Monday 31 December 2018

आधे अधूरे चाँद की तरह..तो कभी सूरज की तेज़ रौशनी की तरह...कभी कभी हवाओ के बदलते

रूख की तरह..धीमे धीमे मगर दिए की जलती लो की तरह...खामोशियो मे रहे तो कभी आवाज़ की

बुलंदियों की तरह...दिन तो हर साल यही रहा मगर, कभी रहे फूलो की खुश्बू की तरह तो कभी

खिल उठे पूरे चाँद की तरह..
सुर्खियों मे रहे या बिंदास जिए..जिए तो ऐसे जिए जैसे महबूब की हर खवाहिश को मद्देनज़र रख

के जिए..सहज मन से जिए..ना उस के लिए ना इस के लिए,जिए तो अपनी खुद्दारी के लिए ही जिए ..

कोई कहता रहा बुरे है हम,कोई बोला अहंकार से भरे है हम...किसी ने बिठाया सर आँखों पे हमे,तो

कही किसे के शिकवे चलते ही रहे..सच कहे हम ने दो काम किये..साजन की यादो मे जिए और कलम

का साथ लिए सहज मगर बिंदास जिए...

Sunday 30 December 2018

दुल्हन की तरह दिखने के लिए,जरुरी तो नहीं लिबास दुल्हन जैसा ही पहना जाये..सजने के लिए यह

अहम नहीं कि जेवरात से ही सजा जाये..चमक चेहरे पे नज़र आये,क्या जरुरी है आईने के आगे ही

बैठा जाये..जब नज़र पारखी है मेहबूब की, सादगी मे मेरी  तुझे  अपनी दुल्हन नज़र आये..जब तेरी

याद भर से हम मुस्कुरा दे और तेरे लफ्ज़ो को अंदाज़ प्यार का मान ले.........कि तेरे जैसी दुल्हन

सदियों मे ही पैदा होती है...

Saturday 29 December 2018

किवाड़ बंद कर दिए है तेरे ही घर के..बस माँ की दुआओ को छोड़ आये है उसी के घर मे..इंतिहा जनून

की है इतनी कि तेरे लिए आज भी अपनी तक़दीर से लड़ते आये है...क्या ख़ुशी क्या गम,हर दिन हर

पल तेरा ही इंतज़ार करते आये है...दिन तेरा होगा मगर आज भी उसी ख्याल मे जीते आये है..लौट

के जाना है आखिर तेरे ही आशियाने मे,माँ की दुआओ के साथ तेरे उसी साथ को आखिरी पलों मे

समेट लेने की कसम रोज़ खाते आये है...

Friday 28 December 2018

जो मुनासिब ही नहीं तो मुखातिब क्यों हो..मुहब्बत ज़ेहन मे ही नहीं तो रंजिश का नाम क्यों ले..

पर्दा किया नहीं कभी तो पर्दानशी भला क्यों रहे..अजीब से सवालात है जब तो किसी सवाल का

जवाब क्यों कर दे..तुम शाहजहाँ नहीं तो मुमताज़ बन कर तुम्हारी खिदमत भला क्यों करे..नज़र

का धोखा बन कर नज़र मे बसने की बात अब भला क्यों करे....
आहटे कभी झूट बोला नहीं करती,वो तो अक्सर रूह को आवाज़ दिया करती है...मन्नतो की गली से

निकल कर,हकीकत को इक नया नाम दिया करती है...बरकत देती है तो साथ मे ख्वाहिशो को भी

एक नया आयाम दिया करती है.. बहुत कम लोग इस बात को समझ पाते है,और जब तक समझ

पाते है यही खवाहिशे दम तोड़ दिया करती है..सब कुछ किताबो से गर हासिल होता,तो आहटों के

संसार को कौन समझ पाता..रूह की आवाज़ का दर्द लफ्ज़ो मे ना जाया होता..
मजबूरियां जो कभी सर चढ़ कर मज़ाक बनाया करती थी, तेरे आने की ख़ुशी मे दिल से मुस्कुराया

 करती है...तू कही भी नहीं यह जता कर,तेरे मेरे रिश्ते को झूठलाया करती है...अजनबी बन कर

