Friday 28 December 2018

जो मुनासिब ही नहीं तो मुखातिब क्यों हो..मुहब्बत ज़ेहन मे ही नहीं तो रंजिश का नाम क्यों ले..

पर्दा किया नहीं कभी तो पर्दानशी भला क्यों रहे..अजीब से सवालात है जब तो किसी सवाल का

जवाब क्यों कर दे..तुम शाहजहाँ नहीं तो मुमताज़ बन कर तुम्हारी खिदमत भला क्यों करे..नज़र

का धोखा बन कर नज़र मे बसने की बात अब भला क्यों करे....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...