Saturday 30 November 2019

ग्रन्थ प्रेम का है तो प्रेम ही लिखना होगा..दुनिया को प्रेम का मायना तो बताना होगा..लो प्रेम की जब

जलती है तो मन-आंगन महकाती है..आखिरी सांस तक दिया अपने मन का जलाती है..बीच राह मे

दिए की लो को खुद से बुझा देना,फिर उन्ही लपटों मे देर-सवेर खुद ही जलना..वक़्त रहते जो ना

समझा,प्रेम की लपटे खाक खुद ही खुद से कर जाती है..देह का प्रेम प्रेम नहीं होता..प्रेम तो सिर्फ

समर्पण की बेला का मोहक रूप होता है..जो छू ले रूह साथी की,वह प्रेम अमर हो जाता है...
वो दूर तक जाने की ललक,मंज़िल को पा लेने की कसक..चलना है अब बेशक अकेले ही सही,मगर

मंज़िल की ख़्वाइश जरुरी है अभी..कोशिश करना,फिर गिरना फिर से गिरना..हिम्मत टूटने का पैमाना

तो नहीं..जाबांज है कोई मिट्टी का खिलौना तो नहीं...जो खुद से हासिल कर पाए तो जीत तेरी-मेरी ही

होगी,बेशक चलना है अकेले ही सही..तू साथ नहीं पर मेरी साँसों मे तो है..इतना ही काफी है तेरा नाम

मेरे नाम के साथ बाकी तो है...
सूरत खूबसूरत है या श्याम सूरत..प्यार का इस से क्या लेना क्या देना..ना उम्र ना बंधन ना जात-पात,

इन सब से मुहब्बत का नहीं कोई वास्ता..मन है निहायत खूबसूरत,तो ही रूहे फ़िदा हुआ करती है..

ख़ुशी से महक जाया करती है..तभी तो सदियों साथ रहा करती है..रूप बदल बदल हर जन्म मिला

करती है..यह जाने बगैर सूरत तेरी-मेरी हर बार क्या मायने रखती है..

Friday 29 November 2019

हम खामोश क्यों है इतना.गर इतना ही पूछ लिया होता हम से, तो जान पाते कि क्यों इतना खामोश

है..सागर की अपार गहराई मे छिपे मोती,निकाल लेना आसान नहीं होता..बस वैसे ही हम को जान

पाना आसान नहीं होता..साँसों का साँसों के सामने निकलना,कभी देखा है..जो अपना नहीं मगर,उस

को अपनी आँखों के सामने जाते देखा है..अंतर बेशक जय्दा नहीं,पर यह भी तभी जान पाते जब हम

से यह पूछा होता कि हम इतने खामोश क्यों है...

Thursday 28 November 2019

मौत से जंग लड़ के आए है इस प्यार की दुनियाँ मे जीने के लिए...जीना है कितना इस को, बताए गे

प्यार की भाषा के तले...तिनका-तिनका चुना और घरौंदा खुद से बना,किसी को आने की इजाजत ना

देते बना..जज्बातों के सागर से नींव बनी..पलकों से बना शामियाना,दिल ने सजाए अरमां इस मे और

धड़कनें भूल गई सारा जमाना...जब तक है साँसे,यह शामियाना हमारा है कि मौत की बाज़ी जीती है

हम ने इस प्यार की दुनियाँ मे जीने के लिए...
यह वैसी ही कोई शाम है या यादों का धुंधलका...प्रेम की मीठी बतिया चुग रही है आज भी यादों से

दाना..कौन कहता है,सारे प्रेम सही होते है शुरुआत मे,संदिग्ध हो जाते है मध्य मे और गलत हो जाते

है अंत मे..मुस्कुरा दिए इस प्रेम की बात पे..प्रेम की शुद्धता जानी है जिस ने रूह की पुकार से,वो कहा

माने गा प्रेम का कौन सा आधार है..ना इस की कोई शुरुआत है,ना मध्य है ना ही अंत है..जो लिपटा है

इबादत के मासूम महीन धागो मे,जो रहा सदा पूजा के थाल मे..जो अब भी रचा है उसी अनोखी शाम मे.
दिन और तारीख का इस मुहब्बत से क्या वास्ता..बंधे जब सुर-ताल साथ मे तो वक़्त से क्या लेना

मशवरा..दूरियां बेशक रहे,गुफ्तगू भी रहे ना रहे,सिलसिले बेशक रुकते रहे..अंकुर जो बोए प्रेम

के,वो तो खुद ब खुद अंकुरित होते रहे..संबंधो का अंत कभी होता नहीं,मर कर भी दूर कोई जाता

नहीं..प्रेम तो प्रेम है..मौन से है जिस का वास्ता,मौन है जिस का रास्ता..रूहानी-खेल है प्रेम यह..

अनंत था,अनंत है अनंत ही रहे गा प्रेम यह.....

Wednesday 27 November 2019

मन जब निर्मल रहा सदा,इक रेत का कण भी क्यों बीच मे आया..वाणी रही सहज सरल,तूफान का

रुख क्यों अचनाक बीच मे आया..खामोश बहुत था आसमाँ,अचनाक बादलों ने क्यों उत्पात मचाया..

क्या यह लेखा-जोखा था तक़दीरो का या दर्द खुद ही खुद से चल कर आया..सब कुछ बदला,क्यों कर

बदला..शायद होता है कभी कभी,साफ़ महकती धारा मे मिल जाता है कीचड़ कभी कभी..
लफ्ज़ो को निखारने के लिए,खुद पे भारी होना जरुरी है..जान-जिस्म खुद से बेज़ार है,मगर लफ्ज़ो का सही

चलना जरुरी है..प्रेम को लिखने के लिए कलम का लिखना जरुरी है..यह जहाँ वैसे ही बेख़याल है प्यार

से,गर प्रेम की परिभाषा को ही लिखना छोड़ दिया तो नफरत का सैलाब उमड़े गा पुरज़ोर से..प्यार कभी

मरता नहीं,प्यार के मायने बदलते है वक़्त से...प्यार,प्रेम और मुहब्बत..जो कण कण मे सांस लेता है ऐसे,

इक नन्ही सी धारा होती है नन्ही,मगर सागर मे मिल जाती है बखूबी मदहोश से...

Wednesday 20 November 2019

खुद को खास इतना भी ना बना कि फिर आम ही ना रह पाए..मुद्दतो कोई पीछे-पीछे आया नहीं करता..

बार-बार कोई इतना मनाया भी नहीं करता..रफ्तार तेरी ज़िंदगी की तेज़ है इतनी,हमारे सिवा तेरा साथ

कोई निभाया नहीं करता..सूरत को तेरी ध्यान से कब देखा हम ने,रूह से ही जुड़े थे बस इतना ही सोचा

था हम ने...कुछ वक़्त और इंतज़ार करे गे तेरा,लाज़मी हो जाये गा हमारे लिए फिर से उन अंधेरो मे

लौटना,जहा हम अपने अंधेरो से लड़ कर,दुसरो को जीवन दिया करते है...जहां परिंदे भी हम से मिला

करते है..
अनंत,अथाह,अखंड प्रेम करते रहे...पर कसूरवार सिर्फ इतना रहे,प्रमाण इस का तुझे कोई दे नहीं पाए..

