ख़ुशी और सुख की उम्र तो बहुत छोटी होती है..यह मान कर हम ने ग़मों को अपने गले,प्यार से लगा
लिया...यह ग़म भी माशाअल्लाह कितनी उम्र ले के आते है...कितनी मिन्नतें करते रहो,जल्दी कहां जाते
है...हां,कभी एक ग़म को तरस आ जाता है तो चला जाता है..पर जाते-जाते कुछ और ग़मों को दामन
मे इक सौगात बना छोड़ जाता है...वल्लाह वल्लाह..ग़म तू भी लाजवाब है...कम से कम ख़ुशी-सुख की
तरह जल्दी जाता तो नहीं...उन की फ़रेबी तो नहीं..तुझ से निपटने के लिए बस हिम्मत चाहिए..यही तो
तेरी ख़ासियत है ग़म मेरे....