'' कुछ ना पूछ यह फूल कैसे है...बेहिसाब खूबसूरत है''..किसी ने चुपके से कहा,जाना.....यह तो तुम
जैसे है..कोई चुरा ना ले तेरी हंसी,खुद को छुपा ले खुद मे ही कही....यह ज़माना बहुत ज़ालिम है,बस
नज़र उतार ले अपनी मेरे सदके से कही..''तेरी आगोश मे छुप जाए गे,तेरे ही कांधे पे सर रख कर,तुझी
से लिपट जाए गे..ज़माना ज़ालिम है तो क्यों छुपे..तेरे होते क्यों हम डरे..बादशाही के मालिक है..रूप के
डर से क्यों भागे..फूल भी तो सरेआम खिले है बागों मे तो हम भी क्यों ना बहके अपने ही इरादों मे.''...