Tuesday 30 June 2020

तेरे गुनाहो के बोझ से अब तो यह धरती भी काँप रही..रुक जा रे इंसान,थोड़ी मर्ज़ी अब कुदरत की भी

चलने दे...कितना और खिलाफ चलना है तुझे इस कुदरत के,जब तबाह वो कर दे गी तुझे सम्पूर्णता से..

तब ना दौलत साथ दे गी तेरा,ना कोई अपना पास होगा तेरा...रह जाए गी सन्नाटे मे चीखे तेरी,उस की

आवाज़ भी किसी तक ना पहुंच पाए गी...वक़्त तो अभी भी दे रही है धरती तुझ को,मगर खुद का गुमा

तेरा अभी भी गया नहीं...यह धरती माँ है हमारी,ना दे इस को इतनी तकलीफ कि छाती फट जाए माँ

की तुझे तबाह करने के लिए...

माना कि ज़लज़ला और क़हर अभी कायम है..मगर यह इंसा बहुत मायूस और अजीब किस्म का प्राणी

है...जब खुश होता है तो गुनाह अपने भूल जाता है..अपने भगवान् तक को बिसरा देता है..जब आता है

दुःख तो अपने अपराधों के लिए,उसी भगवान् को ही दोष देता है...कोई मेहरबां समझाए तो उसी पे बरस

देता है..फितरत तो देखिए इस की,जो भगवान् का ना हुआ वो अपने मेहरबानों का क्या होगा...रोना ही

इस की किस्मत है तो भगवान् को भी अब कुछ ना करना होगा....
कभी हो बर्फ की शिला जैसे तो कभी बारूद का गोला हो...कभी उठाते हो नाज़ हमारे तो कभी अचानक

धरा पे हम को पटक देते हो...कभी बोलते रहना है इतना तो कभी दिनों चुप्पी साधे रखते हो...पल मे

तोला तो बाबा रे पल मे माशा हो तुम ..तेरे इस रवैए से कभी डर जाते थे हम,पर अब सकून से रहते है...

जब हम बढ़ाए गे दूरियां तो चारो खाने चित्त हो जाओ गे तुम...इम्तिहान ना ले हमारा इतना,बहुत पछताओ

गे तुम...रात हो रही है गहरी,इस से जयदा कुछ और नहीं कहे गे अब....
शोहरत की बुलंदी को छूना है तुझे तो खुद को बदलना होगा..ज़माना परखता है हर मोड़ पर सो लहज़ा

बोलने का बदलना होगा..सिर्फ इतना कहा तो ज़नाब बिफर गए,प्रवचन ना बोलिए..यह प्रवचन खुद के

पास ही रख लीजिए...हे अल्लाह,जो हम से ही उलझ ले वो ज़माने से कैसे निपटे गा..हर बात पे खफा हो

जाए वो बुलंदी को कैसे छू पाए गा..पर कसम तो हम ने भी इसी बुलंदी की खाई है...तू ना सुधरे तो क्या..

यह हमारी दुआ से खुद तेरे पास चल कर आए गी...यह जो तुझे लगते है प्रवचन,वही सुनने एक दिन तू

खुद की मर्ज़ी से पास हमारे आए गा...
इंतज़ार की यह कौन सी बेला रही ...वो आए भी हम से गुफ्तगू करने और बिन बोले लौट  भी गए...वो

दीवाना पागल है या कजरे की धार जैसा तीखा...कोई  इंतज़ार करता रहा और वो पगला बात अधूरी

छोड़ बादलों मे कही ग़ुम हो गया...हम उस को समझते थे सिरफिरा पर यह तो हद से जयदा दीवाना

निकला..देर तक सोचते रहे,वो दुनियाँ की कौन सी पहेली है जिस को सुलझाते है जितना हम,वो उतना

ही उलझ जाता है...दीवानगी की हद से जयदा दीवाना होना शयद यही होता है....

Monday 29 June 2020

कैसी-कैसी चल रही यह ज़िंदगी...हर रोज़ उधार की साँसे दे रही यह ज़िंदगी...कितना वक़्त और दे

गी जीने का,यह बता भी नहीं रही यह ज़िंदगी...हर सांस अब तो जी ले,खुद को समझा रही खुद की

आवाज़ और यह अनगिनित ख्वाइशें...कुछ गिला नहीं,कोई शिकवा भी नहीं तुझ से ज़िंदगी...जी  गए

तो फिर बिंदास जी ले गे तुझे ज़िंदगी..जो तूने साथ छोड़ दिया तो भी ख़ुशी-ख़ुशी कहना मान ले गे

तेरा ऐ ज़िंदगी...
पन्नों पे आज स्याही बिखरी तो दवात बोल पड़ी...ना लिख प्रेम पे इतना,यह ज़माना बहुत दगाबाज़ है...

वादे करता है बहुत पर निभाने के नाम पे इसी ज़माने की दुहाई देने लगता है..सुन गौर से,यह आज

तेरा है तो कल किसी और के नज़दीक हो जाए गा...उस से भी करे गा वो तमाम वादे जो कभी तेरे

साथ किया करता था..जब उस से भी मन भर जाए गा तो फिर रोनी सूरत बना तेरे पास लौट आए गा..

''प्यार,प्रेम,मुहब्बत..यह खिलौने नहीं होते..यह वो बंधन है जो रोज़ टूटने के लिए नहीं होते..तू बस स्याही

बन साथ चल मेरे..और दवात,तुझे हक नहीं दिया कोई मैंने..यह प्रेम की परिभाषा लिखी हुई हमारी

है और इस को मिटाने की ज़िम्मेदारी भी हमारी है''..........
नख़रे कितने उठाए तेरे कि तेरे कदम तो अब धरती पे पड़ते ही नहीं...तुझे चाहा शिद्दत से,इस का यह

मतलब तो नहीं कि तू गिरा दे मुझे मेरे ही ज़मीर से....कुछ रंग प्यार के ऐसे भी होते है जो बेरुखी से

सफ़ेद भी हो जाते है..तुझे खुदा माना मैंने और तुम ने, वज़ूद मेरे को मिटा दिया इक ही पल मे...तेरे

लिए मुहब्बत इक खेल रहा होगा..लगता है तुझे अब कोई और मिल गया होगा...गर है ऐसा तो इतना

सुनते जाओ,तुम्हे सर से पांव तक अपनी दुआओं मे बांधा था..और आज उन दुआओं के घेरे से तुझे

आज़ाद भी कर दिया हम ने...
यह कौन सा अधिकार था,जिस ने उस को मेरे बेहद करीब ला दिया...वो एक फ़ुरसत की ही खूबसूरत

शाम थी,जिस ने उस को मेरा दीवाना बना दिया...दीवानगी का साथ हुआ इतना प्यारा कि सिलसिला इस

ज़िंदगी का और भी सुहाना हो गया...गुनगुनाता था वो मुझ को ऐसे,जैसे रात मे सवेरे का एहसास सा हो

गया...तुनकमिज़ाजी के किस्से मशहूर थे उस के,हम से क्या मिला वो तो खुदा का भी खास बंदा बन गया...

मासूमियत भरा चेहरा हुआ उस का और वो ज़न्नत का बादशाह बन गया...

Sunday 28 June 2020

प्रेम की यह कौन सी सीमा थी जहां प्रेम सिर्फ नदिया की बहती धारा थी...वो उस की प्रेयसी थी और वो

उस की साँसे था...एक था आसमां के उस पार तो दूजा जमीं का किनारा था...मिलना कभी लिखा ना था

पर मिलन फिर भी मुकम्मल था...गज़ब पे गज़ब,ना प्रेम था जिस्म का ना दौलत का कोई नामो-निशां ही

था...फिर भी रोज़ का आना-जाना था...इंतिहा प्रेम की ना जानते थे दोनों,ईमानदारी का दोनों पे पहरा

था..बस खुदा गवाह था उन दोनों का...कि यह प्रेम दुनियां से परे इक इबादत था...
नन्ही-नन्ही बूंदे बरस कर धीमे-धीमे,कह रही हो जैसे हम से...नींद की इस बेला मे सो जाना है तुझ को...

उस के धीमे बरसने का हल्का शोर लग रहा है. जैसे लोरी सुना रहा है हमे...लोरी सुने बरस बीत गए...

माँ की गोद से उतरे बचपन के खिलौने पीछे छूट गए...मद्धम-मद्धम बूंदो की यह आवाज़,दिला गई

माँ की याद...लोरी बेशक सुने गे  इन नन्ही बूंदो की आज की रात,पर माँ याद आए गी हर बरसती बून्द

के साथ...याद आए गी हर.....बरसती बून्द.......के साथ...
निग़ाहों मे अचानक नमी का आ जाना...उदास होना पर खुद को ही ना बताना...सोचा था क्या और हुआ

क्या,बस इसी के एहसास से बिलख कर अश्रु का बहना...बहुत चाहा रोए गे बिलकुल भी नहीं..क्या हुआ

जो एहसास का जवाब एहसास नहीं आया..क्या हुआ जो ख़ुशी का मौका आज मिल नहीं पाया...जो

मिलता है तरसने के बाद वो खुदा की खास नियामत होती है...झोली हम ने फ़ैलाई तो क्या हुआ, उस

के दरबार मे सुनवाई कुछ वक़्त बाद हो जाए गी...उम्मीद का दामन थामे रखा है,आज नहीं तो कल

ख़ुशी लौट आए गी ........
शायद यह ख़ामोशी बहुत ही गहरी है तभी तो, हमारी आवाज़ तुम्हारे शहर की दीवारों से टकरा कर

वापिस लौट रही है...बहुत ज़ोर से पुकारा तुम को,मगर यह आवाज़ तो हमारे ही शहर मे घूम रही है..

हल्क़ से लगता है,आवाज़ की बुलंदी ही गायब है...कदम भी रुक गए है चलते-चलते,शायद ताकत इन

की भी कमजोर होने लगी है..आँखों के किनारे भीगे तो नहीं पर इंतज़ार के बोझ से जैसे सूख गए है...

आज के दिन को सुभान-अल्लाह कहना मुनासिब होगा,खास दिन है तभी तो आवाज़ का परिंदा इन

दीवारों से टकरा कर हमी तक लौट रहा है...
ज़िंदगी समझौतों का नाम है..पर यह कैसा और कौन सा समझौता है,जो कितनी ज़िंदगियों को बर्बाद

कर रहा है...यह ढोलक की थाप,यह घुंघरुओं की आवाज़ और उस आवाज़ की ताल पे थिरकते मजबूर

जिस्म और यह जान..सह रहे है दरिंदो की दरिंदगी और बेबस है इतने कि साँसों को लेना भी है मुश्किल...

कितने आए यहाँ और वादा कर गए साथ ले जाने का..सवाल अहम है यह..''क्या जिस्म को मैला करना इन

की मर्ज़ी थी..ज़िंदगी को यू जीना क्या इन की अपनी इच्छा थी...फिर क्यों इन के घर नहीं बसते..प्यार के

दरवाजे क्यों इन के लिए नहीं खुलते ''.....
नाज़ुक़ से भी बहुत नाज़ुक़ लता थी वो..अपने तने से मजबूती से लिपटी हुई थी वो...कैसे छोड़ देती अपने

सहारे को जिस के लिए जी रही थी वो अपनी साँसों को..ढाल बनी उस की खुद मे समेटी थी वो..उस को

जीवन का अर्थ बताने के वास्ते,अपनी बाहें उस के गले मे मजबूती से बांधे हुए थी वो...वाकिफ था उस का

साथी उस की वफादारी से..वो कितनी नाज़ुक़ है इस का अंदाज़ा तक था उसे..लिपट के उस के साथ उसी

की बाहों मे,दम भी तोड़ दे गे इक साथ इक दूजे की बाहों मे...

Saturday 27 June 2020

दुआ के हाथ फिर उठे इस जहाँ के लिए....

कही दर्द ना हो किसी के लिए....

ख़ुशी झलके हर आंगन के लिए....

कोई भूखा ना रहे इस नीले अम्बर तले....

तेरी रहमतें हो सभी के लिए....
सन्नाटे को और गहरा करती यह रात...हर छोटी सी आवाज़ भी सुनाई दे रही है इस रात...इतनी चुप्पी

और काली गहरी रात..सकून से सोने के लिए चाहिए थोड़ी सी हलचल और मामूली सी बरसात...टप-टप

बरसे बूंदे और यह आंखे सो जाए आज की रात...ज़िंदगी गुजर रही धीमे-धीमे जैसे दूर कही से आ रही

किसी के चलने की मद्धम-मद्धम चाल..क्यों है आज ऐसी रात...बहुत सपने भरे है इन काजल भरी आँखों

मे आज..हर छोटी सी आवाज़ भी सुनाई दे रही आज की रात......
आज़ा ना कही से आज पास मेरे..मुझे तेरी बहुत जरुरत है..काफिला दिल के जज्बातों का बहुत उदास

है...यह झांझर याद करती है उन ख़ुशी के लम्हो को...जो ख़त तूने कभी लिखे ही नहीं,यह आंखे उन्ही

का इंतज़ार करती है...तेरे कदमों की चाप सुनाई देने लगी है मुझे...यह बरखा भी बरसने लगी है जैसे...