ख़ामोशी का प्यार कभी बोला नहीं करता..रूह मे जो दबा हो वो बाहर आ नहीं सकता..तक़्दीरों के खेल

बहुत ही निराले है,जो मिट जाते है प्यार मे वो सदा आधे-अधूरे रहते है..जो करते है दिखावा इस प्यार

मे,जो चलते है गहरी चाल इस राह मे..जिन के लिए प्यार इक सौदा है,तक़दीर भी जिन के लिए धोखा

है..समझ तो अब आया कि प्यार का नाम भी धोखा होता है...

Monday 18 November 2019

जो रूह से महसूस हो कर सीधा रूह मे उतरे...जिस को ना कभी देखा,ना कभी मिले ना कभी मिले गे...

प्यार ऐसा भी होता है...फिर भी जो इक दूजे को समर्पित हो,खामोश हो..वो प्यार शुद्धता से भी,कही

जयदा शुद्ध है...कोई कहे यह अलौकिक है...ना कुछ रिश्ता,ना कोई मांग है..फिर भी रूह के बहुत पास

है..सदियों मे मिलती है ऐसी रूहे,तक़दीर वाली होती है ऐसी रूहे..तक़दीर वाले ही इस प्यार को समझ

सकते है..''यह है वो बेखौफ रूहे जो सिर्फ सपनो मे ही मिला करती है''...

Sunday 17 November 2019

चुन चुन के हज़ारो लफ्ज़ लिखे..पर प्रेम पे अभी भी सब आधे-अधूरे ही रहे..कितना और लिखे गे,खुद

को भी नहीं पता..शायद तब तक,जब तक यह जग जाने गा इस प्रेम की भाषा...तकरार रहे मगर इक

विश्वास रहे..साथ नहीं पर साथ तो है..जीवन है या फिर मौत के धागे,प्यार हमेशा सब से आगे..मौत

कब छीन पाती है इस प्यार का धागा..जन्म-जन्म का है यह नाता..बहुत लफ्ज़ है लिखने बाकी,प्यार

की भाषा बहुत अनोखी..विरले समझे इस भाषा को,तभी तो लिखना है बहुत कुछ बाकी... 
तू अजनबी भी नहीं,बेगाना भी नहीं...कौन है तू,इस की खबर तुझ को भी नहीं..झूठ को हमेशा सच

साबित करना और सच की दुनियाँ से कोसो दूर रहना...यह ज़िंदगी है यारा,मतलब के यहाँ रिश्ते है..

साथ तब तल्क़ है,जब तल्क़ सर झुकते है..वज़ूद तेरा भी है और वज़ूद मेरा भी तो है...राहें हम ने भी

खास ऐसी चुनी,जिन पे चलना पहली सांस से जरुरी है...नूर बरसता है आप के चेहरे से,सुन कर यू

लगता है कि जो बाबा ने कहां,वो यक़ीनन सच लगता है..पर सच तो यह भी है कि तू आज भी अज़नबी

नहीं,ना ही बेगाना लगता है...
खुश रहने की वजह क्या होगी...जहां दिल की ख़ुशी होगी..यह वादियां बला की खूबसूरत है,लगता है

ओस की चादर ओढ़े है..नन्हे नन्हे पग जब चलते है इन राहो पे,दौड़ते है संग इन के मासूम इशारो पे..

यह कहते है परी हम को,हम ढूंढ़ते है अर्थ ज़िंदगी का हर दम..जो नसीब से हट के मिले,वो हमारा होता

है...जो कदर हमारी जरा ना करे,वो सिर्फ दर्द होता है...
प्यार की इंतिहा है कितनी..यह सवाल तेरा कैसा है..''जब हर कण मे प्यार दिखे,हर पत्ते मे,हर जीव

मे प्यार दिखे..हवा के हर झोके मे,धरा से आसमां तक..हमारी नज़र मे प्यार ही प्यार हर और है..तेरा

सवाल बेबुनियाद  है..जब हम को हर जान-बेजान मे प्यार दिखे तो सोचिए जानम,तेरी जगह कैसी

होगी..शक ना कर अपने प्यार पे,तूने ही पूछी है इंतिहा मेरे प्यार की..सब जगह प्यार ही प्यार है,मगर

मुहब्बत की खास जगह तो तेरे साथ है'' ...

Friday 15 November 2019

तू करीब से गुजरा इक तूफानी झौंके की तरह...हम ने सराहा तुझे इक मुहब्बत की तरह..हवा के रुख

से तू निकल गया किसी अनजान राह पे,बस हम ही रुके रहे तेरे छोड़े हुए उसी मोड़ पे ..आज भी खड़े

है उसी मोड़ पे,जहां से आगे ना ही पीछे कोई रास्ता है किसी और नाम से...परिशुद्ध था प्यार मेरा या

तेरे लिए कोई अनोखी दास्तां...समझ तेरी तेरे साथ है,वफ़ा की पहचान हमारी बात है...
गीली रेत पे पाँव रखे तो सर्द मौसम का एहसास हुआ, याद आया गर्म मौसम तो अब विदा हुआ.. ''सरगोशियां ''  आप की शायरा 
'' राहें खोलिए हमारी '' आप के साथ से अब दम घुटता है..नहीं चाहिए इतना प्यार कि तुम्हारे इतने

प्यार से अब डर लगता है...सुन कर हम बदहवास हो रो उठे...वो भी क्या ज़माना था जब हमारे साथ

से आप को सकून मिलता था..खत्म ना होती थी बाते,वक़्त कब कैसे गुजर जाता था..आज काम है

बहुत जयदा,यह बता कर वो हम से बहुत दूर हो गए..आज समझ आया हम को,जयदा प्यार से भी

 दम घुट जाता है..हंस दिए खुद के प्यार पे,कशिश प्यार की संभाले अपने घर चल दिए...

Thursday 14 November 2019

दुनियां से बहुत बार सुना...दुनियां बस अब खत्म होने को है..मगर कहते है हम,जब तल्क़ इस दुनियां

मे प्रेम का महकता रंग कायम है,दुनियां तब तल्क़ सलामत है..हज़ारो फूल जब खिलते है इस गुल्सिता

मे,बेपनाह लोग मिलते है मुहब्बत से...जब तल्क़ कायम है यहाँ,शुद्ध प्रेम की परिभाषा..जब तल्क़ प्रेम

मे भरी है बलिदान की भावना..जब तल्क़ यह प्रेम खिले गा,दो पाक रूहों  के साए मे..जान भी जाए तेरे

लिए,प्रेम तब भी निःशब्द है...समझ लीजे...दुनियां का वज़ूद तब तल्क़ कायम है...

