Tuesday 4 February 2020

देह के मोल कहां रहे जब रूह ने रूह को स्वीकार किया..इज़ाज़त किस से लेनी,रूह अब किसी बंदिश

 मे ही नहीं...तुझ से मिलने के लिए तुझ को देखने के लिए,अब उदास क्यों होना..रूहों की गुफ्तगू जो

अब बेमिसाल है..सदियों से जो तेरे साथ तेरे पास थी..पल पल आज भी तेरे साथ है..उदास तुम भी ना

होना,बस रूह से मुझ को महसूस करना..देह का क्या है,यह तो मिट ही जानी है..बस रूह से हम

तेरे है और आप मेरे है..यह बात जब खुद रूहों ने पहचानी है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...