तू जुड़ गया है मेरे वज़ूद से ऐसे,लगता ही नहीं कि तू कभी जुदा भी था मुझ से..अपने जिस्म से तेरे ही

जज्बातों की महक आती है..तेरे हाथों की उन लकीरों मे मुझे अपनी तक़दीर नज़र आती है..आज़ा ना

आज कही से पास मेरे,मुझे तेरी बहुत जरुरत है..
तेरी आंख से बहता हुआ इक अश्क हू मैं...तेरी ही तन्हाई मे तेरे साथ चलता हुआ तेरा साया हू मैं...

तू जब भी याद करे मुझे,तेरे ही आस-पास रहने वाला साया हू मैं...दिखाई दू या ना दू,लेकिन तेरे ही दिल

मे बसा तेरा हमराज़ हू मैं..रात के अँधेरे मे एक जलता हुआ दीया हू मैं...रंजो-गम की चादर क्यों ओढ़े

बैठे हो,मुस्कुरा दे कि तेरी हर तकलीफ का आराम हू मैं...अब यह तो पूछ मुझ से कि कौन हू मैं...जिसे

कुदरत ने रचा सिर्फ तेरे ही लिए,उसी कुदरत की दी एक सौगात हू मैं.......

यू ही हसरतों के बाज़ार मे खड़े रहना और तेरा हर पल इंतज़ार करना....कोई गुनाह तो नहीं...तेरे लिए

हर पल सोचना,तेरे लिए हर वक़्त फिक्रमंद रहना...कोई गलती तो नहीं मेरी...तेरी तस्वीर दिल मे लगाना

और तुझी से दिन-रात बातें करना..जाना,यही तक़दीर है अब मेरी...फासलों को ताक पर रख कर,रंग

प्रेम के तुझी पे उड़ेल देना...यह मेरी तेरे लिए सच्ची इबादत का नाम है तो गिला तुझ से क्यों करना...

जब कोई शिकायत करनी नहीं,तुझ से कोई उम्मीद तक करनी नहीं..तो इस प्रेम की लीला को प्रेम कह

देना,अपने शाश्वत-प्रेम की बेइज़्ज़ती तो बिलकुल भी नहीं...
''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ''.प्रेम के हज़ारो रूपों और ज़ज्बातो को अपने पन्नों पे सजाती,मेरी सरगोशियां रोज़ आप सभी के लिए कुछ नया लिखती रहे..कोशिश रहती है..गुजारिश सिर्फ इतनी,मेरे शब्द कभी किसी
व्यक्ति विशेष के लिए नहीं लिखे जाते...''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' है,जो प्रेम को इबादत,पूजा और सादगी के लफ्ज़ो से सजाता है...इस ग्रन्थ को मान-सम्मान दीजिए...पवित्र-प्रेम के अर्थ को समझने की कोशिश कीजिए...खुद को एक श्रेष्ठ लेखिका साबित कर सकू,पूरी कोशिश रहे गी.......''शायरा''
www.sargoshiyan.com  
बालपन से कभी मिले नहीं..पर क्यों लगता रहा,एहसासों से इक-दूजे के बेहद नज़दीक है...कभी किसी

को कुछ होता तो दूजा परेशां हो जाता..कभी कोई तन्हाई मे रोता तो दूजा भी कहीं दूर,बहुत दूर उसी के

लिए रो देता...बिना देखे बिना मिले,यह रिश्ता कौन सा था...बरसों बाद मिले भूले से,मगर रूहों ने बस

पहचान लिया..जिस्म दो है पर जान एक ही रहती है..रिश्ता नहीं जुड़ा कोई,पर राधा-कृष्णा की जोड़ी

है...प्रेम जिस्मों का मेल नहीं शायद...प्रेम दौलत का नाम भी नहीं शायद...प्रेम नाम पूजा की थाली है...

बरसों बाद वो मिली उस को जिस हाल मे..वो पहचान भी ना पाया उस को बदहवासी के उस हाल मे..

अंदेशा हुआ बस इतना कि यह चेहरा कुछ जाना-पहचाना है..पुकारा उसी के खास नाम से जब उस ने,

रूह हिल गई कही अंदर से..खौफ नहीं था दुनियाँ की नज़रो का अब..लिपट गए एक-दूजे से तब..जाना 

कि वो दरिंदो के पंजो से निकल भागी है..परवरदिगार,तेरी दुनियाँ निराली है...कही इंसा दरिंदे बन मासूमों

की इज़्ज़त रौंद देते है तो यही ऐसे भी इंसान है,जो अपने प्यार को इस हाल मे भी अपना लेते है...
बरसों बाद वो मिली उस को जिस हाल मे..वो पहचान भी ना पाया उस को बदहवासी के उस हाल मे..

अंदेशा हुआ बस इतना कि यह चेहरा कुछ जाना-पहचाना है..पुकारा उसी के खास नाम से जब उस ने,

रूह हिल गई कही अंदर से..खौफ नहीं था दुनियाँ की नज़रो का अब..लिपट गए एक-दूजे से तब..जाना 

कि वो दरिंदो के पंजो से निकल भागी है..परवरदिगार,तेरी दुनियाँ निराली है...कही इंसा दरिंदे बन मासूमों

की इज़्ज़त रौंद देते है तो यही ऐसे भी इंसान है,जो अपने प्यार को इस हाल मे भी अपना लेते है...
 ''प्रेम को पढ़ते है किताबों मे...प्रेम को पढ़ा है वेदों-ग्रंथो मे..कैसा होता है यह प्रेम..कितनी सीमा तक रहता

है यह प्रेम...कब तक रहता है यह प्रेम'' यह सवाल दाग दिए उस अजनबी से शख्स ने...''''प्रेम,रूह का वो

धागा है जो होता है महीन बहुत,मगर इबादत की उस इमारत  पे बसता है जहां सिर्फ गिनती के प्रेमी ही

पहुंच पाते है...क्यों कि ईमानदारी की रस्में विरले ही निभा पाते है..प्रेम ऊब जाने का जज़्बा नहीं..साथी

को ग़ुरबत मे छोड़ किसी दौलतमंद का हाथ थाम लेना,प्रेम कदापि नहीं..शाश्वत प्रेम तो वही कहलाता है,

जहां जिस्म से जयदा रूह का बंधन होता है..तभी तो रूहों का प्रेम अनंतकाल तक और शाश्वत रहता है..

Friday 26 June 2020

यह कजरा इन आँखों से क्यों बिखर गया..यह गज़रा इन गेसुओं मे क्यों उलझ गया...चूड़ियों के शोर मे

क्यों सजना ने कलाइयों को मरोड़ दिया...आज यह ख़ामोशी क्यों जुबां बन गई...शोर सुन कर भी यह

अंखिया गहरी नींद मे सो गई...करधनी कमर के बांध से क्यों खुल गई...अंगड़ाई लेते-लेते इस बदन से

जान जैसे निख़र-निख़र गई...पूछ ना हालत इस दिल की आज,इस की महक से चांदनी तक बहक गई...

उड़ रहे है क्यों आसमां मे आज, मुहब्बत के ख़ज़ानों से झोली से हमारी भर-भर गई...
वो खूबसूरत से अल्फ़ाज़ दिल मे उतर गए...शायद वो अल्फ़ाज़ नहीं,दिल के धड़कने की आवाज़ थी...

दिल जो पास ना हो कर भी,बहुत पास था..इतना पास कि जैसे कोई खूबसूरत सा खवाब...संभाल के

रख लिए वो बेशकीमती अल्फ़ाज़ जो हर पल याद दिलाए गे किसी के नज़दीक होने का एहसास..कौन

कहता है ज़िंदगी खूबसूरत नहीं होती...वो तब भी खूबसूरत होती है जब दर्द के दायरे मे घिरी होती है..

नज़रिया खुद का होता है,कही अल्फ़ाज़ होते है तो कही दर्द की बेला..हम ने दर्द की बेला मे उन

अल्फाज़ो को चुना और ज़िंदगी को फिर खूबसूरत नाम से सज़ा दिया...

इतने आंसू..बेतहाशा आंसू...इन का मकसद क्या है...तेरे आंसुओ से कोई पिघल जाए या तेरे दर्दे-दिल

से पसीज जाए...यूं आँखों से अश्क बहा देना..बेवजह दुनियां को अपना दर्दे-दिल दिखा देना...तेरे अश्क़ो

की कोई कीमत नहीं लगाए गा यह निष्ठुर ज़माना..यह मत समझना तेरे दर्द को ख़ुशी मे बदल दे गा यह

पापी ज़माना...रो कर खुद को बरबाद ना कर,फिर भी रोना ही है तो तन्हाई मे अकेले से रो..सूखी-रूखी

अकेले मे खा लेना पर ज़माने को ख़ुशी से अपनी ख़ुशी जता देना...अपने ज़मीर पे लिख ले बात मेरी...

मुस्कुरा खुल के इतना कि तेरे दिल के राज़ ना जान पाए कोई कभी ना..यह ज़माना है यारा,अंगुली

उठाने को तैयार रहता है..खुद मर रहा हो बेशक, मगर तमाशा दूजो की ज़िंदगी का खुल के देखा

करता है.....
साँसों ने एक सवाल अर्ज़ किया हमारी खिदमत मे...इतना तो हम भी नहीं महकते,जितना तुम एक बार

ही महक लेते हो...जब तल्क़ आते है हम अपनी दूजी पारी पे,तब तल्क़ तुम सौ बार हम को जी लेते हो..

कहाँ से इतना  बिंदास जीना सीखे हो..डरते नहीं कि हम कभी भी रुक सकते है...जवाब देने की बारी

अब हमारी थी..'' जीते है बिंदास तभी तो तुम खिदमत मे हमारी आए हो,,सवाल तुम ने किया है,हम तो

जवाब के इस दौर मे भी बिंदास है..जब चाहे बेशक रुक जाना,तुझ से गिला भी क्या करना..जितनी देर

हो साथ मेरे,तेरा साथ बहुत प्यारा है...चली जाना जब जाना हो..बस अभी बिंदास मुझे जीने दो''..... 

Thursday 25 June 2020

यह दिन का उजाला है या कोई मन्नत की शाम...क्यों दुल्हन की तरह सजने को तैयार है यह दिन-शाम..

ज़ी है, लगा दे इस दिन को बिंदिया और शाम को पहना दे सच्चे मोतियों का हार...दिन के हर लम्हे को

कहे मुबारक और झूम के नाचे इस के साथ...नाज़ तब तल्क़ उठाए जब तक आए ना शाम...क्या कहे

शाम भी तो महकने वाली है..क्यों लगता है यह साथ मिल के इसी दिन के,कोई ज़शन मनाने वाली है..

उजाला हुआ तो सूरज भी हैरान हुआ कि यह उजाला तो उस के करिश्मे से जयदा सुनहरा है..बात होगी

जब शाम मे चाँद की,उस के पास तो कोई जवाब ही ना होगा...गज़ब अल्लाह,यह दिन है या मन्नत की

कोई शाम...
उस दिल से क्यों आ रही है इक रौशनी दीदार की...बुझा हुआ जो दीया था कभी, वो बन के चाँद एकाएक

क्यों रौशन हुआ...असर हुआ क्या किसी के वज़ूद का..क्या असर हुआ किसी अनदेखी रौशनी के उस

पुरज़ोर अक्स का...चलते-चलते ज़िंदगी की राहों मे,यह दीया बस बुझने को था..जो संभाल पाए ना खुद

को तेज़ हवा के झोकों से..उस के लिए किसी ने उसी का वज़ूद बन कर,क्यों एकाएक थाम लिया..आज

वो दिल महकने चला है,खुशबू भरी बगिया के साथ..तभी तो हम को आ रही है रौशनी उसी के रौशन

दिल के बाग़बान से...
पांव फैलाए बैठे है समंदर के इस खारे नीर मे...और सोच भी रहे है,इस की गहराई को...अक्सर इसी

को सोचा करते है..इस की गहराई को नापने की कोशिश मे,खुद अपने पांव इस के खारे नीर मे भिगो

दिया करते है...देर तक भिगोने से पांव अपने,हम को लगता है किसी दिन यह खारे से मीठा हो जाए गा..

अपने यकीन पे है यकीन इतना..जो यह मीठा ना हुआ तो क्या हुआ,इस के खारेपन को निगल जाए गे..

रह जाए गा जो नीर बाकी वो हमारे पांव के छूने से पारस तो हो ही जाए गा....

