Sunday 31 January 2021

 धरा धरा पे चलते-चलते राधा नाम के बेहद करीब आ गए...पर्वतों के रुख पे चले तो गौरी का नाम 


महसूस कर गए...अग्नि-परीक्षा देने की सोची तो जानकी सीता के आंचल की छाँव मे,सीखने सब कुछ 


चले आए...नाम बेशक सब जुदा-जुदा रहे होंगे,पर प्रेम की तख्ती पे सब पवित्र हो गए...कोई मिट गया 


तो कोई जी गया तो कोई धरा मे ही समा गया...प्यार का रंग-रूप रहा ऐसा,देह नहीं..जीवन भी नहीं..


मगर सदियों तक प्रेम अमर हो गया...

 मुन्तज़र तो नहीं तेरे लिए,मगर तुझ से मुख़ातिब तो है...जिस रास्ते पे तू चले,उस पे रुके तेरे रहनुमा तो 


है...भटक ना जाना फिर कभी ग़ल्त गलियों मे,नज़र तुझी पे रखे तेरे राहे-हमसफ़र तो है...चल रहे है 


तेरे साथ इक दरख़्ते-शाखा की तरह,तुझे तो शायद खबर तक नहीं कि तेरे ही शहर के बहुत जयदा 


नज़दीक आ चुके है हम,किसी महकती सुबह की तरह...परवरदिगार को सब पता है..तभी तो मुंतज़र 


 नहीं अब तेरे लिए...पर मुख़ातिब तो है...रहनुमा भी है....

Saturday 30 January 2021

 क्या हुआ फिर ऐसा आज कि इस ज़िंदगी से फिर खफ़ा हो गया...फिर कोसा इस को और खुद की 


तकलीफ़ों पे फिर ज़ार-ज़ार रो दिया...अरे पगले,यह जीवन तो शुरू ही रोने से हुआ है..इस मे रंग 


ख़ुशी के भरना तो काम तेरा है...यह ज़िंदगी तो बड़ी ज़ालिम है,हर पल ज़ख्म देती है..पगले,लगा इस 


पे हिम्मत की मरहम कि ज़िंदगी खुद ही ख़ुशी देने पे मजबूर हो जाए गी...ना मांगना कुछ ऐसा,जो 


खिलाफ कुदरत के हो..बस मांगना वही जो कुदरत के दरबार मे मंजूरे-लायक हो...

Friday 29 January 2021

 धरा मिली रहने के लिए,क्या कम है..हवा का साथ है,सांसो के लिए..कितनी बड़ी नियामत है...थाली मे 


सब कुछ है खाने को,उसी की महिमा है...झर-झर बहता जल है तो प्यास को क्या कमी है...शरीर मे 


जान है काम करने की,फिर उस ने क्या कमी की है..सोने के लिए साफ़ बिस्तर मिला है तो शांति की भी 


कहां कमी है..अरे इंसान,इस से जयदा तुझे और क्या चाहिए..अब तो हाथ जोड़ कर शुक्रिया कर.....


मानव-जीवन मिला है..जो आसानी से सब को कब मिलता है....

 सरगोशियां...सर को झुका दे शर्म से,ऐसा कोई लफ्ज़ नहीं है यहाँ....

सरगोशियां...किसी का अपमान कर दे,ऐसी कोई मंशा नहीं है यहाँ...

सरगोशियां...नफरत दिलों मे भर दे,ऐसा कोई सन्देश नहीं है यहाँ...

सरगोशियां...तीखे शब्द चुभो दे,ऐसा कुछ नहीं है यहाँ...

सरगोशियां...दिलों को प्रेम-रंग से सज़ा दे,बस पैगाम यही है यहाँ...

सरगोशियां...वफ़ा के उच्चतम पायदान का मेला लगता है यहाँ...

सरगोशियां...सजना को समर्पित हो जाए,बस इतना  ही है अनुदान यहाँ...

सरगोशियां...पिया की याद मे अश्रु-धारा बहा दे,मासूमियत इतनी है यहाँ...

सरगोशियां...भोलेपन की मिसाल क्या है,उस की कहानी लिखती है यहाँ...

सरगोशियां...समंदर को भी खारे से मीठा कर दे,ऐसी नदिया बहती है यहाँ....

सरगोशियां...भीगी बरखा मे संग संग खुद भी रो ले,खुद का दर्द छुपाना होता है यहाँ....

सरगोशियां...फक्र से कहती है आप सभी से,मेरे संग संग चल ना...शब्दों की अनमोल कहानियाँ है यहाँ...


 प्यार का यह कौन सा मुकाम है..जहां उजड़ा है चमन और रोता हुआ आसमान है..हर बसती है वीरान 


और हर कोई टूटा हुआ इंसान है...लगता है,यहाँ प्यार की शहनाई कभी बजी तक नहीं...यहाँ फूलों पे 


निखार तक नहीं...बाग मे किसी प्रेमी-जोड़े के कदमों के चलते निशान भी नहीं...ढूंढ रहे है इसी बसती 


मे किसी प्रेमी-जोड़े को...लेकिन यह शहर मुर्दा-दिलों का मुकाम ही है...यहाँ काम हमारा क्या..अपने 


ज़िंदा-दिल को यहाँ बरबाद क्यों करे...जहां दस्तक खुली साँसों की ही नहीं...

