सुरों को पिरोया सितार की झंकार मे तो चाँद क्यों नज़र आया...यह तो रात नहीं मगर रात का पहर हम
को क्यों नज़र आया...बेशक़ीमती है सुर,शायद इसी को सुनने चाँद मरज़ी से आया...लीक से हट कर,
सोच से हट कर, मेरे सुर की दुनियाँ मे आया...तुझ पे वारे सुर मैंने अपने,झंकार सितार की धुन मे पनपे..
दिन को रात बनाने वाले,मेरी सितार पे गुनगुनाने वाले...अपनी दुनियाँ से तो आना था तुझ को,सुर
जो थे जाने-पहचाने तेरे ...