वफ़ा-मुहब्बत के लफ्ज़ जो उड़ाए इन पन्नो पे,कितने ही दिल मुहब्बत से बंध गए...लरज़ती सुबह के
मोती जो सज़ाए लेखन मे,कितने दिल मधुर सपनों को संजो गए...लफ़्ज़ों की इस ताकत को रंगे-इबादत
नाम दे दिया..प्यार मे डूबे हज़ारो दिलो को दिल से आदाब बजा दिया...पर यह क्या...लिखे शब्द जो
बेवफाई पे,उन्ही दिलों के सपनों मे बेवफाई का रंग घुल गया..तकलीफ से भारी हुआ मन..फिर याद
आया..ऐ सरगोशियां मेरी...जानती नहीं,यह कलयुग का प्यार है...तेरे लफ़्ज़ों ने कमाल किया तो दिलों
ने भी कमाल कर दिया...तूने लिखे शब्द बेवफाई पे,तो दिलों ने खुद को इसी मे ढाल लिया...फिर सोच
ना,यहाँ प्यार का मोल ही बेकार हुआ...सरगोशियां मेरी,तूने हर प्यार मे रंग घोला राधेकृष्ण,शिव गौरी
और सीता राम का...फिर दुनियाँ ने इस प्यार से क्यों ना कुछ सीख लिया....''सरगोशियां इक प्रेम ग्रन्थ''
है ऐसा, जो है सब से ऊँचे प्यार के पायदान पे है खड़ा....