Wednesday 27 January 2021

 देह तो चाँदी सी थी,पर मन तो काला था..फिर क्यों सोचा कि यही तो प्यार का बोलबाला होने वाला था..


प्यार की पहली मंज़िल पे जरा रुक के तो देख,यहाँ सूरत से कही जयदा दिले-नादान का पहरा है..मन 


जितना उज्जवल उतना ही प्रेम गहरा और गहरा...खूबसूरती के कसीदे तो वो पढ़ते है जो सिर्फ देह की 


जरुरत से प्रेम करते है...प्रेम मे जिस को सिर्फ नख-शिख ही दिखाई दे,वो प्रेम को सिर्फ गाली देते है...


प्रेम रूहों का अटूट बंधन है,रूप तो बरसो बाद ढल ही जाते है...देह-प्रेम कोई प्रेम नहीं..जो पूजा के 


मनको मे सिमट जाए,जो रात-दिन उसी की सोच मे खो जाए..प्रेम तो ऐसा ही होता है....

 नफरत..जलन और ईर्ष्या से कोसों दूर है ''सरगोशियां'' मेरी...प्रेम के करोड़ो अरबो रंगो से अभिभूत है 


''सरगोशियां'' मेरी...यह सिर्फ ढाई अक्षर नहीं प्रेम के,यह तो भरे है ढाई करोड़ से भी जयदा जज्बातों 


से भरे..पर नफरत,जलन,ईर्ष्या को आने की इज़ाज़त नहीं देती ''सरगोशियां'' मेरी...प्यार मे इन की जगह 


होती नहीं और गर होती होगी तो प्रेम की तौहीन ही होगी..और ''सरगोशियां '' तौहीन को जगह अपने 


पन्नों मे नहीं देती...तभी तो धरा से जुड़ी है ''सरगोशियां'' मेरी...कितने है दीवाने इस के कि मेरी 


''सरगोशियां'' है ही इतनी प्यारी...

Tuesday 26 January 2021

 आंख से इक मोती निकला..जैसे ओस की बून्द का इक पत्ता गालों पे ढलका...मुस्कुरा दिए कुदरत की 


मेहरबानी पे और हर सांस को उसी की नियामत समझा...खुल के जीने के लिए सिर्फ उसी की मेहर तो 


चाहिए...दुनियां तो आंसू देने मे कसर नहीं छोड़ती...मुस्कुराने की,खुश रहने की कोई खास वजह नहीं 


चाहिए होती...उस का साथ हो तो सकून और ख़ुशी खुद ही मिल जाती है...किसी गरीब को हंसा दिया 


तो दिन का सुंदर आगाज़ हो गया..खिलखिला कर हँसे तो दुनियां को दर्द हो गया...बेपरवाह जी कि उस 


की मेहरबानियों पे दुनियां की कोई नज़र नहीं लगती...

 दिल को हर दर्द और तकलीफ से आज़ाद कर कि जीवन बेहद सुंदर और पावन है...तुझे हज़ारो चाहे 


या करोड़ो,क्या फर्क पड़ता है..बस खुद को बेपनाह प्यार कर और अपनी मस्ती मे जी.. मतलब के बिना 


इस दुनियां मे कोई किसी को प्यार नहीं करता...प्यार तो क्या बात भी नहीं करता...खुद को देह आईने मे,


यही वो शख्स है,जो तुझे बेहिसाब चाहे गा...वो भी बिन मतलब के...खुद को संवार इतना कि मंज़िले खुद 


चल के आए खुद इतना..आँखों का पानी और हिम्मत ना सूखने देना..यही सच्चे साथी है तेरे...इन को प्यार 


हमेशा करना..............


 कच्ची उम्र और अल्हड़पन...हिरणी की तरह भागती-दौड़ती इक बाला...शहर से कोई परदेशी आया...


लुभा लिया अपने प्यार के मोह-पाश मे..एक रही तृष्णा ऐसी,वो हुई संगनी उस की..शहर के लोगो की 


कैसी माया,झूठ-मूठ का साथ था ऐसा...छला उस हिरणी बाला को..मंगलसूत्र का रिश्ता तोड़ा और जबरन 


बंधा घुंगरू का पांव मे जोड़ा...वो बेबस थी,देह का सौदा हर रात ही होता...बरसो बीते,कोई परदेसी फिर 


से आया..रूह पे लगे घाव को सहलाने आया...''देह का कोई मोल कहां..तुम आज भी रूह से पावन हो''


यह भी कैसी लीला है..एक ने उस को देह-बाजार मे बेचा तो दूजे ने उस को रूह का मोल समझाया..


 

 प्रेम का यह बंधन कैसा था..वो जागी रात भर उस के लिए...और सितारों से परे इक शहर मे,वो भी उठा 


था रात भर सिर्फ उसी के लिए...ना कोई रिश्ता था..ना बंधन का कोई नाम था..करोड़ो की दुनियाँ मे 


वो इक अनजान सा नाम था..बस उस को पता था कि यह नाता कुदरत ने सदियों पहले तय कर रखा 


था...इबादत का रंग चढ़ा जो सर उस के वो कुछ अलग ही था...ना कुछ पाने की इच्छा,ना कभी उस से 


मिलने का कोई वादा..पर बेनाम सा यह बंधन था कैसा..ना देखा..ना जाना मगर रूह के तार का अटूट 


नाता-रिश्ता...

