अब चाह कर भी रुक ना पाए गे..चलते जाए गे और बस चलते ही जाए गे..इतना खुद को थका दे गे
कि रात को अपनी मौजूदगी का एहसास तक ना दिलाए गे..भोर की पहली किरण को सज़दा कर के,
फिर चलने की बाज़ी खेलते जाए गे..सब कुछ,सब कुछ भूल जाना है..खुद को खुद मे बेइंतिहा डुबो
देना है..नाम है जीवन चलने का,अपने असूलों को साथ बांध कर जीवन-यात्रा को निभा देना है..
कि रात को अपनी मौजूदगी का एहसास तक ना दिलाए गे..भोर की पहली किरण को सज़दा कर के,
फिर चलने की बाज़ी खेलते जाए गे..सब कुछ,सब कुछ भूल जाना है..खुद को खुद मे बेइंतिहा डुबो
देना है..नाम है जीवन चलने का,अपने असूलों को साथ बांध कर जीवन-यात्रा को निभा देना है..