Thursday, 14 January 2021

 बिछुड़ गया इक फूल डाली से तो क्या मौसम बदल गया...ओस का मोती जो पत्ते से फिसल गया तो क्या 


पत्ता सिसक गया...सितारा एक जो टूटा तो क्या आसमाँ सारा थम सा गया...बरखा जम के बरसी मगर 


क्या आशियाना हमेशा के लिए भीगा रह गया...जीवन कहाँ किसी के लिए रुकता है..यह वक़्त फिर से 


अपनी तरह चलता है..फिर हिम्मत को क्यों रोके..तकलीफ के साए मे कब तक तड़पे...कुदरत जो देती 


है,फिर छीन भी लेती है..मगर उम्मीद के दिए बुझ जाए,ऐसा भी कभी होता है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...