 नफरत की दीवार तो तब खड़ी होती,जब मुहब्बत की नींव सिर्फ जिस्म की जरुरत होती...वो शुरुआत 


तो पूजा की थाली से जुड़ी थी...जिस मे हाथ जुड़े थे खुदा के आगे,शुक्राना देने के लिए...वो शुक्राना था 


कैसा,जहां आँखों मे ढेरों आंसू थे...हर आंसू कर रहा था वादा,दूर तक साथ निभाने का...दिल हुआ जा 


रहा था निर्मल और मुहब्बत का पहला कदम अपने सजना को समर्पित था...चेहरे पे नूर था गज़ब का...


जो दे रहा था मात हर उस नियामत को..जो हम को दिया यह तोहफा,मालिक ऐसी किस्मत सब को देना..

 ख़ुशी और सुख की उम्र तो बहुत छोटी होती है..यह मान कर हम ने ग़मों को अपने गले,प्यार से लगा 


लिया...यह ग़म भी माशाअल्लाह कितनी उम्र ले के आते है...कितनी मिन्नतें करते रहो,जल्दी कहां जाते 


है...हां,कभी एक ग़म को तरस आ जाता है तो चला जाता है..पर जाते-जाते कुछ और ग़मों को दामन 


मे इक सौगात बना छोड़ जाता है...वल्लाह वल्लाह..ग़म तू भी लाजवाब है...कम से कम ख़ुशी-सुख की 


तरह जल्दी जाता तो नहीं...उन की फ़रेबी तो नहीं..तुझ से निपटने के लिए बस हिम्मत चाहिए..यही तो 


तेरी ख़ासियत है ग़म मेरे.... 

Monday 25 January 2021

 किसी की मासूमियत देख आंख मेरी भर आई....'' भूख से बेहाल हू ''...यह जान आत्मा मेरी दर्द से रो 


आई...कचरे मे बीनते-ढूंढते अन्न के टुकड़े,उस गरीब को देख ज़मीर की आवाज़ बिलख आई...भूख 


का प्रश्न कितना बेबस और लाचार होता है..इस का उत्तर पूरी तरह कहां पूरा कर पाई...उस का पेट 


भरा तो आंखे उस की गहरी चमक से भर आई..दिया दुलार थोड़ा सा तो अपनेपन की महक उस से 


आई...भूख का यह सिलसिला,अन्न की गर्मी से ढक जाए..काश,कोई गरीब कभी भूखा ना सोने पाए..

 जिस्म की ईमारत पे खड़ा वो प्यार था या सिर्फ छलावा था..सोच कर आंखे भर आई उस की...जिस्म तो 


जिस्म है,रूह की बंदिशों से परे...रूह तो निखरी-निखरी और मासूम है..किसी देवालय की तरह...जिस्म 


तो किसी रोज़ मिट जाए गा,सूखे पत्तो की तरह...रूह मे समेटे इस प्यार को,वो साथ अपने ले जाए गी...


जन्म जितने भी ले गी, इसी मासूम रूह के साथ नए जिस्म को लाए गी...रूहानी-एहसास प्यार का, वो 


फिर से उसी को याद दिलाए गी...जीना तो तेरे ही संग था हर जन्म,यह बात दोहराए गी...

 खवाबों मे हुई मुलाकात कोई मुलाकात ना थी...रूबरू होने के लिए जो तुझ से दिन के उजाले मे मिले..


कुछ गुफ़्तगू और कुछ शिकवे..मुलाकात मे होंगे कुछ भीगे से नग़्मे...उम्मीद और आशा से भरे कुछ 


हसीन से लम्हे...कुछ सुने तेरी और कुछ हम भी अपनी कहे...तेरी आगोश मे डूबे बाते इतनी करे..कब 


हो जाए साँझ और पता किसी को ना चले...रागिनी प्यार की बहती ही रहे...शिकायतें मुहब्बत मे ढल 


जाए और पता दोनों का ना चले...काश...मुलाकात हो मगर देह की इमारत बरक़रार रहे...

 रफ़्तार कदमों की हुई तेज़ इतनी कि काफिला पीछे ही छूट गया...मंज़िल की और चल देना बेखौफ,बस 


यही इरादा था उस का...कुछ कमजोर पीछे रह गए,कुछ गलत राह से बिखर गए...मंज़िले-रुखसत दूर 


होगी...तो क्या हुआ...हौसलों की कोई कमी तो नहीं...पांव के छाले इज़हार करते है,रुकना ना मेरे लिए..


यह तो यू ही अपनी जान तोड़ देते है...भरोसा रख अपनी उम्मीद पे,अपने कदमों पे...यह रुके तो तबाही 


निश्चित है...आँखों का पानी ना सूखने देना कि उम्मीदों की चमक इन्ही पलकों के तले जगती है....

 वो क़तरा क़तरा अहसास मुहब्बत का था या मुहब्बत के विष का प्याला...मीरा बन पी गई वो समझ 


इसे पाक-मुहब्बत का प्याला...देह बन गई इबादत की मधुशाला...और रूह,वो सदियों के लिए समर्पित 


हो गई,समझ इस मुहब्बत को अपनी नसीब- शाला...यह तो उस की पहली और आखिरी मुहब्बत थी...


