नफरत की दीवार तो तब खड़ी होती,जब मुहब्बत की नींव सिर्फ जिस्म की जरुरत होती...वो शुरुआत
तो पूजा की थाली से जुड़ी थी...जिस मे हाथ जुड़े थे खुदा के आगे,शुक्राना देने के लिए...वो शुक्राना था
कैसा,जहां आँखों मे ढेरों आंसू थे...हर आंसू कर रहा था वादा,दूर तक साथ निभाने का...दिल हुआ जा
रहा था निर्मल और मुहब्बत का पहला कदम अपने सजना को समर्पित था...चेहरे पे नूर था गज़ब का...
जो दे रहा था मात हर उस नियामत को..जो हम को दिया यह तोहफा,मालिक ऐसी किस्मत सब को देना..