Wednesday 13 November 2019

शुद्ध प्रेम की वो परिभाषा,जिस को तुम ने भी कह डाला..तुम जैसा कोई नहीं..कोई भी तो नहीं..बहुत

बार सुनते है तुम से,खुद पे नाज़ फिर भी नहीं करते...हम कौन है,यह तुम भी ना जाने..परिभाषा हमारी 

तुम भी पूरी नहीं कर पाए..जो धरा पे आया तेरी खातिर,पूजा के महीन धागों मे लिपटा मेरी रूह का हर

इक धागा..हा...मैं ही राधा.. मैं ही शिव की पुनीत छाया..इस से आगे ना मेरी कोई छाया,तू ना समझा

तो मुझ को अब क्या है इस जग से लेना-देना..पूजा बस इक धर्म है मेरा,युगो युगो तक तू ही है मेरा..
किस ने जाना किस ने देखा..कृष्णा का रहा कौन सा धाम..तुम चाहे घूमो गोकुल या जाओ वृंदाधाम..

प्रेम-प्यार का उन का राधा से नाता,है आज तक सूंदर पावन मधुर सा नाम..दुनिया मे शुद्ध-प्रेम का

मतलब किस ने जाना,यहाँ रहा हर कोई मुहब्बत मे डूबा छोटा सा नाम..जाते रहते हज़ारो कृष्ण के

धाम,पर क्या प्रेम वैसा कर पाए जैसा राधा-कृष्णा का प्रेम..प्रेम की मधुशाला गर जानी होती,इस जग

की राधा के शुद्ध-प्रेम को जाना होता तो सच मे हम भी कहते,सिर्फ तुम्ही हो कृष्ण,तुम्ही हो कृष्ण..
यू तो तेरे हर रूप से वाकिफ है..पत्थर दिल है तू,इस की भी जानकारी है मुझे...हर छोटी बात पे बच्चे

की तरह रूठ जाना,इस अदा को भी जाना है मैंने...तंगहाल रहना मगर गरूर से भरे रहना,यह मुनासिब

नहीं तेरे लिए..प्यार की हर रीत को जाना होता,तो कभी-कभी ख्याल हमारा भी किया होता..खुद्दार तो

हम भी बहुत है,इस बार पहले तुझे ही झुकाए गे..गलती हर बार तूने ही की है,पहल बात करने की हम

ही करते आए है...मगर अब तेरे ही रंग मे रंगे है ऐसे,गरूर हम भी ऐसा लाए है की झुको गे अब तुम 

ही पहले..हम तो तेरे कहने के मुताबिक ''आसमान से उतर कर आए है ''
                                    ''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ''

सरगोशियां--जहां लिखे प्यार,प्रेम के शब्द,आप को अपने से जुड़े लगे..
सरगोशियां--जहां दर्द की लिखी भाषा आप को अपनी सी लगे..
सरगोशियां--जब विरह और जुदाई के मायने आप को रुला दे..
सरगोशियां--जहां प्रेमी अपनी प्रेमिका की याद मे घायल हो और आप उस अहसास को महसूस कर पाए ..
सरगोशियां--जहां शुद्ध प्रेम की प्रतीक''राधा''का रूप,इन शब्दों मे दिख जाये..
सरगोशियां--जहां प्रेम दूर जाने लगे और साथी को दर्द के आंसू दे जाये और आप महसूस कर पाए...
और भी बहुत कुछ,जो आप ''सरगोशियां,प्रेम ग्रन्थ''मे पढ़ सके गे...........आप की अपनी  ''शायरा ''
शामे तो रोज़ ही आए गी,पर अफ़सोस तेरी किसी शाम मे तेरे साथ हम नहीं आए गे..मसरूफ़ियत हो

या साथ तेरे कोई और हो,मुझे इस से क्या फर्क पड़ता है...तेरी शाम हसीं हो ना हो,अब मुझे क्या लेना

देना है...हमारी हसरतो का ज़नाज़ा जब उठ ही गया तो तेरी हसरतो से मुझे अब क्या करना है...दावा

इतना जरूर करते है,कुदरत अपने नायाब तोहफे धरती पे जयदा नहीं उतारा करती..बदकिस्मती तुम्हारी

है कि कोई राधा जन्म दुबारा नहीं लिया करती..
खुद को ले कर जितना गरूर उस मे आता गया उतना ही दूर हम उस से होते गए...वक़्त और ज़िंदगी

बार-बार नियामतें दिया नहीं करती..इतना समझने के लिए किसी को,कुदरत भेजा नहीं करती..कोई

बार बार पुकारे तुझ को और आवाज़ तेरे कानो को सुनाई ही ना दे तो वो आवाज़ हमेशा के लिए ही ग़ुम

हो जाए गी...बहुत सहा पर अब और नहीं..तुम तुम मे रहो,मैं खुद मे जिउ...ज़िंदगी ने अब सब कुछ ही

बदल डाला और हम सच मे दूर हो गए...
इबादत तेरी करे या मुहब्बत की..बात तो इबादत का अर्थ समझने की है..इबादत तुझ मे गरूर भर दे,तू

खुद को कही का राजा समझे..ऐसी इज़ाज़त नहीं देती मेरी इबादत..इबादत का इक रूप यह भी तो है..

तोड़ कर किसी कांच को हम ने उस के हज़ारों टुकड़े किए..हर टुकड़े को जोड़ा हर धर्म से,हर मजहब से..

साथ सब को मिलाना भी तो एक इबादत है..प्रेम और इबादत,दोनों ही कितने पावन है..अब हम अपनी

सरगोशियों को प्रेम ग्रन्थ से जय्दा ''महान प्रेम-ग्रन्थ'' बनाए गे..जहा प्रेम,मुहब्बत और प्यार सब ढले

गे इक ग्रन्थ के नीचे,समझ जिस की जितनी होगी,ग्रन्थ प्रेम को उतना ही समझ पाए गे...
बैठे है खुले आसमाँ के नीचे,मगर क्यों है बेहद ख़ामोशी यहाँ...कलम कह रही है क्यों ना लिखे ख़ामोशी

की दास्तां यहाँ...आज है ख़ामोशी खामोश यहाँ और यह कलम लिखती जा रही है क्या क्या यहाँ...जब

तक हम भी खामोश थे,ज़माना बहुत कुछ कहता रहा..कलम तब ना थी हाथ मे,जब यही ज़माना क्या

क्या उलझनें पेश करता रहा...कलम बोली,उठा मुझे और छा जा इस जहान पे..जो तू उठ गई,उलझनें

ज़माने की बढ़ जाए गी...डर के अब तू नहीं,ज़माना तुझ से डर जाए गा..राज़ सब तालो से खुल कर

सामने आ जाए गा...