सदियों से जिसे ढूढ़ रही थी यही थी उस की,अग्नि-परीक्षा...जीत भी तू,हार भी तू...तू ही तू...तू ही तू...


 मीरा भी हू..राधा भी और जो धरा मे समा जाए अपने प्यार की परीक्षा के लिए,वो सीता भी हू....

Sunday 24 January 2021

 वफ़ा-मुहब्बत के लफ्ज़ जो उड़ाए इन पन्नो पे,कितने ही दिल मुहब्बत से बंध गए...लरज़ती सुबह के 


मोती जो सज़ाए लेखन मे,कितने दिल मधुर सपनों को संजो गए...लफ़्ज़ों की इस ताकत को रंगे-इबादत 


नाम दे दिया..प्यार मे डूबे हज़ारो दिलो को दिल से आदाब बजा दिया...पर यह क्या...लिखे शब्द जो 


बेवफाई पे,उन्ही दिलों के सपनों मे बेवफाई का रंग घुल गया..तकलीफ से भारी हुआ मन..फिर याद 


आया..ऐ सरगोशियां मेरी...जानती नहीं,यह कलयुग का प्यार है...तेरे लफ़्ज़ों ने कमाल किया तो दिलों 


ने भी कमाल कर दिया...तूने लिखे शब्द बेवफाई पे,तो दिलों ने खुद को इसी मे ढाल लिया...फिर सोच 


ना,यहाँ प्यार का मोल ही बेकार हुआ...सरगोशियां मेरी,तूने हर प्यार मे रंग घोला राधेकृष्ण,शिव गौरी 


और सीता राम का...फिर दुनियाँ ने इस प्यार से क्यों ना कुछ सीख लिया....''सरगोशियां इक प्रेम ग्रन्थ'' 


है ऐसा, जो है सब से ऊँचे प्यार के पायदान पे है खड़ा....

Thursday 21 January 2021

 ''टूटते सितारे से कुछ भी मांगो तो मिल जाता है''..सुन सखी की बात हम हंस दिए...सखी,हम ने तो चाँद 


से भी कुछ माँगा था ,जब उस से ना मिला तो यह टूटा तारा क्या दे पाए गा...हिम्मत और कर्म का साथ 


हो तो वो खुद ही बिन मांगे दे देता है...उस की रहमत हो तो पत्थर भी मोम हो जाता है...इंसानो की यह 


दुनियां बहुत विचित्र है सखी..यह सोचते है,दुनियां तो हमारे दम से ही चलती है...सनकी है,क्या रात के 


अँधेरे को दिन के उजाले मे तब्दील कर सकते है...अरे,जो खुद की किस्मत मे ख़ुशी ना लिख पाए,वो 


दूजे को भला क्या देगा...हिम्मत का जज़्बा ही नहीं तो औरो का साथ भला क्या दे गा...

 बात तो बहुत छोटी सी थी..मगर उस के बड़े काम की थी...घनेरे बादलों से निकलती चमकती धूप सी 


उज्जवल थी...दरख्तों से गुजरती उस की सुबह किसी कामयाबी से कम तो ना थी...माटी का घड़ा सर 


पे उठाए वो बंजर जमीं को महकाने जो चली थी..सामने था खुला आसमां पर उस को खबर ही कहा थी...


अल्लाह-ताला को शुक्राना देती..दिल मे किसी निश्चय को पक्का करती..मशाल बेशक ना हाथ मे थी,पर 


बिन मशाल राह सब को दिखाती,वो कौन थी.....................

Wednesday 20 January 2021

 गहरे कोहरे की चादर मे लिपटी थी वो...मंज़िल थी बहुत दूर,पर कोहरे की चादर भी तो बेहद गहरी थी...


दूर बहुत दूर इक दीपक दिखा,जलता हुआ...क्या मुमकिन होगा उस तक पहुंचना..थके थे पांव पर दिल 


तो भरा आशा से था..वो दीपक ही उस की आखिरी और पहली उम्मीद थी...इस से पहले वो दीपक 


बुझने पे आए,वो मंज़िल अपनी तय करने वाली थी...कदम गिरे,टूटे..पर दिल की उम्मीद कायम थी...


जीवन बुझा तो उम्मीद भी बुझ जाए गी..यह ठान दिल मे तेज़ कदमो से कोहरे को चीरती वो दीपक 


की और  चल दी...

 खूबसूरत गुलाब के फूल उसे बेहद पसंद थे...रहना चाहती थी हमेशा इन गुलाबों मे,इसी की तरह खुशबू 


बन कर...एक खूबसूरत सी सुबह ऐसी आई..किसी के प्यार से महका उस का जग सारा...हर तरफ फूल 


ही फूल,वो भी गुलाब...आंगन सजा था किसी के भेजे गुलाबों से...सन्देश भी लिखा था,उस के प्यार का...


कुदरत के रंग,तेरे क्या कहने...पल मे तोला पल मे माशा...दिल ने कहा..''सहेज ले अब फूलों को,इस 


खूबसूरत सन्देश के साथ..रोज़ रोज़ यह फूल मुस्कुराया नहीं करते''....

