रफ़्तार कदमों की हुई तेज़ इतनी कि काफिला पीछे ही छूट गया...मंज़िल की और चल देना बेखौफ,बस
यही इरादा था उस का...कुछ कमजोर पीछे रह गए,कुछ गलत राह से बिखर गए...मंज़िले-रुखसत दूर
होगी...तो क्या हुआ...हौसलों की कोई कमी तो नहीं...पांव के छाले इज़हार करते है,रुकना ना मेरे लिए..
यह तो यू ही अपनी जान तोड़ देते है...भरोसा रख अपनी उम्मीद पे,अपने कदमों पे...यह रुके तो तबाही
निश्चित है...आँखों का पानी ना सूखने देना कि उम्मीदों की चमक इन्ही पलकों के तले जगती है....