Thursday, 14 January 2021

 सुरों को पिरोया सितार की झंकार मे तो चाँद क्यों नज़र आया...यह तो रात नहीं मगर रात का पहर हम 


को क्यों नज़र आया...बेशक़ीमती है सुर,शायद इसी को सुनने चाँद मरज़ी से आया...लीक से हट कर,


सोच से हट कर, मेरे सुर की दुनियाँ मे आया...तुझ पे वारे सुर मैंने अपने,झंकार सितार की धुन मे पनपे..


दिन को रात बनाने वाले,मेरी सितार पे गुनगुनाने वाले...अपनी दुनियाँ से तो आना था तुझ को,सुर 


जो थे जाने-पहचाने तेरे ...




दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...