Tuesday 12 November 2019

जिसे तुम ने खोया,वो तेरा साया था..साया क्या वो तो तेरा हमसाया था...आज है जहां हम,वहां सिर्फ

जरुरतमंदो का इक सकून भरा मेला है..यहाँ हम झुक रहे है उन के कदमो मे,कदर के साथ-साथ दुआओ

का भी मेला है...हम देते रहे जिन को दुआएं,बदले मे लेते रहे उन की परेशानियों की वजहे..आज का दौर

कुछ और है,हम ले रहे है दुआएं और ना जाने कितनो के बने है मसीहा...इक हमराज़,इक हमसाया..
खुश है बहुत बिन बात के,नूर अपने ही चेहरे का देख दीवाने है,बिन बात के...पांव रखते है कही,पड़ते

है कही..बिन बात के...खुद ही खुद मे मुस्कुरा रहे है,क्यों..शायद यू ही बिन बात के...ज़िंदगी से कभी

शिकायतें थी हमे,रो देते थे बेवजह बिन बात के...है तो आज भी वही खड़े,मगर अंदर की आवाज़ ने

हिला दिया हमे..क्यों उदास रहे,क्यों अश्क बहाते रहे..परवरदिगार ने इतना जो दिया है,उसी के लिए

आज शुक्रगुजार है..खुश है बस.........बिन बात के....
पराकाष्टा प्रेम की कितनी गहरी रही,यह तुम को मालूम ना था...दौलत ने बाँधी तेरी आँखों पे इतनी

गहरी पट्टी,रुतबे की कुर्सी पड़े गी तुम को जब इतनी महंगी तो याद जरूर हम आए गे...दुआ से भर

कर तेरा आंगन,लौट कर अब क्यों आए गे...जीवन की राह तुझे दिखा दी,वक़्त की धारा भी तुझ को

समझा दी...जब समझ ना पाए पराकाष्ठा प्रेम की गहरी तो जीवन और वक़्त की धारा कहाँ समझ

पाओ गे..
किस ने किस को खोया,चलता वक़्त बताए गा...किसी रोज़ हम खो जाए गे अपनी मासूम दुनियाँ मे,

जहाँ से लौट कर फिर ना आ पाए गे..किलकारी इक बहती धारा,नन्ही हंसी पे हम ने दिल हारा..माथे

का तिलक बन गया उन सब का सवेरा,जिस जिस ने जीवन का दुःख हम से बांटा..तुम पारियों की वो

रानी हो,धरती की महारानी हो..पाँव छू लिए हम ने नन्हे,अब कौन है रानी और कौन महारानी..यह तो

चलता वक़्त बताए गा...

Monday 11 November 2019

सहज सरल रहे और सदा धरा पे ही पाँव धरे,सामने यह ज़माना तारीफ करता रहा...सर पे भी बिठाता

रहा..ज़न्नत से सीधा उतरे है,इतना मान तक देता रहा..पर है तो ज़माना,इंसानो की यह बस्ती है..

खुद से जब खुद का साथ दिया,अपने आप से प्यार किया..शोहरत की बुलंदियों को हल्का सा जो

छूने लगे तो हम को हमारी कमियों का एहसास अब दिलाया गया..जो कभी लफ्ज़ो पे हमारे कायल

थे,आज यू हम को सीधा धरा पे गिराया..ज़माना क्या जाने,माँ-बाबा की दुआएं हम को अब गिरा नहीं

सकती...जो पहली सांस से धरा पे था वो अपनी आखिरी सांस तक धरा पे ही होगा...
दर्द गुजर रहा है दर्द की इंतिहा से..और कमाल तो देखिए,दर्द ही निजात दे रहा है इस गहरे दर्द से..

 दिल के किसी कोने मे रख दिया संभाल के,अब कोई ना दे पाए गा इस दर्द को किसी नए नाम से...

मुस्कुरा दिए दर्द की इस कहानी पे,आज तुम ने मजबूर कर दिया हम को फिर से मुस्कुराने पे..क्यों

रोए कि ज़िंदगी हमेशा तो नहीं मिलती..नियामतें जब साथ है परवरदिगार की,तो क्यों ना महके

बिन वजह बिन बात के...
प्रेम के स्वर साथ- साथ है..खोने के डर से इन को ,कभी खौफ मन मे आया नहीं..आसमां से जो बरस

रही उस मालिक की दुआ,इन प्रेम के स्वरों को साँसे देती जाए गी...सब कुछ खो कर गर उस मालिक

का करम साथ है,तो यहाँ इंसानो का क्या काम है..प्रेम के बेशकीमती धागे जब जुड़ते है रूहों के स्वरों

से,तो खुद ही प्रेम आता है धरातल पे..अब प्रेम ही ना समझे गर प्रेम की भाषा,तो खोने का डर किस

को आता है..इसलिए तो कहते है,प्रेम के स्वर हमेशा साथ है..
चलना है गर दूर तक साथ मेरे,चेहरे से अपने झूठ का नकाब उतारना होगा..एक झूठ को छुपाने के लिए

एक और झूठ ना बोल,मेरी रूह की आवाज़ तुझे सुन सकती है..दूर जाना है गर मुझ से तो बेवजह के

बहाने ना बना..किसी जंजीर से नहीं बांधा तुम को,किसी वादे के तहत साथ जोड़ा भी नहीं तुम को...

प्रेम का कोई मोड़ नहीं होता..यह वो सहज सरल धारा है,जो नसीब से किसी पाक दिल और पाक रूह

मे बहा करती है..दौलत से नहीं,रुतबे से भी नहीं,यह धारा प्रेम की सिर्फ सच के धरातल पे खड़ी होती है..

Sunday 10 November 2019

हमारे रूढ़िवाद समाज मे,प्रेम प्यार और मुहब्बत के शब्दों को हर कोई इतनी बेबाकी से नहीं लिख पाता..विडंबना की बात कि जहा राधा-कृष्णा,शिव-पार्वती के प्रेम की अलौकिक गाथाएं हम सदियों से पढ़ रहे है पर उन का वास्तविक स्वरूप कौन समझ पाया..हमारा समाज आज भी प्यार को,प्रेम को गलत और गन्दी नज़र से देखता है..प्यार प्रेम,बहुत पवित्र  शब्द है,अगर लोगो की सोच सही हो..वासना प्यार नहीं..हवस को जो प्यार कहने लगे वो प्यार नहीं..प्यार,प्रेम...एक शुद्ध प्रेम का वो रूप,जिस मे प्रेमिका पूरी शिद्दत से अपने प्रेमी को समर्पित होती है..प्रेम का वो स्वरूप जहा प्रेमी भी कृष्ण के रूप मे उस के समर्पण को स्वीकार करता है...प्रेम,प्यार का यह रूप विरले है,तभी तो समाज प्यार को समझ नहीं पाता..''मेरी सरगोशियां,प्रेम ग्रन्थ''शुद्ध प्रेम की वो गाथा पेश करती है,जो आज भी है,बेशक विरले ही सही...प्रेम के वास्तविक रूप को जानिए और इस शब्द को सम्मान दीजिये......आप की शायरा

मुहब्बत को ना समझा तुम ने तो शुद्ध प्रेम को कहाँ समझ पाओ गे...रूह के धागों को ही नकार दिया

तो पूजा के धागों का मतलब ही कहाँ समझ पाओ गे...भगवान् की कृति को जब सम्मान ना दे पाए

तो तेरी बड़ी-बड़ी बातो का कोई वज़ूद नहीं मेरे लिए..प्रेम जब आधार है इस जीवन का,इस को ही ना

जान पाए तो दुनियाँ मे दौलत-रुतबा कितना भी कमा लो,हम को अब दुबारा उस रूप मे ना पाओ गे..

