Wednesday 30 September 2020

 भोले भाले वो नैना..उस के दिल के आर-पार हो गए..वो भोले थे इसलिए ही तो उस की खास पसंद बन 


गए..जब वो झुकते तो दिल उस का चीर जाते..जो उठते तो उसी पे ही क़यामत ढा जाते...एक दिन पूछा 


उस ने भोले नैनो वाली से,कौन दे देस से आई हो जो इतनी भोली सूरत और भोले नैना संग लाई हो..इक 


जवाब उस का काफी था...यह उस देस की माटी से पाए है,जहां धर्म बिकता नहीं..दिल मे बैर पलता नहीं..


अब समझने की बारी उस की थी..शीश झुका अब उस के देस के आगे,जहां से यह अपने दो भोले नैनो 


को लाई थी...

 वो बहुत छोटी सी थी...हां..कद-काठी मे..गुणवान थी उच्च-कोटि मे..प्यारी सी मुस्कराहट और प्यारा सा 


दिल...बहुत कुछ था उस मे,जो सीखा जा सकता था..पर यह दुनियां उस को कितने अजीब नामो से 


पुकारा करती थी...तुम कुछ नहीं कर पाओ गी जीवन मे,तानों से सज़ा देती थी..वो माँ की गोद मे छुप 


के बहुत ही रोया करती थी..माँ की सीख,''जिस दिन तू आसमां का छोर छू ले गी,यह पगले सारे चुप 


हो जाए गे''..अब वो ताने अनसुने कर देती थी...वक़्त की छाया गुजरी..अब वो ऊँची गद्दी पे बैठी है..


वही लोग जो उस को ताने देते थे,आज उसी के कदमो मे सर झुकाया करते है...

Tuesday 29 September 2020

 सोने सा उज्जवल मन  मिला और चांदी सी शुद्ध देह मिली...दिल को सकून की इक धड़कन मिली..


भोर की पहली किरण जब मुस्कुराते हुए हम-तुम से मिली..क्या खूब यह ज़िंदगी मिली...कोई शिकवा 


किसी से भी नहीं..खुद मे मस्त यह ज़िंदगी उस की दया से खिलखिलाती रही..कभी तो उस पे यकीन 


कर..कभी तो अपनी मेहनत को जनून का हिसाब दे..किसी और के हिस्से का क्या करना...जो होगा 


खुद का वो खुद ही चल कर आ जाता है..यू बात-बात पे रोता है तो जो मिला है वो भी चला जाता है...

 महकती चहकती इस सुबह ने बताया...बहुत कुछ खो कर जो पाया वही तो अपना है...कितना कुछ 


गवा दिया फिर कुछ हासिल किया..यक़ीनन वो सब ही तो अब अपना है...रंजिशे छोड़ी तो अपनापन 


पाया,सच कहे तो वो अब सच मे अपना कहलाया...हाथ कंगन को आरसी क्या...जो बोया वही काटा..


फिर किस बात पे रोया...मेहनत से,सेवा से जो मिल पाया..हां आज वो ही सब अपना है...सेवा मे गर 


अपना स्वार्थ दिखाया तो याद रख..कुछ भी ना पाया...

 साजन बोले..यह इंद्रधनुष बहुत मनमोहक है..सात रंगो का मेल और अनोखी छाया से भरा है..छटा है 


निराली,ऐसा लगता है प्रेम के हज़ारो रंगो से भरा-पूरा है...देखे तो बस देखते ही रहे..मगर यह तो जाने 


वाला है..बरखा के जाते ही यह ग़ुम हो जाए गा...हम बोले...इस को जाना तो है पर यह हम को क्या 


सिखा के जाने वाला है...सोचिए जरा..गर ऐसे ही रंग सुहाने हम दूजो के जीवन मे भरे तो हम इंद्रधनुष 


को कहां जाने दे गे..जैसे यह हम को जीवन सिखा गया..वैसे ही हम दूजो को जीवन सिखा ग़ुम हो जाए गे 

Monday 28 September 2020

 दूर बहुत दूर तक फैली है दुआओं की खूबसूरत नगरी..किस को चुने और किस को संभाले..किस को 


लगाए गले तो किस दुआ को रूह से जोड़े...आदतन अपनी....मुस्कुरा दिए इतनी दुआओं के सुन्दर  


मेले मे...क्या यह सब हमारी है...क्या यह हमारी ज़िंदगी की धरोहर है...किसी ने अंदर से आवाज़ दी,


हां यह सब तेरी ही तो है..मगर तब तक जब तक,तेरे दिल का आईना साफ़ है..जिस दिन गरूर की 


छवि इन पे छा जाए गी..जिस दिन सिक्को की चमक तुझ पे हावी हो जाए गी..यह लुप्त हो जाए गी..

 यही कही हू आस-पास तेरे फिर जीवन तेरा सूना क्यों है..खिलखिलाती हंसी है मेरी चारों तरफ तो तेरे 


मन मे क्यों अँधेरा है...दर्द-दुखों का भंडार तो मेरे पास भी है फिर भी जीना हंस के है..यही तो तुझ को 


भी सिखाना है...ज़िंदगी तो हर रोज़ इक नया गम सामने रख देती है..उस से निकलना है कैसे,यही 


खूबसूरत अंदाज़ ही तो तुझे सिखाना है...मर मर के जीना भी कोई जीना है..कफ़न सर पे बांध कि 


मौत का आ जाना एक इत्तेफाक इक मौसम का खेला है..जब तक है यह साँसे,खुल के जी..ना इस के 


लिए ना उस के लिए..जी सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए...सब कर भी भी सब ने शिकायतों का थैला ही 


पकड़ा देना है..बस उतना कर जितना तेरे लिए मुनासिब है..मुस्कुरा दे अरे पगले,क्या पता यह सांस 


आखिरी और अंतिम बेला है...

 क्या आज फिर कोई ख़ता हो गई जो फिर से रोया है...क्या आज तूने फिर से किसी का दिल दुख दिया 


जो मालिक के आगे फूट-फूट सिसका है...फिर कर दी शिकायत इस ज़िंदगी से कि तूने उस को जयदा 


और मुझ को कम से क्यों नवाज़ा है...अरे पगले,जो तेरे पास है,वो औरों के पास कहां है..देख आईने मे 


खुद को सर से पांव तक..इसी कुदरत ने तुझ को हज़ारो नियामतों से बखूबी संवारा है..अब तुझी को ही 


समझ ना आए..अब तुझी को ही कुछ दिखाई ना दे तो कुदरत कहां से गलत-धारा है..जितना है उसी के 


लिए मुस्कुरा ना..यह जीवन भी तो बहती धारा है...

 कौन कहता है दौलत ही इज़्ज़त का पैमाना है..और जो कहता है वो शायद अपने ज़मीर से अनजाना 


है...किस के पास है खज़ाना दौलत का कितना..किस के पास है हीरे-जेवरात का पैमाना कितना...


किस ने किस के खाते को खंगाला..मोल तो मीठे शब्दों का है..मोल तो तहजीब की किताब का है...


वो अमीर है तो आप को क्या लेना है...अपनी चादर है जितनी,उसी मे तो रहना है..जब अपने आप मे 


मन रमने लगे,जब किसी को देख यह दिल ना जलने लगे...सोच लीजे,इम्तिहान ज़िंदगी का पास कर 


ही लिया तुम ने..अब मुस्कुरा दे यारा,जीवन है दो दिन का मेला...

 दौलत से बिकना होता तो ना जाने कितनी बार बिक चुके होते...ईमान को छोड़ दिया होता तो आज इसी 


दौलत के राजसिहांसन पर बैठे होते...ज़िंदगी और हालात मौका देते रहे बार बार,दौलत और ताकत की 


राहो पे बुलाने के लिए...ज़मीर अपने की आवाज़ थी इतनी तेज़ कि उस तेज़ के आगे कभी दौलत को 


चुन ही नहीं पाए...वो तेज़ चेहरे पे ले आए,इसी कोशिश मे दौलत की बेकार बेनाम राहो से नाता तोड़ 


लिया हम ने..बिंदास जीते है कि सकून की मंहगी दौलत है आज पास...पुकारते है उस को,वो संवार  


देता है हमारे सारे बिगड़े काम..

Sunday 27 September 2020

 छलकती आंखे और छलकते जाम...जी नहीं,यह वो नशा नहीं जो बदनाम है...यह नशा है वो,जिस के 


लिए मुहब्बत हर तरह कुरबान है...खुद मे खोए हुए,खुद मे सिमटे हुए...उन बदनाम गलियों से दूर 


अपनी मुहब्बत को इबादत मे ढाले हुए..इस मुहब्बत का नशा ताउम्र कायम रहे..चेहरे की लकीरों से 


बालों की चांदी तक यू ही बरसता रहे..देखने वाले सज़दा करे पाकीजगी इस की देख कर..इस नशे 


की बात क्या..इस का सरूर चढ़ता भी है तो हर तरफ इस का नूर ही नूर है... 

 नशे मे चूर है ना जाने कितनी ही ज़िंदगियां आज...दौलत मिली,शोहरत मिली  मगर यही दौलत सर पे 


 नशा बन चढ़ गई आज...क्या यह नशा बहुत जरुरी है...क्या यह नशा ज़िंदगी की कीमत से भी जयदा 


 अनमोल है..यही दौलत किसी जरूरतमंद को दी जाती तो कितना नाम अच्छों मे आता...नशे की भीड़ 


मे खोए तो नाम बदनामी के अन्धकार मे जाता...यह दौलत भी कमाल है,कही कोई इस के बिना भूखा 


है तो कही कोई इस के साथ नशे की गोद मे है...

 ''जी चाहता है आज,आप पे कोई नज़्म लिखे..साँसे ज़िंदगी की सकून से भर दी,इस के लिए कुछ खास 


अल्फ़ाज़ लिखे'' हम ने गहरी मुस्कान से उन को कहा..''साँसे तो खुदा ही दिया करता है..और सकून के 


लिए कर्म अपनों पे जिया जाता है..मेरे लिए इतना ही आप से सुनना काफी है..''तेरे जैसी दुल्हन सिर्फ 


सदियों मे ही पैदा होती है''...इस लफ्ज़ के बहुत मायने है मेरे जीवन मे..इस एक लफ्ज़ को हम ने अपने 


सीने से सजाया है...कुछ भी ना लिखे..कुछ भी ना कहे..हम सदियों से आप के साथ है,बस यह साथ 


सदियों तक ही रहने दे...

 बेहद साधारण सा रूप-रंग लिए,वो दोनों इस दुनिया से अनजान थे...कुछ सिक्के पास थे मगर हौंसले 


उन दोनों के ही बुलंद थे...जीना है साथ तो कम मे भी जीना होगा..दुनियां के तानो को भी सुनना होगा...


लोग क्यों कहते है,ग़ुरबत का प्यार सच्चा पाक नहीं होता...साथी जब इक दूजे के साथ है तो मुश्किल 


तो कुछ भी नहीं होता..दुनियां का काम तो अंगुली उठाना ही है..प्यार मे जब दोनों हर बात से राज़ी तो 


इस दुनियां का क्या करना है...प्यार का एक रूप...ऐसा भी..

Saturday 26 September 2020

 वो बेहद खूबसूरत थी..

वो  अपने मन की मालिक थी..

वो सब की दुलारी भी थी...

बहुत अमीर भी थी...

वो बेहद बदसूरत था...

रंग बेहद काला भी था...