Wednesday 24 June 2020

आप ने खुद को खुदा मान लिया तो हम क्या करे...आप ने हम को अपनी चाहत कहा तो भला हम क्या

करे...बंजारे है,कही रुकते नहीं...भरे है खुद्दारी से,किसी की सुनते नहीं..दौलत आती रही किसी ना किसी 

बहाने से,हम को लुभाने के लिए..हम थे मन्नत के धागो से जुड़े,दौलत का क्या करते...जैसे आप ने माना

 हम को चाहत,वैसे लाखो भी मानते रहे..पीछे मुड़ कर कभी देखा नहीं,आगे खड़ी थी स्वाभिमान से भरी

ज़िंदगी मेरी..अब आप खुद को माने खुदा या माने चाहत मेरी, तो गलती है कहां मेरी...
हर छोटी सी बात पे रो दे,ऐसे भी नहीं है हम...हर नन्ही ख़ुशी पे बेवजह खिलखिला दे,इतने दीवाने भी

नहीं...किसी ने दामन अपना हम से खींच लिया यू ही,खुदा कसम हम उस को जताते तक नहीं..ज़माने

ने बार-बार हम को अपमानित किया,हम ने उस की गलियों मे जाना ही छोड़ दिया...चीखे नहीं,बस यू ही

इत्मीनान से अपने आशियाने बस गए..ठोकरों से खेलना शौक है हमारा बचपन से,विदा करना खुद अपने

हाथो से सन्नाटों को..यह कला सीखी अपने आप से हम ने..
सुनते थे आसमाँ से आगे इक जहाँ और भी है...बाबा कहा करते थे,''दुआ गर सच्ची हो तो उस के दरबार

मे कबूल होती है...मेहनत गर करो गे पूरी शिद्दत से और दिलों को छुओ गे पाकीजगी से, तो कौन है इस

दुनियाँ में जो तुम को आसमाँ को छूने से रोके गा''...हम को आज आसमाँ से आगे का जहाँ क्यों दिख रहा

है..क्यों लग रहा है,बहुत जल्द हम इन पन्नो की शान बन जाए गे...एक एक लफ्ज़ बने गा हमारी पहचान

और आसमाँ का वो सिरा हमारे पन्नो की ज़मी का दोस्त बन जाए गा...बाबा से किया हर वादा निभाए गे..

धरा से जुड़े है,इसी धरा की मट्टी मे जीवन अपना बिताए गे...
क्यों बुझे-बुझे से हो..कभी मुस्कुराया भी करो...ज़िंदगी जो भी दे देती रहे,शुक्राना कर इस ज़िंदगी को

जी भी लिया करो...कल था बहुत कुछ पास हमारे,तब भी तुम को और पाने का इंतज़ार था...तब भी

थक जाते थे तुम्हारे कदम और ज़िंदगी मे अजीब सा वीराना था..हम ने सीखा है जीना जीवन इन नदियों

से,इन झरनों से...छन-छन बरसती बरखा से...गर दौलत दिल को पूरा सकून देती तो हम भी दौलत को

खुदा कह देते..अरे पगले,उठ और देख बाहर क्या नज़ारा है..फूल खिले है जगह-जगह और फ़िज़ा हद

से जयदा प्यारी है..ना रहो बुझे-बुझे कि हम ने तो अपने लबो को मुस्कुराना ही सिखाया है...
क्यों छलक गए यह नैना तेरी बात सुन कर...कुछ तेरा प्यार और कुछ मेरा विश्वास,मिल के कर गए

इतना कमाल...अरमान दबा कर रखा था जो सीने मे,वो क्यों आज तेरी आवाज़ सुन हकीकत मे

बदलने लगा...हम है आज सांतवे आसमान पर,यह हम देख रहे है खवाब या दिन मे चाँद खुद आ

गया...अक्सर बाते करते रहते है रात भर सितारों से,यू लग रहा है सितारों का झुरमुट आंगन हमारे

खुद ही आ गया...शुक्रगुजार रहे गे ताउम्र तेरे लिए हम,कि जो तुम करने लगे हो हमारे लिए..वो कोई

और कैसे करता...यह लफ्ज़ नहीं हमारी रूह का कहना है,यह क़र्ज़ तेरा चुकाने के लिए जन्म बार-बार

ले गे दुबारा हम..

Tuesday 23 June 2020

सब कुछ मिला तो भी रोया...किसी को खुद से ऊपर जाते देखा तो जलन से रोया...शोहरत की बुलंदियों

को किसी और को छूते देखा तो तकलीफ के दर्द से बहुत रोया...कोई टूट के बिख़र गया तो मदद की

बजाय उस के गिरने पे,जी भर के मुसकराया...किसी का घर लुट गया तो अकेले मे उस की बर्बादी पे

ख़ुशी के आंसू से रोया...वाह रे इंसान..तुझे तो भगवान् भी समझ ना पाया,जिस ने खुद तुझ को बनाया..

ऊपर वाले तेरा कोटि-कोटि शुक्रिया,जो तूने इन इंसानो को यह दिन दिखाया..बस अब कुछ ऐसा कर कि

इन को ज़िंदगी का जीना तेरी ही रहमत के साथ समझ आए...
ना खेल ऐसी आंख-मिचौली  कि हम इस भूल-भुलैया मे ग़ुम हो जाए गे...तू आज थोड़ा खुश है बस हम

तो तेरी ही ख़ुशी मे ग़ुम हो जाए गे...तेरी उदासी का मंज़र हम से देखा नहीं जाता...तू बिलकुल ही खामोश

हो जाए,यह भी हम से सहा नहीं जाता...चाँद हर रात ना निकले तो सितारों को उस की तलाश रहती है..

होता है वो अपनी चांदनी की आगोश मे, मगर खबर सब की रखता है...यू ही तुम भी,पर्दानशीं ना रहो

हम को तेरे ग़ुम हो जाने से डर सा लगता है...हमारे साथ हमारी ही पनाहों मे रहो कि ज़िंदगी का रुख

कभी भी बदल सकता है...

Monday 22 June 2020

कभी खोया कभी पाया..कभी इंतज़ार मे तेरी,दिन ही सारा गुज़ार दिया...कभी तेरी बेरुखी तो कभी यू

बेवजह माफ़ी का मांग लेना...तेरे वज़ूद पे मुझे हैरानी का शक़ हो आया...तागीद करते रहे ना झूठ बोल

छोटी-छोटी बातों पे,हम तो तुझ को संभलना सिखाते रहे इस जीवन की कठिन राहों पे...छोड़ दे उन सब

इंसानो को जो तुझे कभी समझ ही ना सके...प्यार का आंचल कैसा होता है,यह तूने मुझ से मिल कर ही

जाना है..सीखो गे तब, जब हम इस दुनियां से चले जाए गे..फिर हम तुझे तेरे उस सच्चे रूप मे कहां

देख पाए गे...आसमां के फरिश्ते नहीं जो ऊपर से तुझे देख पाए गे..वक़्त है अभी भी,संभल जा जरा...
भूल जा इन तमाम दर्दो को...चल मेरे साथ दूर कही,इन बेबाक हवाओं से बाते करने...हाथ पकड़ के

मेरा, सुन इस नदिया के बहते पानी का वो सुर..जो बदल दे गा तेरी-मेरी ज़िंदगी का नज़रिया...सुन ना

मेरी उसी पायल की छन-छन,जिस की छनक से तू होता था पागल...देख आज भी मेरे होठों पे है वही

मुस्कान,जिस के लिए तेरा दिल हमेशा घायल रहा...थाम ले मेरी वही बाहें,जिस के लिए तूने कहा था..

यह बाहें सिर्फ मेरी है...हज़ारो तकलीफें सही मगर मेरी हंसी है वही खिलखिलाती,जिस से तुझे मेरे

होने का एहसास होता था..भूल जा ना,दुःख सारे..कि यह ज़िंदगी आज भी उतनी ही खूबसूरत है..जितनी

कल के माहौल मे होती थी...अब मुस्कुरा दे ना जरा,मैं साथ हू ना तेरे... 
कफ़न सर पे बांध के सरहद पे लड़ते है जांबाज़...जान की परवाह किए बैगेर अपना फ़र्ज़ निभाते है

यह जांबाज़...लौट के क्या घर जाए गे,यह भी नहीं जानते यह जांबाज़..सीखने के लिए इन से इतना कुछ

है कि थोड़ा सा भी इन से समझ पाए तो एक सही इंसान ही बन पाए गे हम...कहर और दर्द के सैलाब

से क्यों घबरा रहे है लोग..अरे,घरों मे है कोई सरहद पे नहीं है आप..घर की जंग बेशक मुश्किल है,पैसो

की भी परेशानी है..पर क्या ज़िंदगी हमेशा ऐसी ही रहने वाली है...कुदरत कब कैसे सब ठीक कर देती

है,इंसान कब समझ पाता है..वो तब भी रोता है जब घर से बाहर काम पे जाता है..शायद यह इंसान

ऐसा ही होता है..जो किसी भी हाल मे खुश नहीं रहता है...

Sunday 21 June 2020

नीर मे बहा दिए अश्रु सारे अपने,दिन फिर नया जो आया है...चलना ही तो ज़िंदगी है यह सोच अगला

कदम फिर धरा पे रख दिया हम ने...सुबह भी नई है तो इरादे भी नायाब होने चाहिए,इसी सोच को रख

सामने अपने असूलों को गिरेबान मे फिर बाँध लिया हम ने..छोड़ा तो कभी नहीं इन असूलों को,बस एक

विराम दे कर फिर साथ ले लिया इन को हम ने...कुछ असूल और कुछ सीख बाँट कर खुद को फिर नया

सा कर लिया हम ने..अब कोई कितना सीख पाया,यह तक़दीर पे छोड़ दिया हम ने...
मेरे बाबा......
दुनियाँ कह रही है आज दिन है तुम्हारा..
मैं कहती हू,रोज़ दिन है तुम्हारा..
जिस ने जन्म दिया उस के लिए दिन कोई खास क्यों होगा..
जिस ने साँसे दी,वो जीवन-दाता रोज़ साथ है मेरे..
तुम कल भी मेरे बाबा थे,आज भी हो और हर बार जन्म लू...
तब भी बस मेरे बाबा बन कर रहना...
संस्कारो से झोली भर दी मेरी....
कोई सीख अधूरी नहीं छोड़ी अपनी...
तेरी छाया बन आज भी साथ हू तेरे बाबा...
गुलाबी फ्राक पहनी तेरी वही गुड़िया हू बाबा..
दुनियाँ की नज़रो मे दिन खास होता होगा उन के पापा का...
पर मेरी रोज़ की दुनियाँ तो तुम से चलती है बाबा...
ना हो पापा ना हो डैडी..संस्कारो की बड़ी सी गठरी और नियामत तुम हो बाबा...
बहुत लाड से तुम को पुकारू..बाऊ जी..
और विधाता ने रच दी एक गुड़िया,जो आज भी है वैसी संस्कारी..
दुनियाँ ने सिर्फ पन्नो पे नाम से पापा अपने को याद किया..
अपने बाऊ जी की वही नन्ही सी गुड़िया,जिस ने जीवन का हर पल  बाबा की बातो से जान लिया...
अश्रु-धारा बह निकली है बाबा,तेरी याद फिर आ गई  है बाबा....
चलती साँसों ने पूछा मुझ से अभी-अभी..चलो गे मेरे साथ कितनी दूर तक..मुस्कुरा दिए,बोले इतना..

मौत की इंतज़ार मे ज़िंदगी चलती है जितना,बस चले गे तेरे साथ हम भी उतना...मगर तुझे बिंदास भी

चलाए गे उतना,जितना हम इस सफर मे चल रहे है उतना...शर्त मगर होगी इतनी,हम जो करे गे तुम

भी करो गे वैसा.. वरना हम निकल जाए गे तेरे बिना अगले सफर पे बिन बताए उतना...साँसों की यह

उथल -पुथल हम से छिपती कैसे,वो हम मे जो छुपी थी हमारा आइना बन के...
तुझे सिलसिलेवार वार लिखे या सीधा तेरी आशनाई के किस्से लिख दे...तुझे दीवाना कह दे या कोरे

कागज़ पे सिर्फ बेवफा लिख दे...बहुत सुना तेरे बारे मे,लोग क्या कह रहे है तेरे बारे मे..यह आशिक

मिज़ाज़ी तेरी और ऊपर से गज़ब ऐसा,सब को कहना तू है सारी उम्र मेरी..सातो जन्म मेरी..बेवफाई

करते है लोग,ऐसा सुना था हम ने..गज़ब भी ढाते है लोग,यह भी पढ़ा था हम ने..पर कोई हर किसी को

मांग ले जन्मों के लिए,ऐसा तो हम ने सुना तेरे लिए,तेरे ही यारों से हम ने...अब सरल होने का धोखा हम

को ना देना..रहते है सितारों की सरजमीं पे,कोई मामूली हस्ती ना समझ लेना...
गुजर रहे है तेरे ही शहर की सरहदों से,अपनी खुशबू के ढ़ेरों को बिखेरते हुए...जहाँ-जहाँ रख रहे है

अपने यह कदम,उन्हीं कदमो के तहत याद भी कर रहे है तुम्हे..देखना यह बरसात रुके गी आज..और

खुशबू हमारी बिखरे गी आज...मुनासिब हो इस खुशबू को समेट लेना रूह मे अपनी..रोज़-रोज़ तेरे ही

शहर की सरहदों से नहीं गुजरे गे हम...ख़ुशी से महक रहे है आज कि तेरे ही शहर की माटी मे अपनी

एक पहचान छोड़ के अब जा रहे है हम...

