प्यार का यह कौन सा मुकाम है..जहां उजड़ा है चमन और रोता हुआ आसमान है..हर बसती है वीरान
और हर कोई टूटा हुआ इंसान है...लगता है,यहाँ प्यार की शहनाई कभी बजी तक नहीं...यहाँ फूलों पे
निखार तक नहीं...बाग मे किसी प्रेमी-जोड़े के कदमों के चलते निशान भी नहीं...ढूंढ रहे है इसी बसती
मे किसी प्रेमी-जोड़े को...लेकिन यह शहर मुर्दा-दिलों का मुकाम ही है...यहाँ काम हमारा क्या..अपने
ज़िंदा-दिल को यहाँ बरबाद क्यों करे...जहां दस्तक खुली साँसों की ही नहीं...