Friday 21 February 2020

सोंधी सोंधी माटी की खुशबू कैसी होती है..इस एहसास के लिए बरसो तरस गए..ऐसा नहीं कि बरखा

बरसी नहीं..रुख ही ऐसा रहा कि माटी भीगी ही नहीं..कुछ जलजले कुछ बिखरे टुकड़े,कही चट्टान सी

मजबूती..नमी आने के लिए बरखा को सिर्फ उसी चट्टान पे बरसना था..और इतना इतना बरसाना था कि

वो उस को माटी बना पाती..मेहनत और शिद्दत दोनों जो मिले,साफ़ तेज़ बौछारों ने चट्टान को बनाया

माटी ,और बरखा वो तो अब रुकने को राज़ी ही नहीं..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...