Monday 24 February 2020

समर्पण जब जब भी ढला इबादत के पन्नो पे,इबादत के रंग और भी गहरे हो गए...मुहब्बत का यह दरिया

कैसा था,जिस मे दूरियां सारी फ़ना हो गई..ना मिले कभी,ना छुआ कभी..पर मुहब्बत का नाम फिर भी

हज़ारो रंगो से भर गया..यह समर्पण तो रूहों का था,फिर आँसू आँखों से क्यों निकल पड़े..शायद कुछ

चाहतें ऐसी रह गई जिस को निभाना इस जन्म रह गया..आंख तो फिर दर्द मे भी मुस्कुरा दी,कितने

जन्म और बाकी है मेरे पास,तेरी इबादत करने के लिए..तेरे है तो बस तेरे है,समर्पण तो इक बहाना है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...