Monday 18 January 2021

 वो सफ़ेद फूल जो तूने दिए थे,आज भी मेरे आंगन मे खिलते है..तेरी दी, वो दो बत्तख़ भी आज तक मेरे 


आशियाने मे चलती-बहकती रहती है..सफ़ेद फूल बेहद शांत है,मेरे दिल की तरह...और यह बत्तख़ 


बिलकुल तुम्हारे दिल के जैसी है,हर वक़्त इधर-उधर बहकती है..सफ़ेद फूल उगाना तुम भी अपने 


आंगन मे,शायद दिल तुम्हारा भी सिर्फ हमारा ही हो कर रह जाए...ना रखना इन बत्तखों को,ऐसा ना हो 


तुम को बार-बार फिर कही और फिसलना पड़े...

 रजनीगंधा के फूलों की तरह....गुलाब की पंखुड़ियों की तरह...ना महको इतने करीब मेरे कि मुहब्बत 


हम को आप से हो जाए...कुछ तो ख्याल कीजिए हमारे नाज़ुक़ से दिल का,यह कही आप पे ही ना मर 


मिट जाए ...भीगे गेसुओं को खुद के आंचल मे समेटे,यह बूँदे ना हम पे गिराओ...मर ही जाए गे,अब इतना  


कहर भी ना ढाओ...सुनिए जनाबे-आली,रूप को संवारना काम हमारा है...दिल आप को अपना संभालना 


यह तो हज़ूर काम आप का है...

 तू मुझे भूल जाए,यह तेरी मरज़ी...तू मुझे ज़ेहन मे रख,यह भी तेरी  ही रज़ा...मेरे खतों को जला दे या 


मेरी यादों को दफ़न कर दे ..यह भी तेरे ज़मीर का फैसला....क़तरा-क़तरा बहते मेरे अश्कों का हिसाब 


लिख या मेरे दर्द पे कोई कहानी अपनी किताब मे लिख...गुजरे वक़्त को सज़दा कर या आने वाली मेरी 


मौत का दिन तय कर...अल्लाह ने कब लिखा,मेरी ख्वाहिशों का हिसाब...लिखा तो लिखा बस,मेरे 


गुनाहो का हिसाब...वो गुनाह,जो कभी किए ही नहीं,पर सज़ा का खाता, हिस्से हमारे लिखना वो खुदा 


भी नहीं भुला...

 पहाड़ों की इतनी खूबसूरत वादियों को निहारना किस्मत की बात है..''मैं अपाहिज,अभागन ठीक से खड़ी 


भी नहीं हो पाती...सूरत भी ऐसी,किसी की हमसफ़र भी नहीं बन सकती''...यह सोच वो गहरी खाई मे 


कूद गई...नियति कब कैसे किस से मिला दे,कौन कब आ कर साथ का हाथ बढ़ा दे..आंख खुली तो 


इक मसीहा सामने था..वो कुछ बोल पाती,उस ने प्यार से हाथ उस का थाम लिया...''जानता हू,सब कुछ 


जानता हू..तुम गरीब अपाहिज हो,इस मे कसूर तेरा तो नहीं..और सुन,मैं बेहद अमीर और खूबसूरत हू..


तो यह कसूर भी मेरा नहीं ''...कुदरत ने मरने से पहले खुशियों का समंदर दे दिया..''गरीब अपाहिज 


नहीं हो तुम..तुम तो अब मेरा संसार हो''..भीगे नैना और खूबसूरत वादियाँ और भी खूबसूरत हो गई...


हां,यही प्यार है...रूप-रंग-उम्र-दौलत से परे...इक प्रेम कहानी अमर कहानी हो गई...

Sunday 17 January 2021

 वफ़ा की राह मे वो कुर्बान हो गई..और वो बेवफा की राह पर दूर तक चलता रहा...वो सब जान कर भी 


उस से प्यार करती रही..सब समझ कर भी विश्वास का दामन पकड़े रही...वो उस को दीवानी,पागल 


समझ बहलाता रहा...पर प्रेम की रौशनी थी इतनी सुनहरी कि बहुत दूर से भी उस को बेवफाई की गंध 


आती रही...धीरे धीरे दूरियां बड़ी..अरमानों की चिता जली...रह गई राख़ और प्यार की दुनियां तबाह हो 


गई...

 ''आ तुझे गले से लगा के तेरा सहारा बन जाए..तेरे सारे दर्द खुद मे समा कर तेरे हमदर्द बन जाए....


मायूस होती हू मैं तुझे देख इतनी परेशानी मे''....वो कहाँ जानती थी कि कितना बदल गया है वो...


दौलत-पत्थर के लिए उस से बहुत दूर चला गया है  वो...दौलत को पाने के लिए,वो उसी से मगरूर 


होता गया...नियति कब कहाँ भेष बदल रंग दिखाती है..गरूर तो टूटा नहीं,मगर प्यार का बंधन टूट 


गया...दर्द के साये मे डूबी है वो कि आज भी चिंता वो उसी की करती है...

 वो उसे शिद्दत से प्यार करती थी,किसी भी सुख से परे...उस के लिए बेहद बेचैन रहती थी,खुद की 


बैचैनी से परे...मुहब्बत के जिस पायदान पे खड़ी थी वो,उस के बाद पायदान की फिर कोई सीमा ना 


थी...लेकिन इस सीमा से बाद भी वो,सदियों से बेचैन थी सिर्फ और सिर्फ उसी के लिए...पर बदकिस्मत 


था वो,उस मुहब्बत को समझ ही ना पाया..यह तो सिर्फ मेरी है,यह मान के वो उस को अनदेखा करता 


आया...किसी भी सुख से परे,उस ने राह दूजी चुन ली...हो गई आसमाँ मे विलीन फिर कभी ना लौटने 


के लिए...

