Friday 18 December 2020

 इतनी सारी ओस की बूंदे और इन का हमारे गेसुओं पे ठहर जाना...नंगे पाँव घास पे चलना और इन को 


दुलार देना...ओस की इन बूंदो से हम ने कहा..ठहरी रहो इन गेसुओं पे,ताकि ज़माना जान ना पाए कि 


यह आंखे भरी है आंसुओ से इतना...अपनी मुस्कान से इस ज़माने को जीना जब सिखाया है तो क्यों इन 


को आंसुओ का प्याला छलकता देखने दे...सुन बात मेरी बूंदे ओस संग हमारे ठहर गई,यह कौन सा 


पाक रिश्ता यह मेरे संग निभा गई...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...