बहुत ही गरूर वाला था...

गुस्सा नाक पे ही रखा था...

अमीर शायद उस से भी जयदा था...

बोलने का कोई शऊर ना था...

पर यह कैसा गज़ब था...

प्रेम का नशा दोनों पे हावी था...

एक पूरब तो दूजा पश्चिम था...

बेमेल जोड़ी का यह कौन सा करिश्मा था...

फिर भी संग साथ जीने का वादा था..

जन्मो प्रेम का गहरा वादा था...

यक़ीनन..प्रेम हो सच्चा तो रूप-रंग कहां देखा जाता है..

प्रेम ढला रिश्ते मे,यह कैसा संजोग था..

यह प्रेम था...जो आसमान से भी ऊपर पाकीजगी पे सजा था...


 यह राहें बहुत खूबसूरत है...जहां भी देखे बहारे ही बहारे है..माटी को छुए तो सोना दिखती है..खुद को 


निहारे तो हवा मे खुशबू मिलती है...जी चाहता है इन्ही हवाओ की खुशबू संग कही उड़ जाए..ना लौटे 


कभी इस ज़मीन पर बस इन खूबसूरत बहारों के ही हो जाए...गेसुओं को खुला छोड़ दिया...पायल को 


भी बजने से रोक दिया..चाहते है बहुत ख़ामोशी हो और हम ज़िंदगी की हर ख़ुशी को हासिल कर ले...


सुनसान वादियों मे खुद को ही पुकारे और वो गूंजती अपनी आवाज़ खुद ही सुन ले...

 इस ज़माने मे राजा हरीश चंद्र कौन होता है...झूठ पे खिलते है मुहब्बत के महल और प्यार इसी पे ही 


आंका जाता है...झूठ जब तक सीमा मे चले,अच्छे के लिए ही चले तो वो झूठ सच से जयदा बेहतर होता 


है..पर हर नन्ही नन्ही बात पे झूठ का सहारा लेना..इंसान को दूजे की नज़रो मे गिरा जाता है..वो बेशक 


खुद को बहुत शातिर समझे पर दूजा सब समझ कर भी,उस से कुछ ना कहता है..बहुत कुछ है गर 


छुपाने को तो बहुत कुछ भी होता है बताने को...प्रेम को रंग सच्चाई के रंग मे,यह प्रेम बहुत खुद्दार हुआ 


करता है...

 यह शब्द क्या कहना..एक चला तो साथ और भी चल दिए...जुड़े इक दूजे से और कहानी अपनी बयां 


कर गए...किसी को यह पसंद आए इतना कि दिल के कोने मे बंद कर लिए..किसी ने सजाया इन को 


अपने आशियाने मे और  नाम बरकत दे दिया..फिर दिखे यह शब्द साजन की आँखों मे और सवालों 


का जवाब वही रुक गया...नटखट हो जाते है यह शब्द साजन की बाहों मे..खामोश होते है तब,जब 


इबादत मे खुदा से बात करते है...

Friday 25 September 2020

  ख़ुशी मिले या ना मिले,हम तो बिन बात हंस दिए...दुखों के रेले पीछे-पीछे चले,हम उन्ही को साथ लिए 


अपनी डगर पे चल दिए...दुनियां बोली हम दीवाने है...हम तो तब भी मुस्कुरा दिए...खुश रहने की वजह 


कुछ भी नहीं मिली,पर खुश रहना सोचा और फिर हर पल अपने लिए जीने लगे...रोने से किस्मत के द्वार 


कभी खुलते है..आसमां से चाँद-सितारे कभी जमीं पे आते है...सुन यारा...ज़िंदगी का तो काम दर्द पे दर्द 


देना है...इस दर्द से कुछ पल सकून के चुरा ले तो इस का भी क्या जाता है...

 यह कौन सा आसमान है जो बेहद खामोश है...यह कौन सी धरती है जो चाह कर भी कुछ कहती नहीं...


सितारे कितने है आसमान के आंचल मे..हम से किसी ने कहा,टूटे सितारे से कुछ मांगो तो मिल जाता 


है...इंकार मे सर हिलाया हम ने..टूटा सितारा कुछ दे पाता तो हम उस से दिन अपने पुराने मांग लेते...


वो बचपन मांग लेते...माँ की गोद मे उतर जाते..बाबा की ऊँगली पकड़ पूरा बाजार घूम आते...जब 


यह आसमान खामोश है,यह धरती खामोश है...तो हम क्या बोले..हम भी उतने ही खामोश है...

Thursday 24 September 2020

 ''सरगोशियां'' प्रेम के रस मे डूबी तो प्रेम को शुद्ध से भी परिशुद्ध कर दिया...प्रेम का हर रूप लिखा और 


प्रेम को अमर कर दिया...वो प्रेम जो पवित्र रहा,राधा के मन जैसा...प्रेम जो बहता रहा गंगा के पावन 


जल जैसा...मिठास प्रेम की कितनो ने पढ़ी,पर फिर भी जीवन की डगर किस ने सीखी...''सरगोशियां'' 


की कलम फिर तल्ख़ी से भरी और स्याही सबक देने वाली भरी...समाज को उस का आईना दिखाया 


औरत के दर्द पे खुल के चली...पुरुष-स्त्री के संबंधों पे डट के खड़ी...''सरगोशियां'' है मजबूत बड़ी...


हज़ारो ने इस के शब्दों को पढ़ा..जिन के दिल है मानवता से भरे वो ''सरगोशियां'' के शब्दों पे दिल 


हार गए..जो अंदर से कायर रहे वो इन शब्दों को सच अपना मानने लगे..यारों..''सरगोशियां'' है ही 


ऐसी,साफ़ सरल चपल और सभी से जुड़ती हुई....इंसानो की बस्ती मे कुछ शैतान भी है भरे...मेरी 


''सरगोशियां'' उन के लिए भी खड़ी है हाथ जोड़े...नेक बने सभ्य बने..ज़िंदगी देखिए ना कितनी ही 


खूबसूरत है.........


 उस के लिए दौलत की चमक ही सब कुछ थी...जीवन मे हर ऐशो-आराम हासिल करना उस की 


पहली ख्वाईश थी..बहुत चाहा वो जीवन की हकीकत समझे...हम को कुछ नहीं चाहिए,यह तो समझे..

 

पर फितूर था दौलत को गलत तरीके से हासिल करना...हम उस के साथ होते हुए भी उस से बेहद दूर 


हो गए..वो उलझा रहा ईंट-पत्थर के मकान के लिए और हम उस के लिए दुआ करते रहे..विवेक ने उस 


का साथ भी छोड़ दिया और वो लालच का लबादा ओढे मौत को प्यारा हो गया...देह टूटी बंधन सब छूटे 


ईंट-पत्थर का मकान धरा का धरा रह गया...कुदरत ने हिसाब पूरा का पूरा इस तरह कर दिया...

 यह इंसान भी ना..कभी कहर-आपदा से डर गया..कभी मौत को देख डर गया...कभी अपने हाथ से 


दौलत-जमीन जायदाद को निकलते देख,घबरा गया...इंसान की फितरत से जरा हट कर सोच,जो 


दौलत-जमीन जायदाद तेरी है ही नहीं..उस के लिए क्यों वक़्त अपना बर्बाद कर रहा...अपनी देह को 


सम्भाल जो तेरी अपनी है..जिस की कीमत इस दौलत जमीन जायदाद से बहुत ही जयदा है..भागना है 


तो इस देह की देखभाल के पीछे भाग...यह नायाब रहे गी तो खुद ही हज़ारो कमा ले गा..खुद पे जो 


विश्वास रखे गा तो सब कुछ खुद ही हासिल कर ले गा... ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक होता जाये गा...

 इस दुनियाँ मे कौन पूरा है...कोई दौलत की तलाश मे अधूरा है...कोई शराब की तलब के लिए अधूरा है..


कोई मनपसंद साथी ना मिला,यह सोच कर खुद मे बहुत अधूरा है...कोई अपनी हकूमत ना चलने से 


परेशान सा अधूरा है...किसी को यह लगता है वो खूबसूरत नहीं,रोते रोते रात मे रोज़ सोता है...कोई 


पैसो की कमी से बेहाल अजीब सा जमूरा है...भगवान् ने गर कही कोई कमी ना दी होती,तो यह इंसान 


खुद को भगवान् ही मान लेता..अरे रो मत पगले,दो दिन है यह ज़िंदगानी...खुद हंस ले और किसी और 


को भी हंसा दे...यहाँ कौन अधूरा तो कौन है पूरा..छोड़ सब और मस्ती मे जीवन जी ले...

 किसी को मौत देख वो परेशान हो गया...ज़िंदगी कैसी सी है यह सोच कर हैरान परेशान हो गया...


कोई यू ही क्यों चला जाता है,यह बोल कर वो ग़मगीन हो गया...''मौत तो जीवन का शाश्वत सत्य है...


जो आया है उस को तो किसी दिन जाना होगा''...लोग जीते जी इस देह को प्यार नहीं करते...पैसा और


पत्थर को पाने के लिए ज़िंदगी सारी यू ही गुजार दिया करते है..लड़ते है इक दूजे से और अपनी जान 


खतरे मे डाल लिया करते है..वक़्त से पहले और तक़दीर से जयदा किसी को कुछ नहीं मिलता...फिर 


भी ताउम्र इस को पाने के लिए बेक़रार रहा करते है...सकून से जीना है तो जो है जितना है उसी मे 


जी ले...इस शरीर की कीमत को समझ,बाकी के लिए उस ईश्वर पे छोड़ दे...

 आंख का यह आंसू...क्या क्या बयां कर देता है...मिलती है ख़ुशी तो यह आंख छलक जाती है...कोई 


दिल को दुख दे तो यह आंख जल्दी से भर जाती है...कही दूर पिया का सन्देश ना मिल पाए तो खुद 


मे अकेले ही बरस पड़ती है..बात  माँ की ममता की करे तो याद कर अपनी औलाद को सीने मे कसक 


लिए बह जाती है...यह आंख का करिश्मा भी क्या क्या खेल दिखाता है..वो आंसू जो ना रुकता है और 


ना किसी से गिला करता है...खुद को अश्क नाम दे हज़ारो वजहों से बह जाया करता है...

 अमीरी-गरीबी को चुनौती देता उन दोनों का प्यार था...ऊँची जात-नीची जात,इस बात का उन दोनों को 


ही कोई मलाल ना था... समाज के ठेकदारों को यह सब नामंजूर था...समाज तो दूर खुद उन के 


जन्मदाताओं को इस प्यार से परहेज़ था..वो थे इस से दूर अपनी दुनियां मे ग़ुम...हंसना मुस्कुराना...


बार बार बात एक ही बोलना,साथ जिए तो साथ ही मर जाए गे...पर रो कर नहीं,हँसते हँसते दम एक 


साथ तोड़ जाए गे...दुनियां की यह कैसी रीत है...नहीं जान पाती प्यार ज़िंदगी की उम्मीद है...मरने पे 


उन को मजबूर कर दिया..प्यार की जीत तो देखिए...दोनों ने वादे मुताबिक हँसते हँसते दम तोड़ दिया..

 अभिमान किस बात का करे,ऐसा कौन सा मुकाम हासिल कर लिया हम ने...गरूर किस के लिए करे..


क्या हम ने खुदा का दर्ज़ा पा लिया..शब्दों को तोड़ा-मोड़ा और कुछ लोगों के लिए बस ख़ास हो गए..


