Sunday 16 February 2020

कभी ज़िंदगानी ने हंसा दिया तो कभी दर्द से बेहाल कर दिया..फिर भी बात-बात पे उलझते रहे जो इस

जिंदगानी से,तो इस ने दर्द और दे दिया..कितना करती आगाह,कितने इशारे देती..हम ही ना समझे तो

बेचारी यह भी क्या करती..बेपरवाह खुद से रहना..इंसा है इसलिए खुद पे गरूर करना..मोहलत देने की

भी इक सीमा है,इंसा ना समझे तो अब क्यों दुखी होना है..समझ जा अब तो कुदरत के इशारे को,गले

लगा शिद्दत से फिर इसी ज़िंदगानी को..जो ख़ुशी देती है तुझे,इक बार उसी को खुश करता जा..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...