हम तो हम है,शुद्ध प्रेम की वो रचना,जिस को समझने के लिए तुम्हारे पास वक़्त ही नहीं...

चल इस मुहब्बत को इबादत का रूप दे कर जुदा हो जाए...तू मसरूफ रह अपनी ज़िंदगी मे,हम खुद

मे लौट जाए..फिर से वही अजनबीपन हो और खुद की ज़िंदगी के रेले हो..मुहब्बत तुझे रास ना आई

मेरी,कभी लहज़ा तेरा बेरुखी का तो कभी प्यार का..प्यार कोई किताब नहीं,जिसे सिर्फ फुर्सत मे ही

पढ़ा जाए..प्यार को वक़्त ना दिया तो वो सूख जाता है,किसी बेजान परिंदे की तरह..चल आज से तू

तू है मैं मैं हू..बस ख़ुशी ख़ुशी जुदा हो जाए..
कल कब कहाँ जन्म ले गे,पता नहीं..इन साँसों को जिए गे कब तक,पता नहीं..किस किस को छोड़ जाए

गे,यह भी पता नहीं...मंजूरे-खुदा को क्या होगा,यह राज़ भी मुझे पता नहीं..पता है तो सिर्फ इतना कि

जो सोचा है वो करना है..पता तो यह भी है,जिन राहो पे चलना है वो भरी है सिर्फ कांटो से..खुद के

कदमो को गर्म रेत की तपिश मे तपाया है इतना,खुद तो चले गे काँटों पे मगर जो साथ चले गे मेरे,

उन को इस तपिश से बरी करवाते जाए गे...खुद मे जो ताकत है,उस से उन सभी के हौसले बुलंद

करते जाए गे...
मुहब्बत की रस्मे बेशक ना निभा,बस करीब मेरे आता जा..इतने करीब,इतने करीब कि हवा को भी

आने की इजाजत लेनी पड़े..कुछ सपने जो अधूरे है तेरे,कुछ सपने जो मेरे भी है अधूरे...मिल के साथ

चल मेरे,अंजाम इन को देने के लिए...फर्क तुझ मे और मुझ मे सिर्फ है इतना,तू सपनो को मुकम्मल

करते हुए डरता है और हम है इतने बेखौफ कि इन सपनो को खुली आँखों से जिया करते है..कौन है

यह लोग,जिन से डरना है..रास्ते तो खुद हम को बनाने है,इन लोगो से क्या लेना है..
गौर करे तेरी बातो पे या ज़िंदगी की भूलभुलैया मे ग़ुम हो जाए..कब चाहा था दुनियां के मेले मे चलना,

बस यू ही मशहूर हो गए..पलट कर जो देखे तो दाग़ ज़िंदगी के याद आ जाते है..मसरूफ हो जाए और

इन झमेलों से परे हो जाए,बस इतना ही तो चाहा था..मेहरबान रहा वक़्त हम पे और साथ परवरदिगार

का मिल पाया..कहां से कहां आ गए और जज्बातों ने शोर मचा दिया..अब आलम है यह,देखते है ना

वक़्त..ना दिन ना रात..रचे है मेले मे बस...

Saturday 9 November 2019

रंग-रूप से गहरा सावन जैसा हू,दुनियाँ की परख मे काला हू..जिधर से गुजरु,यह जहाँ मुझ पे हँसता

है...ख्वाब अधूरे अब रह जाए गे सारे,कितने काम रुके है जो पीछे रह जाए गे सारे..कैसे अस्तित्व बनाऊ

अपना..तुम भी जाओ अपनी दुनियाँ मे,छोड़ मुझे अकेला..बात सुनी तो हम रुक ना पाए..''काले बदरा

काले नैना..सावन का बादल भी काला..बरसे गरज़ के जब यह काले बादल,पानी बरसाए साफ़ मोती के

जैसा..दुनियाँ रहती सफेदपोश पर दिल देखो तो सब का काला..तुम हो सब से न्यारे-न्यारे,रूप से क्या है

लेना-देना,दिल तेरा तो सोना-सोना ''

Friday 8 November 2019

बहुत ही मामूली इंसान है हम..दौलत की चकाचौंध से दूर धरा पे झुके इंसान है हम..ग़ुरबत ने सिखाया

दुनियाँ मे चलना,इसी दुनियाँ के तानों ने यह भी सिखाया,खुद के असूलों पे चलना..टूट के टूटे इतना कि

जान गए वज़ूद अपना..धरा पे झुकना फिर भी नहीं छोड़ा,संस्कारो का वो कर्ज आज भी हम पे भारी है..

दिल की आवाज़ आज भी सुन कर,कदम अपने आगे रखते है..कोई क्या कहता है,इस से बेखबर हर पल

अपना जीते है...
आज जो दुआ मालिक ने सुनी,खुद पे यकीं और करने लगे..खुद से जयदा अपने प्रेम पे यकीं करने लगे..

यह नन्ही सी दुआ जो मांगी हम ने,पलक झपकते खुदा ने की पूरी..इत्मीनान और सकून दोनों इक साथ

मिले..जादू उस की आवाज़ का और ख़ुशी से पागल होना हमारा बदहवास सा,दिल की यह धड़कन क्यों

धक्-धक् से बहकती है..आज तो जैसे यह शाम भी महकती है..लगता है आज तो खुदा से जो भी मांग

लेते,सब मिल जाता..मगर भरे है सब्र है,जानते है,बिन मेहनत कुछ नहीं मिलता...
दिन जैसे ही ढलने लगा,मेरी दुआओं का असर चलने लगा..आंख से निकला एक बून्द आंसू और उसी

इक बून्द मे मेरा संसार सजने लगा..सिर्फ बून्द नहीं यह तो प्यार के इंतिहा की आवाज़ है,जो तुम ने

सुनी और मैंने भी सुनी..अंधेरे सारे छंटने को है..जिस रूप मे तुम्हे देखा,वो रूप बस सच होने को है...

जीवन कब किस मोड़ पे करवट ले,आगाज़ मुझे-तुझे नहीं..कुदरत किस पल क्या कर देती है,अंजाम

किसी को भी पता नहीं...