अभिमान और गरूर को जो खुद पे हावी कर ले गे,उसी दिन माँ-बाबा की दुआओं से दूर हो जाए गे..


कुछ बन भी गए तो क्या हुआ...कितने और भी है जो आसमां के चमकते सितारे है...कभी कुछ पाया 


तो कभी कुछ खोया,ज़िंदगी इसी का तो नाम है...अभिमान कैसे होगा,जब देह के दाम भी मिटटी के 


भाव हो जाते है...

 वादियों मे घुला रंग प्यार का तो यह वादियां भी महक उठी..हम ने जैसे किए सोलह सिंगार,हर दुल्हन 


हमें देख शर्मा गई...नूर देख हमारे चेहरे का वो बोले..किस बगिया का फूल हो जो इतनी मासूम हो...


''इस नूर की रौशन बिजली तुझी पे गिरने वाली है..जिस बगिया से आए है उस बगिया की शान ही 


निराली है...संभाल जरा दिल अपना,यह रौशन-बिजलियां रोज़ रौशन नहीं होती...जिस बगिया के हम 


फूल है वहां उदासियाँ क़बूल ही नहीं होती..संग मेरे खिलखिला,इस नूर को कर सज़दा और सर झुका''..

 खुद ही मे बेशक,इक किताब है हम..पन्ने जितने है इस मे,उस से भी जयदा मशहूर है हम..किताब के 


आखिरी पन्ने तक कोई पहुंच ही ना पाए गा..जब तल्क़ देखो गे पहला पन्ना,पन्नो का हिसाब और बढ़ जाए 


गा...कही हम खड़े है किसी पेड़ की छांव मे तो कभी झुलस रहे है तपती गर्मी की उदास शाम मे...ना 


बचा तपती झुलसती आपदाओं से हमें...शायद किताब मे वो निखार आ ही ना पाए गा..कौन पढ़ता है 


किताबें ऐसी,जो सबक खास ना देती हो...ना उम्मीद कर आखिरी पन्ने तक जाने की,यह किताब पढ़ते 


पढ़ते तेरी ज़िंदगी तुझे तेरी अपनी ज़िंदगी की शाम तक ले आए गी...

 यह क्या हुआ..यह क्या किया..कभी हंसा दिया,कभी रुला दिया..कभी जी हुआ तो साथ छोड़ दिया तो 


कभी अपनी ख़ुशी हुई तो अपना लिया...कभी इतना मन दुखा दिया और कभी ऐसा भी हुआ कि बादशाह 


बेगम के रुतवे से सज़दा तक कर दिया...क्या यह प्यार है..क्या यह मुहब्बत का व्यापार है...कुछ गिला 


कर बेशक हज़ार बार शिकवा भी कर..मगर प्यार के मायने तो समझ...प्यार दिल का तार है..प्यार रूह 


का अंदाज़ है...प्यार पे जितना लिखे,बार बार लिखे..यह प्यार खासे-अंदाज़ है...

Wednesday 23 September 2020

 सिर्फ अपना स्वार्थ ना सोच,प्रेम स्वार्थ से परे इक खूबसूरत बंधन है...नाम इस बंधन को मिले ना मिले,


पर फिर भी यह प्रेम ही रहता है...किसी को टूट के चाहना और बदले मे कुछ भी ना चाहना..प्रेम नाम 


इसी का है..प्रेम तो खुद ही चल कर आता है..मन होगा जब पवित्र धारा जैसा,निर्मल होगा गंगा के जैसा..


यह खुद ही खुद से परिशुद्ध हो जाए गा..मांगने से प्रेम कहां मिलता है..दर्द किसी और को दे कर प्रेम 


वहां कब रुकता है..ढाई अक्षर कितने सरल है,निभा कर ही जाना जाए गा..स्वार्थ आ गया जब बीच मे 


तो यह प्रेम बहुत दूर हो जाए गा...

 चूल्हे की आंच पे महकता वो नूर सा चेहरा...पिया ने देखा तो सब भूल गले लगा लिया गहरा..यह कौन 


सी रोटी थी जो भरी थी प्रेम की आंच मे..यह कौन सा प्रेम था जो दिख गया चूल्हे की सच्ची आंच मे...दो 


दिल मिले और प्रेम खिल गया...समर्पण का रंग और गहरा हुआ और सजना उसी का हो कर रह गया...


बोल प्रेम के मीठे-मीठे रूह तक उतर गए...यू लगा जैसे भगवान् खुद जमीं पे उतर गए...सदियों तल्क़ 


के लिए दोनों ने इक दूजे का संग मांग लिया..ऐसा ही परिशुद्ध प्रेम बना रहे,उस भगवान् को सर 


झुका कर यह वरदान मांग लिया...


 जब तक था आशियाना छोटा सा,तब प्यार बहुत जयदा था...वक़्त था इक दूजे के लिए और जीवन इक 


खूबसूरत बहती धारा था...कामयाबी  मिली शोहरत मिली और धीरे-धीरे दौलत और महल के अम्बार हो 


गए..खुले हाथों से सब लुटाया और उन को लगा सुख़ पूरी तरह उन के द्वारे आया...रास्ते अब इतने अलग 


थे,वो दौलत के ढेर से खेलती थी और उस का साथी भी दौलत के खेल मे मदहोश था...हज़ारो सुखों के 


बीच वो ढाई अक्षर प्रेम का कहां था..वक़्त गुजरा,चेहरे पे लकीरे पड़ी,बालो मे चांदी सजी...देह थक गई..


दौलत भी थी बहुत सारी मगर देह की हालत बहुत बुरी थी...दोनों ने देखा इक दूजे को,मगर वो प्रेम 


की कड़ी अब उतनी मजबूत ना रही थी...

 आँखों मे प्रेम का सैलाब लिए वो उस के प्रेम मे डूबी थी...हर सांस उस पे वारी-वारी करती वो उस की 


जीवन-संगनी थी..कितने खवाब चुन लिए एक साथ जीने के लिए..''.वो तो सिर्फ अब मेरी है'' यह विचार 


कर उस ने उस की बेकदरी कर डाली थी...एक वक़्त ऐसा भी था जब वो उस के बहते एक अश्क पर,


खुद भी रो देता था...आज है यह आलम कि वो खुद किसी और नशे मे डूबा है..तकरार हुई सौ बार हुई,


और आज वो उस की दुनिया का  बेनाम सा हिस्सा है...प्रेम खो गया,वादे खो गए पर वो अभी भी खुद के 


लिए ज़िंदा है..हंसती है मुस्कुराती भी है..पर उस दगाबाज़ से कुछ भी ना कहती है...

 कभी पूरी तरह जिसे कोई पढ़ ना सके,बस वैसी ही इक किताब है हम...एक पन्ना ही जब समझ ना आए 


तो अगला पन्ना क्यों खोले गे आप...कठिन नहीं बहुत ज़्यदा सरल है हम..किताबों की भीड़ मे सब से जुदा 


इक ख़ास किताब है हम...दुनियां सरल समझ हम को नकारती  रही पर जब हमारी फितरत समझ आई 


तो पीछे भागने लगी...हम तो आज भी खड़े अपने सरल मोड़ पर,अब यह दुनियां तेज़ रफ़्तार से भागे तो 


खता हमारी तो नहीं...किताबें कभी बोला नहीं करती..वो रहती है सदा एक जैसी..पढ़ने वालो के विचार 


ही बदल जाते है...

 कलम ने पूछा स्याही से..क्या तू रात भर रोई है..शायद इसीलिए यह बरसात अचानक से आज फिर 


लौट आई है...तू है सहेली जिगरी मेरी,मत छुपा दास्तां अपनी...तुझ संग बंधे है तार मेरे..अलग तुझ से 


हो जाऊ गी कैसे...आ गले लग जा मेरे,शब्दों की बयानगी से अपनी जोड़ी को सज़दा कर ले...शब्दों को 


बहा देते है आज इतना,जब तल्क़ यह बरसात बरसे तब तल्क़ उतना... 

Tuesday 22 September 2020

 कभी ज़िंदगी जीत गई तो कभी अरमान हार गए...कभी हंसी ग़ुम हो गई तो कभी आंसू इसी ग़म पे 


फ़िदा हो गए...कभी कभी चोरी से वो हम से ख़्वाबों मे मिले और जो बात दिन के उजाले मे ना कही, 


वो बात ख़्वाबों मे बता गए...ख़्वाब तो ख़्वाब ही होते है,उजाला होते ही टूट जाते है...मिलो हम से इस 


ज़िंदगी की हकीकत मे..चार कदम हम चले और चार कदम तुम भी चलो...कुछ तुम अपनी कहो तो 


कुछ हमारी भी सुनो...हम तो बहती नदिया की धारा है,हम से जरा संभल के बात करो..

 कूड़े के ढेर से खाने को कुछ ढूढ़ती वो किसी की नन्ही सी आबरू थी... आज क्यों कचरे के ढेर से वो 


कुछ खाने को मजबूर थी...बला का नूर था उस के मासूम चेहरे पे...अमीरी की चमक से वो भरपूर थी..


अपनों की तलाश मे अब वो थक कर बेहद चूर थी..उस को शायद अभी तक यह मालूम ना था कि वो 


अब अनाथ थी..पर कुदरत के आने वाले फैसले से भी वो अनजान थी..फिर दो हाथ ऐसे मिले कि वो 


उन की धरोधर  हो गई..बेशक अमीरी ना थी पास उन के पर उन की ममता के आंचल तले वो बहुत 


सुरक्षित और खुशहाल थी...

 सब अपना मिटा कर वो ज़िंदा क्यों थी...वो खड़ी थी जिस्म के बाज़ार मे,इक बिकी हुई किसी की 


जरुरत थी...किसी ने उस को नाम दिया बाज़ारू तो किसी के लिए वो जवानी का कोई कीमती फूल 


थी...जिस ने भी रौंदा जिस्म उस का,साथ मे उस की आत्मा को भी रौंदा था...सब गवां कर भी वो 


हिम्मत का जामा पहने थी...इक रोज़ संग अपने, अपने जैसो को ले वो भाग निकली थी..पिंजरे से वो 


अब आज़ाद थी पर अपने साथ कितनो की जान मसरूफ कर आई थी...नारी का रूप ऐसा देख यह 


ज़माना क्यों हैरान है..अरे तुम जैसो ने ही बिठाया था उस को बाजार मे तो अब क्यों हैरान हो...झुका 


लो सर अपना शर्म से कि यह नारी अब अबला नहीं..अपनी हिफाज़त के लिए वो झाँसी की रानी भी है 

 वो पाषाण था..पत्थर था..शायद भगवान् ने बनाया ही उस को पत्थर-कंकर का था...बुद्धि थी मगर कुछ 


समझ ना थी..बात गर कुछ समझ आती थी तो दिमाग मे ना जाती थी..होंठ थे सिले हुए,उतने ही खुले 


जितना ग़लत कहने के लिए ही थे बने...जज़्बात के मायने भी उतने ही थे जितने खुद को सकून देते 


थे..हंसना कभी सीखा नहीं,शायद पत्थर पाषाण कभी हँसते ही ना थे...पूछा उस मालिक से, कौन सी 


माटी थी ऐसी जो तेरे काम की ना थी..बना दिया,कोई बात नहीं...पर मालिक इस को इस धरा पे क्यों 


भेजा..गर भेजा तो जज़्बात का टोकरा साथ क्यों ना भेजा...


