Sunday 9 December 2018

नज़र हटानी चाही, क्यों नज़र भर सी गई...नज़र मिलानी चाही,नज़र भटक सी गई...सिलसिला उन

बातो का,ख़त्म जब होने को हुआ..क्यों अचानक यही नज़र बरसने बरसने को हुई...लगा ऐसे कि फिर

कभी मिल ना पाए गे...रास्ते जो जुदा हुए अभी,वो पलट कर दुबारा ना आए गे...यह असर था उस

इबादत का या पाक रही मेरी मुहब्बत का...इसी नज़र को ख़ुशी के वो लम्हे देना कि आज जब नज़र

हटानी चाही तो क्यों यही नज़र मुस्कुरा सी गई...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...