क्यों करे इंतजार इस धुंध के छट जाने का,जब कि जानते है सूरज उस पार से जल्द उदय होने को है...
नहीं कहे गे इस सर्द बरखा को रुक जाने के लिए, कि जानते है महकती धूप बस खिल जाने को है..
यह वादियां जो ढकी है गहरे कोहरे से,देख रहे है इन को अपनी आँखों से...इंतज़ार करे गे मौसम के
बदल जाने का...सब्र का पैमाना टूटता नहीं कि जानते है बहुत अच्छे से,उस मालिक ने सब कुछ दिया
हम को बिन मांगे...मुस्कुरा दीजिए जग वालों कि जब वो देने पे आ जाए तो रास्ते खुद ही खुलते है...