Monday 21 September 2020

 मुहब्बत मे कोई फ़ना हो गया तो कोई मुहब्बत को मज़ाक बना धोखा ही दे गया..किसी को अपनी 


मुहब्बत मे सिर्फ कमियां दिखी तो कोई उस को तमाम कमियों के बावजूद साथ आखिरी पल तक 


निभा गया...किसी ने सिर्फ जिस्म को चाहा और कुछ वक़्त बाद साथ उसी का छोड़ कही और चला 


गया..जिस ने पूजा मुहब्बत को खुदा समझ कर वो साथी की बेरुखी देख इस दुनियाँ से विदा  ही हो 


गया..साँसों का मोल तो तभी तक होता है जब तक मुहब्बत का नाम मुहब्बत के साथ होता है...

 यह शब्द भी भरे है कितनी जान से ..छिपी है इन्हीं मे दुआ तो इन्हीं मे छुपा फरमान होता है..यही करते 


है शिकायत तो यह बद्दुआ भी दे डालते है...शब्दों ने कभी रुला दिया तो कभी खूबसूरत रंगो से सजा 


दिया...हज़ूरे-आला मौत को गले लगाने से पहले,यही तो है जो लिख जाते है अपनी कहानी,फ़साना 


अपना...किसी ने बोले मीठे बोल तो दिल लुभा लिया तो किसी ने दिखाई बेरुखी तो दूर रिश्ते को कर 


दिया...यक़ीनन,कितनी ही जान भरी है इन शब्दों मे...

 पुकार रहे है तुझे हर गली हर शहर मे...कहां हो तुम जरा उस शहर उस गली का पता तो दो तुम...


फिर कोई दस्तक आसमां से आई है...धरा भी कुछ भारी सी हो आई है...बरखा भी बस अब रोने को 


है...शाम भी शाम से पहले ढलने को है...इंतज़ार कहता है,कही दूर दूर तक तेरे कदमों की कोई आहट 


ही नहीं...इंशाअल्लाह,तेरी सलामती की भी कोई खबर नहीं..कहां हो तुम कि शमा भी रौशन होने को 


है...ढूंढ रहे है तुझे हर गली,हर मोहल्ले मे..शायद वो गली इस मोहल्ले मे कही है ही नहीं...

 किस बात से वो रोई थी...किस का सज़दा कर के वो सोई थी...प्यार की चोट इतनी गहरी चुभी कि वो 


हज़ारो कदम पीछे लौट आई थी...नाता-रिश्ता अब ना होगा,खुदा अपने से वादा कर वो तड़प के चीखी 


थी...उस की शिद्दत वो ना समझ पाया था...कैसे बताती उसे कि उस की बेरुखी ने उस को मार डाला


था...हमेशा कहती रही,ना बना मुझे महारानी कभी ना समझ नौकरानी कभी...जितना भी दे,हद मे दे... 


क्यों किया,किसलिए किया...इस बात से वो ज़ार-ज़ार फिर से रोई थी...

 देह के व्यापार मे,उस भरे बाज़ार मे...जिस्मों को रौंदा जाता है तो इन जिस्मों को बेचा भी जाता है..नन्ही 


मासूम बाला जो फंसी थी धोखे से इस जाल मे..बेबस और लाचार थी इस घिनौने माहौल मे...बेबसी का 


एक वो दिन,जब इक उम्रदराज़ इंसान ले गया खरीद कर उसे..बिलखती रोती चल पड़ी,अपनी 


बदकिस्मती को ऐसे देख के...कठपुतली थी वो उस के हाथ और अपने नसीब की..एक दिन उसी इंसान 


ने मांग सजा दी उस की अपने नाम से..कुदरत के इस फैसले को मान अपना नसीब, उस को साथी 


अपना बना लिया..नारी का एक रूप यह भी है..उम्र के फासले को उस ने आड़े आने ना दिया..प्रेम 


की गंगा बहाई ऐसी कि वो उम्रदराज़ भी उस के शुद्ध प्रेम का कायल हो गया..

 दोस्तों...''सरगोशियां''  आप के लिए लिखती है...समाज के लिए भी लिखती है..माता-पिता के प्रेम को भी महत्त्व देती है...कोशिश रहती है कि प्रेम के हर पहलू को शब्दों मे ढाल दू..प्रेम की अतिसीमा..प्रेम की अवहेलना..प्रेम मे दूरी..और भी ना जाने कितने रूप...जो यह कलम खुद भी लिखने से पहले नहीं जान पाती..बस उस ईश्वर का हाथ सर पे होता है और कलम लिखती चली जाती है...दोस्तों...हर लेखक अपने लेखन मे तभी खरा उतरता है जब  उस की रचना को पढ़ने वाले उस की सही-गलत समीक्षा करते है... हमेशा की तरह यह शायरा भी आप सभी से अनुरोध करती है..जहां पर कुछ भी कमी लगे मुझे बताए..यह ''सरगोशियां,प्रेम ग्रन्थ'' उस मुकाम तक तभी जा सकता है जब आप सब दोस्त साथ दे गे...मन करे तभी मेरे लेखन को सम्मान दे..यह शब्दों का ही जादू है जो बहुतो को सरगोशियां पढ़ने पे मजबूर करता है....यह इस शायरा की मेहनत और अपने उन तमाम दोस्तों के प्यार/सम्मान का ही नतीजा है कि ''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' बहुत दूर तक का सफर तय कर चुकी है..अभी और भी बहुत बाकी है....शुक्रिया दोस्तों....''आप की अपनी सी शायरा''....

 संग खेले संग बड़े हुए..कौन कब किस के प्रेम मे इक दूजे का मीत बना..वो थी उस की जीवन-रेखा..


उस को लगती थी अपनी भाग्य-विधाता..वो उम्र मे उस से जयदा थी..पर वो फिर भी उस का खवाब 


ही थी..ज़िद थी उस संग जीने-मरने की..वो समझाती पर वो उस को अपनी राधा कह बुलाता..यक़ीनन 


वो कृष्ण था उस का..झूम उठा उन का संसार..खिले आंगन मे फूल इक बार..उम्र का दौर आया जब 


राधा के बालो मे चांदी आई और चेहरे पे कुछ लकीरें भी आई..प्रेम का यह कौन सा रूप आया जब उस 


का अपना कृष्णा उस से दूर हो चला..क्या प्रेम महज़ इक देह का सौदा था..क्या देह-रूप ही सब कुछ 


था..वो टूटी तो इतना टूटी..फिर उभर नहीं पाई..पंचतत्व मे लीन हो गई और तब कृष्णा को बुद्धि आई..


प्रेम तो यह कही से ना था..क्या कृष्णा को सदा ऐसा ही रहना था...आज है वो राधा का दोषी,पर 


अब है सब सूना सूना और ज़िंदगी कृष्णा की हो गई खाली खाली...

 कहां हो तुम अब लौट आओ..ज़िंदगी तुम बिन गुजरती नहीं,पास मेरे आ जाओ...तेरा वो चेहरा रोज़ 


दस्तक देता है मेरे दिल के आईने मे...यह परिंदे भी तेरा पैगाम रोज़ देते है मुझे...मुहब्बत आज भी 


अधूरी है तेरे बिना...ज़न्नत का रास्ता भी रुक गया है तेरे बिन...मेरी पायल अब मुस्कुराती नहीं..नैनों 


का यह कजरा बहकता नहीं तेरे बिन...खिलखिला के हंसू तो आ कर अपनी बाहों मे थाम ले मुझ को...


सजने संवरने हो गए है शुरू तुम भी चलना शुरू कर हमारी-तुम्हारी मंज़िल की तरफ...

Sunday 20 September 2020

 वो मिली उस को मंदिर की सीढ़ियों पे..इक भिखारी के वेश मे...कौन है वो,यह जाने बगैर उस ने दिया 


उस को खाना इंसानियत के तौर पर..सुन उस की सम्भ्य भाषा वो चौक गया..सुन उस की दास्तां वो 


तो हिल गया...उस का साथी जो कभी उस के प्रेम मे पागल था,आज बीमार जान यहाँ मरने के लिए 


उसे छोड़ गया..एक वो इंसान था और एक यह भी इंसान है..ज़माने की परवाह किए बगैर वो संग उस 


को अपने ले आया...इंसानियत का रिश्ता कब पाक पवित्र बंधन मे बदला,यह सिर्फ ईश्वर ही जान पाया..


आज वो है उस की राजकुमारी और वो मंदिर की सीढ़ियों पे मिला उस का अपना राजकुमार है...

 मुद्दत बाद वो मिला मुझ को ज़िंदगी के उस मोड़ पे,जब हम भी अपने गमों की ख़ान मे मशगूल थे..


मुझे देख वो बोला,बहुत खुश दिखते हो..लगता है किस्मत तुम पे बहुत मेहरबान है...''हां दोस्त,सच मे 


किस्मत बहुत मेहरबान है मुझ पर''..काश,किस्मत मुझ पे भी मेहरबान होती यू ही,कह कर वो बेतहाशा 


रो दिया..उस की कहानी सुनी तो लगा वो ज़िंदगी से इसलिए हार बैठा है कि वो अब गरीब हो चुका 


है और सब ने उस से किनारा कर लिया है..पर हम बेतहाशा हंसे,सुन कौन अमीर होता है..कोई गरीब 


है दौलत से तो कोई सिर्फ दौलत के साथ भी गरीब होता है..छोड़ दे इन झमेलों को,यहाँ कौन किसी 


का अपना होता है...दास्तां जब हम ने अपनी उस को सुनाई तो वो बोला..''मेरा दोस्त दुनियाँ का सब 


से खूबसूरत अल्फ़ाज़ है''...




 दिल जो धड़का हमारा तो आसमां मे इक सितारा और चमक गया...हम हुए खुश कि किसी और की 


ज़िंदगी को नया रास्ता मिल गया...क्या यह धड़कनें इतनी बेशकीमती होती है..किसी के जीवन मे 


उजाला भर दे,ऐसे भी क्या धड़का करती है...हां,होती है.होती है..पाकीजगी से धड़के तो सिंहासन 


तो उस भगवान् का भी हिला देती है..हम भी तो उसी के आदेश से चलते है...हज़ारो जीवन मे गर 


सितारें भर दे तो खुद पे भी कभी कभी कुर्बान हो जाया करते है...

 कौन सी सुबह रही ऐसी,जिस की कोई शाम ना थी..और कौन सी शाम थी ऐसी,जो रात मे ना ढली..


रात के अँधेरे से घबराया,सोच यह काली रात कब दिन के उजाले मे ना बदली...सोच सोच का ही तो 


फर्क है...हर सुबह उठ नए इरादों से और शाम ढलने तक उस को पूरा करने का वादा खुद से कर..


फिर देख रात ना लगे गी काली और जी तेरा ना घबराए गा...यारा,यह ज़िंदगी है...जीने का जज्बा खास 


होना चाहिए...मुर्दा दिल कब इस ज़िंदगी का लुत्फ़ उठा पाते है..बस रोते रहते है और इक दिन रोते 


रोते ही मर जाया करते है....

 आ फिर से एक बार इस बरसात को और भिगो दे...यह अपने आखिरी दौर पे है,आ जरा इस को प्यार 


से गले लगा ले...विदाई दे ऐसी इस को कि यह हम को कभी भुला ना पाए...अगले बरस जब आए तो 


हम को हमारी यादों के साथ कुछ नया तोहफा दे जाए..चंद बूंदे इस की और आंचल तेरा मेरा...यह 


कभी चुप रह कर बरसती है तो कभी चीखती है ऐसे जैसे यह किसी बेइंतिहा दर्द से गुजर रही हो वैसे..


