जो मुनासिब ही नहीं तो मुखातिब क्यों हो..मुहब्बत ज़ेहन मे ही नहीं तो रंजिश का नाम क्यों ले..
पर्दा किया नहीं कभी तो पर्दानशी भला क्यों रहे..अजीब से सवालात है जब तो किसी सवाल का
जवाब क्यों कर दे..तुम शाहजहाँ नहीं तो मुमताज़ बन कर तुम्हारी खिदमत भला क्यों करे..नज़र
का धोखा बन कर नज़र मे बसने की बात अब भला क्यों करे....
पर्दा किया नहीं कभी तो पर्दानशी भला क्यों रहे..अजीब से सवालात है जब तो किसी सवाल का
जवाब क्यों कर दे..तुम शाहजहाँ नहीं तो मुमताज़ बन कर तुम्हारी खिदमत भला क्यों करे..नज़र
का धोखा बन कर नज़र मे बसने की बात अब भला क्यों करे....