अपनों के साथ भी परायों की तरह रहते है..जिस बात को सच कोई ना समझे,उसी राज़ को सब से

छुपाया करते है.. इस नासमझी की दाद देते है सभी को,हमारी ही हंसी को हम से छीन लेने का

किरदार निभाया करते है...
दिल और दिमाग की जंग मे,ताउम्र दिल की ही सुनते आए..यह दिल जब जब रोया,तब तब खुद

को भी रुलाते आए...नासमझी मे इसी नादान दिल का कहना मान,ज़मीर की धरोधर को बस भूलते

चले गए..जज्बातो को अहमियत देते देते खुद की ज़िंदगी को बर्बाद करते रहे..आज बात कुछ और है

कहा दिल से.आंसुओ की जगह कही नहीं ...और दिमाग की सोच को कहा...तेरा काम है फैसलों को

ज़माने के आगे रखना...

Tuesday 25 December 2018

नैनो मे चमक लिए बिजली सी..दिल की धड़कनो को संभाले हुए हौले से,सर से पाँव तक रँगे हुए

रंग मे तेरे..तेरे ही दिन के इंतज़ार मे तमाम यादो को साथ लिए,फिर से तेरे ही साथ कही खो जाये

गे ...तेरे ही मुताबिक तेरे ही लिए,हमेशा की तरह इस दिन को यादगार बना जाये गे...आंसुओ को

कह चुके कब से अलविदा,तेरे ही नाम के साथ इस ज़िंदगी को सकून से बिताए गे...

Saturday 22 December 2018

स्याही जो फैली पन्नो पे,घबरा गए...दो बून्द आंसू आँखों से गिरे,और माज़रा सारा समझा गए...ओह

अब काम हीं नहीं इन आंसुओ का,जो गुजर गया वो तो भुला चुके..ज़माना बुरा है बहुत,उन रास्तो को

कब का छोड़ चुके....मान सम्मान देने के लिए,आज भी बहुत है फ़रिश्ते जो हमारी क़द्र करते है..कलम

हमारी की आज भी परवाह करते है...तभी तो यह कलम दर्द के साथ मुहब्बत को भी पन्नो पे बिखेरा

करती है..ना अपनी आँखों को रोने से मना करती है,अपने तमाम फ़रिश्तो को भी ऐसी कलम की ताकत

से रूबरू करती है......
शिरकत जो की महफ़िल मे धीमे कदमो से,मंज़र सारा बदल गया...मुस्कुरा कर जो आदाब किया सब

से,महफ़िल मे जैसे धमाका सा ही हो गया...अपनों को देखा तो आंखे चमक उठी,लोगो को बिजली का

चमकना ऐसा ही अंदेशा हुआ...गुफ्तगू करने जो लगे,सब को सितारों का टिमटिमाना क्यों लगा...अदा

से घूमे जहा तहा,महफ़िल को तो जैसे हमारा आना एक खूबसूरत बहाना ही लगा...क्या कहे मामूली से

किरदार है,कुदरत के हाथो से बने..अब यह जहाँ तारीफ पे तारीफ दे तो भला हम क्या करे...
सब कुछ जान कर भी अनजान बने रहना..देख कर सब कुछ,मगर सब कुछ अनदेखा कर देना...जो

सुनाई दिया वो कानो को भी खबर ना होने देना...लोग कहते है कि बहुत बदल गए है हम..सच तो

यह है कि सभी से बेखबर हो गए है अब...टुकड़े टुकड़े जीना छोड़ चुके है मगर खुद के लिए जीना है

कैसे...यह सब सीख गए है हम...

Friday 21 December 2018

यह कलम जब जब चलती है इन पन्नो पे,हज़ारो सवाल उठा जाती है....फिर यही कलम हर जवाब

को समेटे इन्ही पन्नो मे लिपट जाती है...कितने ही सवाल और उन के ढेरो जवाब,पन्ने जो अब ढल

चुके है नायाब सी किताब मे....वक़्त तो चल रहा है अपनी चाल से,कहू भी तो रुकता नहीं मेरे कहने

के हिसाब से...हर हर्फ़ को समेटे इस किताब मे,कितने आदेश दे चुका हर हर्फ़ आने वाले वक़्त के

हिज़ाब से...स्याही अभी लिख रही है कुछ हर्फ़ अपने विचार से,सोचने की बात है क्या लिखा जाये गा

पन्ने के अंतिम भाग पे...

