Sunday 27 December 2020

 काजल ना भरो आँखों मे इतना,रात जल्दी गहरा जाए गी...ना भिगो गेसुओं को इतना,बरखा बिन मौसम 


ही बरस जाए गी...सोच जरा उन का जो शाम को रात समझ ले गे,तेरे सदके...और भीगे गे बिन मौसम 


बारिश मे,तेरे सदके....हुस्न कातिल है तेरा तो यू खुद पे ना इतरा...मखमली दुपट्टे से ढाप ले यह सुंदर 


चेहरा,चाँद खुद को समझ इस धरा पे उतर आए गा...हुस्न खिलखिला कर हंस दिया और यह इश्क,जो 


इसी हुस्न के सदके, उसी की गोद मे फ़ना हो गया....

 दूर ना जा मुझ से..यह बोल कर हम ने हवा को अपने दुपट्टे से बांध लिया...रहना सदियों साथ मेरे,मेरी 


हर सांस को तेरी बहुत जरुरत है..जान है मेरी जब तक,तेरा साथ बहुत जरुरी है...घुल रही है तू मेरी 


साँसों मे ऐसे,जैसे इंदरधनुष से सीधा मिल के आ रही हो वैसे...सतरंगी है तू,शोख भी है तू...जो एक मोड़ 


पे ना ठहरे,ऐसा अजूबा है तू..देर बाद हवा ने कहा मुझ से ''हवा हू,हर जगह चलती हू मगर तेरी बात है 


कुछ अलग...खुशबू की सौगात लिए हर पल बस तुझी से लिपटी रहती हू''....

Friday 25 December 2020

 देर रात तक ना जाग,कुछ अपनी अल्हड़ उम्र का  ख्याल कर..जवानी के साल बस बचे है कुछ थोड़े,


उस पे यू जुल्म बार बार ना कर...दिन के उजाले ज़िंदगिया बदल दिया करते है...रातो के अँधेरे बस 


बर्बाद ही किया करते है..ग़ज़ल की इक खूबसूरत शाम हो,जो सिर्फ तेरे और मेरे नाम हो...नगमे कुछ 


तुम सुनाना मुझे और हम गीतों की लय पे मदहोश हो जाए गे..ऊपरवाला सिर्फ सच्चाई देखता है...वो 


गलत मे ना मेरा है और ना ही तेरा है....

 मैं शाख शाख मैं ही पात पात...तू देखे जिधर,मेरा अस्तित्व है तेरे ही पास पास...छू ले कितनी बेखबर 


हवाओं को,वो साथ तेरे ना दूर तक चल पाए गी...अंधेरो मे जला दिए कितने,रौशन तेरे मन का आंगन 


मैं ही कर पाऊ गी...नफ़रत मुझ से करने के लिए,कलेजा अपना जरा मजबूत कर लेना...आरती मेरी 


उतारने के लिए,अपनी नज़र साफ़ पावन फिर से कर लेना...गन्दी हवाओं का साया मुझे मंजूर नहीं..


तेरे ऊपर कोई मैल जमे,वो सहना मेरी फितरत ही नहीं..क्यों कि मैं ही शाख शाख मैं ही पात पात...

 ऐसा तो नहीं कि पहली बार ओस की चादर मे बैठ कर रोए है...पर हां,आज पहली बार अपने आँसुओ 


की बहती चादर पे सोए है...करवट भी लेते है तो सैलाब फिर से दस्तक दे जाता है...हैरान है तो परेशान 


भी कि इन आँसुओ की तह कितनी दबी थी अंतर मे...मुस्कराहट दे कर कितनो को,खुद ख़ामोशी से 


जीते आए है..खबर किस को कि कितनी दूर अब निकल आए है...रात है कि खत्म होने को तैयार ही 


नहीं...शायद इस बांध के रुकने की इंतज़ार मे,सुबह भी अब तक नहीं आई है...





 जिस्म को जब जब ढाला रूह की आवाज़ मे..वो बहती नदिया की तरह शुद्ध और पावन हो गया....


रूह की आवाज़ इतनी बुलंद थी कि जिस्म खाक होने से पहले अलौकिक हो गया...कंचन काया का 


स्वरूप निखरा ऐसे कि पूजा अर्चना के लिए बेहद शुद्ध हो गया...अब ना तो इस का कोई मोल है ना 


कोई तोल है...यह तो अब अनमोल हो गया...दुनियाँ के लिए बेशक यह इक जिस्म होगा पर जो ढल 


गया रूह की आवाज़ मे,वो अब कोई जिस्म नहीं,यह तो मंत्रो की माला मे कब से विलीन हो गया...

Thursday 24 December 2020

 सर से आँचल का ढलकना और हवा का तेज़ होना..चलते चलते पाँव मे काँटा चुभना और आंख से आंसू 


निकल आना...काजल का इन आँखों से बिखर जाना और तेरी याद का सैलाब उमड़ जाना...इस पाँव 


का काँटा कैसे निकले,तुझे फिर से याद कर जाऱ जाऱ रोना...सहारा तेरा कब माँगा था,इक प्यार भरा 


साथ ही तो चाहा था...तेरी वो बोलती आंखे,तेरी वो शरारती बाते...तुझे कान्हा भी कह दे तो जायज़ होगा...


