Monday 25 January 2021

 रफ़्तार कदमों की हुई तेज़ इतनी कि काफिला पीछे ही छूट गया...मंज़िल की और चल देना बेखौफ,बस 


यही इरादा था उस का...कुछ कमजोर पीछे रह गए,कुछ गलत राह से बिखर गए...मंज़िले-रुखसत दूर 


होगी...तो क्या हुआ...हौसलों की कोई कमी तो नहीं...पांव के छाले इज़हार करते है,रुकना ना मेरे लिए..


यह तो यू ही अपनी जान तोड़ देते है...भरोसा रख अपनी उम्मीद पे,अपने कदमों पे...यह रुके तो तबाही 


निश्चित है...आँखों का पानी ना सूखने देना कि उम्मीदों की चमक इन्ही पलकों के तले जगती है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...