आधे अधूरे चाँद की तरह..तो कभी सूरज की तेज़ रौशनी की तरह...कभी कभी हवाओ के बदलते
रूख की तरह..धीमे धीमे मगर दिए की जलती लो की तरह...खामोशियो मे रहे तो कभी आवाज़ की
बुलंदियों की तरह...दिन तो हर साल यही रहा मगर, कभी रहे फूलो की खुश्बू की तरह तो कभी
खिल उठे पूरे चाँद की तरह..
रूख की तरह..धीमे धीमे मगर दिए की जलती लो की तरह...खामोशियो मे रहे तो कभी आवाज़ की
बुलंदियों की तरह...दिन तो हर साल यही रहा मगर, कभी रहे फूलो की खुश्बू की तरह तो कभी
खिल उठे पूरे चाँद की तरह..