इस पत्थर-दिल दुनियाँ मे तेरा यू मोम हो जाना..और अचानक पाँव का यह दर्द ख़तम हो जाना...

 यह कौन सा अंदाज़ है जनाबे-आली आप का ...जी तो है मुस्कुराने का,पर लबों को बेदर्दी सी लिया..


वजह ना भी मिले हंसने की पर हम फिर भी खुल के हंस दिया करते है...दीवाना पागल यह दुनियाँ 


बेशक कहती रहे मगर पागलपन का यह अंदाज़ हमारा बहुत पुराना है...राह चलते किसी को देख 


मुस्कुरा भर दिए,उस को देख हँसता हम फिर अपनी राह निकल गए..पीछे मुड़ कर जो देखा तो वो 


अब तक ख़ुशी के माहौल मे था..जनाबे-आली,मुस्कुराने की कोई कीमत नहीं होती..जैसे यह ज़िंदगी 


कब ख़फ़ा हो जाए,इस की भी कोई गारंटी नहीं होती...

 बहुत गहन ख़ामोशी हो तो भी लफ्ज़ सुन ही जाते है...हज़ारो आवाज़े चीखती रहे मगर ख़ामोशी की वो 


आवाज़ जिस को सुननी है.उसे सुन ही जाती है..मौन भी तो इक सुखद भाषा है,बेशक हो उस मे गिले 


कितने..शिकवा तो यह ख़ामोशी भी कर देती है,बात सिर्फ ख़ामोशी की भाषा समझने की है...मौन हो 


या ख़ामोशी..फर्क सिर्फ इतना होता है..मौन को सुनने के लिए दिल प्यार से भरा होता है..ख़ामोशी की 


बात इतनी सी है,गिला हो या शिकवा कैसा भी...वो दर्द की राह आँखों से बह जाता है...

Tuesday 22 December 2020

 बहुत दूर से चल कर आना और उस पे तेरा मुझे गज़ब कहना...वल्लाह,गज़ब से भी गज़ब.. तेरा खुल के 


मुस्कुरा देना...यह बंद होंठ कभी कभी ही तो मुस्कुराते है..वरना हंसना तो दूर यह तो हर वक़्त शिकन 


माथे पे लिए,खुद मे खामोश रहते है...कभी देखिए ना जरा इन फूलों को,जो खुले आसमां के तले भी 


खिलते है..ओस की बून्द पड़े तो भी हंस देते है..सीखिए तो इन से यह भी,दो दिन की ज़िंदगानी है इन 


की मगर जब तक धरा पे ना गिरे,यह खिले रहते है...

 हर सांस के साथ पिरोते रहे,इस ज़िंदगी की माला...कभी रही फूल सी हल्की यह साँसे तो कभी दर्द के 


भार से भरी रही यह साँसे...खड़ी थी सामने यह ज़िंदगी.अरमानों की गठरी लिए...चाह कर भी इन साँसों 


का यह चलता काफिला रोक ही नहीं पाए...ऐ कुदरत,दे कोई इशारा अपना...भर दे या तो यह गठरी 


अरमानों की या इस गठरी को अंधेरो मे ग़ुम कर दे...करिश्मे तो तेरे कितने होते है...कभी दिखते है 


खुली आँखों से तो कभी पहाड़ो को चीर समंदर तक को भिगो देते है...

Sunday 20 December 2020

 ''राधा के अलौकिक प्रेम का अनंत सफर...सतयुग से कलयुग का''

