देह के मोल कहां रहे जब रूह ने रूह को स्वीकार किया..इज़ाज़त किस से लेनी,रूह अब किसी बंदिश
मे ही नहीं...तुझ से मिलने के लिए तुझ को देखने के लिए,अब उदास क्यों होना..रूहों की गुफ्तगू जो
अब बेमिसाल है..सदियों से जो तेरे साथ तेरे पास थी..पल पल आज भी तेरे साथ है..उदास तुम भी ना
होना,बस रूह से मुझ को महसूस करना..देह का क्या है,यह तो मिट ही जानी है..बस रूह से हम
तेरे है और आप मेरे है..यह बात जब खुद रूहों ने पहचानी है...
मे ही नहीं...तुझ से मिलने के लिए तुझ को देखने के लिए,अब उदास क्यों होना..रूहों की गुफ्तगू जो
अब बेमिसाल है..सदियों से जो तेरे साथ तेरे पास थी..पल पल आज भी तेरे साथ है..उदास तुम भी ना
होना,बस रूह से मुझ को महसूस करना..देह का क्या है,यह तो मिट ही जानी है..बस रूह से हम
तेरे है और आप मेरे है..यह बात जब खुद रूहों ने पहचानी है...