Wednesday 6 November 2019

मिलावट कैसे कर पाते तेरे प्यार मे,जब इस मिलावटी दुनियाँ से ही बाहर निकल आए है..कण-कण मे

भर के इस प्यार को,तभी तो पास तेरे आ पाए है..दर्द की वो लहर,आँखों मे बरसती अधूरे सपनों की वो

अजनबी सी इक खबर..पढ़ कौन सकता,जब खुद से ही दूर रहे इतना..अनंत काल के इस शुद्ध-प्रेम का

मतलब यह दुनियाँ कहाँ समझ पाती है..जो खुद इतनी अशुद्ध है कि हर रोज़ किसी ना किसी पे ऊँगली

उठा देती है..शुद्ध प्रेम-गाथा का मतलब बताने ही,इस मिलावटी दुनियाँ से बाहर निकल आए है..
खूबसूरत है यह शाम,जितनी सोची थी उस से भी जय्दा खूबसूरत है यह शाम..ख़ामोशी बेशक है आज

इस मे बहुत गहरी,पर एहसास दिला रही है कि गुफ्तगू है बहुत गहरी..गहराई मे डूबी है दो जान,साथ

साथ रहने को बैचैन..कुदरत के करिश्मे का है इंतज़ार,प्यार के सैलाब से महका है इन का संसार..रात

धीरे-धीरे सजने को है तैयार,किस ने किस को अपने रंग मे ढाला..इस का फैसला सिर्फ कुदरत करे गी

आज...
कदम बहुत थके है तेरे,अब लौट आ..ज़िंदगी के उजाले बुला रहे है तुझे,अब लौट आ..गर्दिश मे सितारें

तेरे थे कभी,अब जो होना है वो करे गा नामुमकिन को भी मुमकिन..यकीं कर मेरी बातो का,अँधेरे के

बाद कभी-कभी सुनहरी सुबह भी आती है..जो तेरे नाम को रौशन कर दे,ऐसी सुबह बस आने को है..

डगमगाए गे ना कदम अब तेरे,जो चाहा था तूने वो बस होने को है..कदम अब बहुत थक गए है तेरे,

लौट आ...अब लौट आ...

Tuesday 5 November 2019

दिल की धड़कनो को संभाल,इन की तुझे अभी बहुत जरुरत है.. साथ-साथ मेरे चल कि तुझ को मेरी

भी अभी बहुत जरुरत है..लाखो नज़रें साज़िश के तहत है तेरे..तू बेशक हो अनजान इन से,तुझ से कही

जय्दा दुनियां देखी है मैंने...मसरूफ रह दुनियादारी के तहखाने मे,मुकाम अपना हासिल करने के लिए..

हम है ना तेरी हिफाजत और दुआ करने के लिए..
यू तो हर चलती सांस के साथ,तेरी ख़ुशी मांगी है..तुम जहां भी रहो,नियामतें तमाम तुम्हारे लिए बस

मांगी है..हाथ की लकीरें तेरी क्या कहती है,इस से परे तेरी ज़िंदगी कितनी बदले गी,लकीरों की तेरी

दुनियां मुझ को बदलनी आती है..गर यकीं ना हो तो खुद ही देखते जाना..वक़्त मिले तो खुद ही हम

को बता देना..यह प्यार का राज़ है यारा,जो जीवन तो क्या-हाथ की लकीरों को भी बदल देता है...

Monday 4 November 2019

प्यार मे भीगे दो शब्द क्या कहे आप ने,हम तो जैसे महक महक गए..इस से जयदा क्या चाहे आप से,

हम तो इन दो शब्दों मे ही खो गए..प्यार ही पूजा,प्यार के सिवा कोई और ना दूजा..मेहरबां मेरे,यू ही

रहना संग मेरे..प्यार मे डूबे डूबे..ज़िंदगी दे गी अब साँसों को कितनी मोहलत..अब हर सांस मे रहना

आप यू ही बहके बहके संग मेरे..प्यार की भाषा है इतनी मीठी,जिस का कोई नहीं है छोर..आप तो

आप है,कोई नहीं आप के जैसा कोई और...
टुकर-टुकर देखते रहे आसमां की तरफ,क्या हम इस को छू सकते है..खुद को परखा,खुद को जाना..

तैयार किया खुद को उड़ जाने के लिए..बाबा की हर हिदायत-माँ की हर सीख,साथ आज भी रखते है..

ज़माना राहें ना रोके हमारी,खौफ बिना खुद मे जीते है..कदम बेशक धीमे ही चले,मगर आसमां तो अब

हमारा है..झुकना थोड़ा सा उस को भी होगा,पंखो का साथ हम को ना लेना है..
शुद्ध प्रेम का नाता सूरत से कब होता है..सूरत अच्छी हो या बुरी,प्रेम सूरत से नहीं होता है...प्रेम तो वो

हस्ती है,जब होता है..होने के बहुत बाद सूरत को देखा करता है...रूह का सूंदर होना,मन का बेहद सूंदर

होना..सिर्फ यह दो हो तो प्रेम बहुत खूबसूरत हो जाता है..फिर यह नाता इक जन्म नहीं,अनंत काल तक

होता है..रूप बदल यह प्रेम,हर जन्म अलग रंग मे ढलता है..रूह को जब पहचाने रूह,इक दूजे मे बस

जाए रूह..इक है घायल तो दूजा भी घायल,प्रेम है ऐसा पावन पावन..

Sunday 3 November 2019

''सरगोशियां,प्रेम ग्रन्थ''..जिस मे लिखे जाने वाला हर शब्द एक शायरा / एक कलाकार /एक लेखिका
की मेहनत का निचोड़ है..अफ़सोस की बात है कि कुछ ग़लत मानसिकता वाले लोग इन शब्दों को या तो अपनी ज़िंदगी से जोड़ते है या फिर मेरी..एक सज़्ज़न लिखते है कि'' आप बहुत दुखी है क्या''..आप के शब्दों मे दर्द क्यों है ? क्या कहू इन जैसो से..क्यों कि इन शब्दों को लिखने वाली इक महिला है..क्या उस को यह समाज लेखिका /शायरा /कलाकार बनने से रोकना चाहता है ? गलत सोच के लोगो से दुःख होता है.पूछती हू इन जैसे तमाम इंसानो से कि अगर इन शब्दों को कोई पुरुष लिखता है तो क्या उस को भी आप की गन्दी सोच यही कहे गी ???? निवेदन करती हू आप जैसी सोच वालो से,जब किसी कला को आप समझ ही नहीं पा रहे तो मेरी मित्र-सूची से खुद ही बाहर हो जाए...एक महिला को उस के शिखर तक पहुंचने मे कोई मदद नहीं कर सकते तो कम से कम उस के रास्ते का रोड़ा मत बने..पढ़ाई-लिखाई क्या आप जैसो को यह सिखाती है ???????? किसी के भी कहने से,मेरी कलम लिखना नहीं छोड़ सकती..अपनी सोच को विकसित करे,किसी के निजी जीवन मे ना झांके..शायद इतना काफी है,आप जैसो को समझाने के लिए......'''''''शायरा...सरगोशियां..इक  प्रेम ग्रन्थ.''''''''''''

ना जाओ दूर इतना मुझ से कि तुम हमी से वक़्त लेने को तरस जाओ...मसरूफ हम जो हुए अपने

जीवन मे तो तुम सिर्फ ढूंढ़ते हम को रह जाओ गे..यह भी इक बलिदान है हमारी मुहब्बत के लिए..

