Tuesday 28 October 2014

चलना फिर रूकना,रूक कर फिर चल देना..बरसो से यही तो करते आए है...किसी के

लिए जीना, किसी के लिए मरते रहना..सदियो से करते आए है..चुपके चुपके रोना,पर

जमाने के लिए बिॅदास जीना..यह तमाशा तो हमेशा से करते आए है..पयार किसी से

कभी ना ले पाए,फिऱ भी सब के चहेते होने का नाटक..सदियो से करते आए है.जिनदगी

से पयार कभी था ही नही,फिर भी जिनदगी को जीते आए है.....

Monday 27 October 2014

कुछ यादे कुछ वादे,और गुजरती रही जिनदगी...थोडी खुशी थोडा गम,देती रही यह

जिनदगी..जब भी सकून माॅगा हम ने,लापरवाह हो गई यही जिनदगी..अललाह से

चाहा मौत दे दो हमे,तो भी आडे आ गई यही जिनदगी.....

Sunday 26 October 2014

खनक चूडियो की अकसर रूला जाती है हमे,पायल की रूनझून उदास कर जाती है हमे..

जब भी देखते है आसमाॅ मे उडते हुए परिनदो को,अपनी बेबसी पे रो देते है हम...

खुली हवाओ मे जीने को तरस गए है हम,बात बात मे खुल कर हॅसना भूल गए है हम..

यू तो दुनियाॅ सलाम बजाती है हमे,पर इसी दुनियाॅ से दूर हो गए है हम....



पीछे मुड कर देखा तो गहरा अॅधेरा था,दिल को चीरती हुई खामोशी थी...जानते थे फिर

जो देखा मुड कर पीछे,तो मर जाए गे...बडा रहे है कदम उस रौशनी की तरफ,जो रासता

दिखा रही है उजाले की तरफ...यह मॅजर तो होगा उस सिॅहासन का,जहाॅ पहुच कर
नजारा होगा जननत का...


Friday 24 October 2014

जहाॅ जहाॅ कदम पडे तेरे,वो ही रासता चुन लिया हम ने..मुहबबत की मनिजल वही

होगी,जहाॅ इबादत के लिए तुमहे चुन लिया हम ने...खामोशियाॅ बहुत कुछ कह जाती

है मुहबबत मे,समझने के लिए जमीर को खुदा का फरमान चुन लिया हम ने...फूलो ने

फिजाओ ने फैसला जो बताया,तो तुमही को मुुकददर मान लिया हम ने.....

Thursday 23 October 2014

जजबातो की आॅधियाॅ जो चली,मुहबबत की बेपरवाह निगाहो की तरह..तूफान  किनारा

कर गए किशतियो की तेज रफतार से...अकसर जजबात बिखर जाते है,मुहबबत की

लापरवाहियो से..कौन कहता है पयार मे कशिश नही होती..टुकडो मे बॅटी जिनदगी

पयार उडा ले जाती है...
जलते है दिए इस उममीद मे,कि रौशन जहाॅ को कर जाए गे....रात गुजर जाती है और

ना जाने कितने पहर....जलाते है खुद को आखिरी कतऱे तक,पर भूल जाते है सब कि

कितना जलाया होगा उस ने,दूसरो को उजाला देने के लिए...यही दुनियाॅ का दसतूर है,

मिटने वाले मिट जाते है,दूसरो को खुशी देने के लिए...और यह दुनियाॅ उस के दरद को

ना जान पाती है...
कुछ नही कहा मैने,फिर भी तुम ने सुन लिया..यह ऱाज मेरे दिल का,कयूॅ रूह तेरी ने

सुन लिया....आॅखे जो मेरी डबडबा गई,हथेलियो ने तेऱी कयूॅ उनहे समेट लिया...सच

कहते हो तुम,जमीर से जो निकले गी दुआ...इबादत मे खुदा ने उसे सुन लिया...
आप कहते रहे और हम सुनते रहे,मशवरो का दौर चलता रहा...फूलो की खुशबू से बाग

महकता रहा,पर काॅटो ने दामन तार तार कर दिया...वजूद अपना बना रहे थे हम,किसी

शखसियत की राहो को अमलदराज कर रहे थे हम..काॅच के टुकडो पे चल रहे थे हम,

लहू बहा तो लगा..आज भी परवरदिगार की पनाहो मे बस रहे है हम...

Saturday 18 October 2014

दुनियाॅ दीये जलाए गी,फूल मालाएॅॅ भी चढाए गी,देर रात तक पटाखो की गूॅज सेे पूरे

जमाने को जगाए गी..खुदा से पूछते हैै हम, कया सच मे इन रसमो से खुश होते हैैै आप.

रात भर जितने दीये आप की इबादत मे जलते है,पर एक तरफ जब कितनी झोपडियो

मे घोर अनधेरा होता है.कितने मासूम पटाखो की गूॅज को तरसते है.पूजा की करोडो ही

थालियाॅ परसाद से भरी आप को भेॅट की जाती है.पर हजारो गरीबो की भूख तरसती है

खाने को..कया तब भी खुश होते है आप..................

Friday 17 October 2014

नही जानते कि तनहाई कया पैगाम ले कर आए गी..हमारे सारे खवाबो को तोड जाए

गी या खुुशियो का नया पैगाम लाए गी..कल सुबह फिर होगी..फिर किरणे तेज उजाला

लाए गी..उनही उजालो केे साथ यह तनहाई भी साथ आए गी...कदम अपने बडा रहे है

मनिजल की तरफ..यकीॅ है खुद पे कि तनहाई हम से हार जाए गी..और यह जिनदगी

उजालो से भर जाए गी......

