Thursday 24 December 2020

 यह कौन सा अंदाज़ है जनाबे-आली आप का ...जी तो है मुस्कुराने का,पर लबों को बेदर्दी सी लिया..


वजह ना भी मिले हंसने की पर हम फिर भी खुल के हंस दिया करते है...दीवाना पागल यह दुनियाँ 


बेशक कहती रहे मगर पागलपन का यह अंदाज़ हमारा बहुत पुराना है...राह चलते किसी को देख 


मुस्कुरा भर दिए,उस को देख हँसता हम फिर अपनी राह निकल गए..पीछे मुड़ कर जो देखा तो वो 


अब तक ख़ुशी के माहौल मे था..जनाबे-आली,मुस्कुराने की कोई कीमत नहीं होती..जैसे यह ज़िंदगी 


कब ख़फ़ा हो जाए,इस की भी कोई गारंटी नहीं होती...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...