Wednesday 5 February 2020

हवाओं मे रंग किस प्यार का है..यह रंग साफ़-पाक नहीं,यह तो देह से बंधा अपराध है..प्यार,जो ना

मोहताज़ है किसी खास तारीख का...प्यार,जो रूहों का संसार है..जो साथी की इक मुस्कान से खिल

जाए,जो उस की ख़ामोशी को समझ जाए..जो उस के लिए हज़ारो दर्द झेल जाए..ग़ुरबत मे भी प्यार को

निभा जाए..सूरत को तबज़्ज़ो कौन देता है, प्रेम शुद्ध है जहां वहां मिलना भी जरुरी कहां होता है.''.आज

तू है साथ तो कल कोई और होगी,उस के बाद कोई और होगा'' प्यार आज यहाँ खामोश है क्यों कि कल

उस को किसी और के साथ वहां जाना होगा..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...