Saturday 30 January 2021

 क्या हुआ फिर ऐसा आज कि इस ज़िंदगी से फिर खफ़ा हो गया...फिर कोसा इस को और खुद की 


तकलीफ़ों पे फिर ज़ार-ज़ार रो दिया...अरे पगले,यह जीवन तो शुरू ही रोने से हुआ है..इस मे रंग 


ख़ुशी के भरना तो काम तेरा है...यह ज़िंदगी तो बड़ी ज़ालिम है,हर पल ज़ख्म देती है..पगले,लगा इस 


पे हिम्मत की मरहम कि ज़िंदगी खुद ही ख़ुशी देने पे मजबूर हो जाए गी...ना मांगना कुछ ऐसा,जो 


खिलाफ कुदरत के हो..बस मांगना वही जो कुदरत के दरबार मे मंजूरे-लायक हो...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...