ग्रन्थ प्रेम का है तो प्रेम ही लिखना होगा..दुनिया को प्रेम का मायना तो बताना होगा..लो प्रेम की जब
जलती है तो मन-आंगन महकाती है..आखिरी सांस तक दिया अपने मन का जलाती है..बीच राह मे
दिए की लो को खुद से बुझा देना,फिर उन्ही लपटों मे देर-सवेर खुद ही जलना..वक़्त रहते जो ना
समझा,प्रेम की लपटे खाक खुद ही खुद से कर जाती है..देह का प्रेम प्रेम नहीं होता..प्रेम तो सिर्फ
समर्पण की बेला का मोहक रूप होता है..जो छू ले रूह साथी की,वह प्रेम अमर हो जाता है...
जलती है तो मन-आंगन महकाती है..आखिरी सांस तक दिया अपने मन का जलाती है..बीच राह मे
दिए की लो को खुद से बुझा देना,फिर उन्ही लपटों मे देर-सवेर खुद ही जलना..वक़्त रहते जो ना
समझा,प्रेम की लपटे खाक खुद ही खुद से कर जाती है..देह का प्रेम प्रेम नहीं होता..प्रेम तो सिर्फ
समर्पण की बेला का मोहक रूप होता है..जो छू ले रूह साथी की,वह प्रेम अमर हो जाता है...