Saturday 16 January 2021

 फिर से इस पायल को आज़ाद कर दिया...हाथ की इन चूड़ियों को हर बंधन से परे कर दिया...लफ्ज़ो की 


दुनियाँ बहुत खूबसूरत है,बस इसी की पाक-खूबसूरती पे हम ने खुद को बलिदान कर दिया...उन्मुक्त 


हवा के साथ चल पड़े है...जीवन की राहों पे अकेले ही मुस्कुरा कर मस्ती मे चूर... दूर बहुत दूर निकल 


पड़े है...हर तरफ बिखरी है कुदरत की अनोखी कुदरत...किसे से भी ना कहे गे कि साथ मेरे चल...खुद 


से कभी ठीक से मिले ही नहीं,खुद को जाने गे फूलों की वादियों मे जी भर कर...खुद से प्यार करे गे..


जी भर कर....

 बहुत अँधेरा है,रौशन करो ना इस शाम को...अँधेरे से डर कर उस ने कहा..''अंधेरो से डर कैसा..साथ 


हू मैं तेरे मेरी जाना...यह दीपक तो सिर्फ शाम का अँधेरा दूर कर पाए गा...तेरे लिए मेरा साथ रौशनी 


बन कर तेरी हर राह जगमगाए गा''....किस ने कहा कि कलयुग मे प्रेम सच्चा नहीं होता...जो गहरे से 


गहरे अँधेरे से टकरा जाए...जो वफ़ा की पाक-जोत रूह से जलाए...ईमानदारी से अपने साथी का साथ 


आखिरी सांस तक निभा जाए..वहाँ गहरे अँधेरे से कौन घबराए...

  ''बहुत बोलती हो तुम..क्यों इतने ऊँचे सुर मे गाती हो तुम''....वो सब सुनती फिर लय-ताल की धुन मे 


महक-बहक जाती...डूबी थी पिया के प्रेम मे,रमी थी उसी के रंग मे...वक़्त की चाल अनोखी आई,इक 


हादसे मे आवाज़ डूब गई उस की..अब ना तो बोल थे,ना कोई सुर थे...ख़ामोशी अब उस का जीवन थी..


''सुर-आवाज़ हू अब मैं तेरा...तेरे साथ हू मेरी जाना...प्रेम का बंधन मेरा-तेरा शब्दों तक नहीं है सीमित.''


प्रेम की अश्रु-धारा नैनों से दोनों के बरसी..प्रेम के ढाई अक्षर से एक प्रेम कहानी फिर से जन्मी...


 '' कुछ ना पूछ यह फूल कैसे है...बेहिसाब खूबसूरत है''..किसी ने चुपके से कहा,जाना.....यह तो तुम 


जैसे है..कोई चुरा ना ले तेरी हंसी,खुद को छुपा ले खुद मे ही कही....यह ज़माना बहुत ज़ालिम है,बस 


नज़र उतार ले अपनी मेरे सदके से कही..''तेरी आगोश मे छुप जाए गे,तेरे ही कांधे पे सर रख कर,तुझी 


से लिपट जाए गे..ज़माना ज़ालिम है तो क्यों छुपे..तेरे होते क्यों हम डरे..बादशाही के मालिक है..रूप के 


डर से क्यों भागे..फूल भी तो सरेआम खिले है बागों मे तो हम भी क्यों ना बहके अपने ही इरादों मे.''...

  बेहद करीब से कल रात मौत हमारे आंगन से गुजरी..हम को जीत लेने की पुरज़ोर कोशिश मे..चीर 


कर कलेजा हमारा,कुछ गहरे लफ्ज़ कह गई कानों मे हमारे...ना सह दर्द का सिलसिला बेइंतिहा और 


चल साथ मेरे इस दुनियाँ से दूर बहुत दूर...इक पल तो हम ने भी इरादा उस के संग जाने का सोच लिया..


पर ज़मीर की धुन ने पुकारा बेहद प्यार से...अरे पगली,कितने है तेरी मुस्कराहट पे फ़िदा..कितने है 


तेरी दुआ पे रुके..और कितनो को जरुरत है तेरी...ज़मीर ने कस के हम को थाम लिया और ज़िंदगी से 


हम को फिर से मिलवा दिया...

Friday 15 January 2021

 वो कोई चलता-फिरता कारवाँ ना था...वो तो अरमानों की डोली पे सजा खूबसूरत सा बंधन था...हाथ से 


छू  के जो मैला हो जाए,वो तो ऐसा अलौकिक अहसास सा था...फूल जिस को सँवार दे,बहार का कोई 


लाजवाब करिश्मा ही तो था...रूह का परदा भी ऐसा कि परियां भी इज़ाज़त मांग ले,आने से पहले...


अजूबा नहीं था,यह तो प्रेम था...जो आसमान से चल कर सीधा जमीन पर आया था...वो आँखों के अश्क 


नहीं,प्रेम के मोती थे...जो उस के भी थे,जो इस के भी थे....