Saturday 20 June 2020

तुम देती रहो दर्द और दुःख पर हम तुझे फिर भी प्यार से लगाए गे गले,सुन ऐ ज़िंदगी...तू जानती है कि

तेरी कीमत बहुत ही जयदा है..इसलिए आहे-बगाहे तू हमी को बेइंतिहा दर्द देती रहती है..कभी रुला

देती है इतना कि दिल पे बन आती है तो कभी बेवजह इतना हंसा देती है कि आंखे ही भिगो देती है...

खुद्दार है बहुत,तेरे हाथ कभी ना आए गे...देती रह दर्द-दुःख पर हम है कि हर बार तुझे शिकस्त दे जी

भर के मुस्कुराए गे...हम उन मे से नहीं जो तेरे दर्दो से हार मान,मौत को कबूल कर ले गे..जिए गे बिंदास

और तुझी पे राज़ कर के तेरे ही हमराज़ बन जाए गे..क्यों कि ऐ ज़िंदगी,तू नाम है जीत का..और हम

तेरी जीत का दूजा नाम है...
बस जरा सी मुसीबत और घबरा गए..कहर कब तक रहे गा,यह सोच परेशान हो गए...कोई राह नहीं

दिखती क्या करे..इस सवाल-जवाब के चक्रव्यहू से दिमागी तौर पे लड़खड़ा गए..कभी सोचा तुम ने,

तुम से जयदा मायूस और कितने है...पाँव मे छाले है और घर से बेघर है..फिर भी उन मे कितने ऐसे

बहादुर होंगे जो इस कहर से परे जीने की मंशा रख रहे होंगे...ज़िंदगी की जंग अक्सर वही जीता करते

है,जो सब्र साथ रख चला करते है...जरा सोचना,अभी कितना कुछ पास तुम्हारे है...घर की चारदीवारी

है और पाँव मे कही छाले भी नहीं...ज़िंदगी अभी भी नियामत वाली है...थोड़ा और सब्र कर,ख़ुशी बस

आने वाली है...

Friday 19 June 2020

क्यों रुक गए बीच राह चलते-चलते...यह काफिला किसी मंज़िल तक पहुंचने का पैगाम ही तो था..

हसरतों का दामन और मज़बूरी के तहत,जो हार गया वो शहजादा तो कतई भी नहीं...या तो पूरे फ़कीर

बन जाते या आसमां को छू लेने की हसरत रखते...बीच राह थक के टूट जाना,इस की परिभाषा हम

क्यों लिखते...फ़कीर भी हम और आसमां के सितारे भी हम,पर शहजादे बनने का कोई ख़्वाब देखा

ही नहीं..मुकम्मल सफर करने के लिए,हिम्मत की परिभाषा बताना बहुत जरुरी है...जब अंतरात्मा हर

हालात मे जीना स्वीकार कर ले,हिम्मत की परिभाषा इसी को कहते है....

Thursday 18 June 2020

ज़िंदगी को यूं ना गुजार बोझ समझ कर..दुःख के यह दिन भी निकल जाए गे..वक़्त रुकता नहीं किसी के

लिए तो फिर जी इस वक़्त को खुद के लिए...सिक्के आज नहीं तो कल फिर आए गे..खुद से जो टूट गए

तो ज़िंदगी के यह लम्हे ताउम्र रुलाए गे...तकलीफ है,चली जाए गी...अफ़सोस होगा बाद मे,काश थोड़ा

मजबूत हो जाते तो वक़्त को मात दे पाते..ना दे खुद को तकलीफ इन तकलीफो के लिए,यह इंतिहान ले

रही है तेरे मेरे सब्र का..मेहनत को अपना साथी बना,फिर देख कुदरत भी तेरे साथ है...यह वक़्त भी यूं

ही निकल जाए गा...
कमजोर होना मेरी फितरत नहीं...बेबस हो कर उम्मीद छोड़ देना,यह कभी सीखा ही नहीं...तकलीफ़े

अक्सर हम को परखने आती है...कभी दिक्कत है सिक्कों की तो कभी रास्तो के बंद होने की परेशानी

है...यह नहीं सोचा कभी कि यह सब मेरे ही साथ क्यों...दुनियाँ भरी है करोड़ो इंसानो से, भरा है दामन

सभी का किसी ना किसी परेशानी से...सबर कर जरा थोड़ा सा और.....देख आगे सुख और खुशहाली

है...झूठ नहीं यह सब,तेरे-मेरे सबर का इम्तिहान है यह...भरोसा कर उस मालिक पे,मेरे कहने से नहीं..

खुद कर के देख जरा,रहमत उस की मिले तो मान लेना, उस के सिवाए इस जहाँ मे कोई और तेरा-मेरा

है ही नहीं...
ज़िंदगी फैली है बहुत दूर तक और आगे अँधेरे गहरे है...साँसों को कायम रखने के लिए,हिम्मत आज

बहुत जरुरी है...हिम्मत अपनी का इम्तिहान देना है तो सिर्फ ज़मीर की सुन...रह उस परवरदिगार के

आँचल मे,उस की नीयत पे कभी शक ना कर...जितनी शिद्दत से तू उस के करीब जाए गा,वो उतनी

ही सरलता से तुझे खुद मे थाम ले गा...कितनी बार,कितनी बार गिनाए कि उस के हाथों ने हम को

कितने दुखो मे थामा है...बस ख़ामोशी से एक बार कहा उस को..''तेरे सिवा मेरा इस जहाँ मे कोई और

नहीं'' और वो खामोश आवाज़ उस के दरबार मे सदियों तक ज़िंदा रहे गी,ऐसा हमारा दावा है...

Tuesday 16 June 2020

सुबह वही, दिन भी वही..पर आज क्यों दिल बेहद दर्द से भरा है... असहाय है आज इतना कि आंसू भी

ना निकल पाए है..जी चाहता है,सारे जहां को निखार दे..मदद के धागों से ज़िंदगियां संवार दे..एक बेहद

मामूली हस्ती होने के एहसास ने गमज़दा कर दिया हमें..अपने मामूली होने का दर्द आज समझ आया..

मदद ना करने का ज़ख्म रूह को जला गया..ज़िंदगी क्या सिर्फ किताबी हिसाब है..हम इंसान कितने

बेबस और बंधे है कभी ना उड़ने वाले पंखो से...दर्द देख समझ कर भी कुछ  ना पाए है...यक़ीनन,

आज अपने मामूली होने के एहसास ने ग़मज़दा कर दिया हमें ...
यह नींद क्यों इन आँखों से जुदा हो गई है..क्यों यह रात खुद हम से ही दूर हो गई है..खवाब तेरे रोज़

देखे,यह हसरत बस हसरत ही रह गई है..कि इन आँखों ने तुझे देखे बेग़ैर सोने की मन्नत छोड़ दी है...

सितारे गिने कैसे कि बादलों की ओट मे इन की फितरत बदल गई है...थक गए है तेरी इंतज़ार मे ऐ

चाँद,पर तू है तुझे अपनी चांदनी की खबर तक नहीं है..अब नींद आए तो आए कैसे कि ज़िंदगी बिन

बरसात जैसी हो गई है...मुलाकात होगी तुम से तो बताए गे कि नींद के बिना इन आँखों की तासीर क्या

हो गई है....
यह गहरे काले पानी से भरे बादल....पूछते है तुम से,रज़ा क्या है तुम्हारी...कही बरस रहे हो बेतहाशा तो

कही नाराज़गी से भरे खाली-खाली हो...कही बरपा रहे हो कहर तो कही आसमां सूखा है...यह ज़िद्द है

तुम्हारी या इंसा को सताने का गज़ब बहाना है...ज़िद्द छोड़ दे अपनी,संभल जा जरा..बरस जरूर मगर

सब को अपने रुतबे का एहसास दिला..किसी को इतना भी दुःख ना दे कि वो तेरे कहर से थक जाए...

ना रख किसी को इतना तन्हा कि तेरी एक बून्द को ही तरस जाए...
यह अल्फ़ाज़..इन की दास्तां भी गुमशुदा जैसी है..कभी होता है ऐसे,कहना चाहते है बहुत कुछ,मगर

यह अल्फ़ाज़ अंदर ही रुक जाते है...और कभी,यह निकलते है जब जुबां से तो समझने वाला कोई होता

नहीं....सुनते है लोग मगर इन अल्फाज़ो की कीमत समझ नहीं पाते है...कभी कोई भटका हुआ राही,

इन अल्फाज़ो को हीरा समझ अपने दिल मे उतार लेता है...फिर भी इन अल्फाज़ो की दास्तां गुमशुदा

ही है..बिना कहे बिना बोले,जो इन अल्फाज़ो को समझ जाए,ऐसा फरिश्ता इस दुनियां मे कहां होता है..

Monday 15 June 2020

जागती आँखों के सपने और बंद पलकों के किनारे...सपनों का महल एक जैसा है..इस महल के

दरवाजे पे लिखा है नाम वफ़ा का..इस की तमाम खिड़कियां सजी है ईमानदारी के साज़ से..तेरे

और मेरे सिवा किसी और को आने की इज़ाज़त नहीं देती इस महल की जमीं...  इस के बग़ीचे मे

खिलते है फूल नज़ाकत के...जिस मे शिरकत करते है खुदा,दे के अपनी रहमत और दुआ का वो

आँचल..जिस के तले तेरे-मेरे अरमान पनाह लेते है...तेरा-मेरा यह सफर ना जाने कितनी सदियों से

ज़िंदगी की मोहलत पे है..कभी तेरी रूह करती है कब्ज़ा मेरी रूह पे तो कभी मेरी यह रूह तुझे

मुहब्बत का सलाम शिद्दत से नवाती है...
जी चाहता है,आज लिखते जाए..पन्नो पे पन्ने भर दे और मुहब्बत को आबाद कर जाए ..लिखे रात भर,

लिखे उम्र भर..लिखते-लिखते ही ''सरगोशियां'' मशहूर कर जाए...बहुत ज़िंदा-दिल है,मौत से डरते नहीं..

मगर इस को तो आना है एक दिन,इसलिए पन्नों पे लिखना छोड़ते नहीं...भाषा प्रेम की ऐसी भाषा है,

जो पत्थर को मोम कर देती है..मगर प्रेम मे मिलावट हो तो प्रेम को ज़हर तक बना देती है...मूक है प्रेम

की भाषा मगर सुनती है सब कुछ प्रेम की भाषा..प्रेम नाम है देने का,छीन कर इसे इस की तौहीन ना कर...

तेरे हाथ मे जब हाथ अपना सौंप दिया तो डर कैसा...साँसों को तेरे नाम लिख दिया तो खौफ कैसा..

नाराज़ नहीं तुझ से,मजबूरी का दायरा है रिश्ते से बड़ा...वो नाता ही क्या जो टूट जाए,हवा के तेज़

झोकों से...वो रिश्ता ही क्या जो मिट जाए तूफान की गर्दिशों से...मौत भी जुदा ना कर पाए,यह प्रेम

इस की मिसाल है..दूरियां जब नसीब बन जाए तो प्रेम वहां भी कमाल है...मिलने की घड़ियां ताउम्र

ना भी आए तो प्रेम बेमिसाल है..रूह जब रूह को अपना ले,वहां प्रेम कुदरत का सिंहासन और पाक

इबादत का नायाब नाम है...
ज़िंदगी के मायने क्यों भूल जाते है लोग...ज़िंदगी खूबसूरत है,क्यों भूल जाते है लोग...माना,बहुत दर्द

बहुत तकलीफें देती है यह ज़िंदगी...कभी सोचा,घबरा कर हौसला पस्त कर,ज़िंदगी खुद ख़तम करना

कहां की समझदारी है...दर्द को,तकलीफो को जो सहना सीख गया,यक़ीनन वो जीना सीख गया...गर

पैसा सब कुछ होता,गर प्यार सब कुछ होता तो क्या जीवन सरल होता..शिकस्त दे इन सभी को और

ज़िंदगी को फिर गले लगा....यह साँसे टूट कर फिर लौटा नहीं करती..फंदे पे झूल कर,क्या यह जरुरी

है..जन्म अगला मुनासिब होगा,जीने के लिए...फंदा,किसी दुःख का हल नहीं होता...
इल्म ना था कि आप इतना बदल जाए गे...हमारे लिए अपने असूलों की दीवारे तोड़ दे गे...पढ़ते थे

सिर्फ किताबों मे,प्रेम का रंग बहुत गहरा होता है..जिस पे चढ़े वो इंसान बदल जाता है...शर्त सिर्फ

इतनी होती है,प्रेम शुद्ध नहीं बहुत शुद्ध होना चाहिए...इतना शुद्ध कि दिल भी सोने जैसा शुद्ध करना

चाहिए...यह  कहती नहीं किताबें..प्रेम का रंग कहता है..आप ने रंग कौन सा देखा हम मे,इल्म नहीं

हम को भी..मगर इल्म सिर्फ इतना है,परिशुद्ध प्रेम का रंग बेहद गहरा है...
यह शाम आज इतनी लम्बी क्यों है...इस के लम्हे तो जैसे लगता है,थम गए है...और थमे भी ऐसे है

कि जैसे घड़ी के तार रुक गए है...देखते है बार-बार,मगर यह तार तो घड़ी के भी रुक ही गए है...

