Thursday 9 September 2021

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने 


से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चुराए क्यों भला इस ज़माने से..डर के भी क्यों 


जिए इन के तानों से...बेफिक्र है पर तन्हा तो नहीं...ज़िद पे है मगर अल्हड़ तो नहीं...तू लौट के तो आ 


अपनी दुनियां से,पास मेरे....देखना तब ज़माने की रंजिशे कम हो जाए गी..यह सिले लब फिर से 


गुनगुनाएं गे और सजना मेरे,बहारों के मौसम फिर से इंदरधनुष बनाए गे .....

ना पूछिए हम से कि हमारी रज़ा क्या है.....

 ना पूछिए हम से कि हमारी रज़ा क्या है...आप की इबादत करते है बस यही हमारी ज़िंदगी का नायाब 


फलसफ़ा है...कुछ देर रुकिए तो ज़रा और देखिए कि इबादत हमारी क्या रंग लाती है...सदियों की यह 


कोशिश है जो अब कही जा कर इबादत के पायदान पे आई है...जरुरी तो नहीं कि इबादत मे हम आप 


को ही मांगे...यह वो पायदान है मुहब्बत का जहां रिश्ते मांगे नहीं जाते...वो जब भी क़बूल करे गा हमारी 


नायाब इबादत को तो यक़ीनन झोली भी आप के प्यार से भर दे गा.....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...