार मे,है दीपक ही काफी खुद

को ज़िंदा रखने के लिए..पाँव झुलसे बेशक,अब कोई गम नहीं..सुर-ताल हमारे लिए कभी था ही नहीं..
कभी खोना है तो कभी पाना है..कभी हंसना है तो कभी रोना है..हिम्मते-दाद दे खुद को कि हंस के

सब झेल जाना है..क्या हुआ जो थोड़ा सा मिला ..क्या हुआ जो थोड़ा मिल के भी खो गया..बस यह

याद रखा कि कुदरत की लाठी मे कभी आवाज़ नहीं होती..इस बात को बहुत ठीक से समझा,जो मिला

जितना मिला..उसी मे ख़ुशी-ख़ुशी जी लिया... 

Thursday 6 February 2020

इक पाठशाला बनाई शुद्ध प्रेम की हम ने..नाम दे दिया सरगोशियां..मजहब की कोई दीवार डाली

नहीं हम ने,बस एक ही शर्त रखी..आना है तो पाक-साफ़ मन को साथ ले कर आना..आँखों की नमी

को बरक़रार रखना कि यह प्रेम साबित करना होगा जब-जब..तब-तब दुःख आंसू की पीड़ा को सहना

होगा..प्रेम नाम है क़ुरबानी और जज्बात का,यह पाठ जरूर सीख़ कर जाना ..कि प्यार के रास्ते बेहद

कठिन होते है,इन पे चलना है तो संसार सारा भुलाना होगा..राधा-कृष्णा बनना है तभी मेरी सरगोशियां

की पाठशाला आना..
शायद कमी रह गई हमारे ही प्यार मे कि वो हम से बहुत दूर हो गए..हम सिखाते रहे वफ़ा उन को

और वो किसी और के हो गए..बस एक हम ही वफ़ा को दामन मे समेटे उम्र भर के लिए उन्ही के रह

गए..माना बहुत खामियां है हम मे,मगर बेशुमार प्यार तुम्ही से किया..बस यही तो है हम,जिस के लिए

फिर भी तेरी नज़रो मे गुनहगार हो गए हम..दो लफ्ज़ तेरे मुँह से सुनने के लिए,दिन भर इंतज़ार करते

रहे,खबर हुई किसी और की रातो के मालिक हो गए आप..मलाल नहीं इस बात का हम को,राधा की

चाहत के नक़्शे-कदम पे चल रहे है..नया पाया तो क्या हुआ,प्यार नाम तो क़ुरबानी का ही है..
चल फिर से अजनबी हो जाए...ज़िंदगी की राहो मे अपनी-अपनी राहो पे चले जाए..ज़िंदगी बहुत ही

खूबसूरत है,इस के मायने दुनियां को समझाने उन्ही राहो पे दुबारा निकल जाए..कभी मासूम परिंदे

को अपने हाथो से उड़ा दे..कभी किसी राहगीर को रोटी का मतलब ही समझा दे..सकूँ की तलाश मे

सूखी रेत को फिर से,अपने हाथो से नदिया मे बहा दे..और फिर किसी रोज़ इबादत के महीन धागो

मे ,खुदा से तेरे लिए हज़ारो खुशियां मांग ले..एक बार फिर खुद को खुदा की नज़र मे पाक साबित कर दे..

Wednesday 5 February 2020

इक खूबसूरत सी लकीर हमारी वफ़ा की,आप वफ़ा से निभा ना पाए..कुछ भी नहीं माँगा था आप से

सिवाए ईमानदारी के,रिश्ते की ईमानदारी तक तो आप संभाल  ना पाए..माना, वक़्त नहीं हमारे लिए..

पर हवाओं मे बिखरना यू रंगीन रूप लिए..अब किस के लिए...हम खुद को सवांरते रहे आप के लिए..

सजते रहे आप की ख़ुशी के लिए..पूजा का फूल समझ,भगवान् का दर्ज़ा तक देते रहे..गलतियां आप की