क्या करे इस शाम का,जिस का इरादा हम को पता नहीं...कैसे करे इन लम्हो को आगे कि जोर इन

पे चलता नहीं...गुजारिश करे या फिर सिफारिश..शाम ढल जरा जल्दी...तेरे यह लम्हे अब गुजरते नहीं..

सरक-सरक ना चल,तेरी अहमियत जानते है हम..पर यू रुक कर अपनी अहमियत को कम ना कर..

Sunday 14 June 2020

 ना सोए गे खुद ना तुझे सोने दे गे आज....बरसती रात है और तू मुझ से दूर बहुत दूर है...तुझे तो क्या

हम तो इस चाँद को भी आसमां मे ना रहने दे गे...बादलों से कर दी है सिफारिश,जम के बरसो..इतना

बरसो कि चाँद आसमां मे आने ही  ना पाए...बैचैन हो चांदनी बिन इतना कि उस को करार ही ना आए..

अपने जागने की कीमत तो वसूल करे गे..रात को कर दे गे बहुत गहरा और तुझे करवटें बदलने पे

मजबूर कर दे गे...
लब क्यों इतने सिल लिए..चुप्पी पे चुप्पी,क्या बोलना भूल गए...खामोशियों को हवा ना दे इतनी कि दम

मेरा घुट जाए...कानों मे गूंज रही है तेरी आवाज़े...जिस्म मे महक रही है तेरे वज़ूद की अनगिनित बातें..

धीमे-धीमे चहकना मेरा,धीमे-धीमे महकना तेरा...ज़िंदगी कितनी सूंदर है,यह एहसास मुझे दिलाना तेरा..

एक ख़ामोशी कितना कुछ बदल देती है,यह तुझे बेतहाशा याद कर के जाना..उदास है यह दिल मेरा..

उदास है यह वज़ूद मेरा...ज़िंदगी सूंदर है,यह एहसास अधूरा लगता है अब तेरे बिना...
सुनो, जरा मेरी पायल की रुनझुन...क्या कहती है यह पायल की रुनझुन..देर रात तक बजती क्यों रहती

है यह पायल...आप कहते है,यह पायल की रुनझुन आप को बहुत प्यारी है...इस के बजने से आप को

याद हमारी आती है...लौट आइए,पायल उदास है बिन आप के...करीब आ जाइए,यह ज़िंदगी उदास है

बिन आप के...यह रुनझुन बजती रहे गी तब तल्क,जब तक आप यह ना कह दे..जाना...बस कीजिए..

हम तो है सिर्फ आप के...
अपने हाथों मे मेरा हाथ ले कर,आप ने सदियों के लिए हम को हमीं से मांग लिया...उस ख़ुशी को अब

बयां कैसे करे कि आप ने अचानक हमीं से किनारा कर लिया..मिल कर आप से इतनी ख़ुशी बयां कर

लेना चाहते थे हम..पर इस इंतज़ार ने आप से क्यों दूर कर दिया...बेवफा नहीं है आप,दिल बार-बार यह

गवाही देता है...बेवफा तो यह तूफ़ान है जो रोज़ रोज़ राहें हमारी रोक लेता है...यह कंगना यह बिंदिया

इंतज़ार रोज़ करते है..कभी तो रुके गा तूफ़ान इस बरखा का...कभी तो इंतज़ार हमारा ख़तम होगा...
बहुत गुमान और अभिमान से,यह नन्हा सा दिल हमारा,आप को दे रहे है..भरा है इस मे प्रेम का वो

प्याला, जो किसी बाज़ार मे ना मिले गा आप को..जज्बातो का,खाव्हिशों का वो महल बनाया है इस के

अंदर,जो आप को किसी किताब मे पढ़ने को ना मिले गा...रंग देखिए ना कितना सुर्ख है इस दिल का,

जैसे अपनी हसरतो को जोड़ के आप से,हम सुर्ख हो जाते है...क्या कहे आप से इस को देने के बाद...

अब हम अपने कहां से रह गए..अपने हाथो से सौंप कर इस दिल को,आप अनंत-काल के लिए हमारे

हो गए...

Saturday 13 June 2020

मौत बार-बार कहती है,चल साथ मेरे...कहर बहुत जयदा है...ज़िंदगी बेहद प्यारी है,खूबसूरत और

न्यारी-न्यारी है..बहुत कुछ छीन कर भी,बहुत कुछ दे देती है..वो लम्हे यादगार के देती है..अपनी ही

रूह के दीदार करवा देती है...भूले से अश्क गिरे तो झट दामन अपना फैला देती है...जा मौत,अभी तो

हम ने ज़िंदगी से मुलाकात करना सीखा है..इस को अभी तो प्यार करना सीखा है..अपने पन्नो पे अभी

तो इस की तारीफ लिखना सीखा है..क्यों दगा दे इस को,अभी तो ख्वाइशों को जीना ही सीखा है...
''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ''  परिशुद्ध प्रेम की वो गाथा,जो किसी भी स्वार्थ से परे है..जहा दो रूहे प्रेम के सागर मे इतना डूबी है कि वो दो जिस्म है मगर रूह से एक है..रूह ही रूह से जो कहती है,वो अद्भुत है...यह सरगोशियां का जादू है जो पढ़ने वालो को प्रेम का वो सुखद एहसास दिलाता है जो इस कलयुग मे लुप्त हो चुका है..मेरी ''सरगोशियां'' से जुड़े रहे....''शायरा'' 
चिराग ना बुझाए गे आज, बेशक सुबह दस्तक ही क्यों ना दे दे...इंतज़ार करे गे तेरी उस बात का,जिस

के लिए ज़िंदगी बिता दी हम ने...यह आंखे बेशक बरसे,बरसती रहे..यह दिल तड़पता है तो तड़पता रहे..

रात को रोक सकते तो रोक ही लेते..ज़िंदगी के लम्हे वापिस ला सकते तो ले ही आते...मगर इबादत की

जितनी शिद्दत से हम ने,उस का सिला खुदा से कैसे लेते..ख़ामोशी से फिर कहते है,मेरे खुदा..इम्तिहान

ले जितनी तेरी मंशा है..जीत ना पाए तो क्या हुआ,मुहब्बत मे हार भी कबूल है हम को...
बेशक मिल जाए सितारे पूरे आसमां के हम को...कोई कहे भर ले दामन हीरे-जेवरात से अपना...सामने

हो दुनियाँ का हर सुख-आराम अपने...दौलत के ढेर ही ढेर हो आँखों के आगे...मगर फिर एक आवाज़

सुनाई दे उसी आसमां से...एक छोटा सा आशियाना हो,मुट्ठी भर दौलत हो और काम  के नाम पे हाथ

सिर्फ तेरे अपने हो..मगर तेरा मेहबूब ताउम्र तेरे संग-संग हो..उस के प्यार से तेरा दामन पूरा भरा हो..

हम हँसे तो इतना हँसे..परवरदिगार,बस इतनी सी शर्त..मेहबूब जब साथ है तो मुट्ठी भर दौलत की

क्या बात है...हाथ अपने है तो मेहनत से इंकार किस को है..तेरी दौलत,हीरे-जेवरात अब मेरे नहीं..

मेरे लिए तो मेरा मेहबूब ही मेरी दौलत और गहना है...

Friday 12 June 2020

यह चाँद क्यों आधा-अधूरा सा है आज...लगता है कुछ उदास और मायूस सा आज...उस की यह

उदासी बेवजह तो नहीं होगी..क्या पता कोई गुस्ताखी इस की चांदनी ने की होगी..कभी लगता है

चांदनी के बेइंतिहा प्यार से नखरे दिखा रहा है यह चाँद..वो मनाए इसे,इसलिए खामोश से जयदा

नाराज़ है यह चाँद...चांदनी बेफिक्र है इस की खास अदा से,जानती है लौट के आना है इसे मेरी

ही आगोश मे..मुहब्बत मे खोट नहीं तो फ़िक्र क्यों कर लू,आज आधा-अधूरा है तो कल पूरा भी होगा

बस इंतज़ार कुछ और कर लू....
पहले तेज़ गर्म हवाएं फिर तेज़ बरसती बौछारे...कुदरत बता जरा तेरी मर्ज़ी क्या है...क्या हम इतने बुरे

है या यह हमारी परीक्षा की कठिन घड़ी है...अपनी सच्चाइयों का क्या हिसाब दू तुम को,अपनी सभी

तकलीफ़ों को कैसे बयाँ करू तुम को..इंसा है कुछ गलतियां हो गई होगी...पर गुनाह बड़े नहीं किए,

इतना दिल कहता है...बस कुछ खाव्हिशें ज़िंदा है अभी,इस दिल के आँगन मे...साँसे यह तेरी ही दी है,

इन को लेने का हक़ भी तेरा है..क्यों इतना उदास कर दिया तूने हम को..जानते है सिर्फ इतना,वो पूजा

रूह की पुकार थी..और वो इबादत भी पाक-साफ़ थी..
मौत का खेल दिख रहा है चारो और...मन उदास हो गया यह सोच कर,इस माटी की कीमत माटी से

भी कम है...बिखरे पड़े है बेजान जिस्म धरा पे इधर-उधर...क्या पता कल नाम हमारा भी शामिल हो

जाए इन बेज़ानों मे...बन जाए माटी, नाम लिखा जाए सिर्फ अखबारों के कागज़ो मे...डर मौत का नहीं,

डर तो इस लापरवाही का है...ढूंढे गे कैसे हमारे अपने,हज़ारो माटी के ढेर मे हम को...बस कर ईश्वर,

इस कहर को रोक दे...मौत देनी है तो दे, मगर माटी की इतनी तौहीन को रोक दे...

Thursday 11 June 2020

गुमान हुआ तुझ को पा कर...अभिमान है तुझे खुद को सौंप कर...हर बुलंदी छू ले प्रेम की,आसमां तो

आज भी ग़वाह है इस परिशुद्ध प्रेम की सीमा का...जब आसमां सारा हमारा है तो क्यों ना खिले जी भर

कर...हवा भी हमारी फ़िज़ा भी हमारी,जीवन है प्रेम की उज्जवल बाती...खिले है जब साथ-साथ,मुस्कुराए

है जब एक साथ...खुशबू बिखेरी है एक साथ..तो साथी मेरे,जीवन छोड़े गे भी एक साथ...प्रेम की यही

तो पराकाष्ठा है,संग जिए ,संग एक साथ मुरझाना भी तो है......यही तो प्रेम है,प्रेम का यही तो धाम है..
रूप अलौकिक,प्रेम अलौकिक,तेरा मेरा साथ अलौकिक....कितने जन्म से साथ चलते आए..कितने जन्म

अभी बाकी है...दुनियां का स्वरुप समझ ना पाए,यह दुनियां बेमानी और बाज़ारू है...यहाँ खेल है सारा

दौलत का,प्रेम का मोल है किस ने जाना...निःशब्द है हम निःशब्द हो तुम..प्रेम की बोली है इतनी ही

प्यारी..ना कुछ माँगा ना कुछ चाहा,बस अपना सब कुछ तुम पे वार दिया...हर लम्हा हर सांस जब है

तेरी तो राधा बनी सब से न्यारी सब से प्यारी...कृष्णा कृष्णा कहते कहते,उस की बोली कभी ना थकती..

यह तूने जाना यह मैंने जाना..यह धरती अब किस काम की मेरी....
''सरगोशियां'' बयां करती रहे गी..राधाकृष्ण के प्रेम का अस्तित्व...इसी धरा के प्रेमियों को सिखाती रहे

गी परिशुद्ध-प्रेम का स्वरूप...वो राधा ही क्या जो अपने कृष्णा को बदल ना सकी..वो कृष्णा ही क्या

जो राधा के मन की इच्छा ना जान सका...तन बेशक दो रहे मगर मन की सोच तो एकतार है..एक है

घायल दूजे के लिए तो दूजा उसी के लिए पागल और बेक़रार है..साँसों की मोहलत भी एक जैसी है..एक 

को जाना है है तो दूजे को भी उसी संग चले जाना है...अनंत-काल की यात्रा का साथ दोनों ने साथ-साथ

जो निभाना है...
कही कोई आप जैसा ना था...ना धरती पे ना आकाश की बुलंदी पे...कुदरत ने दी सब मे कमी,सभी

आधे-अधूरे थे...कोई दौलत के गरूर मे था डूबा हुआ तो कोई अपने रुतबे से अभिमान से था भरा हुआ..

किसी के लिए महल और शानोशौकत ज़िंदगी की पहल थी..तो कोई हर रूप-सुंदरी का तलबगार था...

