इतनी सारी ओस की बूंदे और इन का हमारे गेसुओं पे ठहर जाना...नंगे पाँव घास पे चलना और इन को
दुलार देना...ओस की इन बूंदो से हम ने कहा..ठहरी रहो इन गेसुओं पे,ताकि ज़माना जान ना पाए कि
यह आंखे भरी है आंसुओ से इतना...अपनी मुस्कान से इस ज़माने को जीना जब सिखाया है तो क्यों इन
को आंसुओ का प्याला छलकता देखने दे...सुन बात मेरी बूंदे ओस संग हमारे ठहर गई,यह कौन सा
पाक रिश्ता यह मेरे संग निभा गई...