आ मिल के साथ इस का दर्द मिटा दे,शायद अगले बरस तक यह दुनिया का दर्द मिटा दे...

 फकीरी तू भी कमाल हो गई..हम को अपने साथ से बादशाह बना गई...हिम्मतों का दौर ऐसा दिया कि 


हम को रज़िया सुल्तान बना गई...दिया ऐसा ऐसा कुछ जो अमीरी भी हम को ना दे पाती..हम को धरा 


पे पांव ज़माना पक्के से सिखा दिया...तू खुदा है मेरी..ईमान है मेरी..तेरे साथ ने मुझे उस की इबादत मे 


सज़दा करना सिखा दिया...चुपके से कहे तेरे कान मे,तूने अपने वज़ूद से हम को चेहरे पहचानना सिखा 


दिया...धोखों से हुए वाकिफ और तकदीर से लड़ना तक सिखा दिया...

 आप से प्यार है इतना कि इक दिन आप के शहर आए गे और आप के प्यार मे अपने नेत्र-दान कर के 


खुद को साबित कर जाए गे...चुपके से देखे गे आप को,फूलों संग हँसते हुए...नज़र भर देखे गे आप को,


पौधों को पानी की ओस देते हुए...हम ने सादगी से समझाया उन को...प्यार स्वार्थ से बहुत परे होता है..


यह आप हमारे प्यार के लिए नहीं,अपने स्वार्थ को पूरा करने को करे गे..हम तो खड़े है प्यार के सब से 


ऊँचे से ऊँचे पायदान पे,जहां इस की कोई जरुरत नहीं...बस ईमानदारी से प्यार संग हमारे निभा 


दीजिए और अपने नेत्र-दान को किसी जरूरतमंद को दान दे दीजिए... 

 वो कौन थी ? अंदर से मर चुकी थी वो,फिर किस के लिए ज़िंदा थी वो ...किस के अधूरे खवाब को पूरा 


करने के लिए वचनबद्ध थी वो...तिनकों को समेटा तो हवा तेज़ हो गई...वज़ूद अपना संभाला तो क्यों  


ज़माने को नामंजूर हो गई वो ...तूफ़ान आते रहे बहुत गरज़ गरज़ के साथ..बचने के लिए आत्मविश्वास का 


इक नूर हो गई वो...कौन कहता है,टूट गई थी वो....जहां खड़ी थी जमीन बहुत मजबूत थी वो..जानते है 


कौन थी वो ? किसी शहशांह की मुमताज़ थी वो...मुमताज़ थी इसीलिए तो खास थी वो...

 जब भी आए अपने आप पे.. कभी मचा दी तबाही तो कभी रास्ते बदल दिए...ज़माना ढूंढता रहा हम 


को और हम ने गज़ब पे गज़ब कर दिया..किसी ने ढूंढा हम को धरा के कोने मे तो कोई हम को अपने 


दिलो मे ढूंढता रहा...प्यार की बोली बोले,मगर यह क्या..ज़माना हम को दीवाना पागल कहने लगा...


कुछ असूल है अपने भी,ज़माने को भी दिखा दिया...मासूम होना गुनाह तो नहीं..मिठास भर लेना खुद 


मे पाप तो नहीं...पाप-पुण्य के कायदे सिखाने पे जो आए तो गज़ब पे गज़ब हमी ने ढा दिया....

Saturday 19 September 2020

 प्रेम की परिशुद्ध परिभाषा.......

प्रेम इक एहसास है...

प्रेम जीवन का दूजा नाम है..

प्रेम दूजे को सुख देने का संगम धाम है...

प्रेम सकून देने का अमृत वचन खास है...

प्रेम साथी की ख़ुशी का पैगाम है...

प्रेम साथी के लिए कुर्बानी का नाम है...

प्रेम देह का मिलन भर नहीं...

प्रेम दिल का शुद्धिकरण है...

प्रेम अभिमान का नाम नहीं..

प्रेम साथी को मुसीबत मे समझने का नाम है..

प्रेम साथी की मज़बूरी को जान लेने का नाम है...

प्रेम वक़्त बेवक़्त दूर रहने का भी नाम है...

प्रेम नाराज़गी से परे संजीदगी का नाम है...

प्रेम नासमझी से परे समझदारी का विश्राम है...

''सरगोशियां'' इक प्रेम ग्रन्थ...इस प्रेम से बंधा पन्नों का वो नाम है...''शायरा'' रहे या ना रहे इस दुनियां मे,मगर यह प्रेम ग्रन्थ खुद मे सदियों तल्क़ चलने वाला प्रेम का पैगाम और सन्देश है....

 वादियों मे गूंज उठा मीठा सा शोर प्रेम का...वो बोले,यह क्या हुआ...प्रेम का शोर क्यों खिल गया...प्रेम 


तो साधना है,तपस्या है और इबादत का दूजा नाम है...फिर यह शोर कैसा जो मेरे कानों मे गूंज गया...


मेरे सनम,मेरे भोले सनम...प्रेम को तुम ने अभी कहां जाना..प्रेम का स्वरूप तुम ने अभी कहां पहचाना...


यह शोर नहीं,यह दो दिलों की आवाज़ है..जो सुनती है तुम को इक शोर के रूप मे..और मुझे,मंदिर की 


घंटियों की आवाज़ लगती है..प्रेम मे अभी बहुत कच्चे हो..जो शोर मंदिर की शोभा लगे,जो सिर्फ अपने ही 


दिल को एहसास दे..वही तो परिशुद्ध प्रेम है..देह का मिलन सिर्फ इस का अधूरा रूप है...

 मधुर धुन पे बजता हुआ इक गीत है हम....जो कल चमके गा बन के सितारा,ऐसा इक खवाब है हम...


भूल जाए तुझी को,ऐसे गुस्ताख़ नहीं है हम...पर हमेशा तेरे नख़रे उठाए,वो आफ़ताब नहीं है हम...


दूर कहां जाना है,इसी जहां मे ही रहना है..प्रेम इक शुद्ध संगम है,राधा कृष्णा के परिशुद्ध प्रेम से हम 


ने जाना है...सोना नहीं चांदी नहीं,हीरा भी तो नहीं..एक मामूली सा पत्थर है,जिस को तराशना किसी 


और से सीखा नहीं...तराशे गे खुद को अपने आप से,अहसान लेना हमारी फ़ितरत  ही नहीं...

 धरा पे रह कर धरा पे ही रहना..कुछ भी मिल जाए पर पांव इस धरा पे जमाए रखना...हां,बाबा के 


वचन याद रखते है...बुलंदियों की और जा रहे है तो आत्मविश्वास बढ़ाना होगा...तू इस को समझे मेरा 


गरूर तो नज़रिया तुझ को ही अपना बदलना होगा...ऊपर उठे गे हम तो विरले ही हमारी शोहरत हज़म 


कर पाए गे...अगर तू भी उन मे से एक है तो यक़ीनन हम तुझ से दूर हो जाए गे...ग़लत किया नहीं कभी 


तो क्यों बेवजह आसमान मे उड़ते जाए गे..नाम करना है रौशन बाबा का तो हर तकलीफ से गुजर जाए 


गे...

Friday 18 September 2020

 क्या हुआ जो दौलत के ख़ज़ाने ख़त्म हो गए..क्या हुआ जो ऐशो-आराम के साधन ग़ुम हो गए...क्या हुआ 


जो ज़माने ने हम पे दाग़ लगा दिए...क्या हुआ जो सब हमारे खिलाफ़ हो गए...जब ऊपर वाले ने साथ 


दे दिया तो ज़माने की क्या बिसात है...उस ने बेदाग़ साबित कर दिया तो ज़माने से क्या डरना...यह भी 


कोई रोने की बात है...एक दरवाजा बंद होता है तो वो दूजा पहले ही खोल देता है...जी ले जितना जैसा 


मन है तेरा,यह ज़माना तो सीता और राम को भी कहां बेदाग़ रखता है...

 किताबे-इश्क है मेरा..जो किताबो मे ही दफ़न हो जाए गा...होगी किताबे कितनी,यह तो मेरे मरने के 


बाद ही पता चल पाए गा...क्या लिख दिया,क्या बयां कर दिया...यह मेरे रुखसत होते ही जाना जाए गा...


इन कागजों पे स्याही किस दर्द की थी..यह स्याही किस ख़ुशी की महफ़िल से थी...यह सब मेरे बाद ही 


पता चल पाए गा...कद्र जिन को आज मेरी नहीं,तबियत मेरी किसी ने पूछी नहीं..इल्म ही नहीं मेरी अपनी 


रज़ा क्या है...उस रज़ा को कफ़न मेरा ढाप ले गा खुद मे ही..जनाज़ा उठे गा जिस दिन मेरा...जिस्म तो 


होगा दफ़न पर रूह का पिंजरा आज़ाद हो जाए गा...

 नैनो की भाषा दोनों नैनो ने समझी..पर फिर भी इक दूजे को देख नहीं पाए...एक रोया तो दूजा भी संग 


उसी के रोया...पर यह क्या,दोनों लिपट कर साथ संग रो नहीं पाए...दर्द भी था एक ही जैसा,तन्हाई के 


भी साथी थे..देखना चाहा इक दूजे को पर पास हो कर भी पास ना थे...दर्द गुजरा जब हद से जयदा तो 


जीने की राह एक ही थी...साथ उठे गे,साथ झुके गे...किस की हिम्मत इतनी जो रोक सके...तब से अब 


तक यह दो नैना,संग हँसते है,संग रोते है..एक शरारत कर बैठे तो दूजा भी उस के रंग मे ढलता है..


सच बोले तो इन की मुहब्बत देख मेरा दिल कुछ कुछ जलता है...

 वो संग संग चल रहे है हमारे,रेल की इन पटरियों की तरह...ना साथ है ना कोई दूरी है,बस मिलना नहीं 


कभी दो अजनबियों की तरह....दुनियां की भीड़ गुजरती रहती है हम दोनों के दरमियां...फिर भी क्यों 


तन्हा है हम दोनों अकेले पंछी की तरह...जोरों से चीख़े सुनाई दे जाती है जैसे बिजलियां कड़क के फिर 


दफ़न हो रही हो यहाँ...फिर छूट जाता है यह साथ...पटरियों पे चलती यह रेल जब पहुँचती है अपने देश 


अपने गांव...

 यह मौसम की कौन सी बेला है...पतझड़ चल रहा है या उदासी की कोई मायूस बेला है...सरसराहट सी 


है पत्तों मे और ख़ुशी दूर कही देख रही तमाशा है...बेवक़्त की बारिश ने कहा धीमे से कानो मे...कुछ भी 


सदा एक सा नहीं रहता है...यह पतझड़ यह उदासी का मौसम भी ढल जाए गा...मगर याद रखना,जो 


मिले गी ख़ुशी की महफ़िल..उस का दौर भी ना बहुत जयदा है..बेवक़्त जैसे मैं आई हू,ख़ुशी-दुखी भी 


ऐसे पंछी है...मुस्कुरा पहले की तरह,यह तो मौसम के बरसो पुराने रेले है...