शीशे का दिल ना देखा कोई,यक़ीनन सभी पत्थर-मूरत जैसे थे...तमाशबीन इतने रहे कि मुहब्बत का

अर्थ तोहफों से लगाते रहे..माटी के इंसान सोने-चांदी के हो गए..कुदरत का इंसान देखा आप मे और

आप की ईमानदारी और वफ़ा पे कुर्बान हो गए...
तुझे दिया सब कुछ हम ने और खुद से नाता तोड़ लिया...हो गए बेगाने अपने आप से और बस तुझे

समर्पित हो गए...डगर प्रेम की चुनी हम ने और राधा के माक़िफ़ बन गए...तू ही रामा तू ही शिव मेरा 

और कृष्ण समझ तुझी मे पूरा खो गए...सतयुग की महिमा यही बसी है...एक ही कृष्ण है इसी धरा पे

एक ही राधा पगली है...डगर चले ऐसी कुछ जो अनंत-काल तक जाती है...जिस्म छूट जाए बेशक यही

कही मगर रूहों को एक साथ ही इस जहां से जाना है...एक साथ ही जाना है...

याद कर के तुझे क्यों सुर्ख हो जाते है ...देख खुदी को खुद ही शर्मा जाते है ...यह निगाहें जब-जब झुकती

 है तो तेरा चेहरा सामने आ जाता है...तेरा बेबाक बोलना बहुत याद आता है...जमीं का चाँद हो या उस

आसमां का चाँद,यह तय करना नामुमकिन हो जाता है...कितना भीगे इस तूफानी बरसात मे कि भीग

कर भी कोई तूफानी आग अंदर सुलगती है...यह साँझ क्यों रोज़ इस बरसात को साथ लाती है...तेरे

कदमो को मेरे पास आने से क्यों रोक लेती है...गहरा जाए रात इस से पहले तू चले आना..बहुत

इंतज़ार हम ने किया,अब एक वादा तू भी निभा देना....
यह कौन सा रिश्ता है जो इस गौरैया से जुड़ने लगा है...प्यार के दो लफ्ज़ से हम ने पुकारा इस को और

अपनी हथेली पे रख कुछ दाना हम ने संभाला इस को...हम से पहले इस ने हम को अपना मान लिया..

इस की चमकती आँखों को गौर से निहारा हम ने और सोच मे डूब गए...क्या प्यार के दो बोल इतनी

ताकत रखते है..क्या प्यार के अनमोल बोल इंसा को भी बदल सकते है..यह गौरैया जब भी चहकती

हुई आंगन मे आती है,यू लगता है जैसे हम को दिल से शुक्राना देती है...

Wednesday 10 June 2020

एक गीत हम ने लिखा..गीत के बोल हमारे दिल ने लिखे..उस गीत पे कब्ज़ा हमारी रूह ने किया...और

फिर वो गीत हम ने अपनी ही रूह को भेज दिया...गज़ब ना...जब रात भर जाग कर गीत सजाया इन

आँखों ने..भीगे पलकों के किनारे तो गीत रचाया हम ने...दिल धड़कता रहा एक एक पल और गीत के

बोलो को जीवन दिया हम ने..अब तो गीत सिर्फ गीत नहीं,हमारे दिल की वो धड़कन है..जो रहे गी ज़िंदा

सदियों तक..जब जब दुनियां मे आए गे,संग अपने यही गीत लाए गे...दिल-रूह के दरीचों मे इसी गीत

को अपनी पहचान बना जाये गे...
इख़्तियार इतना भी नहीं कि उस के जाते हुए कदमो को रोक पाते...इख़्तियार इतना भी नहीं कि बरखा

को रोक पाते..मौसम सुहाना हुआ तो दिल ने मुस्कुरा कर कहा,मुबारकबाद कि तूने हवाओं का रुख

बदल दिया...मगर हमारा इख़्तियार तो इस मौसम पे भी नहीं कि कह दे..थोड़ा और रुक जा,दिल अभी

भरा नहीं...कितने मजबूर और बेबस है हम,सब को रोकना चाहा पर कुछ कह ना सके हम..मौसम तो

बरस कर चला गया..और हम है कि बेमौसम आँखों से बरस रहे है अब...

Tuesday 9 June 2020

कहते है खामोशियाँ बोलती नहीं...मगर यह खामोशियाँ ही हम से अक्सर बात करती है...भीगे गेसुओं

को संवारने लगे तो मोती बन इन्ही गेसुओं से गिरने लगती है...करधनी पहने तो पिया को कर लेती है

यू याद..चुभन देती है इतनी और कह देती है बातें अनेक...यह गज़रा बाँधने से पहले क्यों इस के फूल

झरा देती है,सनम के हाथों का जैसे एहसास दिला देती है...नैना चपल हो जाते है जब कजरा इन मे

लगाते है,झिलमिल करते है यह दोनों नैना और पिया की खास शरारत पे मुस्कुरा देते है...तुम ख़ामोशी

हो या पिया का संदेसा लाने वाली कोई जादूगरनी हो....
इरादा तो हमेशा से आसमान को छूने का है..मगर वहां रहने का नहीं...दिल तो चाहे हर दम,उड़ जाए

आसमां के छोर तक और आसमां का वो अंतिम कोर तक छू ले...वापिस लौट आए इसी धरा पे,जहां

कदम हमारे रुकते-चलते है...इस की माटी मे जन्म लिया,इसी माटी मे खेले-कूदे...दुनियां बांधती रहे

तारीफों के पुल पे पुल,हम ओकात अपनी जानते है..खुद के सपनो पे यकीं इतना जयदा है और आशा

का दामन जब साथ है..फिर आसमां का वो कोर,हमारी इंतज़ार मे है...इसलिए इत्मीनान बहुत जयदा है..
शब्द..यही तो है जो सन्देश देते है...लफ्ज़ ही तो है,जो दूर तल्क़ जाते है...जो छोड़ जाए दिलों पे छाप

हम बस इतना ही हुनर रखते है...हम लिखते है इन शब्दों को बहुत ही शिद्दत से,इस उम्मीद को साथ

लिए...ना जाने किस के जीवन को दर्द से तकलीफ से निजात दे जाए..जो यह आज है,वो कल नहीं

होगा...सुबह जो अब तक बन चुकी है धूप की बेला...कुछ देर और, फिर बन जाए गी यही साँझ की

बेला...जब कुदरत बदल रही है इतना कुछ तो उम्मीद का दामन बांधे रखिए...दर्द जब हद से गुजरता

है तभी तो सकून को ले कर आता है...सकून और ख़ुशी बस आने को है,उम्मीद को जगाए रखिए ..

Monday 8 June 2020

यह कैसी सुबह है जिस मे नया भी है और नया कुछ भी नहीं है...निकल रहे है कितने अपनी राहो पे,

कुछ डरे हुए कुछ जरुरत से जयदा महके हुए...संतुलन ज़िंदगी का नाम है..जयदा दुखी या जयदा

महकना दोनों ही असंतुलन का नाम है..यह धरा भी अपनी और आसमां भी अपना है..सम्भालिए खुद

को इसी का नाम जीवन है...बेखबर खुद से इतने भी ना हो कि साँसे दांव पे लग जाए..ना डरे कहर से

इतना कि ज़िंदगी नाम बदनाम हो जाए...पाँव ज़मी पे रखिए जरा संभल के,ज़िंदगी जीने का ही तो नाम है 
दिन जो आ रहे है आने दीजिए...वक़्त जिस चाल से चल रहा है बस चलने दीजिए..खौफ से हट कर

जीना सीखिए..खुद की ताकत को अपना विश्वास बना लीजिए..दूरियों को दूर रखना सीखिए...चेहरे

पे नकाब डाल के रखिए...कुदरत के इशारे समझिए और इस शरीर की खातिर कीजिए..कुछ योग

कीजिए और थोड़ा ध्यान किया कीजिए...अगर दिल कहे,छोड़ो ना क्यों कुछ कीजिए...तब आहिस्ता

से मेरी यह सारी हिदायते याद कर लीजिए...ज़िंदगी और सेहत सलामत रहे सभी की,तब हम को खूब

याद कीजिए...यह दिन यह वक़्त,आया है तो कभी तो जाए गा..बस मस्त और हिम्मत को साथ रख

लीजिए ...कल सुबह इक नई सुबह हो सब के लिए..हमारी इतनी इज़्ज़त तो आप सब रख लीजिए...
यह फ़िज़ाए यह हवाएं आवाज़ दे रही है तुझे...तेरे कदमों की आहट सुनने के लिए बेताब हो रही है

बहुत...यह नदिया यह झरने,बहुत रफ़्तार से समंदर मे मिलने को है तैयार...चट्टानों को चीर कर फिर

यह नादान पत्थर गिर रहे है धरा के कदमों मे आज...मौसम क्यों दिल्लगी कर रहा है इंसानो के साथ..

कभी बरसता है इतना कि थमता नहीं तो कभी खामोश है इतना कि आवाज़ तक करता नहीं...गज़ब

तो यह आसमां का जादू भी है..कभी दिखला देता है चाँद तो कभी इस को नज़र ना लगे,खुद मे छुपा

लेता है खास..लगता है यह सारे जादू की नगरी से आए है तभी तो हम इन सभी को समझ ना पाए है..
एक एक लम्हा और दिन का शाम मे ढलना...शाम की बेला मे फिर शाम का इंतज़ार करना..यह शाम

कभी ख़ुशी तो कभी उदासी भी देती है...कभी आती है संग बादलों के घिरे तो कभी तेज़ हवा संग गम

उड़ा लेती है...कभी खुद ही यह शाम अचानक से खुदी को रात मे तब्दील कर लेती है...भर जाते है

सितारे आसमां मे और रात चुपके से गहरा जाती है...शाम तू भी लाजवाब है..जब जी चाहे दिन को

बदल देती है अपने रंग मे...हम इंतज़ार करते है शिद्दत से तेरा और तू है कि जी चाहे तो खुद को रंग

दे देती है गहरी रात मे...

Sunday 7 June 2020

यक़ीनन यह दुनियाँ आज हमारे लिए बेहद बेहद खूबसूरत है...क्यों डरे किसी कहर से कि कुछ खुशियाँ

जीनी अभी भी बाकी है..दर्द साथ साथ चल रहे है बेशक..चलते रहे क्या गम है,यह भी तो मेरे अपने है..

ओस की बून्द कब ठहरी है पत्ते पे तो क्यों डरे हम जीवन को जीने से...भरपूर जीने के लिए अब तैयार

है हम..हर गम से लड़ने को तैयार है हम...आईना कह रहा है तू खूबसूरत और बहादुर और भी है आज...

हंस ले खिलखिला के,सोच जरा ना कि कल क्या होगा यार...हर किसी से मिले गे मुहब्बत के साथ..चले

भी गए इस दुनियाँ से तो क्या गम,अपनी बची खुशियां तो जी ले आज...
घुल रहा है रोज़ हवाओ मे यह कहर यह ज़हर...दहशत से खौफ से जीना छोड़ रहे है लोग...क्यों और

किसलिए डर रहे है लोग...कर्मो का लेखा-जोखा अभी तो सामने आए गा..जो किया है उम्र भर या जितना

किया है अभी तक,अच्छा या बुरा...उस का नतीजा कभी तो सामने आए गा...कौन कहता है हम बुरे है..

खुद को साफ़-पाक तो हर कोई कहता है..अब हिसाब करने की बारी उस परवरदिगार की है...जितना

भी वक़्त मिल रहा है अब जीने के लिए,खुल कर जी लीजिए...कल क्या पता कौन जुदा हो जाए किस से...

मुस्कुरा दीजिए ना अब,हिम्मत ना छोड़िए...बस आज मे ही जी ले...
नाज़ुक है बदन से मगर दिल के बहुत पक्के है...घुल जाते है संग सब के मगर प्यार किसी से नहीं करते

है...मिठास है बातो मे बहुत पर किसी की बातो मे नहीं आते है...देने के नाम पे हज़ारो दुआ का खज़ाना 

तक, सब के लिए लुटा देते है...मगर खुद को कभी कभी सब से अलूफ कर लेते है... दुनियाँ कहती है

सब से जुदा सब से अलग है हम...कुदरत का इक अलग करिश्मा है हम...दूर तक जहा जाती है हमारी

यह नज़र,खूबसूरत दिखता है यह जहाँ और धरती फिर लेती है जन्म...
इन आँखों की गहराई इतनी जयदा है..तू दूर कितना भी मुझ से होने लगे, यह तुझे मेरे ही पास खींच

लाए गी...तू किसी और का कभी हो ही ना पाए,यह तुझे खुद मे डुबो कर ही माने गी...सरल है बहुत

इसलिए परवरदिगार तक पहुंच है बहुत...यह शीशा दिल का, तेरी हरकतों की सारी खबर रखता है..