राधा..तुम कौन हो ? समर्पिता,गर्विता या प्रेम के गहरे रंग मे सजी..कल्पना या यथार्थ की धरती पे मुस्कुराती कृष्ण की प्रेमिका...जन्म ले कर कृष्ण से पहले ,आंखे खोली उस को देख कर..बन गई तभी से उस की प्रेमिका...खिलखिलाती मुस्कुराती,कृष्ण-प्रेम मे पगी उसी को समर्पित इक प्रेमिका...जहाँ से बेखबर सिर्फ अपने कृष्ण को मिलने की आस मे दौड़ती वो अनोखी प्रेमिका..ना देह का कोई रिश्ता,ना ब्याह का कोई सिलसिला..फिर भी युगो युगो से राधा रही अपने कृष्ण की समर्पिता...वो उस का कृष्ण रहा जो उस के अलौकिक प्रेम मे खो गया..रिश्ता तो कोई भी ना था पर राधा को अपने अलौकिक प्रेम मे कृष्ण भी उस को नहला गया...कृष्ण से राधा ने चाहा तो कुछ नहीं बस उस की ख़ुशी के लिए,जीवन का हर तार-संसार उसी को समर्पित कर दिया..वो पाक रिश्ता ना जाने कैसा रहा कि कृष्ण से पहले राधा का नाम,समस्त संसार कि जुबान पर आ गया...कलयुग मे कहाँ है ऐसे पाक रिश्तो का जहाँ..यहाँ राधा का मोल सिर्फ दैहिक स्तर तक सीमित उसी कृष्ण ने कर दिया...वो समर्पित हो गई कृष्ण को रूह की आवाज़ पर,देह का मोल उस के लिए कृष्ण की ख़ुशी हो गया..पर कलयुग की राधा उस कृष्ण की राधा हुई,जहाँ कृष्ण ने उस का मोल सिर्फ आम औरत कर दिया..यह सूरज चाँद,यह धरती आसमान सदियों तक इस के गवाह होंगे...सवाल है कि अब इस कलयुग मे क्या राधा-कृष्ण जैसा अलौकिक प्यार कही होगा ? हां,होगा..कही तो होगा..शायद विरले ही होंगे..जो देह से परे इस अलौकिक प्रेम मे जीते होंगे...शायद तभी यह धरती आज भी आबाद है..क्यों कि अलौकिक प्रेम का कही ना कही तो वास है..फिर सादिया बीते गी...फिर राधा जन्म ले गी,फिर से उस की आंखे कृष्ण के अलौकिक प्रेम से खुलना चाहे गी..जहाँ तब बहुत ही खूबसूरत होगा जब सतयुग की महिमा फिर से लहराए गी...यह सफर राधा के अलौकिक प्रेम का कभी खतम ना हो पाए गा...जब तक वो सतयुग का वही कृष्ण अपनी राधा को देह से परे अपने अलौकिक प्रेम से नहलाये गा...जय श्री राधेकृष्ण..

Friday 18 December 2020

 इतनी सारी ओस की बूंदे और इन का हमारे गेसुओं पे ठहर जाना...नंगे पाँव घास पे चलना और इन को 


दुलार देना...ओस की इन बूंदो से हम ने कहा..ठहरी रहो इन गेसुओं पे,ताकि ज़माना जान ना पाए कि 


यह आंखे भरी है आंसुओ से इतना...अपनी मुस्कान से इस ज़माने को जीना जब सिखाया है तो क्यों इन 


को आंसुओ का प्याला छलकता देखने दे...सुन बात मेरी बूंदे ओस संग हमारे ठहर गई,यह कौन सा 


पाक रिश्ता यह मेरे संग निभा गई...

 हटा पहरा सूरज का तो हवा कहर ढा गई...किसी ने पूछा हम से,यह हवा आप को क्या बता गई..ओह,


यह हवा हम को क्या बताए गी..यह हम को क्या सिखाए गी..जो खुद चलती है हमारे ही इशारों पे,वो 


हम को क्या सन्देश दे जाए गी..हम ने घूँघट मे अपना चेहरा छिपाया तो सूरज को छुपना पड़ा...हवा को 


अपने दुपट्टे से लहराया तो यह जग को महका महका गई...अब जनाब,जयदा ना पूछिए...जो हम खुल 


के मुस्कुरा दिए तो क़हर छा जाए गा..बरसे गा बादल खुल के और यह जहाँ सर्द हवाओं से कांप कांप 


जाए गा...

Monday 7 December 2020

 हवा को गुमान है कि वो कभी भी कही उड़ सकती है...बदरा भरा है अपने नीर के गरूर मे..और यह 


आसमाँ जो कही भी अपनी मर्ज़ी से धूप छाँव कर देता है..सूरज को छुपा अपने आँचल मे जहाँ को 


हैरान कर देता है...सितारों का टिमटिमाना और चाँद का छुप जाना..बादलों को क्या समझाता है...क्यों 


गुमा है इन सब को कि शरारत का दावा क्या यही कर सकते है...उस की मर्ज़ी जिस दिन शरारत पे 


उतर आई तो इन सब की शामत कभी भी आ सकती है....

 दुनियाँ का यह कारवाँ गुजरा बहुत ही करीब से मेरे...हर बार वही सवाल पूछा मुझ से..''जीवन और 


ज़िंदगी मे फर्क है कैसा''...हर बार क्यों खामोश रहे है हम..मुस्कुराना अब हमारा था लाज़मी..जीवन 


दिया तो उस ने मगर हम ने खुद ही इस को ज़िंदगी मे तब्दील कर दिया..इतनी ख्वाइशें जोड़ ली साथ 


इस जीवन के कि उलझा कर नाम इस का ज़िंदगी कर दिया...फूल भरे बहुत कम और कांटो से इस का 


दामन तरबतर कर दिया..जनाबेआली..जवाब पूरा दे गे तो क्या यह दुनियाँ लौट आए गी फिर उस सुंदर 


जीवन की परिभाषा पे...तभी तो रहते रहे खामोश कि यह दुनियाँ जीवन को कब साथ अपने बांध 


पाए गी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...