 आसमां तो सदियों से ऐसा ही है...वो बदला नहीं..कभी कभार घिर आते है बादल या बरखा बरस जाती 


है...यह धरा भी कहां बदलती है..बस कभी धमाकों से हिल जाती है...सूरज भी हमेशा निकलता है...


फर्क सिर्फ इतना है कि तेज़ी मिजाज की कभी नरम है तो कभी बेहद गर्म...चाँद भी सदियों से कायम 


है..कभी वो आधा अधूरा है तो कभी पूरे शबाब पे है..फिर हम कैसे बदल सकते है...फर्क हम मे भी 


इतना ही है,कभी थके है काम के बोझ से तो कभी अपनी परेशानियों से घायल है....

Thursday 17 September 2020

 वो कहती रही और वो सुनता रहा...कभी मुस्कुराया उस की बात पे तो कभी उदास सा हो गया....


बदकिस्मती उस गौरी की थी,जो कहा रूह की ज़ुबान से...शिव समझ कह दिया सब कुछ,दिल 


अपने की ज़ुबान से...बदकिस्मत तो वो भी था,समझ से था कोसो परे...वो बनी थी नन्हे नन्हे से 


फ़रिश्तो के लिए...जन्म हुआ था उस का उन्ही की मदद के लिए...यह हवा का झौंका कुछ देर का 


ही मेहमान था...गौरी को समझ पाना शिव के लिए कभी आसान ना था...कदम उस के आगे बढ़ने 


लाज़मी जो थे...फरिश्ते उस की इंतज़ार मे पल पल बस हर पल जो थे...

 पैजनियां के घुंगरू बजते बजते बिखर गए...जहां भी बिखरे वहां वहां अपनी खास पहचान छोड़ गए...


जिस ने सराहा उन को, उन के लिए वो गीत प्यार का बन गए...जिस ने कीमत ना जानी इन की,उन के 


लिए वो सिर्फ घुंगरू रह गए...यह घुँगरू जब भी इक साथ सजते है पैजनियां मे,इन का वज़ूद महफ़िल 


को सजा देता है..यह बात और है,कोठे पे बजे तो नफरत का नाम हो जाता है...गौरी के पांव मे सज़े तो 


दिल  पिया का लूट जाता है..नृत्य को अर्पण करे तो भेंट बन जाता है....


 दूर बहुत दूर तक,चादर फैली है अरमानों की...आसमां ने बाहें फैला दी धरा की धूप छाँव पे...धरा 


खामोश है उस के इस अनजान अंदाज़ से..ख़ामोशी से देखा आसमां की तरफ और  अपने ही खामोश 


अंदाज़ से पूछ लिया,क्यों आज मेहरबान हो मुझ पर...दोनों ही खामोश थे..शायद ख़ामोशी ही उन दोनों 


की जुबान थी...शायद गुफ्तगू भी यही से इन की पहचान थी...तू है सितारा दूर का और मैं हू कण इस ही 


जमीन का...फिर भी जुड़ गए,आत्मीयता शायद इसी का नाम है...

Tuesday 15 September 2020

 किसी भी दरीचे से गुजरो तो भी शीश अपना नवा देना...यह पहचान तेरे वज़ूद की होगी...राह चलते 


किसी फ़कीर को सहारा देना,यह तेरी परवरिश की पहचान होगी...खुद की जेब भरी हो तो दिख जाए 


कोई जरूरतमंद,रख के थोड़ा सा अपने लिए...बाकी सब उस को दे देना..याद रख,तेरी कमाई मे बहुत 


बरकत होगी...प्यार की चाह रखने चला है खुद के जीवन मे..प्यार को हमेशा सहेजने का हुनर सीख 


लेना...नहीं तो प्यार की बहुत तौहीन होगी...बोल प्रेम के मीठे और पाक-साफ़ बोलना,क्या पता कुदरत 


ने चाहा तो तेरे प्यार की उम्र बहुत लम्बी होगी...

 '' सरगोशियां '' जब भी उड़ती है है कल्पना की उड़ान पे...साथ मे उड़ाती है इस से जुड़े हज़ारो लाखों 


सपनों को हकीकत के आसमान पे....किसी ने इस को पढ़ा तो कद्रदान इस का हो गया...किसी को 


यह भाई इतनी कि वो इस के शब्दों का दीवाना सा हो गया...कोई तो इस के प्रेम रंग से संवर कर 


अपने प्यार को पा गया..कितनों ने '' सरगोशियां '' को शुक्राना दिया की इस ने उन को  को बेहतर इंसान 


 बना दिया...अब कमाल तो देखिए ना इन तमाम शब्दों को..लिखते है इन पन्नों पे और हज़ारो बसा लेते 


है प्यार अपना इन की मौजूदगी मे...

 रेखा भी कैसी सी रेखा है...सीधी साधी समतल समतल...जैसी इक गौरी के दिल के जैसी...दिल जो 


धड़का संग पिया के तो रेखा हो गई ऊपर नीचे,बस बहकी बहकी नदिया के हलचल जैसी...छुआ 


प्यार से जब सजना ने,हाय दईया....यह तो घूम गई इक पहिए जैसी...आंगन खिला तो रेखा खिल गई 


मजबूती से,किसी बावरे मन के जैसी...वक़्त चला आगे तो रेखा बनी किसी अजीब हलचल के जैसी...


जीवन हारा साँसे हारी,रेखा बन गई फिर से सीधी सीधी समतल समतल..फिर ना कभी अब चलने वाली.

 मैं नहीं हू कोई स्वर्ग की अप्सरा..ना किसी के दर्द की कोई अनोखी दास्तां...हाड़-मांस से बनी है यह 


देह मेरी,जिस मे बसा इक वज़ूद मेरा...पलकें झुका कर उस ने अपने प्यार से अपने प्यार का ऐसा 


सीधा सा इज़हार कर दिया...शीशे से भी नाज़ुक़ है यह दिल मेरा...पर साफ़ भी उतना ही है,जितना 


पहाड़ो से झर-झर बहता जल भरा...धारा हू ऐसी प्यार की जो रुके गी ना कभी तेरे लिए...शर्त सिर्फ 


इतनी सी है,किसी और का ना होना कभी मेरे इस प्यार से परे....वो कदर करता था इस कदर उस की,


बोला,तू गर है धारा तो मैं भी तेरे ही संग बह जाऊ गा..किसी और का होना तो क्या,प्यार मे हर जन्म 


तेरे साथ जीने का वरदान भगवान् से मांग जाऊ गा...हम ने दुआ की इस मासूम जोड़े के लिए...


आखिर यह ग्रन्थ प्रेम का है,जहां से कुछ तो सीखा इन दोनों ने अपने लिए...

 तू मेरी जान है..तू ही मेरा जहान है..तेरे बिना मैं कुछ भी तो नहीं,यह मेरा तुझ से सच्चा वादा और यही 


मेरी पहचान है...प्रेम मे,मुहब्बत मे अक्सर यही बोल होते है...मगर यह बोल कितने और कब तल्क 


सच्चे रहते है...कभी दूर हो गए कि जिस्म के मेल रुक गए...कभी दूर हो गए कि दौलत के ख़ज़ाने ही 


ख़तम हो गए...कभी कोई किसी और के प्रेम मे चला गया,जैसे प्रेम ना हुआ कोई तमाशा हो गया...प्रेम 


इन सब से परे बहुत सकून का नाम है...जो प्रेम सकून ही ना दे वो भला प्रेम ही कहाँ है...राधा ना कृष्णा 


संग बस पाई,मगर दोनों के प्रेम की आज यह बेमिसाल पहचान है...नाम है सदा राधा का आगे और 


कृष्णा तो हमेशा उसी के प्रेम के साथ है...

 ''सरगोशियां'' प्रेम पे लिखती है तो हर रूप लिखती है...कभी प्रेम जनून है तो कभी प्रेम इबादत है..प्रेम 


कभी रूठा है तो कभी बगावत का भी नाम है...सिर्फ जिस्म को पाने पे धरा,यह परिशुद्ध प्रेम नहीं है..


जिस्म को हासिल करना,यह परिशुद्ध प्रेम का आधार कदापि नहीं है...जहाँ प्रेम का रिश्ता जिस्म की 


मांग से टूटे वो प्रेम ही गलत है...प्रेम तो सब कुछ मांगता है...पूजा,इबादत,त्याग,तपस्या और इक दूजे 


की इज़्ज़त का मान का..पावन सा झरोखा...समर्पण भी है मगर पाक दामन का साथ लिए..इक परिशुद्ध 


प्रेम ही तो है....

 शून्य मे डूबी वो निस्तेज आंखे,जो कभी भरी थी रसीली ख़ुशी से...वो देह जो होती थी कभी खूबसूरती 


की मिसाल,आज बिस्तर पे थी कितने ही दुःखो से घिरी...अपने पिया की खिदमत मे जो रहती थी हर 


वक़्त खड़ी,आज बेबस और लाचार है अपने ही पैरों की कमजोर कड़ी से बंधी...वो उस का साजन,आज 


भी उस को बेइंतिहा प्यार करता है...वो उस को आज भी अपना रब समझता है...खुद भी है उम्र की उस 


दहलीज़ पे जहां उस को अपने साथी की बहुत जरुरत है...हाल उस का क्या कहे यारों,वो तो उस बेबस 


के लिए आज भी पागल और दीवाना है...वो अपने पिया को पहचानती तक नहीं मगर उस का पिया 


आज भी उस की शून्य आँखों का दीवाना है...परिशुद्ध से भी परिशुद्ध प्रेम की यह मिसाल भी बेमिसाल 


है...

Monday 14 September 2020

 यह बिंदू भी कमाल है...माथे पे लगा तो नाम बिंदिया हो गया...माथे के ऊपर इक कोने मे लगा तो 


नज़र का टीका बन गया...कान के पीछे जो छुपा के सजाया तो माँ के लिए उस का बच्चा,सुरक्षित 


ज़माने से हो गया...पिया ने अकेले मे इस बिंदू को मांग मे भरा तो पिया का नाम साथ जुड़ गया...


यह बिंदू है या जादू की छड़ी....विधाता के मंदिर मे जो इस को लगाया तो पवित्र तन और मन सब  


हो गया...

 ओस की नमी से भरी तेरी गहरी आंखे...एक तरफ है दुनियां सारी और दूजी तरफ तेरी यह काली काली 


मदहोश सी आंखे...देखा कुछ ऐसा बारीकी से कि दुनियां को नज़राना देना भूल गए...अरमानों से भरा 


टोकरा तेरे हवाले कर दिया....अहसासों का महका सा चमन तुझी पे वारी वारी कर दिया....प्रेम की यह 


महिमा तो ऊपर वाला ही जाने..हम ने तो शुद्ध मन से उस की इस रचना को तेरे नाम कर दिया....नमी 


भर के अपनी इन आँखों मे मुझे यू ना देख...रोने का अब मन नहीं,ख़ुशी का यह आंचल भर दे अब,जरा 


मेरे लिए..

Sunday 13 September 2020

 तेरे प्यार तेरी मुहब्बत का इक खूबसूरत सा महल सजा लिया हम ने...तेरे ही साथ जीने का खास जज़्बा 


बना लिया हम ने...मुहब्बत का यह महल जानते हो,किस पे खड़ा है..जानम ,यह तेरी इबादत और मेरी 


इबादत की डोर पे खड़ा है...ख़ुशी के कुछ फूल चुने हम ने और तुझी को नज़र कर दिए...अपने भी ना 


हुए,बस तेरी ही धुन मे तुझी को समर्पित हो गए...कौन है हम,यह भी तो भूल गए...जानम,अब तुम ही 


बता दो हम कौन है तेरे...कितनी सदियों से तेरे हो गए...

