Friday 7 February 2020

अब चाह कर भी रुक ना पाए गे..चलते जाए गे और बस चलते ही जाए गे..इतना खुद को थका दे गे

कि रात को अपनी मौजूदगी का एहसास तक ना दिलाए गे..भोर की पहली किरण को सज़दा कर के,

फिर चलने की बाज़ी खेलते जाए गे..सब कुछ,सब कुछ भूल जाना है..खुद को खुद मे बेइंतिहा डुबो

देना है..नाम है जीवन चलने का,अपने असूलों को साथ बांध कर जीवन-यात्रा को निभा देना है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...