Friday 15 January 2021

 वो तो सिर्फ इक कांच का टुकड़ा था और हम उसे हीरा मान बैठे...बेवजह घिसने की कोशिश मे हाथ 


खुद के जख्मी कर बैठे..कांच भी ऐसा जो सीधा चुभा दिल मे ऐसे कि दिल के लहू को रोकना मुश्किल 


कर बैठे...कांच को हीरा मान लेने की गल्ती कैसे कर बैठे..ज़मीर कहता है वो हीरा था पर दिल जो आज 


भी ज़ख़्मी है..ज़मीर की सुनने को तैयार नहीं होता...अब रोज़ ज़ख्म के भरने के लिए कोशिश करते है...


पर अकेले मे मुस्कुराते हुए खुद से पूछते भी है कि हम हार कर जीत गए या फिर जीत कर हार गए....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...