जो इतनी गहरे प्रेम की कदर ना कर पाया,वो जीवन मे किस बात की कदर कर पाए गा..सारी दुनियाँ

मे हम जैसे कोई मिल जाए तो सोच लेना,कि राधा एक नहीं दो भी हो सकती है..इसी यकीं को जब

दिलो दो गे मुझे,तो हम तो ख़ुशी-ख़ुशी तेरे जीवन से निकल जाए गे...
नज़रअंदाज़ हम को इतना करना..बेवजह हमी से दूर-दूर रहना..खता क्या है हमारी,समझ नहीं पा रहे..

तेरे प्यार की वो शोखी,ढूंढ़ते है तुझ मे आज भी..सहज सरल है आज भी उतना,मिले थे जब तुझे उतना...

वादा करते है,तेरी राहों मे तुझे बदनाम करने कभी ना आए गे..चाहने से गर सब मिल जाता तो हम तुझ

से अपनी खता ही पूछ लेते..प्यार का इक नाम त्याग-बलिदान भी है..तेरी खुशियों के लिए,हम खुद ही

धीरे-धीरे तुम से दूर हो जाए गे..
प्रेम की इस इंतिहा को तुम कितना समझे,पता नहीं..गर हमारी इतनी मुहब्बत के बाद भी,तुम हमारे

ना हो सके तो किसी और के क्या हो पाओ गे..अरसे बाद शायद तुम समझ पाओ गे इस मुहब्बत की

कीमत..तब तक हम त्याग की मूरत बन,अपनी ही दुनियाँ मे ग़ुम हो जाए गे..नाम तेरे को साथ लिए

जीवन का यह सफ़र निभा जाए गे..अफ़सोस,यह दिन तब लौट कर ना आए गे..
सुबह की इस खूबसूरती पे दिल से फ़िदा हो गए है..हल्की हल्की सर्द हवा मे जैसे खो गए है..कुछ

माँगा खुदा से और खुदा को ही समर्पित हो गए है..नमाज़ की रस्म अदा करे या मंदिर मे फूल अर्पित

करे..जब दुनियाँ चलती है एक ही नाम से तो अलग अलग सजदा क्यों करे..प्यार बिखरा है जब चारो

तरफ तो कैसे ना कहे,मालिक मेरे--आप का शुक्रिया..शुक्रिया..
शामे-ग़ज़ल लिखे आप पे या आप के रुखसार से नज़रे हटा ले..दुआ मे हर पल रखे आप को या दुआ ही

बन जाए आप के लिए..दुनियाँ क्या कहती है आप के लिए,क्या लेना-देना है मुझ को उस से..समझदारी

से आप को समझाए या मासूमियत से आप को पागल कर दे...दीवाना करने की वजह बने या खुद को

आप मे ही शामिल कर ले..क्या करे आप का..जलते दिए की लौ बने या दीपक बन आप को राह दिखाते

जाए...
दर्द आज भी तेरी बेरुखी का दिल को हिला देता है..कभी जो दो पल तू गुफ्तगू कर ले मुझ से,यह

दिल जैसे फिर खिल जाता है...छोटी सी यह ज़िंदगी और साथ है हज़ारो गम,दो पल जो मुझे दो

गे ज़िंदगी के अपने..यक़ीनन खुश हो जाए गे हम..साँसे रुक जाए,इस से पहले तुझी को तुझ से

मांग सकते है हम..डरो मत,प्यार कभी कुछ माँगा नहीं करता..प्यार जो देना जानता है सिर्फ,वो

अपने प्यार से भला क्या मांग सकता है..
समर्पण और हवस का खेला..फर्क इन का किस ने देखा..जिसे माना दिल का मीत,समर्पण बना इबादत

का रूप..पाक बनाया जब दोनों ने इस को,समर्पण बन गया पूजा का फूल..तू मेरा मैं भी तेरी,महीन सा

धागा बना इक प्रीत...''हवस,नाम है देह का इक खेल''..आज साथ है तेरा तो कल कोई और होगा मेरा

नया मीत..बंधन का वादा देते,हवस साथ मे बांधे रखते..पल का रिश्ता पल मे टूटा..''समर्पण इबादत

सदियों का नाता,तू ही साथी तू ही वादा''...

Saturday 2 November 2019

कभी राधा कभी मीरा तो कभी पार्वती का रूप धर...यह प्रेम-गाथाएं जग को प्रेम सिखाती रही..राधा

जिस ने कृष्णा को कभी पाया ही नहीं,मीरा जिस के विष मे भी प्यार इक अमृत था...शिव को आराध्य

मान पार्वती उन से जुडी रही..प्रेम का यह अलौकिक रूप जितना जग मे होगा,प्यार का रूप उतना ही

सुंदर होगा..रिश्ते का मोहताज़ कहां है प्रेम..दौलत मे नहीं है प्रेम..तोहफों से बहुत दूर है यह प्रेम..भरोसा

विश्वास के धर्म से बंधा है यह प्रेम..राधा-कृष्ण के प्रेम को जाना तभी तो प्रेम को प्रेम माना.....
''खुद ही खुद की कदर का एहसास बार-बार दिलाना...कभी आप ने हम को प्यार से पुकारा था,कभी

हम को आप ने अपनी ज़िंदगी मे शामिल भी किया था..''  किसी से प्यार छीना नहीं जाता,किसी को

अपना जबरदस्ती बनाया भी नहीं जाता..इस प्रेम की लौ जब खुद से जले तो ही दो दिलो को रौशन

करती है..''प्यार जिस्मों का मेल नहीं शायद,प्यार दौलत का खेल नहीं शायद..प्यार तो सिर्फ प्यार

है,जो रूह को रूह से जोड़े..प्यार की इंतिहा ऐसी ही है''....


कभी टूट के चाहना तो कभी दिल ही तोड़ देना..कभी बेइंतिहा रुला देना तो कभी प्यार से सकून की नींद

सुला देना..पलकों को भीगने पे मजबूर कर देना,इतना भिगो देना कि बरसात का असर भी फीका

पड़ना..क्या प्यार ऐसा भी होता है..''प्यार को प्यार मे रंगो इतना,कि मिसाल इस से जयदा प्यार की

कोई दे ना सके..पूजा के धागों मे जो बंध जाए इतना कि प्यार को कोई नाम,कोई रिश्ता देना की जरुरत

 ना हो..गर प्यार को हर कोई समझ पाता,जान पाता तो प्यार इक दास्तां बन कर ना रह जाता''



जो भी किया रूह के कहने से किया...रूह की इज़ाज़त के बिना कुछ ना किया..राह की तलाश मे कितना

भटके,रूह का साथ तब भी रहा..जब भी उदास हुए,जब भी आंसू बहने लगे..ज़िंदगी से जब कभी बेज़ार

हुए,आवाज़ तब भी रूह की सुनते रहे..कमज़ोर ना पड़ना कभी किसी के आगे,मजबूती से चलना आगे..