Thursday 16 October 2014

तुझ से मिलते है जब भी,तेरी उस नजऱ को सलाम करते है..जिस ने हमे आम से खास

बनाया हैै..हमारी कमियो को भी हमारी ताकत बनाया है...जब जब ठोकर खाई है हम ने

तेरी पनाहो ने हमे सॅभाला है...कया याद रखे,कया भूल जाए..यह तूने ही समझााया है

रिशतो के नाम नही होते..जो तुम ने दिया वो सात जनमो का साथ भी नही देता.इबादत

करे तेरी या खुुदा से माॅग ले तुझ को,फैसले के लिए भी याद किया है तुझ को....

Wednesday 15 October 2014

यूू तो यह जिनदगी कभी भी भायी नही हमे..जिस जिस को चाहा,मन से पयार किया,

वो ही दगा दे गया हमे...बेइनतहाॅ पयार करने की कीमत कया होती है,इस जहान मे

ना जान सका कोई..बहुत तडपे,बहुत रोेए...खुद को तबाह करते रहे...जब खुद को खुद

के जमीर से मिलवाया,तो यह सोच कर हॅस पडे कि जिस से पयार सब से जयादा करना

था,उस को कयू भूल गए.बस अब खुद से पयार करते है बेइनतहाॅॅ..बेइनतहाॅ..बेइनतहाॅ.

Tuesday 14 October 2014

दरद जब हद से गुजरने लगता है,तो यह जमाना खूबसूरत लगने लगता है..गमो के

बीच रिशते जब बिखरने लगते है,तो एहसास टूटने लगते है...हर मनिजल बेहद पास

आ कर,बहुत दूर चली जाती है...फिर कोई मुहबबत नाकाम हो जाती है..आॅसू जब

बह बह कर सूख जाते है..फिर कोई दुआ पूरी होने से पहले ही अधूरी रह जाती है..बहुत

कुछ बदल जाता है...पूरा दरद खुद मे समेटे...तब यह जमाना खूबसूरत लगता है.........

Monday 6 October 2014

मुददत हो गई तुम से जुदा हुए,पल फिर दिन,फिर महीने और अब बरसो बीत चुके है...

पर उस मुहबबत को,उस चाहत को आज भी भूल नही पाए है...बातो की वो खनक....

जजबातो की वो महक..दिल मे बसी है आज तक...तेरी यादो की कसक..आज भी इस

दुनियाॅ मे रह कर,हर रिशते से दूर है....कौन समझे गा,तेरे बिना यह जीवन कया है...

Friday 3 October 2014

तबियत नासाज थी,वो दूर थे मुझ सेे...खवाबो मे देख रहे थे उन को,पर रूबरू नही थे वो

मुहबबत मे यह दूरी सह नही पाए हम,पुकारा जो शिददत् से उनहेे करीब बुला लिया

उनहे..कौन कहता है पयार मे दूरियाॅ होती है,गर होती तो यह शिददत काम नही आती..

Thursday 2 October 2014

बदल रही है जिॅदगी एक नई सुबह की तरह,जो वकत गुजर गया उस को भुला कर एक

नई राह की तरह.. वो भी एक शाम थी..यह भी एक शाम है...पर सूरज जो आज ठल

रहा है,एक नए पैगाम की तरह..वजूद मेरा जो आज है,वो सिरफ मेरा हैै..तेरी मेरी

पाबनदियो का गुलाम तो नही....
फूूलो से महकना सीखा था..कलियो से सवॅरना..बीच बगीचे मे रहे,तो जीना सीखा..

राह मे काॅटे भी मिले..चुभन देने के लिए..पर खुशबू से महक रहा था तन मन इतना

कि सारे काॅटो को समझ कर नजराना अपना,मनिजल तक पहुच गए ले कर साहिल

अपना..
शायरी ...कहानियाॅ लिखना मेरे जीवन का एक उददेेशय.....चाहती हू मेरी यह हाॅबी,

मेरी जीविका का एक माधयम भी बन जाए....कया कोई सॅसथा या कोई इनसान है,

तो मुझे मेल से,या मेरे बलाॅग पर,या फेसबुक पर सूचित करे...अपनी पूरी जानकारी के

साथ.....धनयावाद....ममता वधावन
कुछ पाया कुछ खो दिया...पर यादो को साथ ले लिया...मुहबबत कहती है मै नूर हूॅ तेरी

जिनदगी का...तू उदास मत होना मै सकून हूॅ तेऱी उन यादो का...जो महका रही है तेरा

आॅगन...कही चोट खाई तो कया हुआ...वकत अभी और बाकी है...जिनदगी जीने के

लिए साॅसे भी अभी बाकी है...
 हसरतो का तो कोई अनत नही होता...बेपरवाह सी चली आती है...जीवन का सकून

तबाह कर जाती है...वो मोड ही कया जहाॅ सकून ना हो....चलते चलते यह खयाल आया

जिनदगी तू खूबसूरत तो बहुत है,,हाॅ तेरे साथ चलने के लिए...सीने मे खलिश हो...

मुहबबत का वो जजबा हो..मरनेे का हौसला हो....जीनेे की तमनना हो.......

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...