मेरे ही रंग मे अब रंगना है तुझे,इल्तज़ा तुझ से इतनी ही करता है...तेरे नखरे उठाए,तेरी सूरत पे अपनी

जान गवाए..तेरी रूह को जब-जब छुए,तेरी रूह को यह एहसास दिलाए..तेरे ही आस-पास घूमती है

मेरी सारी दुनियाँ,मगर चाह कर भी तुझे सब पता ना पाए..
'' लोग क्या कहे गे ''  इस से क्यों डरते रहते है सब लोग ???????
 जीवन आप का  है,यक़ीनन फैसले भी आप के होंगे..साँसे आप की अपनी है ना तो उन को लेने का हक़ भी आप ही को होगा ना...यह मत करो..वो मत करो...''लोग क्या कहे गे ''.....अरे बाबा,यह कौन लोग है जिन से आप सभी डरते है....हम तुम और सब....आप खुश रहे तो पूछे गे लोग,क्यों इतने खुश हो ???
बहुत दुखी होंगे तो पूछे गे लोग,क्या हुआ इतने दुखी हो ???
घर अच्छा सा खरीद लिया तो कहे गे लोग,अरे बहुत कमाई होगी या माँ-बाप की दौलत की ऐश है...
पति-पत्नी खुश है तो पूछे गे लोग,अरे देखो देखो..पति तो गुलाम होगा पत्नी का,तभी खुश है दोनों...
नई कार ले गे तो बाबा रे पूछे गे यही लोग...कितने की ?? पहले थी कार तो फिर नई क्यों  ????
कहानी इन की यही खतम नहीं होती...औरत ऑफिस तैयार हो कर जाए तो पीछे से कहे गे लोग..कैसे साज़-धज कर जाती है रोज़ ????
लड़की किसी से हंस कर बात कर ले तो फुसफुसाते है यह घटिया लोग...आशिक होगा ?????
लड़का लड़की खुद की मर्ज़ी से शादी कर ले तो बकवास करे गे यही लोग...अरे यही मिला/मिली थी ??
और भी ना जाने कितनी गन्दी घटिया बकवास करते है लोग....
       जो भी करे अपने मन से करे...मर्ज़ी से जिए..यह ज़िंदगी हमारी अपनी है,सिर्फ हमारी...जब हमारे दुःख-तकलीफ मे यह लोग /दुनिया साथ नहीं थी तो अब इन की क्यों सुने...इन सभी घटिया लोगो को बकवास करने दीजिये....''  खुद भी जिए और दुसरो को भी उन की मर्ज़ी से जीने दे..किसी की भी ज़िंदगी मे अपनी गन्दी सोच और टाँग ना अटकाए ''   यह लेख पढ़ कर कुछ सीखे...भगवान्...ऐसे तमाम लोगो को बुद्धि दे.......शुभ दिन.........स्वस्थ रहे ...खुद मस्त रहे.......खुल के जिए....किसी की भी परवाह ना करे....

बचपन क्या कमाल था,जैसे एक उड़ती हुई पतंग था..गुलाबी फ्रॉक पहने और गुलाबी रिबन बांधे जैसे

एक इंद्रधनुष था...बेफिक्र थे कोई मलाल ना था..जब जी चाहा सो लिए,जीवन जैसे मदमस्त और रंगो

का प्यारा सा जाम था...पढ़ते-पढ़ते सो गए,किसी ने उठाया तो सोने का अभिनय करते रहे...लगता था

उस वक़्त जो सिखा रहे है बाबा-माँ,वो अनसुना हो गया..मगर आज वो सब कुछ याद है इतना ,जैसे

पर्चे देते हुए सबक भी याद नहीं था उतना....
वो रूप-गर्विता है,ऐसा सुना हम ने..वो दौलत के भंडार की मालकिन है,ऐसा भी सुना हम ने..हज़ारो

उस के रूप के दीवाने है,यह खबर भी मिली हम को..चलो मिल लेते है ऐसे रूप के इंसान से..हज़ारो

माटी के रंग पोते..महंगे परिधान पहने और खास अदा से खुद को परिभाषित करने वाली,यह कैसी रूप

की माटी है..तेज़ हवा और बारिश की बौछारों ने अचानक भिगोया तो रूप असली उस का सामने आया..

माटी के रंग माटी मे  मिले और रूप-गर्विता के रूप दुनियाँ की नज़रो को दिखे..चलते-चलते उसी की

बगिया से एक गुलाब हम को मिला,खूबसूरत मगर सादगी से भरा..कुदरत की दी खुशबू से भरा..
आशा..कब से इस को खुद के नाम से जोड़े हुए है...विश्वास..यही तो है जो नाम मेरे से बंधा हुआ है...

किरण...उस जोत की,जो जलती है रोज़ मेरे मन के आंगन मे पर बुझती नहीं रात के अँधेरे मे भी...

खोज..ख़ुशी की जो दे रही है जीवन मुझे..किसी खास मकसद की तलाश मे... टूटन,यह नाम कभी

जोड़ा नहीं अपने वज़ूद अपने नाम मे...  दिशा,जो फैली है मेरे चारो और,यह बताने के लिए और यह

सभी को समझाने के लिए..भटक गए जो दुखो के अंधेरो मे तो याद रहे,यह दिशा फिर राह दिखाए

गी जीवन की रौशनी बन के तुम्हे..नाम मुझे ऐसा दिया,जिस का अर्थ जुड़ा है प्यार और स्नेह की आस

से.. 

Saturday 6 June 2020

क्यों ना आज इन तेज़ हवाओं के साथ उड़ जाए..क्यों ना आज इस बरसती बरखा मे खुल के भीग जाए..

क्यों ना अब इस खौफ कहर के साथ बेखौफ जीना सीख़ जाए...घुट-घुट के जीना क्यों ,बिंदास अपने

लिए क्यों ना अब तो जी लिया जाए ...रेत के महल बहुत बना लिए,क्यों ना आज अभी से स्वाभिमानी बन 

सकूँन से जी लिया जाए.....मलाल ना रहे कि किस्मत ने यह नहीं दिया,यह छीन लिया..जो है अभी,क्यों ना

उस को दिल और ज़मीर से मान लिया जाए.. आँखों से अब नीर नहीं,ख़ुशी के झरते मोती संग जी लिया

जाए...
एक बार फिर ज़िंदगी तुझे सलाम करते है...तुझे दुनियाँ कितने भी नाम दे मगर हम तेरी कदर आज भी

करते है..गहरे दुःख दे कर भी तू फिर मुस्कुराहटें दे देती है..हज़ारो आंसू गिरा कर फिर जीने की वजह

दे देती है...साँसे मर-मर के जीने के बाद फिर साँसों की खुशबू लौटा देती है...यह कहर क्या देने वाला है

पता नहीं..पर इन साँसों को लेना अब भारी नहीं बस सुखद लगता है...उम्मीद का दामन तू फिर देती है..

हर सांस लेने के बाद तुझे शुक्रिया करते है..हर दिन ज़िंदा रखने के लिए तुझे प्रणाम भी करते है..
बेहद सकून भरा है आज की रात मे....गहरा गई है यह रात,आंखे डूब रही है नींद के खुमार मे..

कैसा सकून है यह जो भर रहा है नींद बेहिसाब इन आँखों मे...लगता है सपनो का मीठा रस घुले

गा आज नींद की मदहोशी मे...दिन भर की थकान उतार रही है खुमारी..आंखे जो खुल नहीं पा रही

नींद के बोझ से..दूर कही से एक आवाज़ दे रही है सुनाई हम को..सो जा कि ऐसी नींद मुकद्दर से

मिला करती है...नींद की ऐसी आगोश ख़ुशक़िस्मतो को मिलती है..
प्रेम की परिभाषा लिखते आए है..हर बार इस मे कुछ कशिश और भरते आए है..दिलों को भिगो दे,

दिलों को डुबो दे,दिलों को चीर कर रख दे ऐसे लफ्ज़ लिखते आए है...दिल जो बंध जाए उल्फत की

डोर से..दिल जो जुदा ना हो लक़ीरों के फेर मे..सोचा,आज सुंदरता की परिभाषा भी लिख दे..मुहब्बत

का सुंदरता से कितना नाता है,क्या रूप-रंग ही सुंदरता का वादा है...पिया को मोह ले जो खूबसूरत

अंदाज़ से..उस को राह दिखाए अँधेरी रात मे...जीने का मतलब समझा दे अपनी हर प्यारी बात से..

ठोकर खाने से पहले उसे अपनी बाहो मे थाम ले...मन की सुंदरता से उस को पूरी तरह जीत ले..

यक़ीनन...सुंदरता की सही परिभाषा यही होती है...मुहब्बत को सुंदरता बस यही तो भाती है....
सिर्फ किताबी चेहरा नहीं हमारा..हम तो खुद ही मे एक किताब है..कोशिश कीजिए हम को पढ़ने की,

बीत जाए गी उम्र सारी पर फिर भी पूरा हम को ना पढ़ पाए गे..कुछ पन्ने है इतने जयदा बिखरे हुए..

कुछ है बेहिसाब दर्द से भरे हुए...बहुत है ऐसे जो कोरे ही रह गए...कुछ है ऐसे जो अश्क की चादर

मे है आज तक भीगे हुए...कही पे हम रुके हुए है,बंदिशों मे भरे हुए...पढ़ने के लिए,आप को जन्म ना

जाने कितने लेने होंगे...हम तो छोड़ जाए गे किताब अपनी,पढ़ने के लिए पीछे आप रह जाए गे...

Friday 5 June 2020

अपनी इन सुर्ख आँखों का राज़ किस किस को कैसे बता पाए गे...कैसे बताए जागे है रात भर और खुद

को फिर भी इस दुनियाँ के तानों से ना बचा पाए गे..तूने क्या हम को सताने की कसम खाई है...बुलाते हो

हम को रोज़ सपनो मे और हम करवटें लेते रात गुजार देते है...गलती से सो भी जाए तो तुम वहां लेते हो

करवटें इतनी कि हम आँखों मे रात गुजार देते है...जनाबे-आली,या तो खुद सो जाया कीजिए या हमारा

अपने सपनो मे आना बंद करवा दीजिए...आईना भी अब जीने नहीं देता...अक्स तो तेरे चेहरे पे है मेहबूब

का,तो मेरे पास खुद की सूरत देखने क्यों आते हो...
महकते गुलाबों की वादियों से गुजर रहे है हम...कैसे कह दे इन की खुशबुओं से बेअसर हो रहे है

हम...इन की कहानी है बस इतनी..देख के हमी को हो रही मेहरबानी और बेताबी इंतिहा इन की...

इन को छू लेने की ख़ता नहीं करे गे हम...क्यों घायल करे इन को,जज्बात तो इन के देख हमे, पिघल

रहे है आज...काँटों की बिसात तो देखिए ना,लगाते है जब भी इन को हाथ..क़यामत से क़यामत तक

यह देख हमे, अपना नुकीलापन भूले जा रहे है आज...क्या हम को इन कांटो की भी परिभाषा बदलनी

होगी..छोड़ दिया जिन्हो ने चुभना और हमारे साथ से बदल गए इतना...
शुक्रिया कहे या सलामे-आदाब कह दे...बादलों की ओट से चाँद हम से मिलने आया है...दिखा कर

झलक अपनी,हम को हम से ही चुराने आया है...भूल रहा है शायद,इस बरखा को हम ने ही रुकवाया

है...बादलों को खाली कर हम ने तेरे लिए,मकाम बनाया है...तुझे नज़र ना लगे किसी भी सितारे की,हम

ने सौ परदों मे तुम को छुपाया है...तेरा मेरे बिना गुजारा नहीं,यह एहसास बरखा रुकवा कर तुझे करवाया

है..चांदनी की ओट है,चांदनी की खोज है..इसलिए दुनियां भी कहे,चाँद तेरा ही रोज़ है... 
आ इस शाम को आबाद कर दे अपने जश्ने -कदम से...कुछ फूल बरसा दे अपने दामन से हमारे

सदके-हुस्न पे...हुस्न की यह कातिल बिजलियां कब बार-बार गिरती है..अदाएं हुस्न की कहां क्यों

कब इतना मचलती है...मौसम तक मात खा गया,हमारे भीगे गेसुओं के जाल मे...बरस रहा है तभी

से जब से हम ने खुद को भिगोया है इस के बरसते जाम मे...कर रहा है सिफारिश,एक मौका तो

दीजिए...कर ले दीदार आप के हुस्ने-पाक का,चला जाऊ गा मैं..बस खुद को घूँघट मे छिपा लीजिए...
बेहद कच्ची डोर बंधी है,ज़िंदगी और मौत के बीच...एक इशारे पे टिकी है इन दोनों की जीत...साँसे

महके तो जीत जाती है ज़िंदगी..बिख़र जाए साँसे तो जीत जाती है मौत की पालकी..एक पल का खेल

है यह सारा...निहारा हम ने आसमां की और..इंद्रधनुष आया है मौसम साफ़ होने के बाद..फिर सोचा

क्या फ़रिश्ते भी यही कही होंगे,देखे तो आवाज़ लगा के...नैना टिक गए आसमां के इसी इंद्रधनुष के

आगे,होंगे फ़रिश्ते यही कही आस-पास..हम ने चुपके से ज़िंदगी को मांग लिया,साँसों का दौर कुछ और

मांग लिया...क्या कहे आप से,यह ज़िंदगी खूबसूरत जो है आप की..फिर क्यों ना मांगे कुछ आप से..
क्या कहे बरसात तेरी कहानी...मुहब्बत की तरह बरस रही तेरी यह टिप टिप और गरजती तूफानी..