Thursday 20 December 2018

अर्ध विराम,फिर से अर्ध विराम...अब है पूर्ण विराम....बचा है अब जीवन मे देखने,असली चेहरे असली

नाम....कहाँ किसी ने किस को फांसा,चक्रव्यहू मे किस ने कितना जाल बिछाया...मिठास भरी जिन

बातो मे,कितनी मीठी कितनी तीखी...अंत तक हाथ कौन थामे गा,परख अभी बाक़ी है...ना कुछ लेना

ना अब  कुछ देना,मिटते मिटते जंग सारी खुद ही लड़ना..क्यों कि परख अभी भी बाक़ी है...
तेरे पहलू मे हू...यह एहसास अब भी है मुझे...चूड़ियाँ पहनी नहीं कभी,मगर उन की खनक की आवाज़

आज भी आती है मुझे...पायल को संभाल कर रख छोड़ा है तेरे दिए उसी बक्से मे,छम छम की आवाज़

फिर भी सुनाई देती है मुझे...सज़े नहीं सवरे भी नहीं बरसो से,पर आईना जब भी देखती हू तेरा ही अक्स

मेरे चेहरे पे दिखता है मुझे...यह जनून है उस प्यार का या रिश्ता रहा है रूहों का,दुनिया से अलग,सब

से बेखबर जी रहे है तेरी उसी धुन मे मगर...

Wednesday 19 December 2018

जिक्र जब जब हुआ तेरी बातो का,क्यों यह दिल उदास हो गया...भॅवर मे जो देखा किसी को,यह मन

क्यों परेशां हो गया...हिम्मत जो किसी की टूटी देखी,खुद अपना ज़माना याद आ गया...ना जाने कैसे

कैसे मोड़ थे,जब ज़माना दर्द पे दर्द देता रहा...पलकों को ना कभी तब नम होने दिया,जब सैलाब का

सामना होता रहा...भरा तो सैलाब आज भी अंदर है,मगर हिम्मत अपनी को दाद देते देते ज़माने को

छोड़ा और ज़मीर अपने का कहना मान लिया...

Monday 17 December 2018

तेरा अंदाज़ जो दिल को ना छुआ होता,तेरी राहो मे तेरे हमक़दम ना बनते...तेरे लफ्ज़ो मे इतनी नरमी

ना होती,तो कभी तेरे इतने नज़दीक ना आते...ग़लतियों पे मुझे यू हक़ से ना डांटा होता,कसम खुदा की

ज़िंदगी  तेरे साथ गुजारने का वादा ना किया होता...टुकड़े टुकड़े कभी यू ना टूटे होते,मरते मरते यू ही

मर गए होते...गर तेरी पाक मुहब्बत ने उस वक़्त सहारा ना दिया होता...

Sunday 16 December 2018

महजबीं ना कहो.. मेहरबां ना कहो...मेरी दी मुहब्बत को अहसान का नाम ना दो..मेरी राहो मे यू

फूल बिछा कर,मुझे मसीहा का ख़िताब ना दो..तुम तारीफ के हकदार हो,मगर खुद को नाचीज़ कह

कर अपना अपमान हरगिज़ ना करो...प्यार कोई खेल नहीं,प्यार बंधन मे बंधा कोई नाम नहीं...

इबादत की चादर के तले,कोई धरम मेरा नहीं,कोई धरम तेरा भी नहीं..फिर इस मुहब्बत को यू

ना मसीहा बना,ना नाचीज़ बन कर मेरा दिल यू  दुखा....

Wednesday 12 December 2018

काजल इतना ना भरो इन आँखों मे,रात अचानक गहरा जाए गी...लबो को रंग ना दो,खिलने दो इन्हे

कुदरत के इशारो पे....क्यों खोलते हो गेसुओं को,घटा देखो ना..कैसे बरस बरस जाने को है...गुजारिश

है आप के इन कदमो से,पहनो ना पायल..कि धरती पे किसी की मुहब्बत को जुबां मिलने वाली है....