 लब जो जुड़े तो फिर कभी खुल ही ना पाए...सफर तो सदियों का तय कर के आए थे,फिर भी बोल कुछ 


ना पाए...मजबूरियों का दौर था या खुद को दिया कोई वादा था...जो खुद को ही ना बता पाए...संकरे 


रास्ते थे और गहन अँधेरा,तब भी लब ख़ामोशी के राज़ खुद मे छुपाए गुफ़्तगू कर ही ना पाए...कदम तो 


चल रहे थे,दिल था जो अभी भी धड़क रहा था...पर लब.........जो खुल ही ना पाए...फिर आया इक 


गहरा तूफ़ान और सब कुछ खुद मे समेटे,यह लब उसी मे दफ़न हो गए...

 बहती हुई नदिया की धारा,जो भूली रास्ता अपना...ढूंढ रही थी समंदर को,खुद को समर्पित करने को..


राह कठिन रही इतनी कि बरसों भूलभुलैया मे भटकी इतनी...किस से कहती कि समंदर का घर है 


कहाँ...बाकी नदिया उस को समझ ना पाती...यही थी उस की तक़दीर की कहानी...तक़दीर किस ने 


देखीं...नदिया की असीमता किस ने जानी..आखिर उस का काम था,बहते रहना...बहते रहना...उम्मीद 


के दौर मे चलते ही रहना...पावन धारा जो थी,कठिन रास्तो से कहाँ डरती थी..सफर पे चलना नियति 


उस की..समंदर तक पहुंचना भी नियति उस की....

 वो तो सिर्फ इक कांच का टुकड़ा था और हम उसे हीरा मान बैठे...बेवजह घिसने की कोशिश मे हाथ 


खुद के जख्मी कर बैठे..कांच भी ऐसा जो सीधा चुभा दिल मे ऐसे कि दिल के लहू को रोकना मुश्किल 


कर बैठे...कांच को हीरा मान लेने की गल्ती कैसे कर बैठे..ज़मीर कहता है वो हीरा था पर दिल जो आज 


भी ज़ख़्मी है..ज़मीर की सुनने को तैयार नहीं होता...अब रोज़ ज़ख्म के भरने के लिए कोशिश करते है...


पर अकेले मे मुस्कुराते हुए खुद से पूछते भी है कि हम हार कर जीत गए या फिर जीत कर हार गए....

Thursday 14 January 2021

 बिछुड़ गया इक फूल डाली से तो क्या मौसम बदल गया...ओस का मोती जो पत्ते से फिसल गया तो क्या 


पत्ता सिसक गया...सितारा एक जो टूटा तो क्या आसमाँ सारा थम सा गया...बरखा जम के बरसी मगर 


क्या आशियाना हमेशा के लिए भीगा रह गया...जीवन कहाँ किसी के लिए रुकता है..यह वक़्त फिर से 


अपनी तरह चलता है..फिर हिम्मत को क्यों रोके..तकलीफ के साए मे कब तक तड़पे...कुदरत जो देती 


है,फिर छीन भी लेती है..मगर उम्मीद के दिए बुझ जाए,ऐसा भी कभी होता है...

 ना साज़ है ना राग है.... ना धरा के कोई भगवान् है..फिर भी हज़ारो दिलों के दिल मे बसे इक मामूली 


ख़िताब है...नवाज़ा जिसे खुशियों से महरूम इंसानो ने,उन के लिए छोटी सी इक आवाज़ है...आशा और 


निराशा के द्वंद्व मे रुके-फंसे मुसाफिरों की जान है...क्यों कहे,दर्द होते नहीं..कैसे माने,दर्द जाते नहीं...


दिलों को छू कर तो देखिए,इक मुस्कान किसी को दे तो क्या यह नियामत नहीं ? सूखे लब जो देख 


के हम को,हंस दे..किसी करिश्मे से कम तो नहीं..हाथ जोड़ के जो इन के कान मे कुछ कह दे,शायद 


खुदा की बंदगी से कुछ कम तो नहीं...

 सुरों को पिरोया सितार की झंकार मे तो चाँद क्यों नज़र आया...यह तो रात नहीं मगर रात का पहर हम 


को क्यों नज़र आया...बेशक़ीमती है सुर,शायद इसी को सुनने चाँद मरज़ी से आया...लीक से हट कर,


सोच से हट कर, मेरे सुर की दुनियाँ मे आया...तुझ पे वारे सुर मैंने अपने,झंकार सितार की धुन मे पनपे..


दिन को रात बनाने वाले,मेरी सितार पे गुनगुनाने वाले...अपनी दुनियाँ से तो आना था तुझ को,सुर 


जो थे जाने-पहचाने तेरे ...




 बात जब जब सादगी की चली,हम ने राधा का साथ-संग मांग लिया...बात जब आई वर्ण की तो हम ने 


कृष्ण का श्यामल रंग खुद मे घोल लिया..काजल-कारी आँखों का बंधन और उस पे अभिमान रौद्र-रूप 


का मंथन...यह तो राधा का है जप-तप,टूटा कभी ना यह अलौकिक बंधन..मनुहार था राधा की बोली मे..


भोली आँखों मे झलक शयाम की रहती,तभी तो दुनियाँ आज भी कृष्ण से पहले राधा को जपती..विश्वास 


अनोखा..आग मे तप कर सोना जैसे कुंदन होता,राधा का दिल भी अलौकिक प्रेम की आग मे तप कर 


रिश्ते को नया नाम दे जाता...तू ही कृष्णा,तू ही राधा..नाम जुदा पर बंधन एक जैसा....