 सुन मेरे सजना...नज़दीक जरा आ मेरे,तेरे कानों मे कुछ कहना है....जो भी कहना है,बहुत ही धीमे से 


कहना है...तू है मेरा दीवाना पागल,इस बात को विस्तार से कहना है...मेरी शरारत भरी आँखों पे ना जा..


आ पास मेरे,इन मे तुझी को गहरे तले तक उतार देना है...नशा मेरा कभी कम ना पड़े,तुझे हर पल गहरी 


खुमारी मे रखना है...कभी चंचल हू मैं,कभी नदिया सी धारा हू मैं...तेरे लिए कभी जोगन बनू तो कभी 


राधा तेरी बनू...तू सिर्फ और सिर्फ मेरा अरमान रहे और मैं तेरी आरज़ू का बेइंतिहा खज़ाना रहू...

 तुम को बचपन की उस नोंक-झोख का वादा निभाना होगा...मिट्टी से सने मेरे तेरे पैर,उन को धोने के 


लिए तुम को आज फिर मेरे पास आना होगा...जानती हू,बदल चुका है अब मेरा तेरा जीवन..कुछ दर्द 


है पास मेरे तो कुछ खुशियाँ है तेरे रास्ते...बचपन का वो मासूम सा नाता,कितने छोटे छोटे वादे..और 


मुस्कराहट हद से जयदा..हर छोटी सी बात पे जोर से हंसना और दुनियाँ से बेखबर रहना...कोई क्या 


बोले गा इस से परे अपने मे जीना...आज तुम से मिलने का मन होता है तो दिल बहुत कुछ सोच लेता है..


तेरी दुनियाँ आबाद रहे,तेरा संसार खुशहाल रहे..पर बचपन का वो मासूम नाता हमेशा वैसे ही कायम 


रहे...

 यह नन्हा सा दिल जो बुझने लगा था चुभते खंजर के तले...तूने अहसास दिलाया,मैं हू ना साथ तेरे...


यह दिल का आईना तेरी बातों से फिर निखरा...नख से शिख तक मेरा जिस्म फिर महका...क्यों फिर 


जी हुआ तेरी बाहों मे सिमट-सिमट जाए...तेरे हर लफ्ज़ के कायल हो जाए...हर वो दास्ताँ जो भूल चुके 


वक़्त के इस सागर मे फिर से इस को याद कर ले...जवाबदेही ना तेरी तरफ से हो ना मेरी और से...


कुदरत साथ तेरे भी हो और साथ मेरे भी हो... मेरी नासमझी पे गरूर तुझे आज भी हो...दिल जो है 


इतना छोटा सा,यह तेरी मेरी बातों से कभी खामोश ना हो...

 सफ़ेद लिबास है पहचान तेरी...एक क़तरा आंसू मुझ पे गिरा देना,यह आने की खबर है तेरी...तेरी इस  


आहट की पहचान है मुझे बरसों से...इंतज़ार होती है मुझे हर बार तेरी आहट की...ना तूने कुछ मुझे 


कहा कभी और ना कभी तुझ से मेरी कभी कोई बात हुई...फिर भी जो तुम ने कहा वो सब मैंने सुन 


भी लिया....मुझ से जुड़ना तेरा और मुझे तुझी को याद रखना सदा ...नाम बेनाम कुछ भी तो नहीं...


पर दूर तक बहुत दूर तक,यह कौन सी चादर है जिस का सिरा ना तुझ को पता और ना मुझ को 


है कोई खबर..

Sunday 6 September 2020

 यह बावरा सा मन मेरा...यह शरारती सा दिल मेरा...उड़ने लगा हवाओं मे ऐसे ,जैसे कोई गम इस के 


पास ना था...इन खुले गेसुओं को छोड़ दिया महकने के लिए...अपनी आँखों के काजल को बिखरने 


दिया पलकों की छाँव तले....बहुत दिनों से पायल को देखा नहीं..कुछ दिनों से अपनी बादशाही से 


किसी का दिल जीता नहीं..खिलखिला कर हँसता हुआ कोई चेहरा,कितने दिनों से देखा ही नहीं..क्यों 


बेज़ार है यहाँ हर कोई जीवन के झमेलों से..बावरा मन बोले मेरा,तक़दीर का लिखा कभी मिटता नहीं..


मत बना रोनी सी सूरत,तक़दीर से जयदा और वक़्त से पहले किसी को कुछ मिलता ही नहीं...

 उठ जा ना,यह वक़्त सोने का तो नहीं...कर सिंगार अपनी ख्वाइशों का और गमों को अलविदा कहने 


का....यह ज़िंदगी ना बहुत शातिर है,जितना भी बस चले इस का, यह अपने इशारों पे नचाती है...जब 


कोई खुश होने लगे यह अचानक कुछ ऐसा कर देती है,घुलने लगता है दिल और अरमान खफा हो 


जाते है...नसीहत देते है तुझे,अपने चेहरे की मुस्कान ना गायब करना...यह ज़िंदगी बस इसी मुस्कान 


से डरती है...मासूम बेखबर रहना मगर इस ज़िंदगी के सफ़र मे मजबूती से उतर जाना...

 मेरी फकीरी और तेरी अमीरी ...कितनी पास पास है..ज़िंदगी की यह राहें भरी है काँटों से,पर देख ना 


साथ मे कुछ फूल भी है...कोई दूर तक साथ हमारा दे या ना दे,पर हम खुद के साथ आखिरी दौर तक 


है..यह फकीरी भी अजीब शै है,दिल का शीशा साफ़ करती रहती है...ठोकर मिले कही से भी पर यह 


अपने शीशे पे धूल ना जमने देती है...यह फकीरी सिक्को को तब्बज़ो कहां देती है..थाली सजाती रहती 


है कुदरत इस के लिए खुद ही,तो यह अमीरी का आईना कहां देख पाती है...

 बेपनाह मुहब्बत बिखरी है इन अनजान सी राहो पे...क्या कोई फरिश्ता आने वाला है...महक भर 


रही है इन साँसों मे..क्या कोई हमारा आज होने वाला है...क्यों दिल चाह रहा है,खूब संवर जाए...


कुछ गुलाब हाथो पे हो और उस आने वाले फरिश्ते पे बरसा जाए...बोले कुछ भी नहीं पर यह लब 


और इन की भाषा वो समझ जाए...अगर उस फरिश्ते के आने का अंदेशा हम को ना होता तो यह 


मौसम इतना खुशगवार ना होता...आने मे वक़्त लगा रहा है वो,शायद उस की साँसों का पैमाना भी 


उस को अंदर तक समझा रहा होगा  कुछ....

Saturday 5 September 2020

 खुशनुमा है आज की शाम...सावन का कोई बचा हुआ टुकड़ा,बरसने को तैयार है आज की शाम...यह 


बचा सा बादल बरसे गा कितने जोरों से..कि इस का मकसद खुद को साबित करना है...धरा को कितना 


भिगो पाए गा और यह धरा सूनी सी, क्या और कितना भीग पाए गी...शायद यह टुकड़ा खुद को आज भी 


साबित नहीं कर पाए गा...धरा की कठिन परीक्षा मे शायद ही सफल हो पाए गा...

 तुम ही गुरु तुम ही दाता..तुम ही हो पालनहार मेरे...संस्कारो की इतनी बड़ी पोटली बांध दी संग मेरे..


जीवन भर के लिए...कभी डगमगाए जो कदम,संस्कार एक संभाल गया...टूटा दिल और रोई जब यह 


आंखे तो बाबा तेरी बात फिर आई याद मुझे...यह दुनियां किसी की भी नहीं तो लाडो मेरी,तू क्यों रोती 


है...थाम क़िताबों का साथ हमेशा,यह सारे सपने तुझी को जीने है..पन्नों पे लिखना प्रेम की भाषा,शायद 


कोई कभी सुधर जाए..नाटककार है हर इंसान यहाँ,विरले ही सच्चे मिलते है...तेरे पास देने को कुछ है 


गर ,तभी पास तेरे आए गे...वरना तेरे नाम की धज़्ज़िया उड़ा कर तुझे बदनाम करते जाए गे..

 राज़ की बात सुने गे जरा..वो बात है इतनी ख़ास क्या सुन सके गे जरा..हज़ारो फूल महके गे,कितने 


मोती लब पे लहरे गे..क्या पहचान सके गे आप..कुछ तन्हाईयाँ अंगड़ाइयाँ ले रही है ख़्वाबों मे..कुछ 


सपने सज रहे है दिल के आंचल मे...लोग बरबस हमारी बलाईया लेने लगे...जिस राह से गुजरे,वही 


पे सज़दा करने लगे..तेरे दिल के जलने की महक मुझे आ रही है यहाँ तक..वो गुस्से से भरी आंखे दिख 


रही है यहाँ तक...चल छोड़,राज़ की यह बात अब बताए गे ना तुझे.....

 क्यों हुआ दर्द इतना,जब हम ने दूरी बना ली आप से....क्यों तड़प उठे इतना,जब अज़नबी हम हो गए 


आप से...दर्द तो दर्द ही होता है...वो कहां कम तो कहां जयदा होता है...सावन बरसे बेशक कभी जोर 


से या बरसे ना कभी कितने दिनों के फेर से...पर सावन का नाम तो सावन ही होता है...सर्द मौसम हो 


बेइंतिहा से परे या हो गुनगुनी धूप से सज़े..वो मोसमे-सर्द ही होता है...गर्म लू चले या पसीने से भर जाए 


बदन,मौसम गर्म ही होता है...सुनिए जनाब,अब आप भी हमारी तरह जरा दर्द सहना सीख लीजिए....

 वो कहते है आसमां तो सारा हमारा  ही है..धरा के हो तुम इसलिए कभी-कभी आना हो जाता है ...


इतना गरूर आसमां पे रहने का...हम ने सहजता से कहा,मुबारक हो आप को आप का आसमां...


मत आया कीजिए हम से मिलने..आसमां की परियां होगी आप की,शायद बहुत खास भी होगी..


हम ने धरा को पूजा है माँ की तरह,बेशक आसमां खवाब और इंतज़ार हमारा भी है...तुम ने छोड़ 


दिया धरा को आसमां पाने के लिए...पर हम धरा माँ की इज़ाज़त के बिना आसमां को छुए गे भी नहीं..

Friday 4 September 2020

 यह सितारे गर्दिश मे कहां रहते है..यह तो रहते है वहां,जहां दिलों के आंगन आबाद रहा करते है...


समझो तो यह गर्दिश मे है,मानो तो यह तन्हाई मे है...कभी पूछा इस ज़िंदगी से,तेरा बसेरा अभी और 


कितना है..वो ना बताए गी कभी क्यों कि उस को तो कभी भी चले जाना है..हर रोज़ लेते है इस को 


सर आँखों पे,इस की दुआ से जीते है इस देह के मयखाने मे...इस ने इक दिन चुपके से चले तो जाना 


है,फिर क्यों ना रोज़ इस का सिंगार करे...इस को बेइंतिहा प्यार करे...इंसा कब प्यार का सिला प्यार से 


देते है...खूबसूरत है यह ज़िंदगी जो हम को हर पल खुश रहने की कला सिखाती है...गर्दिश मे नहीं 


यह सितारे,यह तो आज भी है साँसों के द्वारे-द्वारे...

