''बहुत बोलती हो तुम..क्यों इतने ऊँचे सुर मे गाती हो तुम''....वो सब सुनती फिर लय-ताल की धुन मे
महक-बहक जाती...डूबी थी पिया के प्रेम मे,रमी थी उसी के रंग मे...वक़्त की चाल अनोखी आई,इक
हादसे मे आवाज़ डूब गई उस की..अब ना तो बोल थे,ना कोई सुर थे...ख़ामोशी अब उस का जीवन थी..
''सुर-आवाज़ हू अब मैं तेरा...तेरे साथ हू मेरी जाना...प्रेम का बंधन मेरा-तेरा शब्दों तक नहीं है सीमित.''
प्रेम की अश्रु-धारा नैनों से दोनों के बरसी..प्रेम के ढाई अक्षर से एक प्रेम कहानी फिर से जन्मी...