माफ़ करते रहे,कभी अपनी छोटी सी भूल के लिए आप के चरण तक छूते रहे..बस,अब और नहीं..नहीं..
''सरगोशियां इक प्रेम ग्रन्थ''....यहाँ लिखा हर शब्द प्रेम की अनूप-सुंगंधित भाषा का मालिक है..प्रेम ,बहुत ही पवित्र-पावन शब्द..लेकिन लोग इस शुद्ध प्रेम को भूल चुके है..सरगोशियां,प्रेम से जुड़े हर पहलू को लिखती है..सरगोशियां के लिए प्रेम इतना ही शुद्ध है जितना कृष्णा का मोर-पंख,जो हवा के हलके से झोके से भी हिल जाए मगर अपनी जगह पे कायम रहे..प्रेम राधा के उस मन की तरह,जो लाख बाधाओं के बाद भी मजबूत रहे..सरगोशियां की पुरजोर कोशिश रहे गी,आप सब तक इस रूहानी-प्रेम की मिसाल पेश करती रहे..प्रेम मे जब-जब शुद्धता खत्म होती है,वो प्रेम वो सम्बन्ध,वो रिश्ता हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाता है..कुदरत ऐसे-ऐसे इशारे देती है कि जो प्रेम युगो तक चलता वो एक झटके मे समाप्त हो जाता है...बेवफाई,आज इस के साथ तो कल किसी और के साथ..यह प्रेम हो ही नहीं सकता..सरगोशियां,हर रूप को अपनी कलम से लिखती है..यह कलम जब-जब लिखती है..बिंदास लिखती है..दोस्तों,कलम के लिखे हर लफ्ज़ को दिल से,रूह से महसूस करे..यह वफ़ा-बेवफा दोनों पे लिखती है..दर्द पे,टीस पे..प्यार के लरजते लफ्ज़,धोखा देते लफ्ज़..प्रेम को कभी यह सोच कर मत चले,कि यह तो अब मुझ से इतना प्रेम करता/करती है,तो अब इस कि परवाह क्यों करनी..जब-जब आप यह सोच बना लेते है,प्रेम उसी वक़्त आप के जीवन से हमेशा-हमेशा के लिए चला जाता है..जब तक आप को होश आता है,आप सब खो चुके होते है..कदर कीजिए सच्चे प्रेम की...सरगोशियां मे आप लफ्ज़ो की यह सारी कारीगरी ढूंढ पाए गे..सरगोशियां,जो आने वाली नस्लों को शुद्ध-प्रेम की भाषा-परिभाषा दे जाए गी..मगर आज के लोगो को भी प्रेम मे वफ़ा की सीख भी सिखाए गी..जब प्रेम मे आप ईमानदार नहीं है तो आप प्रेम करने लायक ही नहीं है..सरगोशियां,के सफर मे मेरे साथ चलिए और शुद्ध-प्रेम का सम्मान कीजिए.... आप की अपनी शायरा 
बस क्या कहे,आज खुद ही खुद मे महक रहे है..बस प्यार हो गया है अपने आप से..इसलिए तो चहक

रहे है..पांव रखते है धरा पे तो उड़ने का एहसास होता है..खुद को देखते है आईने मे तो सब से जयदा

खुद के खूबसूरत होने का गुमान होता है..यह आंखे अपनी,आज क्यों इतनी कजरारी लग रही है..नमी

नहीं इन मे आंसू की,यह तो खुद के प्यार मे भीगी-भीगी लग रही है..लब जो आज बेवजह,मुस्कुराने पे

आमादा है..क्या कहे और,कि बस खुद के प्यार मे ही महक रहे है..
कभी बरसा दिए इतने फूल कि हम उन के तले दब गए..कभी जरुरत से जयदा कांटे चुभो दिए कि हम

दर्द से तड़प उठे..जीना-मरना सीखा है प्यार मे..पर बेइज़्ज़त हो कर जीना,यह असूल नहीं हमारे प्यार मे..

फूल ही फूल ही बिखेरे है कुदरत ने हमारी राहो मे,हम ने ही किसी को ना चुना..यह मर्ज़ी रही हमारी...

खुद्दारी होती है क्या,यह हम सब को सिखाते आए है..किसी के एहसान पे ना जिए है,ना जी पाए गे..खुद

के गुलाम है,खुद से ही प्यार हमेशा करते जाए गे..
हवाओं मे रंग किस प्यार का है..यह रंग साफ़-पाक नहीं,यह तो देह से बंधा अपराध है..प्यार,जो ना

मोहताज़ है किसी खास तारीख का...प्यार,जो रूहों का संसार है..जो साथी की इक मुस्कान से खिल

जाए,जो उस की ख़ामोशी को समझ जाए..जो उस के लिए हज़ारो दर्द झेल जाए..ग़ुरबत मे भी प्यार को

निभा जाए..सूरत को तबज़्ज़ो कौन देता है, प्रेम शुद्ध है जहां वहां मिलना भी जरुरी कहां होता है.''.आज

तू है साथ तो कल कोई और होगी,उस के बाद कोई और होगा'' प्यार आज यहाँ खामोश है क्यों कि कल

उस को किसी और के साथ वहां जाना होगा..

