Wednesday, 12 February 2020

यह सुबह फिर यह शाम..बहुत ही खूबसूरत रही..वो दो लफ्ज़ मिठास के,मन का आंगन ख़ुशी से

भिगो गए ...कुछ अनकहे लफ्ज़ हवाओ मे जैसे घुल गए..सुना था,बहुत मुश्किल से लबों को हंसी

मिलती है..बहुत देर से जश्ने-पैगाम मिला करते है..देखा तो नहीं उस भगवान् को हम ने,पर उस के

करिश्मे को महसूस किया आज हम ने..यू लगा वो खुद ही आए है आज,मेरे करीब मेरी तक़दीर बन

कर..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...