यह आदेश जब खुद रूह ने दिया,आंसू सूख गए..मुस्कुराने के लिए लब जो हिले,हम तो बस अपनी रूह 

के साथ हुए..
बात इतनी सी है मगर समझ-समझ की है..प्रेम जो पाक-साफ़ रहे गा तेरा-मेरा,तभी साथ इक दूजे के

रहे गे..ज़िंदगी मे गर तेरे या फिर मेरे.. किसी और की दस्तक भी हुई,तो दूर हमेशा के लिए हो जाए गे..

बेवफाई का दर्द क्यों सहना है,मुहब्बत को ही खतम कर जाए गे..ज़िंदगी का नाम है''जीना है इसे या

नहीं जीना है''प्यार इतना भी नहीं इस जीवन से..तेरे साथ मे गर वफ़ा नहीं,तो जीना भी क्या जीना है..

Friday 1 November 2019

तुझ को चुने या अपने आत्म-सम्मान को चुने..तुम को जब हमारी कदर ही नहीं,तो क्यों ना अपने

आत्म-सम्मान के साथ चले..दौलत-रुतबा शौक नहीं हमारा..जग हमारे बारे मे सब जाने,यह अधिकार

किसी को नहीं दिया हम ने..ख़ामोशी से सब को जीना सिखाया,रोने वालो को हंसना भी सिखाया..दर्द

अपने को भूल कर तुम को भी,दर्द से निकलना सिखाया..बेवफाई कर के तुम ने आज,मेरा मन बहुत

दुखाया..देह का मैला होना और रूह को भी मैला करना..इन दोनों का फर्क अब खुद ही जान लेना...
ना कर इतना गुमान अपनी सूरत पे..तेरी इस सूरत को तो हम ने कभी देखा ही नहीं..ना इतरा देह पे

अपनी कि इस देह से कोई नाता रखा ही नहीं..प्रेम ना कभी सूरत से ना कभी देह से होता है..वो तो बस

रूह से होता है..तेरी बेवफाई ने आज यह साबित कर दिया कि मुहब्बत,प्यार और प्रेम के फर्क से  तू

कभी वाकिफ हुआ ही नहीं..शायद तुम ही अब काबिल नहीं हमारे शुद्ध प्रेम के..रूह के नाते से तुम कभी

जुड़े ही नहीं..रूह अपनी को मैली ना करना कि तेरी इबादत फिर ना करे सके गे कभी...
गुफ्तगू का अंदाज़ बदला तो हम को उन की बेरुखी समझ आई..वक़्त नहीं है अब हमारे लिए,यह बात

ठीक से अब समझ आई..दबे थे जब काम के बोझ से तो पास हमारे आने की जरुरत क्या थी..कोई और

आया है गर ज़िंदगी मे आप के तो क्या हुआ..अब टूटे गे नहीं बेहद ख़ामोशी से आप की ज़िंदगी से

निकल जाए गे..वो प्यार ही क्या जो तेरी बेरुखी पे दम तोड़ दे..किसी और को बेशक चाहो,याद रहे

प्यार की हमारी यह इबादत कोई और नहीं करे गा,आप के लिए..आप को आज़ाद करते है,नई

मुहब्बत के लिए..
राह मे रुकी कोई इमारत नहीं है हम...खामोश रहते है बहुत,मतलब इस का यह तो नहीं..जुबान-बंद

है हम..यह लब खुलते है सिर्फ दुआ बन कर..आँखों का यह आशियाना उठता है तुझे पनाह देने के लिए..

खुद को देख मेरी नज़रो से जरा,पलकों पे बिठाया है तेरी हर ख्वाईश को सुनहरे सपने की तरह..दिल

की धड़कन बेशक रूकती है तो रुक जाए,तेरे रुखसार पे कोई ऊँगली क्यों उठाए...मखमली पिटारे मे

रखते है तुझे संभाल के,नज़र किसी की ना लगे..काला टीका लगा देते है बचा के सब से..
प्यार पे जितना भी लिखा..इन्ही पन्नो को सौंप दिया..प्रेम-ग्रन्थ बना कर इस को दुनियां वालो के

हाथों मे दिया..यह दुनियां जो वाकिफ नहीं इस प्यार की सच्चाई से..दुनियां जो जानती है इस प्यार

को,लेने-देने की इक परछाई सी..पाने की जो सोचो गे तो प्यार की भाषा कैसे समझो गे..समर्पण को

खुदा मानो गे, तभी काजल की तरह प्यार को आँखों मे बसा पाओ गे..हम ने जितनी बार इन पन्नो को

छुआ,हर बार...बार-बार इस प्यार की खुशबू को महसूस किया...
रूप इबादत के कितने देखे..तुझे कभी देखा नहीं,फिर भी प्रेम की डोर तुम से बाँधी..इबादत है ऐसी..

मिले गे शायद कभी नहीं,पर खवाब तेरे देखे..यह भी इबादत है ऐसी...कुछ माँगा नहीं तुम से,फिर

भी सब पाया मैंने..इबादत है ऐसी..बेरुखी को सहते गए,मगर प्यार फिर भी तुम्ही से हुआ..इबादत की

हद है ऐसी..गुफ्तगू तू भले कभी ना करे,मगर बात तो खुद से करते है तेरी..देख ना,मेरी इबादत तेरे

लिए,है कैसी...

ख़ामोशी आप की कभी तो कुछ बोले गी..सदियों जो इंतज़ार किया आप का,वो दुआ कभी तो कुछ खोले

गी..मेहरबान जो रहा खुदा हम पे,मुहब्बत रंग लाए गी हमारी..जो ढली इबादत मे,जो शिरकत हुई आप

की खुशियों मे..नमाज़ खुदा की हम पढ़ते है,मस्जिद मे भी हम झुकते है..मंदिर की चौखट पे सर झुका

अपना,आप के लिए हज़ारो मन्नतें मांगते है..एहसान कोई नहीं करते आप पे,सिर्फ अपनी मुहब्बत को

दुआ देते है..रूह को किया जब हवाले आप के तो खुदा के बाद,खुदा भी तो आप को ही कहते है..
प्रेम और चाहत..चाहत और प्रेम..इन दोनों को जब धयान से जांचा,फर्क दोनों मे नज़र आया..''देह का

जहा मोल नहीं,मिलना भी जहा कोई खेल नहीं..साथी को पूजा इतना..बेशक मिलन लिखा नहीं,प्रेम का

रूप तो ज़िंदा है..खुश रह अपनी दुनियां मे..प्रेम हमारा तो तब तक है,जब तक दुनियां कायम है''..बात

करे जो चाहत की ''चाहत का रूप दूजा है..तुझ को चाहा,मगर तुझे पा लेना अब मकसद है मेरा..क्यों कि

तू है सिर्फ अब मेरा''...प्रेम की भाषा इतनी प्यारी,हवा मे घुलती जान हमारी..रूह से तू मेरा मैं हू रूह

तेरी..सदियों चले गी तेरी-मेरी गाथा ऐसी..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...