Tuesday 12 January 2021

 सुबह उठे तो आंख नम थी..हाथ तो जुड़े थे शुक्राने मे,फिर हमारी यह आंखे क्यों नम थी...क्या कोई 


आज फिर हमारी दुआ की जरुरत मे था...क्या कोई फिर हमारी इबादत / पूजा की थाली की इंतज़ार 


मे था...क्या किसी को अपनी मन्नत पूरी होने का पाक सवाल,उस मालिक से था...एक मामूली इंसान 


है,सब कुछ क्या जाने...पर अपनी आँखों की नमी को,दुआ मे तब्दील कर दिया...कौन है जो हमारी 


दुआ मे आज शामिल है...जानते भी नहीं पर दुआ का पाक सफर अपनी राह पे है...

 इन आँखों मे अब नींद आती नहीं ...यह पायल भी अब,खनक कर शोर मचाती नहीं ...कलाई मे अब 


चूड़ियाँ सजती ही नहीं...माथे की बिंदिया को क्यों इंतज़ार है तेरा...ऋतु बदलती है तो क्यों लगता है,तू 


आस-पास है मेरे...तेरी दी नाक की लौंग,अब उतनी चमकती क्यों नहीं...यह भोले नैना तुझे हर घड़ी 


पुकारने से बाज़ आते क्यों नहीं...मेरे हर सवाल का जवाब देने,कभी तो आ...सफ़ेद लिबास की वो 


झलक कभी तो दिखा...मंजूर प्यार मेरा बेशक ना कर,पर अपनी दुनियाँ से थोड़ा वक़्त निकाल मेरे पास 


तो आ...

 कुछ सामान पड़ा है तेरा,पास मेरे...

कितनी यादों का भण्डार रखा है दिल के करीब मेरे...

आँखों के हज़ारो  सूखे अश्क बंद रखे है,इक डिब्बी मे...

गुलाब की मुरझाई पत्तियां बंद है,मेरे सीने मे...

हज़ारो रुके लफ्ज़ बंद रखे है,इन सूखे होठों पे...

कजरारे नैना पथरा गए है,पलकों के गरीबखाने मे...  

कदम बस थम चुके है अब,इन वीरान राहो पर...

गली के उस नुक्कड़ पे,जाते नहीं है हम...

कोई हंस के बुलाए तो कही खो जाते है हम..

उन किताबो पे आज भी लिखा है नाम तेरा...

तुलसी के पौधे पे,जलता है दीपक आज भी तेरे ही नाम का...

बरखा मे उन ओलो को आज भी,अकेले ही इकठ्ठा करते है हम...

और भी ना जाने,कितना भण्डार भरा है तेरी यादों का...

लौट आना और सामान अपना ले जाना...

इन आँखों की जलती हुई आखिरी  लो भी देख जाना...


 गहन ख़ामोशी है..पर इसी ख़ामोशी को चीरती इक आवाज़ सुनाई देती है दूर कही..कड़क रही है 


बिजली संग बादलों के कही...चाँद छुपा है अपनी ही अकड़ मे इन्ही घनेरे बादलों के तले...भूल गया 


है यह चाँद ,यह बादल जब भी बरस के ख़ाली हो जाए गे..बिजली भी तब कहां कड़क पाए गी...अपने 


वज़ूद को छुपाना नामुमकिन है..चाँद की अहमियत कितनी है,पर अकड़ की राह भी तो बहुत मुश्किल 


है...देख सूरज को ज़रा और भूल अकड़ अपनी,निखर के बाहर आज़ा ज़रा...

Monday 11 January 2021

 क्यों करे इंतजार इस धुंध के छट जाने का,जब कि जानते है सूरज उस पार से जल्द उदय होने को है...


नहीं कहे गे इस सर्द बरखा को रुक जाने के लिए, कि जानते है महकती धूप बस  खिल जाने को है..


यह वादियां जो ढकी है गहरे कोहरे से,देख रहे है इन को अपनी आँखों से...इंतज़ार करे गे मौसम के 


बदल जाने का...सब्र का पैमाना टूटता नहीं कि जानते है बहुत अच्छे से,उस मालिक ने सब कुछ दिया 


हम को बिन मांगे...मुस्कुरा दीजिए जग वालों कि जब वो देने पे आ जाए तो रास्ते खुद ही खुलते है...


 उलट कर देखा तो कभी पलट कर देखा..पर ऐ ज़िंदगी,तेरे पन्नों पे कुछ गलत तो नज़र नहीं आया...


कैसे कह दे कि तेरे हर हिसाब मे हम को खोट नज़र आया..यह कदम जब भी टूटे तो खोट का आइना 


इन्ही इंसानो मे नज़र आया...पर देते है दाद तुझे ऐ ज़िंदगी,तूने इन कदमों को फिर से चलना सिखाया...


झुकने नहीं दिया किसी गलत मोड़ पर और सर हमारा अदब से उठाया...देते है शुक्राना तुझ को ऐ 


ज़िंदगी,कि हर आने वाली छोटी सी ख़ुशी से भी तूने हम को अवगत करवाया...अदब से हम ने हर पल 


तुझे शीश नवाया...शुक्रिया मेरी ज़िंदगी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...