धरा धरा पे चलते-चलते राधा नाम के बेहद करीब आ गए...पर्वतों के रुख पे चले तो गौरी का नाम
महसूस कर गए...अग्नि-परीक्षा देने की सोची तो जानकी सीता के आंचल की छाँव मे,सीखने सब कुछ
चले आए...नाम बेशक सब जुदा-जुदा रहे होंगे,पर प्रेम की तख्ती पे सब पवित्र हो गए...कोई मिट गया
तो कोई जी गया तो कोई धरा मे ही समा गया...प्यार का रंग-रूप रहा ऐसा,देह नहीं..जीवन भी नहीं..
मगर सदियों तक प्रेम अमर हो गया...