 सब कुछ खो कर भी ख़ुशी-ख़ुशी जीना...यारा,यह भी तो अंदाज़े-खास है...बेवजह खिलखिला कर हंस 


देना..वल्लाह,कैसा सा आफ़ताब है...देखा आज किसी को ज़िंदगी से रुखसत होते हुए,रोना तो जैसे 


इन आँखों ने बंद सा कर दिया...सकून मिला इतना कि जैसे वो कितना आज़ाद हो गया...ना तड़प से 


कोई वास्ता ना झंझटो का कोई रास्ता...कितने हाथ उठ रहे उस को विदा देने के लिए..मुस्कुरा दिए 


क्या तब भी इतने हाथ थे उस को कुछ ख़ुशी देने के लिए...यारा..यारा..सुन मेरे यारा...इसलिए तो इस 


बेवफा ज़िंदगी से प्यार इतना कर रहे..कौन जाने कितने होंगे जो सिर्फ एक आंसू भी शायद बहा दे 


हमारे लिए...रुखसत तो वो हुआ मगर हम अकेले मे ज़िंदगी पे मुस्कुरा दिए...

 कुछ गिला ही ना था पर ज़िंदगी जीने का अंदाज़ बदल सा गया था...तेरी खुशियां बस तेरी है,मेरा 


वज़ूद आज भी वैसा है...वही गुजारिशें वही लम्हे..जो साथ थे मेरे बरसों से...यह ज़िंदगी बस इक 


किताब ही तो है..मेरे पन्ने मेरे है और तेरे पन्ने तेरे अपने है...हम ने पन्नो को संभाल कर रख दिया 


अपनी उसी पुरानी सी अलमारी मे...जो आखिरी सांस तक रहे गी साथ मेरे...किस ने कहा कि चिता 


मे सब नहीं जलता...जल जाता है सब कुछ जो जीते जी हासिल ही नहीं होता...

 आकाश की तरह था उस का आंचल...हल्का नीला और फैला हुआ चारों तरफ...अश्क की कुछ बूंदे 


गिरा दी उस ने उजड़ी हुई धरा पर...ताकत है कितनी उस के अश्के-हुनर मे,निहारना था बाकी उस 


की किस्मत के शबाब मे...वक़्त उठ गया खुद की चाल से और वो बूंदे अश्क की हो गई आबाद...


जज्बातों का बसेरा तो उस ने जन्मा दिया पर क्या रुख ज़िंदगी का उस ने किसी का बदल दिया...


आंचल तो आज भी है नीला और फैला हुआ..क्या जज्बातों की कारागिरी उतनी ही मजबूत है..

 वो मेहमान नवाज़ी  तो ना थी..मील के पत्थर की तरह बेवजह की ख़ामोशी ही थी...गुज़र गया अरसा 


 मगर बेपरवाही आज भी वैसी ही थी...तन्हाई मे कोई गीत पुराना सुना तो आंख क्यों उस की भर आई 


थी..जज़्बात मेहमान नवाज़ी की बेला पे भी खामोश थे...कुछ चुरा कर अपने हसीन खवाबों से,वो लाई 


थी...मुन्तज़िर तो नहीं मगर रौशनी फिर अँधेरे मे उभर आई थी...गहन ख़ामोशी थी पर रात की कालिमा 


अभी भी वैसे ही छाई थी...


Thursday 3 September 2020

 गुनगुना संग मेरे..ज़िंदगी ने आज फिर ख़ुशी से पुकारा है..साँसों की रफ़्तार ने फिर से आज गगन 


और आकाश को पुकारा है...मंदिर की घंटिया बजने लगी..यू लगा जैसे कुदरत हम को कोई वरदान 


देने लगी...करधनी क्यों आज कमर पे बेइंतिहा सजने लगी....माथे का झूमर झिलमिला उठा...होठों पे 


कोई प्रेम गीत खुद से ही गाने लगा...पलकें झुकी और यह आंखे हंसी..वाह,कैसा संजोग है...बिन पिए 


मदहोश होने लगे,ज़िंदगी तू भी तो कमाल है...है तू बहुत खूबसूरत,मशआलाहा ..कमाल पे कमाल है...


 राज़ की वो एक खूबसूरत शाम थी...तन्हाई थी मगर फिर भी मुस्कुराई शाम थी...बेवजह तकरार ना 


हो इस ख्याल से वो शाम नींद के खुमार मे थी...सितारे झिलमिला उठे पर क्यों वो शाम रात पे जाने 


को तैयार ना थी..रात से डरने लगी थी वो,फ़ूलों के मुरझाने से खौफ खाने लगी थी वो...बहुत प्यार था 


उस को फ़ूलों से,शायद इसीलिए रात को रोकना चाहती थी वो...इस ख्याल से रात को अपना लिए...


कल की सुबह फ़ूलों को संग फिर लाए गी..यक़ीनन, राज़ की यह खूबसूरत शाम तन्हाई मे फिर से 


मुस्कुराए गी....

 तड़प के जो मदहोश हो जाए वो शब्द हू मैं...जो भर दे जादू ज़िंदगी मे वो हल्की सी खलिश हू मैं...


जो रात-रात भर सोने ही ना दे ऐसी हुस्ने-मल्लिका हू मैं..जो दिन को बदल दे शाम के धुंधलके मे, 


खुदा की ऐसी सौगात हू मैं...अपने पे जो आ जाऊ तो कहर का इक नाम हू मैं...बदलना सीखा है 


मगर तोहमतें कोई लगा दे ऐसी,तो वापिस उस राह लौटना मंजूर ही नहीं...हुस्ने-मल्लिका कहते है 


लोग मगर गरूर का कोई सामान मेरे पास नहीं..चंचल छाया हू परवरदिगार की,जिस राह से निकलू 


खुशियों छोड़ दू वही...तभी तो  मिला कुदरत से नाम हुस्ने-मल्लिका मुझे...

Wednesday 2 September 2020

 सावन चला गया और हम तुझी को पुकारते रहे...बादल बरसे रात-रात भर मगर हम तो रात भर जागते 


ही रहे...बिजली कड़की इतनी जोरों से,हम खुद से सम्भल ही ना पाए...बेबसी मे रोए फिर भी नहीं,बस 


शीशे के टुकड़े खिड़की से फिर नज़र आए...तागीद सावन से फिर भी की,आना हर साल दुबारा तुम..


हम बेशक जागे तो जागे पर सावन के यह नज़ारे हो सहज औरो के लिए...चुनरी को कोरा रख दिया 


यह जान के..रंग सावन के जब बिखरे चारों तरफ तो कोई तो चुनरी कोरी होनी चाहिए .....

 रात रात भर जाग कर करवटें ना बदल,यह रात बेईमान हो जाए गी...फिर सुबह होने पे ना ले यू खुद 


से अंगड़ाई कि सूरज की रौशन किरणें तुझी पे कुर्बान हो जाए गी...अब ना देखना आईने मे अपनी यह 


मासूम सलोनी सूरत..फिर ना कहना यह आईना ज़िक्र मेरा सभी से करता है...कुछ सिला तो दे उन 


सभी के लिए जो तेरे दीदार के लिए सड़कों की खाक छाना करते है...माना तू है हुस्ने-मलिका,मगर 


गरूर इतना भी ना कर कि कभी कोई तेरा हमदम बनने के लिए तैयार ही ना हो...

 ना वो खूबसूरत थी,ना वो बदसूरत थी...वो ना इस लोक की थी,ना वो दूजे लोक की थी..ना बाला थी,ना 


अल्हड़ मस्त उम्र की दहलीज़ पे थी...सर से पांव तक,उस को जिस ने भी देखा..वो सब की समझ से 


परे बहुत परे थी...वो मशाल लिए हाथ मे,क्या दुर्गा का कोई रूप थी...गहरा तेज़ चेहरे पे लिए,किसी के 


लिए वो माँ स्वरूप थी...ना जन्मी किसी की कोख से,ना पली किसी के हाथों मे...मगर फिर भी वो सभी 


के लिए खास थी...उम्मीदों के दीए जला कर सभी के लिए,वो दूर खड़ी सिर्फ मुस्कुरा भर रही थी...

Tuesday 1 September 2020

 पंख तो थे पास उस के,तो वो उड़ क्यों नहीं पाई...खुला आसमां था सामने बाहें फैलाए,मगर वो उस 


को देख ही नहीं पाई...बेहद ही खूबसूरत और मासूम थी वो,पर आईना कभी देख नहीं पाई...था किस 


का इंतज़ार उस को, जिस के लिए वो ताउम्र किसी और की हो ही नहीं पाई...भरे थे सामने उस के 


ऐशो-आराम के सभी साधन,पर वो फकीरी का लबादा ओढ़े खुद से बेखबर और क्यों अनजान थी...


हां,वो अपने पिया की वो मीत थी,जो था आसमां के उस पार और वो उस के इंतज़ार मे सदियों से 


मशगूल और बेचैन थी...

 यह स्याही भी क्या अजीब शै है ना...रंग हो जितने, लिखती है उन रंगो से कही जयदा रंग..कभी ख़ुशी 


का रंग,कभी मुहब्बत के रंग...कभी अपने पे आ जाए तो समाज की धज़्ज़िया उड़ा देती है यह स्याही 


और यह रंग..रंग हो लाल तो मुहब्बत को लिख देती है..सफ़ेद रंग मे जो ढले तो शांति की गुहार लगाती 


है..काला रंग इस को भाता नहीं मगर फिर भी शोक की घड़ी मे खुद से रो देती है वो...इंद्रधनुष की तरह 


बिखरना चाहती है यह स्याही और यह रंग...फैला दे चारो तरफ यह सारे रंग और कलम लिख दे प्यार 


के तमाम अनूठे रंग...

 कल तल्क़ जो उठा रहा था नाज़ हमारे...हमारी हर बात को दे रहा था इज़्ज़त और बता रहा था शहज़ादी 


हमे...जो हम कहे मान लेता था वो...जिस जगह रख दे कदम,वो जगह सज़दा करता था वो...कितने ही 


खामो-ख़याली मे इतरा रहे थे हम..कितने ही खुश थे,खुद को भी बता नहीं पा रहे थे हम...अचानक एक 


दिन ''तुम हो छोटी जात के''..कह कर हम से किनारा कर लिया..जात-पात का बंधन,प्यार मे कब कहां 


होता है...रुखसत हुए उस के प्यार से...पर यारा,ज़िंदगी कब रुकने का नाम है..आज जिस ओहदे पे 


खड़े है हम,वहां ऊँची जाती वालो के साथ हमारा खासा नाम है..सज़दा करते है वो हमारा ,जिन का 


समाज मे अपना एक रुतबा और ऊँची शान-बान है...

 वो बड़े ही गरूर से अपनी ज़िंदगी को जीते रहे...खुद पे गुमान इतना कि हर किसी को खुद से छोटा 


समझते रहे..गरूर क्या इस देह का..गरूर क्या दौलत का...गरूर क्या अपने महकते आशियाने का...


कैसे बताए,कैसे समझाए...यह सब इक दिन राख़ हो जाना है..साथ कुछ भी नहीं जाना है..जान अपनी 


तुम पे निछावर करते रहे पर तुम इन सब गरूर से कभी ऊपर ना उठ सके...और हम बहुत तहजीब से 


उन की ज़िंदगी से दूर बहुत दूर हो गए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...