बात तो बहुत छोटी सी थी..मगर उस के बड़े काम की थी...घनेरे बादलों से निकलती चमकती धूप सी
उज्जवल थी...दरख्तों से गुजरती उस की सुबह किसी कामयाबी से कम तो ना थी...माटी का घड़ा सर
पे उठाए वो बंजर जमीं को महकाने जो चली थी..सामने था खुला आसमां पर उस को खबर ही कहा थी...
अल्लाह-ताला को शुक्राना देती..दिल मे किसी निश्चय को पक्का करती..मशाल बेशक ना हाथ मे थी,पर
बिन मशाल राह सब को दिखाती,वो कौन थी.....................