थम जा अब तो,समंदर मे भरे गी अब और कितना पानी...लहरें है उफान पे और तू बरस रही है उतने

ही गुमान से...मुहब्बत को ना शर्मिंदा कर अब इस तूफानी तूफान मे...मिलने से क्यों रोक रही सब के

अंदर के तूफान को...जा सिमट जा अपने बदरा की आगोश मे..क्यों कर रही उस का दामन ख़ाली,

आखिर वही से आई है यह तेरी बरसती कहानी...

Thursday 4 June 2020

यह बरखा जब भी आती है...नादानियाँ हज़ारो कर जाती है..कैसे समझाए इसे तू क्यों कितनो की राह

रोक देती है..परिंदो को बेवजह भीगने पे मजबूर करती है...कुछ सवाल जो अधूरे रह गए थे कल,उन

 का जवाब मिलने से पहले झमाझम बरस पड़ती है..वक़्त से पहले तेरा यू बरसना,दिलों को तोड़ देता

है...फिर तूफान बन के जो आती हो  तो ज़माने को डरा देती हो...जा लौट जा अपने देस,यहाँ अभी

दुखो का दौर बाकी है..आना तभी जब जहाँ डूबने लगे खुशियों की बेला मे..छोड़ नादानियाँ,जा लौट

जा देस अपने कि यहाँ अभी तकलीफो का डेरा है...
हम तो चुन रहे है यह सफ़ेद मोती,जो गिर रहे है आसमाँ से आज...उठा रहे है यह मोती सोच के आज,

तेरे शहर तेरी बस्ती से नज़राना भेजा है किसी ने खास...पिघल रहे है हमारे हाथों मे यह मोती,तेरे कमजोर

वजूद की तरह...बहुत संभाला इन्हे मगर यह बह गए तेरी बातो की तरह..हम रोकते रहे इन को पर यह

रुके नहीं तेरे जाते हुए कदमो की तरह...ताकीद भी की मगर दिल को दे गए ठंडी आह,तेरी बेमतलब

बातो की तरह..यह नज़राना भेजा है या मोती की शक्ल मे हम को परखने भेजा है इसे...

Wednesday 3 June 2020

यह नैना आज रात, जी भर के सोए गे...पलकों के किनारे खुलने भी ना दे गे और सपनो के जहाँ मे

खो जाए गे...रात को कह रहे है,मेरा साथ आज बहुत दूर तक देना..सवेरा जल्दी ना हो इस बात से

वाकिफ तू रहना..सपनो के मेले चलते रहे और हम इन सपनो की आगोश मे रुके रहे...ठहर जा रात

अभी खिड़की से चाँद को भी आना है..वो देखे ना हम को चोरी से,इस बात को तुझे ही उस को समझाना

है...नज़रे इनायत होगी सुबह,पर रात तुझे बस मेरे ही संग रुक जाना है...
ख़ुशी दे के तुझे ऐसा लगता है कि हम सांतवे आसमां से भी ऊपर है...यू लगता है जैसे इस सांतवे

आसमां से भी ऊपर, बहुत ही ऊपर है...कौन सी ऐसी दुआ है जो हम ने तुझे नहीं दी...दिल की

गहराइयों से तेरी रूह को चुना हम ने, और उस पे कोशिश यह रही कि किसी रोज़ तेरी रूह को

छूने का नसीब हम को मिल जाए...यह नसीब भी अजब शै है..यह हाथ की लकीरें भी हाथो मे

हज़ारो है...किस लकीर से पूछे कि तुम क्या जानती हो...जवाब किस से मांगे...बस हम तो अब

सांतवे आसमां पे है....शायद यू कहे,मुहब्बत की बेमिसाल पायदान पे है...
उस की बदमाशियां जब नादानियाँ लगने लगी तो उम्र का यह खूबसूरत मोड़ याद आया...नाज़नीन

हो तुम,यह सुन कर खुद को एहसासों से भरा पाया...कल तक खेलते थे गुड्डे -गुड्डियों से...आज खुद

के बड़े होने का एहसास उस की बातो से आया...आईना दिन मे हज़ारो बार देखा..और बार-बार उसी

आईने मे चेहरा उसी का देखा...सुर्ख हुए यह गाल कहानी कह रहे है हमारी...नूर अपने ही चेहरे का देख

खुद ही हैरान है हम..किताबों को पढ़ने बैठे तो जानम,क्यों फिर हम को तेरा किताबी चेहरा इन मे

नज़र आया...
उस का गुफ्तगू करना और चले जाना...और हमारा घंटो उसी की एक-एक बात को याद करना..गज़ब

पे गज़ब यह...तमाम गुफ्तगू सिरे से आखिर तक भूल ही ना पाना...हर लम्हे की याद,परत दर परत

उठाना और खुदी ही मुस्कुरा देना...हर छोटी बात का अंदाज़ याद आना..घंटो यू ही बैठे रहना और

फिर उसी सुहानी शाम को बेइंतिहा याद करना...आवाज़ का वो रूमानी जादू दिलो-दिमाग पे छाना

और इतना छाना कि सितारों भरी रात कब आ गई,यह भी ना जान पाना...

Tuesday 2 June 2020

यह तमाम ज़िंदगियाँ फिर खिले गी..हवाएं फिर साफ़ होगी...दुःख के बादल दूर होंगे,जरूर होंगे..आशा

का दूजा नाम ही ज़िंदगी है...यह देश वही है,जहाँ वीरों ने जन्म लिया है...यह देश अभी भी वही है,जहाँ

स्त्री आज भी कही ना कही रानी झाँसी की है...यही कहीं वो गौरी है..राधा है..सीता भी है...पावन यह

धरा आज भी है..जब इस धरा पे यह सब बसे है,कहीं ना कहीं तो दर्द-तकलीफ को जाना ही होगा...

रूहे साफ़ आज भी है..संस्कारो की मौजूदगी आज भी है..तो कैसे यह उम्मीद ना करे कि आने वाली

ज़िंदगी खूबसूरत ना होगी...जरूर जरूर होगी...
इन आँखों के यह शामियाने क्यों सज़दा करते है..भरे है नींद से मगर कश्मकश मे रहते है....कहते

कुछ नहीं मगर खता कुछ ऐसी कर देते है...खवाब मे आप के आए गे आज,यह इशारा कर अपना

यह शामियाना बंद करते है...मगर बंद करने से पहले,शैतानी इतनी कर देते है..हम को याद करते

करते नींद तुम को आए नहीं..ख्वाब मे आए गे तब जब तुम सो पाओ गे..हम सो जाए गे सकून से,और

खवाब मे अपने, आप को खींच लाए गे..अब इतनी गुस्ताखी भी ना करे तो तेरे सनम कैसे कहलाए गे...
हर इंतज़ार गर प्यार होता तो मुहब्बत का दावा सच ही होता...गुजरते वक़्त के साथ गर प्यार,नए रूप

और रंग से सजा रहता तो प्यार पुराना क्यों होता...प्यार ही तो था जाने भी दीजिए ..यह सोच गर हर

प्यार करने वाला रखता तो प्यार खाक-राख हो गया होता...बांध के दामन से रखना,ताउम्र उसी को

समर्पित होना..खुद से जयदा सनम की दौलत रहना..वो डोर महीन मगर मजबूत इतनी होना,खींचने

पे भी टूट ना पाना और फिर डोर का खुद से खुद बेताबी से लौट आना...जुदा हो कर भी जुदा ना होना..

ज़न्नत की नगरी मे इंतज़ार अपने मेहबूब का करना और फिर से....... प्रेम की अनंत यात्रा को साथ

साथ शुरू करना....
हम खड़े है मुहब्बत के सब से ऊँचे पायदान पे...खौफ से परे इश्क के इम्तिहान मे...रूह भरी है

लबालब प्रेम के अभिमान मे...समझना ना इस को गरूर,प्रेम है गरूर से हज़ारो कदम दूर...प्रेम

जो खुद ही खुद से गुजरता है,हर उस इम्तिहान से..इबादत मे झुकता है खुदा के दरबार मे...सिर्फ

मुहब्बत का खरा सिक्का,झुकता है उस के दरबार मे..खुदा खुद ही इज़ाज़त नहीं देता,मुहब्बत हवस

वाली अपने इश्के-दरबार मे...क्यों कहे कि मुहब्बत बर्बादी की राह है..मुहब्बत से पहले जो सकूँ मांग

ले साथी के लिए वो मुहब्बत पाक और खुदा के दरबार मे क़ुराने-पाक होती है...
है कितनी उलझनें..है कितनी परेशानियां..कभी कुछ पाने का खवाब तो कभी कुछ खो देने का डर...

मगर प्रेम है इन सब से अलग..इस की ताकत है सब से जुदा..प्रेम के महीन,बेहद महीन धागे जब जब

जुड़ते है..बिखेर जाते है हज़ारो रंग जीवन मे..उठाए गे प्रेम के शब्द अपने ग्रन्थ मे इतने कि जितने

लिखे ना होंगे, कभी किसी ने इतने...दुनियां कहती है,यह ढाई अक्षर क्या कर पाए गे..सरगोशियां

हमारी कहती है,यही ढाई अक्षर आप सभी की ज़िंदगी मे गज़ब ढाए गे..हर अक्षर पे मोहर है मेरी

सरगोशियां की..फिर ना कहिए गा प्रेम के ढाई अक्षर कुछ नहीं होते...

Monday 1 June 2020

हिसाब साँसों का लगा सकते नहीं..हिसाब अपनी ज़िंदगी की खुशियों का जान सकते नहीं...सांस खुद

की मर्ज़ी से एक और तक ले सकते नहीं..फिर कैसे सोच ले कि हम खुद की मर्ज़ी से अपनी किस्मत की

इन लक़ीरों को बदल ले...आईने से अपना बचपन मांग सकते नहीं..वो पानी मे चलती नाव अब चला

सकते नहीं..लहलहाते खेतों मे जा कर अब,उन फसलों को देख सकते तक नहीं...जब कुछ अपने हाथ

नहीं तो इतना तो करे गे...खुद से बेइंतेहा प्यार करे गे और आखिरी सांस तक बिंदास जिए गे...
तपस्या गहरी रही पर बात फिर, अपने बाबा की याद आई...परवरदिगार के घर देर होगी मगर अंधेर

तो नहीं...मन का शीशा इतना उजला रखना कि हल्का दाग़ भी नज़र आ जाए..दुनियां तुझे कुछ भी

कहे बेशक कहती रहे..तेरी तपस्या यू ही चलती रहे...ठोकरें मिले गी बहुत,धोखे भी दे गे लोग..याद

अपने बाबा की बात रखना..लोग तो भगवान् पे भी सवाल उठा देते है..लोग तो माँ सीता पे भी आरोप

लगा चुके है..फिर बिसात हमारी क्या उन के आगे...तुझे खुद को साबित करने के लिए,दुनियां को नहीं

बस भगवान् को परीक्षा देनी है...तुझे सफल बस उन्ही से होना है....
सो जा अब सकून की नींद पागल बदरा कि आज तू बहुत बरसा है...बरस बरस के थका है इतना कि

तेरे वज़ूद पे अब हम को रहम आया है...कायम रहना अपनी हस्ती पे कि तेरे बगैर इस धरा पे रहना

नामुमकिन है...भिगो के  तूने मन-आंगन,खुद को हमारी नज़रो मे उठाया है...सूखा-रुखा सा दिन और

तपन से जलती काया..तेरे बरसने से मौसम खुशगवार हो पाया है...रात गहराने लगी है पागल बदरा..

सो जा अब सकून से कि आज तू खुल के बहुत बरसा है... 
यह बरखा और यह बेतहाशा चलती उड़ती तेज़ हवाएं...जी चाहता है इन्ही तेज़ हवाओ के संग दूर

बहुत दूर कही निकल जाए आज...यह हवाएं उड़ा ले गई है मन का भारीपन..कुछ खास दे गई है यह

हवाएं आज...कुछ खास बहुत खास वादा किया आज इन्ही हवाओ के साथ...यह रिमझिम सी बारिश

यह बहकी हुई हवाएं,लगा ऐसे जैसे मुद्दत बाद आई है..तभी तो इन से वादा किया मगर वादा साथ मे

यह भी लिया..गर्म हवा का झौका मत बनना,बस यू ही बहकती आना...
यह मेघा भी क्या कमाल करते है...पल मे तोला तो पल मे माशा करते है..अभी  गर्म रेत से झुलस रहे

थे पाँव और देखिए ना, अब भिगो दिए यही पाँव...तेज़ काली घटा सन्देश दे गई,बरसना है आज खुल

के मुझ को...कभी मेघा तो कभी कुदरत,कर रही है बंद घर की दीवारों मे इंसान को...यह फुहार बता

गई मौसम का हाल..यह कभी रूमानी होता है तो कभी परेशानी भी देता है...माशाअल्लाह...भीगे इस

मौसम की फुहार मे या ज़मी पे उतार दे मुहब्बत को तूफानी अंदाज़ मे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...