वो कोई चलता-फिरता कारवाँ ना था...वो तो अरमानों की डोली पे सजा खूबसूरत सा बंधन था...हाथ से
छू के जो मैला हो जाए,वो तो ऐसा अलौकिक अहसास सा था...फूल जिस को सँवार दे,बहार का कोई
लाजवाब करिश्मा ही तो था...रूह का परदा भी ऐसा कि परियां भी इज़ाज़त मांग ले,आने से पहले...
अजूबा नहीं था,यह तो प्रेम था...जो आसमान से चल कर सीधा जमीन पर आया था...वो आँखों के अश्क
नहीं,प्रेम के मोती थे...जो उस के भी थे,जो इस के भी थे....