Saturday 29 July 2017

जान कर हमे क्या करो गे----दिल ही टूटे गा और हमे मजबूर सोचो गे----ज़िन्दगी कहाँ रूकती है सज़ाए

देने से,हर मोड़ पे दबोच ही लेती है----रेत के महल बनते है और अक्सर टूट जाया करते है,नम आँखों से

बिखरते देखा करते है----मुस्कुराहट आज भी दुनिया का दिल जीत लेती है,आँखों की शोख़िया दिल पे

बिजलियाँ आज भी गिरा जाती है---वल्लाह,यह ज़िन्दगी आदत से अपनी ना बाज़ आती है,और हम है

कि इस के नाज़ उठाते नहीं बस शिद्दत से मात देते रहते है-----

Thursday 27 July 2017

ज़ज़्बातो मे पिघलते हुए अल्फ़ाज़ तेरे,दामन से लिपटे तेरे बेखबर अंदाज़ मेरे----यूँ तो मुहब्बत तेरी

बेवफा नहीं,मेरी रूह की ताकत से जयदा कही खिदमते-वफ़ा है मेरी---जन्म बार बार लेते रहे,तुझी से

तुझ को पाने के लिए---कभी रोशन हुए,कभी तन्हा रहे.. कभी यूँ ही तुझे बस निहारते ही रहे---पाक

मुहब्बत के मायने तुझे समझा जाए गे,सितारों मे कही दूर किसी रोज़ छिप जाए गे---तेरी नज़रो मे

अपना अक्स ढूंढे गे,अल्फ़ाज़ तो फिर भी पिघले गे..मगर दामन मे तेरे नज़र नहीं आए गे----
ना छेड़ तार मेरे दिल के,मेरी मुहब्बत का गुलाम हो जाए गा---ना कर गुमान अपनी पहचान पे,मेरे

मोहपाश मे बंध कर तू खुद को ही भूल जाए गा---लौटना मुमकिन नहीं पास तेरे ----यह कहना तेरा

बेकार है----कुछ इबादत मेरी,कुछ चाहत मेरी .. पलकों की चिलमन मे यह आंखे भरी हुई मुहब्बत

मे तेरी----शायद काफी है तुझे पास मेरे लौट आने के लिए---फिर ना कहना कभी कि लौटना अब

मुमकिन नहीं-----

Wednesday 26 July 2017

ना लगाओ काजल कि यह रात गहरा जाए गी ---ना बिखराओ  गेसू कि रात शर्म से मर ही जाए गी ----

दुप्पट्टा लहराओ ना हवा मे इतना कि हवाएं रुख बदलना भूल जाए गी---ना मुस्कुराओ अब इतना यह

परियां कही की ना रह जाए गी---इतनी नज़ाकत से जो धर रही हो पाँव ज़मी पे इतना,होगा आसमां को

झुकना और यह ज़मी----यह ज़मी तो आप के कदमो मे कुर्बान हो जाए गी----
कुछ तो बोलिये मेहरबाँ मेरे,राज़ दिल के खोल दीजिये---क्यों खामोश है इतने,ज़रा ज़ुबाँ को गुफ़तगू तो

करने दीजिये----गुजर जाता है वक़्त अक्सर यूँ ही,खामोशियो मे रहते रहते---दिल जुदा हो जाते है बस

अहसासों को दबाते दबाते----नाम तुम ना ले सके,हम पर्दा-नशी क्यों रह गए---मंज़िले हो जाए गी अब

जुदा,सैलाब रुक ना पाए गे---कर दीजिये ऐलान अब प्यार का,रिश्ते को खास नाम अब दे दीजिये---

Friday 14 July 2017

कहानी ज़िन्दगी की लिखते लिखते हज़ारो पन्ने भर दिए----हिसाब माँगा जब इसी ज़िन्दगी ने हम से

खामोश क्यों यह लफ्ज़ हो गए---टूटन भरी जब इस जिस्म मे,अश्क भी जिस्म से हिसाब मांगने लगे

लम्हा लम्हा कतरे बहे और वज़ूद से टकरा गए---कल हम रहे या ना रहे,निशाँ कुछ ऐसे छोड़ जाये गे

खुले गी परते अतीत की और हम हवाओ मे कही दूर गुम हो जाये गे ---

Wednesday 5 July 2017

बहुत चाहा ज़ख्मो को ज़ख़्म ही रहने दे,नासूर ना बनने पाए---अश्को को आखो मे ही पी जाए,बाहर

फिसलने ना दे---चाही बस थोड़ी सी ख़ुशी,थोड़ी सी हसी और जीने के लिए ज़िन्दगी रहे इबादत से

भरी---पर हम करते रहे इबादत,कि कही दिल का  गुबार जहाँ मे तबाही ना ला दे---तोड़ने वालो को

अब खुदा हाफिज,कि अब मकसद बदल चूका जीने के लिए--टुटा है यह गुबार और अश्क......यह तो

अब निकल चुके राहे-तबाही की तरफ----

Tuesday 4 July 2017

ज़ुबाँ  के मासूम तारो पे,कभी लफ्ज़ सिखाए थे ओस की महकती बूंदो की तरह---अल्फ़ाज़ लिखाए