बस अब रोक लीजिये अपनी कातिल मुस्कान को,कि किसी की जान आप के लिए कुर्बान होने वाली है 
हवाओ से बाते करते करते किस अनजान जगह आ गए है हम...कौन सी नगरी है,जहाँ कदम बस

अचानक से रुक गए है क्यों ...बसेरा है यहाँ बेशक इंसानो का,मगर दगा यहाँ कोई देता नहीं दिलो को

चीर जाने का...यकीं तोडते नहीं यहाँ मासूम रूहों का,पीठ पे वार करते नहीं प्यार करने वालो का....

चेहरे पे मुखोटे लगा कर,इंसा यहाँ घूमा नहीं करते...जो दिलो को छू ले,ऐसी अनजान जगह आ गए

है हम...

Monday 10 December 2018

हद से गुजरने के लिए,हद से परे जाना भी जरुरी था...प्यार मे पिघलने के लिए,साथ चलना भी

जरुरी था...लबो पे मुस्कान कायम रहे,इस के लिए अंदर से खुश रहना लाज़मी ही था..जब कह ना

सके दिल की बात,नज़रो का सहारा लेना ही इक सहारा था...जब लगा जी ना पाए गे अब तेरे बिना,

मुहब्बत का इज़हार बेहद जरुरी ही तो था...

Sunday 9 December 2018

नज़र हटानी चाही, क्यों नज़र भर सी गई...नज़र मिलानी चाही,नज़र भटक सी गई...सिलसिला उन

बातो का,ख़त्म जब होने को हुआ..क्यों अचानक यही नज़र बरसने बरसने को हुई...लगा ऐसे कि फिर

कभी मिल ना पाए गे...रास्ते जो जुदा हुए अभी,वो पलट कर दुबारा ना आए गे...यह असर था उस

इबादत का या पाक रही मेरी मुहब्बत का...इसी नज़र को ख़ुशी के वो लम्हे देना कि आज जब नज़र

हटानी चाही तो क्यों यही नज़र मुस्कुरा सी गई...

Friday 7 December 2018

लफ्ज़ो की यह अदायगी क्या अजीब उलझन सी है...मिठास जो भर ले,दिल को छू जाती है...नफरत

को जो इशारा दे,ज़िंदगी ही खफा हो जाती है...लड़खड़ा कर जो दगा दे जाए,जीवन ही वीरान कर जाए..

फिर कभी बहुत दूर से खनकता सा इशारा कर जाए,कसम खुदा की......आँखों को ही नम कर जाती है..

अब कहे क्यों ना..लफ्ज़ो का यह खेल अजीब दास्ताँ है...जो कहते ना बने,जो जो लिखते ना बने..



ना निभाना तुम को आया,ना निभाना हम को आया...रिश्तो का दर्द समझना ना कभी उन को आया,

ना हम को समझ मे आया...टूटन तो यहाँ भी थी,टूटन का अहसास वहाँ भी था..कमी रही हर जगह

बस साथ छूट कर भी छूट ना पाया..आज ज़िंदगी मे आगे बहुत आ चुके है,टूटन के उस अहसास को

भुलाने के लिए खुद से भी दूर जा चुके है..कौन जाने ज़िंदगी की यह शाम कब ढल जाए,इसी ज़िंदगी

को मुकम्मल बनाने के लिए अनजान बनना तो अब समझ आया...

Monday 3 December 2018

दरकार नहीं..मुहब्बत का कोई वादा भी नहीं...दूर दूर तक जहा जाती है नज़र,सिलसिला मुलाकातों का

अब भी नहीं...रूसवा भी नहीं..घटा बिखर कर कभी बरस जाए,ऐसा मुमकिन कभी भी नहीं...आसमां

को छू लेने का गम होता है कभी,मगर मंज़िल तक पहुंचे गे यह जनून कायम है अभी....कोई शिकवा

तुझ से नहीं,कि इश्क़ को पास आने दिया ही नहीं...मुहब्बत मे दगा कैसे होती कि मुहब्बत का वादा

दूर दूर तक कही भी नहीं...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...