Tuesday 4 February 2020

देह के मोल कहां रहे जब रूह ने रूह को स्वीकार किया..इज़ाज़त किस से लेनी,रूह अब किसी बंदिश

 मे ही नहीं...तुझ से मिलने के लिए तुझ को देखने के लिए,अब उदास क्यों होना..रूहों की गुफ्तगू जो

अब बेमिसाल है..सदियों से जो तेरे साथ तेरे पास थी..पल पल आज भी तेरे साथ है..उदास तुम भी ना

होना,बस रूह से मुझ को महसूस करना..देह का क्या है,यह तो मिट ही जानी है..बस रूह से हम

तेरे है और आप मेरे है..यह बात जब खुद रूहों ने पहचानी है...
मायने प्रेम और खूबसूरती के क्या होते है...यह सवाल जब पूछा उस ने,जवाब हमारा था..जब हमारी

आँखों मे सच्चाई आप को नज़र आए..दिल की आंखे बंद करे तो तस्वीर हमारी ही नज़र आए..नींद

की बेला मे जब हमारी हंसी खनकती सी सुनाई दे..सिर्फ आप को एहसास भर से, हमारी सूरत

से कही जयदा हमारी सीरत नज़र आए..पूजा के थाल मे इबादत हमारी आप को नज़र आए..हमारे 

लिए तो प्रेम और खूबसूरती के मायने यही तक है...
हर शाम गर हर शाम जैसी होती तो अपनी शाम का इंतज़ार क्यों होता..वादियों मे ढलता सूरज गर रोज़

एक ही पैगाम देता तो सूरज के ढलने का इंतज़ार रोज़ कौन करता..चाँद रोज़ सम्पूर्ण होता तो उस के

आधे रूप को कौन जान पाता...घटा संग रोज़ चाँद रहता तो चांदनी के हसीन प्यार से मिलने चाँद क्यों

बार-बार अपनी चांदनी से मिलने आता..बादलों के घिर आने पर,बरखा के बरसने पर..यह चाँद ही

दुखी जयदा होता है..चांदनी तो उस से मिलने के लिए,सिर्फ दुआओ मे उसे देखा करती है...

Monday 3 February 2020

बिखर चुके है तेरी ज़िंदगी मे,गुलाब की अनगिनित पखुड़ियो की तरह..तू समेट ले इन को अपने हर

दर्द मे इक खुश्बू की तरह..जब तल्क़ तू समेटे गा इन्हे,यह और बिख़र जाए गी तेरी राहो मे तेरी ही

ज़िंदगी बन कर..हमारा काम तो बिखरना है खुशबू की तरह..तुझ से कुछ ना मांगे गे कि खुद ही इक

गुलिस्तां के मालिक है हम..एक ऐसा गुलिस्तां जो बिखेरता है सिर्फ खुशबू मगर,खुद को रखता है

जुदा किसी एहसास से परे...चल छोड़ ना,समेट इन पखुड़ियो को अपनी ख़ुशी के लिए...
शब्दों को शब्दों के साथ जोड़ रहे है..मगर यह क्या,इन शब्दों को तेरे साथ की आज जरुरत क्यों है..

तुझ से मिले नहीं है,यह खबर हर परिंदे को क्यों है..पंख फैलाए सारा जहां घूम आए यह परिंदे,आँखों

मे इन के नमी क्यों है..जवाब तो इन के पास भी नहीं है तभी तो ख़ामोशी से यह सर झुकाए है..दर्द है

इन सभी की आँखों मे,यह तो हमे भी रुलाने पे आमदा है..लौट आओ जहां भी हो,मासूम परिंदो को यू

रुलाना तेरी-मेरी फितरत कहां है..

Saturday 1 February 2020

दर्द-दुखो को देखा है इतने करीब से,कि अब तो इन तमाम दुखो को अपना दोस्त बना लिया..रोज़ मिलते

है इन से,मगर इन से अब डरते नहीं..इस से पहले यह आए हमारे पास हमारा हाल पूछने,हम खुद ही

इन को प्यार कर आते है..लोग कहते है,हम इतना क्यों मुस्कुराते है और क्यों..जब इन दुखो ने हम से

दुश्मनी ही निभानी है तो क्यों ना हंस कर,मुस्कुरा कर खुद ही इन से दोस्ती कर ले..अब यह दुःख भी

हमारी हिम्मत की दाद देते है,इन के साथ रह कर भी बहुत खुश जो रहते है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...