थे हमेशा किसी मंदिर की पूजा की तरह---पनाहो मे अपनी रखा था हमेशा दुनिया की नज़रो से दूर

कुरान नहीं,गीता नहीं,वाहेगुरु और तमाम धर्मो की बाते,फूलो की तरह बरसाई थी हर रोज़---अंदर

तो मेरे आज भी बसा है उन का धयान,कि साँसे जब भी जाए गी तो गिला नहीं होगा कि कभी छोड़ा

नहीं खुदा,भगवान और वाहेगुरु का नाम---
प्यार तो इक  नियामत है,कुदरत का इक तोहफा हे ---दौलत के नशे मे,रुतबे  को हासिल करने के

ज़नून मे अक्सर प्यार को खो देते है लोग---वो दिल जो कभी धड़कते थे दुआओ के साथ,जो लेते थे

सांस बस इबादत के साथ---अब तो समझने के लिए ज़िन्दगी जा रही है,किसी और ही मकसद की

तरफ---जहा दुआए तो रहे गी,पर अब हज़ारो मासूम ज़िन्दगियों की तरफ ..

Sunday 2 July 2017

कहते है खुदा जिस को,भगवान का रूप है..कही मस्जिद कभी मंदिर कभी गुरूद्वारे मे तो कभी चर्च की

जगह पूजते है लोग...मन्नंते इस विश्वास से मांगते है लोग,यकीं होता है तभी तो सर झुकाते है लोग

जब लगे कि अब रास्ता  हो गया इतना कठिन,यकीं किसी पे ना करना इस दुनिया मे...कि कदम कदम

पे दे रही यह दुनिया दगा...जब भी झुक गए हम तेरे सज़दे मे,तूने निकाला हर मुसीबत,हर परेशानी से

मुझे...आज दे रही शुक्राना तुम्हे...मै अकेली कहाँ,मेरी ताकत बने तुम बैठे हो मेरे ही अंदर कही..
खलल न डाल मेरी इबादत मे,तुझे मेरे रब दा वास्ता है---ख़ामोशी से सही पर रब से मुझे मांग ले

तुझे मेरी चाहत का वास्ता है----कभी ना किया इज़हारे-मुहब्बत कि दिल की धड़कनो ने कहा,रह जा

खामोश तुझे तेरे वज़ूद दा वास्ता है---बस खिल गए तुझे देख कर,सज़दे किये तेरे कदमो की चाप पर

अब तो मेरी इबादत मे तू खुद को शामिल कर ले,तुझे मेरे रब दा वास्ता है---

Saturday 1 July 2017

कभी जो दे गई यह ज़िन्दगी दगा,दामन मे तो तेरे लौट आये गे---बहुत कुछ बहुत कुछ है बताने के

लिए,क्या छिपाए गे और क्या बोल पाए गे---बहुत दर्द मिला अपनों से यहाँ,बेगानो को क्या इलज़ाम

दे पाए गे---तुम होते साथ तो इल्ज़ामो के घेरे मे ना घिरे होते---इक शंहशाह की मुमताज़ बने, अपने

ताजमहल की रौनक होते--सितारों से भरा होता आज दामन हमारा,तेरी आगोश मे कही दूर बहुत दूर

ज़न्नत की सैर पे निकल जाते ----
जीवन के हर मोड़ पे,उम्र के हर दौर मे...माँ..तुम साथ थी मेरे,तेरे हर अहसास से साँसे चलती  रही मेरी

तुम ने जो चाहा,मैंने दिया तुम को...पर तेरा साथ फिर भी ना मिल सका मुझ को...जननी नहीं तुम मेरी

पर ख़िताब तो माँ का मैंने हमेशा दिया तुम को....रोई बेतहाशा जब जब रातो मे,क्यों तेरा अहसास सर

पे महसूस किया मैंने....कोई नहीं,कोई भी नहीं समझे गा तेरे एहसास की हकीकत को...पर माँ,मेरे लिए

तो है तेरी दुआओ का आँचल हमेशा से  भरा....नमन है तेरे प्यार को,नमन तेरे एहसास को....
भीगे गे जो बारिश मे,तुझे भी साथ ले डूबे गे --- बहकते कदमो की चाप मे,तेरे कदमो को भी भिगो

डाले गे----रफ्ता रफ्ता यह मुहब्बत परवान होगी,कही यह किस्मत कभी मुझ पे तो कभी तुझ पे

मेहरबान होगी ----टूट के चाह मुझे इतना,बारिश भी ना बरसी हो कभी इतना----सैलाब आते है चले

भी जाते है,पर तेरी मेरी मुहब्बत का यह सैलाब आये इतना कि आखिरी सांस तक हमारी मुहब्बत

इस मे डूब जाये इतना---
बरस गया यह मौसम तेरे भीगे आँचल की तरह....हवा जो चली यह सरक गया किसी नाज़नीन की

हसी की तरह.....देखा जो उन्हें तो बिखर गए, किसी मखमली  दुपट्टे की तरह....छुआ जो गेसुओं को

तो निखर गए किसी आईने की तरह...यह प्यार है या इसी मौसम का असर,कि भीगे है बारिश की उन

फुआरों मे,पर सांसे गर्म है पारे की तपिश की तरह....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...