हर शाम गर हर शाम जैसी होती तो अपनी शाम का इंतज़ार क्यों होता..वादियों मे ढलता सूरज गर रोज़
एक ही पैगाम देता तो सूरज के ढलने का इंतज़ार रोज़ कौन करता..चाँद रोज़ सम्पूर्ण होता तो उस के
आधे रूप को कौन जान पाता...घटा संग रोज़ चाँद रहता तो चांदनी के हसीन प्यार से मिलने चाँद क्यों
बार-बार अपनी चांदनी से मिलने आता..बादलों के घिर आने पर,बरखा के बरसने पर..यह चाँद ही
दुखी जयदा होता है..चांदनी तो उस से मिलने के लिए,सिर्फ दुआओ मे उसे देखा करती है...
एक ही पैगाम देता तो सूरज के ढलने का इंतज़ार रोज़ कौन करता..चाँद रोज़ सम्पूर्ण होता तो उस के
आधे रूप को कौन जान पाता...घटा संग रोज़ चाँद रहता तो चांदनी के हसीन प्यार से मिलने चाँद क्यों
बार-बार अपनी चांदनी से मिलने आता..बादलों के घिर आने पर,बरखा के बरसने पर..यह चाँद ही
दुखी जयदा होता है..चांदनी तो उस से मिलने के लिए,सिर्फ दुआओ मे उसे देखा करती है...