समर्पण जब जब भी ढला इबादत के पन्नो पे,इबादत के रंग और भी गहरे हो गए...मुहब्बत का यह दरिया
कैसा था,जिस मे दूरियां सारी फ़ना हो गई..ना मिले कभी,ना छुआ कभी..पर मुहब्बत का नाम फिर भी
हज़ारो रंगो से भर गया..यह समर्पण तो रूहों का था,फिर आँसू आँखों से क्यों निकल पड़े..शायद कुछ
चाहतें ऐसी रह गई जिस को निभाना इस जन्म रह गया..आंख तो फिर दर्द मे भी मुस्कुरा दी,कितने
जन्म और बाकी है मेरे पास,तेरी इबादत करने के लिए..तेरे है तो बस तेरे है,समर्पण तो इक बहाना है..
कैसा था,जिस मे दूरियां सारी फ़ना हो गई..ना मिले कभी,ना छुआ कभी..पर मुहब्बत का नाम फिर भी
हज़ारो रंगो से भर गया..यह समर्पण तो रूहों का था,फिर आँसू आँखों से क्यों निकल पड़े..शायद कुछ
चाहतें ऐसी रह गई जिस को निभाना इस जन्म रह गया..आंख तो फिर दर्द मे भी मुस्कुरा दी,कितने
जन्म और बाकी है मेरे पास,तेरी इबादत करने के लिए..तेरे है तो बस तेरे है,समर्पण तो इक बहाना है..